Wednesday, August 24, 2016

शाही इमाम को सदमा, पाकिस्तान में मामा का देहांत

Wed, Aug 24, 2016 at 3:21 PM
जनाज़े में भारत से नहीं जा सका कोई पारिवारिक सदस्य
लुधियाना: 24 अगस्त 2016: (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो): 
सत्तर के दशक बात है कामरेड तेजा सिंह स्वतन्त्र अपने एक भाषण में कह रहे थे-आज़ादी आने के बाद भी हम आम नागरिकों के मुकाबले अभी तक तो इन पंक्षियों की हालत अच्छी है जो जहाँ चाहे अपना बसेरा तो बना लेते हैं। वह दिल्ली की निरंकारी कलोनी के पास बनी इंदिरा विकास कलोनी में मई दिवस के अवसर पर बोल रहे थे। यह आयोजन एक ऐसी कलोनी के लोगों की तरफ सिकराय जा रहा था जिन्हें वहां से अवैध कह कर उजाड़ने के लिए आये दिन सबंधित अधिकारी भरी फ़ोर्स लेकर पहुँचते लेकिन मारने मारने पर तैयार लोगों को देख कर लौट जाते। इस कार्यक्रम के आयोजकों में कामरेड परताप सिंह मुसाफिर, डॉक्टर तरलोचन सिंह, उस समय के निडर पंजाबी पत्रकार ज्ञानी अजब सिंह दलेर (विश्व एकता) और ट्रांसपोर्टर निशान सिंह भी उस समय मौजूद थे। आज इस कार्यक्रम की याद आयी है पाकिस्तान से आयी एक दुखद खबर के कारण। मामा की मौत लेकिन जनाज़े में शामिल होना नामुंमकिन क्योंकि वीज़ा में ही काम से काम  लगेगा। आपसी सम्बन्धों में यह कैसा विकास हुआ है कि सुख तो दूर दुःख बांटना भी अब सम्भव नहीं रहा। यह सब कुछ हुआ है शाही इमाम पंजाब मौलाना हबीब उर रहमान सानी लुधियानवी के साथ। 
उनके मामा मौलाना अहमद सईद लुधियानवी (75) का लाहौर में निधन हो गया। उनका जन्म 27 दिसंबर 1941 को लुधियाना में हुआ था। पाकिस्तान की सियासत में मौलाना अहमद सईद लुधियानवी का नाम हमेशा ही बुलंद रहा है। उनको बब्बर शेर के नाम से जाना जाता था। उन्होनें हमेशा ही सरकार और पार्टी में गरीबों की मदद करते हुए विपक्ष की भूमिका निभाई। मौलाना के देहांत पर शाही इमाम पंजाब ने गहरा दु:ख प्रकट करते हुए आज जामा मस्जिद लुधियाना में उनकी मगफिरत के लिए विशेष तौर पर दुआ करवाई। हिन्द-पाक सरकारों के खराब संबधों की वजह से भारत से परिवार का कोई भी सदस्य लाहौर जनाजे में शामिल होने के लिए नहीं जा सका, क्योंकि वीजा प्रक्रिया के लिए एक महीने का समय रखा गया है। शाही इमाम ने कहा कि भारत और पाकिस्तान में लाखों ऐसे परिवार है जो कि खुशी तो दूर  की बात गम के मौके पर भी एक दूसरे के पास नहीं पहुंच सकते। क्या बीतती होगी इन लाखों परिवारों पर जो अंतिम यात्रा में भी  से वंचित रह जाते हैं। क्या आतंक की सज़ा इन बेक़सूर परिवारों को भुगतनी होगी। 

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