Friday, July 31, 2015

रेलवे बोर्ड में नये सचिव बने गंगा राम अग्रवाल

31-जुलाई-2015 20:48 IST

जर्मनी में किया था इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्‍नातकोत्‍तर 
नई दिल्ली: 31 जुलाई 2015: (पीआईबी//पंजाब स्क्रीन ब्यूरो): 
बहुत से महत्वपूर्ण पदों पर काम कर चुके श्री गंगा राम अग्रवाल एक बार फिर नयी ज़िम्मेदारी पर नियुक्त किये गए हैं। देश के साथ साथ विदेश से भी उच्च शिक्षा पाने वाले सगरी गंगा राम अपने काम के क्षेत्र में काफी मुहर्त रखते हैं। 
इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की भारतीय रेल सेवा (आईआरएसईई) के एक अधिकारी श्री गंगा राम अग्रवाल को रेलवे बोर्ड में नये सचिव का पदभार सौंपा गया है। उन्‍होंने श्री पी.सी. गजभइये के स्‍थान पर पदभार संभाला है, जो 31 जुलाई, 2015 को सेवानिवृत्‍त हो रहे हैं। यह पदभार ग्रहण करने से पहले श्री जी आर अग्रवाल मध्‍य रेलवे में मुख्‍य विद्युत अभियंता थे।  


आईआईटी रुड़की से स्‍नातक श्री अग्रवाल ने जर्मनी के डर्मस्‍टैड स्थित एप्लायड साइंसेज विश्वविद्यालय से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्‍नातकोत्‍तर किया और वह वर्ष 1981 में आईआरएसईई से जुड़े। उन्‍होंने वित्‍त प्रबंधन में एमबीए भी किया।
श्री अग्रवाल ने उत्‍तर रेलवे, आरडीएसओ/लखनऊ, रेलवे बोर्ड, उत्‍तर-पश्चिम रेलवे, पश्चिम रेलवे और मध्‍य रेलवे में विभिन्‍न पदों पर काम किया। वह उत्‍तर-पश्चिम रेलवे के जयपुर डि‍वीजन में संभागीय रेल प्रबंधक के पद पर कार्यरत रहे। उन्‍होंने दक्षिण मध्‍य रेलवे और मध्‍य रेलवे में मुख्‍य विद्युत अभियंता के पद पर काम किया। (PIB)               
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वीजी/वीएल/आरआरएस/एसके-3852

आतंकवाद के मुद्दे पर अभी भी विभाजित है विपक्ष--राजनाथ सिंह

31-जुलाई-2015 17:39 IST

आतंकवाद और गुरदासपुर हमले पर लोक सभा में गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह का वक्तव्य 

''चीन छीन देश का गुलाब ले गया, ताशकंद में वतन का लाल सो गया। 

ये सुलह की शक्‍ल को संवारते रहे, जीतने के बाद बाजी हारते रहे ।।'' 
गृह मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने 27 जुलाई, 2015 को पंजाब के गुरदासपुर जिले में हुए आतंकवादी हमले पर लोकसभा में आज निम्‍नलिखत वक्तव्य दिया: 

नई दिल्ली: 31 जुलाई 2015: (पीआईबी)
"27 जुलाई, 2015 की सुबह लगभग पांच बजकर तीस मिनट पर सेना की यूनिफॉर्म में भारी तादात में हथियारों से लैस तीन आतंकवादियों ने पंजाब के गुरदासपुर जिले के दीनानगर के आउट्सकर्टस पर दीनानगर निवासी श्री कमलजीत सिंह, पुत्र श्री ज्ञानसिंह की मारुति कार नम्बर पीबी 09बी 7743 पर गोलाबारी करते हुए कार को अपने कब्‍जे में ले लिया। इसके बाद इन आतंकवादियों ने दीनानगर बस स्टैंड के आसपास अंधाधुंध गोलियां चलाईं। उन्‍होंने बामियाल से आ रही पंजाब रोडवेज की बस नम्बर पीबी 06जी 9569 को भी अपना निशाना बनाया।
इसके बाद ये आतंकवादी दीनानगर पुलिस स्‍टेशन में घुस गए और सुरक्षा ड्यूटी में तैनात संतरी पर फायर किया। पुलिस स्‍टेशन पर फायरिंग के दौरान होमगार्ड राजिन्दर कुमार और अशोक कुमार घायल हुए। थानाध्‍यक्ष, सब इंस्पेक्टर मुख्तियार सिंह जो पुलिस स्‍टेशन के अंदर थे, जब बाहर निकले तो आतंकवादियों द्वारा उन पर भी फायरिंग कर, उन्‍हें घायल कर दिया गया। आतंकवादी लगातार गोलीबारी करते हुए पुलिस स्‍टेशन में घुसने की कोशिश कर रहे थे। रात्रि की मुंशी ड्यूटी पर तैनात हवलदार राम लाल ने संतरी का हथियार लेकर बहादुरी से आतंकवादियों का सामना किया। हवलदार रामलाल पुलिस स्‍टेशन के अंदर चले गए और उन्‍होंने दरवाजे को अंदर से बंद कर लिया, ताकि आतंकवादी पुलिस स्‍टेशन के अंदर प्रवेश न कर पाएं। अंधाधुंध फायरिंग के कारण पुलिस स्‍टेशन के बगल में स्थित किरण अस्पताल में भर्ती तीन मरीज भी गोली लगने से घायल हो गए, जिनमें से दो लोगों की मृत्यु हो गयी।


इस दौरान ये आतंकवादी पुलिस स्‍टेशन के पीछे बनी बिल्डिंग, जो पंजाब होमगार्ड की स्‍थानीय टुकड़ी के कार्यालय के रूप में प्रयोग में लाई जा रही थी, में फायरिंग करते हुए घुस गए। वहां उपस्थित तीन होमगार्डस् फायरिंग की चपेट में आकर वीरगति को प्राप्‍त हो गए। 



तत्‍काल ही पुलिस की रिइंफोर्समेंट दीनानगर पुलिस स्‍टेशन पहुंच गई। इसके उपरांत आतंकवादियों के विरूद्ध ऑपरेशन के संचालन एव निगरानी के लिए डीजीपी पंजाब सहित वरिष्‍ठ पुलिस अधिकारियों की टीम भी घटनास्‍थल पर पहुंच गई। 



दोनों तरफ से हुई फायरिंग के फलस्‍वरूप होने वाली क्षति को कम से कम स्‍तर पर रखने, आतंकवादियों को भागने से रोकने तथा उन्‍हें जिंदा पकड़ने के उद्देश्‍य से पंजाब पुलिस द्वारा लगातार हर संभव प्रयास जारी रखे गए। अंत में इस सफल ऑपरेशन के दौरान तीनों आतंकवादियों को न्‍यूट्रालाइज कर दिया गया। दुर्भाग्‍यवश इस ऑपरेशन के दौरान पुलिस अधिकारी श्री बलजीत सिंह, एसपी (डिटेक्टिव), गुरदासपुर आतंकवादियों का सामना करते हुए शहीद हो गए। पंजाब पुलिस ने मृत आतंकवादियों से तीन एके-47, 19 मैगजीन और दो जीपीएस सहित भारी मात्रा में अवैध सामग्री भी बरामद की है, जिसको एनालाइज किया जा रहा है। मैं पंजाब पुलिस द्वारा किये गये इस ऑपरेशन की हृदय से सराहना करता हूं और पूरी पंजाब पुलिस को भी मैं अपनी तरफ से बधाई देना चाहता हूं। 



जीपीएस डाटा के प्रारंभिक अध्‍ययन से संकेत मिले हैं कि आतंकवादियों ने पाकिस्‍तान से गुरदासपुर जिले के तास क्षेत्र, जहां राबी नदी पाकिस्‍तान से प्रवेश करती है, से घुसपैठ की। आशंका व्‍यक्‍त की जा रही है कि इन्‍हीं आतंकवादियों ने जम्‍मू-पठानकोट रेलमार्ग पर दीनानगर और झकोल नदी के बीच तलवंडी गांव के पास पाँच आईईडी प्‍लांट किये, जिन्‍हें मौके पर ही बम डिस्पोजल स्क्वॉड द्वारा डिफ्यूज कर दिया था। इस स्थान से एक नाइट विजन डिवाइस भी बरामद किया गया।



इस दौरान गृह मंत्रालय स्थिति पर लागातर कड़ी नजर रखते हुए पंजाब सरकार से लगातार संपर्क में रहा। इस ऑपरेशन में पंजाब पुलिस की सहायता करने के लिए आर्मी और एनएसजी को विकल्‍प के रूप में तैयार रखा गया था। मैंने स्‍वयं मुख्यमंत्री, पंजाब से बात की एवं केन्‍द्र सरकार द्वारा सभी आवश्‍यक सहयोग के लिए आश्‍वस्‍त किया। बीएसएफ और आर्मी को विशेष रूप से सीमा पर हाई अलर्ट पर रखा गया।



इस आतंकी हमले में 3 नागरिक, 3 होमगार्ड के जवान एवं एक पुलिस अधिकारी सहित कुल 07 लोगों की मृत्‍यु हो गई और इसके अतिरिक्‍त 10 नागरिक और 07 सुरक्षाकर्मी घायल हुए हैं। 



मैं सदन को यह भी बताना चाहता हूँ कि विगत एक माह में जम्‍मू और कश्‍मीर सीमा पर घुसपैठ के कुल पांच प्रयास किए गए जिसमें 8 आंतकवादियों को न्‍यूट्रालाइज करते हुए 04 प्रयासों को विफल कर दिया गया। घुसपैठ की शेष एक अन्‍य घटना में आतंकवादियों को सुरक्षा बलों की जवाबी कार्यवाही के कारण वापस लौटना पडा था। भारतीय सुरक्षा बल सीमा क्षेत्र में सतर्क रहती हैं परन्‍तु कठिन भौगोलिक परिस्थितियां एवं मूसलाधार बारिस होने से सीमा क्षेत्र की नदियों एवं नहरों में अत्‍याधिक तेज बहाव के कारण ये आतंकवादी भारतीय सीमा में घुस पाने में सफल हुए होंगे। 



मैं सदन के सभी माननीय सदस्‍यों को यह आश्‍वस्‍त करना चाहता हूँ कि भारत की एकता एवं अखंडता तथा देश के नागरिकों की सेफ्टी एवं सिक्‍युरिटी को अंडरमाइन करने के देश के दुश्‍मनों के किसी भी प्रयास का हमारे सुरक्षा बलों द्वारा त्‍वरित एवं मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा। सरकार, आतंकवाद से दृढ़ता और कड़ाई से निबटने के लिए प्रतिबद्ध है और सीमा पार से चलाए जा रही सभी आतंकवादी गतिविधियों को रोकने के लिए हर संभव प्रयास करेगी।



मैं सरकार की ओर से सभी मृत नागरिकों एवं वीरगति को प्राप्‍त सुरक्षा-कर्मियों के परिजनों के प्रति हार्दिक संवेदना व्‍यक्‍त करता हूँ तथा सभी घायलों के जल्‍द से जल्‍द स्वस्थ होने की कामना करता हूँ।"



श्री राजनाथ सिंह ने चर्चा के दौरान हस्‍तक्षेप करते हुए निम्‍नलिखित बयान दिया – 



मैं अचंभित हूं कि विपक्ष आतंकवाद पर चर्चा के लिए तैयार नहीं है। ऐसे मुद्दे पर विपक्ष विभाजित रहेगा, मुझे उम्‍मीद नहीं थी। देश में एक तरफ हमारे जवान शहीद हो रहे हैं और दूसरी तरफ विपक्ष पूरी तरह से आतंकवाद के मुद्दे पर विभाजित है।

''चीन छीन देश का गुलाब ले गया, ताशकंद में वतन का लाल सो गया। 
ये सुलह की शक्‍ल को संवारते रहे, जीतने के बाद बाजी हारते रहे ।।'' 

इन चार पंक्तियों से स्‍पष्‍ट हो जाता है कि कांग्रेस की सिक्‍यूरिटी पोलिसी तथा फॉरेन पोलिसी कैसी रही होगी। 



इसी यूपीए के एक गृह मंत्री ने आतंकवाद के लिए हिंदू आतंकवाद की एक नई टर्मिनोलॉजी दी और इस पर लश्‍कर के चीफ सैयद हाफीज सईद ने उन्‍हें बधाई दी थी। आतंकवाद की कोई जाति, धर्म और मजहब नहीं होता। आतंकवादी, आतंकवादी होता है। 



शर्म-अल-शेख और हवाना में भी यूपीए सरकार ने अपनी गलत नीतियों के कारण आतंकवाद के मुद्दे को एक बार फिर से डाइल्‍यूट कर दिया है।
पीके/वाईबी–3845

Thursday, July 30, 2015

ATM की सुरक्षा पर गार्ड ने ही उठाये कई सवाल

बैंक ने उसे गंभीरता से लेने की बजाए नौकरी से ही निकाला 
लुधियाना: 30 जुलाई 2015 : (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो):
मोहित अग्रवाल और उसका परिवार आज कड़ी मेहनत करने के बावजूद रोटी से आतुर है क्यूंकि उसका वेतन रोक लिया गया है और उसे नौकरी से निकाल दिया गया है।  उसका कसूर सिर्फ इतना कि एक जानेमाने बैंक के लिए गार्ड की नौकरी करते समय उसने एटीएम की सुरक्षा को लेकर सवाल उठाये और खामियों  की शिकायत की। इस पर उसके ठेकेदार ने बौखलाहट दिखाते हुए उसे नौकरी से ही  निकाल दिया।
उसने उच्च अधिकारीयों से शिकायत की तो वहां भी उसकी कोई सुनवाई नहीं हुई। आखिर हार कर उसने कम्युनिस्ट नेता और जानेमाने समाज सेवी कामरेड गुरनाम सिद्धु से सम्पर्क किया। कामरेड गुरनाम सिद्धु ने सरे मामले की छानबीन के बाद निष्कर्ष निकाला कि मोहित भी पूंजीवाद के इस युग में लूटपाट, शोषण और साज़िश करने वाले गिरोह का शिकार हो गया है। 
मोहित के पास इसममले में सारा रेकार्ड सुरक्षित है। उसका कहना है किवह यह रेकार्ड उच्च अधिकारीयों को सब के सामने सौंपना चाहता है तांकि पूरी जाँच हो सके। अगर उसने ठेकेदार या उससे मिलीभगत रखने वाले किसी व्यक्ति को यह रेकार्ड दिया तो इस रेकार्ड को भी खुर्द बुर्द किये जाने की आशंका मौजूद है।


Sunday, July 26, 2015

पाखंडी जगेड़ा: नाम जपते जपते बन गया क्राईम किंग

आजकल फिर सरगर्म है अकाली नेताओं पर डोरे डालने के लिए  
लुधियाना:26 जुलाई 2015: (रेक्टर कथूरिया//पंजाब स्क्रीन):
कहते हैं कि ज़िंदगी जीने के दो ही तरीके हैं। या तो जो हासिल है उसे पसंद करना सीख लो और या जो पसंद है उसे हासिल करना सीख लो। धर्म मार्ग पर चलने वाले अक्सर भगवान की रज़ा में राज़ी रहना सीख लेते हैं और उनके चेहरे पर गहन शांति अ जाती है। धीरे धीरे उनके पास संसार के सारे सुख आ जाते हैं लेकिन वे इन सुखों से बहुत  ऊपर उठ चुके होते। हैं दूसरी तरह भगवान को न मानने वाले अति अति आत्मविश्वासी अपनी रज़ा के मुताबिक जीवन जीने लगते है। वे हर उस चीज़ को हासिल करना सीखते हैं जो उन्हें पसंद होती है। लोग दोनों क्षेत्रों में सफल देखे गए हैं और असफल भी। इन दोनो के इलावा एक तीसरी केटेगरी है बीच के लोगों की जो सारी उम्र चलते रहते हैं लेकिन पहुँचते कहीं नहीं। उनका एक कदम भगवान की तरफ और दूसरा कदम संसार की तरफ होता है। न वे धर्म के रहते हैं और न ही दुनिया के।  
कुछ ऐसा ही हुआ शमशेर सिंह जगेड़ा के साथ। अहमदगढ़ के साथ ही लगता है एक गाँव नानकपुर जगेड़ा। इसी गाँव का शमशेर सिंह अन्य युवकों की तरह बहुत कुछ बनना चाहता था, बहुत कुछ पाना चाहता था लेकिन उस सब कुछ के लिए जिस संघर्ष, प्रतिभा और  त्याग की ज़रूरत होती है वह सब उसमें नहीं आ पाया।  अख़बारों के लिए पत्रकारिता करने की थोड़ी बहुत कोशिश भी की लेकिन पत्रकार नहीं बन सका। नेता बनने की कोशिश की तो वहां भी नाकामी मिली। घर परिवार के लोग पहले से ही परेशान थे।  गाँव वाले भी निठल्ला समझने समझने लगे। आखिर खुली दाढ़ी सफेद पगड़ी और सफेद कुरता पायजामा  पहन कर जब "संत" शब्द साथ जुड़ा तो लोग आवभगत भी करने लगे। स्कूली शिक्षा में अनपढ़ लेकिन एक रिश्तेदार की मेहरबानी से पाठ करना भी सीख  गया।  पाठ की मर्यादा बनी रहती तो ठीक थी लेकिन निगाहें गुस्ताख़ होने लगीं और गाँव में बुरी नज़र किसी की भी बर्दाश्त नहीं होती सो इस तथाकथित धार्मिक को भी गाँव से निकलना पड़ा। 
गाँव से निकल कर भी सबक नहीं सीखा। अब दिमाग में नई  साज़िशें पनपने लगीं। ब्लयू स्टार आप्रेशन के बाद का ज़माना था। हर गली में आतंक का था। हर सांस सहमी हुयी थी। कभी इधर गोली चलती और कभी उधर बम फेंका जाता। उन दिनों लम्बी खुली दाढ़ी सफेद चोले वाले वाले "संतों" की अहमियत बहुत बढ़ गयी थी। सरकार को लगता था कि यह धार्मिक लोग "भटके हुए" युवकों को सही राह पर लाएंगे और बंदूक पकड़े युवक हर संत में से "भिंडरांवाले संत" को तलाश कर रहे थे। 
जो तथाकथित धार्मिक लोग सभी की अपेक्षा पर पूरा उतरने के प्रयासों में थे उनमें  शमशेर  जगेड़ा भी था। सरकार साथ भी और नौजवानों के साथ भी। वह बहुत ही संवेदनशील वक़्त था। उस नाज़ुक दौर में कुछ लोग सब कुछ गंवा कर हमेशां के लिए गुमनामी के अंधेरों में गुम  हो गए या मौत मुँह में चले गए और कुछ लोग मौके का फायदा उठाते उठाते जुर्म और "धर्म" दोनों क्षेत्रों में "किंग" बन गए। इन लोगों ने अपना हलवा मांडा बनाये रखने के लिए कितनों के घर उजाड़े,  किस किस को मौत के मूह में धकेला उन सब की कहानी बहुत लम्बी है लेकिन हम बताएंगे ज़रूर। इंतज़ार कीजिये हमारी अगली पोस्ट की। 

Saturday, July 18, 2015

यह बरसात का कमाल है या कोई और ख़ास कारण?

लुधियाना के पॉश इलाके की सड़क का है यह हाल 
लुधियाना: 18 जुलाई 2015: (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो): 
चुनावी परिणाम घोषित होते ही शुरू हो जाता है विजयी दलों के ख़ास लोगों को सौगात बांटने का सिलसिला। अलग अलग छोटे छोटे ठेकों से लेकर बड़े बड़े अनुबंधों तक। अच्छी भली गलियों और सड़कों को खोद डाला जाता है लेकिन ऊपर ऊपर से। फिर उसी पर बिछा दी जाती है नयी सामग्री। गली सड़क तैयार और बिल पास होने की कवायद शुरू। साधारण किराये के मकानों में रहने वाले लोग पहुँच जाते हैं कोठियों में। साइकलों पर सफर करने वाले पहुँच जाते हैं बड़ी बड़ी गाड़ियों में। अच्छे दिन आते ही उनकी दुनिया बदल जाती है। यहीं बन जाता है उनका अमेरिका। हर बार गलियाँ सड़कों को "नया बनाने" के इस चक्र में लोगों के मकान हो जाते हैं निचले स्तर पर। बरसात आते ही घरों में पानी घुसता है और मकान की नींव होने लगती है खोखली। इस सबके बावजूद विकास का यह सिलसिला जारी रहता है। पार्टी बदल सकती है पार्षद, विधायक या सांसद बदल सकता है लेकिन इस सिस्टम में कभी बदलाव नहीं आता। घरों के दरवाज़े पिछले दो-तीन दशकों में सड़क और गली के स्तर से कितना नीचे चले गए इसकी जांच कभी नहीं करवाई जाती। विकास के नाम पर जनता के सामने जो परोसा जाता है वो कितना खोखला होता है इसका नया नमूना दिखाया है जाने माने RTI एक्टिविस्ट अरविन्द शर्मा ने। 
अरविन्द शर्मा अक्सर सोशल मीडिया पर ऐसे खुलासे करते रहते हैं। आज उन्होंने लुधियाना की सड़कों और बुढा दरिया की मौजूदा हकीकत बताई है। ये ऐसे मामले हैं जिनके बारे में कुछ भी लुक छिपा नहीं है लेकिन फिर भी हालत बड़ से बदतर हो रही है।  इंसानी ज़िंदगी के लिए खतरा बने ऐसे मंज़र आम हैं, हादसे होते हैं, परिवार उजड़ते हैं लेकिन प्रशासन को कभी कोई दर्द महसूस नहीं होता। कोई दरिया के प्रदूषित पनि से मरे या इसखड्डे  हादसे का शिकार होकर।  सरकार को शायद कोई लेना देना नहीं है। अगर रोष प्रदर्शन हुआ तो मुयावजा मिल जायेगा वरना इंसान का मरणा भी कीड़ों मकोड़ों जैसा हो जायेगा। 
विकास का यह नमूना देखा जा सकता है लुधियाना के पॉश इलाकों में आती एक सड़क कालेज रोड का। यह सड़क कई कारणों से महत्वपूर्ण है। इस सड़क पर एक महत्वपूर्ण व्यक्ति का घर भी है जिसमें अति महत्वपूर्ण नेता परिवार का आनाजाना भी है इसके बावजूद इस सड़क पर इतना बड़ा खड्डा। पता नहीं बरसात से पड़ा है या पेड़ लगाने के लिए खोदा गया है लेकिन है यह खतरनाक। बिजली अक्सर गुल होती है और सड़कें बरसाती पानी से भर जाती हैं।  ऐसे खड्डे हादसों को निमंत्रण देने के लिए क्यों कायम हैं यह तो अब सरकारी लोग ही जानें।  हमने आपको दिखाना था पॉश इलाके की सड़क का हाल सो दिखा दिया। 
इसी तरह बूढ़ा दरिया अब उफान पर है।  मौसम विभाग ने  बहुत पहले ही चेता चेता दिया था लेकिन बारिश सर पर होने के बावजूद नहीं चेता प्रशासन।  अब बूढ़ा दरिया का प्रदूषित पानी किनारों से बाहर आक सड़को से होता हुआ लोगों के घरों में घुस रहा है।  अब प्रशासन को नज़र आया कि कुछ करना चाहिए।  इसलिए कुछ न कुछ करना ज़रूरी था सो किया जा रहा है। 

RTI नहीं अभी भी पैसा और डंडा स्ट्रांग है

RTI एक्टिविस्ट सतपाल शर्मा ने जताई फिर हमले की आशंका 
RTI एक ऐसा जादू जो समाज को बदल सकता है 
पर साथ ही एक ऐसा विषधर सांप भी जिसे काबू कर पाना हर किसी के बस का काम नहीं। 
लुधियानातकरीबन हर विभाग की सूचना उपलब्ध कराने वाला यह चमत्कारी अधिकार सबको बहुत अच्छा भी लगता है लेकिन इसका उपयोग आपको सुरक्षा से निकाल कर ऐसी असुरक्षा में ले जाता है जहां कदम कदम पर खतरे ही खतरे हैं और दुश्मन ही दुश्मन।  दुश्मन बेगाने ही हों यह भी ज़रूरी नहीं वे आपके अपने भी हो सकते हैं। कुछ यही हो  रहा है लुधियाना में सतपाल शर्मा के साथ। 
पीएयू  में क्लास वन अफसर रह चुके सतपाल शर्मा जब रिटायर हुए तो वृद्धा अवस्था के बावजूद वे निकल पड़े समाज को बदलने।  उस समाज को, जिसकी रग रग में कुरप्पशन रच चुकी है।  पैसा जिसका दीन ईमान बन चूका है। मिलावट और रिश्वतखोरी जहाँ आम हो चुकी है। 
अच्छी भली पेंशन मिलती है और बच्चे सेटल हैं पर सतपाल शर्मा खुद को तब तक सेटल नहीं मानते जब तक यह पूरा समाज सेटल नहीं होता। समाज को बचाने और बदलने के लिए उन्होंने सहर लिया RTI का। कुछ जवाब भी मिले, कुछ काम भी हुए लेकिन एक शाम अचानक गली से निकले तो अचानक उन्हें घेर लिए कुछ गुंडों ने। आव देखा न ताव सतपाल शर्मा को ज़मीन पर गिरा दिया और गले में रस्सा डाल कर शुरू हो गयी पिटाई। उस शाम की बात बताते हुए सतपाल शर्मा आज भी सहम जाते हैं। 
उन्होंने किसी तरह दांव लगाया।  जवानी में खाया घी काम आ गया और वे बच कर भाग लिए।  भाग कर जान बचाई।  साथियों ने अस्पताल पहुँचाया।  बहुत सी अर्ज़ियाँ, बहुत से ज्ञापन लेकिन कोई सुनवाई नहीं। उनके बयान तक नहीं हो पाये। 
इसके बावजूद सतपाल शर्मा निराश नहीं हुए। वे निकल पड़े इन्साफ के संघर्ष को आगे बढ़ाने।  साथ दिया अनीता शर्मा, श्रीपाल शर्मा और एस के गोगना जैसे कुछ शुभचिंतकों ने। हमलावरों की घेराबंदी की तो एक के बाद एक कई सुराग मिले।  यह मामला भी पैसे की बहुतायत से पैदा हुआ।  हमला करने वाली एक जानी मानी स्वीट शॉप फर्म का कहना था कि उनके पास इतना पैसा है कि वह कुछ भी कर सकते हैं।  सतपाल शर्मा की पिटाई के बावजूद उनका कुछ न बिगड़े यह उन्होंने कर के भी दिखाया। 
इधर सतपाल शर्मा लगे रहे एक के बाद एक परत उतरती रही।  आखिर नगर निगम ने उस फर्म के गोदाम को सील कर दिया।  रिहायशी इलाके में गोदाम कैसे चल सकता है? नियमों की अवहेलना और बाहुबलियों के ज़ोर पर यहाँ सब कुछ चलता है।  पैसे और बंदूक   का ज़ोर मुकाबिल होने के बावजूद सतपाल शर्मा इसे सील करवाने में सफल रहे लेकिन उन्होंने कहा कि फर्म का मालिक बड़ा पैसे वाला है वह इसे आज रात को ही खुलवा लेगा। 
जब जन समर्थक मीडिया की टीम इसकी कवरेज कर रही थी तो सिफारशें आणि शुरू हो गयी कि छोडो यह कौन सा बड़ा मामला है? सिफारिशों में खुद को बहुत बड़े मीडिया संस्थान का मीडिया कर्मी कहने वाले भी शामिल थे।
अब सतपाल शर्मा का अंदेशा सिर्फ अंदेशा ही रहता है या फर्म सचमुच सील को तोड़ने तुड़वाने में कामयाब रहती है इसका पता तो समय आने पर ही चलेगा।  RTI नहीं अभी भी पैसा और डंडा स्ट्रांग है 
वीडियो भी देखिये 


Friday, July 17, 2015

माओत्से तुंग का काव्य-संसार--दिनेश कुमार माली

सिल्क मुखौटे के पीछे छुपी डरावनी शक्ति
लेखक दिनेश कुमार माली
जब मैंने थियानमेन चौक पर माओत्से तुंग की बहुत बड़ी तस्वीर देखी, उसी समय मेरा ध्यान भारत के ओड़िशा,बिहार,बंगाल और आन्ध्रप्रदेश के कोयलांचल में व्याप्त माओवाद की ओर  जाने लगा। वह माओवाद  जिसका सत्ता-परिवर्तन का सिद्धान्त बंदूक की नोक से प्रारम्भ होता है, वह माओवाद जो रेल की पटरिया उखाड़कर देश में अराजकता फैलाता है, वह माओवाद जो किसी कंपनी के डायरेक्टर के जीप की आगे की सिर में बांधकर केरोसिन छिड़क कर जला देता है, वह माओवाद जो किसी लाल रंग वाले कागज को किसी चौराहे पर चिपकाकर किसी भी औद्योगिक संस्था को बंद करने के लिए मजबूर कर देता है। तरह-तरह की बातें मेरे जेहन में घूम रही थी, अपने उत्तरों की तलाश में। मगर मेरे पास किसी भी प्रश्न का उत्तर नजर नहीं आ रहा था। बिना माओवाद को समझे मेरा चीन का संस्मरण अधूरा रह जाता। यह तो अच्छा हुआ कि चीन यात्रा के दौरान सहयात्री रहे हिन्दी के विशिष्ट व वरिष्ठ कवि उद्भ्रांतजी ने  मेरे संस्मरण "चीन में सात दिन" की प्रथम पाण्डुलिपि को पढ़कर उसकी कमियों की तरफ ध्यान आकर्षित करते हुए मुझे चीन की संस्कृति, साहित्य और कला के उन अनछुए पहलुओं को उजागर करने के लिए माओत्से तुंग, कन्फ्यूशियस, ह्वेनसांग तथा लू-शून जैसे महान व्यक्तित्वों की जीवनी के बारे में जानने के लिए विशेष प्रेरित किया ताकि इस संस्मरण में चीन की यात्रा के साथ-साथ उसकी ऐतिहासिक व सांस्कृतिक फ़लक से भी पाठकों को अवगत कराया जा सके। तभी बहुत पहले पढ़ी हुई वरिष्ठ कवि अरुण कमल के "पुतली में संसार" कविता-संग्रह की एक कविता "माओ विश्राम" मुझे याद आने लगी।  
सो रहे हैं कामरे माओत्से तुंग 
सो रहे हैं माओत्से तुंग थांगची 
सो रहा है वो काला मस्सा ठुड्डी के पास 
सो रहे हैं वे पाँव चलते-चलते 

इतनी जगी इतनी जगमग यह भूमि 
इतने धूप-धुले बच्चे हरियाली ये तितलियाँ 
मानो स्वप्न हों कामरेड माओ की नींद में –
बांस की पत्तियाँ छू रही हैं नोक से नदी का जल 
पीपा बज रहा है धान के खेतों के पार 

ये फूल तुम्हारे लिए कामरेड माओ 
ये सैंकड़ों फूल – 
साल के सबसे ठंडें दिन भी खिले हैं खिले हैं फूल सैंकड़ों ! 
सलाम माओ थांगची लाल सलाम! 

पता नहीं,अरुण कमल ने माओ की नींद में मानवता के ऐसे क्या सपने देखे कि उन्हें सैकड़ों फूल भी अर्पित किए और अपना लाल सलाम भी भेजा। इस कविता ने माओ के बारे में जानने की मेरी जिज्ञासा को और बढ़ा दिया। एक और कविता जो मेरा ध्यान बार-बार आकर्षित कर रही थी,वह थी डॉ. के. सच्चिदानंद की कविता 'माओ और ताओ' जिसमें उन्होने 'चांग काउत्से' की एक कथा को पुनर्कथन में डाला था, मैं उनकी तहें टटोलने लगा :- 
किसी जमाने में ई नदी के किनारे
एक घोंघा था जिसका नाम ताओ था।
और एक सारस था जिसका नाम माओ था।


ताओ निकला था धूप सेंकने
और माओ वही पास से गुजर रहा था।
ताओ ने अपनी अभेद्यता का खोल
कस लिया ज़ोरों से
जब उसे चुभी अपने मांस में
माओ की चोंच की नोक।
''आज या कल तक अगर पानी नहीं गिरा तो
तो तुम्हें मिलेगा यहाँ मरा एक घोंघा।''
माओ ने ताओ से कहा।

पलट कर जबाब दिया अदृश्य ताओ ने
''अगर तुम नहीं खिसके यहाँ से
आज, या कल तक
तो यहाँ पाओगे एक मरा सारस"

एक युद्ध टालने के लिए जिस चांग काउत्से ने
सुनाई थी यह कथा
वह कभी का मर चुका
लेकिन अभी तक अकाल है,
ताओ छिपा ही है खोल में अभी तक,
माओ भी हटा नहीं रहा अपनी चोंच। 
डॉ. के. सच्चिदानंद की कविता का अर्थ तो मुझे समझ में नहीं आ रहा था, मगर माओवाद की धारणा तो मेरे दिमाग में उस समय से बनने लगी थी, जब मैंने जगदीश मोहंती की ओडिया कहानी 'रायगढ़ा-रायगढ़ा'   पढ़कर नक्सलवाद व माओवाद को जन्म देने वाली कारक परिस्थितियों का अत्यंत ही नजदीकी से सामना किया। इस कहानी में एक 'लाल किताब' का जिक्र भी हुआ था, जिस लाल किताब के अँग्रेजी वर्सन को मैंने चीन में एक किताब की दुकान से खरीदा। गुटका आकार यह किताब दिखने में ऐसे ही दिख रही थी, जैसे गीता-प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित 'गीता' की पाकेट बुक। क्या चीनी लोग चेयरमैन माओत्से तुंग के कोटेशनों को लेकर लिखी गई पुस्तक को उतना ही मान-सम्मान देते है, जितना हम गीता को। जिस ग्रंथ को हम ईश्वरीय मानकर सम्मान देते हैं, यहाँ तक कि कोर्ट में गवाही देने के समय यह भी कहते हैं, ''मैं गीता पर हाथ रख कर कसम खाता हूँ कि मैं जो भी कहूँगा, झूठ नहीं कहूँगा, सब सच-सच कहूँगा''। शायद सही हो, तब माओवाद से हम क्यों डरते हैं ?  इसी सवाल ने मुझे माओ की जिंदगी के भीतर झाँकने पर विवश कर दिया और मैंने अपनी जिज्ञासा और उत्सुकता के शमन के लिए 'अमेज़न डॉट इन' द्वारा अमेरिका से केलिफोर्निया विश्वविद्यालय के विलिस बेनीटर द्वारा संपादित "द पोएम्स ऑफ माओ जेडोंग" पुस्तक मंगवाईं, जिसके गहन अध्ययन की जानकारी आप सभी के सम्मुख हैं।        
माओ का जन्म 1893 में हूनान प्रांत के शाओशन गाँव में हुआ। उनके पिताजी एक गरीब किसान थे। उन पर बहुत ज्यादा ऋण हो होने के कारण उन्होंने विवश होकर सेना ज्वाइन कर ली। कई सालों तक वह सैनिक रहे। जब माओ का जन्म हुआ, तब वह घर लौटे और छोटा-मोटा व्यवसाय करने लगे। माओ ने अपनी आत्म-कथा में एक जगह लिखा, 
''आठ साल की उम्र में मैंने एक स्थानीय प्राइमरी स्कूल में पढ़ना शुरू किया और तेरह साल की उम्र तक वहाँ रहा। सुबह-शाम मैं खेतों में काम करता था और दिन में मैं 'कन्फ़्यूशियस एनालेक्ट' तथा 'द फॉर क्लासिक्स' पढ़ा करता था। मेरे पिताजी मुझे खाली बैठे देखना कतई पसंद नहीं करते थे। अगर मेरे पास पढ़ने के लिए किताबें नहीं होती थी तो वह मुझे खेती के दूसरे कामों में लगा देते थे। वह बहुत गुस्से वाले थे, मुझे और मेरे भाइयों को बहुत पीटते थे। कभी भी उन्होंने हमें पैसे नहीं दिये, यहाँ तक कि खाने के लिए कभी अच्छा खाना भी नहीं। जबकि हर महीने की पंद्रह तारीख को वह अपने श्रमिकों को कुछ रियायत देते थे और चावल के साथ खाने के लिए अंडे, मगर मांस कभी नहीं। जबकि मेरी माँ काफी उदार दिल तथा संवेदनशील महिला थी। उसके पास जो कुछ भी होता था, वह सभी को बाँट देती थी।" 
यह था माओ का बचपन। जल्दी ही माओ ने अपने पिता के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका और एक बार पिता को धमकी भी दे डाली कि अगर वह अकारण मारना बंद नहीं करेंगे तो वह तालाब में कूदकर अपनी जान दे देगा। माओ आगे बताते है:- 
"मेरे पिताजी केवल दो साल स्कूल गए थे और पढ़ना लिखना जानते थे। मेरी माँ पूरी तरह अशिक्षित थी। दोनों किसान परिवार से थे। मैं अपने परिवार में स्कॉलर था। मुझे क्लासिक्स की जानकारी अवश्य थी, मगर मैं उसे पसंद नहीं करता था। मुझे प्राचीन चीन के रोमांस बहुत पसंद होते थे और खासकर विद्रोह की कहानियां भी।'' 
दस साल की उम्र से लेकर आजीवन चीन के महान उपन्यासों को वह पढ़ते रहे, जिनमें ''द ड्रीम ऑफ रेड चेम्बर', ''जर्नी टू द वेस्ट'' (आर्थर वेले ने जिसका 'मंकी' नाम से अनुवाद किया है), "द थ्री किंगडम","वाटर मार्जिन"(पर्ल बर्थ द्वारा अनूदित - "आल मेन आर ब्रदर्स") आदि प्रमुख है। 
  हूनान गाँव के किसान परिवार में जन्म लेने वाले माओ की जड़ें गाँव की जमीन से जुड़ी हुई थी। उन्हें लोगों के जीवन और उनकी समस्याओं के बारे में जानकारी थी। उन्होंने इस बारे में कहा, ''जो किसानों को जीत लेगा,वह चीन को जीत लेगा और जो जमीनी सवालों का समाधान करेगा, वह किसानों को जीत लेगा।'' 
जमीन से जुड़ी अंतरंगता की झलक उनकी कविताओं में आसनी से देखी जा सकती है, शाओशन को छोड़े अर्द्ध-शतक बीत जाने के बाद माओ ने हूनान में अपने बचपन के दिनों के चावल के खेतों, सैनिकों, उड़ानों आदि के साथ-साथ प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन अपनी कविता 'रिटर्न टू शाओशन' तथा 'वेग ड्रीम' में किया है। 
शाओशन वापसी
मुझे अफसोस है गुजरते मरते धुंधले सपनों पर 
बत्तीस वर्ष पहले मेरे जीवन का वह मूल उद्यान 
वे लाल झंडे जिन्होंने गुलामों को जगाकर   
तीन नुकीले भाले पकड़वाए   
जब जमींदारों ने अपने काले हाथों में चाबुक उठाया 
हम बहादुर थे और त्याग केवल हमारा हथियार था 
हमने सूरज-चंद्रमा से कहा 
आकाश बदलने के लिए 
अभी मैं धान के खेत और फलियों 
की हजारों तरंगें देखता हूँ 
और खुश हूँ 
शाम की धुंध में अभिनेता को अपने घर लौटते देख (जून 25,1959) 
सोलह साल की उम्र में माओ पास के शहर जियांग-जियांग की दूसरी स्कूल में पढ़ने गए।  सन 1911 में चांगसा की राजधानी में रहने चले गए, जहां वह सन 1918 तक रहे। जब तक कि वह हूनान की पहली निर्मित स्कूल से स्नातक न हो गए। यह समय उनके लिए  तरह-तरह की किताबें पढ़ने का समय था। सुबह से लगातार शाम तक 'हूनान प्रोविंसियल लाइब्रेरी' में वह लगातार किताबें पढ़ते रहते। 
"मैंने बहुत सारी किताबें पढ़ी,विश्व इतिहास और भूगोल की। यह मेरा पहला अवसर था जब मैंने दुनिया का नक्शा पहली बार देखा और उसका अध्ययन किया। मैंने एडम स्मिथ की 'द वेल्थ ऑफ नेशन्स', डार्विन की 'ओरिजिन ऑफ स्पिशिज' तथा जॉन स्टुआर्ट मिल की एथिक्स पर लिखी पुस्तकों का गहन अध्ययन किया। मैंने रूसो,स्पेन्सर के लॉजिक,मोंटेस्कू की कानून पर लिखी पुस्तकें भी पढ़ी। मैंने कविता के साथ रोमांस, प्राचीन ग्रीस की कहानियों के साथ इतिहास का अध्ययन एवं रूस,अमेरिका,इंग्लैंड,फ्रांस तथा दूसरे देशों के भूगोल विशेष जानकारी अर्जित की।'' 
 वह दर्शन-शास्त्र के अध्येता थे और इसके लिए उन्होंने प्राचीन ग्रीक-वासियों में स्पिनोजा,कैंट और गोथे का भी गहराई से अध्ययन किया। वह फ्रीडरिच पालसन की पुस्तक 'ए सिस्टम ऑफ एथिक्स' से भी विशेष प्रभावित हुए। बाद में हेगेल और मार्क्स का भी अध्ययन किया। 
     राजनैतिक जागरण के दौरान उनकी उम्र का तकाजा उनकी कविता 'चांगशा'  में आसानी से देखा जा सकता है।चांगशा हूनान की राजधानी थी और माओ का मूल-स्थान। यह शहर जियांग नदी के पूर्वी तट पर था और नारंगी प्रायद्वीप में वह अपने दोस्तों के साथ अक्सर तैरने जाया करते थे। सन 1911 में चीन में बहुत उथल-पुथल हो रहा था। उस समय माओ ने कुछ विद्यार्थियों के ग्रुप का नेतृत्व किया और अप्रैल 1918 में 'न्यू सिटीजन सोसायटी' की स्थापना की। सन 1918 में चांगशा की नॉर्मल स्कूल में स्नातक की डिग्री प्राप्त कर वह बीजिंग में  फारबिडन सिटी चले गए। यहाँ बैठकर वह बीजिंग नेशनल यूनिवर्सिटी के पुस्तकालयों में खो जाना चाहते थे, जहां से देश की राजनीति में हलचल पैदा करने के लिए 'विद्यार्थी आंदोलन' की शुरूआत होने जा रही थी। उनकी कविता "चांगशा" में यह प्रतिध्वनि साफ सुनाई देती है:-   
चांगशा      
शरद पतझड़ में अकेले खड़े 
जियांग नदी के उत्तर में   
नारंगी प्रायद्वीप के अंतरीप के चारों ओर 
जब मैं देखता हूँ हजारों पहाड़ों की लाली   
धब्बेदार जंगलों की कतारें 
इस महान नदी के पारदर्शी हरिताश्म में   
सौ-सौ नावें   
बादलों में मँडराते बाज 
स्वच्छ तल पर तैरती मछलियाँ 
सर्द हवा में ठिठुरते संघर्षरत लाखों प्राणी 
मुक्ति के लिए 
इस विराट में  
मैं विशाल हरी नीली धरती से पूछता, 
इस प्रकृति का मालिक कौन है? 
  मैं यहाँ बहुत दोस्तों के साथ आया 
और अभी तक पढ़ी हुई वे कहानियां भूल 
नहीं पाया 
हम युवा थे, 
फूलों की हवा की तरह तेज,परिपक्व   
स्कॉलर की तेज धार की तरह पवित्र 
और निडर 
हमने चीन की ओर उंगली उठाई 
और कागजों में लिख कर प्रशंसा या   
भर्त्सना  की 
कि अतीत के योद्धा गोबर थे 
क्या तुम्हें याद है ? 
नदी के बीचो-बीच 
हमने पानी उछाला, छप-छप किया 
और किस तरह हमारी तरंगों ने 
तेज नौकाओं  को धीमा कर दिया। (1925) 
 पॉलिटिकल इकोनोमी के प्रोफ़ेसर ली डानहाओ की मदद से उन्हें यूनीवर्सिटी लाइब्रेरी के न्यूज-पेपर रूम में छोटी-मोटी नौकरी मिल गई। इस नौकरी के बारे में माओ ने लिखा:- 
     ''मेरी पोजिशन इतनी नीचे थी की लोग मुझे अवॉइड करते थे। मुझे मालूम था कि जरूर मेरी कुछ गलती रही होगी। हजारों सालों के स्कॉलर आम जनता से दूर होते जा रहे थे और मैं उस समय का सपना देख रहा था कि स्कॉलर कुलियों को पढ़ाएंगे और निश्चिंतता से कुलियों को भी इतनी ही शिक्षा की आवश्यकता है, जितनी दूसरों को।'' 

   बीजिंग में कविता पढ़ने में वह लीन हो गए, खासकर टंग साम्राज्य(722-726) के महान कवि  जेन जान को, जिन्होंने उन हूणों के खिलाफ लिखा, जो डेगर नदी और स्वर्ण पहाड़ियों के मध्य घुड़-सवारी करते हुए इधर-उधर घूमते थे। माओ ने रशियन लेखकों को भी पढ़ा जिसमे टालस्टाय,अराजकतावादी क्रोपटकिन और बाकूनिन मुख्य थे। छ महीनों के अंतराल में उसने अपने मित्रो के बीच घोषणा कर दी कि वह अराजकतावादी हैं। माओ को अपने दर्शन-शास्त्र के प्रोफेसर की पुत्री यंग कइहुई से भी प्यार हुआ, तीन साल के बाद उसने उससे शादी कर ली।  लिउ ज़्हिक्षुन  प्रोविन्सियल पीजेंट एसोसिएशन के महासचिव थे और  माओ के दोस्त भी।  जिनकी मृत्यु सितंबर 1933 में हूबे के होंघुइ युद्ध में हुई थी। उनकी पत्नी  ली-शुई चांगशा के माध्यमिक विद्यालय की अध्यापिका थी। अपनी पत्नी यंग कई हुई की  मृत्यु पर उसकी कविता 'द गोड्स' में उनका अतिसंवेदन हृदय आसानी से देखा जा सकता है। माओ ने विधवा ली के लिए इस कविता "द गोड्स"  के साथ एक नोट लिखा था,
"मैं तुम्हें काल्पनिक स्वर्ग की यात्रा एक कविता भेज रहा हूँ। यह कविता ली और यंग काइहुई को समर्पित है।"
यंग काइहुई के साथ माओ की सन 1921 में शादी हुई थी। सन 1930 में गुओमिंदंग जनरल ही जिआन ने यंग काइहुई और माओ की बहिन माओ जेहोङ्ग को गिरफ्तार कर लिया था। जनरल ही जिआन ने यंग काइहुई पर माओ से शादी तोड़ने का दबाव डाला, मगर जब उयसने मना कर दिया तो उसका गला काट दिया और माओ जेहोङ्ग को भी खत्म कर दिया।    

द गोड्स 
मैंने अपना खास फूलों से लदा वृक्ष खो दिया 
और तुमने तुम्हारा बेंत जैसा लचीला पेड़ 
मानो दोनों विटप सीधे आगे बढ़ रहे हो 
नवें स्वर्ग की ओर 
चाँद के किसी कैदी से पूछते हुए 
वू गांग, वहाँ क्या है? 
वह उसे अमलतास से सोमरस देता 
चाँद पर इकलौती महिला, चांग ई 
अपनी लंबी बांहें  फैलाकर 
अंतहीन आकाश की अच्छी आत्माओं के लिए 
नृत्य करती 
नीचे पृथ्वी पर शेर की पराजय का औचक प्रतिवेदन   
वर्षा के उलटे कटोरे से लुढ़कते गिरते आँसू 
               ( मई 11, 1957) 
माओ अपने प्रेम के समय के बारे में लिखते हैं;- ''बीजिंग में मेरे रहने की अवस्था बड़ी दयनीय थी। मैं सन यांगिंग  नामक स्थान पर ठहरा, एक छोटे से कक्ष में, जहां अन्य सात आदमी भी थे। जब मैं करवट बदलना चाहता था, तो मैं अपने दोनों तरफ के आदमियों को सचेत करता था। मगर मैंने पुराने महल के बगीचों में पहले के उत्तरी झरनों को देखा। सफ़ेद गूदेदार खिले हुए फूलों को बर्फ से ढका देखकर कवि जेन जॉन द्वारा रचित बेहाई की सर्दियों में जेवर पहने हजारों क्रमबद्ध खिले पेड़ों को देखकर मुझे आश्चर्य होने लगता था। "

    मार्च 1919 में जब माओ चांगशा लौटे तो राजनीति में सीधे भाग लेना शुरू किया। 'जियांग रिवर रिव्यू' के संपादक के तौर पर सामूहिक वार्ताओं हेतु आलेख लिखना प्रारम्भ किया। इसके अलावा जिउहे प्राइमरी स्कूल में पढ़ाने लगे। इसी दौरान बीजिंग में चार मई की घटना ने सारे राष्ट्र को हिला दिया। उसने मार्क्स को पढ़ा और अपने आपको मार्क्सवादी करार दिया। वह फिर से बीजिंग चले गए और न्यू सिटीजन सोसायटी  का प्रतिनिधित्व करने लगे तथा हून राज्यपाल चांग चिंग माओ की राष्ट्रीय पत्रिकाओं के प्रकाशन को बंद करने के खिलाफ आंदोलन करने लगे। अप्रैल 1920 में वह शंघाई चले गए। किराये के लिए उन्होंने अपना कोट बेच दिया और प्राइमरी स्कूल के हैडमास्टर को लिखा, 
''मैं एक लाउंड्रीमेन  की तरह कार्य कर रहा हूँ। मेरे धंधे का सबसे कठिन कार्य कपड़े धोना नहीं वरन उनकी डिलीवरी करना है। मेरी धुलाई की अधिकतम कमाई ट्राम टिकटों में खर्च हो जाती हैं, जो कि बहुत महंगे हैं।'' 
शहर के किसी श्रमिक के तौर पर उसका यह पहला अनुभव था। माओ ने पढ़ना बदस्तूर जारी रखा और देश के कोने-कोने में घूम-घूमकर दल का निर्माण करने लगे। सन 1921 जून के अंत से जुलाई के प्रारम्भ में शंघाई मे आयोजित चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी के प्रथम कांग्रेस अधिवेशन के बारह सदस्यों में वह भी एक थे। शुरूआती दौर में मार्क्सवादी विचारधारा के कारण पार्टी की नीतियाँ अस्पष्ट थी। इस तरह चीन में पहली बार प्रभावी तौर पर कम्यूनिज़्म की सांगठनिक शुरूआत हुई। 
     यद्यपि उस समय चीन में मुख्य क्रांतिकारी दल चाइनीज कम्यूनिस्ट पार्टी(सीसीपी) नहीं थी,बल्कि डॉ॰ यनयात सेन के नेतृत्व वाली कौमिंटिंग अर्थात केएमटी थी। यह वह पार्टी थी जो मंचूस  के खिलाफ लड़ी और रिपब्लिक की स्थापना की। माओ ने इस पार्टी को ज्वाइन  किया और 1924 को प्रथम कॉंग्रेस अधिवेशन में हिस्सा लिया। वह इस पार्टी की केन्द्रीय कार्यकारिणी समिति का वैकल्पिक सदस्य भी चुना गया और गुओमिंदंग प्रोपोगंडा ब्यूरो का प्रमुख बना और उसके प्रकाशन 'पॉलिटिकल वीकली' का संपादक भी। दोनों गुओमिंदंग और कम्यूनिस्ट पार्टी के सदस्य होने पर उसे लेकर किसी प्रकार का विवाद नहीं था, इसके विपरीत गुओमिंदंग के आधिकारिक पद की वजह से राष्ट्रीय स्तर पर राजनैतिक अनुभव के साथ साथ एक अलग पहचान बन गई। 
      उसी दौरान माओ की मुलाक़ात जियांग जैशी से हुई, रूस के औद्योगीकरण को देख कर लौटे थे। गुओमिंदंग के इस युवा अधिकारी को 1923 में मास्को भेजा गया, वहाँ की मिलिटरी और राजनीतिक स्थिति का जायजा लेने के लिए। मगर वहाँ वह रूस की जासूसी करने के आरोप में सन 1934 में गिरफ्तार कर लिया गया। 
      शंघाई, गुयांग्ज़्हौ और हूनान में माओ ने दोनों दलों के लिए काम किया। उसने खदान श्रमिकों को संगठित किया और किसान संगठनों को सक्रिय करने के लिए भी कार्य किया, जिससे चीन में क्रांतिकारी परिवर्तन की उम्मीद जगी। सन 1926 में अपने आलेख ''हूनान में किसान आंदोलन की जांच' के लिए वह बहुत विख्यात हुए, जिसमें मार्क्स थ्योरी को पूरी तरह नकार दिया गया। इस दौरान गुओमिंदंग  में वामपंथी व दक्षिणपंथियों के विरोधी खेमे पनपने लगे थे, सन 1925 सनयान सेन की कैंसर में मृत्यु हो गई। एक काल बाद जियांग जैशी ने कूप डिटेट (coup detate) बनाने का प्रयास किया, मगर वह विफल रहे। 
      अप्रैल 12, 1927 को माओ ने शंघाई,में दूसरे कूप की स्थापना की, जिसमें उसे सफलता मिली और गुओमिंदंग पर पूरी तरह आधिपत्य जमा लिया। उसने शहर के सारे समाजवादियों तथा कम्यूनिस्टों को जड़ से उखाड़ने का आदेश दिया। जिसमें लाखों श्रमिकों तथा सीसीपी सदस्यों का नरसंहार हुआ, उसके बाद हूनान में मई नरसंहार की घटना घटित हुई। जुलाई में गुओमिंदंग ने माओ को गिरफ्तार करने के आदेश दिये, जो किसान संगठनों को मिलिटरी इकाइयों  में बदल रहा था। माओ को "रेड बेंडिट" के रूप में जाना जाने लगा। बहुत ही जल्दी से उसने किसान संघों  तथा हयांग खदान श्रमिकों  को लेकर प्रथम ''वर्कर्स एंड पीजेंट रिवोल्यूशनरी आर्मी'' का निर्माण किया। कुछ छोटी जगहों से,भले ही,उसे संबल मिला, मगर चांगशा  की ओर से कुछ भी मदद नहीं मिली। माओ विफल हो गया और श्रमिक व किसान संघों की यात्रा के दौरान उसे गिरफ्तार कर लिया गया। इस पर उसने लिखा था, 
''मुझे गुओमिंदंग के कुछ आतंकवादी कार्यकर्ताओं के द्वारा पकड़ लिया गया। उस समय गुओमिंदंग का आतंक पूरी तरह व्याप्त था और संदेह  के घेरे में अनेक 'रेड' को गोलियों से भुना जा रहा था। मुझे आतंकवादी मुख्यालय की ओर ले जाया जा रहा था, जहां मुझे हमेशा- हमेशा के लिए खत्म किया जाना था। एक कामरेड से हजारों डॉलर उधार लेकर मुझे छोड़ने के लिए रिश्वत देने का प्रयास  किया। सामान्य सैनिकों में मुझे मारे जाने को लेकर कोई खास दिलचस्पी नहीं थी, और इसलिए वे मुझे मुक्त करने के लिए राजी हो गए, मगर प्रभारी ने इसके लिए अनुमति प्रदान नहीं की। इसीलिए आतंकवादी मुख्यालय के 200 गज की दूरी पर किसी भी हालत में मैंने खुद भागने का निर्णय लिया। मैं खेतों में भाग गया और एक तालाब के किसी ऊंचे स्थान पर सूर्यास्त तक लंबी-लंबी घास के भीतर छुपा रहा। सैनिकों ने मेरा पीछा किया और कुछ किसानों से मेरी खोज करने में भी मदद मांगी। कई बार वे लोग मेरे काफी नजदीक आए, यहाँ तक कि मैं उन्हें छू भी सकता था, मगर किसी तरह मैं अपने आपको बचाने में सफल रहा, यद्यपि कई बार तो मैंने आशा भी छोड़ दी थी, यह सोचकर कि दुबारा अवश्य पकड़ा जाऊंगा।आखिरकर साँझ ढल चुकी थी, वे लोग चले गए। सारी रात मैं पहाड़ों की यात्रा करता रहा। मेरे पाँव में जूते नहीं थे। मेरे पांव बुरी तरह से छिल गए थे। रास्ते में मुझे एक किसान मिला, जिसने मुझे शरण दी और दूसरे डिस्ट्रिक्ट की ओर ले गया। मेरे पास मात्र सात डॉलर बचे थे जिससे मैंने अपने जूते, छाता और भोजन खरीदा। जब तक मैं आखिरकार अपने गंतव्य स्थल तक नहीं पहुंचा, उस किसान ने मुझे सुरक्षा प्रदान की। मेरी जेब में केवल 'दो कापर'  बचे थे।"
उसके बाद माओ ने चारों बची खुची रेजीमेंटों को एक साथ इकट्ठा किया और लगभग एक हजार आदमियों को लेकर ऊंचे पहाड़ी इलाके(जिसे जींगगांगशन कहते हैं) में पहले कम्यूनिस्ट बेस की नींव रखी। उनकी कविता जींगगन माउंटेन  में देख सकते है :- 
    पर्वत पर हमारे झुके झंडे और बैनर   
शिखर-तुंग पर बिगुल व ड्रम की प्रतिध्वनि 
चारों तरफ दुश्मन की सेना के हजारों वलय 
फिर भी हम चौकस थे 
कोई भी हमारे भित्ति-जंगल को तोड़ नहीं सकता 
हमारी इच्छाशक्ति के दुर्ग ने हमें जोड़ रखा था   
हुयांगयांग के अग्रपंक्ति की बड़ी बंदूक की दहाड़ से   
दुश्मन की सेना रातों-रात पलायन कर गई। (1928) 
     
यहाँ भविष्य की 'लालसेना' का निर्माण हुआ और माओ ने अपने तीन नियम तथा आठ व्यादेश  लिखे, जिसके आधार पर गुरिल्ला युद्ध लड़ा जाना था।ये नियम व व्यादेश इस प्रकार थे:- 
     तीन नियम;- 
1-आदेश का हर समय पालन हो। 
2- लोगों से एक सुई या धागा तक न  लें। 
3-सारी जब्त संपदा मुख्यालय भेजी जाए। 
    आठ व्यादेश;- 
1-जब आप घर छोड़ कर जाये तो सारे दरवाजे बदल दे और चटाई लौटा दें। 
2-लोगों के प्रति उदार रहें और हो सके तो उनकी मदद करें। 
3- सभी उधार लिए हुए सामान लौटा दें और समस्त खराब सामानों को बदल दें। 
4-किसानों के साथ सारे लेन-देन में ईमानदार बने रहे। 
5- साफ सुथरे रहे, घर से सुरक्षित दूरी पर लेट्रिन बनाए तथा वहाँ से जाने से पहले मिट्टी से भर दें।
6- फसल नष्ट नहीं करें। 
7-औरतों से छेड़खानी न करें। 
8- युद्ध के कैदियों से कभी दुर्व्यवहार न करें।         
  पाइन और बम्बू से भरे इस महान पर्वत पर 'लाल सेना' का निर्माण हुआ। सन 1928 तक ग्यारह हजार से ज्यादा सैनिक जुड़ गए, यहाँ पर रेड आर्मी के मुख्य मिलिटरी नेता व माओ के सबसे ज़्यादा विश्वसनीय साथी से मुलाक़ात हुई। यद्यपि उनके पास बहुत कम हथियार थे, रेडियो तक नहीं था और सीमित खाद्य सामग्री थी, फिर भी जियाङ्ग्क्षि हिल पर छुटपुट घटनाओं को अंजाम देना शुरू कर दिया था। जल्दी ही उनकी संख्या बढ़कर पचास हजार हो गयी।गुओमिंदंग  ने उसे समाप्त करने के लिए पाँच बार कोशिश की, मगर वे सफल नहीं हो सके। इसका उल्लेख आप इन दो कविताओं में देख सकते हैं:- 
पहली धरपकड 
तुषार  आकाश में लाल दहकते जंगल 
हमारे अच्छे सैनिकों का अभ्रांकष क्रोध  
ड्रेगन की धाराओं पर धुंधलका और 
हजारो पहाड़ अंधकारमय 
हम सभी चिल्लाए 
जनरल  ज़्हंग हुईजन को आगे ले जाया गया। 
जियाङ्ग्क्षि में हमारी विशाल सेना उमड़ पड़ी 
हवा और धुआँ आधी दुनिया पर मंडराने लगे  
लाखों श्रमिकों और किसानों को जगाया
हमारे दिल में 
बुज़हौ के पर्वतों के नीचे लाल झंडों की अराजकता  (जनवरी १९३१) 
                       
दूसरी धरपकड़ 
सफ़ेद बादलों के पर्वत पर बादल रुके  
जिसके नीचे एक पागल चिल्ला रहा था 
यहाँ तक कि 
खोखले पेड़ और सुखी टहनियाँ षड्यंत्र कर रही थी , 
राइफलों का हमारा अरण्य आगे भेदता जा रहा था 
पुरातन उडने वाले जनरल की तरह 
जो स्वर्ग से उड़कर तुर्की  के आदिवासियों का पीछा करने लगे 
मंगोलिया से दूर 
पंद्रह दिनों के भीतर दो सौ मील सैनिकों की कदमताल 
ग्रे गन नदी और मिन पर्वत के भीतर से 
हमने उनके सारे ट्रूप धो डाले 
एक चद्दर के बिछाने की तरह 
कोई चिल्ला रहा है 
अफसोस 
धीरे-धीरे उन्होने अपनी लाठिया पकड़कर आगे बढ़ना शुरू किया।(ग्रीष्म १९३१)

मगर अगली बार गुओमिंदंग सेना के लाखों सैनिकों ने टैंक तथा चार सौ विमानों की सहायता से भारी नुकसान पहुंचाया। जिस पर माओ ने लिखा था:- ''नांजिंग के बेहतर सैनिकों से मुकाबला करना बहुत बड़ी भूल थी, जिस पर रेड आर्मी न तो तकनीकी तौर पर तैयार थी और न ही आध्यात्मिक स्तर पर। हम बहुत डर गए थे और बहुत ही मूर्खतापूर्ण लड़ाई हमने लड़ी।'' 
        जब अक्तूबर 1934 को फिर से गुओमिंदंग आक्रमण करने की तैयारी कर रहा था, माओ लगभग 85 हजार आदमियों को लेकर दक्षिण जियाङ्ग्क्षि  के यातु स्थल से ऐतिहासिक लाँग मार्च के लिए रवाना हो गए। मार्च जेल जाने से बचने का एक उपाय  था। जिसका मुख्य उद्देश्य उत्तर पश्चिमी चीन के शांक्षी मे जाकर सोवियत रूस से मिलना था ताकि गुओमिंदंग  के आक्रमण से बचा जा सके और जापान से लडने के लिए एक आधार की तैयार किया जा सके। यह सेना चीन के अधिकतर भागो से होते हुये तिब्बत के दक्षिण पश्चिमी भाग में पहुँच गई, रेगिस्तान, टार्टर स्टेपीज़, बर्फीले पहाड़ और खतरनाक घास के मैदानों को चीरते हुए। शुरू-शुरू में बुरे मौसम में वे रात को पैदल चलते थे ताकि गुओमिंदंग के विमानों से रक्षा की जा सके। पहले महीने में सेना ने नौ लड़ाइयाँ लडी, जिसमें उसके एक तिहाई लोग मारे गए। शुरूआती महीनों में माओ को खुद बुखार था, फिर भी वह अधिकतर समय पैदल चलता था। वह अपनी पीठ पर अपना प्रसिद्ध नेपसेक लेकर चलता था, जिसमें नौ खाने थे जिससे वह रेड चाइना को निर्देश देता था। नक्शे, किताबें, पेपर, डाक्यूमेंट और बहुत कुछ हेलमेट, टूटा छाता, दो यूनिफ़ार्म, एक कॉटनशीट, दो कंबल, एक लालटेन, वाटर जग, चावल रखने के विशेष बर्तन और रजत धूसर ऊनी स्वेटर। जब-जब आर्मी कैंप करती, वह देर रात तक नक्शों को देखता और अपने साथ लाए उपन्यासों को बार-बार पढ़ता, कविताएं लिखता। बहुत ज्यादा शारीरिक यातनाओं को साहस से  झेलने का साल था वह। संत एक्षुपेय ने लिखा शायद प्रकृति उसकी परीक्षा ले रही थी। इसको लेकर उसकी कविताओं में किसी प्रकार की शिकायत नहीं थी, वरन प्रकृति के साथ अंतरंगता, उसके सौंदर्य की झलकें थी। 
        मार्च का सबसे प्रसिद्ध एपिसोड दादू नदी पर पुल बनाकर पार करना था। पुराने लोहे के पुल में लगी लकड़ियों को गुओमिंदंग  के सैनिकों ने हटा लिया था। कुछ चेन पर एक  लिंक से दूसरे लिंक को झूलते हुए पुल पार कर रहे थे। एक-एक उन्हें उठाकर तीन सौ मीटर नीचे गरजते दर्रे में फेंक दिया गया, फिर भी कुछ लोग आग लगाने के बावजूद भी आखिर प्लेंक  तक पहुँच ही गए। दादू के बाद आर्मी ने उत्तर में प्रवेश किया। बर्फीले पहाड़ों में माओ ने तुलनात्मक ज्यादा सुरक्षा अनुभव की, यद्यपि पहाड़ की ऊंचाइयों ने सेना को कमजोर कर दिया था। तिब्बत के नजदीक उनके आदमियों पर मांझी आदिवासियों ने आक्रमण कर दिया। खाने के लिए खाद्य सामग्री नहीं बची थी उनके पास। रॉबर्ट पायने लिखते हैं:- 
"उन्होंने शलजम दिखने जैसी कुछ चीजें खोदी, मगर वे विषैली थी। पानी ने उन्हें बीमार बना दिया था। हवा उन्हें रोक रही थी,ओलावृष्टि हो रही थी।रस्सियों  की सहायता से दलदल की गहराई नापी जा रही थी, मगर रस्सियाँ  चोर-बालू में लुप्त हो जाती थी। उनके बचे हुए पालतू जानवर  भी नष्ट हो गए थे। आर्मी का मार्च खत्म होने जा रहा था। वे जन-आबादी से भरे लाखों लोगों के प्रान्तों से गुजर रहे थे। केवल मास मीटिंग और टेम्पलेट बांटे  जा रही थे, थियेटर में प्रोग्रामों का आयोजन भी किया जा रहा था।" 
मालरक्ष अंतिम दिनों के बारे में कहते हैं:- 
        ''20 अक्टूबर 1935 को चीन की महान दीवार की तलहटी में माओ के घुड़सवारों  ने पत्तियों के बने टोप पहन रखे थे और छोटे-छोटे खच्चरों पर बैठकर जा रहे थे जैसे प्रागैतिहासिक काल के कन्दरा मनुष्य के दिनों की याद दिला रहे हो। इस सेना ने शांक्षी में तीन कम्यूनिस्ट आर्मी से मुलाकात की, जिसकी बागडोर माओ ने संभाली। केवल बीस हजार आदमी बचे हुए थे। लगभग सारी औरतें मर चुकी थीं और बच्चों को रास्ते के दोनों किनारों पर छोड़ दिया गया था। माओ की कविता ''द लॉन्ग मार्च '' में इस दर्द को सहने की अदम्य शक्ति को आसानी से देखा जा सकता है।" 
  
                           'लॉन्ग मार्च' 
रेड आर्मी को मार्च के खतरों का डर नहीं 
लॉन्ग मार्च 
दस हजार सागर और हजार पहाड़ तो कुछ भी नहीं 
पाँच पर्वतमालाएँ छोटी तरंगों की तरह सर्पिल-सी 
वुमेंग की चोटियाँ मैदानों में मिलती 
चिकनी मिट्टी की गेंदों की तरह 
बादलों के नीचे ऊष्ण टीले 
नीचे नदी द्वारा अपवाहित होती 
स्वर्ण बालुका 
लोहे की सांकल एकदम ठंडी
दादू नदी पर पहुँचते-पहुँचते   
मिनशन के दूरस्थ बर्फ केवल मन बहलाता   
और जब सेना आगे बढ़ती 
हम सब हँसते जाते। (अक्टूबर 1935) 

माओ-त्से-तुंग की ऐसी ही कुछ कविताएं उद्भ्रांतजी द्वारा संपादित पुस्तक "लघु पत्रिका आंदोलन और युवा की भूमिका" में श्री कृष्ण कुमार त्रिवेदी "कोमल" द्वारा अनूदित  'शैलमाल की तीन कविताएं' शीर्षक नाम से प्रकाशित हुई थी। इन कविताओं को माओ-त्से-तुंग ने 1935 में अपने विख्यात लाँग मार्च के दौरान लिखीं थीं। पहली कविता में ‘शैलमाल’ को संबोधित करते माओ के कवि ने एक अद्वितीय साहस की भावना को प्राकृतिक साँचे में ढाला है। दूसरी कविता में अश्वगति के साथ समरभूमि में जूझने का संकेत है और तीसरी में पर्वतों की गगनचुंबी स्थिति का चित्र प्रस्तुत किया गया है। 
(1)
औ शैलमाल !
मैं द्रुतगामी तुरंग की काठी पार 
अविचल बैठा, 
चाबुक मारा 
पर शीश उठा देखा – 
तो मैं रह गया चकित 
बस मात्र तीन फुट तीन 
रहा है मेरे ऊपर गगन अमित। 
(2)

ओ शैलमाल !
महती तरंग सम तुम – 
मानो झंझावाती वारिधि में 
ऐसे उमड़ रहे 
जैसे तुरंग हों शत सहस्त्र 
अपनी गति में आगे-आगे 
जो आज महासमराग्नि मध्य 
पूरी सरपट में दौड़ रहे। 
(3) 
अऔ शैलमाल !
कुछ पीछे मुड़े 
आकुंठित तेरे शिखर कोण 
ऐसे हैं 
जैसे नील गगन को बेध रहे 
ऐसा लगता जैसे मानो 
गिर पड़े धरा पर गगन आज 
यदि संबल मात्र तुम्हारा 
उसको नहीं मिले । 

 शांक्षी उत्तर चीन का रेगिस्तानी इलाका है, जहां लाल सेनाएं अपनी शक्ति बढ़ा सकती हैं। जब अकाल पड़ा, माओ ने अपनी सेना को किसानों के साथ मिलकर खेती-बाड़ी करने के लिए भेज दिया। माओ हमेशा साधारण कपड़े पहनता था। बाओ'ऑन में वह सिटी के बाहर गुफा में सोता था। लगातार कई रात बिना सोए यान'अन  में उसने अपने पाँच आलेख लिखे:- 'ऑन ए प्रोलोंगड़ वार' 'द न्यू डेमोक्रेसी', 'द स्ट्रेटेजिक प्रोब्लम ऑफ चाइना',' द रिवोल्यूश्नरी वार' द चाइनीज रिवोल्यूशन एंड कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना' और 'कोलिशन गवरमेंट'। 
सन 1936 में रेड तथा गुओमिंदंग की सेनाओं में आपसी समझौता हुआ और दोनों ने मिलकर जापानी सेना के खिलाफ लड़ने का निर्णय लिया। अगस्त 1945 में जापानियों के समर्पण के बाद युद्ध विराम की घोषणा हुई। शक्ति-निर्वात कई तरीकों से भरा जाने लगा। रूसी सेना मंचूरिया में थी और स्टालिन चीनी कामरेडों से सेना हटाने का आह्वान कर रहे थे और कोलिशन गवरमेंट के निर्माण की सिफ़ारिश भी। इसी दौरान अमेरिका ने अपने राजदूत पी॰जे॰ हुर्ले को यान'अन और चोंगकिंग भेजा, जिसने माओ को सारी दुश्मनी भुलाकर नए सिरे से देश के विकास में नियुक्त करने के लिए प्रेरित किया। उसी दौरान उन्होंने अपनी एक कविता 'स्नो अर्थात बर्फ' लिखी, जो उनकी सर्वश्रेष्ठ  कविता थी। 
बर्फ 
उत्तर भूमि का एक दृश्य 
हजारों किलोमीटर बर्फ से ढका 
लाखों किलोमीटर बहता बर्फ 
लंबी दीवार से मैंने अपने भीतर और परे झाँका 
केवल विशाल टुंड्रा दिखाई दिया
पीली नदी के ऊपर-नीचे 
कलरव करता पानी जमा हुआ 
सफ़ेद साँपो की तरह नाचते पहाड़
मोम से बने चमकीले हाथियों की तरह सरपट दौड़ते पहाड़ 
आकाश में चढ़ते 
सूर्य-रश्मियों के दिन 
सफ़ेद वस्त्र परिधान पहने हमें चिढ़ाता कि
नदी और पर्वत सुंदर है 
और हीरो को झुकाकर लड़की पकड़ने की प्रतिस्पर्था में 
प्यारी धरती 
अभी भी शासक  शिहुयांग और  वुड़ी तो  
लिखना तक नहीं जानते 
टंग और संग साम्राज्य के पहले शासक 
निर्दयी थे 
गेंगीज खान ,युगीन आदमी 
स्वर्ग द्वारा अनुशंसित 
केबल बड़े बाजों का शिकार  करना जानता है 
वे सब चले गए 
अब केवल हम संवेदनशील इंसान बचे है। (फरवरी  1936) 
इस कविता के बारे में माओ ने एक साल बाद रॉबर्ट पायने को बताया था। 
"मैंने ये कविता हवाई जहाज में लिखी। पहली बार मैं हवाई जहाज में बैठा था। ऊपर से मैं अपने देश की सुंदरता को देख कर मंत्र-मुग्ध हो रहा था और कुछ अन्य बातें भी थी।" 
''वे अन्य बातें क्या थीं?'' 
"बहुत सारी बातें। तुम्हें याद होगा वह कविता कब लिखी गई थी। जब मुझे ऊपर से हवा में बहुत सारी आशा दिखाई थी।'' 
एक ही पल बाद फिर उसने कहा- "मेरी कविताएँ पूरी तरह स्टूपिड है, इसे तुम गंभीरता से  न लो।'' 
माओ वहाँ डेढ़ महीने रहा। राजनैतिक आदान-प्रदान,गुडविल के टेलीग्राम और यहां तक कि पार्टियां चलती रही। 
     1 अक्टूबर  1949 माओ जेडोंग,ज्हू डे और झाऊ एनलाई के साथ ''गेटवे ऑफ हेवनली पीस'' की बालकोनी से लाखो लोगों की भीड़ के सामने नजर आए, उस महल में जहां से चीन के शासक राज किया करते थे। साधारण कपड़े पहने और टोपी पहन कर "पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना" की स्थापना की घोषणा की। 
 

माओ की कविताओं पर मेरी नजर ;- 
      चीनी कविताओं में बिम्ब स्पष्ट होते हैं। जब माओ या कोई भी क्लासिकल कवि प्रकृति की ओर देखता है तो वह उसकी सुंदरता को अपने भीतर अनुभव करता है, न की कवि की छाया उसके मापदंड को घटा रही हो। उनकी कविताओं में जिस पात्र पर लिखा जाता है, उसकी लगभग सारी चीजों की प्रत्यक्ष छबि उभरकर सामने आती है, भले ही कवि के कविता का क्षेत्र इतिहास,मिथक, व्यक्तिगत स्मृतियाँ अथवा स्वर्गिक आवेग-उद्वेग क्यों न हो। स्पष्टता उनकी कविताओं का प्रमुख गुण है। रात की कविता अथवा निराशावादिता या कड़वाहट के मार्ग को पूरी तरह विचार, संवेदना अथवा ऑब्जेक्ट के रूप में प्रस्तुत करती हैं। शायद पश्चिम की तुलना में पूर्व में कविताएं लिखना ज्यादा स्वाभाविक तथा सामान्य काम हैं। पश्चिम में पोस्ट रोमांटिक कविताएं लिखने का विशेष प्रचलन है। जॉर्ज सेफेरिस, वैलेस स्टीवेन या विलियम कार्लोस विलियम डिप्लोमेट इन्श्योरेंस एक्सिक्यूटिव या डाक्टर सब हमें अचंभित करते हैं। यह भी कहा जा सकता है, चीन के शासकों की तरह जापान का शासक भी कवि हो सकता है और टोजो को फांसी पर लटकाने में पूर्व जेल के प्रकोष्ठ में कविता लिखना स्वाभाविक हो सकता है। चीन में रिपब्लिक की स्थापना से पूर्व  सभी सिविल सर्वेण्टों  में शुरू कविता लिखने,पढ़ने और समझने का सामर्थ्य होना जरूरी था। माओ बहुत बड़ा मौलिक कवि था, जो अपने तरीके से लिखता था। वह जीवन भर लिखता रहा, मगर बहुत कम कविताएं प्रकाशन के लिए  भेजी। माओ ने बहुत सारी कविताओं की रचना गुफा में रहकर भटकते समय की, दिन-रात बिना रुके। वह जानता था कि कुछ चीजें कविताओं से भी बढ़कर होती हैं और उनके इसी दृष्टिकोण में  उनकी कविताओं की मौलिकता, विश्वसनीयता और ऊर्जा को बनाए रखा। उनका पहला कविता-संग्रह प्रकाशित होने के समय उनकी उम्र पैंसठ साल थी। भगवान अपने कवियों  की छबि बनाने में विशेष मददगार होते हैं। औपचारिक तौर पर माओ चीनी गानों में दो प्रकार के क्लासिकल पैटर्न प्रयोग करते हैं। उन्हें 'ट्रेडिशनल पोयट' माना जाता है। वह इस चीज को स्वीकार भी करते हैं कि वह पुरानी शैली  में अपना लेखन कार्य करते है। शुरूआती कविताओं में माओ किसान सेना के प्रथम युद्ध का जिक्र करते है। उनकी कविताएं किसी महाकाव्य  के गीतिबद्ध अंश हैं। पहाड़ पर चढ़ने, बीमारी के देवता को परास्त करने तथा लॉन्ग मार्च में बच जाना उनके विजय को दर्शाता है। 
बीमारी के देवता को अलविदा कहना
विशाल जल और हरे-भरे पहाड़ कुछ भी नहीं 
जब महान प्राचीन डॉक्टर हुआटुआ 
एक मामूली मच्छर को हरा न सका 
हजारों गाँव चेपट में, खतपतवार में दबे 
धनुष की तरह खोए हुए मनुष्य 
कुछ निर्वासित घरों की दहलीज पर भूतों की महफिल 
अभी एक दिन हमने पृथ्वी का चक्कर काटा
हजारों आकाश-गंगाओं की खोज की  
सितारों पर वह गोपाल  रहता 
प्लेग के देवता से पूछता 
उसे कहता खुशी या दुख से
ईश्वर चले गए 
पानी में घुलकर 
 (जुलाई 1,1958)
  प्रकृति जिनकी सुंदर है, उसकी कठोरता भी उतनी आकर्षक, जो कवि और उसके साथियों को प्रेरणा देती है। उनकी कविता 'लॉन्ग मार्च' में वही मधुरता है जो महाकाव्य "सिड" में है,जिसमें रोड्रिगो, एक गुमनाम नेता स्पेन की नदी और स्टेपीज को पार करते हुए सिविल वार और बाहरी आक्रमणों के भीतर देश की एकता की बात करते हैं। यद्यपि उनकी कविताओं में राष्ट्रीय घटनाओं की चेतना के स्वर मुखरित होते हैं, मगर लोक  कविताओं की तरह कुछ भी कमजोरी नहीं है। 19 वीं सदी के मध्य से पूर्ववर्ती कवि पब्लिक और प्राइवेट दुनिया के बीच विभेद नहीं करते थे। आर्किलोकोस, डांटे, ब्लैक और शैले दोनों दुनिया में सक्षम थे। मगर 19 वीं सदी के अंत तक आर्थर सीमोन ने हमें चेताना शुरू कर दिया यह कह कर, ''कवि का समाज में और कोई काम नहीं बचा है सिवाय गृहस्थ जीवन के साधु-कामों के।'' यद्यपि अनेक साल बीत गए, अभी भी  हम सार्वजनिक गलियों तथा आत्माओं को मिलाने में असहज हैं। फिर हम अन्य कवियों जैसे यीट्स, राबर्ट लावेल,एंडरेई विजनेंसकी तथा क्ज़ेसलाव मिलोस्ज़ की बात करें तो सीधे राष्ट्र अपनी बात करते हैं, दो परिचयों के वियोजन के बजाय। 
            माओ की कविताओं में राजनैतिक अथवा ऐतिहासिक घटनाओं की अंतर्वस्तु मिलती है । राजनीति और साहित्य में जो संबंध देखने को मिलता है, वही संबंध धर्म और साहित्य में। किसी कवि की कलात्मकता को अगर राजनैतिक  अथवा धार्मिक मान्यता मिल जाती है तो वह  कविता स्वतः विश्वसनीय हो जाती है। हम किसी भी कविता के 'मेटाफिजिक्स' को पूरी तरह नकार सकते हैं, पर अगर कोई कविता सफल हो तो शिखर पर पहुंचे उस कलाकार के काव्यमय अनुभव हमें क्षण भर के लिए ही सही माओवादी, कैथोलिकी, मिस्टिक, आदि अनुभूतियों की तरफ खींच ले जाता है। माओ अपनी खुशी का इजहार मिथकीय चरित्र ''तारे पर रहने वाले ग्वाले'' कविता के माध्यम से पाठकों के अवचेतन  मन पर बीमारी के खत्म होने के उत्सव मनाने के लिए अपनी कविताओं में करते हैं। 
   स्पेनिश रहस्यवादी संत जान ऑफ क्रॉस (1542-1591) और गृहयुद्ध की अपनी कविताओं में एंटोनियो  मचाड़ो की तरह माओ कविता में उन कंक्रीट छबियों का प्रयोग करते हैं, जिसमें आधुनिक चीन की तस्वीर साफ झलकती है। 1949 के बाद उनकी कविताओं में ध्यान-धारणा की अंतर्वस्तु  मुख्य हो गई। लॉन्ग मार्च के मध्य में उनकी लिखी कविता 'कुनलुन माउंटेन' में माओ यूरोप, अमेरिका और चीन में शांति की कामना करते हैं और जब चीन में शांति आ गई तो वह अपने बचपन के दिनों तथा अपने स्वर्गीय दोस्तों को याद करने लगते हैं। 
कुनलुन माउंटेन 
धरती पर 
नीले-हरे राक्षस कुनलुनों ने देखे    
बसंत के सारे रंग और आदमी की उत्कंठा  
सफ़ेद जेड  पत्थर के तीस लाख ड्रेगन 
सारा आकाश हिमाच्छादित 
जब गर्मी में सूरज तपाता है पृथ्वी को 
गर्मियों में बाढ़ आ जाती 
मनुष्य मछ्ली और कछुए बन जाते 
कौन आकलन कर सकता है 
सफलता और विफलता के हजारों सालों को? 
कुनलुन 
तुम्हें उस ऊंचाई के बर्फ की जरूरत नहीं 
अगर मैं स्वयं स्वर्ग पर झुक सका 
तो अपनी तलवार से 
तुम्हें तीन हिस्सों मे काट दूंगा 
एक यूरोप भेजूँगा 
एक अमेरिका को 
और एक हिस्सा यहाँ 
चीन में रखूँगा 
ताकि दुनिया में शांति हो 
और धरती पर सर्दी-गर्मी बराबर बनी रहे। (अक्टूबर 1935) 

सन 1945 में अपनी कविता  वरिष्ठ कवि लिउ याजी के सम्मानार्थ लिखी।
 लिउ याजी के लिए कविता 
कभी नहीं भूल सकता गौंग्ज्हौ में 
कैसे हमने चाय पी 
और चोंगकिंग  में 
कैसे कहानियाँ पढ़ी
जब पत्ते पीले पड़ रहे थे 
उनतीस साल पहले और 
अब फिर हम आए हैं 
आखिरकर प्राचीन राजधानी बीजिंग में 
पतझड़ की  इस ऋतु में मैंने 
तुम्हारे सुंदर कविताएँ पढ़ी 
सावधान रहना भीतर से कहीं टूट न जाओ 
अपनी आँखें खुली रखना दुनिया के सामने 
कभी मत कहना कुंमिंग  झील का 
पानी बहुत छिछला है
जहां हम ज़्यादा अच्छी मछलियाँ देख सकते है
दक्षिण की फूंचुन नदी की तुलना में। (अप्रेल 1949) 

बीजिंग में हण साम्राज्य के कवि यान कुयांग तथा कुछ साल बाद अपनी महिला मित्र ली शुई जिनका पति 1933 में गुओमिंदंग में लड़ाई के दौरान मारा गया था। उस कबिता में उनके पति की मृत्यु की तुलना,अपनी पत्नी यंग काइहुई  जिसका जनरल जिआन ने 1930 में सिर काट दिया था,से की। ''द गोड्स'' की कविता में आश्चर्यजनक विनम्रता,स्वप्नदर्शिता और प्रसन्नता है। सीधे तौर पर यह भावुकता की अपील है, यद्यपि प्रत्येक खंड में प्राचीन मिथकों का वर्णन है।  
      'मिथ एंड रियलिटी'  आलेख में माओ मार्क्स का उदाहरण देते हुए लिखते हैं ''सारे मिथकीय चरित्र प्रकृति की शक्तियों को रूप प्रदान करते हैं और कल्पना में जल्दी ही विलुप्त हो जाते हैं, जैसे ही मनुष्य और प्राकृतिक शक्तियों पर विजय पा लेते हैं।'' 
      यद्यपि माओ की ऐतिहासिक भूमिका कविताओं में मौलिक शक्ति और आंतरिक सौंदर्य  को कम नहीं करती है। उनकी कविता की प्रत्येक पंक्ति में नैसर्गिक स्वाभाविकता है,हरे-भरे पहाड़ों तथा हिमाच्छादित स्थलों की उज्ज्वल छबि उकेरते हुए। उनकी कविताओं में दुख या निराशा नहीं है, मगर समय,मिथक और ऐतिहासिक दृष्टि-भ्रम की जटिलता अवश्य है। इस सदी के कुछ अच्छे कवियों की शृंखला  में माओ का नाम सम्मान से लिया जाता है। उनकी कविताओं में रोबर्ट फ्रास्ट की तरह ही आभासी साधारणता झलकती है।  
            यान'अन में माओ ने कुछ दोस्तों के लिए सत्तर  कविताओं का संग्रह 'विंड सेंड़ पोएम्स' शीर्षक के नाम से प्रकाशित किया, जिनमें घास के मैदानों के मार्चिंग के अनुभवों के आधार पर उनकी लंबी कविता 'द ग्रास' के बारे में लिखी । 
माओत्से तुंग की कविताएं लिट्रेरी रिव्यू (भाग.2) में सन 1958 में प्रकाशित हुआ, जिसमें पायने ने माओ की दो कविताओं का उदाहरण देते हुए लिखा था, "पार्टी की बोरिंग मीटिंग के दौरान वह हमेशा कविता लिखा करते थे और जब वह पूरी हो जाती थी तो उसे फर्श पर टॉस करके  फेंक देते थे। अधिकतर उन्हें उठा लिया जाता था,मगर कविता की दृष्टि से कम सुरक्षित रखा जाता था। कुछ लेफ़्टिनेंटों में कैलिग्राफ की तुलना में कविता  में बहुत कम रुचि होती थी। कोई भी उनकी कविता या कैलिग्राफी में सिल्क मुखौटे के पीछे छुपी डरावनी शक्ति का अहसास नहीं कर पाता था।"