Tuesday, April 28, 2015

हिमाचल में लगा स्टेट बैंक पटियाला का विशेष कैम्प

Tue, Apr 28, 2015 at 1:08 AM
स्टेट बैंक आफ पटियाला की हिमाचल में 131 शाखाएं 
लुधियाना: 28 अप्रैल 2015: (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो):
दिनांक 25 04.2015 को स्टेट बैंक आफ पटियाला द्धारा होटल कनिफर धर्मशाला मे ग्राहक दिवस का आयोजन किया गया, जिस में बैंक के प्रबंध निदेशक श्री एस॰ए॰ रमेश रंगन ने कांगड़ा, हमीरपुर व ऊना जिलों से आए बैंक ग्राहकों को संबोधित किया। उन्होंने बैंक की विभिन आकर्षक जमा एव ऋण योजनाओं के वारे में ग्राहकों को अवगत कराया व बैंक की गतिविधियों एव उपलब्धियों वारे जानकारी दी। श्री रंगन ने बताया कि बैंक का हर क्षेत्र मे निरंतर विकास एव विस्तार हो रहा है। बैंक की हिमाचल प्रदेश में 131 शाखाएँ कार्यरत हें व बैंक की और अधिक विस्तार करने की योजना है। उन्होने बैंक के निरंतर विकास मे सहयोग के लिए सभी ग्राहकों का धन्यवाद प्रकट किया।
 उन्होने कहा कि बैंक का उद्देश्य केवल शाखायें खोलने एवं लाभ कमाने तक सीमित नहीं है अपितु घर घर तक बैकिंग पहुँचाने का है और बैंक का मुख्य उद्देशय है कि न केवल शहरों में अपितु ग्रामीण क्षेत्र में भी कोई व्यक्ति ऐसा न हो जोकि बैंकिंग सुविधाओं से वंचित रहे । उन्होने कहा कि हर घर के हर व्यकित का बैंक में खाता हो, स्टेट बैंक आफ पटियाला का यही सपना एवं उद्देशय है और बैंक की पूरी कोशिश रहती है कि ग्राहक सेवा को बेहतर से बेहतर बनाया जा सके और इस दिशा में प्रयास निरंतर जारी हैं आगे भी रहेंगे ।

Saturday, April 25, 2015

ज़हरीले अन्न के घातक दौर में राह दिखा रहा है KVM

खेती विरासत मिश्न साकार कर रहा है अपने आँगन में अपनी खेती का सपना
लुधियाना: 25 अप्रैल 2015:(रेक्टर कथूरिया//पंजाब स्क्रीन):
एक पुरानी कहावत है-जैसा अन्न  वैसा मन लेकिन जो अन्न हमें मिल  रहा है वह तन और मन दोनों  के लिए विषाक्त है। जीने के लिए मिल रहा आवश्यक अन्न भी प्रदूषित, जल भी प्रदूषित हवा भी ज़हरीली। जीने के मौलिक अधिकारों से हम लगातार वंचित हो रहे हैं।  बिमारियों  लगाकर जीना हमारी नियति बना दी गयी है। विकास के दावों की हकीकत का खोखलापन आम जन साधारण के जीवन   को एक एक नज़र देखते स्पष्ट जाता है। इस संकट में क्या किया जाये, कैसे ज़िंदा रहा जाये और कैसे बचाया जाये खुद को और अपने परिवार को। 
इस गंभीर विषय पर चर्चा के लिए आज एक विशेष आयोजन हुआ खेती विरासत मिशन की ओर से। इंजीनियर गुरवंत सिंह और केवीएम  संयोजक राजीव गुप्ता की देख रेख में आयोजित इस कार्यक्रम में   खेती विरासत मिशन  सुरक्षित अन्न को एक अभियान बनाने वाले उमेन्द्र दत्त मुख्य मेहमान थे।
आज महंगाई के इस युग और कम स्थान के अल्प व आधुनिक ज़माने में अपने आंगन को एक लघु खेत बनाने का सपना  कैसे साकार किया जाये इस पर विशेष चर्चा हुई। इस चर्चा में  कामरेड रमेश रत्न, मेवा सिंह कुलार, जालंधर  प्रसिद्ध विद्धान पत्रकार सतनाम  चाना और  कई अन्य प्रमुख लोग भी मौजूद थे।
मुख्य मेहमान उमेन्द्र  दत्त ने सीडी के ज़रिये इस नई  सुरक्षित खेती की तकनीक के संबंध में विस्तार से चर्चा की। कार्यक्रम  में मौजूद लोगों ने अपने सवाल पूछे और उमेन्द्र दत्त और अन्य विद्धानों ने उनके बारीकी से जवाब दिए।

Monday, April 20, 2015

बहुत मुश्किलों के बाद बना है श्री प्रेमधाम

बहुत सी अजीब यादों से भरा है उदासी से मस्ती तक का यह सफर 
लुधियाना: 18 अप्रैल 2015: (पंजाब स्क्रीन टीम):
बचपन सम्भल रहा था लेकिन खिलौने लुभा नहीं रहे थे। खाने पीने की चीज़ें देख कर भी अब मन नहीं भाता था। संगी साथी भी आकर्षित नहीं करते थे। सब कुछ था।  घर परिवार, रुपया पैसा हर चीज़ उपलब्ध थी लेकिन कोई कमी अंदर ही अंदर खल रही थी।  क्या थी यह कमी। समझना भी मुश्किल था और समझना भी। एक अजीब बेचैनी सी थी। मन कहीं नहीं लग रहा था। किसी स्कून की तलाश में कभी आँखें आसमान की तरफ देखती कभी ज़मीन की तरफ। कोई रहस्य था जो सुलझ नहीं रहा था। बंटी बाबा खोते चले गए एक रहस्यमय दुनिया में। उदासी ने उदास किया तो उस ख़ुशी की तलाश और बढ़ गयी जो एक बार मिल जाये तो फिर वापिस नहीं जाती। पांव अचानक अनजाने रास्तों पर चल पड़ते।  उस छोटी सी कच्ची उम्र में ऐसा सब के साथ नहीं होता। किस्मत वालों को ही मिलती है यह चिंता। किस्मत वालों को ही नसीब होती है यह भटकन और बेचैनी। बंटी बाबा की चिंता भी और थी और उस चिंता का इलाज भी कुछ और ही था। जानी मानी शायरा कविता किरण के शब्दों में कहें तो यूं कहा जा सकता है: 
दयार-ए-यार में लेंगें पनाहें; दर-ए-महबूब पर सजदा करेंगे;
वफ़ा की राह में सोचा नहीं था. हमारे पांव भी धोखा करेंगे। 
लेकिन पांवों का धोखा बढ़ता चला गया। मन की मस्ती इसी भटकन से मिलने लगी। दुनिया में रहते हुए भी दुनिया छूटती  चली गयी। किसी खुदाई कृपा से मन में पैदा हुआ प्रेम जब बिंदू से बढ़ कर दायरा बनने लगा तो उठने बैठने वालों में हिन्दु भी थे सिख भी, ईसाई भी और मुस्लिम भी। एक पांव  लुधियाना में होता तो दूसरा मालेरकोटला में। क्वालियां अपना जादू दिखाने लगीं। कायबे वाली गली विच्च यार दा मकान ए---इस तरह का बहुत कुछ ज़िंदगी का हिस्सा बनता चला गया। प्रेम अपना रंग दिखाने लगा। लौ किसी अलौकिक शक्ति से जुड़ने लगी। प्यास अजीब सी थी। जितना बुझाते उतना भड़कती चली जाती। होठों से यही फरियाद निकलती--
  प्यार सिखाया जिसने हमको इस बेदर्द ज़माने में 
 या तो उसे मिला दे रब्बा-या कर मदद भुलाने में। ---(कविता किरण) 
आखिर पनाह मिली शेख हैदर के दरबार में जा कर। लखदाता पीर से मिलकर लगा  मिल गया।  बेचैनी खत्म हुयी और स्कून  बना। वहां की मस्ती का रंग चढ़ा तो मन में आया इसे औरों को भी बांटा जाये। इस कोशिश में बहुत से संकट, बहुत से विरोध और बहुत सी मुश्किलें लेकिन आखिर परमधाम वजूद में आया। विरोध अब भी जारी है लेकिन बंटी बाबा का कहना है कि   नहीं कहना उन लोगों से।  वे अपना काम कर रहे हैं और हम अपना काम। इस पर विस्तृत चर्चा किसी अलग पोस्ट में होगी फ़िलहाल इतना ही कि रथ यात्रा में आप भी पहुंचें।