Saturday, August 08, 2015

बंद करो ज़हरीला भोजन परोसने का सिलसिला

खेती विरासत मिशन ने बुलंद की सुरक्षित भोजन के अधिकार की मांग 
लुधियाना: 8 अगस्त 2015: (रेक्टर कथूरिया//पंजाब स्क्रीन):
देश को आज़ादी बड़ी मुश्किलों से मिली। एक नए युग की शुरुआत होनी थी।  लोगों ने अपनी किस्मत खुद लिखनी थी लेकिन सारा मामला ही उल्टा हो गया। इस तकदीर को लिखने का काम समाज विरोधी तत्व भी अपने हाथ में लेने लगे। इन छह दशकों में  आज हालत यह है कि न हवा स्वच्छ रही, न पीने वाला पानी और न ही खाने का अनाज। गंगा ही मैली नहीं हुई हमने सब कुछ मैला होते देखा और चुपचाप देखा। किसी के पास फुर्सत नहीं बची देश के लिए देश की जनता के लिए। आज हालत यह है बाज़ारों में खानेपीने के नाप ज़हर बिक रहा है। भूख लगे तो हम कुछ भी खानेपीने को तैयार हो जाते हैं। कितनी तरह के पेस्टीसाईड अब ज़हर बन कर हमारे भोजन में घुले मिले हैं इसका अनुमान लगाना भी मुश्किल है। किस कोल्ड ड्रिंक के कितने खतरे हैं इसका पता अब सब को लग भी चुका है लेकिन फिर भी धड़ल्ले से बिक रही है।   न लोग छोड़ने को तैयार हैं और न ही सरकार इन पर पाबंदी लगाने की हिम्मत करती है।इस ज़हर का उत्पादन और इसकी बिक्री क्यों नहीं रोकी जाती इस सवाल का जवाब ढूंढने से भी नहीं मिल रहा। आखिर इस मुद्दे को जिन लोगों ने अपने हाथ में लिया उनमें एक सक्रिय संगठन है खेती विरासत मिशन।  
खेती विरासत मिशन की तरफ से एक चर्चा आयोजित की गयी लुधियाना के कामरेड रमेश रत्न के कार्यालय में। इस बैठक में कामरेड गुरवंत सिंह भी थे, कामरेड डीपी मौड़ भी, बेलन ब्रिगेड की प्रमुख अनीता शर्मा भी और कुंवर रंजन सिंह जैसे सक्रिय समाज सेवी भी।  तकरीबन बीस संगठनों को आमंत्रित किया गया था। सुरक्षित भोजन के अधिकार को जताते हुए उन लोगों का विरोध किया गया जो आज ज़हरीला भोजन बना और बेच रहे हैं। भारत छोडो दिवस की पूर्व संध्या पर इस तरह के अमानवीय लोगों से कहा गया की अब वे अब हमारा पीछा छोड़ें। 
प्रोफेसर आरपीएस औलख ने इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए बहुत सी खरी खरी बातें कीं। 

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