Friday, May 22, 2015

लुधियाना के पत्रकारों की एक आवश्यक संयुक्त बैठक 23 मई को

Update: Friday 22 May 2015 8:00 PM 
गुरु नानक भवन में होगी मीडिया मुद्दों पर गंभीर चर्चा
लुधियाना: 22 मई 2015: (रेक्टर कथूरिया//पंजाब स्क्रीन):
पूरे समाजं की मुश्किलों को सबके सामने लाने वाले मीडिया कर्मी खुद कितने असुरक्षित हैं इसका सही अंदाजा शायद किसी को नहीं। दिन-रात 24 घंटे कलम के ये सिपाही अपनी डियूटी पर डटे रहते हैं। जब मुसीबत आ जाये तो क्या हाल होता है इसका पता सबको रंजीत शर्मा उर्फ़ विक्की के दुखद देहांत से लग ही चूका है। लोकतंत्र का यह चौथा स्तम्भ अब खुद बहुत बुरी हालत में है। इन सब बातों को देखते हुए प्रेस क्लब लुधियाना और प्रेस लायनज़ क्लब लुधियाना की तरफ से गौतम जालंधरी और बल्ली बराड़ ने एक संयुक्त बैठक कल गुरुनानक भवन लुधियाना में बुलाई है। इस बैठक के आयोजन की सरगर्मियां आज भी दिन भर जारी रही। मीडिया को सरकार और अन्य राजनैतिक दलों के ठप्पे से बचाने के प्रयास में आज भी कई वरिष्ठ मीडिया कर्मी सरगर्म रहे। वास्तव में यह एक ऐसी लड़ाई पत्रकारों के गले आ पड़ी है जिसे लड़ना अब आवश्यक है। इस अवसर पर गीता ज्ञान के बिना कोई और ज्ञान काम नहीं आने वाला। पत्रकारों के अधिकारों के लिए एक लम्बी लड़ाई काफी अरसे से जारी है। पहले इस संघर्ष की धार पंजाब में चलती बंदूकों के कारण कुंद हो गयी थी। उस समय पत्रकारों को और उनके परिवारों की जान बचना आवश्यक था। इस नाज़ुक माहौल में कुछ प्रमुख अख़बारों ने पहचान पत्र जारी करने की परम्परा ही बंद कर दी क्यूंकि कुछ पहचान पत्र कुछ मिलिटेन्टों की जेब से मिले थे। इस लिए दलील में वज़न था। स्थिति की संवेदनशीलता को देखते हुए पहचान पत्र न देने की नीति को एक तरह से स्वीकार ही कर लिया गया। उस नाज़ुक समय में शुरू हुआ यह सिलसिला तकरीबन आज भी जारी है।
पहचान पत्र के बिना पत्रकार को कई तरह की परेशानियां होती हैं। इस बात को भांपते हुए कई शातिर किस्म के लोगों ने बाकायदा पहचान पत्र "बेचने" के अंदाज़ में "जारी" करने शुरू कर दिए। चुंगी बचाने के मकसद से कई कारोबारियों ने भी इस तरह के आई कार्ड खरीदे। इस तरह मीडिया की साख और पहचान धुंधली होती चली गयी। जो वास्तव में पत्रकार थे उनके पास आई कार्ड नहीं थे।  जो कारोबारी और व्यापारी थे उनके पास पत्रकारिता के कार्ड आ गए। मीडिया में यह "प्रदूषण" काफी समय से जारी है। अब इस प्रदूषित धारा को शुद्ध करने की बजाये इस पर मोहर लगा कर इसे सर्व-स्वीकृत बनाने की साज़िशें होने लगीं हैं। 
अगर कुछ गैर पत्रकार किस्म के लोगों ने बाकायदा RNI से स्वीकृति लेकर अपने पेपर निकले और उनके नाम से अपने कार्ड बेचे तो बड़ी और असली अखबारों ने भी कम मुनाफा नहीं कमाया। वे कार्ड के बदले सप्लीमेंट निकलवाने लगे। हाल ही में सेंटर यूनिवर्सिटी धर्मशाळा के उप कुलपति डाक्टर कुलदीप अग्निहोत्री लुधियाना एक आयोजन में भाग लेने आये तो उन्होंने विस्तार से बताया कि किस तरह उनके ज़माने में विज्ञापन उस स्थिति में छपा करते जब ख़बरों के बाद एक चौथाई या कुछ ज़्यादा जगह बच जाया करती थी तो ऊपर से आदेश आता था कि चलो यहाँ अब विज्ञापन छाप दो। जो बच जाते उन्हें अगले दिन प्रकाशित किया जाता। लेकिन अब विज्ञापन पहले छपते हैं और खबरें तब छपती हैं अगर जगह बच जाये। इस कारोबारी तब्दीली ने वास्तविक पत्रकारिता का गला घोंट डाला है। मीडिया मैनेजमेंट की तरफ से आज सप्लीमेंट मुख्य मांग बन गयी है। सवाल उठता है कि पत्रकार से अख़बार की मांग अच्छी खबरें हों या विज्ञापन? इस सब के खिलाफ काफी लड़ाई पहले भी लड़ी गयी है और काफी अभी लड़ी जानी है। अतीत में इस जंग में वो पत्रकार लोग भी शामिल थे जिन्होंने पंजाब के कठिन समय में कई लड़ाईयां लड़ीं। उन दिनों पुलिस और मिलिटेंट दोनों के खिलाफ आवाज़ बुलंद करना आसान नहीं था। उस दौर में बहुत से पत्रकार शहीद भी कर दिए गए। अब जबकि वह दौर खत्म हो चूका है लेकिन बहुत सी मुसीबतें अपना रंग रूप बदल कर सामने आ रही हैं। सबसे दुखद बात यह कि छोटी छोटी बातों को लेकर मीडिया कई गुटों में बंट गया है। चौधर की इस जंग में वास्तविक मुद्दे गुम हो रहे हैं। इस नाज़ुक स्थिति को गंभीरता से लेते हुए कुछ प्रमुख संगठनों और पत्रकारों ने कुर्सी की इस जंग से ऊपर उठते हुए फ़िलहाल केवल एकता पर ज़ोर दिया है। इस तरह के सभी मामलों पर चर्चा होगी कल 23 मई 2015 शनिवार को गुरुनानक भवन में सुबह 11:30 बजे।  
मीडिया से जुड़े सभी लोगों से निवेदन है कि लोकतंत्र के इस चौथे स्तम्भ को बचाने के लिए आगे आएं तांकि उन लोगों की साज़िशों को नाकाम किया जा सके जो इसे पांचवां टायर बनाने पर तुले हैं। अपने सुझाव, अपनी समस्या सब कुछ वहां विस्तार से रखें। दबाव रहित और शकितिशाली मीडिया मंच की स्थापना में सहयोग करें। मीडिया मज़बूत तो समाज मज़बूत। खुद भी आए अपने साथियों को भी लाएं। खुले दिल से सुनें खुल कर कहें। अब देखना है दूसरों के अधिकारों की जंग लड़ने वाले खुद अपनी जंग कितनी बहादुरी से लड़ पाते हैं? आपके पास  कार्ड है या नहीं? आपके पाश अथार्टी है या नहीं? इन सभी सवालों को एक तरफ रख कर केवल एक सवाल अपने आप से पूछें क्या आप पत्रकार हैं या नहीं? अगर हैं तो वहां अवश्य पहुँचिये। एक सवाल मीडिया मैनेजमेंट से भी करना बनता है, समाज से भी और सरकार से भी कि क्या पत्रकारिता करने वाला पत्रकार है या पत्रकारिता को साईड बिज़नेस बना कर लाभ उठाने वाला?

लुधियाना में तेज़ हुयी मीडिया के अधिकारों की जंग 

No comments: