Monday, April 20, 2015

बहुत मुश्किलों के बाद बना है श्री प्रेमधाम

बहुत सी अजीब यादों से भरा है उदासी से मस्ती तक का यह सफर 
लुधियाना: 18 अप्रैल 2015: (पंजाब स्क्रीन टीम):
बचपन सम्भल रहा था लेकिन खिलौने लुभा नहीं रहे थे। खाने पीने की चीज़ें देख कर भी अब मन नहीं भाता था। संगी साथी भी आकर्षित नहीं करते थे। सब कुछ था।  घर परिवार, रुपया पैसा हर चीज़ उपलब्ध थी लेकिन कोई कमी अंदर ही अंदर खल रही थी।  क्या थी यह कमी। समझना भी मुश्किल था और समझना भी। एक अजीब बेचैनी सी थी। मन कहीं नहीं लग रहा था। किसी स्कून की तलाश में कभी आँखें आसमान की तरफ देखती कभी ज़मीन की तरफ। कोई रहस्य था जो सुलझ नहीं रहा था। बंटी बाबा खोते चले गए एक रहस्यमय दुनिया में। उदासी ने उदास किया तो उस ख़ुशी की तलाश और बढ़ गयी जो एक बार मिल जाये तो फिर वापिस नहीं जाती। पांव अचानक अनजाने रास्तों पर चल पड़ते।  उस छोटी सी कच्ची उम्र में ऐसा सब के साथ नहीं होता। किस्मत वालों को ही मिलती है यह चिंता। किस्मत वालों को ही नसीब होती है यह भटकन और बेचैनी। बंटी बाबा की चिंता भी और थी और उस चिंता का इलाज भी कुछ और ही था। जानी मानी शायरा कविता किरण के शब्दों में कहें तो यूं कहा जा सकता है: 
दयार-ए-यार में लेंगें पनाहें; दर-ए-महबूब पर सजदा करेंगे;
वफ़ा की राह में सोचा नहीं था. हमारे पांव भी धोखा करेंगे। 
लेकिन पांवों का धोखा बढ़ता चला गया। मन की मस्ती इसी भटकन से मिलने लगी। दुनिया में रहते हुए भी दुनिया छूटती  चली गयी। किसी खुदाई कृपा से मन में पैदा हुआ प्रेम जब बिंदू से बढ़ कर दायरा बनने लगा तो उठने बैठने वालों में हिन्दु भी थे सिख भी, ईसाई भी और मुस्लिम भी। एक पांव  लुधियाना में होता तो दूसरा मालेरकोटला में। क्वालियां अपना जादू दिखाने लगीं। कायबे वाली गली विच्च यार दा मकान ए---इस तरह का बहुत कुछ ज़िंदगी का हिस्सा बनता चला गया। प्रेम अपना रंग दिखाने लगा। लौ किसी अलौकिक शक्ति से जुड़ने लगी। प्यास अजीब सी थी। जितना बुझाते उतना भड़कती चली जाती। होठों से यही फरियाद निकलती--
  प्यार सिखाया जिसने हमको इस बेदर्द ज़माने में 
 या तो उसे मिला दे रब्बा-या कर मदद भुलाने में। ---(कविता किरण) 
आखिर पनाह मिली शेख हैदर के दरबार में जा कर। लखदाता पीर से मिलकर लगा  मिल गया।  बेचैनी खत्म हुयी और स्कून  बना। वहां की मस्ती का रंग चढ़ा तो मन में आया इसे औरों को भी बांटा जाये। इस कोशिश में बहुत से संकट, बहुत से विरोध और बहुत सी मुश्किलें लेकिन आखिर परमधाम वजूद में आया। विरोध अब भी जारी है लेकिन बंटी बाबा का कहना है कि   नहीं कहना उन लोगों से।  वे अपना काम कर रहे हैं और हम अपना काम। इस पर विस्तृत चर्चा किसी अलग पोस्ट में होगी फ़िलहाल इतना ही कि रथ यात्रा में आप भी पहुंचें।

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