Friday, May 30, 2014

विश्व तंंबाकू निषेध दिवस: 200 स्कूली छात्रों की रैली

रवाना किया स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने 
The Union Minister for Health and Family Welfare, Dr. Harsh Vardhan flagging off the rally of 200 school students to commemorate World No Tobacco Day, in New Delhi on May 30, 2014. 
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन 30 मई, 2014 को नई दिल्ली में विश्व तंंबाकू निषेध दिवस के उपलक्ष्य में 200 स्कूली छात्रों की रैली को झंडी दिखाकर रवाना करते हुए।
30-मई-2014 20:21 IST
तंबाकू मानवता का सबसे बड़ा दुश्मनः डॉ. हर्षवर्धन 
नई दिल्ली: 30 मई 2014:(PIB): 
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने आज तंबाकू और उससे बने उत्पादों के इस्तेमाल के विरूद्ध आयोजित एक रैली को निर्माण भवन से हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। रैली में तकरीबन 300 बच्चों ने भाग लिया। यह रैली 31 मई शनिवार को मनाए जाने वाले “विश्व तंबाकू निषेध दिवस” के मौके पर केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा आयोजित किए जा रहे कार्यक्रमों का एक हिस्सा है। 

देश में तंबाकू निषेध के ब्रैंड-अम्बेसडर बने श्री राहुल द्रविड़ का हवाला देते हुए डॉ. हर्षवर्धन ने सभी देशवासियों से तंबाकू के खिलाफ युद्ध में देश का ब्रैंड-अम्बेसडर बनने की अपील भी की। उन्होंने कहा कि तंबाकू के खिलाफ युद्ध को एक सामाजिक आंदोलन बनाना चाहिए जहां देश के आम महिला और पुरूष ही इस आंदोलन के अगुवा बने । 

स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि तंबाकू न सिर्फ देश बल्कि समूची मानवता के लिए एक खतरनाक शत्रु है। उन्होंने तंबाकू का इस्तेमाल करने वाले सभी लोगों से तंबाकू का इस्तेमाल छोड़ने की शपथ लेने की अपील भी की। उन्होंने देश के नागरिकों से तंबाकू का इस्तेमाल करने वालों को तंबाकू के सेवन होने वाले बुरे परिणामों के बारे में सचेत और शिक्षित करने का आग्रह किया। तंबाकू के इस्तेमाल को घातक बताते हुए उन्होंने कहा कि कई परिवारों में बड़ों द्वारा तंबाकू के इस्तेमाल की वजह से उन्होंने उन परिवारों को तबाह होते और बच्चों को अनाथ होते देखा है। उन्होंने कहा कि देश से तंबाकू के इस्तेमाल का सफाया करना किसी एक व्यक्ति की नहीं, सभी नागरिकों की सामूहिक जिम्मेदारी है। उन्होंने सभी लोगों से आग्रह किया कि जब भी वे किसी को तंबाकू का इस्तेमाल करते अथवा धूम्रपान करते देखे तो दो मिनट का वक्त निकालकर उसे तंबाकू के इस्तेमाल के हानिकारक नतीजों के बारे में अवश्य समझाएं। 

निर्माण भवन के बाहर एक बोर्ड लगाया गया था जिस पर लोग तंबाकू के इस्तेमाल के विरूद्ध अपने संदेश लिख रहे थे। डॉ. हर्षवर्धन ने सबसे पहले अपना संदेश लिखा- तंबाकू का इस्तेमाल = मृत्यु। उन्होंने कहा कि तंबाकू का इस्तेमाल सिर्फ मौत की ओर ही धकेलता है। 

इस मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डॉ. हर्षवर्धन ने बच्चों द्वारा तंबाकू के विरूद्ध आंदोलन की शुरूआत किये जाने पर खुशी जताते हुए कहा कि दरअसल, बच्चे ही इस आंदोलन के सच्चे अंबेसडर है। इस मौके पर उन्होंने पोलियो के विरूद्ध चलाए गए अभियान में भी स्कूली बच्चों की महत्वपूर्ण भूमिका की याद दिलाई। 

रैली को हरी झंडी दिखाते हुए डॉ. हर्षवर्धन ने आशा जताई के अगले वर्ष जब देश में विश्व तंबाकू निषेध दिवस मनाया जा रहा होगा, उस वक्त तक देश के लाखों लोग तंबाकू का इस्तेमाल छोड़ चुके होंगे। 

कार्यक्रम में दिल्ली के विभिन्न स्कूलों के बच्चों के अलावा, नागरिक संगठनों, डबल्यू.एच.ओ. के प्रतिनिधियों और पब्लिक हैल्थ फाऊंडेशन ऑफ इंडिया (पीएचएफआई) ने भी भाग लिया। इस मौके पर केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद थे। (PIB)
वि‍.कासोटि‍या/एऩटी/एलएन-1735

Thursday, May 29, 2014

चीफ ऑफ आर्मी स्‍टाफ ने की रक्षा राज्‍य मंत्री श्री राव से मुलाकात

The Chief of Army Staff, General Bikram Singh meeting the Minister of State for Defence, Shri Rao Inderjit Singh, in New Delhi on May 29, 2014.
चीफ ऑफ आर्मी स्‍टाफ जनरल बिक्रम सिंह ने रक्षा राज्‍य मंत्री श्री राव इंद्रजीत सिंह से नई दिल्‍ली में 29 मई 2014 को मुलाकात की।

स्मृति जुबिन ईरानी से मुलाकात

The Ambassador of Israel in India, Mr. Alon Ushpiz called on 
New Delhi: 29 May 2014: (PIB):
The Ambassador of Israel in India, Mr. Alon Ushpiz called on the Union Minister for Human Resource Development, Smt. Smriti Zubin Irani, in New Delhi on May 29, 2014.
भारत में इस्राइल के राजदूत श्री अलोन उशपिज ने 29 मई, 2014 को नई दिल्ली केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री श्रीमती स्मृति जुबिन ईरानी से मुलाकात की।

Sunday, May 25, 2014

प्रधानमंत्री के शपथग्रहण समारोह के लिए मीडिया परामर्श

25-मई-2014 19:03 IST
मीडियाकर्मियों से अनुरोध कि वे अधिकतम 1430 बजे तक रिपोर्ट करें
प्रधानमंत्री के शपथग्रहण समारोह की कवरेज के लिए मीडिया की सुविधा के वास्‍ते निम्‍नांकित प्रबंध किए गए हैं।

सभी आमंत्रित मीडियाकर्मियों से अनुरोध है कि वे अधिकतम 1430 बजे तक नेशनल मीडिया सेंटर, रायसीना रोड, नई दिल्‍ली में रिपोर्ट करें। नेशनल मीडिया सेंटर से मीडियाकर्मियों को सुचारू रूप से राष्‍ट्रपति भवन पहुंचाने के लिए विशेष बसों की व्‍यवस्‍था की गई है। नेशनल मीडिया सेंटर में मीडिया के लिए पार्किंग सुविधा उपलब्‍ध है।

मीडियाकर्मियों का अंतिम बैच 1500 बजे रवाना किया जाएगा और उसके बाद संभव है कि यह सुविधा मीडिया को उपलब्‍ध न हो पाए। मीडियाकर्मियों से अनुरोध है कि वे पीआईबी एक्रिडेशन कार्ड (अथवा गैर प्रत्‍यायित मीडिया के मामले में संगठन का फोटो पहचानपत्र) के साथ राष्‍ट्रपति भवन द्वारा जारी एंट्री पास साथ लेकर आएं।

राष्‍ट्रपति भवन में मोबाइल फोन ले जाने की अनुमति नहीं होगी, अत: मीडियाकर्मी अपने फोन नेशनल मीडिया सेंटर के कलेक्‍शन काउंटर पर जमा करा सकते हैं। लेपटॉप और डाटा कार्ड भी ले जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। किंतु, पेन और नोटपैड कार्यक्रम स्‍थल पर ले जाए जा सकते हैं। स्टिल फोटोग्राफर और अनुमति प्राप्‍त टीवी कार्मिक लाइव कवरेज के लिए अपने साथ लाइव-यू सहित अपेक्षित उपकरण ले जा सकते हैं।

राष्‍ट्रपति सचिवालय से प्राप्‍त अनुदेशों के अनुसार मीडियाकर्मियों को 1530 बजे तक कार्यक्रम स्‍थल पर अपना स्‍थान ग्रहण करना होगा। संवाददाताओं के लिए बैठने और इलेक्‍ट्रोनिक मीडिया के लिए स्‍टेंड पर स्‍थान ग्रहण करने की सुविधा पहले आओ पहले पाओ के आधार पर दी जाएगी। मीडियाकर्मियों से यह उम्‍मीद की जाएगी कि वे पूरे समारोह के दौरान अपने स्‍थान पर बैठे रहें।

समारोह के समापन पर पहले की तरह परिवहन सुविधा उपलब्‍ध कराई जाएगी। मीडियाकर्मियों से अनुरोध है कि वे समारोह समाप्‍त होने पर गेट नंबर 4 (एलाइटिंग प्‍वाइंट) पर एकत्र हो जाएं। गर्मी के मौसम को देखते हुए मीडियाकर्मी अपने साथ टोपियां और रूमाल लेकर आ सकते हैं।

फोटोग्राफरों के लिए महत्‍वपूर्ण अनुदेश

फोटोग्राफरों को बड़े फोकल लेंथ लेंस (करीब 400-600 एमएम के) साथ लाने चाहिए ताकि मीडिया स्‍टैंड के स्‍थान से चित्र भलीभांति लिए जा सकें।   (PIB)

वि कासोटिया/देवेश कुमार- 1626

Saturday, May 24, 2014

राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी FIS प्रशिक्षु अधिकारियों के साथ

 कुछ यादगारी पल 
The President, Shri Pranab Mukherjee with the Officer Trainees of Indian Foreign Service (2012 Batch) from Foreign Service Institute (FIS), at Rashtrapati Bhavan, in New Delhi on May 24, 2014.
राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी 24 मई, 2014 को राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली में विदेश सेवा संस्थान(एफआईएस) की ओर से आए भारतीय विदेश सेवा (2012 बैच) के प्रशिक्षु अधिकारियों के साथ ।

Thursday, May 22, 2014

INDIA: बदलाव से पहले सही आंकड़े तो सामने लाईये

Thu, May 22, 2014 at 2:06 PM
An Article by the Asian Human Rights Commission                           सचिन कुमार जैन
हमें अपनी नयी सरकार से सामान्य ज्ञान का एक सवाल पूछना चहिये कि यदि हमारे यहाँ नीतियां किस आधार पर बनती हैं, जबकि कई मूल विषयों पर भारत में आंकडें और जानकारियां एकत्र करने में परहेज किया जाता है? स्वास्थ्य के क्षेत्र से लेकर आर्थिक सूचकांकों, कुपोषण और विस्थापन तक ऐसे तमाम क्षेत्र हैं, जहाँ आंकड़ों और ताज़ा जानकारियों के प्रबंधन की कोई व्यवस्था ही नहीं है. इसका मतलब यह कि हम सरकार की किसी भी पहल और उसके परिणामों को विश्वसनीय नहीं मान सकते है. जो भी हुआ या हो रहा है, वह सच नहीं है, क्योंकि उसे सही आंकड़ों के अभाव में जांचना संभव ही नहीं है.
भारत में लोग वास्तव में कितना कमाते हैं उसकी जानकारी ही इकठ्ठा नहीं होती है. और बात की जाती है उनकी कमाई बढाने की. हमारे यहाँ जो भी जानकारियां है वह व्यय पर आधारित है. एन एस एस ओ भी प्रतिव्यक्ति मासिक उपभोग, व्यय की ही जानकारी इकठ्ठा करता है.
हमारा वित्त मंत्रालय हर साल आर्थिक वृद्धि के सूचक के रूप में बताता है कि देश की प्रति व्यक्ति आय कितनी बढ़ गयी है, परन्तु वह लोगों की आर्थिक परिस्थितियों एक सही आंकलन नहीं होता है, क्योंकि वह आय का औसत आंकलन होता है. एक व्यक्ति की वास्तविक वार्षिक आय 100 करोड़ रूपए, दूसरे व्यक्ति की आय 5 करोड़ रूपए, तीसरे व्यक्ति की आय 50 लाख रूपए, चौथे व्यक्ति की आय 5 लाख रूपए, पांचवे व्यक्ति की आय 1 लाख रूपए, छठवें व्यक्ति की आय 24 हज़ार रूपए, सातवें व्यक्ति की आय 20 हज़ार रूपए और आठवें, नवमें, दसवें व्यक्ति की आय 12 हज़ार रूपए है. इस मान से हमारी औसत आय हो गयी १०.५५६८ करोड़ रूपए. अब सवाल यह है कि इस आंकलन में आखिरी के 5 व्यक्तियों की वास्तविक स्थिति झलकती है या नहीं? यहाँ तक कि भारत में गरीबी का आंकलन भी व्यक्ति की आय के मानक (कि एक व्यक्ति की कम से कम कितनी आय होनी चाहिए) के आधार पर नहीं होता है. यह आंकलन केवल व्यय के आधार पर होता है कि यदि कोई भी व्यक्ति 22 रूपए से कम गाँव में या 28 रूपए से काम शहर में काम खर्च कर रहा है, तो उसे गरीब मान लिया जाएगा.
अब जरा इस बात पर विचार कीजिये. भारत में भुखमरी और कुपोषण एक बड़ा राजनीतिक, सामाजिक और अकादमिक सवाल बना हुआ है, लेकिन आज यानी 2014 में भी जब हम इन विषयों पर बहस करते हैं या कुपोषण प्रबंधन कार्यक्रम बनाने की पहल करते हैं, तब हमें वर्ष 2005-06 में सम्पादित हुए राष्ट्रीय परिवार स्वस्थ्य सर्वेक्षण का सहारा लेना पड़ता है क्योंकि पिछले 8 सालों में हमारी सरकार ने कुपोषण और स्वास्थ्य के विभिन्न आयामों की पड़ताल के लिए कोई सर्वेक्षण या अध्ययन किये ही नहीं. ऐसे में यही अहसास होता है कि वास्तव में सरकारें भुखमरी, कुपोषण और गरीबी के सन्दर्भ में साक्ष्य आधारित पहल करने के बजाये सतही और गैर-जवाबदेय पहल करते रहना चाहती हैं.
इसके साथ ही दूसरा मसला आंकड़ों और जानकारियों की विश्वसनीयता से जुड़ा हुआ है. मध्यप्रदेश की शिशु मृत्यु दर 56 है, यानी जब एक हज़ार जीवित बच्चे जन्म लेते हैं, तब एक वर्ष से काम उम्र के 56 बच्चों के मध्यप्रदेश में मृत्यु हो जाती है, वास्तव में यह एक आंकलन होता है, जिसकी वास्तविक वास्तविक आंकड़ों के साथ पड़ताल की जाना चाहिए. जब एक हज़ार जीवित जन्म पर 56 बच्चों की मृत्यु होती है, तो 15 लाख जीवित जन्म पर 84000 बच्चों की मृत्यु हो रही है. इस आंकलन के ठीक उलट मध्यप्रदेश सरकार ने वर्ष 2013-14 के लिए जो आंकड़े दर्ज किये, उनके आधार पर राज्य में लगभग 7800 शिशु मृत्यु हुई. इस हिसाब से तो मध्यप्रदेश की शिशु मृत्यु दर लगभग 5 होना चहिये, जो की दुनिया के सबसे विकसित देशों की दर है. विडम्बना यह है कि हमारे यहाँ हर महीने जिला स्तर पर, हर तीन महीने में राज्य स्तर पर और सालाना मौके पर राष्ट्रीय स्तर पर समीक्षाएं होती हैं, नयी कार्य योजनायें और कार्यक्रम बनते हैं, पर सवाल है कि उनका समीक्षाओं का आधार क्या होता है और क्या उन चर्चाओं में इस विसंगति पर कोई सवाल नहीं उठता?
स्वतंत्रता के बाद से भारत में विकास के नीतियों में बड़ी विकास परियोजनाओं (बाँध, सड़क, बिजलीघर आदि) का बड़ा महत्त्व रहा है. पंडित नेहरु ने कहा था कि बाँध तो विकास के तीर्थ हैं. इन तीर्थों की स्थापना के कारण एक बड़ी आबादी विस्थापित होती है. 1950 से 1999 के बीच 5835 बड़ी और माध्यम विकास परियोजनाएं बनी और लागू हुई, जबकि 1999 से 2013 के बीच 21334 बड़ी और माध्यम विकास परियोजनाएं बनीं. इनमें से 6829 में लोगों की बड़ी संख्या में विस्थापन होना तय था, लेकिन भारत सरकार के स्तर पर योजना आयोग या सम्बंधित विभाग या प्रधानमंत्री कार्यलय (क्योंकि ये परियोजनाएं किसी एक विभाग से ही सम्बंधित नहीं है, इसलिए किसी एक को समन्वय आधारित भूमिका निभाना जरूरी था) ने ऐसी पहल नहीं की, जिसके तहत एक डेश-बोर्ड हो ताकि यह पता चल सके कि इन तमाम परियोजनाओं से किस राज्य के किस जिले में कौन से इलाके में कितने परिवार विस्थापित हो रहे हैं या परियोजना से अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हो रहे हैं, उनके पुनर्वास की क्या व्यवस्था की गयी है, कितनों का पुनर्वास हो गया है और कितनों का पुनर्वास बाकी है? बड़ी विकास परियोजनाओं की वकालत करने वाली सभी सरकारें विस्थापितों के हितों और हकों का संरक्षण करने में अरुचि रखती रही हैं, यही कारण है कि देश के सामने आज भी कोई ऐसा नाकड़ा नहीं है, जिससे पता चले की विकास ने कितनों को विस्थापित किया है? जाने-माने समाजशात्री प्रोफ. वाल्टर फर्नांडीस ने एक आंकलन किया और बताया कि वर्ष 1947 से 2000 के बीच भारत में 10 करोड़ लोगों का विस्थापन हुआ, जिनमें से 6 करोड़ दलित-आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रहते थे. क्या इसका मतलब यह है कि चूंकि विस्थापन केवल आदिवासियों, दलितों और गाँव में रहने वालों के लिए बड़ी विभीषिका लाता है, इसलिए जानबूझ कर विश्वसनीय आंकड़ों के प्रबंधन की कोई व्यवस्था नहीं बनायीं है?
मैं आपको अपने अनुभव के आधार पर एक और चुनौती देता हूँ. देश में लोगों को स्वास्थ्य का अधिकार देने के लिए बहुत जोरदार मंचबाज़ी हो रही है. स्वास्थ्य की एक ही परिभाषा है, पर उस परिभाषा को लागू करने के लिए अभी देश-प्रदेशों में 367 योजनायें चल रही हैं. कौन सी योजना कब शुरू होती है और कब बंद हो जाती है, इसके विषय में शायद ही किसी की पता चलता हो! स्वास्थ्य विभाग के सचिव को भी इसके बारे में कुछ अता-पता नहीं होता है, क्योंकि वो जब विभाग में आता है, तो उसे पता चलता है कि वहां स्वास्थ्य का कोई ठीक-ठीक परिस्थिति विश्लेषण ही मौजूद नहीं है, तो अपनी विद्वत्ता के आधार पर राजनीतिक लाभ-हानि का जोड़-घटना करते हुए वह कोई नयी फंडा-आधारित योजना चला देता है, जो उसके अपने कार्यकाल तक ही जीवित रहती है, पर नयी अधिकारी के आने से पहले दम तोड़ देती है. बस मध्यप्रदेश का एक सन्दर्भ ले लीजिये. राज्य में आप यह जानकारी इकठ्ठा नहीं कर सकते हैं कि यहाँ सरकारी अस्पतालों-स्वास्थ्य केन्द्रों-चिकित्सा महाविद्यालयों (जो सरकार चलाती है) में अलग-अलग स्तरों के स्वास्थ्य केन्द्रों (उप-स्वास्थ्य केंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, सामुदायिक, स्वास्थ्य केंद्र, जिला अस्पताल, मुख्य अस्पताल आदि) के लिए अलग-अलग जिलों में डाक्टरों और विशेषज्ञों कितने पद स्वीकृत स्वीकृत हैं और उनमें से कितने पद भरे हुए हैं या खाली हैं, क्योंकि स्वास्थ्य विभाग का महकमा स्वास्थ्य संचालनालय, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, चिकित्सा शिक्षा जैसी इकाईओं में बंटा हुआ है, जो केवल अपने हिस्से की व्यापक जानकारी ही रखते हैं. उनके पास भी जिलों यानी जमीनी स्तर की स्पष्ट जानकारी नहीं होती है. आंकड़ों की बात होने पर उनका जवाब होता है कि जिन्हें ये जानकारी चाहिए, वे जिले-जिले जाएँ और वहां से जानकारी इकठ्ठा कर लें. यही संकट दवाओं और अन्य विशेष सेवाओं के साथ भी जुड़ा हुआ है. जब हमें किसी जिले के बारे में यही पता न चले कि वहां स्वास्थ्य से जुड़े मानव संसाधनों की क्या स्थिति है, तो कार्ययोजना कैसे बन सकती है; पर हमारे यहाँ बनती है और क्रियान्वित भी होती है और सही समय पर उसके लागू हो जाने की रिपोर्ट भी आ जाती है.
जब तक हमारे पास सही सही जानकारियां नहीं होंगी, तब तक क्या समावेशी विकास के बात महज एक मुहावरा नहीं बना रहेगा. वास्तव में चूंकि एक नयी सरकार सत्ता की जिम्मेदारी संभाल रही है, उसे यह समझना होगा कि जब तक सही-सही जानकारी उसके पास या लोगों के पास नहीं होगी, तब तक "समावेशी विकास" और "गैर-बराबरी ख़त्म" करने की कोशिशें नाकाम ही साबित होंगी.
Mr. Sachin Kumar Jain is a development journalist and researcher who is associated with the Right to Food Campaign in India and works with Vikas Samvad, AHRC's partner organisation in Bhopal, Madhya Pradesh. The author could be contacted at sachin.vikassamvad@gmail.com Telephone: +91 755 4252789.
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About AHRC: The Asian Human Rights Commission is a regional non-governmental organisation that monitors human rights in Asia, documents violations and advocates for justice and institutional reform to ensure the protection and promotion of these rights. The Hong Kong-based group was founded in 1984.

Wednesday, May 21, 2014

राष्‍ट्रपति ने श्री नरेन्‍द्र मोदी को प्रधानमंत्री नियुक्‍त किया

20-मई-2014 17:56 IST
शपथ ग्रहण समारोह 26 मई को होगा
The President, Shri Pranab Mukherjee with the leader of the BJP Parliamentary Party, Shri Narendra Modi, at Rashtrapati Bhavan, in New Delhi on May 20, 2014 when the President invited Shri Narendra Modi to form the next government.
राष्‍ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने 20 मई, 2014 को अगली सरकार के गठन के लिए श्री नरेन्‍द्र मोदी को आमंत्रित किया। राष्‍ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी बीजेपी संसदीय दल के नेता नरेन्‍द्र मोदी के साथ।          (PIB photo)
भारतीय जनता पार्टी के अध्‍यक्ष श्री राजनाथ सिंह के नेतृत्‍व में राष्‍ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के 15 सदस्‍यों के प्रतिनिधिमंडल ने आज 14:30 बजे राष्‍ट्रपति से मुलाकात की। प्रतिनिधिमंडल के अन्‍य सदस्‍यों के नाम इस प्रकार हैं:- श्री लालकृष्‍ण आडवाणी, डॉ. मुरली मनोहर जोशी, श्रीमती सुषमा स्‍वराज, श्री वेंकैया नायडू, श्री अरुण जेटली, श्री नितिन गडकरी, श्री अनन्‍त कुमार, श्री थावर चन्‍द गहलोत, श्री प्रकाश सिंह बादल, श्री चन्‍द्र बाबू नायडू, श्री उद्धव ठाकरे, श्री राम विलास पासवान, श्री नेफु रियो और श्री सुखबीर सिंह बादल उपस्थित थे। श्री नरेन्‍द्र मोदी को भारतीय जनता पार्टी संसदीय दल का नेता चुन लिए जाने के संबंध में एक पत्र राष्‍ट्रपति को सौंपा गया।

भारतीय जनता पार्टी संसदीय दल के नेता श्री नरेन्‍द्र मोदी ने आज 15:15 बजे राष्‍ट्रपति से मुलाकात की। चूंकि श्री नरेन्‍द्र मोदी को भारतीय जनता पार्टी के संसदीय दल का नेता चुन लिया गया है और भारतीय जनता पार्टी को लोकसभा में बहुमत प्राप्‍त है, अत: राष्‍ट्रपति ने श्री नरेन्‍द्र मोदी को भारत के प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्‍त‍ किया और उनके मंत्रि‍परिषद में शामिल किये जाने वाले सदस्‍यों के नामों की सूची भि‍जवाने का अनुरोध किया।

राष्‍ट्रपति श्री मोदी को 26 मई, 2014 को 18:00 बजे राष्‍ट्रपति भवन में पद और गोपनीयता की शपथ दिलाएंगे।

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वी.के./एएम/आईपीएस/एमके-1588

Tuesday, May 20, 2014

ग्रामीण पेयजल समस्या और समाधान//कन्हैया झा

Tue, May 20, 2014 at 12:24 PM
5 करोड़ लोगों को पीने का स्वच्छ पानी उपलब्ध नहीं
                                                                                                                                      तस्वीर इंडिया वाटर पोर्टल से साभार


अप्रैल 2013, सरिता ब्रारा के एक लेख के अनुसार देश के ग्रामीण क्षेत्र के लगभग 5 करोड़ लोगों को पीने का स्वच्छ पानी उपलब्ध नहीं है. मणिपुर, त्रिपुरा, ओडिशा, मेघालय, झारखंड एवं मध्यप्रदेश राज्यों में प्रभावित परिवारों की संख्या बहुत ज्यादा है. केन्द्रीय पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल मिशन (NRDWP) के लिए ग्यारहवीं पञ्चवर्षीय योजना (2007-12) में 40 हज़ार करोड़ पैसा खर्च किया है.
पीने के पानी के लिए गाँवों में लगभग 85 प्रतिशत संसाधन भूजल पर आधारित हैं. देश में 80 प्रतिशत पानी की खपत सिंचाई के लिए है, जिसके लिए भूजल का  भी खूब उपयोग हो रहा है. इस कारण से अनेक राज्यों में भूजल स्तर तेज़ी से गिर रहा है. जैसे-जैसे गहरी खुदाई करते है आर्सेनिक, फ्लोराइड आदि के प्रदूषण से पानी पीने लायक नहीं रहता. इसके चलते बारहवीं पंचवर्षीय योजना में भूजल की बजाय सतही पानी (surface water) का उपयोग कर उसे पाइपों द्वारा घर-घर पहुंचाने का प्रस्ताव है. अभी देश के केवल चार राज्यों में ही यह व्यवस्था है.
इस विषय पर गंभीरता से विचार कर निर्णय लेने की आवश्यकता है. भूजल किसी भी राष्ट्र की नयी पीढ़ी के लिए जमा की गयी पूंजी है. इस विषय पर सन 1989 में एक शोध-पत्र जल-संसाधन पर छठी विश्व कांग्रेस में मंजूर किया गया था. शोध पत्र का शीर्षक "Dams, the Cause of Droughts and Devastating Floods" अर्थात बड़े बाँध सूखा एवं बाढ़ दोनों ही लाते हैं, कुछ चौंकाने वाला था. लेकिन यह भारतीय चिंतन के अनुरूप था. इस देश ने कभी भी नदियों की अविरल धारा को अवरुद्ध नहीं किया. उनमें स्नान, उनकी पूजा वास्तव में उनका संरक्षण था. संक्षेप में नदियों की प्राकृतिक बाढ़ से दूर-दूर तक के प्रदेशों में हर वर्ष भूजल स्तर कायम रहता था और जमीन में नमी बने रहने से सूखे के प्रकोप से भी रक्षा होती थी. उचित गहराई पर भूजल के प्रवाहित होने से जमीन की धुलाई होती थी और उसकी उपजाऊ शक्ति वर्ष दर वर्ष बनी रहती थी. नहरी पानी की सिंचाई से धुलाई नहीं हो पाती और धीरे-धीरे जमीन के नमकीन होने से उसकी उर्वरक शक्ति का भी ह्रास होता है.
निरीह नदियों पर किये गए अत्याचारों का फल तो इस देश की जनता को जरूर भोगना पडेगा. ग्रामीण इलाके इस पाप कर्म से बच सकते हैं. सरकार भी इस दिशा में सोचे. अपनी जमीन खराब कर प्याज आदि खाद्य पदार्थों का निर्यात करना कहाँ की समझदारी है ! नव-निर्वाचित सभी सांसदों से बात कर उन ग्रामीण क्षेत्रों को चिन्हित किया जाए जहां पर पीने के पानी की गंभीर समस्या है. राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल मिशन के देशव्यापी प्रस्ताव की जगह स्थानीय समाधानों को तलाशा जाय. सामाजिक कार्यों के लिए यदि गैर सरकारी संस्थाओं को धन दिया जा सकता है तो राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों को क्यों नहीं ! सांसद निधि में पैसा देने की जगह उन्हें इस प्रकार के मिशन के लिए पैसा दिया जाय. किसी भी पार्टी के लिए क्षेत्र में अपना प्रभाव बढाने का इससे बेहतर और क्या तरीका हो सकता है.
एक खबर के अनुसार (Indian Express. मई 18, 2014) विश्व की सबसे बड़ी स्वयं वित्त पोषित संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर एस एस) में भी चुनाव परिणामों को लेकर एक जोश है. उनके एक वरिष्ठ स्वयंसेवक के अनुसार:
"नयी सरकार को १२५ करोड़ देशवासियों में जाती, धर्म आदि किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए. हमारा विश्वास है की अब चुनावों के बाद सभी भाई-चारे की भावना से प्रेरित हो राष्ट्र निर्माण में लगेंगे."   
 उसी खबर में एक पोस्टर का मजमून भी छापा गया जो यह था:
      "हम लाये हैं तूफानों से नौका निकाल के, बढेगा देश अब सेवा आधार पे."


Kanhaiya Jha
09958806745

Monday, May 19, 2014

INDIA: नयी सरकार के सामने पकी-पकाई चुनौतियां

 
 
 
 
 
 
 
 
 
Mon, May 19, 2014 at 1:09 PM
An Article by the Asian Human Rights Commission                                    सचिन कुमार जैन
भारतीय जनता पार्टी की जड़ें मूलतः स्वदेशी की विचारधारा में रहीं हैं, परन्तु १९९१ में अपनाई गयी आर्थिक नीतियों ने राजनीति और अर्थनीति, दोनों में से ही देश ज्ञान, विज्ञान, संसाधन, प्रबंधन और सामुदायिक नियंत्रण के पहलुओं को छील-छील कर बाहर निकाल फेंका. हमनें पूरी तरह से उन नीतियों को अपनाया, जो अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों और पूँजी वादी अर्थव्यवस्थाओं के हित में थीं. भारत के नीति बनाने वालों ने हमेशा यही तर्क दिया कि आर्थिक विकास के लिए पूँजी चाहिए और पूँजी हमारे पास नहीं है, पूँजी तो "कार्पोरेशंस और अमेरिका" के पास है. कार्पोरेशंस और अमेरिका ने कहा कि हम निवेश करेंगे, यदि भारत की व्यवस्था और सरकार हमारे कहे मुताबिक नीतियां बनाये. परिणाम आप देख लीजिए एक तरफ सकल घरेलू उत्पाद बढ़ता रहा, दूसरी तरफ नदियाँ सूखती गयीं, हवा में जहर फैलता गया, भुखमरी और बेरोज़गारी बढ़ती गयी, जंगल खतम होते गए, जमीन पर कंपनियों का कब्ज़ा होता गया और हमारे राजस्व को भी कम कर दिया गया. विस्तार में आगे पढ़िए:--
भारत के लोगों ने भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को पूर्ण ही नहीं, सम्पूर्ण बहुमत दिया है. यह इस बात का भी संकेत है कि अब वह कोई अधूरा काम न करे, यही जनमत उससे अपेक्षा करता है. भारतीय जनता पार्टी की जड़ें मूलतः स्वदेशी की विचारधारा में रहीं हैं, परन्तु १९९१ में अपनाई गयी आर्थिक नीतियों ने राजनीति और अर्थनीति, दोनों में से ही देश ज्ञान, विज्ञान, संसाधन, प्रबंधन और सामुदायिक नियंत्रण के पहलुओं को छील-छील कर बाहर निकाल फेंका. हमनें पूरी तरह से उन नीतियों को अपनाया, जो अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों और पूँजी वादी अर्थव्यवस्थाओं के हित में थीं. भारत के नीति बनाने वालों ने हमेशा यही तर्क दिया कि आर्थिक विकास के लिए पूँजी चाहिए और पूँजी हमारे पास नहीं है, पूँजी तो "कार्पोरेशंस और अमेरिका" के पास है. कार्पोरेशंस और अमेरिका ने कहा कि हम निवेश करेंगे, यदि भारत की व्यवस्था और सरकार हमारे कहे मुताबिक नीतियां बनाये. परिणाम आप देख लीजिए एक तरफ सकल घरेलू उत्पाद बढ़ता रहा, दूसरी तरफ नदियाँ सूखती गयीं, हवा में जहर फैलता गया, भुखमरी और बेरोज़गारी बढ़ती गयी, जंगल खतम होते गए, जमीन पर कंपनियों का कब्ज़ा होता गया और हमारे राजस्व को भी कम कर दिया गया. यह कैसा विकास है जिसमें सरकार तरह-तरह की कंपनियों को एक साल में 2 लाख करोड़ रूपए की "कर और शुल्क छूट" देती है. वे कम्पनियाँ 1 करोड़ रूपए के व्यापार पर बस 5 व्यक्तियों को रोज़गार देती हैं. और हम फिर भी हम जीडीपी-जीडीपी जपते रहते हैं.
अब जबकि राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबंधन को भरपूर जनमत मिला है, तो अब अपेक्षा की जाना चाहिए कि वे भारत और भारत के लोगों के हितों को केंद्र में रख कर आर्थिक विकास की नीतियां बनायेंगे. जरूरी होगा कि आर्थिक विकास को मानव विकास और सामाजिक बदलाव से जुडा करके न देखा जाए. पिछले दो दशकों में यही धारणा स्थापित हो गयी है कि मानव विकास (शिक्षा, स्वास्थ्य, लैंगिक समानता, आदिवासी अस्मिता और दलितों का सशक्तिकरण आदि) जैसे क्षेत्रों पर किया जाने वाला निवेश आर्थिक विकास और आर्थिक विकास के लिए किये जाने वाले प्रयासों को नुकसान पंहुचाता है. भारतीय जनता पार्टी ने लोगों की क्षमताओं और कौशल के विकास पर बल देने की बात की है. जब तक बच्चों में कुपोषण और एनीमिया जैसी स्थितियों को खत्म नहीं किया जायेगा, तब तक हम एक सशक्त और सक्रीय व्यक्ति पैदा नहीं कर सकते हैं, जो किसी के सामने झुकने के लिए मजबूर न हो; तो क्या मानव विकास के लिए निवेश किये बिना आर्थिक विकास लाया जा सकेगा, इस पर सरकार को अभी अपना नजरिया आधिकारिक रूप से स्पष्ट करना होगा.
सबसे शुरूआती क़दमों के तौर पर राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक गठबंधन की सरकार को पेट्रोलियम पदार्थों की नीति पर पुनर्विचार करना चाहिए क्योंकि इस मामले में कुछ भी गलत होने पर हर पल हर व्यक्ति सरकार को कोसता है और गुस्सा दिखाने की एक मौका खोजता है. दूसरी बात यह है कि आदिवासियों को वनों पर हक देने वाले वन अधिकार क़ानून का आदिवासियों के नज़रिए से क्रियान्वयन सुनिश्चित करे; न की खनन कंपनियों और वन विभाग के नज़रिए से, जो नहीं चाहते हैं कि इस क़ानून के जरिये आदिवासियों को संसाधनों पर ऐसे हक मिलें, जो वास्तव में उनकी जिंदगी सकारात्मक रूप से बदला सकते हैं.
इस व्यवस्था में "हितों के टकराव – कानफ्लिक्ट आफ इंटरेस्ट" ने बहुत नुक्सान पंहुचाया है. बच्चों के खाने का सामान बनाने वाली कंपनी के लोग भारत सरकार की नीति बनाने वाली समिति में होते हैं, उच्च शिक्षा संस्थान चलने वाले लोग शिक्षा की नीति बनाते हैं. इसका मतलब यह है कि वे अपने धंधे के हित देख कर नीति बनाते हैं, न कि जनहित देख कर. शुरू में ही एनडीए सरकार को तय करना होगा कि नीति बनाने के काम में कोई भी ऐसा व्यक्ति या संस्थान प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शामिल न हो, जिसके हित उस नीतिगत विषय से सम्बंधित हों.
अब कार्पोरेट्स को करों-राजस्व की माफ़ी देने की नीति बदली जाना चाहिए. यह एक बड़ा कारण है, जिसके चलते हमारा टेक्स-जीडीपी (जीडीपी के अनुपात में कर संग्रहण) अनुपात 17 प्रतिशत के आसपास है. यदि हम इसे बढाकर 23 प्रतिशत पर ला सके तो देश में हर बच्चे को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, हर व्यक्ति को रोज़गार, सभी को सुरक्षा, सभी को सामाजिक सुरक्षा, बच्चों को संरक्षण और पोषण सहित जीवन का हर अधिकार, पीने का साफ़ पानी दिया जा सकता है. आज कई लोग इसलिए भी टेक्स नहीं देना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि निजी स्वास्थ्य सेवाएं भयंकर महंगी हैं. बच्चों की शिक्षा बहन को देह व्यापार करने के लिए मजबूर कर देती है या घर बिकवा देती है. यदि विश्वास अर्जित करना है, तो सरकार को लोगों की बुनियादी सुविधाएँ बतौर हक उपलब्ध करवाना होंगी. यह कोई कल्पना नहीं है, यह संभव है, यदि सरकार गडबड़ी दूर करने के लिए तैयार हो जाए तो!
प्राकृतिक संसाधनों की नीलामी को नियंत्रित किया जाना चाहिए. यह सही है कि प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग विकास के लिए जरूरी है, बेहतर होगा कि समुदाय के जरिये इन संसाधनों के उपयोग की नीति बनायीं जाए. साथ में सूचक यह हो कि एक सीमा के बाद संसाधनों का दोहन नहीं किया जायेगा. इस तरीके से हम तेज़ी से बढ़ रही गैर-बराबरी और क्षेत्रीय टकरावों को भी नियंत्रित कर पायेंगे.
तेल/पेट्रोलियम के मामले में सरकार को अपनी नीति में बदलाव लाने की जरूरत है, क्योंकि इससे सार्वजनिक परिवहन और हर वस्तु की कीमतों का सीधा जुड़ाव है, जैसे ही डीज़ल-पेट्रोल की कीमतें बढती हैं, वैसे ही टमाटर और कपड़े के दाम बढ़ जाते हैं. लोगों के दैनिक जीवन और बुनियादी जरूरतों पर इसके प्रभावों को समझते हुए जिम्मेदार उपभोग प्रवर्ति विकसित करने की प्रक्रिया शुरू हो. वर्ष 2004 में कच्चे तेल की कीमत 30 डालर प्रति बैरल थी, जो अब बढ़ कर 100 डालर तक पंहुच चुकी है. हमें यह समझना होगा कि हम हमेशा बढती हुई कीमतों के साथ सामंजस्य बिठा कर नहीं चल पायेंगे, हमें अपने उपभोक्ता व्यवहार को तार्किक और जिम्मेदार बनाना होगा. एक तरफ हम तेल की कीमतें बढ़ाते रहें, और दूसरी तरफ उसका उपभोग गैर-जिम्मेदार तरीके से होता रहे, इससे मसला हल न हो पायेगा.
विकास के कार्यक्रमों, जैसे महात्मा गांधी ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना, बेकवर्ड रीजन ग्रांट फंड, बुंदेलखंड पैकेज आदि का विश्लेषण करने की जरूरत है. इन कार्यक्रमों में बड़े पैमाने पर आर्थिक संसाधनों का उपयोग हो रहा है, निगरानी के अभाव, शिकायत निवारण व्यवस्था और जन-मूल्यांकन की व्यवस्था के अभाव के कारण ऐसे कार्यक्रम अपने मकसद में सफल नहीं हो पाए. शायद नयी सरकार यह समझ सके कि निगरानी और शिकायत निवारण व्यवस्था न होने के कारण भ्रष्टाचार पनपता है और मशीनरी गैर-जवाबदेही के साथ काम करती है. मनरेगा के तहत आठ सालों में 2 लाख करोड़ रूपए से 7 लाख काम शुरू किये गए, परन्तु आंकड़े बताते हैं कि केवल 20 प्रतिशत काम ही पूरे हो पाए. लोगों को का तो समय पर काम मिला , न ही बेरोज़गारी भत्ता मिला; जिन्हें काम मिला पर मजदूरी नहीं मिली. 80 हज़ार करोड़ रूपए की मजदूरी का भुगतान देरी से हुआ पर लोगों को देरी मजदूरी भुगतान पर मिलने वाला मुआवजा नहीं मिला, जो की क़ानून का प्रावधान है. देखना यह है कि क्या नयी सरकार, लोगों के प्रति जवाबदेह होने के लिए कोई कदम उठाना चाहेगी या नहीं! इसमें अभी भी शंका इसलिए है क्योंकि छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, गुजरात जैसे भारतीय जनता पार्टी शासित प्रदेशों में भी मनरेगा का लचर क्रियान्वयन हुआ है.
आज की स्थिति में 19.20 करोड़ लोगों को रोज़गार की जरूरत है. एक बड़ा उद्द्योग प्रत्यक्ष रूप से 600 लोगों को रोज़गार देता है, परन्तु 300 से 500 एकड़ जमीन पर कब्ज़ा जमा लेता है. इसके दूसरी तरफ, यदि भू-सुधार की मंशा दिखाई जाए, तो इतनी जमीन से 2000 लोगों को प्रत्यक्ष रूप से रोज़गार मिल सकता है. 19.20 करोड़ लोगों को केवल औद्योगिकीकरण या सेवा क्षेत्र से ही रोज़गार नहीं दिया जा सकेगा. इसके लिए भारत में क्षेत्रीय संदर्भ को ध्यान में रखते हुए उनके मौजूदा कौशल को भी स्थान देते हुए लघु और स्थानीय उद्योगों को प्राथमिकता देना होगी. हांलाकि यह सही है कि इससे स्टाक एक्सचेंज में सूचीबद्ध 500 बड़ी कंपनियों को नुक्सान उठाना पढ़ेगा. जिसे हम आयातित भाषा में टिकाऊ विकास कहते हैं, वह कभी भी बाहरी नियंत्रण से नहीं हो सकेगा. अभी मान्यता यह है कि हमें अपनी शिक्षा व्यवस्था ऐसी बनान चाहिए जो एक कौशल संपन्न बुनकर को किसी काल सेंटर में काम करने लायक बनाये. इस तरह की नीति का मकसद यह रहा कि लोग लघु और स्थानीय घरेलू उद्योगों से निकालें और अन्य क्षेत्रों में जाएँ, ताकि स्थानीय प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कुटिल पूंजीवादी विकास के लिए किया जा सके.
अब नयी सरकार को देखना होगा कि हम अपने विकास के लिए अपनी परिभाषा, देशज परिभाषा कैसे गढ़ सकते हैं. बाजार और कुटिल पूँजीवाद के इशारों पर विकास की परिभाषा न गढ़ी जाए. अब कदम कदम पर इस सरकार को साबित करना होगा कि वह किसकी सरकार है?
Mr. Sachin Kumar Jain is a development journalist and researcher who is associated with the Right to Food Campaign in India and works with Vikas Samvad, AHRC's partner organisation in Bhopal, Madhya Pradesh. The author could be contacted at sachin.vikassamvad@gmail.com Telephone: +91 755 4252789.
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About AHRC: The Asian Human Rights Commission is a regional non-governmental organisation that monitors human rights in Asia, documents violations and advocates for justice and institutional reform to ensure the protection and promotion of these rights. The Hong Kong-based group was founded in 1984.

Sunday, May 18, 2014

पंजाब में भी चलेगा दिलीप छाबडिय़ा का जादू

डीसी डिजाइन शोरूम की लुधियाना में शुरुआत
लुधियाना:18 मई 2014: (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो):
देश के 10 राज्यों में दिलीप छाबडिय़ा का कार मैजिक फैलाने के बाद अब डीसी डिजाइन पंजाब में अपने जादू का जलवा बिखेरने के लिए आ रहा है और ग्रुप की नॉर्थ इंडिया फ्रैंचाइज 'स्विफ्टि इनीशिएटिव' फिरोजपुर रोड, लुधियाना में अपने प्रथम एक्सक्लूसिव डीसी डिजाइन शोरूम के साथ पंजाब में एक नई शुरूआत करने जा रहा है।
बीते सालों में डीसी ने काफी विस्तार किया है और अपने विश्वस्तरीय उत्पादों और शानदार लग्जरी और लाउंज एडीशन के साथ इन डिजाइंस को किसी भी नए एयरक्रॉफ्ट के साथ तुलना कर देखा जा सकता है। इसके साथ ही डीसी भारत की पहली स्पोट्र्स कार 'अवंति" को भी प्रस्तुत कर रहा है जो कि  पूरे देश को अपने तूफान से रोमांचित कर देगी। वहीं 2014 में लॉन्च की गई टू डोर टरेगा टॉप एसयूवी- एलारॉन और  टू डोर टू सीटर मिनी-टिया को भी काफी पसंद किया जा रहा है और इसे एक ऐसी कार और एसयूवी के तौर पर देखा जा रहा है, जो कि इससे पहले भारतीय बाजार में कभी दिखाई नहीं दी। लुधियाना में भी ऐसी ही कुछ नई कारों को प्रस्तुत किया जा रहा है।
इस मौके पर श्री भारत सिद्धेश्वर राय, एमडी, स्विफ्टि इनीशिएटिव ने कहा कि हमें पंजाब से काफी अधिक ग्राहक मिल रहे हैं और उनकी बढ़ती संख्या को देखते हुए हमने पंजाब में ही शुरुआत करने का फैसला किया और आज हम लुधियाना में अपने एक्सक्लूसिव शोरूम को प्रस्तुत कर रहे हैं।
राय ने कहा कि डीसीडी ने अब तक 600 से अधिक अद्वितीय कारों का निर्माण किया है, जिनमें सुपरकारों से लेकर एक हम्बल एंबेसडर को पूरी तरह से बदले हुए स्वरूप में पेश करना तक शामिल है। डीसीडी कई प्रमुख कंपनियों को डिजाइन और प्रोटोटाइप सर्विसेज भी प्रदान करता है, जिनमें ऑस्टिन मार्टिन, रेनॉ और जीएम शामिल हैं। आज डीसीडी विमानों के इंटीरियर को भी नए सिरे से डिजाइन करता है, वहीं होम इंटीरियर और आर्ट सर्विसेज भी प्रदान करता है। डीसीडी आज लग्जरी और हाई-ग्रेड ऑटोमोटिव डिजाइन का पर्यावाची बन चुका है।
डीसीडी का मानना है कि हर कार कुछ बेहतर होना चाहती है। डीसीडी विभिन्न वाहनों को नए कस्टमाइज इंटीरियर और एक्सटीरियर वेरिएशंस प्रदान करता है जिनमें टोयोटा इनोवा, फॉच्यूर्नर, महिंद्रा एक्सयूवी ५००, महिंद्रा थार, रेनॉ डस्टर, फोर्ड इको स्पोर्ट, निसान एवालिया, निसान सन्नी, निसान टेरानो प्रमुख हैं। वहीं स्विफ्टि, आई20, सिटी, क्रूज, एलेंट्रा और कई अन्य कारों की बाहरी बॉडी को भी नया लुक देता है। इन बदलावों में लग्जरी इंटीरियरर्स, आकर्षक बाहरी बदलाव और कई सारे नए तकनीकी विकल्प शामिल हैं। वहीं आपकी कार पर एक छोटा सा डीसी लोगो ये भी दर्शाता है कि आप इस एक्सक्लूसिव क्लब का हिस्सा हैं जो कि आपकी अलग पसंद को प्रस्तुत करता है, जिससे भी ये भी साबित होता है कि आप सादा डिजाइनों से संतुष्ट नहीं होते हैं।
डीसी डिजाइन: विस्तृत परिचय
इस सफर की शुरुआत 1983 में हुई जब दिलीप छाबडिय़ा करीब एक साल तक डेट्रॉयट में जनरल मोटर्स के डिजाइन सेंटर में एक साल तक काम करने के बाद भारत वापस आए। प्रतिष्ठित आर्ट सेंटर कॉलेज ऑफ डिजाइन, पासाडेना, कैलीफोर्निया में ट्रांसपोर्टेशन डिजाइन की पढ़ाई और व्यापक स्तर पर कार निर्माण कारोबार में अपने अनुभव ने उन्हें ये अहसास करवाया कि उन्हें कुछ अलग डिजाइन तैयार कर उन्हें साकार रूप प्रदान करना ही सबसे अच्छा काम लगेगा। उन्होंने अपनी उद्यमशीलता को आगे बढ़ाया और एक बड़े बाजार के लिए क्रिएटिव ऑटोमोटिव एसेसरीज को डिजाइन और तैयार करना शुरू कर दिया।
वे सफलता प्राप्त करने के लिए बेहद उत्साही वर्ग से आने वाले उद्यमी हैं और डीसी की एसेसरीज जल्द ही ऑटोमोटिव के दीवानों की पसंदीदा बन गईं। एक दशक के अंदर ही वे देश में सबसे बड़े एसेसरीज निर्माण कंपनी बन गए। पर डीसी के लिए ये आधार भी अधिक बढ़ा नहीं था। शुरुआत से ही वे ये जानते थे कि उनका लक्ष्य एक पूरी कार को डिजाइन करना है ना कि कार के सिर्फ कुछ हिस्सों को ही डिजाइन करते रहना है। उन्होंने अपना लक्ष्य प्राप्त भी कर लिया है।

Saturday, May 17, 2014

प्रधानमंत्री का राष्ट्र के नाम सन्देश

17-मई-2014 11:55 IST
यह एक ऐसा कर्ज़ है जिसे मैं कभी अदा नहीं कर सकता
The Prime Minister, Dr. Manmohan Singh calling on the President, Shri Pranab Mukherjee, at Rashrapati Bhavan, in New Delhi on May 17, 2014. 
प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह राषट्रपति भवन, नई दिल्ली में 17 मई 2014 को राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी से मुलाकात की।
प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह का राष्ट्र के नाम सन्देश निम्नानुसार है: 
प्यारे देशवासियों, 

आज मैं आपको प्रधानमंत्री के रूप में आखिरी बार संबोधित कर रहा हूँ।
दस साल पहले इस ज़िम्मेदारी को संभालते वक्त मैंने अपनी पूरी मेहनत से काम करने और सच्चाई के रास्ते पर चलने का निश्चय किया था। मेरी ईश्वर से प्रार्थना थी कि मैं हमेशा सही काम करूँ। 

आज, जब प्रधानमंत्री का पद छोड़ने का वक्त आ गया है, मुझे अहसास है कि ईश्वर के अंतिम निर्णय से पहले, सभी चुने गए प्रतिनिधियों और सरकारों के काम पर जनता की अदालत भी फैसला करती है। 

मेरे प्यारे देशवासियों, 

आपने जो फ़ैसला दिया है, हम सभी को उसका सम्मान करना चाहिए। इन लोकसभा चुनावों से हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था की जड़ें मज़बूत हुई हैं।

जैसा मैंने कई बार कहा है, मेरा सार्वजनिक जीवन एक खुली किताब है। मैंने हमेशा अपनी पूरी क्षमता से अपने महान राष्ट्र की सेवा करने की कोशिश की है।

पिछले दस सालों के दौरान हमने बहुत सी सफलताएं और उपलब्धियां हासिल की हैं जिन पर हमें गर्व है। आज हमारा देश हर मायने में दस साल पहले के भारत से कहीं ज़्यादा मज़बूत है। देश की सफलताओं का श्रेय मैं आप सबको देता हूँ। लेकिन अभी भी हमारे देश में विकास की बहुत सी संभावनाएं हैं जिनका फायदा उठाने के लिए हमें एकजुट होकर कड़ी मेहनत करने की ज़रुरत है।

प्रधानमंत्री का पद छोड़ने के बाद भी आपके प्यार और मोहब्बत की याद हमेशा मेरे ज़हन में ताज़ा रहेगी। मुझे जो कुछ भी मिला है, इस देश से ही मिला है। एक ऐसा देश जिसने बंटवारे के कारण बेघर हुए एक बच्चे को इतने ऊंचे पद तक पहुंचा दिया। यह एक ऐसा कर्ज़ है जिसे मैं कभी अदा नहीं कर सकता। यह एक ऐसा सम्मान भी है जिस पर मुझे हमेशा गर्व रहेगा।

मित्रों, मुझे भारत के भविष्य के बारे में पूरा इत्मीनान है। मुझे पक्का विश्वास है कि वह समय आ गया है जब भारत दुनिया की बदलती हुई अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरेगा। परंपरा को आधुनिकता के साथ और विविधता को एकता के साथ मिलाते हुए हमारा देश दुनिया को आगे का रास्ता दिखा सकता है। अपने महान देश की सेवा करने का मौका मिलना मेरा सौभाग्य रहा है। मैं इससे ज़्यादा कुछ और नहीं मांग सकता था।

मेरी शुभकामना है कि आने वाली सरकार अपने काम-काज में हर तरह से सफल रहे। मैं अपने देश के लिए और भी बड़ी सफलताओं की कामना करता हूं।

धन्यवाद । जय हिन्द ।
*** 
तनानी/सतीश

Thursday, May 15, 2014

नियमित टीकाकरण से ही भारत पोलियो मुक्‍त हो पाया

15-मई-2014 17:34 IST
विशेष लेख                                            *सरिता बरारा
http://pib.nic.in/archieve/others/2014/may/d2014051504.jpg
कम्‍यूनिटी मोबिलाइजेशन कॉर्डिनेटर नूरजहां गांव की युवा माताओं को टीकाकरण
की जानकारी देते हुए
उत्तर प्रदेश में मुरादाबाद जिले के भैसियां गांव में अप्रैल के अंतिम सप्ताह के दौरान नियमित रूप से आयोजित होने वाले टीकाकरण अभियान से एक दिन पहले 20 वर्ष की मुस्लिम महिला नूरजहां गांव की आंगनवाड़ी में युवा माताओं के साथ बैठक कर रही हैं। समुदाय से जुड़े होने के नाते नूरजहां माताओं के साथ आसानी से संवाद कायम कर लेती हैं। आज उनका जोर नवजात शिशुओं और पांच वर्ष तक के बच्चों के लिए नियमित टीकाकरण की महत्ता पर है। नूरजहां अधिक साफ-सफाई पर भी जोर देती हैं। माताएँ अपनी गोद में बच्चे लिए ध्यान से नूरजहां की बातें सुनती हैं। बाद में पूछे जाने पर निरक्षर और अर्ध साक्षर माताएं विश्वासपूर्वक यह बताती हैं कि टीकाकरण क्यों जरूरी है, नवजातों तथा गर्भवती महिलाओं के लिए इसका क्या महत्व है। नूरजहां पहले पल्स पोलियो अभियान में स्वयंसेवी के रूप में काम करती थीं और बाद में उन्हें कम्यूनिटी मोबिलाइजेशन को-ऑर्डिनेटर (सीएमसी) बनाया गया है।
वर्ष 2001 में पोलियो अभियान के लिए यूनिसेफ के सहायता कार्यक्रम के तहत लगभग 5000 सीएमसी को राज्य सरकार के स्वास्थ्य कर्मियों तथा अन्य हितधारकों के साथ 7000 अधिक जोखिम वाले क्षेत्रों में तैनात किया गया। अब समर्पित कार्यकर्ताओं के इस नेटवर्क को नियमित टीकाकरण कार्यक्रम के लिए बरकरार रखा गया है। संयुक्त राष्ट्र की यह संस्था नियमित टीकाकरण के स्तर को बढ़ाकर तथा अग्रणी स्तर के स्वास्थ्य कर्मियों को व्यापक तरीके से प्रशिक्षित कर शिशुओं को होने वाली सामान्य बीमारियों की पहचान और निदान के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को समर्थन दे रही है।
2006 में पोलियो के उभरने के समय मुरादाबाद इसका केन्द्र था। लेकिन टीकाकरण की आक्रामक रणनीति से वहां सिर्फ टाइप वन किस्‍म का एक पोलियो का मामला सामने आया। अब तो पूरा भारत पोलियो मुक्त घोषित हो चुका है।
महत्वपूर्ण यह है कि 2010-2011 के दौरान 12 से 23 महीने की आयु वर्ग में केवल 24.1 प्रतिशत बच्चों का ही पूर्ण टीकाकरण किया जा सका। मुरादाबाद के जिला टीकाकरण अधिकारी डॉ. आर.के.शर्मा बताते हैं कि इस समय कवरेज बढ़कर 63 प्रतिशत हो गई है। वास्तव में यह पूरे उत्तर प्रदेश के मुकाबले एक प्रतिशत अधिक है। यहां शिशु मृत्युदर भी गिरकर प्रति 1000 शिशुओं में 52 रह गई है।
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मुरादाबाद में माताएं अपने बच्चों को पोलियो का टीका लगवाने के लिए
प्रतीक्षा करती हुई।
मुरादाबाद के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. संजीव यादव कहते हैं कि भारत के पोलियो मुक्त होने के बाद सबसे बड़ी चुनौती टीकाकरण कार्यक्रम की गति को बनाए रखने की है क्योंकि विश्व को अभी भी उभरने वाली बीमारियों से मुक्त होना है। पोलियो वायरस इस समय पाकिस्तान, अफगानिस्तान और नाइजीरिया में महामारी का रूप धारण कर चुके हैं लेकिन पाकिस्तान में पोलियो की खुराक पिलाने वाले लोगों पर हुए हमले के बाद इसके सीमा पार कर भारत में भी फैलने का खतरा बढ़़ गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार पाकिस्तान, सीरिया तथा कैमरून ने हाल ही में पोलियो वायरस को अफगानिस्तान, इराक और भूमध्यवर्ती गिनी में फैलाने में सहयोग दिया है।
 डॉ यादव का कहना है कि स्वास्थ्य कर्मचारी अन्य हितधारकों के साथ किसी तरह की सुस्ती नहीं बरत सकते। उनका कहना है कि खसरा, डिप्थीरिया, टिटनेस तथा टी.बी. जैसी बीमारियों को रोकने के लिए उसी उत्साह से टीकाकरण कार्यक्रम चलाना होगा जिस उत्साह से पल्स पोलियो अभियान में चलाया गया। उन्होंने बताया कि बाहर से आकर बसने वाले लोगों के क्षेत्रों तथा अधिक जोखिम वाले क्षेत्रों में विशेष टीकाकरण सत्र आयोजित किए जाते हैं।
आज मुरादाबाद जिले में 271 से अधिक सीएमसी (कम्‍यूनिटी मोबिलाइजेशन को- ऑर्डिनेटर)1521 आशा कर्मियों और अन्य हित धारकों के साथ मिलकर जिले में अधिक बच्चों के टीकाकरण अभियान में लगे हैं। आशा कर्मी को नियमित टीकाकरण अभियान में एक सत्र के लिए 150 रूपए दिए जाते हैं। नियमित टीकाकरण वैकल्पिक टीका डिलीवरी को मजबूती प्रदान करने में सेवा देने के लिए आशा कर्मी को प्रति सत्र 75 रू. भी दिए जाते हैं। एक वर्ग तक की आयु के बच्चे को पूर्ण टीकाकरण के लिए आशा कर्मी के 100 रूपए प्रति शिशु और 2 वर्ष की आयु के बच्चे को पूर्ण टीकाकरण के लिए 50 रूपये प्रति शिशु दिया जाता है। 
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बच्‍चों का टीकाकरण करती स्‍वास्‍थ्‍य कार्यकर्ता
जहां तक सीएमसी का प्रश्न है वह स्थानीय स्तर पर सक्रिय गतिविधियां चलाने के अलावा नूरजहां जैसी सीएमसी समुदाय को संगठित कर और घर-घर जाकर बच्चों का पता लगाती है। नूरजहां जैसे सीएमसी समुदाय के प्रभावशाली लोगों जैसे इमाम या शिक्षक सहित ग्राम स्तर के नेताओं से संपर्क साधते हैं। सीएमसी टीकाकरण स्वास्थ्य शिविर आयोजित करते हैं और उसके आयोजन में सहायता देते हैं। यूनिसेफ द्वारा नियुक्त और प्रशिक्षित सीएमसी का चुनाव समुदाय से ही किया जाता है। वे बच्चों, नवजात शिशुओं, गर्भवती माताओं की खोज करते हैं और उनके टीकाकरण की जरूरतों का मूल्यांकन करने के साथ-साथ जागरूकता फैलाकर आशा कर्मियों के प्रयास में मदद करते हैं। इसके बाद डाटा बैंक टीकों की उगाही के लिए सहायक नर्स मिड वाइफ (एएनएम) जैसे स्वास्थ्य कर्मियों के साथ आकड़ें साझा करते हैं इस काम में आशा तथा आंगनवाड़ी कर्मियों की मदद लेकर संस्थागत डिलीवरी तथा स्तनपान के बारे में जागरूकता फैलायी जाती है। टीकाकरण के दिन सीएमसी बच्चों को टीका केन्द्र तक लाने के लिए घर-घर जाते हैं।
 
अभियान की गति को बनाए रखने के लिए धार्मिक नेताओं तथा गांव के प्रभावशाली व्यक्तियों से आग्रह करते हैं कि वह अपने बच्चों का टीकाकरण सुनिश्चित करें। नियमित टीकाकरण से एक दिन पहले दिनगरपुर के इमाम मोहम्मद युसूफ ने गांव के लोगों से यह सुनिश्चित करने की अपील की थी कि वह अपने बच्चों को टीकाकरण शिविरों तक ले जाएं। इसका परिणाम यह हुआ कि महिलाएं अपने बच्चों को टीकाकरण केन्द्र लेकर पहुंचीं। अख्तरी अनेक महिलाओं की तरह अपनी पोती को गोद में लेकर टीकाकरण केन्द्र पहुंची। अख्तरी ने स्वीकार किया की कि इमाम जैसे सम्मानित लोग या शिक्षित लोग जब अभियान का हिस्सा बनते हैं तो अंतर आता है, उनकी आशंका और डर खत्म होता है।
लेकिन अभी भी कई परिवार है जिन्हें टीकाकरण को लेकर गलतफहमी है लेकिन ऐसे परिवारों की संख्या लगातार कम हो रही है। उदाहरण के लिए महमूदपुर माफी गांव में आशा कर्मी पायल और गांव के सीएमसी चमनदेश, रहिशी को यह समझाने के लिए उसके पास कई बार गए कि तीन महीने के उसके पोते असद को नियमित टीकाकरण के लिए ले जाना कितना आवश्यक है। लेकिन रहिशी अड़ी हुई थी। वह बोली असद के छोटे भाई (ढाई वर्ष) का वज़न टीकाकरण के बाद बढ़ नहीं पाया है और टीका लगने के बाद वह अपने बच्चे को अधिक समय तक रोने नहीं दे सकती। टीका लगने के बाद बच्‍चा पूरी रात चिल्लाएगा और घर में कोई व्यक्ति सो नहीं पाएगा
रहिशी ने टीकाकरण का भारी विरोध किया और अपने पोते को छूने नहीं दिया। जब गांव के प्रभावशाली व्यक्ति उसे समझाने आए तो वह और उसका पति सहमत हुआ। अंतत: वह झुकी और उसके बच्चे को गांव के टीकाकरण शिविर में ले जाया गया।
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गांव के प्रभावशाली व्‍यक्ति माताओं को टीकाकरण का महत्‍व समझाते हुए
चमनदेश कहते हैं कि ऐसे कुछ मामलों को छोड़कर टीकाकरण को लेकर कोई विरोध नहीं होता क्योंकि लोग यह जानते हैं कि बच्चों के लिए यह अच्छा है।
22.6 मिलियन से अधिक नवजात शिशु नियमित रूप से टीकाकरण के दायरे में नहीं आ पाये हैं और इनमें से आधे से अधिक बच्चे भारत- इंडोनेशिया तथा नाइजीरिया के हैं।
टीकों की अपर्याप्त आपूर्ति, स्वास्थ्य कर्मियों की कमी तथा अपर्याप्त राजनीतिक तथा वित्तीय समर्थन के कारण राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम पूरा नहीं होते। टीकों के बारे में जानकारी की कमी की वजह से वयस्‍क लोग न तो खुद के बच्‍चों को टीका लगवाते हैं और न ही दूसरों के बच्‍चों को लगाने देते हैं।
बच्चों की संख्या तथा भौगोलिक पहुंच के हिसाब से देखे तो भारत में विश्व का सबसे बड़ा टीकाकरण कार्यक्रम चलता है। इसके बावजूद पांच वर्ष से कम आयु के 1.4 मिलियन बच्चों की प्रतिवर्ष मृत्यु होती है। इन बच्चों की मृत्यु निमोनिया, डायरिया, कुपोषण तथा सेप्सीस जैसी नवजात शिशुओं की बीमारियों के कारण होती है। यह बीमारियां रोकी जा सकती हैं। इनकी रोकथाम का सबसे कारगर तरीका है नियमित टीकाकरण यह कहा जाता है कि सार्वजनिक क्षेत्र के यह स्वास्थ्य अभियान की सफलता से केवल भारत में प्रतिवर्ष चार लाख बच्चों को मरने से बचाया जा सकता है।
डॉक्टर संजीव यादव कहते हैं कि नियमित टीकाकरण को उसी उत्साह के साथ जारी रखने की जरूरत है जिस उत्साह के साथ पल्स पोलियो अभियान शुरू किया गया था। (PIB)
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