Friday, January 31, 2014

पाकिस्तान में जारी है हिन्दू लड़कियों का अपहरण और धर्मांतरण

अभी भी मदरसे में है अपह्रत पूजा-परिवार को नहीं मिला इन्साफ 
सिंध पाकिस्तान में पूजा का अपहरण--जबरदस्ती मुस्लिम भी बनाया 
हथियारों के बल पर कबूल कराया इस्लाम
लुधियाना: 30 जनवरी 2014 (रेकटर कथूरिया): कभी जनाब साहिर लुधियानवी साहिब ने लिखा था,
यह फोटो:तरुण भारत से साभार 
सिंध (पाकिस्तान) में
धर्मांतरण की नयी शिकार पूजा 
पर वोह जंग का माहौल था और वोह हालात भी जंग का ही अंजाम थे लेकिन आज हम जिस युग में रह रहे हैं उसमें विकास के दावे होते हैं दोस्ती की बातें होती हैं--और लगता है जैसे आज का इंसान देवता बन गया है लेकिन वास्तविकता यह है कि आज रोटी की जंग ने भाई को इतना बेबस कर दिया है कि उसकी बहन को दिन दहाड़े उठा लिया जाता है। सिंध पाकिस्तान में हिन्दू परिवारों के साथ यह एक आम सी बात हो गयी है।   मार्च 2012 में पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि सिंध में हर महीने करीब 20 से 25 लड़कियों का जबरदस्ती धर्म परिवर्तन किया जा रहा है। इस तरह के मामलों में वहाँ तो क्या होना था यहाँ भी कुछ नहीं होता। हिन्दोस्तान के मीडिया या यहाँ के हिन्दू संगठन इस पर अखबारी बयान भी नहीं देते। समाज की मुजरिमाना ख़ामोशी के कारण इस तरह के मामलों में लगातार बढ़ोतरी जारी है। ही में 17 जनवरी 2014 के दिन पूजा नाम की एक लड़की को उसकी शादी के केवल दो दिन पूर्व भरे बाज़ार में से उस समय उठा लिया गया जब वह अपनी शादी के कपड़े सिलवाने एक बुटिक में जा रही थी। 
आयोग ने संवाददाताओं को बताया था कि ऐसा करने वाले समाज विरोधी तत्व कानून में खामी का फायदा भी उठा रहे हैं। इसके साथ ही आयोग ने अधिकारियों से अपील भी की थी कि वे इस ओर फौरी तौर पर ध्यान दें। आयोग की तरफ से अमरनाथ मोतूमेल ने बहुत ही स्प्ष्ट शब्दों में कहा था कि यह धर्म परिवर्तन पिछले 20 महीनों में हुए हैं। इसमें नाबालिग लड़कियों से लेकर विवाहित महिलाएं तक शामिल हैं। 
आयोग ने उन दिनों घटित हुए रिंकल कुमारी के एक बहु चर्चित मामले का हवाला भी दिया था।
उन दिनों 18 वर्षीय रिंकल कुमारी के जबरदस्ती धर्म परिर्वतन का मामला उजागर होने के बाद यह मुद्दा सामने आया था। रिंकल के परिवर का भी यही कहना था कि उसे अगवा किया गया और फिर उसका जबरदस्ती धर्म परिर्वतन किया गया।
इस सारे शोर शराबे के बावजूद न तो  हुआ और न ही यहाँ कुछ हलचल हुयी। 
पूजा की मां और भाई दलीप 
 लगता है कि लड़कियों के लिए यह ज़मीन लगातार तंग होती जा रही है। उन पर हर रोज़ कहीं न कहीं कहर टूटता है। जिस तरह फरीदकोट में श्रुति को दिन दिहाड़े उठाया जाता है, अमृतसर में बेटी की इज़त  बचाने आए एएसआई को  दिनदिहाड़े गोली मार दी जाती है।  दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता जैसे शहरों में किसी भी लड़की को उठाना एक आम सी बात हो गयी है उसी तरह गुंडागर्दी का यह शर्मनाक नाच वहाँ सिंध पाकिस्तान में भी हो रहा है। वहाँ लड़की को उठाकर सबसे पहले उसका मज़हब तब्दील किया जाता है और उसके बाद उसका निकाह पढ़ा दिया जाता है। नया मामला पूजा का है।  वहाँ बाज़ार से एक हिन्दू लड़की पूजा को हथियारों के ज़ोर पर उठा लिया गया और पास ही के एक मदरसे में ले जाकर उसे मुसलमान बना दिया गया। न तो वहाँ की पुलिस ने इस गंभीरता से लिए और न ही वहाँ के मीडिया ने। पूजा के बेहाल और बेबस परिवार की  निगाहें अभी भी अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की तरफ आशा भरी नज़रों से देख रही हैं।  दो सप्ताह गुज़र जाने के बाद भी पूजा अभी तक आज़ाद नहीं हो सकी। उसे मदरसे के होस्टल में रख कर दीनी तालीम दी जा रही है। सिंध (पाकिस्तान) से आई यह खबर बहुत उदास करने वाली है। 
यह तस्वीर तरुण भारत से साभार 
उम्र केवल  16 बरस।  नाम पूजा। कसूर हिन्दू होने के बावजूद पाकिस्तान में रहना और वह भी लड़की हो कर। गौरतलब है कि जिस दिन पूजा अपनी शादी के कपड़े सिलवाने एक boutique  में महिला दर्जी के पास जा रही थी उस दिन उसे रास्ते में ही अगवा कर लिया गया और जबरदस्ती कराची में बनौरी टाऊन के एक मदरसे में ले जाकर उसे मुस्लिम बना दिया गया।  परिवार ने संघर Sanghar थाने में एफआईआर लिखवाई तो पुलिस ने थोड़ी सी कागज़ी खानापूरी  ज़रूर की पर उसके बाद कुछ भी नहीं। घटना 17 जनवरी 2014 की थी। कई दिनों की इंतज़ार के बाद भी  जब  परिवार ने देखा  कि पुलिस की तरफ से कोई एक्शन नहीं लिया जा रहा तो उन्होंने मामला मीडिया के पास उठाया। शुक्रवार 24 जनवरी 2014 को पाकिस्तान हिन्दू वेलफेयर पंचायत, MNA (नवाज़ लीग) के भवन दास, हिन्दू पंचायत मीरपुरखास, के प्रधान लछमन दास, हिन्दू पंचायत संघर के प्रधान हीरा लाल और लड़की के भाई दिलीप कुमार ने मिल कर यह सारा मामला प्रेस कल्ब मीरपुरखास  में मीडिया के सामने रखा।  आरोपी का नाम गौहर यूसफ जाई है जिसने  हथियारों की नोक पर पूजा का अपहरण किया। अभी तक वहाँ इस मामले में जूं तक नहीं सरकी। वह मुल्क तो चलो हिन्दू परिवारों को बेगाना लगने लगा है लेकिन जिसे वह अपना समझते थे वहां भी कुछ ऐसा नहीं हुआ जिससे उन्हें लगे कि हाँ हमारा भी कोई है। 
इस अपहरण और धर्मांतरण के बाद यूसफ ने आनन फानन में कानून की नज़र में धुल झौंकने के लिए ज़िला शिक्षा अधिकारी संघड़ से पूजा का झूठा जन्म प्रमाणपत्र भी ले  लिया जिसमें पूजा को 18 वर्ष कि दिखाया गया। इस प्रमाणपत्र के हाथ आ जाने के बाद तो यूसफ के हौंसले और  भी बुलंद हो गए हैं। 
आज समाज में छपी एक खबर की कतरन साभार 
लड़की के भाई दिलीप और परिवार के अन्य सदस्यों ने पाकिस्तान के परधानमंत्री, चीफ जस्टिस और अन्य उच्च अधिकारीयों को इस सरे मामले की जानकारी भेज कर इन्साफ की गुहार  लगाई है। परिवार ने मांग की है कि आरोपी को तुरंत गिरफ्तार किया जाये और पूजा को आज़ाद करवा के परिवार के पास वापिस भेजा जाये। लेकिन अभी तक वहाँ कागज़ी खानापूरी के बाद कुछ नहीं हुआ है। पूजा को अभी भी जामिया बनौरी कराची के मदरसे में रखा जा रहा है। पूजा के परिवार का साफ़ कहना है कि पुलिस उन्हें कोई सहयोग नहीं कर रही है। पूजा को दिन दिहाड़े उढ़ाने वाले गुंडे अभी भी सरेआम खुला घूम रहे हैं।  वहाँ के हिन्दू समाज के एक मंत्री नंद कुमार गोकलानी ने भी विस्तार से कहा है कि हम हिंदुयों के साथ अन्याय हो रहा है लेकिन वहाँ मंत्री तक भी कोई सुनवाई नहीं हो रही। गौरतलब है 19 जनवरी 2014 को पूजा की शादी थी और १७ जनवरी को उसे उठा लिया गया। ज़िला शिक्षा अधिकारी यार मोहम्मद बालादी से पूजा की  बड़ी उम्र का झूठा प्रमाणपत्र भी बनवा लिया गया। 
अगर यहाँ श्रुति के साथ गुंडागर्दी का नंगा नाच हुआ था तो वहाँ सिंध पाकिस्तान में पूजा के साथ यही कुछ हुआ। अब देखना है कि यह समाज लड़कियों के लिए किसी सुरक्षित जगह की तलाश कहाँ करता है।? कब रुकेगा यह सिलसिला? आखिर  में  फिर साहिर साहिब की पंक्तियाँ याद आ रही हैं: 
औरत ने जन्म दिया मर्दों को, 
मर्दों ने उसे बाजार दिया।  
जब जी चाहा कुचला मसला, 
जब जी चाहा दुत्कार दिया।  ---(साहिर लुधियानवी साहिब)
अगर इस संबंध में आपके पास भी कोई सामग्री/फोटो हो तो अवश्य भेजें। --रेकटर कथूरिया 

Tuesday, January 28, 2014

विकेंद्रीकरण के सन्दर्भ में ब्राजील का अध्ययन




Kanhaiya Jha                                                                                                  Tue, Jan 28, 2014 at 12:39 PM
(Research Scholar)

Makhanlal Chaturvedi National Journalism and Communication University,
Bhopal, Madhya Pradesh
बीसवीं शताब्दी में ब्राजील का आधुनिकरण तीन स्तंभों आर्थिक विकास, औद्योगीकरण, एवं शहरीकरण पर आधारित था. सन 1980 में कृषि एवं खनन (प्राथमिक क्षेत्र) में संलग्न जनता का प्रतिशत घटते-घटे केवल 30 रह गया था. गरीब एवं अति-गरीब का प्रतिशत 35 होने से ब्राजील उस समय सबसे अधिक असमान देश था. उसी सदी के 50 से 80 के दशक के बीच जिस तेज़ी से शहरी जनसंख्या बढी, शहरी सुविधायें उस रफ़्तार से नहीं बढीं. ब्राजील के सबसे संपन्न इलाके में साफ़ पानी की सुविधा 80 प्रतिशत, और सीवर की सुविधा केवल 55 प्रतिशत लोगों तक थी.
अस्सी के दशक तक जनता भी संगठित नहीं थी. जन-सुविधाओं के वितरण में राजनीतिक दलालों का बोल-बाला था. परंतू इसी दशक से ब्राजील में बदलाव शुरू हुआ. जनता ने पड़ोस-मंडलियाँ (Neighborhood Associations) बनाईं, जो की अ-राजनैतिक होने की वजह से सत्ता से स्वतंत्र थीं. यदि प्रशासन उन्हें जन-सुविधायें दे रहा था तो उनपर कोई उपकार नहीं कर रहा था. मजदूरों की पड़ोस-मंडलियों ने राजनीतिक पार्टियों के कब्ज़े वाली ट्रेड-यूनियनों के खिलाफ विद्रोह किया. अन्य मध्य-वर्गीय व्यावसायिक (Professional) समूहों जैसे डाक्टर, वकील आदि ने भी पड़ोस-मंडलियों की उपयोगिता को समझा. इन आन्दोलनों से सत्ता पर लम्बे समय से काबिज़ राजनीतिक पार्टी की हार हुई.
नयी पार्टी के आने से राज-तंत्र में दलाली का वातावरण बना रहा. वास्तव में कार्यपालिका 'सरकारी बजट' नाम के ब्रह्मास्त्र से सभी अपने एवं विपक्षी सांसदों को मुट्ठी में रखती थी. स्थानीय स्तर के प्रशासनिक अधिकारियों की मिली-भगत से सामाजिक क्षेत्र की एवं जन-सुविधा योजनाओं का पैसा जनता की बजाय मंत्रिओं एवं सांसदों की जेबों में पहुंचता था. इस कुटिल-तंत्र को तर्कसंगत तथा निरपेक्ष बनाने में कार्यपालिका योजना मंत्रालय का पूरा उपयोग करती थी.
सन 1990 में पहली बार ब्राजील में पहली बार सत्ता में आयी मजदूर पार्टी ने बजट बनाने में जनता को भागीदार बनाया. बजट बनाने की यह प्रक्रिया दो चरणों में होती थी. पहले चरण में अ-राजनैतिक पडोसी-संगठनों से विचार विमर्श होता था, तथा दूसरे चरण में स्थानीय चुने हुए जन-प्रतिनिधियों को शामिल किया जाता था. ये विचार-विमर्श सत्र के शुरू में ही पूर्ण कर लिए जाते थे. इनमें पिछले वर्ष में हुए कामों पर चर्चा होती थी तथा नए वर्ष के लिए प्रत्येक कालोनी में दी जाने वाली जन-सुविधाओं की प्राथमिकता तय की जाती थी.  
ब्राजील द्वारा आर्थिक विकास, औद्योगीकरण, एवं शहरीकरण पर आधारित विकास का प्रतिमान भी सही नहीं था. नयी सरकार ने सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखते हुए जन-सुविधाओं में खेल-कूद, विश्राम एवं मनोरंजन, स्वास्थय आदि को भी शामिल किया.  
बड़े शहरों में जन-सुविधाओं की कमी से कमज़ोर वर्ग की या तो गन्दी बस्तियां (slums) या फिर अनधिकृत कालोनियां बन गयीं थीं. अभी तक प्रशासन शहरों को विश्व-स्तरीय सुन्दर बनाने की योजना के अंतर्गत शहर से बाहर विस्थापित करते थे जहां पर सालों-साल ये बिना जन-सुविधाओं के रहते थे. नयी मजदूर पार्टी की सरकार ने अनाधिकृत कालोनियों को मान्यता दी तथा गंदी बस्तियों में भी जन-सुविधाओं का विस्तार किया.

भारत में भी सन 1993 में 73 वे तथा 74 वे संविधान संशोधन से देश में शासन का तीसरा स्तर जोड़ा गया था. आदिवासी क्षेत्रों को छोड़कर गाँवों में पंचायतें तथा शहरों में नगरपालिकाओं को चुनावों द्वारा बनाना राज्य सरकारों के लिए अनिवार्य था. परंतू शासन में जनता की भागीदारी दो दशकों के बाद भी नगण्य है. दिल्ली विधानसभा के दिसंबर 13 के चुनावों में एक नयी पार्टी ने शासन सम्भाला है जिन्होनें घोषणा की है कि वे प्रदेश में जनता का शासन स्थापित करेंगे. अन्य प्रदेशों के मुकबले राजधानी क्षेत्र होने से जनता में अपने अधिकारों को लेकर सजगता भी अधिक है. यदि दिल्ली प्रदेश के मुख्यमंत्री ब्राजील के अनुभवों को गहराई से समझ अभी से प्रयास करें तो अगले वर्ष के बजट में प्रदेश की जनता का सहयोग सुनिश्चित कर सकते हैं.
लेखक कन्हैया झा से सम्पर्क:"+919958806745, (Delhi) +918962166336 (Bhopal)
Email : kanhaiya@journalist.com
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Monday, January 27, 2014

सिंध पाकिस्तान में पूजा का अपहरण--जबरदस्ती मुस्लिम भी बनाया

Updated 27 Jan 2014 at 11:15 PM 
हथियारों के बल पर कबूल कराया इस्लाम
Ludhiana: 27 Jan 2014: (Rector Kathuria):  
लुधियाना: 24 जनवरी 2014 (रेकटर कथूरिया): लड़कियों के लिए यह ज़मीन लगातार तंग होती जा रही है। अगर फरीदकोट में  श्रुति को दिन दिहाड़े उठाया जाता है तो अमृतसर में बेटी की इज़त  बचाने आए एएसआई को  दिनदिहाड़े गोली मार दी जाती है। गुंडागर्दी का यह शर्मनाक नाच वहाँ पाकिस्तान में भी हो रहा है। वहाँ बाज़ार से एक हिन्दू लड़की पूजा को हथियारों के ज़ोर पर उठा लिया गया और पास ही एक मदरसे में ले जाकर उसे मुसलमान बना दिया गया। न तो वहाँ कि पुलिस ने इस गंभीरता से लिए और न ही वहाँ के मीडिया ने। पूजा के बेहाल और बेबस परिवार की  निगाहें अब अंतर्राष्ट्रीय मीडिया कि और हैं। 
सिंध (पाकिस्तान) से आई यह खबर बहुत उदास करने वाली है। 
उम्र 16 बरस।  नाम पूजा। कसूर हिन्दू होने के बावजूद पाकिस्तान में रहना और वह भी लड़की हो कर। जिस दिन पूजा अपनी शादी के कपड़े सिलवाने एक boutique  में महिला दर्जी के पास जा रही थी उस दिन उसे रास्ते में ही अगवा कर लिया गया और जबरदस्ती कराची में बनौरी टाऊन के एक मदरसे में ले जाकर उसे मुस्लिम बना दिया गया।  परिवार ने संघर Sanghar थाने में एफआईआर लिखवाई तो पुलिस ने थोड़ी सी कागज़ी खानापूरी  ज़रूर की पर उसके बाद कुछ भी नहीं। घटना 17 जनवरी 2014 की थी। कई दिनों की इंतज़ार के बाद भी  जब  परिवार ने देखा  कि पुलिस की तरफ से कोई एक्शन नहीं लिया जा रहा तो उन्होंने मामला मीडिया के पास उठाया। शुक्रवार 24 जनवरी 2014 को पाकिस्तान हिन्दू वेलफेयर पंचायत, MNA (नवाज़ लीग) के भवन दास, हिन्दू पंचायत मीरपुरखास, के प्रधान लछमन दास, हिन्दू पंचायत संघर के प्रधान हीरा लाल और लड़की के भाई दिलीप कुमार ने मिल कर यह सारा मामला प्रेस कल्ब मीरपुरखास  में मीडिया के सामने रखा।  आरोपी का नाम गौहर यूसफ जाई है जिसने  हथियारों की नोक पर पूजा का अपहरण किया। 
यूसफ ने कानून की नज़र में धुल झौंकने के लिए ज़िला शिक्षा अधिकारी संघड़ से पूजा का झूठा जन्म प्रमाणपत्र  लिया जिसमें पूजा को 18 वर्ष कि दिखाया गया। 
लड़की के भाई और परिवार के अन्य सदस्यों ने पाकिस्तान के परधानमंत्री, चीफ जस्टिस और अन्य उच्च अधिकारीयों को इस सरे मामले की जानकारी भेज कर इन्साफ की गुहार  लगाई है। परिवार ने मांग की है कि आरोपी को तुरंत गिरफ्तार किया जाये और पूजा को आज़ाद करवा के परिवार के पास वापिस भेजा जाये।

अगर यहाँ श्रुति के साथ गुंडागर्दी का नंगा नाच हुआ था तो वहाँ सिंध पाकिस्तान में पूजा के साथ यही कुछ हुआ। अब देखना है कि यह समाज लड़कियों के लिए किसी सुरक्षित जगह की तलाश कहाँ करता है।? --रेकटर कथूरिया 

आम आदमी पार्टी पर सवालों की बौछार जारी

Sun, Jan 26, 2014 at 7:14 PM 
पार्टनर तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है?  -प्रमोद रंजन 
इमां मुझे रोके हैंजो है खींचे मुझे कुफ्र
काबा मेरे पीछे हैकलीसा मेरे आगे! 
मिर्जा गालिब
पार्टनर तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है?’ हिंदी के महान कवि मुक्तिबोध 1960 के दशक में अपने मित्रों से यह सवाल उनकी विचारधारा के संबंध में पूछते थे। आज हम यही सवाल आम आदमी पार्टी (आप) से पूछना चाहते हैं। 
लगभग एक साल पहले बनी इस पार्टी को गत दिसंबर में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में अप्रत्याशित सफलता मिली। इसकी झोली में कुल 30 फीसदी वोट गए तथा इसने दिल्ली की कुल 70 विधानसभा सीटों में से 28 पर जीत हासिल की। वर्ष 2008 के दिल्‍ली विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को 14.5 फीसदी वोट मिले थे और उसके दो उम्मीदवार जीते थे। बसपा को इस बार बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद थी लेकिन उसे महजफीसदी वोट मिले और अपनी सीटों से भी हाथ धोना पड़ा। इसके विपरीत, आप’ ने दिल्ली में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 12 में से सीटों पर जीत हासिल की। दिल्ली में दलित और अन्य पिछडा वर्ग ने आम आदमी पार्टी का बड़े पैमाने पर साथ दिया। आप’ इसे न सिर्फ स्वीकार कर रही है बल्कि घोषित रूप से इससे उत्साहित है और इसी बूते लोकसभा चुनावों में उतरने की तैयारी कर रही है।

दिल्ली में सरकार बनाने में आम आदमी पार्टी ने सामाजिक समीकरणों का भी ख्याल रखा है। 28 दिसंबर, 2013को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ छःह मंत्रियों ने शपथ लीजिनमें से दो राखी बिरलान व गिरीश सोनीदलित समुदाय के हैं। सोमनाथ भारती बिहार के ओबीसी हैं। अल्पसंख्यक समुदाय के सत्येंद्र जैन को भी इनके साथ मंत्री बनाया गया। पार्टी का कोई भी मुसलमान उम्मीदवार नहीं जीता इसलिए वह मंत्रिमंडल में किसी मुसलमान को जगह नहीं दे सकती थी। 

इस प्रकार आप की सरकार ने भारतीय राजनीति में जातिसंप्रदाय के आधार पर मंत्रिमंडल गठित करने की रूढ़ि का पालन किया तथा अपने दलित-बहुजन कार्यकर्ताओं के माध्यम से इन तबकों के बीच इसका प्रचार भी किया।

लेकिन वास्तविकता क्या है? ‘आप’ के दलित-ओबीसी मंत्री जाति’ को किसी विमर्श के काबिल नहीं मानते। वे फुले-आम्बेडकर-लोहियावाद से न सिर्फ अपरिचित हैं बल्कि इस तरह के विमर्श को देश और कथित आमआदमी की बेहतरी में बाधा मानते हैं। 
26 वर्षीय मंत्री राखी बिरला खुद को दलित नेता मानने से इंकार करती हैं। वे जाति से संबंधित हर सवाल पर असहज हो जाती हैं तथा उससे बचने की हरसंभव कोशिश करती हैं। जाति विमर्श पर उनकी समझ का एक नमूना मंत्री बनने के बाद एनडीटीवी द्वारा लिए गए उनके एक इंटरव्यू में दिखा। इसमें जाति के सवाल पर राखी ने कहा कि मुझे गर्व है कि मैं वाल्मीकि समाज की बेटी हूंजिस समाज के लोग सुबह  छःह बजे उठकर अपना घर नहीं साफ करते लेकिन दूसरों के घरों की सफाई करते हैं...आप लोग इस जाति-धर्म की राजनीति से ऊपर उठिए!

आप के दूसरे दलित मंत्री गिरीश सोनी की राजनीतिक पृष्ठभूमि भारत की जनवादी नौजवान सभा’(डीवाईएफआइ) नामक कम्युनिस्ट संगठन की रही है। यह संगठन उच्च जातियों के आर्थिक रूप से कमजोर तबकों के लिए’ आरक्षण की मांग करता रहा है। खुद गिरीश का राजनीतिक सफर भी बिजली-पानी’ आंदोलन तक सीमित रहा है। उनके सरोकारों में दलित’ कहीं से भी शामिल नहीं हैं। 

नई सरकार के ओबीसी मंत्री सोमनाथ भारती वैश्‍य समुदाय की बरनवाल जाति से आते हैं। यह जाति उनके गृह राज्य बिहार में ओबीसी’ सूची में हैजबकि दिल्ली समेत अधिकांश राज्यों में सामान्य सूची’ में है। भारती का सामाजिक न्याय की किसी भी वैचारिक धारा से दूर-दूर तक का वास्ता नहीं रहा है। वे पेशे से वकील हैं लेकिन भारत के संविधान और न्यायपालिका पर वे भरोसा नहीं जतलाते। वे समस्याओं के समाधान के लिए डायरेक्ट एक्‍शन’ के हिमायती हैं। मंत्री बनने के बाद गत 16 जनवरी की आधी रात को उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं के साथ दिल्ली में  अफ़्रीकी महिलाओं-पुरुषों को कथित रूप से  ड्रग्स का उपयोग करने और वेश्‍यावृत्ति के आरोप में कई घंटों तक बंधक बनाए रखा तथा इनमें एक को सार्वजनिक रूप से मूत्र का नमूना देने के लिए विवश किया। दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट ने उन्हें वकील के रूप में एक मुकदमे के दौरान सबूतों से छेडछाड का भी आरोपी पाया है। वास्तव में,  अन्य आप विधायकों-मंत्रियों की ही तरह वे भारतीय मध्यमवर्ग की विचारहीन और लंपट तत्वों की रॉबिन हुड नुमा छवि की चाहत को संतुष्‍ट करते हैं ।

आप के संविधान में  प्रावधान है कि पार्टी संगठन के जिलाराज्य और राष्ट्रीय स्तर तक की सर्भी इकाइयों मेंवंचित सामाजिक समूहों,  जैसे कि अनुसूचित जातिअनुसूचित जनजातिपिछड़े वर्गों और अल्पसंख्यक’ के कम से कम सदस्य अनिवार्य रूप से होंगे। यदि इन समूहों में से किसी का प्रतिनिधित्व कम हो तो उन्हें उचित प्रतिनिधित्व देने के लिए संबंधित कार्यकारिणी अधिकतम सदस्यें तक सहयोजित (को-ऑप्ट) करेगी। यदि सहयोजित सदस्य पहले से ही पार्टी के सक्रिय सदस्य नहीं हैंतो उन्हें पार्टी का सक्रिय सदस्य  समझा जाएगा। सहयोजन के बादएउनके अधिकार कार्यकारिणी के निर्वाचित सदस्यों के समान होंगे।’ 

दलित-बहुजन कोण से देखें तो आम आदमी पार्टी की लिखत-पढत’ में सकारात्मक पक्ष और भी हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान जारी संकल्प पत्र’ में सामाजिक न्याय नाम से एक लंबा खंड रखा गया है। इस खंड में सामाजिक न्याय की सैद्धांतिक अवधारणाओं पर खरे उतरने वाले अनेक लोकलुभावन वादे हैं। इनमें एक प्रमुख वादा यह है कि पार्टी की सरकार बनने पर ‘दिल्ली सरकार के तहत आने वाली नौकरियों व षिक्षण संस्थाओं में अनुसूचित जातिजनजाति एवं अन्य पिछड़ी जातियों के आरक्षण को कायदे से लागू किया जाएगा।
हम सब यह जानते हैं कि आम आदमी पार्टी’ का जन्म अप्रैल, 2011 में शुरू हुए अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के दौरान एक एनजीओ के गर्भ से हुआ। उस आंदोलन का रूख स्पष्ट रूप से आरक्षण विरोधी था तथा उसके नेता और समर्थक इस मत के थे कि आरक्षण सबसे बड़ा भ्रष्टाचार है। उस दौरान आंदोलन के मुख्य नेता अन्ना हजारेशांतिभूषणरामजेठमलानीसंतोश हेगड़ेकिरण बेदी और अरविंद केजरीवाल थे। इनमें से दोए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश संतोष हेगड़े और अरविंद केजरीवाल सीधे तौर पर आरक्षण विरोधी विद्यार्थियों के संगठन यूथ फॉर इक्वलिटी के समर्थक थे। न्यायाधीश हेगडे तो अपने कार्यकाल के दौरान आरक्षण विरोधी फैसले देने और उस पर अनावश्‍यक टिप्पणियां करने के लिए कुख्यात रहे हैं। 

‘आप’ की जन्‍मकथा

ऐसे पुख्ता संकेत हैं कि गोविंदाचार्य और योगगुरु रामदेव द्वारा प्रस्तावित काला धन वापस लाओ आंदोलनऔर केंद्र सरकार के तत्कालीन मंत्रियों के बडे घोटालों से ध्यान हटाने के लिए कांग्रेस ने एक रणनीति के तहत उस आंदोलन को प्रायोजित किया था तथा उसे मीडिया हाइप’ देने की कोशिश की थी। इसमें वह सफल भी हुई (देखेंअन्ना से अरविंद तक संपादक: संदीप मीलअनन्य प्रकाशनदिल्ली, २०१३ में संकलित मीडिया और अन्ना का आंदोलन शीर्षक से मेरा लेख)। बाद में, आंदोलन के गर्भ से निकली पार्टी कांग्रेस के लिए ही भस्मासुर साबित हुई । यह अनायास नहीं है कि अन्ना ने इस नयी पार्टी से खुद को अलग कर लिया।

बहरहालभारत के संविधानसंसद और उससे उपजे सामाजिक न्याय के हिमायती लोकतंत्र को चुनौती देने वाला शहरी मध्यमवर्गीय अन्ना आंदोलन अब पृष्ठभूमि में जा चुका है और आम आदमी पार्टी के रूप में एक नया राजनीतिक दल हमारे सामने हैजिसने भारतीय राजनीति में धमाके के साथ प्रवेश किया है और इसी संविधान और संसद के भीतर अपनी जगह तलाशने की कोशिश कर रहा है। इसे भारतीय लोकतंत्र की सर्वस्वीकार्यता की दृष्टि से एक शुभ संकेत माना जा सकता है। लेकिन इस पार्टी के मूल सामाजिक आधार और मंशा को देखते हुए इसके कार्यकलापों पर पैनी नजर रखने की जरूरत है। क्या इन्होंने सचमुच भारतीय लोकतंत्र और इसकी सामाजिक न्याय की अवधारणा को स्वीकार कर लिया है या कहीं बाहर से वार कर हार चुका दुष्मन सिर्फ वेश बदलकर तो भीतर नहीं आ गया है?

ऊपर हमने आप द्वारा उनके विभिन्न दस्तावेजों में किए सामाजिक न्याय के संबंध में किए गए दावोंनीतियों को देखा। आप’ के वे दावे और नीतियां सिर्फ नयनाभिराम और कर्णप्रिय हैं। पार्टी ने अपने इन दावों को हाशिए पर रखा है तथा अपने राजनीतिक एजेंडे में सिर्फ नौकरीपेशा मध्यम वर्ग की नागरिक सुविधाओं और देशी व्यापारियों के हितों को जगह दी है। कम से कम अभी तक तो यही लगता है। दिल्ली में सरकार बनाने की कशमकश के दौरान आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस और भाजपा से 18 सवाल पूछे थे और कहा था अगर इन सवालों पर दोनों पार्टियां उसे समर्थन का भरोसा दें तभी वे सरकार बनाएंगे। ये सवाल वीआईपी कल्चर बंद करनेजन लोकपाल विधेयक पारित करनेबिजली कंपनियों का ऑडिट करवानेअनाधिकृत कॉलोनियों को नियमित करनेऔद्योगिक क्षेत्र को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करवानेखुदरा बाजार में विदेशी निवेश का विरोध करनेशिक्षा व्यवस्था ठीक करने आदि के संबंध में थे। इन सवालों में सामाजिक न्याय का सवाल कहीं नहीं था। अगरआप सामाजिक न्यायआरक्षण नियमों का पालन करने व सभी बैकलॉग नियुक्तियों को भरने सम्बन्धी अपने वायदों को पूरा करने के प्रति संकल्पबद्ध होती तो जाहिर है वह कांग्रेस और भाजपा से यह सवाल भी पूछती कि दिल्ली में सरकारी नौकरियों में आरक्षित तबकों का इतना बैकलॉग है कि अगर सिर्फ बैकलॉग पद भी भरे जाएं तो कई सालों तक सामान्य’ तबकों के लिए कोई  पद विज्ञापित  नहीं होगा। क्या आपलोग इस मुद्दे पर हमारा साथ देंगें?’

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने विधानसभा में अपने पहले भाषण के दौरान भावपूर्ण वक्तव्य दिया तथा अपनी पार्टी के  सभी राजनीतिक एजेंडे एक बार फिर गिनवाएलेकिन सामाजिक न्याय का एजेंडा उनके इस वक्तव्य में  कहीं नहीं था। 

आरक्षण के मुद्दे पर कहाँ खड़ी है 'आप

आरक्षण  के मुद्दे पर आम आदमी पार्टी’ एक साथ दो विपरीत  मुखौटों के साथ दिखती है। अन्ना आंदोलन के दौरान अरविंद केजरीवाल इस आशय की बात कहते नजर आते थे कि आरक्षण मिलना चाहिए लेकिन संपन्न दलितों को नहीं। इसके अलावा जिसको एक बार आरक्षण का लाभ मिल जाएउसे दुबारा न मिले (वे आर्थिक आधार पर आरक्षण के पक्षधर रहे हैं)। आम आदमी पार्टी बनाने के बाद आरक्षण जैसे संवेदनषील मुद्दे पर उन्होंने चुप्पी साधे रखी है। इस प्रकार जहां कथित ऊंची जाति के लोगों को यह संदेश देने की कोशिश की कि उनकी पार्टी आरक्षण की व्यवस्था को चुपचाप जड़-मूल से खत्म कर देगीवहीं आरक्षित तबकों को यह बताया कि उनकी भी मुख्य समस्या भ्रष्टाचारपानीबिजली और अन्य नागरिक सुविधाएं है, जिन्हें दूर करने के लिए वे कटिबद्ध हैं। 
लेकिन जब उत्तर प्रदेश में प्रोन्नति में आरक्षण के मामले ने तूल पकड़ा तो पार्टी के लिए कोई स्टैंड लेना अनिवार्य हो गया तो पार्टी ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए 15 दिसंबर, 2012 को अपने राजपूत नेता मनीष सिसोदियाको आगे किया। आरक्षण पर अब तक आप की वेबसाईट पर जारी इस एकमात्र आधिकारिक बयान में सिसोदिया ने प्रमोशन में आरक्षण का पुरजोर विरोध किया। उन्होंने कहा कि सरकारी नौकरी में प्रमोशन में रिजर्वेशन का शगूफा समाज को बांटने की कोशिश है...किसी सीनियर को नज़रंदाज़ कर जूनियर को रिजर्वेशन के आधार पर प्रमोट किया  जानो  तार्किक नहीं है। इससे माहौल खराब होगा।’ 

इसके विपरीतसामजिक न्याय के पक्षधर माने जाने वाले आप नेता योगेंद्र यादव ने गत जनवरी, 2014 को‘इकोनॉमिक टाइम्स’ से कहा है कि ‘हाल तक हमारी (आप) इस मामले में कोई स्पष्ट राय नहीं थी। परन्तु अब हमारी राय स्पष्ट है। हम वंचित समूहों को और अधिक आरक्षण दिलाने के लिए काम करेंगें।’ योगेंद्र यादव के इस बयान के संबंध में दो-तीन बातें गौर करने लायक हैं। पहली तो यह कि प्रमोशन में आरक्षण का विरोध करने के लिए आप’ ने राजपूत सिसोदिया को आगे किया और चूंकि लोकसभा चुनाव में जाने के लिए आरक्षण जैसे विषय पर अपना स्टैंड साफ करना आवश्‍यक हो गया तो इसका पक्ष लेने के लिए यादव’ योगेंद्र सामने आए। दूसरी बातयोगेंद्र यादव का यह बयान पार्टी का आधिकारिक वक्तव्य नहीं है। इसे पार्टी ने अपनी वेबसाइट पर जगह नहीं दी है। यह एक अखबार से की गई बातचीत के क्रम में कही गई बात’ है। तीसरे,  जब‘इकोनॉमिक टाइम्स’ ने इस संबंध में पार्टी के अन्य लोगों से बातचीत की तो उन्होंने इस पर कोई भी टिप्पणी करने से इंकार कर दिया। टिप्पणी करने से इंकार करने वाले वे लोग हैं जो बड़ी-बड़ी  नौकरियां छोडकरदेशसेवा का जज्बा लिए आप में शामिल हुए हैं और भारत में मेरिटोक्रेसी स्थापित करना चाहते हैं।

उत्तर भारत के विभिन्न हिस्सों से मिल रही सूचनाएं बताती हैं कि आप’ का प्रभाव तेजी से बढ रहा है। बडी संख्या में उसके कार्यकर्ता व समर्थक बन रहे हैं। विभिन्न राज्यों में अनेक ईमानदार बहुजन नेता भी उसकी ओर आकर्षित हो रहे हैं। ये वे लोग हैंजो अपने राजनतेओं और राजनीतिक पार्टियों के पाखंड और भाई-भतीजावाद से त्रस्त होकर राजनीतिक हाशिये पर पडे थे। आप’ को अगर भारतीय राजनीति में जगह बनानी है तो यह बिना बहुजन तबकों के सहयोग के न हो सकेगा। दिल्ली में उनकी जीत की वजह भी इसी तबके से मिला व्यापक समर्थन रहा है। आरक्षण का समर्थन करने पर जब योगेंद्र यादव को मीडिया ने घेरने की कोशिश की तो उन्होने हेडलाइंस टुडे’ पर कुछ रोचक दावे किए और कई अनूठी जानकारियां दींजिन पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है। एक तो उन्होंने साक्षात्कारकर्ता के इस दावे का पुरजोर खंडन किया कि आप’ मध्यमवर्ग की पार्टी है। साक्षात्कारकर्ता ने जब उनसे पूछा कि क्या आरक्षण जैसी व्यवस्था का समर्थन करने से आप’ के परंपरागत समर्थक नाराज नहीं होंगेतो योगेंद्र ने बताया कि पार्टी को स्लम कॉलोनियोंअनाधिकृत कॉलोनियों तथा दिल्ली के ग्रामीण क्षेत्रों से सबसे अधिक वोट मिले हैंजबकि पॉश’ इलाकों से बहुत कम वोट मिले हैं।

योगेंद्र का यह बयान पार्टी के भीतर और बाहर चल रही रस्साकशी को बयान करता है। वास्तव मेंइन दिनों उत्तर भारत के राजनीतिक आकाश में कई किस्म की रस्साकशी चल रही है। एक ओर बहुजन तबकों के बौद्धिक और सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता आप’ और अपनी’ विभिन्न राजनीतिक पार्टियोंबसपासपाराजदजदयू,लोजपा आदि के नेतृत्व की तुलना करते हुए खुद को असमंजस में पा रहे हैं। दूसरी ओरखुद आम आदमी पार्टीभी यह तय नहीं कर पाई है कि वह किस ओर जाए। एक तरफ आरंभिक तौर पर उसे पार्टी के रूप में स्थापित करने वाले मेंटर और उच्चवर्णीय कार्यकर्ता हैंजो मौजूदा धूल-धुसरित लोकतंत्र की जगहसरकारी बाबुओं के भ्रष्टाचार से मुक्त साफ-सुथरी मेरिटोक्रेसी चाहते हैंतो दूसरी तरफउनके लिए सत्ता की सीढी बन सकने वाले बहुजन वोटर हैंजो सदियों से उनके साथ हुए अन्याय के मुआवजे के तौर पर अफिरर्मेटिव एक्‍शन पर आधारित समान अवसर वाली व्यवस्था के हिमायती हैं। 
महान उर्दू शायर गालिब के शब्दों में कहें तो देखना यह है कि वे इमां और कुफ्र में किसे चुनते हैंवास्तव में देखना तो यह भी है कि अंततः वे किस धारा को अपना इमां मानते हैं और किसे कुफ्र?  सब इंतजार में हैं कि ऊंट किस करवट बैठेगाकिसी करवट बैठेगा भी या खुद पर लाद ली गयी असंख्य उम्मीदों की भार से दिल्ली से बाहर निकलते ही दम तोड़ देगा
(फारवर्ड प्रेस के फरवरी, 2014 अंक में प्रकाशित)
प्रमोद रंजन फारवर्ड प्रेस के सलाहकार संपादक हैं।

Sunday, January 26, 2014

PPC ने गणतंत्र दिवस के अवसर पर दोहराया संकल्प

Sun, Jan 26, 2014 at 8:56 PM
पब्लिक-पुलिस सहयोग को और अधिक बढ़ाने पर दिया जायेगा ज़ोर 
लुधियाना: 26 जनवरी 2014: (सतपाल सोनी//रवि नंदा//पंजाब स्क्रीन):

समाज में बहुत सी समस्याएं लगातार बढ़ रही हैं केवल पुलिस और पब्लिक के दरम्यान तालमेल की कमी के कारण। कभी लोग आगे आने से झिजक  जाते हैं तो कभी समाज विरोधी तत्व उन्हें डरा देते हैं। पुलिस में भी कुछ लोग खराब हो सकते हैं लेकिन उन्हें आधार बना कर पुलिस के  फैलाई जाती कहानियां पुलिस और जनता की आईएस दूरी को लगातार बढ़ा रही हैं। तालमेल की इस बढ़ती हुई कमी को दूर करने के मकसद को लेकर केवल एक वर्ष पूर्व बनी संस्था पब्लिक पुलिस कोआपरेशन (पीपीसी) इस दूरी को कम करने में लगातार सफल हो रही है। यह दावा इस संगठन की एक आपात बैठक में इसके प्रमुख कारकुनों ने किया।गणतंत्र दिवस के अवसर पर आयोजित इस विशेष बैठक में एक बार फिर यह संकल्प दोहराया गया कि इस संस्था के सदस्य न तो कभी खुद कोई गलत काम करेंगे और न ही किसी गलत कार्य  को सहन करेंगे। 
इस अवसर पर पीपीसी के अध्यक्ष अमरदीप सिंह, उपाध्यक्ष चरणजीत सिंह, कार्यकारिणी सदस्य रवि नंदा, नरेन्द्रपाल सिंह, राजदीप, राकेश कुमार, नवनीत सिंह, नरेंद्र सिंह, हरजीत सिंह नागपाल, सर्बजीत सिंह, नितिन जैन, मनू और कई अन्य सदस्य  भी शामिल हुए।  बैठक में कानून के अंतर्गत मिली सुविधायों की चर्चा की गयी और इन्हें लागू करने करने की बात सुनिश्क हित करने का संकल्प भो दोहराया गया। 
पीपीसी ने कहा कि अनगिनत कुर्बानियां दे कर मिली आज़ादी के  सभी सुख आराम लोगों तक तभी सहजता से पहुँच सकते हैं अगर भ्रष्ट, जमाखोर, कला बारारी करने वाले समाज वोरोधी तत्व कानून के कटहरे मैं पहुँच जाएं।  इन्हें कानून के शिकंजे तक पहुँचाने में पीपीसी कोई कोर कसर बाकी नहीं  छोड़ेगी। 

मानवाधिकारों की चर्चा कर रहे हैं मनीराम शर्मा अपने विशेष आलेख में

Sun, Jan 26, 2014 at 8:35 AM
उचित विश्राम व समय पर भोजनादि भी मानवाधिकार हैं
आवेदक राजेंद्र सिंह ने दिनांक 08/09/2010 से 10/09/2010 के बीच अपने आवासीय परिसर में आयकर विभाग के अधिकारियों द्वारा की गयी खोज और जब्ती की कार्यवाही के दौरान अपने मानव अधिकारों के उल्लंघन की शिकायत को लेकर बिहार मानवाधिकार आयोग से निवेदन किया| आवेदक की शिकायत थी कि वह अल्पसंख्यक सिख समुदाय से संबंध रखता है| उसने कहा कि पटना शहर में मीठापुर में आरा मिल व  लकड़ी का व्यापार कर वह अपनी आजीविका अर्जित करता था|  दिनांक  08/09/2010 को  श्री सौरभ कुमार, श्री सुमन झा , श्री कनकजी  और श्री अचुतन नामक आयकर विभाग के अधिकारीगण छह अन्य सहयोगियों के साथ उसके  घर आये और मुख्य गेट बंद कर दिया जोकि प्रवेश और निकास का एक मात्र रास्ता है| उन्होंने आवेदक और उपस्थित दूसरे लोगों के मोबाइल फोन ले लिये और छापे के दौरान उन्हें बाहर के किसी भी व्यक्ति से संपर्क करने की अनुमति नहीं दी| यहाँ तक कि उन्हें खाना पकाने के लिए भी अनुमति नहीं दी गयी| उन्होंने  महिलाओं सहित परिवार के सदस्यों के साथ दुर्व्यवहार किया| उन्होंने निर्भय होकर वहां धूम्रपान किया है, शिकायतकर्ता की  धार्मिक भावनाओं को चोट पहुँचाई है, तथा सिख गुरुओं और स्वर्ण मंदिर की तस्वीरों पर सिगरेट के टुकड़े  और सिगरेट के खाली पैकेट फेंक दिये| उन्हें शौचालय जाने की अनुमति भी नहीं दी गयी| आवेदक ने अपने वकील को बुलवाया किन्तु उसे वह  जगह छोड़ने के लिए विवश किया गया|  उन्होंने छापे के दौरान अन्य दंडात्मक कार्रवाई की धमकियों भी दी|  
उक्त के आलोक में आयोग द्वारा मुख्य आयकर आयुक्त बिहार को नोटिस जारी किया गया जो आगे आयकर महानिदेशक (अनुसंधान ) को भेज दिया गया | अंततः विभाग द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में आवेदक द्वारा किए गए आरोपों का खंडन किया गया| कई बार स्थगन के बाद अंत में आवेदक अपने वकील के साथ उपस्थित हुए और श्री विजय कुमार, अपर आयकर आयुक्त की उपस्थिति में प्रकरण दिनांक को 18/04/2011 को सुना गया| 
आयोग के समक्ष कार्यवाही में आवेदक ने  शिकायत में वर्णित आरोपों  दोहराया| उसने खोज और जब्ती की कार्यवाही की वैधता और औचित्य पर सवाल उठाया|  शिकायतकर्ता ने कहा कि उक्त सम्पूर्ण कार्यवाही मात्र आवेदक को परेशान करने के लिए की गयी है और अधिकारियों के इस  वैमनस्यपूर्ण कार्यवाही से भी संतुष्ट नहीं होने पर यह खोज और जब्ती की कार्यवाही आज तक जारी है| शिकायतकर्ता द्वारा यह जानकारी भी दी गयी कि विभाग ने आवेदक के खिलाफ कार्रवाई के लिए राज्य सरकार के वन विभाग और पंजीकरण विभाग से  भी संपर्क किया है| श्री विजय कुमार , विभागीय प्रतिनिधि ने आवेदक के आरोपों का खंडन किया|
दोनों पक्षों की दलीलों पर विचार के बाद आयोग ने महिला सदस्यों सहित अपीलार्थी की धार्मिक भावनाओं को आहत करने व परिवार के सदस्यों के साथ दुर्व्यवहार के संबंध में आरोप के तथ्यों के निर्धारण हेतु विचारण उचित समझा|   
सुनवाई के अनुक्रम में आयोग ने यह कहा कि खोज और जब्ती की कार्यवाही की वैधता की जांच का मामला आयकर अधिनियम के सुसंगत प्रावधानों के तहत उचित मंच पर उठाया  जा सकता है| आयोग ने माना कि आवेदक के यहाँ 8 से 10 सितंबर 2010 तक जिस ढंग से खोज और जब्ती की कार्रवाई की गयी उसका मूल्यांकन करने में आयोग सक्षम नहीं है| विभाग के प्रतिनिधियों ने कहा कि खोज और जब्ती की कार्यवाही तो इस प्रकरण में लगे समय से भी ज्यादा समय के लिए भी जारी रह सकती है| आयोग मोटे तौर पर इससे सहमत है कि खोज और जब्ती की कार्यवाही के लिए अवधि के रूप में कोई समय सीमा तय नहीं की  जा सकती  लेकिन आयोग की राय में खोज और जब्ती की कार्यवाही संबंधित व्यक्ति के मानवाधिकारों के अनुरूप होनी  चाहिए|
आयोग ने माना कि यह स्वीकृत तथ्य है कि खोज और जब्ती की कार्यवाही दिनांक 08/09/2010 को प्रात: 9:30 बजे  शुरू और दिनांक 10/09/2010 को  रात्रि 9.20 बजे  पर संपन्न हुई  है| आवेदक की शिकायत थी कि इस अवधि के दौरान उससे लगातार 30 घंटे के लिए पूछताछ की गयी| आयकर विभाग द्वारा  धारा 132 के तहत शपथ पर दर्ज आवेदक के बयान के प्रश्न संख्या 15 में अधिकारी  श्री सौरभ कुमार  ने दर्ज किया है कि उससे  खाताबहियाँ  आदि पेश  करने के लिए कहा जा रहा था लेकिन 36 से अधिक घंटे बीतने के बावजूद आवेदक ने एक भी प्रस्तुत नहीं की है| इससे कार्यवाही में लगे समय का अनुमान लगाया जा सकता है| 

विभागीय प्रतिनिधि द्वारा यह बताया गया कि दिनांक 9.9.10 को रात्रि 10 बजे तक मात्र 15 प्रश्न पूछे गए थे जिससे यह स्पष्ट है कि पूछताछ में लिया गया समय किसी भी प्रकार से उचित नहीं था| आयोग का विचार है कि छापामार दल के सदस्यों को खोज और जब्ती कार्यवाही संपन्न करने में समय लग सकता है लेकिन इस तरह की कार्यवाहियों में व्यक्ति के  बुनियादी मानव अधिकार को ध्यान में रखा जाना चाहिए| उन्हें कार्यवाही करने के लिए शारीरिक और मानसिक यातना देने का कोई अधिकार नहीं है| प्रभारी अधिकारी यदि पूछताछ/बयान की रिकॉर्डिंग की प्रक्रिया जारी रखना चाहता  है तो वह दिन के उचित समय पर ही बंद कर दी जानी चाहिए  और अगली सुबह फिर से शुरू की जानी चाहिए था| लेकिन हस्तगत प्रकरण में किसी भी विश्राम या अंतराल के बिना प्रात: 03:30 बजे तक प्रक्रिया जारी रही है जबकि यह शयन का समय है और आवेदक तथा / या उनके परिवार के सदस्यों को ऐसे अनुचित समय तक जागते रहने के लिए के लिए मजबूर करना एक सभ्य समाज में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता| यह व्यक्ति की गरिमा से संबंधित अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है और इसलिए मानव अधिकारों का उल्लंघन था| यहां तक ​​कि दुर्दांत अपराधियों को भी मानवाधिकारों से वंचित  नहीं किया जा सकता| आवेदक की स्थिति तो इससे बदतर नहीं थी| आयोग की राय में आयकर विभाग को भविष्य में बड़े पैमाने पर खोज और जब्ती कार्यवाही में सुनिश्चित करना चाहिए कि  बुनियादी मानव अधिकारों का उल्लंघन न हो| आयोग ने आगे कहा कि वह प्रथम दृष्टया संतुष्ट है कि खोज और जब्ती कार्यवाही  जारी रखते  हुए आयकर विभाग के संबंधित अधिकारियों द्वारा आवेदक के मानव अधिकारों का उल्लंघन किया गया है जिसके लिए वह आर्थिक  मुआवजा पाने का अधिकारी  है|

लेखक का मत है कि किसी भी व्यक्ति से उसकी परिस्थितियों के विपरीत व्यवहार भी मानवाधिकारों का उल्लंघन है| यथा कश्मीर जैसे शीत प्रदेश के निवासी को भीषण गर्मी वाले मरुस्थल में या इसके विपरीत रखना या रहने के विवश करना मानवाधिकारों का हनन है| ठीक इसी प्रकार अशक्त या अस्वस्थ व्यक्ति को उसकी परिस्थति के अनुसार भोजन न उपलब्ध करवाना भी मानवाधिकारों का उल्लंघन है| पंजाब राज्य मानावाधिकार आयोग ने तो सेवा, न्याय आदि से सम्बंधित मामलों को भी मानवाधिकार हनन  माना है| भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार, किसी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं|


हाल ही में सांसद धनञ्जय सिंह को एक अभियोग में पुलिस हिरासत में लिया गया था और हिरासत अवधि के दौरान उन्होंने अपने घर पर बने भोजन के लिए पुलिस से अपेक्षा की किन्तु पुलिस ने कहा कि न्यायालय की अनुमति के बाद ही ऐसा किया जा सकता है| जबकि कानून में ऐसा प्रावधान नहीं है कि एक परीक्षण के अधीन हिरासत में व्यक्ति को घर के भोजन से वंचित किया जाएगा अथवा इसके लिए कोई अनुमति की आवश्यकता है| लेखक स्वयम ने यह प्रकरण राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के समक्ष उठाया और आयोग ने इस प्रकरण में गृह मंत्रालय को आवश्यक कार्यवाही करने के निर्देश जारी किये हैं| ठीक इसी प्रकार तरुण तेजपाल के मामले में भी हाल ही में तहलका की  एक संपादिका को गोवा पुलिस ने गवाही हेतु पूछताछ के लिए उसके निवास से भिन्न स्थान पर बुलाया और रात्रि 2 बजे तक उससे पूछताछ की गयी| जबकि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 160 के अनुसार एक महिला और 15 वर्ष तक के बालक गवाह से मात्र उसके निवास पर ही पूछताछ की जा सकती है| लेखक द्वारा यह मामला भी राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के समक्ष उठाये जाने पर गोवा पुलिस को आवश्यक कार्यवाही करने के निर्देश जारी किये गए हैं| अत: जागरूक पाठकों से आग्रह है कि जहां भी वे मानवाधिकार उल्लंघन का कोई मामला देखें उसकी रिपोर्ट मानवाधिकार आयोग को आवश्यक कार्यवाही हेतु भेजें ताकि मानव गरिमा का रक्षा हो सके|   

समाज में शर्मनाक गिरावट:बाप बेटी से करता रहा बलात्कार

हैवानियत की सभी सीमाएं पार कर  चाकू की नोक पर जारी रहा कुकर्म 
पुलिस से की शिकायत,फिर भी नहीं हुई कार्यवाई 
लुधियाना, 25 जनवरी (सतपाल सोनी//वीकेजी//पंजाब स्क्रीन):
कारण कुछ भी रहे हों पर समाज की गिरावट है।  ताज़ा मामला सामने आया है पिता की और से बेटी के साथ कथित दुष्कर्म का। हवस का शिकार बनी 25 वर्षीय महिला दो बच्चों की मां भी है। उसने लुधियाना पुलिस से गुहार लगाई है कि उसके पिता को गिरफ्तार किया जाए वर्ण वह उसे जान से मार डालेगा। उसने साफ़ कहा कि उसके पिता ने सभी मानवीय रिश्तों को भूल कर हैवानियत कि सभी हदें पार कर दीं। पीड़िता के मुताबिक उसके पिता ने इस बेहद नाज़ुक रिश्ते को तार-तार करते हुए कथित रूप से कई महीनों तक उसके साथ बलात्कार किया।
पीडि़ता जो कि आजकल किरायेदार के तौर पर ताजपुर रोड संजय गांधी कालोनी, लुधियाना में रह रही है, ने अपनी दर्द भरी कहानी मीडिया को सुनाते हुए कहा कि उसकी शादी अप्रैल 2008 में गार्डन कालोनी मोरिंडा निवासी रणजीत सिंह से हुई थी, परन्तु पति से अक्सर झगड़ा रहने के कारण वह जनवरी 2013 में अपने माता-पिता के पास अपने दोनों बच्चों सहित लुधियाना आ गई। उसके पिता राजिंद्र कुमार ने उसे अपने निवास के पास ही एक कमरा किराए पर ले दिया और वह वहां रहने लगी। इससे पहले कि उसकी समस्या का कोई हल होता उस पर मुसीबतों का एक नया पहाड़ टूट पड़ा। तीन महीने बाद उसकी मां सुशीला देवी की मौत हो गई। मां की मौत के बाद उसके साथ शुरू हुआ दरिंदगी का यह शर्मनाक सिलसिला जिसे वह बताती भी तो किसे? कौन सुनता? कौन मानता?  उसने आगे बताया कि 2 जुलाई 2013 की रात को जब वह अपने बच्चों के साथ सो रही थी तो उसका पिता उसके पास आया और शैतान बनकर उसके साथ चाकू की नोक पर कथित रूप से बलात्कार किया और धमकी दी कि अगर किसी को बताया तो वह उसे जान से मार डालेगा।
पीडि़ता ने आगे बताया कि इसके बाद उसके पिता ने कई बार उसे अपनी हैवानियत का शिकार बनाया। बाद में मैं इतना डर गई कि मुझे अपनी मौसी के यहां न्यू शिमलापुरी में शरण लेनी पड़ी। इसके बाद जब सभी रिश्तेदारों को मेरे पिता की कथित करतूतों का पता चला तो पिछले वर्ष 23 दिसम्बर को सभी ने मिलकर थाना डिवीजन नं. 7 में प्राथमिक रपट दर्ज करवाई, परन्तु अभी तक आरोपी के विरुद्ध पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की है, बल्कि मेरा पिता, मेरी छोटी बहन और अन्य रिश्तेदार मुझे जान से मारने की धमकियां दे रहे हैं। ऐसे वातावरण में मेरा और मेरे बच्चों का जीना दूभर हो चुका है। उसने पुलिस आयुक्त से गुहार लगाई है कि उसे उसके पिता से बचाया जाये और उसे तुरन्त गिरफ्तार किया जाये।
कानून अपना काम करेगा ही लेकिन समाज को अपनी ज़िम्मेदारी निभानी होगी। आखिर सोचना होगा कि क्यूँ बढ़ रहे हैं ऐसे मामले? क्यूँ भूल रहे हैं रिश्ते नाते और संबंध? क्यूँ बढ़ रहा है महिलायों के साथ एक वस्तु जैसा व्यवहार? क्या होता है ऐसे मामलों के पीछे का मनोविज्ञान? इसके सभी पहलुयों पर आपके विचारों कि इंतज़ार बनी रहेगी।  अपने विचार यूनिकोड में इस पते पर प्रेषित करें : medialink32@gmail.com हम आपके विचारों को आपके नाम के साथ प्रकाशित करेंगे।  यदि आप चाहेंगे तो आपका नाम गोपनीय भी रखा जायेगा।


Saturday, January 25, 2014

माझा में बिक्रम सिंह मजीठिया के इशारे के बिना नहीं उड़ती कोई मक्खी

पूर्व डीजीपी शशिकांत ने शुरू की खुली सियासी पारी 
कहा-यदि आम आदमी पार्टी और अकाली दल में कोई फर्क नहीं है, तो SAD भंग कर आप में शामिल हो जाएं
नशों की रोकथाम के लिए कई उपयोगी कदम उठाने जा रही है आप
अमृतसर 24 जनवरी 2014: (गजिंदर सिंह किंग//पंजाब स्क्रीन):
हाल ही में आम आदमी पार्टी में शामिल हुए पंजाब पुलिस के पूर्व डीजीपी शशिकांत ने कहा है, कि वर्ष 2007 में उन्होंने नशे के कारोबिरियों और नेताओं के नाम की जो सूचि और रिपोर्ट तैयार की थी, उसमें बिक्रम सिंह मजीठिया का नाम नहीं था। लेकिन आज पंजाब के माझा इलाके में बिक्रम सिंह मजीठिया के इशारे के बिना एक मक्खी भी उड़ान नहीं भर सकती, तो ऐसे में जगदीश भोला के आरोप सही भी हो सकते हैं। लेकिन वह बिना सबूत के ऐसा दावा नहीं कर सकते। उन्होंने कहा, कि यदि इस मामले की सीबीआई जांच हो जाए, तो दूध का दूध और पानी का पानी हो सकता है। प्रेस कांफ्रेंस में शशिकांत ने बताया, कि आम आदमी पार्टी जल्द ही पंजाब में नशों के खिलाफ जागरूकता अभियान शुरू करने जा रही है। जिसके तहत नशों की रोकथाम के अलावा नशे के आदि हो चुके नौजवानों को इस गर्त से निकालने के लिए विभिन्न विभागों के सहयोग से जनांदोलन चलाएगी।
    पूर्व डीजीपी ने कहा, कि यदि मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल मानते हैं, कि आम आदमी पार्टी उन्हीं की पार्टी की लाइन पर चल रही है, तो मुख्यमंत्री को चाहिए की वह तुरंत शिरोमणि अकाली दल को समाप्त कर आम आदमी पार्टी में शामिल हो जाएं। आम आदमी पार्टी ऐसे में शिअद का स्वागत करेगी। उन्होंने कहा, कि पंजाब में ड्रग तस्करी में माझा, दोआबा और मालवा सभी इलाकों से संबंधित सभी पार्टियों के नेता और मंत्री तक शामिल हैं। लेकिन पंजाब सरकार जानबूझ कर इन आरोपों की जांच कराने से कतरा रही है।