Thursday, October 16, 2014

भोपाल में सैकड़ो विस्थापितों-भूमि स्वामियो ने दी मुख्यमंत्री को चेतावनी

Thu, Oct 16, 2014 at 5:11 PM
गैर कानूनी डूब या विनाश अब और नहीं
नए भू अर्जन कानून के तहत अधिगृहित ज़मीन  का मालिकाना हक स्वीकार करे सरकार
सरदार सरोवर, नर्मदा नहरे, जोबट, बर्गी और पेंच, अडानी परियोजनाओं के खिलाफ की आवाज़ बुलंद  
भोपाल: 16 अक्टूबर 2014: (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो): 
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में आज नर्मदा घाटी के बडवानी, खर्गोन,धार जिले के गाँव-गाँव के किसान मजदूर, मछुआरे, कुम्हार सरदार सरोवर बाँध को आगे बढाने की खिलाफत करते हुए अपने जीने के अधिकार के तीस सालों के संगर्ष के चलते हुए पधारे है,  मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जी से पूछने, क्या आप हमारी बात सुनेंगे? क्या आप कानून के दायरे में हमारे अधिकारों और मध्य प्रदेश के हित में भूमिका लेंगे ?
आज नर्मदा घाटी के गाँव-गाँव से सैकड़ो प्रभावित  भोपाल में मुख्यमंत्री से सवाल एवं चर्चा करने गांधी मैदान के सामने इखट्टे होकर मुख्यमंत्री आवास की ओर बढ़ रहे जन सैलाब को अपेक्षा अनुसार पुलिस ने रोक लिया, सभी महिला, पुरुष, साथ में युवाओं ने जमकर नारेबाजी की।
सरदार सरोवर विस्थापितों के साथ इंदिरा सागर व ओम्कारेश्वर नहरो और जोबट बाँध प्रभावित भी पहुंचे है।   साथ ही मध्य प्रदेश के जबलपुर, छिंदवाडा, सीधी, रीवा, देवास, जैसे  जिले जिले से  पेंच परियोजना, अडानी पॉवर प्लांट, बर्गी बाँध, आदि परियोजनाओ के वर्षो से विस्थापित हो चुके, किसान, आदिवासी पधार है अपने मुद्दे, मांगे व सवालो को लेकर । सभी का अहम् मुद्दा है, 'खेती , आजीविका और विस्थापन' ! पीड़ियो पुराने आजीविका का एक मात्र साधन  रहे प्राकृतिक संसाधन, ज़मीन, जल, जंगल 'विकास' के नाम पर शासन छीनती जा रही है,  इससे कोई बेघर या कोई बेरोजगार होकर आक्रोशित है । कार्यक्रम में शामिल मुलताई से पूर्व विधायक व किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष डॉ सुनीलम ने कहा की विकास योजना तय करने में कोई सहभाग न लेते हुए, हमारे ऊपर थोपी जा रही परियोजनाए हमे विकास के लाभ नहीं, विस्थापन से बर्बादी मात्र दे रही है।
पुनर्वास की नीतियाँ कागज़ तक और आश्वासन चुनाव तक ही सीमित रहे है । वैकल्पिक ज़मीन या आजीविका सुनिश्चित करने के लिए 'साधन उपलब्ध नहीं' सुनने की हमारी तैयारी नहीं है । हम जानते है कि अभी अभी इंदौर में हुई अंतर्राष्ट्रीय पूंजी निवेशको की बैठक  के (Investor Meet) पहले मुख्यमंत्री जी ने जाहिर किया था कि उद्योगपतियों के लिए 25000 हे. ज़मीन मध्य प्रदेश में उपलब्ध है । सबसे पहले आज तक उजड़ चुके विस्थापितों के लिए 'खेती लायक ज़मीन और रोज़ी रोटी का कोई विकल्प नहीं ' यह जवाब हमे मंज़ूर नहीं इसलिए राज्य तथा केन्द्रीय शासन अब सचेत हो रहे है और अपने साधानो के लूट के बावजूद हम विस्थापितों को भ्रमित करके ही कुछ योजनाये आगे बढ़ा रहे है।
नर्मदा बचाओ आन्दोलन की नेत्री मेधा पाटकर ने कहा की अँगरेज़ शासन के 1894 का कानून के खिलाफ नर्मदा से नंदीग्राम, पेंच से पोलावरम तथा खदाने, उर्जा योजना, शहर विकास को देसी वेदेशी पूँजी और बाजारी विकास को चुनौती देते आये जन संघर्षो का ही परिणाम है - पुराना कानून निरस्त होना । तमाम जन संघर्ष कई दशको से अपने सवाल खादेब्कारते आयेे, अपने अधिकार और प्रकृतिक धरोहर को बचते हुए इस लड़ाई के दौरान पूर्व की यूपीए केन्द्रीय शासन ने नया भू-अर्जन कानून लाया । इस कानून में खामियों के बावजूद जो जन-वादी प्रव्धान है, उन्हें ख़त्म करने की पूरी तैयारी, भाजपा की सरकार, नितिन गडकरी, ग्रामीण विकास मंत्री तथा नरेन्द्र मोदी जी, प्रधानमंत्री ने मिलकर की है । हम उन्हें और उनकी यह किसान-मजदूर विरोधी चाल को चुनौती देते है, देते रहेंगे ! SEZ, DMIC, Megacity, Smart city, उर्जा राजधानी जैसे नाम पर मेहनतकशो को अपने धरातल, संस्कृति से, पैसा, संसाधनों से परे करना अनन्य है ।
इसलिए नए भू- अर्जन कानून, 2013 की धारा  24 के तहत, 5 साल से अधिक पुराने भू- अर्जन - अवार्ड घोषित होते हुए आजतक हमारा ही भौतिक कब्ज़ा, हमारी ज़मीन, मकान, संपत्ति पर रखने वाले ; मुआवजा न लेने वाले हम सब किसान- मजदूर -मछुआरे-कारीगर व्यापारी  यह घोषित कर चुके है कि 1 जनवरी, 2014 से हम फिर मालिक बन चुके है । भू अर्जन रद्द हो चूका है ।  धरने पर बेठे लोगो चेताया की 'मुख्यमंत्री जी, आप या मोदी जी भी , अडानी, अम्बानी जैसी कोई ताकत, विदेशी पूँजी या कंपनी ; या कोई बड़ा बाँध या योजना हमे नहीं उजाड़ सकते, हमारी संपत्ति  बर्बाद नहीं कर सकते । हमे डूबा नहीं सकते आप को चेतावनी तथा यह जानकारी देने आये है हम। जिसे आप कानूनी हक मानकर हमारी संपत्ति पर हमारा नाम याने अधिकार दर्ज करे"।
 यह आवाज़ और आत्मविश्वास से अधिकार के साथ पुकार रही है, नर्मदा, पेंच, बरगी, जैसे नदी घाटियों से और अन्य परियोजनाओ से आये लोगो की । नर्मदा घाटी से गाँव- गाँव के लोगो से साथ छिन्द्वारा से आराधना भार्गव जी, डा. सुनीलम, अध्यक्ष किसान संघर्ष समिति,  जबलपुर -मंडला से राजेश तिवारी, तथा योगेश दीवान, जन पहल से   से आये प्रमुख कार्यकर्ता एवं विस्थापितों ने अपनी बात घोषित करते हुए, मुख्यमंत्री जी से सुनवाई का आग्रह किया है ।
 जारी है नए कानून की इस धारा की स्पष्टता और परिभाषा सर्वोच्च अदालत ने भी मान ली है, जैसे कि 1.1.2014 के बाद आये फैसलों से स्पष्ट है । अब चुनौती है शासन के सामने !!
राहुल यादवबिलाल खानकमला यादवलालू भाईमीरा
रणवीर तोमर
संपर्क: +91 7049391073

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