किस तरह ज़िंदा हैं लोग---- -Raj Kumar Sahu
जगह कम और आबादी ज़्यादा-समस्या विकराल है पर ज़िन्दगी भी तो काटनी है। जीने के लिए---रहने के लिए बहुत सी कठिनाइयां लेकिन लोग फिर भी जी रहे हैं। हमने हर हाल में जीने की किस्म कसम खाई है--यह बात कहने सुनने में काफी आसान सी लगती है---पर वास्तव में होती है बहुत कठिन।इस के बावजूद ज़िन्दगी की कठिन राहों पर मुस्करा कर चलने के मामले में एक बिलकुल ही नई मिसाल बन चुके हैं ये मकान। झाँसी के सीपरी इलाके में यह ज़मीन शायद सरकारी है और लोगों को जीवन जीने का अधिकार उस परमसत्ता भगवान ने दिया है। ज़िंदगी के इस आशियाने की नयी तकनीक ज़िंदगी की ज़रूरतों ने तलाश कर ली। मकान देखें तो खतरा ही खतरा लगता है---अभी गिरा-अभी गिरा---पर लोग यहाँ इस खतरे में जी रहे हैं। सुना है यहाँ पूरी की पूरी गली ही ऐसी है इसी तरह के मकानों से बानी हुई। इन्हें अगर खतरा मकान कह लिया जाये तो शायद कदापि गलत नहीं होगा लेकिन लोग खतरे में रहने को भी तैयार। सरकार से सर छुपाने को छत नहीं मिली तो हिम्मत करके खुद बना ली।
जैसे ज़मीन पर पेड़ थोड़ी सी जगह घेरता है और बाकी का आकार कुछ ऊंचा उठकर आसमान में ही लेता है। बस यहाँ लोग भी पेड़ों की तरह हो गए हैं। जब तक जिएंगे समाज को कुछ फायदा देंगें बिलकुल पेड़ों की तरह-जब पेड़ों की तरह गिरा दिए जाएंगे तो गुमनामी की मौत मर जाएंगे या फिर कहीं ओर जाकर ज़िंदगी के उजड़ चुके घर को फिर से बसाने का प्रयास करेंगे। सरकारी ज़मीनों पर कब्ज़े के आरोप में बदनाम किये जाते ये लोग शायद नहीं जानते कि यहाँ इस देश के नेताओं ने देश विदेश में कितने कितने एकड़ ज़मीन अपने नाम करवा रखी है। किस किस नेता का किस किस जगह होटल है-कहाँ बंगला है--कहाँ कृषि भूमि है---इसका सही आंकड़ा शायद कभी सामने न आये क्यूंकि इस हमाम में सभी नंगे हैं। गाज गिरती है तो गरीबों पर। इस तथ्य को नज़रअंदाज़ करके कि बहुत से गरीब और दलित लोग मौत के बाद अंतिम संस्कार के लिए भी दो गज़ ज़मीन नहीं जुटा पाते। हर पल खतरों में रह कर जी रहे लोगों के इन अजीबो-गरीब मकानों की यह तस्वीर साहिर लुधियानवी साहिब की पंक्तियाँ फिर याद दिल रही है----
माटी का भी है कुछ मौल मगर--
इंसानों की कीमत कुछ भी नहीं
आखिर कब सच होगा मेरा भारत महान का नारा? हर रोज़ महंगी होती ज़मीन और लगातार कम हो रही इंसान की कीमत हमें किस तरफ ले जा रहे हैं? क्या यही थी वह आज़ादी जिसके लिए अनगिनत शहीदों ने अपनी क़ुरबानी दी। क्या यही है उनके सपनों का भारत?
खतरों में जी रहे इन मजबूर और बेबस लोगों पर ऊँगली उठाने वाले कभी भू-माफिया का नाम भी लेंगें जो देश के बहुत से भागों में सक्रिय है?
ऐसे बहुत से सवाल हैं जो इस तस्वीर को देख कर उठ रहे हैं---आखिर कब मिलेगा उनका जवाब?
इस तस्वीर को फेसबुक पर पोस्ट किया है एक जागरूक नागरिक Raj Kumar Sahu ने अपने प्रोफाइल पर मंगलवार 14 अक्टूबर 2014 को सांय 4:45 पर।
इस पर कमेन्ट भी काफी दिलचस्प हैं। देखिये कुछेक की एक झलक।
रूखी सूखी जो मिले पेट भरने के लिए काफी दो गज़ है ज़मीं जीने मरने के लिए |
जैसे ज़मीन पर पेड़ थोड़ी सी जगह घेरता है और बाकी का आकार कुछ ऊंचा उठकर आसमान में ही लेता है। बस यहाँ लोग भी पेड़ों की तरह हो गए हैं। जब तक जिएंगे समाज को कुछ फायदा देंगें बिलकुल पेड़ों की तरह-जब पेड़ों की तरह गिरा दिए जाएंगे तो गुमनामी की मौत मर जाएंगे या फिर कहीं ओर जाकर ज़िंदगी के उजड़ चुके घर को फिर से बसाने का प्रयास करेंगे। सरकारी ज़मीनों पर कब्ज़े के आरोप में बदनाम किये जाते ये लोग शायद नहीं जानते कि यहाँ इस देश के नेताओं ने देश विदेश में कितने कितने एकड़ ज़मीन अपने नाम करवा रखी है। किस किस नेता का किस किस जगह होटल है-कहाँ बंगला है--कहाँ कृषि भूमि है---इसका सही आंकड़ा शायद कभी सामने न आये क्यूंकि इस हमाम में सभी नंगे हैं। गाज गिरती है तो गरीबों पर। इस तथ्य को नज़रअंदाज़ करके कि बहुत से गरीब और दलित लोग मौत के बाद अंतिम संस्कार के लिए भी दो गज़ ज़मीन नहीं जुटा पाते। हर पल खतरों में रह कर जी रहे लोगों के इन अजीबो-गरीब मकानों की यह तस्वीर साहिर लुधियानवी साहिब की पंक्तियाँ फिर याद दिल रही है----
माटी का भी है कुछ मौल मगर--
इंसानों की कीमत कुछ भी नहीं
आखिर कब सच होगा मेरा भारत महान का नारा? हर रोज़ महंगी होती ज़मीन और लगातार कम हो रही इंसान की कीमत हमें किस तरफ ले जा रहे हैं? क्या यही थी वह आज़ादी जिसके लिए अनगिनत शहीदों ने अपनी क़ुरबानी दी। क्या यही है उनके सपनों का भारत?
खतरों में जी रहे इन मजबूर और बेबस लोगों पर ऊँगली उठाने वाले कभी भू-माफिया का नाम भी लेंगें जो देश के बहुत से भागों में सक्रिय है?
ऐसे बहुत से सवाल हैं जो इस तस्वीर को देख कर उठ रहे हैं---आखिर कब मिलेगा उनका जवाब?
इस तस्वीर को फेसबुक पर पोस्ट किया है एक जागरूक नागरिक Raj Kumar Sahu ने अपने प्रोफाइल पर मंगलवार 14 अक्टूबर 2014 को सांय 4:45 पर।
इस पर कमेन्ट भी काफी दिलचस्प हैं। देखिये कुछेक की एक झलक।
- नोट:आपको यह तस्वीर कैसी लगी अवश्य लिखें। आपके पास भी कोई ऐसी तस्वीर हो तो अवश्य भेजें तांकि दुसरे लोग भी उसके बारे में सकें। हम आपका नाम भी उस तस्वीर के साथ प्रकशित करेंगे।
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