Sunday, June 15, 2014

अजनाला के कुँए का मामला अब और गंभीर

 Fri, Jun 13, 2014 at 12:02 PM
1 अगस्त को किया जाएगा सन् 1857 के हिंदूस्तानी सैनिकों का संस्कार
अस्थियों के संस्कार से पहले शहीद सैनिकों के नामों की जानकारी मंगवाए सरकार-कोछड़
पंजाब सरकार युद्ध-स्तर पर पुनः शुरू करेगी कार्रवाई-रंधावा
पंजाब सरकार को भेजे मांग-पत्र के संबंध में जानकारी देते हुए इतिहास श्री सुरेंद्र कोछड़
अमृतसर, 13 जून 2014: (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो):
अमृतसर की तहसिल अजनाला के कुएं में से निकाली गई सन् 1857 के राष्ट्रीय विद्रोह के 282 हिंदूस्तानी सैनिकों की अस्थियों का अंतिम संस्कार अजनाला में 1 अगस्त 2014 को किया जाएगा। यह जानकारी पंजाब सरकार द्वारा उक्त शहीदी कुँआ स्मारक तथा अस्थियों के रख-रखाव को लेकर बनाई गई सलाहकार कमेटी के सदस्य इतिहासकार एवं शोधकर्ता श्री सुरेंद्र कोछड़ ने कल्चरल, पुरातत्व तथा म्यूजि़यम विभाग पंजाब के डायरेक्टर स. नवजोत पी. सिंह रंधावा को मेमोरंडम के रूप में दी। मांग पत्र में श्री कोछड़ ने बताया कि उन्होंने उक्त कुँए में से अपनी शोध के आधार पर गुरूद्वारा शहीदगंज कमेटी के सहयोग से जो शहीद हिंदूस्तानी सैनिकों की अस्थियां निकलवाईं थी; को जाँच के लिए चंडीगढ़ लिजाने से पहले उनमें से बहुत सी अस्थियों को फोरेंसिक साईंस तथा डी.एन.ए. माहिरों ने नकारा घोषित कर दिया था। उन्होंने बताया कि उक्त नकारा घोषित की गई अस्थियां जो मुरम्मत करके अजायब-घर में नहीं रखी जा सकती, का अजनाला में एक अगस्त को अंतिम संस्कार किया जाएगा। श्री कोछड़ के अनुसार उक्त हिन्दूस्तानी सैनिकों के अंतिम संस्कार समारोह में शामिल होने के लिए देश-विदेश की समाजिक, धार्मिक,  शिक्षा संस्थायों, भारतीय सेना तथा देश के प्रमुख राजनीतिज्ञों सहित देश के प्रधानमंत्री तथा राष्ट्रपति को पत्र भेजे जा रहे हैं।
अजनाला के उक्त कुँए की खोज करके उसमें से सन् 1857 के राष्ट्रीय विद्रोह के सैनिकों की अस्थियां निकलवाने में मुख्य भूमिका निभाने वाले इतिहासकार श्री कोछड़ ने मांग-पत्र में इस बात पर भी जोर दिया है कि पंजाब सरकार भारतीय गृह मंत्रालय की मार्फत ब्रिटेन सरकार से उक्त शहीदों ने नामों सहित शेष जानकारी दो सप्ताह के भीतर मंगवाए और सैनिकों की अस्थियों का संस्कार सम्मान-पूर्वक ढंग से करने के लिए अजनाला में तुरंत उचित जगह उपलब्ध कराई जाए। श्री कोछड़ के अनुसार शहीद हिंदूस्तानी सैनिकों की पहचान के संबंध में जानकारी तथा संस्कार के लिए उचित जगह मिलने के बाद ही उनका पूर्ण धार्मिक विधि से संस्कार किया जाना संभव है। उन्होंने कहा कि कुँए में से निकली अस्थियों की जांच करने वाले माहिरों को भी आदेश जारी किए जाएं कि अस्थियों की जांच रिपोर्ट जल्दी उन्हें सौंपी जाए, चूंकि सन् 1857 के अजनाला नरसंहार के संबंध में शोध का अधूरा कार्य पूरा किया जा सके।
उधर श्री कोछड़ द्वारा दिए मांग-पत्र को गंभीरता से लेते हुए डायरेक्टर श्री रंधावा ने डिफैंस विभाग तथा अस्थियों की जांच करने वाले माहिरों को जल्दी जांच रिपोर्ट पेश करने के आदेश जारी कर दिए हैं। इस के साथ ही उन्होंने यह भी विश्वास दिलाया है कि संबंधित विभागों के प्रमुख अधिकारी दो-चार दिन के भीतर अजनाला पहुँचकर हिंदूस्तानी सैनिकों के संस्कार तथा स्मारक के निर्माण के संबंध में युद्ध स्तर पर कार्रवाई शुरू करेंगे।
सैनिकों की स्मृति में स्मारक निर्माण का निर्णय सरकारों का
सैनिकों की स्मृति में स्मारक निर्माण के संबंध में पूछने पर श्री कोछड़ ने कहा कि अजनाला में उक्त हिन्दूस्तानी सैनिकों की याद में स्मारक निर्माण का फैसला पंजाब व केंद्र सरकार की स्वे-इच्छा तथा देशवासियों की मांग पर निर्भर करता है। उन्होंने बताया कि सेना के अधिकारी स्थानीय सर्किट हाऊस में चीफ सैकेट्ररी पंजाब, डिप्टी कमिश्नर अमृतसर, एस.जी.पी.सी., प्रमुख पुलिस अधिकारियों तथा उनके समक्ष स्पष्ट तौर पर पहले ही यह दावा रख चुके हैं कि कुँए में से निकाले गए कंकाल उन जांबाज हिन्दूस्तानी फौजियों के हैं, जिन्होंने ब्रिटिश के विरूद्ध बगावत की थी और इसी कारण अजनाला में बंदी बनाकर उन्हें बेरहमी से कत्ल किया गया। इस लिए भारतीय सेना उक्त शहीदों को सम्मान देने के लिए इतिहासकार श्री कोछड़ से बातचीत करके वहां वार-मेमोरियल अवश्य बनाऐगी।
अलग से डिब्बी में लगाने के लिए
खुदाई से पहले कुँए पर किया जा रहा था गुरू ग्रंथ साहिब का प्रकाश
अजनाला के उक्त कुँए के संबंध में यह बताना भी अनिवार्य है कि खुदाई से पहले जानकारी के अभाव के कारण विगत् 42 वर्षों से मानव कंकालों से भरे उक्त कुँए के बिल्कुल ऊपर श्री गुरू ग्रंथ साहिब का प्रकाश किया जा रहा था तथा इतिहासकार श्री सुरेंद्र कोछड़ से पहले किसी भी इतिहासकार, शोधकर्ता विद्धान या जत्थेबंदी ने कुँए की तालाश करके उसमें से अस्थियां निकलवाने की पहल नहीं की। श्री कोछड़ ने उक्त कुँए को ज़ाहिर करके उसमें दफन मानव शवों के ढेर के ऊपर से श्री गुरू ग्रंथ साहिब का प्रकाश नए उचित स्थान पर तबदील करवाकर सिख रहित मर्यादा तथा सिखों की धार्मिक भावनायों के हनन होने की कार्रवाई को रोका है।

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