Thursday, April 03, 2014

माणेकशॉ हमारे दौर के सबसे रहस्यमय व्यक्तित्वों में से एक

03-अप्रैल-2014 15:35 IST
सैम बहादुर-कर्मयोगी फील्ड मार्शल और मौत से उनकी मुलाकात
फीचर//रक्षा                                                                          --तरूण कुमार सिंगा*
फील्ड मार्शल सैम हॉरमसजी फ्रामजी जमशेदजी माणेकशॉ हमारे दौर के सबसे रहस्यमय व्यक्तित्वों में से हैं। 
     सैम बहादुर के नाम से लोकप्रिय - उन्हें इस नाम से एक गोरखा सैनिक ने पुकारा था, जो उनका कठिन पारसी नाम बोल पाने में असमर्थ था। सैम शब्द का अर्थ - निर्भय है और उनका यह नाम आज तक याद है।
     सैम ने कई अवसरों पर मौत को चकमा दिया था, जंग के मैदान और उससे परे भी। हालांकि वे 90 वर्ष से ज्यादा जिए। सैम अपने मिलिट्री डॉक्टर पिता की तरह डॉक्टर ही बनना चाहते थे, लेकिन वे फील्ड मार्शल के पद तक पहुंचे।
     सन 1942 में नौजवान कैप्टेन के रूप में बर्मा में तैनाती और जापान के साथ जंग के दौरान वे गंभीर रूप से घायल हो गए। नौ गोलियां उनके शरीर को छलनी कर गईं। जब वे मौत से संघर्ष कर रहे थे, तो उनके जांबाज सिख अर्दली सिपाही शेर सिंह ने आकर उन्हें मौत के मुंह से बचा लिया।
     उनकी पलटन के जांबाज सिख जवानों ने घोषणा की थी : " कैप्टेन माणेकशॉ हमारे सिर का ताज हैं और उन्हें किसी भी कीमत पर बचाना होगा"। सैम का अर्दली शेर सिंह उन्हें अपनी पीठ पर लाद कर काफी दूर स्थित चिकित्सा सहायता चौकी तक ले गया, जहां सेना के डॉक्टरों ने प्राथमिकता से उनका इलाज किया।
     सैम माणेकशॉ को उनके अदम्य साहस के लिए मिलिट्री क्रॉस से नवाज़ा गया और वे 94 वर्ष की आयु तक जीवित रहे।
     अपने परिवार के सदस्यों और शुभचिंतकों से घिरे सैम ने नीलगिरी हिल्स के अपने कोन्नूर गृह - स्तवका में 27 जून, 2008 को इस दुनिया को शांतिपूर्वक अलविदा कह दिया।
     शुरूआती जीवन में लगी गंभीर चोटों के बावजूद सेहतमंद जिंदगी बिताने वाले सैम माणेकशॉ को जीवन के बाद के वर्षों में सांस की तकलीफ से निपटने के लिए चिकित्सा सहायता की जरूरत पड़ी। 
     उस समय मेजर जनरल बीएनबीएम प्रसाद, जो फेफड़ों से संबंधित विशेषज्ञ थे, को फील्ड मार्शल की देखभाल का दायित्व सौंपा गया।
     दोनों के बीच साधारण डॉक्टर - मरीज के रिश्ते से बढ़कर एक रिश्ता कायम हो गया, जो उनकी मौत तक और उसके बाद भी कायम रहा।
     मेजर जनरल प्रसाद जो अभी हाल तक कोलकाता में पूर्वी कमान के अस्पताल के कमांडेंट थे, फील्ड मार्शल के निधन तक उनके साथ थे। उन्होंने सैम की दृढ़ता, निडरता और तो और निधन से पहले के लम्हों की दुर्लभ जानकारी दी।
     सैम माणेकशॉ अक्सर अपने डॉक्टर को अपनी जिंदगी की कई कहानियां सुनाते थे, क्योंकि इलाज के दौरान दोनों ने काफी समय एक साथ बिताया था। वे अकसर अपनी पत्नी सिल्लू के बारे में बात करते थे, जिनका संक्षिप्त बीमारी के बाद 13 फरवरी, 2001 को निधन हो गया था।
     वे अपनी प्रिय पुत्रियों शैरी और माजा, दामाद डिंकी बाटलीवाला और धुन दारूवाला और नातियों के बारे में भी बताया करते थे। वे भी प्यार से उन्हें "सैम" कह कर ही पुकारते थे।
     सबसे बढ़कर, फील्ड मार्शल की बातचीत का पसंदीदा विषय हमेशा उनके प्रिय गोरखा जवानों के इर्दगिर्द घूमता था, जो उनके लिए परिवार से बढ़कर थे। ये गोरखा लोगों के साथ उनके प्यार का ही नतीजा था कि उनके घर और स्तवका की अलौकिक गरिमा को सैम की इच्छा के मुताबिक ही उऩके क्वार्टर में रहने वाले विश्वासपात्र गोरखा परिवारों द्वारा संजोकर रखा गया है। 
     मेजर जनरल प्रसाद को 1971 की याद आज भी ताजा है, जब वे मैसूर मेडिकल कॉलेज में पढ़ा करते थे। वह दौर देशभक्ति से ओत-प्रोत था। सैम बहादुर के रहस्यमय आभामंडल से प्रभावित "मेरे जैसे अनेक लोग अपने शुरूआती वर्षों में किसी अन्य क्षेत्र में शानदार करियर बनाने की जगह सशस्त्र बलों से जुड़ने के लिए प्रेरित हुए।"
     प्रसाद कहते हैं, "मैं 1977 में डॉक्टर के रूप में सेना से जुड़ा। मुझे उन्हें पहली बार देखने और सुनने का मौका 90 के दशक के आरंभ में देहरादून में भारतीय सैन्य अकादमी की पासिंग आउट परेड के दौरान मिला, जहां उन्हें नौजवान अधिकारियों को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया गया था।"
     मेजर जनरल प्रसाद को हालांकि अपने जीवन के इस महानायक से मिलने का अवसर पाने में पूरा दशक भर लग गया। यह मुलाकात वर्ष 2003 में उस वक्त हुई, जब फील्ड मार्शल नई दिल्ली में अपनी सांस की बीमारी का इलाज कराने सेना के अस्पताल ( रिसर्च एंड रैफरल) आए।
     मेजर जनरल प्रसाद याद करते हैं, "पहली निजी मुलाकात में मुझे उनके करिश्माई आकर्षण ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया। अस्पताल के गलियारों से जब वे धीमे-धीमे गुजर रहे थे, तो वे सभी की निगाहें उन्हीं पर टिकी थी। लोग उन्हें दम साधे देख रहे थे और उनकी उम्र तथा अस्वस्थता के बावजूद खामोश रहकर उनकी सराहना कर रहे थे।"
     "पिछले तीन दशकों से भारतीय सशस्त्र बलों में बतौर चिकित्सक तैनाती के दौरान मेरा वास्ता कई तरह के मरीजों से पडा है। कुछ बेहद अपेक्षाएं रखते थे, जबकि कुछ बहुत विनम्रता से बिना एक भी शब्द कहे मेरी सलाह को मानते थे। फील्ड मार्शल उन सबसे हटकर थे।"
     वे आखिर तक दृढ़ता लड़ते रहे।
     एक साल बाद मुंबई के एक होटल में रुके फील्ड मार्शल को एयर कंडीशनर की ठंडक के कारण सीने में गंभीर संक्रमण हो गया। उन्हें विमान से दिल्ली लाकर सेना के अस्पताल (आर एंड आर) पहुंचाया गया।
     "अस्पताल पहुंचने पर जब मैंने उनका मुआयना किया, तो मैंने पाया कि वे बहुत बीमार और कमजोर थे, वे बहुत मुश्किल से चल पा रहे थे।"
     अपनी बीमारी के बावजूद उन्होंने व्हील चेयर इस्तेमाल करने से बहुत शालीनता से इंकार कर दिया और छाती का एक्सरे करवाने के लिए रेडियोग्राफी विभाग तक चलकर गए। उन्हें सीने में गंभीर संक्रमण हुआ था और उऩ्हें फौरन अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत थी।
     मेजर जनरल प्रसाद बताते हैं, "वे उसी समय अस्पताल में भर्ती नहीं होना चाहते थे। मैंने अस्पताल के अधिकारियों को उनका इलाज घर में करने के लिए राज़ी करके दिल्ली में उनकी छोटी पुत्री के घर पर उनके इलाज का जोखिम लिया।"
     सैम माणेकशॉ ने अपने डॉक्टर को अपनी सेहत के बारे में अपने पिता की चिंताओं के बारे में बताया था। उन्होंने डॉक्टर से अपने पिता के उस खत का भी उल्लेख किया था, जिसमें उनके पिता ने उन्हें धूम्रपान करना और पीना बंद करने की कड़ी चेतावनी देते हुए लिखा था, "बेटे अगर तुम ज्यादा पियोगे और धूम्रपान करोगे तो जल्दी ही मर जाओगे।"
     सैम मजाक करते थे : "डॉक्टर अगर अपने पिता की बात मान कर पीना और धूम्रपान करना बंद कर दिया होता, जो मैंने अस्पताल में रहने के दौरान शुरूआत में बंद कर दिया था, तो शायद मैं काफी पहले ही मर गया होता।" वे अपनी तीमारदारी में लगे लोगों के साथ मजाक करने के रास्ते में अपनी बीमारी को बाधा नहीं बनने देते थे।
     बढ़ती उम्र और कमजोर फेफड़ों की वजह से अब लगातार उनकी सेहत गिरने लगी थी। वे अपने जीवन का आखिरी समय अपने पसंदीदा घर कोन्नूर के - स्तवका में बिताना चाहते थे।
     उन्हें अपने गोरखा अर्दलियों, पालतु जानवरों, बागीचे और स्थानीय लोगों से घिरे रहना ज्यादा सुविधाजनक लगता था।
     अपने डॉक्टर के साथ अंतिम दिन
     " 22 जून, 2008 को, अचानक उनकी हालत बिगड़ने पर मैंने दिल्ली से आपातस्थिति में सैन्य अस्पताल वेलिंग्टन, नीलगिरी पहुंच कर उन्हें आखिरी बार देखा।"
     इस बारे मैंने बुजुर्ग फील्ड मार्शल को काफी कमजोरी की हालत में देखा। उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रही थी और वे बिस्तर पर थे तथा आंखे बहुत कम खोल पाते थे।
     मेजर जनरल प्रसाद बताते हैं, "ऐसे मामले, जिनमें फेफड़ों की पुरानी बीमारी, घातक ब्रॉन्को निमोनिया के साथ मिलकर और जटिल रूप धारण कर चुकी हो और जिससे 94 वर्ष के फील्ड मार्शल पीड़ित थे, से निपटने के अपने लंबे अनुभव से मैंने खतरा भांप लिया और सभी को सतर्क कर दिया कि अगले कुछ घंटों में ही अनहोनी घट सकती है।"
     उऩकी हालत को देखते हुए मेजर जनरल प्रसाद को आशंका हो गई कि उनके सबसे ज्यादा विख्यात मरीज अगले 24 घंटों तक नहीं बच सकेंगे। घातक निमोनिया, इस दृढ़ योद्धा को परास्त कर रहा था।
     उनके नाती जेहान और दामाद धुन दारूवाला ने सारी उम्मीदें छोड़ दी थी और वे उनके सिरहाने खड़े होकर किसी चमत्कार की प्रार्थना कर रहे थे। उनकी बेटियां, शैरी और माजा चेन्नई और दिल्ली से पहुंच रही थीं।
     सभी प्रार्थना और उम्मीद कर रहे थे कि वे अपनी पुत्रियों के आने तक सांसों की डोर थामे रखेंगे। जैसे अतीत में फील्ड मार्शल ने तमाम विपरीत हालात से टक्कर ली थी, वैसे ही उन्होंने इस जानलेवा संक्रमण को अपनी पुत्रियों के आने तक, अगले कुछ दिन तक खदेड़ दिया।
     दोनों पुत्रियों के आने पर फील्ड मार्शल ने उन्हें पहचान लिया और आखिरी बार उनसे बात की। उन्होंने अपनी मौत की योजना भी अपने किसी प्रसिद्ध सैन्य अभियान की तरह बनाई और वे अपने जीवन और मौत, दोनों में विजेता बनकर उभरे।
     उनकी मौत से कुछ क्षण पहले वहां मौजूद लोग एक आश्चर्यजनक घटना के गवाह बने।
     सैम माणेकशॉ की छोटी पुत्री माजा दारूवाला ने खुद पर काबू पाने की कोशिश करते हुए बेहोश पड़े अपने विख्यात पिता के जीवन और समय के बारे में बोलना शुरू किया।
     जैसे ही उन्होंने अपनी मां सिल्लू का नाम लिया, फील्ड मार्शल ने अपनी उस हालत के बावजूद प्रतिक्रिया दिखाई। जो मॉनिटर उनके ऑक्सीजन सेचुरेशन को बहुत कम दर्शा रहा था, अचानक कुछ देर के लिए वृद्धि दर्शाने लगा, जबकि उनकी सांस और नाड़ी की गति स्थिर बनी रही।
     27 जून, 2008, प्रभात के समय उन्होंने शांतिपूर्वक इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उस समय उनकी बेटियां उनका हाथ थाम कर प्रार्थना कर रही थीं।
     उन्हें शायद अपनी मौत का पूर्वाभास हो गया था। मौत से कुछ दिन पहले उन्होंने अपना इलाज कर रहे एक डॉक्टर को अपनी बाजू की त्वचा पर बने एक निशान की ओर इशारा करके कहा था कि इसके गायब होते ही उनकी मौत हो जाएगी। सचमुच वह निशान मिट गया और इस महान हस्ती का वजूद भी।
     बीमारी के बावजूद फील्ड मार्शल ने एक बार उनसे पूछा, "डॉक्टर तुम मेरे नाम पर स्कॉच क्यों नहीं लेते ? आपका साथ नहीं देने के लिए मैं तहेदिल से माफी चाहता हूं, जिसकी वजह आप बखूबी जानते हैं"
     उनके निधन के एक हफ्ते बाद, मेजर जनरल प्रसाद अपने यहां एक  मेहमान को देखकर दंग रह गए। फील्ड मार्शल के नाती ने नई दिल्ली में उनके कार्यालय आकर उन्हें अपने नाना की हिदायत पर - एक स्कॉच की बोतल उपहार में दी। उस पर लिखा था "कर्नल प्रसाद फील्ड मार्शल ने क्षमा मांगी है कि वे आपके साथ पी नहीं सकते......" (पसूका फीचर)

उपरोक्त लेख मेजर जनरल बी.एन.बी.एम प्रसाद की कोलकाता में पूर्वी कमान के अस्पताल के कमांडेंट के रूप में तैनाती के दौरान लेखक के साथ हुई बातचीत पर आधारित है। वे वेलिंग्टन में सैन्य अस्पताल के भी कमांडेंट रह चुके हैं। मेजर जनरल प्रसाद इस समय रक्षा मंत्रालय, नई दिल्ली में डीजीएएफएमएस कार्यालय में सीनियर कंसल्टेंट (मेडीसिन) हैं।

3 अप्रैल, 2014, बृहस्तपतिवार फील्ड मार्शल एस.एच.एफ.जे. माणेकशॉ की जन्म शताब्दी है।
*ग्रुप कैप्टेन, सीपीआरओ, रक्षा मंत्रालय, कोलकाता
    

वि.कासोटिया/एएम/आरके/एमएस-80
पूरी सूची-03.04.2014

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