Wednesday, March 26, 2014

हर-हर मोदी का मतलब?//Comrade Aman Mishra Dyfi

वोट जनता का है, लाभ कॉरपोरेट का
कामरेड मिश्रा 
नरेंद्र मोदी 

संघ-बीजेपी कर रही है- 'हर-हर मोदी। क्या मतलब है - हर-हर मोदी का? क्या यह हिंदू-राष्ट्र का उद्घोष है? यदि हां, तो हर चुनाव के बाद हिंदू-राष्ट्र का उद्घोष क्यों बदलता है? क्या मतलब है - 'जय श्री राम के बाद 'हर-हर मोदी का? क्या इसका मतलबmodi1.jpg निकाला जाय? पहले इस प्रकार के नारे को इतना बुलंद किया जाए कि विवाद पैदा हो जाए। जब विवाद पैदा होने लगे, तो इसे रोकने का स्वांग रचा जाए। हो सकता है - यह नारा 'जय श्री राम की तरह बंद भी हो जाए। मगर जो निष्ठा से युक्त नारा गढ़ा गया, लगाया गया और संपूर्ण देश में फैलाया गया, उसके मतलब और मकसद तो समझ में देशवासियों को आना चाहिए। देश को 'जय श्री राम का नारा और निष्ठा का मतलब समझ में आ चुका है। अब इस नए नारे और नए नजारे को समझने की जरूरत है।
संघ का बीजेपीकरण और बीजेपी का मोदीकरण पूर्णत: हो चुका है। आडवाणी युग का सूरज डूब चुका है। जसवंत सिंह, हिरेन पाठक, लालजी टंडन, लालमुनि चौबे, जैसे आडवाणी कैंप के समर्थकों के टिकट काटे जा चुके हैं। सुषमा स्वराज दुखी हैं। मुरली मनोहर जोशी और कलराज मिश्र का तबादला किया गया। तबादला किया गया या यों कहें कि पुराने फर्नीचरों को इधर से उधर करके अजस्ट किया गया। अजस्टमेंट की इस सूची से जसवंत सिंह बाहर हो गए और मीडिया के सामने अपने आंसू रोक नहीं सके। आखिर इनलोगों के लिए क्यों आंसू भरी हो गर्इ बीजेपी की राहें ... ? किसी जमाने में कल्याण सिंह, उमा भारती आदि पिछड़े वर्ग के नेताओं के लिए आंसू भरी थी बीजेपी की राहें...। उस जमाने में फॉरवर्ड की पार्टी थी- बीजेपी। अब बीजेपी का मोदीकरण के साथ मंडलीकरण हो गया है। जाहिर है कि मंडल-कमंडल की राजनीति पर मंडल पहले भी भारी पड़ा था। मगर ऐसा किसी ने नहीं सोचा था कि कमंडल का ही मंडलीकरण हो जाएगा।

Raj Birda Choudhary  का कमेंट 
सत्ता के लिए देश की राजनीति का कमंडलीकरण हुआ। सत्ता के लिए ही देश की राजनीति का मंडलीकरण हुआ। सत्ता के लिए ही बहन मायावती बसपा का कमंडलीकरण करती हैं और अधिक से अधिक ब्राह्मण उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारती हैं। मुलायम भी मंडल का कमंडलीकरण करते हैं और सत्ता सुख प्राप्त करते हैं। देश की राजनीति इन्हीं तंग गलियों में उलझ-पुलझ गर्इ है। कुल मिलाकर देखा जाए तो देश की राजनीति मुंबइया फिल्मी फॉर्म्युले पर ही हिट और सुपरहिट होती है। मारधाड़ से भरपूर। जात-धरम। हम लाख गाएं - 'ये जात-धरम के झगड़े इंसान की है नादानी। मजे की बात यह है कि इसी नादानी से देश की राजनीति चलती है। पता नहीं, देश की कौन-सी राजनीति पार्टी किसी अंबानी और अदानी की दुकान नहीं है ? वोट जनता का है, लाभ कॉरपोरेट का। देश की इस प्रकार की राजनीति का फायदा कौन उठाता है। बेचारी जनता तो लूजर है। गेनर लीडर, मिनिस्टर, अफसर और कॉरपोरेट घरानेवाले हैं। सत्ता में सभी दलों की किसी-न-किसी रूप में हिस्सेदारी होती है। मगर देश के किसान, मजदूर, नौजवान और आम आदमी को क्या मिलता है? न बुनियादी सुविधा, न सुरक्षा, न आजीविका, न सही शिक्षा, न न्याय। यह कैसा लोकतंत्र है? या यों कहें कि हमारे रहनुमाओं ने लोकतंत्र को कैसा बना डाला। मार डाला। क्या हम मरने के वास्ते वोट डालते हैं ? -Comrade Aman Mishra Dyfi

(posted on FB on Monday March 24, 2014 at 08:23 PM)

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