Tuesday, March 25, 2014

नायक कौन? जेबकतरे या सियासी लीडर?

किरण खेर ने की चंडीगढ़ को अलग राज्य बनाने की मांग 
किरण खेर 
डा. लोक राज 
कुछ लोग कहते हैं कि लक्ष्मी अपनी इच्छा से आती है---उसे दिमागी तरकीबों से नहीं पाया जा सकता---अगर ऐसा  होता तो बहुत से पढ़े लिखे बुद्धिमान लोग धन के आभाव में न होते…! अगर यह मेहनत से आती तो बहुत से लोग दिन रात मेहनत करते हैं पर यह उनके पास भी नहीं आती। मैंने उनसे पूछा यह लूट खसूट करने वालों और दूसरों का हक़ मारने वाले  शातिर लोगों के पास क्यूँ फटाफट भागी चली आती है---उनका जवाब इस मुद्दे पर भी कमाल का था---उसकी चर्चा किसी अलग पोस्ट में पर मैं इतना ज़रूर मान गया कि कुछ चीज़ें नसीब से मिलती हैं---कुछ इतफ़ाक से---यह सब बहुत अचानक होता है जिसकी न कल्पना की होती है न ही कोई योजना बनाई होती है---!
आज फेसबुक पर यह कविता भी कुछ  ऐसे ही मिली। मैं पढ़ रहा था डाकटर लोकराज की  एक पोस्ट जिसमें उन्होंने चंडीगढ़ से भाजपा की प्रत्याशी किरण खेर के उस बयान को आड़े हाथों लिया है जिसमें उन्होंने चंडीगढ़ को अलग राज्य बनाने का प्रस्ताव रखा है। लूटखसूट और अन्याय के करूप चेहरे को शब्दों के खूबसूरत मेकअप में रंग कर प्रस्तुत करना किरण जैसे नेतायों को खूब आता है। एक तो अभिनेत्री दूसरा सियासत का रंग---एक करेला दूसरा नीम चढ़ा। इस बहाने से असली चेहरे का रंग भी दिखने लगा है। आप इसे डाकटर लोक राज की प्रोफाईल पर पढ़ सकते हैं। फिलहाल पढ़िए एक रचना जो मुझे इस पोस्ट के कमेंट बॉक्स में मिली। सीधा दिल को छूती है। आप इसे पढ़ कर ही अनुमान लगा सकते हैं कि आज के सियासतदान क्या करते हैं----किसी ने कहा था--
उनसे ज़रूर मिल लो,सलीके के लोग हैं !
वो क़त्ल भी करेंगे बड़े अहतराम से ! 
इस शेयर को पढ़ कर आप को सियासतदानों के बयानों में छिपी हकीकत नज़र आने लगेगी---कभी बुल्ले शाह ने कहा था---कुत्ते --तैथों उत्ते अब लाहौर पाकिस्तान के रहने वाले बाबर जालंधरी ने शायद कुछ यूं कहा है कि इन लीडरों से तो चोर और जेबकतरे ही अच्छे।
Babar Jalandhari Translate from: English
बाबर जालंधरी 
बस से उतर कर जेब में हाथ डाला।
मैं चौंक पड़ा 
जेब कट चुकी थी 
जेब में था भी क्या? 
कुल नौ रुपये और एक पत्र 
जो मैंने माँ को लिखा था:
मेरी नौकरी छूट गई है, 

अब पैसे नहीं भेज पाऊंगा''
तीन दिनों से वह पोस्टकार्ड जेब में पड़ा था 

पोस्ट न किया तबीयत ठीक नहीं रही थी
नौ रुपये जा चुके थे 
यूँ नौ रुपए कोई बड़ी रकम नहीं थी
लेकिन
जिसकी नौकरी छूट गई हो उस के
लिए नौ सौ से कम भी तो नहीं है। 
कुछ दिन बीते ... माँ का खत मिला 

पढ़ने से पहले मैं सहम गया 
जरूर पैसे
भेजने को लिखा होगा 

लेकिन पत्र पढ़कर
मैं हैरान रह गया ! 

माँ ने लिखा था :
''बेटा ! तेरा भेजा पचास रुपये का मिनी आदेश मिला 

तू कितना अच्छा है रे ... 
पैसे भेजने मैं जरा कोताही नहीं करता''
काफी दिनों तक उधेड़बुन में
रहा कि आखिर माँ को पैसे किसने भेजा ?
कुछ दिन बाद एक और पत्र मिला

आड़े तिरछे शब्दों की लिखावट 
बड़ी मुश्किल से पढ़ सका :
''भाई नौ रुपए तुम्हारे 
और इकतालीस रुपये अपने मिलाकर 
मैंने तुम्हारी माँ को 
मिनी आदेश भेज दिया है.. 

चिंता मत करना, 
माँ तो सब एक जैसी होती है ना ! 
वह क्यों भूखी रहे ? 
... तुम्हारा जेब कतरा
आपने रचना पढ़ी इसके लिए धन्यवाद--अब फैसला आपके दिल की आवाज़ पर कि नायक कौन वो जेब कतरा  या आये दिन नए नए टैक्स लगा कर जीना दूभर करने वाले वे सियासतदान जो कई बार बंट चुके पंजाब को फिर बांटने पे तुले हैं। -रेकटर कथूरिया 

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