Wednesday, July 31, 2013

INDIA: लोकतंत्र को ढकेलते न्यायालय

Wed, Jul 31, 2013 at 12:33 PM
An Article by the Asian Human Rights Commission                        --प्रशान्त कुमार दूबे
पिछले साठ सालों में भारतीय लोकतंत्र मजबूत हुआ है। हमारा चुनाव आयोग दुनिया का सबसे बेहतर आयोग है। इस लोकतंत्र में जहां एक ओर तो दलित और वंचित वर्गों को प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला है वहीं दूसरी ओर बड़ी संख्या में महिलाएं आगे आई हैं।'' अरविन्द मोहन
पिछला सप्ताह राजनीतिक दलों और राजनीतिज्ञों के लिए एक बड़े ही कठिन समय की दस्तक लेकर आया | माननीय उच्चतम न्यायालय का वह फैसला जिसमें कहा गया था कि यदि मौजूदा सांसदों और विधायकों को किसी आपराधिक मामले में दो साल से ज्यादा और भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत कोई भी सजा दी जाती है, तो उनकी सदस्यता तत्काल प्रभाव से खत्म कर दी जाएगी।
दूसरे ही दिन सर्वोच्च अदालत ने एक अन्य निर्णय में कहा कि यदि कोई व्यक्ति जेल में है तो वह वहां से चुनाव भी नहीं लड़ सकता है। इस सम्बन्ध में इस बात का हवाला दिया गया कि जब उस व्यक्ति को जेल से मतदान करने का अधिकार नहीं है, तो फिर उसे चुनाव लड़ने का भी अधिकार नहीं है। इस आदेश की व्याख्या में अदालत ने पटना उच्च न्यायालय के वर्ष 2004 में दिए गए फैसले का हवाला भी दिया है। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति ए.के. पटनायक और एस.जे. उपाध्याय की दो सदस्यीय पीठ ने यह दोनों आदेश लिली थामस, चुनाव आयोग, लोकप्रहरी और बसंत कुमार चैधरी की जनहित याचिकाओं पर दिए।
तीसरा और अंतिम फैसला उत्तरप्रदेश उच्च न्यायालय ने दिया। अदालत ने कहा कि राजनैतिक दल जाति के आधार पर रैलियां आय¨जित नहीं कर सकते हैं। ज्ञात हो कि पिछले सालों में उत्तरप्रदेश में जातिगत रैलियों का बोलबाला रहा है। यहां तक कि वे दल (बसपा, सपा) जो कि स्वयं जाति के इस कुचक्र को तोड़ने आये थे, उन्होंने ही सबसे ज्यादा जातिगत रैलियां कीं। कभी ब्राहमण रैली तो कभी यादव और कभी दलित रैली ......।
इन तीनों फैसलों ने जहां एक ओर राजनैतिक दलों को तो सांसत में डाला ही है, वहीं दूसरी ओर जिन मंत्री-विधायकों पर आपराधिक मुकदमे की तलवार लटक रही है, उनकी जान भी आफत में डाल दी है। मध्यप्रदेश में सत्ताधारी तीन विधायकों पर यह तलवार लटक रही है, जिनमें से पूर्व मंत्री राघव जी भी शामिल हैं। एक के बाद एक आए इन तीन फैसलों ने प्राईम टाइम को नया मसाला दे दिया। यह खबर खबरी चैनलों पर गन्ने की चरखी के उस गन्ने की तरह चली, जिसे सूखा और रूखा होने तक निचोड़ा जाता है।
इस पूरे दौर में राजनैतिक दल मजबूरी के चलते फैसलों को लोकतंत्र की मजबूती के लिए बढि़या कदम बताते रहे। चैनलों और अखबारों का एक्सपर्ट पैनल इसका फौरी विश्लेषण करता रहा। लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि क्या इससे लोकतंत्र मजबूत होगा ? क्या राजनीति का अपराधीकरण या अपराध का राजनैतिकीकरण खत्म हो जाएगा? क्या राजनैतिक दल जिस तरह से इस फैसले का स्वागत कर रहे हैं क्या उसी तरह से ही इसे स्वीकार कर लेंगे? इसे राजनीति में सुधार की दिशा में कदम माना जाएगा? इन सभी सवालों का जवाब केवल न में ही है?
हम सभी जानते हैं कि आजकल अधिकांश पार्टियां अपराधियों से परहेज नहीं करतीं या अपराधी चुनाव जीतने लगे हैं। इस संदर्भ में किसी भी दल की तात्कालिक सरकारों के ग्राफ भी देख लें तो हम पाते हैं कि लगभग एक चैथाई नेता दागी हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म (एडीआर) के आंकड़ों को देखें तो हम पाते हैं कि देश के 543 सांसदों में से 162 पर आपराधिक प्रकरण दर्ज हैं। इतना ही नहीं उनमें से भी 14 प्रतिशत सांसदों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। इसी प्रकार देशभर के 4032 विधायकों में से 1258 विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं और उनमें से भी 15 प्रतिशत विधायकों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनमें से यदि 10 प्रतिशत नेता ऐसे भी मान लिए जाएं जिन पर राजनैतिक द्वेष के चलते झूठे मुकदमे चल रहे हैं तो भी बची हुई संख्या भी काफी है।
मध्यप्रदेश में भी 217 विधायकों में से 55 विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं व इनमें से 25 विधायकों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। गौरतलब है कि इनमें से अधिकांश या तो मंत्री हैं या मंत्री रह चुके हैं। हद तो यह है कि झारखंड में तो 74 प्रतिशत विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं।
जो राजनैतिक दल इन निर्णयों का अभी स्वागत कर रहे हैं यदि उन्हें राजनीति में सुधार इतने ही वांछित लगते हैं तो फिर उन्होंने अभी तक अपने-अपने दलों में यह प्रक्रिया क्यूं नहीं अपनाई? जबकि चुनाव आयोग ने तो वर्ष 2004 में ही इन सुधारों को लेकर सिफारिशें की थीं। तबसे लेकर आज तक न तो इन दलों ने जाति जैसे प्रश्न पर कुछ बात की और ना ही इन्होंने अपराध पर लगाम लगाने के लिए कोई पहल की। पिछले दिनों इन दलों के पास स्वयं के लोकतांत्रिक होने और लोकतंत्र का सम्मान करने वाले दल के रूप में प्रस्तुत करने का बेहतर अवसर मिला था तब ये दल अपने आंतरिक तंत्र को सूचना के अधिकार के दायरे में ला सकते थे। यहां भी इन दलों ने ऐसा नहीं किया, बल्कि तमाम परस्पर विरोधी दल आपस में एक साथ आकर राष्ट्रीय सूचना आयोग के निर्णय के विरुद्ध अध्यादेश लाने पर सहमत हो गए हैं। यही लोकतंत्र में आस्था रखने का स्वांग रचने वाले इन दलों का असली चेहरा है।
विचारणीय है कि राजनीतिक दलों को लोकतंत्र में इतनी ही गहरी आस्था होती तो फिर ये गैर संवैधानिक तरीके से जनप्रतिनिधित्व कानून को संशोधित करके धारा-8 (4) क्यों बनाते? जब एक आम नागरिक के लिए इस कृत्य की सजा तय है तो फिर राजनेता इससे कैसे बच सकते हैं? अमेरिका के मशहूर न्यायाधीश फेलिक्स फ्रेंकफर्टर का कहना है कि दुनिया का कोई भी पद नागरिक से बड़ा नहीं होता है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म (एडीआर) के राष्ट्रीय समन्वयक अनिल बैरवाल कहते हैं दरअसल में यह फैसले राजनीतिक दलों के मुंह पर तमाचा है। वे कहते हैं कि लोकतंत्र की खूबसूरती तो यही है कि सभी घटक अपने-अपने हिस्से का काम बखूबी करें, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। राजनीतिक दलों ने अपनी ओर से कोई भी ठोस कदम नहीं उठाये हैं और जिसके चलते ही न्यायालय को इस भूमिका में आना पड़ा।
मध्यप्रदेश इलेक्शन वॉच की समन्वयक रोली शिवहरे कहती हैं कि अधिक न्यायालयीन हस्तक्षेप से लोकतंत्र कमजोर होता है। यह न्यायालय की मजबूरी है कि वह हस्तक्षेप करे। बेहतर तो तब होता जब कि वे (राजनीतिज्ञ) खुद इस प्रकार की पहल करते और लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करते।''
सवाल उठता है कि क्या हम एक ऐसे लोकतंत्र की ओर बढ़ रहे हैं जहां कि हर राजनैतिक या किसी और प्रकार के सुधार के लिए हमें अदालती डंडे का सहारा लेना पड़ेगा। यानी हर वो समूह जिसके पास पैसा है, ताकत है, वह तो इसे हासिल कर लेगा, लेकिन उनका क्या जो कि दो जून की रोटी के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। और रही बात न्याय में देरी की व न्यायालयों के गड़बड़ निर्णयों की तो उनकी तो बात करना ही बेमानी है। शायद यही कारण है कि दक्षिण भारत के अनेक आदिवासी समुदायों ने तो न्यायालय जाना बंद ही कर दिया है।
अंत में सिर्फ इतना ही कि क्या केवल न्यायालय के निर्णयों एवं जनहित याचिकाओं के जरिये ही लोकतंत्र पटरी पर दौड़ेगा या फिर इस लोकतंत्र को सही मायने में बचाने के लिए राजनैतिक दल कुछ ईमानदार कोशिश करेंगे? आज राजनीति सुधार की नहीं बल्कि दवाब की राजनीति बनकर रह गई है। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि प्रत्येक राज्य सरकार को अभी तक यह अधिकार प्राप्त है कि वह किसी भी अपराधी के खिलाफ प्रकरणों को निरस्त कर सकती है।
About the Author: Mr. Prashant Kumar Dubey is a Rights Activist working with Vikas Samvad, AHRC's partner organisation in Bophal, Madhya Pradesh. He can be contacted at prashantd1977@gmail.com
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About AHRC: The Asian Human Rights Commission is a regional non-governmental organisation that monitors human rights in Asia, documents violations and advocates for justice and institutional reform to ensure the protection and promotion of these rights. The Hong Kong-based group was founded in 1984.

Tuesday, July 30, 2013

लोग अफवाहों से करें परहेज-अमृतसर पुलिस

Tue, Jul 30, 2013 at 7:30 PM
काला कच्छा गिरोह और नाइजीरियन गिरोह का कोई वजूद नहीं
अमृतसर (गजिंदर सिंह किंग//पंजाब स्क्रीन): पिछले कुछ दिनों से सीमावर्ती गांवों, कस्बों और शहरों में फैली काला कच्छा गिरोह और नाइजीरियन गिरोह की सक्रियता की बातों का खंडन करते हुए जिला पुलिस ने आज दावा किया है, कि उक्त सभी सूचनाएं सिर्फ अफवाहें हैं, इसके सिवा कुछ भी नहीं। आज अमृतसर सिटी और देहाती पुलिस के साथ-साथ सीमा रेंज के डीआईजी ने सांझे तौर पर प्रेस कांफ्रेंस कर लोगों को अफवाहों से बचने और गुरेज करने की अपील की। इसके साथ ही उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि लोगों की सुरक्षा पंजाब पुलिस का पहला फर्ज है और इसके लिए पुलिस पूरी तरह से मुस्तैद है। इस मौके पर अमृतसर के पुलिस कमिश्नर राम सिंह और बार्डर रेंज के डीआईजी ने कहा, कि अफवाहों की सूचनाएं उन्हें भी मिली थी, जिनकी वेरिफिकेशन कराने पर वे झूठी निकली। डीआईजी बार्डर रेंज ने कहा, कि इन्हीं अफवाहों का फायदा उठाते हुए लोग अपनी रंजिश भी निकाल रहे हैं। उन्होंने इसके लिए पंडोरी वड़ैच गांव में कुलवंत सिंह हत्याकांड के साथ-साथ कुछ और घटनाओं का भी उल्लेख किया। उक्त दोनों पुलिस अधिकारियों ने बताया, कि इन अफवाहों से निपटने के लिए पंजाब पुलिस के डीजीपी सुमेध सैनी ने पीएपी की पांच कंपनियों को यहां भेजा है। इसके अलावा नाइट पुलिसिंग शुरू की गई है। इसके अलावा ठीकरी पहरे के दौरान हथियारबंद लोगों को भी समझाया जा रहा है कि वे इस तरह की अफवाहों को और बढ़ावा न दें। अमृतसर के कमिश्नर राम सिंह ने बताया, कि यदि इस अपील के बावजूद ठीकरी पहरे पर हथियारबंद युवक खड़े रहते हैं, तो इस पर आगे की कार्रवाई पर विचार किया जाएगा। हालांकि उन्होंने कहा, कि वह ठीकरी पहरे का विरोध नहीं करते हैं।

शहीद उधम सिंह को श्रद्धांजलि

Tue, Jul 30, 2013 at 7:40 PM
आतंकवाद विरोधी संगठन ने शहीद उधम सिंह को दी श्रद्धांजलि
अमृतसर (गजिंदर सिंह किंग//पंजाब स्क्रीन): शहीद उधम सिंह की शहादत दिवस की पूर्व संध्या पर आल इंडिया आतंकवाद विरोधी फ्रंट के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने जलियां वाला बाग में शहीद को श्रद्धांजलि अर्पित की। इस मौके सभी ने अमर ज्योति के सामने खड़े होकर प्रण भी लिया कि वे शहीद उधम सिंह की विचारधारा को पूरे देश में फैलाएंगे, ताकि युवा पीढ़ी जो देश को आजाद कराने के लिए कुर्बानियां देने वाले शहीदों को भूल चुकी है, उन्हें उनके बारे में जागरूक किया जा सके।
   शहीद उधम सिंह का 31 जुलाई को शहीदी दिवस है। शहीद उधम सिंह को उनकी शहादत पर श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए आल इंडिया आतंकवाद विरोधी फ्रंट ने शहीदी दिवस की पूर्व संध्या पर जलियां वाला बाग में शहीद को नमन किया और इस मौके पर प्रण भी लिया, कि वे शहीदों के सपने के मुताबिक देश बनाने के लिए युवा पीढ़ी को इस संबंध में जागरूक करेंगे। इतना ही नहीं, फ्रंट के नेता ने कहा, कि अन्ना हजारे ने आज पूरे देश को भ्रष्टाचार के खिलाफ जागरूक किया है और फ्रंट अन्न हजारे के साथ खड़ा है।

सरोजिनी साहू एक विशिष्ट नाम-कमलेश्वर

Mon, Jul 29, 2013 at 7:45 AM
इनकी कहानियां मन को झकझोरती हैं               -नब्बे के दशक में  कहा था 
प्रिय मित्र,
नब्बे के दशक में कमलेश्वर ने ओडिया की लेखिका सरोजिनी साहू के सन्दर्भ
में लिखा था:
"प्रखरतम लेखिका के रूप में और यथार्थ स्पष्टवादिता के लिए सरोजिनी साहू
एक विशिष्ट नाम है. इनकी कहानियां मन को झकझोरती है. मध्यमवर्ग के
पारिवारिक जीवन की समस्याएं, उलझाने, सुख-दुःख, आशा-निराशा, संजोए-बिखरते
सपने, आम जिन्दगी के संघर्षशील अनुभवों को लेकर वे बड़े ही प्रखर शैली
में अपनी बात कहती हैं. ओडिया कथा-साहित्य में सरोजिनी साहू एक विशिष्ट
प्रतिभा का नाम है. अबतक उनका एक ही संकलन 'सुखर मुहाँ-मुहिं' प्रकाशित
हुआ है. यों नियमित रूप से पत्र-पत्रिकाओं में उनकी कहानियां प्रकशिओत
होती रहती हैं और बहु-चर्चित कथा लेखिका के रूप में उनकी ख्याति है."
देखें: भारतीय शिखर  कथा कोष   (http://bit.ly/13Rs1MB)
नब्बे के दशक की उस प्रतिभाशाली लेखिका आज भारतीय साहित्य में न केवल
शीर्ष स्थान पर हैं, बल्कि भारतीय नारीवाद को उन्होंने एक नया आयाम दिया
है. हिंदी में, इस प्रखरतम प्रतिभा के, अबतक दो उपन्यास और दो कहानी
संग्रह प्रकाशित हो चुके है.

राजपाल & संस की ओर से उपन्यास 'बंद कमरा' (ISBN :9788170289548 ) तथा
कहानी संग्रह 'रेप तथा अन्य कहानियां' (ISBN: 9788170289210 )प्रकाशित हो
चूका है.

यश प्रकाशन, दिल्ली ने प्रकाशित किया है उनका उपन्यास 'पक्षिवास' तथा
कहानी संग्रह 'सरोजिनी साहू की दलित कहानियां'.

लेखिका के सन्दर्भ में अधिक जानकारी के लिए उनके होमपेज
सरोजिनीसाहू.कॉम (http://www.sarojinisahoo.com/ )' पर मित्रों का सादर
निमंत्रण है.

सादर प्रणाम
उमा शिवप्रिया

बेरी साहिब के पास और बढ़ेगा पूजा पाठ का अखंड सिलसिला

Mon, Jul 29, 2013 at 8:55 PM
गुरुद्वारा बेरी साहिब में अखंड पाठ के भोग के लिए होंगें दस कमरे
अमृतसर (गजिंदर सिंह किंग/पंजाब स्क्रीन) सचखंड श्री हरमंदिर साहिब स्थित गुरुद्वारा बेरी साहिब में होने वाले अखंड पाठों के लिए अब अलग से कमरे तैयार किए जाएंगे। आज इस कारसेवा को श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार, सचखंड श्री हरमंदिर साहिब के मुख्य ग्रंथी और कार सेवा वाले बाबा ने टक लगा कर आरंभ किया। इस मौके पर श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी गुरबचन सिंह ने कहा, कि माहिरों के कहने के बाद ही इन कमरों का निर्माण कार्य शुरू किया गया है। 
        सचखंड श्री हरमंदिर साहिब परिसर स्थित गुरुद्वारा बेरी साहिब में होने वाले अखंड पाठों के लिए अब अलग से कमरे तैयार होंगे। इन कमरों की कारसेवा का आज श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी गुरबचन सिंह, सचखंड श्री हरमंदिर साहिब के मुख्य ग्रंथी ज्ञानी मल सिंह और कार सेवा वाले बाबा कश्मीर सिंह भूरी वालों ने टक लगा कर शुभारंभ किया। इस मौके पर श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ने बताया, कि माहिरों के कहे अनुसार ही एसजीपीसी की ओर से श्री  अखंड पाठ साहिब के लिए अलग से कमरे तैयार करने का निर्णय लिया गया है। उन्होंने बताया, कि इस कार्य की कारसेवा संत बाबा कश्मीर सिंह जी को सौंपी गई है। वहीं, कार सेवा वाले बाबा संत कश्मीर सिंह भूरी वालों ने कहा, कि करीब चार महीनों के अंतराल में दस कमरे तैयार कर संगत के सुपुर्द कर दिए जाएंगे।

भगत पूरण सिंह जी को श्रद्धांजलि के कार्यक्रम

पहली से पांच अगस्त तक चलेगा विभिन्न आयोजनों का सिलसिला 
अमृतसर:29 जुलाई, 2013: (गजिंदर सिंह किंग//पंजाब स्क्रीन) पिंगलवाड़ा सोसायटी की ओर से भगत पूरण सिंह जी की   21 वीं बरसी के मौके पर विभिन्न कार्यक्रम कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जाएगी। यह जानकारी पिंगलवाड़ा सोसायटी की मुखी डा. इंद्रजीत कौर ने आज प्रेस कांफ्रेंस में दी। 
         पिंगलवाड़ा सोसायटी की ओर से भगत पूरण सिंह जी की 21 वीं बरसी के मौके पर विभिन्न कार्यक्रम कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जाएगी। यह जानकारी पिंगलवाड़ा सोसायटी की मुखी डा. इंद्रजीत कौर ने आज प्रेस कांफ्रेंस में दी। उन्होंने बताया, कि इन पांच दिनों में मेडिकल कैंप लगाया जाएगा। इसके अलावा पिंगलवाड़ा सोसायटी के तीनों स्कूलों के बच्चों की ओर से सभ्याचारक कार्यक्रम भी पेश किया जाएगा। उन्होंने बताया, कि तीन अगस्त को सोसायटी कार्यालय में श्री अखंड पाठ रखवाए जाएंगे। जिनका पांच अगस्त को भोग डाला जाएगा। उन्होंने कहा, कि इन पांच दिनों के दौरान लगाए जाने वाले मेडिकल कैंप में जहां सोसायटी के बच्चों का चेकअप किया जाएगा, वहीं आम संगत का भी चेकअप किया जाएगा।

अमृतसर में रंजिशन हत्या

अफवाहों का फायदा उठाते हुए निकाली चुनावी रंजिश
गोली मार कर एक की हत्या, दो को किया जख्मी
अमृतसर:29 जुलाई,2013: (गजिंदर सिंह किंग//पंजाब स्क्रीन) पूरे राज्य में इस समय काला कच्छा गिरोह और नाइजीरियन गिरोह के हमलों की अफवाहों का दौर जारी है। इन्हीं अफवाहों का फायदा उठाते हुए कुछ लोग अपनी निजी रंजिशों को निकालने में जुटे हुए हैं। ऐसा ही एक मामला अमृतसर के पंडोरी वड़ैच गांव में सामने आया है। जहां पंचायती चुनावों की रंजिश निकालने के लिए एक पक्ष ने अपने विरोधी पक्ष से संबंधित कुलवंत सिंह नामक व्यक्ति को गोली मार कर मौत के घाट उतार दिया, जबकि दो लोगों को घायल कर दिया। घटना की जांच में जुटे पुलिस अधिकारी सुखदेव सिंह के मुताबिक बीती रात पंडोरी वड़ैच गांव में कुछ लोगों अफवाह फैला दी कि उनके गांव में काला कच्छा गिरोह के लोग घुस गए हैं। उक्त अफवाह सुनते ही पूरा गांव घरों से बाहर निकल आया। इसी दौरान गांव निवासी कुलवंत सिंह और उनका बेटा बलजीत सिंह भी बाहर आए। दूसरी ओर गांव का ही रहने वाला सोनू और उसका साथी भी हथियारों के साथ बाहर आया और कुलवंत सिंह पर गोलियां दाग दी। जिससे कुलवंत सिंह की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि उसके साथ खड़े गांव के ही निवासी दो लोग घायल हो गए। उन्होंने बताया कि इस संबंध में केस दर्ज कर लिया गया है। लेकिन आरोपी अभी फरार है। उन्हें गिरफ्तार करने के लिए छापेमारी की जा रही है। जांच अधिकारी ने दावा किया है कि आरोपियों को जल्द ही गिरफ्तार कर लिया जाएगा।

Sunday, July 28, 2013

अमृतसर में नौसरबाज साधु गिरफ्तार

Sun, Jul 28, 2013 at 5:21 PM
महिलाओं से ठगी गई तीन सोने और हीरे की अंगूठियां बरामद
अमृतसर (गजिंदर सिंह किंग//पंजाब स्क्रीन) अक्सर लोगों के घरों में साधु के भेष में घुस कर भोली-भाली महिलाओं को अपनी ठगी का शिकार बनाने वाले गिरोह का पर्दाफाश करते हुए अमृतसर पुलिस ने एक नौसरबाज को गिरफ्तार करने में कामयाबी हासिल की है। पुलिस ने आरोपी के कब्जे से दो हीरे की और एक सोने की अंगूठी भी बरामद कर ली है। डीएसपी सोहन सिंह ने इस संबंध में बताया, कि 17 जुलाई को अमृतसर के रानी का बाग इलाके की एक कोठी में दो साधु पहुंचे और घर में मौजूद महिलाओं से भोजन की मांग की। भोजन ग्रहण करने के बाद साधुओं ने महिलाओं से कहा, कि वे उनके शारीरिक कष्ट को दूर कर देंगे और यह कह उन्होंने महिलाओं से उनके गहने उतरवा लिए। इसके बाद मंत्र मारने का बहाना बना कर उक्त साधुओं ने कागज में छोटी ईंट लपेट कर दे दिया और वहां से चले गए। महिलाओं ने जब कागज खोल कर देखा, तो उसमें गहने नहीं थे। इस बीच महिलाओं में से एक ने साधुओं की फोटो खींच ली थी। जिसके आधार पर पुलिस ने कार्रवाई करते हुए नौसरबाजों में से एक राजीनाथ को काबू कर लिया, जबकि उसका साथी बूटा सिंह उर्फ डैनी अभी भी फरार बताया जाता है। पुलिस ने गिरफ्तार आरोपी के कब्जे से दो हीरे की और एक सोने की अंगूठी बरामद कर ली है।

मामला अमृतसर में ई-ट्रिप के खिलाफ आन्दोलन का

Sun, Jul 28, 2013 at 5:03 PM
 कांग्रेस लोगों को कर रही है गुमराह-बुलारिया
अमृतसर:28 जुलाई 2013: (गजिंदर सिंह किंग//पंजाब स्क्रीन) ई ट्रिप के खिलाफ चल रहे राज्य व्यापी आन्दोलन का सामना करने के लिए अब अकाली नेतायों ने राजनीतिक मोर्चे पर भी लोहा लेना शुरू कर दिया है। अकाली नेतायों ने अमृतसर में इस आन्दोलन को लेकर कांग्रेस को निशाना बनाया और कहा कि कांग्रेस इस मुद्दे पर लोगों को गुमराह कर रही है अकाली दल के मुख्य संसदीय सचिव इंद्रबीर सिंह बुलारिया ने दावा किया है, कि ई-ट्रिप के मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी लोगों को और व्यापारियों को गुमराह कर रही है। उन्होंने कहा, कि इस सिस्टम के तहत सिर्फ छह वस्तुओं को शामिल किया गया है। जिसमें व्यापारियों को सिर्फ अपने कारोबार की जानकारी विभाग को देनी है। वह आज अमृतसर में व्यापारियों के साथ एक बैठक करने के बाद पत्रकारों को संबोधित कर रहे थे। बुलारिया ने कहा, कि आज की बैठक में व्यापारियों की कई मुश्किलें उनके सामने आई हैं। उन्होंने कहा, कि इन परेशानियों  से व्यापारियों को रोजाना दो-चार होना पड़ रहा है। उन्होंने कहा, कि वह जल्द ही उप मुख्यमंत्री सुखबीर बादल से मिल कर इन मुश्किलों के हल के लिए बात करेंगे। 
                             

Saturday, July 27, 2013

बड़े लोग भी कभी नहीं भूलते श्री हरिमंदिर साहिब में आ कर सजदा करना

पौंडीचेरी के राज्यपाल हुए सचखंड श्री हरमंदिर साहिब में नतमस्तक
अमृतसर (गजिंदर सिंह किंग/पंजाब स्क्रीन) पौंडीचेरी के नवनियुक्त राज्यपाल वरिंदर कटियार आज सचखंड श्री हरमंदिर साहिब में नतमस्तक होने पहुंचे। इस मौके पर उन्होंने जहां देश और दुनिया के भले की अरदास की, वहीं लंगर हाल में बर्तन साफ करने की सेवा भी बहुत ही श्रद्धा से निभाई। इस मौके पर उन्होंने कहा, कि पदभार ग्रहण करने के बाद उनकी इच्छा सचखंड श्री हरमंदिर साहिब में नतमस्तक होने की थी। उन्होंने बताया, कि वह जल्द ही अमृतसर से पौंडीचेरी तक की ट्रेन सेवा में भी सुधार कराएंगे। इसके अलावा उन्होंने बताया, कि पौंडीचेरी में वह गुरुद्वारा साहिबान के निर्माण कार्य का शुभारंभ करके आए हैं और परमात्मा की इच्छा से वह इसे चार जनवरी से पहले-पहले पूरा करने की कोशिश करेंगे।

Friday, July 26, 2013

सरना बन्धु श्री अकाल तख्त साहिब के सामने नतमस्तक

Fri, Jul 26, 2013 at 8:51 PM
दायर केस को वापस लें सरना बंधु-जत्थेदार श्री अकाल तख्त साहिब 
कहा-अपनी भूलों की क्षमा याचना के लिए गुरुद्वारा रकाबगंज में करवाए श्री अखंड पाठ 
यथा शक्ति मुताबिक लंगर लगाने का भी आदेश 
श्री अकाल तख्त साहिब के आदेशों का इन-बिन करेंगे पालन-सरना बंधु
अमृतसर (गजिंदर सिंह किंग) नवंबर 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों की यादगार के खिलाफ हाईकोर्ट में पटिशन दायर करने के बाद श्री अकाल तख्त साहिब पर तलब किए गए सरना बंधुओं को श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ने श्री अकाल तख्त साहिब से आदेश दिया है, कि वह उक्त केस को तुरंत वापस लें। इसके अलावा सरना बंधुओं को यह भी आदेश दिया गया है कि वे क्षमा याचना के लिए गुरुद्वारा रकाबगंज में श्री अखंड पाठ के साथ-साथ यथा शक्ति मुताबिक लंर लगाए। उधर, इस मौके पर सरना बंधुओं ने कहा, कि हम श्री अकाल तख्त साहिब के फैसले को मंजूर करते हैं। 
         नवंबर 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों की यादगार को गुरुद्वारा रकाब गंज में बनाए जाने के विरोध में हाईकोर्ट में याचिका दायर करने पर श्री अकाल तख्त साहिब पर तलब किए गए परमजीत सिंह सरना अपने भाई के साथ आज पांच सिंह साहिबानों के समक्ष पेश हुए। इस दौरान उन्होंने पांच सिंह साहिबानों को अपना लिखित स्पष्टीकरण पेश किया। पांच सिंह साहिबानों ने विचार करने के बाद परमजीत सिंह सरना और उनके भाई मंजीत सिंह सरना पर अपना फैसला ले लिया। पांच सिंह साहिबानों के इस फैसले को श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी गुरबचन सिंह ने श्री अकाल तख्त साहिब से सुनाया। जिसमें आदेश दिया गया कि सरना बंधु तुरंत कोर्ट में दायर किए गए केस को वापस लें। इसके साथ वे दोनों सिख दंगों के पीड़ित परिवारों के साथ गुरुद्वारा रकाबगंज में श्री अखंड पाठ रखवाएं और यथा शक्ति मुताबिक लंगर भी लगाएं और अपनी भूलों की क्षमा याचना करें।
      इससे पूर्व सिंह साहिबानों से मिलने के बाद पत्रकारों से बात करते हुए परमजीत सिंह सरना और हरविंदर सिंह सरना ने स्पष्ट किया, कि वे श्री अकाल तख्त साहिब को समर्पित हैं और श्री अकाल तख्त साहिब के प्रत्येक आदेश की इन-बिन पालना करेंगे। उन्होंने कहा, कि सिंह साहिबानों ने उनसे यही वादा लिखित में भी लिया है। परमजीत सिंह सरना ने यहां फिर स्पष्ट किया, कि वह सिख विरोधी दंगों में मारे गए लोगों की यादगार के खिलाफ नहीं है। बल्कि वह यह नहीं चाहते हैं, कि गुरुओं के शहीदी स्थल में किसी अन्य की शहीदी यादगार की स्थापना हो। सजा सुनने के बाद भावुक हुए परमजीत सिंह सरना ने कहा, कि वह हमेशा से ही श्री अकाल तख्त साहिब को समर्पित रहें हैं। उन्होंने कहा, कि उन्हें श्री अकाल तख्त साहिब से जो भी हुकुम हुआ है, वह उन्हें मंजूर है।  

सरना बन्धु श्री अकाल तख्त साहिब के सामने नतमस्तक

Thursday, July 25, 2013

रोज़ जब रात को बारह का गजर होता है- दुष्यंत कुमार

यातनाओं के अँधेरे में सफ़र होता है----- दुष्यंत कुमार


रोज़ जब रात को बारह का गजर होता है
यातनाओं के अँधेरे में सफ़र होता है

कोई रहने की जगह है मेरे सपनों के लिए
वो घरौंदा ही सही, मिट्टी का भी घर होता है

सिर से सीने में कभी पेट से पाओं में कभी
इक जगह हो तो कहें दर्द इधर होता है

ऐसा लगता है कि उड़कर भी कहाँ पहुँचेंगे
हाथ में जब कोई टूटा हुआ पर होता है

सैर के वास्ते सड़कों पे निकल आते थे

अब तो आकाश से पथराव का डर होता है!
                                                                 --------- दुष्यंत कुमार

Wednesday, July 24, 2013

सावन: जब फूलों से पछड जाता है सोना

Wed, Jul 24, 2013 at 8:10 PM
सावन में सोने के स्थान पर नवविवाहिता करती है फूलों का श्रृंगार
                                                                                                                                                                        तस्वीरें:किंग/पंजाब स्क्रीन 
अमृतसर (गजिंदर सिंह किंग/पंजाब स्क्रीन) सावन के महीने का यूं तो पूरी दुनिया को इंतजार रहता है, लेकिन भारत और खास तौर पर अमृतसर में रहने वाले नवविवाहित जोड़ों को इसका खासतौर पर इंतजार रहता है, दरअसल इस महीने के दौरान नवविवाहित जोड़े सोने के जेवरों के स्थान पर फूलों का श्रृंगार कर श्री दुर्ग्याणा तीर्थ स्थित श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर में नतमस्तक होने के लिए विशेष तौर पर पहुंचते हैं। मंदिर के पुजारी के मुताबिक सावन महीना खुशहाली का महीना है और हर ओर हरियाली इसी तथ्य का ही प्रतीक है, भगवान राम ने सीता माता का और भगवान श्री कृष्ण ने राधा जी का इसी महीने में फूलों का श्रृंगार किया था, यही कारण है, कि मंदिर में भी भगवान की मूर्तियों का फूलों से श्रृंगार किया जाता है, वेद व्यास पुजारी के मुताबिक इस महीने के दौरान नवविवाहित जोड़े विशेष रूप से फूलों का श्रृंगार कर मंदिर में आते हैं और अपनी, अपने परिवार की खुशहाली के अलावा भगवान से पुत्र प्राप्ति की मांग करते हैं, ताकि उनका वंश आगे बढ़ सके और नवविवाहित जोड़ों में प्रेम बना रहे।
          सदियों पुराना यह सिलसिला यहाँ इस सावन में भी दिखाई दे रहा है इस बार भी नवविवाहित जोड़ों में सावन के महीने को लेकर काफी खुशी दिखाई दी, उनके साथ माथा टेकने के लिए पहुंचे उनके परिजनों का कहना है कि उन्होंने भी अपने वैवाहिक जीवन के पहले सावन में इसी तरह श्रृंगार कर माथा टेका था और इसके फलस्वरूप जो मांगा वह उन्हें मिला और उन्हें उम्मीद है कि उनकी बहू की भी मुराद पूरी होगी और उनका वंश आगे बढ़ेगा।
         श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर में फूलों का श्रृंगार कर श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर में पहुंचे इन जोड़ों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था, सोने के जेवरों के स्थान पर फूलों का श्रृंगार कर पहुंची नवविवाहिताओं के चेहरे भी फूलों की ही तरह खिले हुए थे, इन नवविवाहित जोड़ों का कहना है, कि उनके मां-बाप की भी मुराद यहीं से पूरी हुई थी और उन्हें भी पूरा विश्वास है, कि उनकी मुराद भी पूरी होगी और भगवान उन्हें आशीर्वाद देंगे।

आयकर सेवा केंद्र का उद्घाटन

Wed, Jul 24, 2013 at 7:49 PM
सिंगल विंडो से हर समस्या का हल निकालने का नया प्रयास 
                                                                                                                                                         तस्वीरें:किंग/पंजाब स्क्रीन 
अमृतसर (गजिंदर सिंह किंग/पंजाब स्क्रीन) आधे पंजाब व जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए यह समाचार एक नई खुशखबरी है। अब लोगों को किसी भी मामले में आयकर विभाग के चक्कर काटने नहीं पड़ेंगे। चार मंजिलों के इस भवन में अधिकारियों के आफिस के नंबर ढूंढने की जरूरत भी अब नहीं पड़ेगी क्योंकि हरेक समस्या का समाधान के लिए पंजाब में पहला आयकर सेवा केन्द्र (एएसके) बुधवार को आयकर विभाग (अमृतसर हेडक्वार्टर) में खोला गया है। यह एक ऐसा केंद्र है जहाँ सिंगल विंडो सिस्टम में इस हेडक्वार्टर से जुड़े पठानकोट, गुरदासपुर, तरनतारन, फिरोजपुर, बठिंडा, फिरोजपुर, अमृतसर के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर के लाखों आयकरदाता ऑनलाइन सिस्टम के तहत जुड़ जाएंगे। जुड़ने वाले आयकरदाता जहां अपने फाइल का स्टेटस जान सकेंगे वहीं ऑनलाइन सिस्टम से एएसके से जुड़ने के साथ ही अपनी कोई भी समस्या व शिकायत भी नोट करवा सकते हैं।1आयकर दाता अपने रिटर्न, रिफंड की जानकारी दुनिया के किसी भी कोने में बैठकर ले सकता है। इसके लिए हरेक आयकर दाता को स्पेशल पासवर्ड नंबर दिया जाएगा, जिस तरह से ई-रिटर्न दाखिल की जाती है उसी तरह से वेबसाइट पर आयकर दाता अपना खाता खोल सकता है। एएसके में टोकन सिस्टम खुद को लेना होगा, जिसके लिए एएसके में लगे कंप्यूटर में अपना नाम, मोबाइल नंबर फीड करना होगा और उसके बाद ही आयकरदाता को टोकन नंबर मिलेगा। इसी के साथ ही अगर कोई व्यक्ति अपने पैन कार्ड का नंबर जानना चाहता है या फिर बनना वाले पैनकार्ड के स्टेटस के बारे में जानना चाहता है तो एएसके में इंटरनेट से जुड़ी कंप्यूटर स्क्रीन लगाई गई है, जहां उपभोक्ता ऐसी जानकारी हासिल कर सकते हैं। एएसके में एक हेल्प काउंटर भी है जहां किसी प्रकार की हेल्प (जो उनके अधिकार क्षेत्र में सीमित है) वह दी जाएंगी। इसके अतिरिक्त रिटर्न फाइल से लेकर रिफंड या अन्य मामलों में किसी भी जानकारी के लिए काउंसलिंग टीम भी मौजूद होगी। एएसके में आने वाली फाइलों की सारी जानकारी विभाग के आला अधिकारियों को होगी। ऐसे में उस फाइल को लेकर सभी जवाबदेह होंगे। एएसके को सीधे हेड आफिस (दिल्ली) से जोड़ा गया है। एएसके का शुभारंभ इंकम टैक्स चीफ कमिश्नर गुरप्रीत सिंह  ने किया।  चीफ कमिश्नर ने इसके पहले एएसके शिमला में खोला था। उन्होंने बताया, कि आयकर सेवा केंद्र की स्थापना के बाद अब लोगों को इंकम टैक्स से संबंधित हर प्रकार की जानकारी और उनकी दुविधा का हल सिंगल विंडो से किया जाएगा।

फिरोजपुर: चोरी की 11 गाड़ियों सहित काबू

थमने का नाम नहीं ले रहे जुर्म 
फिरोजपुर, 23 जुलाई: सुरक्षा बलों की संख्या और सुरक्षा तकनीक में लगातार आ रही आधुनिकता के बावजूद जुर्म थमने का नाम ही नहीं ले रहा। वाहनों की चोरी शायद मुजरिमों का सबसे ज्यादा पसंद का जुर्म है। पहले वाहन चोरी करो फिर उसी की सहायता से डकैती डालो या कोई और जुर्म करो और उसे कहीं भी छोड़ कर फरार हो जाओ। या फिर चोरी के वाहन को आगे किसी और गिरोह या असमाजिक कारवाई में सलिंप्त व्यक्ति को बेच दो आम तौर पर मध्यवर्गीय लोग भी सस्ता वाहन खरीदने के चक्कर में इस तरह के वाहन बेचने वालों के जाल में फंस जाते हैं इस लिए जुर्म की दुनिया में वाहनों की चोरी लगातार बढ़ रही है अब जिला फिरोजपुर की पुलिस ने एक युवक से चोरी की 11 गाड़ियां पकड़ने का दावा किया है। एस.एस.पी. वरिंदरपाल सिंह ने मीडिया को बताया कि जिला पुलिस ने एस.पी. (डी) रघबीर सिंह संधू की अध्यक्षता तथा इंस्पैक्टर गुरभेज सिंह इंचार्ज नारकोटिक कंट्रोल सैल फिरोजपुर के ए.एस.आई. बलविंदर सिंह ने पुलिस पार्टी के साथ तलवंडी चौक पर नाके के दौरान एक इनोवा गाड़ी को रोक कर पूछताछ की तो उसमें बैठे व्यक्ति ने अपना नाम गपरदीप सिंह उर्फ काका पुत्र जरनैल सिंह वासी घोलिया कलां जिला मोगा बताया। गाड़ी के कागजात मांगने पर वे गाड़ी के कागजात नहीं दिखा पाया, पुलिस द्वारा गहराई से पूछताछ करने पर पता चला कि उसकी सिरसा में डैंटिग पेंटिंग की दुकान है  जहां इमरान वासी मेरठ, अली वासी करनाल तथा गुप्ता वासी दिल्ली जो सभी नामी गाड़ी चोर है। इसके पास गाड़ियां चोरी कर लाते हैं यह उन गाड़ियों के चैसी नंबर बदल देता हैं। पुलिस द्वारा सख्ती से पूछताछ करने पर आरोपी के पास से 11 गाड़ियां बरामद हुई है। एस.एस.पी. ने बताया कि आरोपी के खिलाफ पहले भी सिरसा में गाड़ी चोरी का मामला चल रहा है। आरोपी के खिलाफ थाना घल्लकुर्द में मामला दर्ज कर लिया गया है। अब देखना है की इससे मिले सुरागों के बल पर पुलिस और किस किस बात का पता लगती है?

Saturday, July 20, 2013

भ्रष्ट शासन व्यवस्था की बुनियाद

Sat, Jul 20, 2013 at 6:53 PM
हिरासत में मरने वाले व्यक्ति का मूल्य 2 लाख रूपये ?-मनी राम शर्मा 
ब्रिटिश साम्राज्य के व्यापक हितों को ध्यान में रखते हुए गवर्नर जनरल ने भारतियों पर विभिन्न कानून थोपे थे| यह स्वस्प्ष्ट है कि भारत में राज्य पदों पर बैठे लोग तत्कालीन ब्रिटिश साम्राज्य के प्रतिनिधि थे और उनका मकसद कानून बनाकर जनता को न्याय सुनिश्चित करना नहीं बल्कि ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार करना, उसकी पकड को मजबूत बनाए रखना था और बदले में अच्छे वेतन-भत्ते, सुख-सुविधाएँ व वाही-वाही लूटना था| इसी कूटनीति के सहारे ब्रिटेन ने लगभग पूरे विश्व पर शासन स्थापित कर लिया था और एक समय ऐसा था जब ब्रिटिश साम्राज्य में कभी भी सूर्यास्त नहीं होता था अर्थात उत्तर से दक्षिण व पूर्व से पश्चिम तक उनका ही साम्राज्य दिखाई देता था| उनके साम्राज्य के पूर्वी भाग में यदि सूर्यास्त हो रहा होता तो पश्चिम में सूर्योदय हो रहा होता था| इसी क्रम में बेंजामिन फ्रेंक्लिन ने ब्रिटिश सम्राट व मंत्रियों को भी ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार हेतु कूटनीतिक मूल मन्त्र दिया था| बेंजामिन फ्रेंक्लिन ने ऐसा ही सुझाव देते हुए कहा था कि यदि प्रजाजन स्वतन्त्रता की मांग करें, परिवर्तनकारी विचारों का पोषण करें तो उन्हें दण्डित करें| वे चाहे कितना ही शांतिपूर्ण ढंग से जीवन यापन करें, शासन के प्रति अपना लगाव रखें, धैर्यपूर्वक आपके अत्याचारों को सहन करें तो भी उन्हें क्रांतिकारी ही समझें उनसे गोलियों और डंडे से निपटें और दबाये-कुचले रखें| यद्यपि शासन की शक्ति लोगों के विचारों पर निर्भर करती है किन्तु राजा की इच्छा को सर्वोपरि समझें| यदि आप अच्छे और बुद्धिमान लोगों को वहां गवर्नर बनाकर भेजेंगे तो वे समझेंगे कि उनका राजा अच्छा है और उनका भला चाहता है| यदि आप विद्वान और सही लोगों को वहां जज नियुक्त करोगे तो लोग समझेंगे कि राजा न्यायप्रिय है|इसलिए आप इन पदों पर नियुक्ति करने में सावधानी बरतें|
यदि आप कुछ हारे हुए जुआरियों, सटोरियों व फिजूलखर्ची लोगों को वहां गवर्नर बनकर भेजें तो वे इस पद के लिए बड़े उपयुक्त होंगे क्योंकि लोगों का शोषण कर वे उन्हें उद्वेलित करेंगे| झगडालू और अनावश्यक बहसबाजी  करने वाले वकीलों को भी न भूलें क्योंकि वे अपनी छोटी सी संसद में हमेशा विवाद खडा करते रहेंगे| अटोर्नी क्लर्क और नए वकील मुख्य न्यायाधीश के पद के लिए बड़े माफिक रहेंगे और वे आपके विचारों से प्रभावित रहेंगे| इन प्रभावों की पुष्टि और गहरे प्रभाव  के लिए, जब कभी भी कोई पीड़ित कुप्रबन्ध, उत्पीडन या अन्याय  की शिकायत लेकर आये तो ऐसे लोगों को भरपूर देरी, खर्चे से जेरबार कर और अंतत: पीड़ित करने वाले के पक्ष में निर्णय देकर शिकायतकर्ता को ही दण्डित करें| ऐसा करने का यह सुप्रभाव होगा कि भविष्य में होने वाली शिकायतों और मुकदमों पर स्वत: अंकुश लगेगा तथा स्वयम गवर्नर और जज, अन्याय व उत्पीडन करने के लिए आगे और प्रेरित होंगे जिससे लोग हताश होंगे| जब ऐसे गवर्नर यह महसूस करने लगें कि वे लोगों के बीच सुरक्षित नहीं रह सकते तो उन्हें वापिस बुला लिया जाये और उन्हें पेंशन से नवाजें | इससे नए गवर्नर भी यही मार्ग अपनाने को प्रेरित होंगे और सर्वोच्च सरकार को स्थायित्व प्रदान करेंगे|
जनता पर नए नए कर लगायें| जब जनता अपनी संसद को शिकायत करें कि उन पर ऐसी संस्था कर लगा रही है जहां उनका कोई प्रतिनिधित्व ही नहीं है और यह सामान्य अधिकारों के विपरीत है| वे अपनी शिकायतों के निवारण के लिए प्रार्थना करेंगे |संसद को उनके दावों को ख़ारिज करने दें और यहाँ तक कि उनकी प्रार्थनाओं को पढने से ही मना कर दें, और प्रार्थियों के साथ उल्लंघनकारी की तरह बर्ताव करें| इस सब को सुकर बनाने के लिए ऐसे जटिल और अंतहीन कानून बनायें कि उनकी पालना और याद रखना असंभव हो| जनता की प्रत्येक विफलता के लिए उनकी सम्पति जब्त करें| ऐसी सम्पति के दावों के मुकदमों को जूरी से वापिस लेलें और इसे ऐसे मनमाने जजों को सौंपें जिन्हें आपने नियुक्त किया हो तथा जो देश में निकृष्टतम चरित्र वाले हो व जिनके वेतन भत्ते इस सम्पति की कीमत से जुड़े हों व उनका कार्यकाल आपकी कृपा पर निर्भर हो|
बेंजामिन ने आगे यह परामर्श दिया कि तब यह भी घोषणा कर दें कि आपके आदेशों की अवहेलना देशद्रोह होगा और ऐसा करनेवाले संदिग्ध लोगों को पकड़कर सम्राट के न्यायालय में सुनवाई के लिए लन्दन भेज दें| सेना का एक नया न्यायालय बना दें जिसे निर्देश हों कि ऐसे लोग यदि अपनी निर्दोषिता की कोई गवाही देना चाहें तो उन्हें खर्चे से बर्बाद कर दें और यदि वे ऐसा न कर सकें तो उन्हें फांसी पर लटका दें| ऐसा करने से लोगों को यह विश्वास हो जाएगा कि यह कोई ऐसी शक्ति है जिसका धर्म ग्रंथों में उल्लेख हो जो न केवल उनके शरीर बल्कि उनकी आत्मा को ही मार देगी| लोगों पर कर लगाने के लिए, जहां तक संभव हो सबसे घटिया दर्जे के उपलब्ध निकृष्टतम लोगों का बोर्ड बनाकर भेजें| इन लोगों के वेतन-भत्ते, सुख-सुविधाएँ मेहनतकश जनता के खून पसीने  की कमाई के शोषण से उपजते हों क्योंकि राजा ने कोई खर्चा नहीं देना है | ऐसे  लोगों के सभी वेतन-भत्ते, सुख सुविधाओं पर कोई कर न लगे और इनकी सम्पति कानूनन सुरक्षित रहे| यदि किसी राजस्व अधिकारी पर जनता के प्रति नरमी का ज़रा भी संदेह हो तो उसे तुरंत निकाल फेंके| यदि अन्य राजस्व अधिकारियों के विरूद्ध कोई जायज शिकायत भी हो तो उसका संरक्षण करें| सबसे अच्छा तो यह रहेगा कि कि लोग असंतुष्ट रहें, उनका सम्मान-मनोबल घटे और उनमें पारस्परिक लगाव-प्रेम घटता जाए जिससे आपके लिए शासन करना आसान हो जाएगा|

आज भी भारत में एक सेवानिवृत न्यायाधीश का चित्र गलती से मीडिया द्वारा दिखा दिए जाने से मानहानि की कीमत 100 करोड़ रुपये आंकी जाती है किन्तु हिरासत में मरने वाले व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन का मूल्य ही 2 लाख रूपये आंककर न्यायिक कर्तव्य की बलि दे दी जाती है, वहीं हम कानून का राज होने और स्वतन्त्रता का झूठा दम भरते हैं जबकि समाजवाद व न्याय का सिद्धांत कहता है जिसे जीवन में कम मिला हो उसे कानून में अधिक मिलना चाहिए| क्या हमारे जज और वकील  इसे याद नहीं रख पाते हैं या कुछ अन्य गोपनीय कारण कार्य कर रहे हैं|  भारत की वर्तमान शासन व न्याय व्यवस्था भी हमें अंग्रेजी शासन से विरासत में मिली हुई है और उसका हमने आज तक प्रजातांत्रिकीकरण नहीं किया है- जजों को देवतुल्य मान लिया है- बल्कि पोषण कर इसे आगे बढाया है| अब विद्वान् पाठक स्वतंत्र चिन्तन और मूल्याङ्कन करें कि हमारी विद्यमान व्यवस्था में क्या बेंजामिन द्वारा सुझाई गयी उक्त व्यवस्था से कोई भिन्नता है और हमें इसमें कैसे परिवर्तन करने की आवश्यकता है जिससे वास्तविक अर्थों में लोकतंत्र स्थापित हो सके|-मनी राम शर्मा 

Thursday, July 18, 2013

आपदा-उपरांत श्री बद्रीनाथ–यात्रा// राजीव गुप्ता

 Tue, Jul 16, 2013 at 2:52 PM
उस दिन मन्दिर के प्रांगण में मात्र 10-20 लोग ही नजर आ रहे थे
जून मास के मध्य उत्तराखंड में आयी प्राकृतिक आपदा के पश्चात 1 जुलाई को देहरादून से मैंने श्री बद्रीनाथ जाने का कठोर निर्णय लिया. येन-केन प्रकारेण मैं श्री बद्रीनाथ पहुँचने में कामयाब हो गया. तीन दिन और दो रात मै श्री बद्रीनाथ धाम में ही रहा. इस दौरान श्री बद्रीनाथ धाम के दर्शन के साथ-साथ वहाँ के स्थानीय लोगो सहित प्रशासन, सेना, व आई.टी.बी.पी के लोगों से भी मिलना हुआ और उस दैवीय-आपदा के बारे मे चर्चा हुई. एक दिन भगवान बद्री विशाल के धर्माधिकारी श्री भुवन उनियाल मुझे घुमाने ऋषिगंगा की तरफ ले गये. रास्ते में मैने देखा कि कुछ लोग ऋषिगंगा के किनारे ही घर बनाने में लगे हैं. पूछने पर पता चला कि उस दैवीय-आपदा के चलते ये घर बह गये थे. बिल्डिग बायलाज की धज्जियाँ उडाकर बिल्कुल नदी के किनारे उन्हे घर बनाता हुआ देखकर मैं आश्चर्यचकित हो गया. क्योंकि मुझे ऐसा लग रहा था कि 10 दिन पहले आयी प्राकृतिक आपदा से भी लोगों ने कोई सबक नही लिया. हलाँकि मैने उन लोगों से बात करने की कोशिश किया था पर सफल नही हो पाया. फिर मैं अपने मन में ही बुदबुदाते हुए आगे चला गया. सायंकाल को श्री बद्रीनाथ जी की आरति के नियत समय से कुछ पहले मैं मन्दिर के प्रांगण में पहुँच गया. भारत के करोडों लोग अपनी श्रद्धा के चलते भगवान बद्रीविशाल के दर्शन हेतु आते है. भगवान बद्रीविशाल के कपाट वर्ष में छ: महीने के लिये ही खुलते है. परिणामत: इन दिनों श्री बद्री विशाल के दर्शन हेतु बडी संख्या मे लोग आते है. परंतु उस दिन मुझे मन्दिर के प्रांगण में मात्र 10-20 लोग ही नजर आ रहे थे.
भगवान बद्री विशाल के दर्शन-पश्चात मै वहाँ उपस्थित सहायक-रावल के समीप बैठ गया और उनसे तीन दिन की दैवीय-आपदा पर चर्चा की. उन्होने बताया कि उस दिन मन्दिर के प्रांगण मे ही लोग आ गये थे और भगवान बद्री विशाल से प्रार्थना कर रहे थे. सभी लोग डरे और सहमे हुए थे. भगवान बद्री विशाल की कृपा से तो यहाँ जान-माल की क्षति अधिक नही हुई परंतु उस दैवीय-आपदा के चलते यात्रा बिल्कुल बन्द हो गयी है. भगवान बद्री विशाल की यात्रा पर ही यहाँ की अर्थव्यस्था टिकी हुई है. यात्रा बन्द है तो सब कुछ थम-सा गया है. यहाँ की दुकानों मे ताले लगे हुए है और जो दुकाने खुली भी हैं उन दुकानों पर ग्राहक कोई नही है. परिणामत: यहाँ के लोग बेरोजगार हो गये है. कभी चहल-पहल का केन्द्र रहने वाले पंच-शिला, तप्तकुंड, श्री आदिकेदारेश्वर मन्दिर सहित सब बिल्कुल वीरान पडे थे. बाज़ारों का सूनापन अपना अस्तित्व खोने की कगार पर था. बद्रीविशाल का बस व टैक्सी स्टैंड तो गाडियों से भरे थे पर उन जंग खाये वाहनों के देखकर लग रहा था कि वे सभी वाहन अपने वाहन चालकों की प्रतीक्षा कर रहे हैं. कैसेटो मे बजती हुई भजनों से गुंजायमान सडके बिल्कुल शांत थी. अलकनन्दा अपनी तेज वेग के चलते कल-कल की आवाज से बद्रीविशाल की प्रांगण मे पसरी शांति को भंग करने की प्रयास कर रही थी. बद्रीविशाल में चारों ओर पसरे सन्नाटे के चलते समय थम-सा गया था. एक तरफ काले-काले मेघ अपनी घनघोर गर्जना से वहाँ बचे हुए लोगों को भयभीत कर रहे थे तो दूसरी तरफ बादलों के मध्य चमकती हुई बिजली अपनी इठलाहट भरी चकाचौंध से हमारी बेबसी का हमें अहसास करा रही थी. बादलों और घनघोर कुहरे के गठबन्धन ने सूर्य को छिपा कर अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रहे थे. प्रकृति के इस रौद्ररूप से डरकर मैं भगवान बद्रीविशाल के प्रांगण मे चला गया. वहाँ जाकर मैने वहाँ के सहायक पुजारी जी से भगवान आदिकेदारेश्वर के बारें में जानना चाहा. वहाँ के सहायक पुजारी जी ने मुझे भगवान आदिकेदारेश्वर के बारे एक कहानी सुनाई कि एक बार भगवान विष्णु के  मन को भगवान शिव-पार्वती का यह स्थान भा गया. उस स्थान को हथियाने हेतु भगवान विष्णु ने एक छल किया. लीलाढूंगी के पास एक अबोध बच्चे का रूप बनाकर जोर – जोर से रोने लगे. भोले बाबा माँ पार्वती के संग कही जा रहे थे, रास्ते में माँ पार्वती ने भोले बाबा से उस रोते हुए बच्चे के बारे में कहा पर भोले बाबा ने उस रोते हुए बच्चे की तरफ ध्यान न देने की बात कही परंतु माँ का हृदय द्रवित हो उठा और वह भोले बाबा से ज़िदकर उस रोते हुए अबोध बच्चे की तरफ गयी और उस बच्चे को गोद में उठाकर अपने आवास (वर्तमान समय का श्री बद्रीनाथ धाम) मे ले जाकर सुला कर भोले बाबा के साथ घूमने के लिये चली गयी. वापस आकर देखा तो उस स्थान के कक्ष का कमरा अन्दर से बन्द मिला. भोले बाबा भगवान विष्णु के इस छल को समझ चुके थे. परिणामत: माँ पार्वती सहित उस स्थान को छोडकर वर्तमान समय के श्री केदारनाथ जाकर अपनी साधना का स्थान बना लिया. तत्पश्चात भगवान बद्रीविशाल की आरती शुरू हो गयी. आरती-पश्चात मैने अगले दिन भारत के अंतिम गाँव माणा जाने का निश्चय किया.  
माणा गाँव
माणा गाँव के पूर्व प्रधान लक्ष्मण सिँह राउत 16 जून को हुई तबाही के मंजर को आज भी याद करके सिहर उठते है. अलकनन्दा के उफान को देखकर एक बार तो उन्हे लगा कि शायद ही अब उनका गाँव बचे, गाँव के सभी लोग अपने-अपने घरों से निकल कर उपर की तरफ भाग कर अपनी-अपनी जान बचाई थी, व्यास गुफा और गणेश गुफा में सैंकडों लोग रात-दिन रूके रहे. तीन दिन बाद जब बारिश कम हुई थी तब कही वो लोग नीचे अपने-अपने घरों में उतरे. माणा गाँव के बच जाने की घटना को श्री सिँह ईश्वरीय चमत्कार ही मानते है. गाँव के सभी लोग तीन बाद अपने-अपने घर वापस तो लौट आये परंतु अब उनका संपर्क केशव प्रयाग के दूसरी तरफ से कट गया था. ध्यान देने योग्य है कि केशव प्रयाग के एक तरफ माणा गाँव है और दूसरी तरफ गाँव वालो के खेत और पालतू पशु रहते हैं. तीन दिनों की मूसलाधार बारिश के चलते नदी के बढे हुए जलस्तर से दोनों ओर को जोडने वाला पुल बह गया था. इसलिये उनका संपर्क कट गया था. यही हालत बद्रीनाथ से जोडने वाले पुल की भी थी. उन तीन दिनों मे इतनी अधिक बारिश हुई, जिससे भू-स्खलन की अधिकता से माणा गाँव को बद्रीनाथ से जोडने वाला पुल भी टूट गया था. स्थानीय लोगों की मदद से उन्होने येन-केन प्रकारेण पैदल आने-जाने हेतु संकरा रास्ता बना लिया था जिसके चलते उन गाँव वालों को तीन दिन बाद बद्रीनाथ के एक गैरसरकारी संस्था के स्थानीय लोगों द्वारा दिया गया खाना नसीब हुआ. उस गैर सरकारी संस्था के बारें में मेरे पूछने पर उन्होने बताया कि उस संस्था के एक आदमी श्री अशोक को मैं जानता हूँ. वो यही बद्रीनाथ धाम में रहते है और वो किसी संघ-परिवार से जुडे हैं, उन्होने यहाँ के सभी पुरोहितों को इकटठा कर वहाँ फसे लगभग 12,500 तीर्थयात्रियों को भोजन कराने की योजना की थी, उनका साथ श्री बद्रीनाथ धाम के सभी पुरोहितों ने भी दिया. श्री बद्रीनाथ धाम में धर्माधिकारी के पद पर नियुक्त श्री भुवन उनियाल ने वहाँ के स्थानीयों लोगो की मदद से वहाँ फँसे तीर्थयात्रियों को किसी प्रकार की असुविधा नही होने दी. आगे उन्होने हमे बताया कि आपदा के 16 दिन बाद प्रशासन द्वारा 200 परिवार वाले इस गाँव के मात्र 25 परिवारों को राशन दिया गया. जिसमें 5 किलो चावल, 5 किलो आटा और 2 लीटर केरोसिन तेल था. आपदा – उपरांत कई दिनों तक प्रशासन समेत इस क्षेत्र के कांग्रेस पार्टी के विधायक राजू भंडारी कभी नही आयें. बर्फ पडने के समय इस गाँव के लोग गोपेश्वर चले जाते हैं. साथ ही इन गाँव वालों का मुख्य व्यवसाय कृषि और पशुपालन है. ध्यान देने योग्य है कि उत्तराखंड - स्थित यह भारत का अंतिम गाँव हैं. इसमें लगभग 200 परिवार व लगभग 1000 लोग रहते हैं.  

माणा गाँव से वापस आकर श्री बद्रीनाथ में तैनात पुलिस उप अधीक्षक सुजीत पवार से मिला और उस गाँव के बारें में चर्चा की. श्री पवार को मैंने बताया कि यदि शासन-प्रशासन समय पर नही सचेत हुआ तो भविष्य में माणा गाँव का अस्तित्व मिट सकता है क्योंकि सरस्वती नदी ने अपना रास्ता बदलना शूरू कर दिया है. पहले वह खेतों के तरफ से बहती थी पर अब नदी में इतना अधिक गाद इकट्ठा हो गया है कि उसने अपना रास्ता बदल कर माणा गाँव की तरफ से बहने लगी है. चूँकि नदी का बहाव बहुत तेज है इसलिये वह गाँव के नीचे की मिट्टी को काटना शूरू कर दिया हैं. उन्हे एक सुझाव देते हुए मैने उनसे निवेदन किया कि यदि सरस्वती नदी के गाद को निकालकर उस गाद से ही गाँव की तरफ एक नदी-तटबंध बना दिया जाय तो शायद माणा गाँव बच जायेगा. सरकार द्वारा आपदा-उपरांत राहत-बचाव के लिये खर्च की जाने वाली राशि को अगर आपदा-पूर्व ही उस राशि को खर्चकर अगर नदी-तटबंध बना दिया जाय तो वहाँ के स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिल जायेगा और उस गाँव के सुरक्षा भी हो सकेगी. मेरे इस सुझाव का समर्थन कर नीतिगत फैसला होने की बात कहते हुए उन्होने प्रशासन से चर्चा करने बात कही. साथ ही हमें बताया कि नदी से गाद निकालने हेतु परम्परागत तरीके पर नीतियाँ बहुत कठिन है, इसलिये स्थानीय लोग नदी से गाद नही निकाल पाते है. परिणामत: कई वर्षों में नदी में गाद की अधिकता से नदी अपना रास्ता बदल लेती हैं.
सेना-प्रशासन
उत्तराखंड में आयी प्राकृतिक आपदा से हुई तबाही के चलते राहत-बचाव के कार्य में आई.टी.बी.पी के जवानों की जितनी अधिक तारीफ की जाय वह कम है. आई.टी.बी.पी के एक अफसर श्री राजेश नैंनवाल ने मुझे बताया कि उनके नेतृत्व में आई.टी.बी.पी के दल ने गौरीकुंड जाने का तय किया परंतु उनके दल को वहाँ ले जाने हेतु कोई भी हेलीकाप्टर का पायलट तैयार नही हो रहा था. बहुत प्रयास करने पर वायुसेना के एक पायलट ने उनके दल को सशर्त गौरीकुंड ले जाने के लिये तैयार हुआ. श्री नैनवाल ने वायुसेना के उस पायलट के बात को मान लिया. वह भीड डरी-सहमी और भूख से बौखला चुकी थी इसलिये वायुसेना के उस पायलट को डर था कि कहीं उस भीड के कुछ लोग हेलीकाप्टर को नीचे से पकडकर लटक न जाय. परंतु उस पायलट की सूझबूझ और उसके दिशा- निर्देशानुसार गौरीकुंड में रस्सी के सहारे आई.टी.बी.पी के जवान नीचे उतरकर वहाँ मौज़ूद भीड को काबू में करने हेतु प्रयास शुरू किया. वायुसेना का वह हेलीकाप्टर आई.टी.बी.पी के जवानो को गौरीकुंड मे उतारकर चला गया. श्री नैनवाल ने बताया कि वह मंजर रूह कँपा देने वाला बडा भयावह था. चारों तरफ लाशें ही लाशें बिखरी हुई थी. लोग अपनो के लिये बिलखते हुए खुद अपने जीने की आस छोड चुके थे. परंतु ज्योहि उन लोगों ने आई.टी.बी.पी के जवानों को अपने मध्य पाया उन्हे कुछ जीने का हौसला मिला. आई.टी.बी.पी के जवानों के समझाने-बुझाने पर वहाँ उपस्थित लोगों ने आई.टी.बी.पी  की के टीम के साथ मिलकर उस स्थान पर एक हेलीपैड बनाने का काम शुरू किया और एक टीम पैदल-रास्ता बनाने में जुट गयी. उस भीड के अथक सहयोग से आई.टी.बी.पी के जवानों को हेलीपैड और पैदल रास्ता बनाने में सफलता मिल गयी. तत्पश्चात उस भीड से संपर्क स्थापित हो पाया और उस भीड को गौरीकुंड से निकालने का काम शुरू हुआ. सेना-प्रशासन का आपस में समन्वय की कमी के चलते राहत-बचाव कार्य मे बहुत दिक्कत आ रही थी परंतु वहाँ फँसे हुए लोगो के आत्मबल और संयम ने श्री नैनवाल की टीम को महत्वपूर्ण योगदान दिया. नम आँखों से श्री नैनवाल ने मुझे बताया कि इस प्राकृतिक-आपदा से राह्त-बचाव हेतु जुटे वायुसेना के एक हेलीकाप्टर के दुर्घटनाग्रस्त में आई.टी.बी.पी के कुछ जवान भी शहीद हो गये जो उनके साथ गौरीकुंड जाने वाले दल में शामिल थे.

उसके बाद श्री सुजीत पवार जी ने मुझे बताया कि पहाडी क्षेत्र होने के बावजूद वर्तमान समय में भी प्रशासन के पास मात्र एक-दो हेलीकाप्टर ही है. जिसके चलते राहत-बचाव का कार्य समय पर पुरजोर तरीके से करने में बहुत दिक्कत आयी. आये दिन लूट्पाट की जो खबरे मिल रही है उसका प्रमुख कारण यह है कि सेना ने पुलिस-प्रशासन को उस क्षेत्र में जाने ही नही दे रही जिसके चलते लूट्पाट की ये खबरे आ रही है. लूट्पाट को रोकना तो पुलिस-प्रशासन का काम है पर सेना ने उन्हे वहाँ जाने नही दिया इसलिये पुलिस-प्रशासन असहाय है और मौन साधे हुए है. परंतु पुलिस-प्रशासन अपने तरीके से इस संकट की घडी में देशवासियों के साथ खडा रहेगा.        
बी.आर.ओ.
सडक-रास्ते से बद्रीनाथ जाते हुए रूद्रप्रयाग से ही मुझे भू-स्खलन दिखने लगे थे. परिणामत: सडके पूर्णत: क्षतिग्रस्त हो चुकी थी और दोनो तरफ का यातायात ठप था. बी.आर.ओ के जवान अपनी जान ज़ोखिम में डालकर सडक-मार्ग को त्वरित खोलने का प्रयास कर रहे थे. येन-केन-प्रकारेण भू-स्खलन से ध्वस्त हुई सडकों को पारकर  मैं जोशीमठ और फिर बद्रीनाथ पहुँच गया था. बद्रीनाथ धाम से 44 किमी. नीचे जोशीमठ तक वापस मैंने सडक-मार्ग से आने का तय किया. हनुमान चट्टी तक तो भू-स्खलनों से अवरुद्ध सडकों को पारकर मैं पहुँच गया परंतु उसके आगे जाने हेतु अब सडक ही नही थी. आगे का रास्ता पहाडों पर चढकर पार करना था. रास्ते में मिलते लोगो को रास्ता पार करवाते, गिरते-पडते, फिसलते हुए मै लामबगढ के समीप पहुँच गया. सामने अलकनन्दा का रौद्ररूप देखकर मैं भयभीत हो गया था. अलकनन्दा पर लोहे का पुल बना था पर अलकनन्दा के हिलोरों के चलते मै उस पुल पर से भी अलकनन्दा को पार नही कर पा रहा था. उस तरफ खडे बी.आर.ओ के जवान मेरा हौसला बढाने की नाकाम कोशिश कर रहे थे. अंतत: बी.आर.ओ का एक जवान मुझे लेने इस तरफ आया तब जाकर मैने चैन की साँस ली. उस जवान का हाथ पकडे मैने अलकनन्दा पर बने पुल से जाने लगा. ज्योहि मैं पुल के बीचोबीच पहुँचा सहसा मेरी नजर उफनती हुई अलकनन्दा पर पडी और मैं बेसुध – सा हो गया. उस जवान ने मुझे अपनी गोद में उठाकर अलकनन्दा को पार करवा दिया और अपने एक अधिकारी श्री वेल राज टी के पास मुझे ले गया. श्री राज टी ने मुझे पानी पिलाया तब जाकर मेरी जान में जान आयी. थोडी देर पश्चात मैने श्री राज टी सी बात करना आरंभ किया. उन्होने अलकनन्दा पर बने लोहे के उस पुल के बारें बताया कि चंडीगढ से इस पुल को मंगाकर गोविन्दघाट तक पहुँचा दिया गया था. उसके बाद मात्र दो दिनों के भीतर बी.आर.ओ के जवानो ने अपने कंधे पार लादकर इस भारीभरकम लोहे के कल-पुर्जों को जोडकर बना दिया गया. उन्होने मुझे बताया कि इस पुल के बनने से पहले सेना अलकनन्दा के दूसरी तरफ फँसे हुए लोगों को रस्सी के सहारे एक-एक लोगों को खीचकर निकाल रही थी. परंतु इस पुल के निर्मित हो जाने से लगभग 5000 से अधिक लोगों को अलकनन्दा पार करवाया गया. उन सबसे विदा लेकर उसके बाद मैं आगे की तरफ बढने लगा. रास्ते में मैने देखा कि जे.पी का एक पन-बिजली सयंत्र पूरा तबाह हो गया था, जिससे उस कंपनी के करोडों रूपये का नुकसान हो गया था. तत्पश्चात मैं लामबगढ गाँव, जो कि पूरी तरह तबाह हो गया था, पहुँचा. घंटो पैदल चलते हुए पीपलकोटि पहुँचा पर अब गोविन्द घाट जाने के लिये फिर से पहाडी चढना पडा. थकान के मारे मेरी टांग़े अब नही उठ रही थी कि सहसा मैने कुछ दूर पर देखा कि कुछ महिलायें रस्सी से बाँधे पीठ पर एक – एक बोरा लादे आ रही थी. उनकी हिम्मत को देखकर मेरे अन्दर  एक ऊर्जा का संचार हुआ और मैने तेज गति से अपने कदम आगे की तरफ बढा दिये. कुछ देर बाद गोविन्द घाट का सडक पर गडा हुआ एक साईन बोर्ड देखकर मैने राहत की साँस ली. थोडी दूर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का बैनर लगे एक ट्रक को देखा. कुछ लोग उस ट्रक से कुछ समान उतार रहे थे. मुझे समझते हुए देर न लगी कि बोरा लादे जिन महिलाओं को मैने रास्ते में देखा था वे इस ट्रक से राहत-सामग्री ले जा रही थी. जब राहत-सामग्री उस ट्रक से उतर गया और गाँव वालों में बँट गया तो उस ट्रक-ड्राईवर से मैने जोशीमठ तक ले जाने के लिये निवेदन किया. उस भले मानुष ने मेरा निवेदन स्वीकार कर लिया और आगे की तरफ जगह न होने के कारण मुझे ट्रक के पिछले हिस्से पर बैठने के लिये कहा. मरता क्या न करता, और मै उस ट्रक से जोशीमठ तक ठिठुरते हुए पहुँच गया.
विकास की अंधी दौड
उत्तराखंड घूमने के पश्चात मुझे लगा कि पिछले दिनों उत्तराखंड में जो प्राकृतिक आपदा आयी उसके लिये मनुष्य और उसकी अति मह्त्वकांक्षा ही जिम्मेदार है. कारण बहुत साफ है कि हमने अपनी निजी सुख-सुविधा और विलासिता के चलते प्रकृति का बडे पैमाने पर दोहन शूरू कर दिया है. जोशीमठ के एक उदाहरण से हम समझने का प्रयास करते है. जोशीमठ के ऊपर औली नामक एक जगह है. वहाँ पर एनटीपीसी लगभग 520 मेगावाट का एक पन-बिजली संयंत्र लगा रही है. परिणामत: औली से लेकर जोशीमठ तक के नीचे से होते हुए विष्णुगाड-धौली परियोजना के तहत एक सुरंग का निर्माण हो रहा है. इसके फलस्वरूप घनी आबादी वाले जोशीमठ का अस्तित्व ही खतरे मे पडने जा रहा है. लोगो के घरों मे दरारें पड चुकी है जिसके चलते जब भी तेज बारिश होती है लोग डरकर सहम जाते है. वहाँ के लोगों ने कई बार विष्णुगाड-धौली परियोजना के विरोध में असफल धरना-प्रदर्शन भी किया परंतु उनकी आवाज़ शासन-प्रशासन के कानों तक नही पहुँची. इसी प्रकार पूरे उत्तराखंड में ही नदियों के पानी को सुरंग में डालकर व पहाडों को खोदकर पन-बिजली – उत्पादन हेतु बिजली के अनेक संयंत्र लगाये जा रहें है. जिससे उत्तराखंड में पारिस्थितिकीय संकट खडा हो गया है. देवप्रयाग में भगीरथी और अलकनन्दा के संगम से गंगा बनती है. परंतु गंगा का हरिद्वार तक नैसर्गिक प्रवाह अब देखना बहुत मुश्किल-सा हो गया है. गंगोत्री से निकल रही भागीरथी नदी के प्रवाह को धरासू तक एक सुरंग में डालने से धरती पर अब वह लुप्त-सी हो गयी है. इस क्षेत्र में लगभग 16 पन-बिजली परियोजनायें बन रही है. कमोबेश यही हालत अलकनन्दा का भी है. परिणामत: हरिद्वार तक गंगा एक नाले की शक्ल में हमे दिखायी पडती है. सरकार की कुमाऊँ के बागेश्वर जिले में भी सरयू नदी को सुरंग में डालने की योजना लगभग पूरी हो चुकी है. एक आँकडे के अनुसार उत्तराखंड जैसे छोटे से राज्य में छोटी-बडी मिलाकर लगभग 558 पन-बिजली परियोजनायें प्रस्तावित हैं. अगर इन सभी परियोजनाओं पर काम शुरू हो गया तो वहाँ के लोगों का बडे पैमाने पर विस्थापन होना तय है, पर वे लोग विस्थापित होकर कहाँ जायेंगे, इसका उत्तर किसी के पास नही है. हमें यह ध्यान रखना चाहिये कि उत्तराखंड में इतने अधिक बिजली संयंत्र बनने के बाद भी बिजली और पानी का संकट जस का तस ही बना हुआ है. विश्व के कई पर्यावरणविद सरकार को कई बार सचेत कर चुके है कि हिमालय का पर्यावरण बहुत अधिक दबाव नही झेल सकता परंतु सरकार के कानों पर जूँ तक नही रेंगती. पन-बिजली परियोजनाओं के साथ-साथ अल्मोडा और पिथौरागढ में मैग्नेसाईट व खडिया मिट्टी का भी खनन अवैज्ञानिक तरीके से बखूबी हो रहा है. जिसके चलते हिमालय खोखला होता जा रहा है परिणामत: भू-स्खलन में लगातार वृद्धि हो रही है. नैनीताल में पेडों की अंधाधुंध कटाई के चलते मिट्टी का कटाव बढता ही जा रहा है. ऐसी विषम परिस्थिति में सरकार को विकास हेतु एक वैकल्पिक ठोस नीति चाहिये जो पारिस्थिति-अनकूल हो. ग्लोबलवार्मिंग के चलते भी हिमालय के तापमान मे तेजी से परिवर्तन हो रहा है, जिसे भारत को विश्व समुदाय के समक्ष रखना चाहिये. ग्लोबलवार्मिंग के चलते हिमालय के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे है. राजेन्द्र पचौरी-रिपोर्ट और पर्यावरण को अब आपस में उलझने की बजाय अब कुछ ठोस कदम उठाने चाहिये. मनुष्यों के स्वार्थों के चलते कहीं ऐसा न हो कि उत्तराखंड की प्राकृतिक संपदा ही उसके लिये एक अभिशाप बन जाय.

करोडों भारतीयों की आस्था को ध्यान में रखते हुए सरकार को केदारनाथ और बद्रीनाथ में आयी आपदा से सबक लेना चाहिये. देश की एकता और अखंडता के प्रतीक चार धामों (बद्रीनाथ, रामेश्वरम, द्वारका और जगन्नाथ पुरी) की रक्षा हेतु सरकार को उनकी जलवायु और पर्यावरण को ध्यान मे रखते हुए ठोस कदम उठाने चाहिये. देश को चारों धामों को सुरक्षा और व्यवस्था की लिहाज़ से केन्द्र-स्तर पर एक समिति बनाकर चारों धामो के लिये एक-एक उपसमिति का गठन करना चाहिये. इन उपसमितियों को मन्दिर के चाढावों का खर्च करने की स्वतंत्रता होनी चाहिये. साथ ही उन उपसमितियों का गठन सत्ता-प्रभाव से मुक्त होना चाहिये. इन उपसमितियों के सदस्यों का चुनाव देश के संत-समाज से हो जिसमें कि कुछ उस क्षेत्र के जानकार हों, कुछ स्थानीय हो, कुछ धर्माचार्य हो, कुछ पर्यावरण विशेषज्ञ हो, कुछ उद्योगपति हो, कुछ शिक्षाविद व सबसे कम प्रतिशत में प्रशासन समेत देश की सज्जन शक्ति को शामिल किया जाना चाहिये.         
संघ-परिवार
विश्व हिन्दू परिषद, इन्द्रप्रस्थ मीडिया की तरफ से दिल्ली से मैं देहरादून पहुँचा था. देश के वरिष्ठ पत्रकार श्री रामबहादुर राय, उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री श्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ व विश्व हिन्दू परिषद के श्री चम्पत राय के सह्योग से मैने एक ज्ञापन तैयार कर उत्तराखंड के महामहिम राज्यपाल, मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष समेत केदारनाथ-बद्रीनाथ मन्दिर कमेटी को दिया. उस ज्ञापन में कुल पाँच मांगे रखी गई थी : श्री बद्रीनाथ धाम तथा पवित्र ज्योतिर्लिंग श्री केदारनाथ की मन्दिर-समिति “बद्रीनाथ-केदारनाथ मन्दिर समिति” से उत्तराखंड के महामहिम राज्यपाल निवेदन करें कि उत्तराखंड की प्राकृतिक आपदा के चलते तबाह हुए केदारनाथ के आस-पास के गाँवों को गोद लेकर उनके पुनर्वास की समुचित व्यवस्था में अपना अमूल्य यथायोग्य सहयोग करे, उत्तराखंड में आई प्राकृतिक आपदा से प्रभावित गाँवों को पूरे वर्ष भर उनकी बुनियादी सुविधाओं (रोटी,कपडा,मकान,शिक्षा और स्वास्थ्य) की चिंता सरकार करें, उत्तराखंड में आई प्राकृतिक आपदा से प्रभावित गाँवों के निवासियों को यथाशीघ्र रोजगार देने की व्यवस्था सरकार सुनिश्चित करें, इस त्रासदी से सबक लेते हुए सरकार यह सुनिश्चित करें कि विकास के नाम पर प्रकृति से छेडछाड कम से कम हो. साथ ही तीर्थाटन को पर्यटन बनाने से रोका जाय, “श्री बद्रीनाथ-केदारनाथ मन्दिर समिति” के वर्तमान के 11 सदस्यीय की समिति की संख्या को बढाकर संत-समाज़ के प्रतिनिधियों को इस समिति में सम्मिलित कर इस संख्या को कम से कम 21 सदस्यीय कर दिया जाय. इससे संत-समाज़ व देश में एक सकारात्मक सन्देश जायेगा और इस मन्दिर-कमेटी में सरकार के साथ-साथ संत-समाज का भी सहयोग हो जायेगा जिससे मन्दिर-कमेटी की सक्रियता और प्रतिष्ठा सर्वमान्य हो जायेगी. विश्व हिन्दू परिषद, उत्तराखंड के इन सभी मांगो को उत्तराखंड के महामहिम राज्यपाल ने सहज ही स्वीकार कर लिया व नेता प्रतिपक्ष मन्दिर कमेटी संबंधी विषय़ को विधान सभा में उठाने के लिये हामी भर दी और बद्रीनाथ-केदारनाथ मन्दिर समिति ने प्राकृतिक-आपदा की भेँट चढे गाँवों की पुनर्स्थपना हेतु 2 करोड रूपये की राशि स्वीकार की. अंत में मैं देहरादून के संघ – कार्यालय गया. वहाँ मै देहरादून के प्रांत प्रचारक व वहाँ के प्रांतकार्यवाह से देहरादून में आयी प्राकृतिक-आपदा के बारें जानकारी लेते हुए संघ-परिवार की तरफ से चल रहे राहत-बचाव के बारें में जाना. उन्होने मुझे बताया कि केदारनाथ में सेना के जवानों के साथ हेलीपैड बनाने वाले तीन स्वयंसेवक सर्वश्री योगेन्द्र राणा, भूपेन्द्र सिँह और बृजमोहन सिँह बिष्ट थे. आगे उन्होने मुझे बताया कि अबतक लगभग 200 से अधिक ट्रक राहत – सामग्री पहुँचाई जा चुकी है व लगभग 5000 से अधिक संघ के स्वयंसेवक राहत-बचाव हेतु दिन-रात जुटे हुए है. माँ भारती की सेवा में लगे हुए संघ के स्वयंसेवकों बारें मे जानकर मन को बहुत संतुष्टि मिली.    -राजीव गुप्ता, 09811558925  

एसपीएस अपोलो हॉस्पिटल

पंजाब में उतारा चौथी पीढ़ी का घुटना प्रत्यारोपण इम्प्लांट
लुधियाना, 18 जुलाई, 2013: एसपीएस अपोलो हॉस्पिटल ने आज यहां अत्याधुनिक घुटना प्रत्यारोपण इम्प्लांट पेश किया। पीएस-150 नामक यह विश्व का नवीनतम इम्प्लांट घुटने को सामान्य तरीके से मोडऩे की सहूलियत प्रदान करता है और इसमें टूट-फूट भी खास नहीं होती। घुटना बदलने की इस तकनीक में चौथी पीढ़ी का नी-इम्प्लांट प्रयोग किया जाता है।

एसपीएस अपोलो हॉस्पिटल, लुधियाना के वरिष्ठ सलाहकार एवं हड्डी व घुटना प्रत्यारोपण विभाग के प्रमुख डॉ. हरप्रीत एस गिल ने बताया कि भारत में केवल कुछ ही केंद्रों पर इस तरह के इम्प्लांट की सुविधा उपलब्ध है।

घुटना बदलने की इस शल्य क्रिया के बारे में डॉ. गिल ने बताया कि पश्चिमी देशों के लोगों की तुलना में भारतीयों के घुटने की हड्डी छोटी होती है। घुटना बदलने की सर्जरी के दौरान नये जोड़ को अच्छी तरह से फिट करने के लिए हड्डी को काटना-छीलना पड़ता है। नयी विधि में हड्डी को थोड़ा से छीलने से ही बात बन जाती है इसलिए कृत्रिम जोड़ ज्यादा लचीला और सुविधाजनक रहता है। सिगमा पीएस 150 नामक इस नये इम्प्लांट से घुटने को 150 डिग्री तक मोड़ा जा सकता है और यह चलता भी लंबे समय तक है।

उन्होंने आगे कहा कि नया जोड़ युवाओं और अधिक भाग-दौड़ करने वालों के लिए भी अच्छा साबित होगा क्योंकि इसे लगाने के बाद व्यक्ति न सिर्फ खेल सकता है, बल्कि मरीज फर्श पर भी आराम से बैठ सकता है।

घुटना प्रत्यारोपण के क्षेत्र में दुनिया भर में नाम कमा चुके फ्रांस के डॉ. जेएल ब्रियार्ड इस सर्जरी को शुरू करने के लिए स्वयं एसपीएस अपोलो हॉस्पिटल लुधियाना पहुंचे। उन्होंने बताया कि अपने 35 वर्षों के कार्यकाल में उन्होंने घुटना प्रत्यारोपण के मामले में कई तरह की नयी तकनीकें देखी हैं। नये समय के इम्प्लांट की उम्र 30 वर्ष तक भी हो सकती है। मोबाइल बियरिंग प्रौद्योगिकी के चलते घुटने को 20 डिग्री तक घुमाया जा सकता है, जिससे कि यह सामान्य घुटने जैसा ही प्रतीत होता है। नया इम्प्लांट में हड्डी के साथ तालमेल बिठाने की उच्च क्षमता होती है। यह हड्डी और ऊतकों को प्राकृतिक रूप में रखने में सक्षम है।

रीजन के घुटना प्रत्यारोपण विशेषज्ञों और उभरते हड्डी शल्य चिकित्सकों को नयी तकनीक के बारे में विस्तार से समझाने के लिए डॉ. जेएल ब्रियार्ड एक कार्यशाला और सीएमई कार्यक्रम भी आयोजित करेंगे। वे इस क्षेत्र में हो रही नयी खोजों के बारे में भी बताएंगे।

Thursday, July 04, 2013

राष्ट्रपति ने प्रदान किए युवा पुरस्कार

पुरस्कार के अंतर्गत एक रजत पदक, एक प्रमाण पत्र और 40 हजार रुपए नकद  
आज राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रपति भवन के ऐतिहासिक दरबार हॉल में आयोजित एक समारोह में 27 व्यक्तियों और एक संगठन को वर्ष 2011-12 के राष्ट्रीय युवा पुरस्कार प्रदान किए। इस अवसर पर युवा मामलों और खेल-कूद मंत्री श्री जितेन्द्र सिंह और कई जानेमाने लोग मौजूद थे। यह पहला मौका है जब भारत के राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय युवा पुरस्कार वितरित किए गए हैं।
राष्ट्रपति भवन में हुए कार्यक्रम के  हरियाणा राष्ट्रिय  एवार्ड प्राप्त करने
का गौरव हरियाणा की कुमारी सुमन को भी प्राप्त हुआ। (फोटो-पीआईबी)
     राष्ट्रीय युवा पुरस्कारों की शुरूआत 1985 में हुई थी। ये पुरस्कार उन युवा लोगों को प्रदान किए जाते हैं, जिन्होंने युवा विकास गतिविधियों के क्षेत्र में शानदार काम किया हो। पुरस्कार के अंतर्गत एक रजत पदक, एक प्रमाण पत्र और 40 हजार रुपए नकद दिया जाता है। स्वयंसेवी संगठनों के मामले में नकद राशि दो लाख रुपए होती है। पुरस्कार के लिए चुने गए लोगों से उम्मीद की जाती है कि उनमें नेतृत्व के गुण होंगे, जिन्हें वे युवा विकास के विभिन्न क्षेत्रों में प्रकट करेंगे। यह पुरस्कार सम्मानित लोगों के लिए विशेष प्रोत्साहक शक्ति के रुप में काम करता है और उन्हें भविष्य में ऐसे काम करने तथा समाज के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत करने को प्रोत्साहित करता है। पुरस्कार प्राप्त करने वाले व्यक्ति का चुनाव पहले राज्य स्तर और फिर राष्ट्रीय स्तर पर किया जाता है। राष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त सचिव की अध्यक्षता वाली एक स्क्रीनिंग कमेटी प्राप्त प्रस्तावों की जांच करती है। इसके बाद ये जांचे हुए प्रस्ताव केन्द्रीय चयन समिति के समक्ष पेश किए जाते हैं, जिनकी अध्यक्षता युवा मामलों के मंत्री अथवा सचिव करते हैं। अंतिम चुनाव युवा मामलों के मंत्रालय का होता है। केन्द्रीय चयन समिति अपने विवेकाधिकार से गुणदोष के आधार पर उन व्यक्तियों/संगठनों के नामों की भी सिफारिश कर सकती है, जो राज्य सरकार/संघशासित प्रदेश से प्राप्त नहीं हुए हैं।
     वर्ष 2011-12 के लिए राष्ट्रीय युवा पुरस्कार विजेताओं की सूची नीचे दी जा रही है।
क्रम संख्या
व्यक्तियों के नाम
1.
श्री एम. रामुलू, आंध्र प्रदेश
2.
श्री आलूवाला विष्णु, आंध्र प्रदेश
3.
सुश्री टिलिंग याम, अरुणाचल प्रदेश
4.
श्री प्रदीप राज (विक्लांग), दिल्ली
5.
सुश्री चंचल अग्रवाल, नई दिल्ली
6.
श्री गिरीश कुमार, नई दिल्ली
7.
सुश्री मलिसा जमीरा सिमोज, गोवा
8.
सुश्री सुमन, हरियाणा
9.
सुश्री रुचि कौशिक, हरियाणा
10.
श्री अशोक कुमार, हरियाणा
11.
सुश्री गुरमीत कौर, हिमाचल प्रदेश
12.
श्री बेसर दास हरनौत, हिमाचल प्रदेश
13.
श्री किरण कुमार शर्मा, जम्मू एवं कश्मीर
14.
श्री लक्ष्मी नारायण काजेगड्डे, कर्नाटक
15.
श्री बी. हनुमनथप्पा, कर्नाटक
16.
श्री फसल वारिस, केरल
17.
सुश्री तारा उस्मान मुल्ला, महाराष्ट्र
18.
श्री जगदाले शांतनु रामदास, महाराष्ट्र
19.
श्रीमती सोराइशन्म तरुणी देवी, मणिपुर
20.
श्री किटबोकलांग नोंगफ्लांग, मेघालय
21.
श्री एम. तेजेश्वर, ओडिशा
22.
श्री गंगाधर बेहरा, ओडिशा
23.
श्री ध्यानानंद पंडा, ओडिशा
24.
सुश्री खुशमीत कौर बैंस, पंजाब
25.
श्री गुरनाम सिंह सिद्धू, पंजाब
26.
श्री लाडू लाल जाट, राजस्थान
27.
श्री गुलाब चंद सल्वी, राजस्थान

क्रम संख्या
संगठनों के नाम
1.
भविष्य एजुकेशनल एंड चेरिटेबल सोसायटी, पश्चिम बंगाल