Tuesday, April 30, 2013

अन्तरराष्ट्रीय मकादूर दिवस

क्रान्तिकारी विरासत से सबक लेकर आगे का रास्ता गढऩा ही मई दिवस मनाने का एक सही तरीका
लुधियाना के पुडा मैदान में मई दिवस सम्मेलन 
सभी मकादूरों-मेहनतकशों-नौजवानों से सम्मेलन में शामिल होने के लिए पुरजोर अपील
लुधियाना।30 अप्रेल 2013: दुनियाभर के मकादूरों-मेहनतकशों को हर तरह के शोषण के खिलाफ एकजुट लड़ाई छेडऩे का आह्वान करने वाला अन्तरराष्ट्रीय मकादूर दिवस कल पूरे विश्व में मनाया जाएगा।  128वें अन्तरराष्ट्रीय मकादूर दिवस के अवसर, कल सुबह 10 बजे कारखाना मकादूर यूनियन, पंजाब व टेक्सटाइल हौजरी कामगार यूनियन, पंजाब द्वारा लुधियाना के चण्डीगढ़ सडक़ पर पुडा (गलाडा) मैदान में मई दिवस सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। टेक्सटाइल हौजरी कामगर यूनियन के अध्यक्ष साथी राजविन्दर ने बताया कि मई दिवस सम्मेलन में बड़ी संख्या में मकादूर-मेहनतकश-नौजवान शामिल होंगे। उन्होंने कहा कि मई दिवस सम्मेलन का आयोजन कोई अनुष्ठान को तौर पर नहीं किया जा रहा बल्कि इसके पीछे उनका एक अहम मकसद है। आज मेहनत करने वाले लोगों का चारों ओर से भयंकर रूप से शोषण-उत्पीडऩ हो रहा है। इसके खिलाफ जनता का कोई बड़ा इमानदार आन्दोलन नहीं है। ऐसे समय में अपनी क्रान्तिकारी विरासत को याद करना, उससे पे्ररणा व सबक लेकर मौजूदा हालातों को बदलने के लिए आगे का रास्ता गढऩा ही मई दिवस मनाने का एक सही तरीका हो सकता है। उन्होंने कहा कि मई दिवस सम्मेलन इसी रूप में मनाया जाएगा।
मई दिवस सम्मेलन में मकादूर संगठनों के नेतृत्वकारी साथी मई दिवस आन्दोलन के इतिहास और इस आन्दोलन की वर्तमान समय में प्रासंगिकता पर बात रखेंगे। सम्मेलन में देश व विश्व के आर्थिक-राजनीतिक-सामाजिक हालातों पर बात की जाएगी। आज जब सारी व्यवस्था सिर से पैर तक सड़ चुकी है उस समय शोषितों-उत्पीडि़तों को आज कौन सा रास्ता चुनना होगा इस पर वक्ता अपनी बात रखेंगे।
साथी राजविन्दर ने बताया कि मई दिवस पर वोट-बटोरू पार्टियों से जुड़े बहुत से संगठन लड़कियाँ नचवा कर तथा फूहड़ किस्म के गायकों के जरिए भीड़ जुटा कर मई दिवस ''मनाने का ढोंग रचते हैं तथा मई दिवस की गरिमा को धूमिल करने की कोशिश करते हैं। उन्होंने कहा कि मई दिवस सम्मेलन इसका विरोध करते  हुए मई दिवस की क्रान्तिकारी परम्पराओं को आगे बढ़ाएगा। सम्मेलन में क्रान्तिकारी-प्रगतिशील नाटकों-गीतों का सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होगा। उन्होंने कहा कि आज के समय में जनता को परोसी जा रही गन्दी, भौंडी, उपभोक्तावादी संस्कृति का विकल्प पेश किया जाना बेहद जरूरी है।
कारखाना मकादूर यूनियन व टेक्सटाइल हौजरी कामगार यूनियन ने सभी परिवर्तनकामी मकादूरों-मेहनतककशों-नौजवानों को मई दिवस सम्मेलन में बढ़-चढक़र शामिल होने की अपील की है।
लखविन्दर,
अध्यक्ष, कारखाना मकादूर यूनियन, पंजाब।
फोन नं.- 9646150249


Monday, April 29, 2013

अक्षय ऊर्जा शॉप का गठन

29-अप्रैल-2013 20:04 IST
सभी जिलों में अक्षय ऊर्जा शॉप्‍स के गठन की योजना 
नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री डॉ. फारूक अब्‍दुल्‍ला ने आज राज्‍य सभा में बताया कि नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एम एन आर र्इ) देश के सभी जिलों में अक्षय ऊर्जा शॉप्‍स के गठन की योजना पर कार्य कर रहा है। अब तक 341 अक्षय ऊर्जा शॉप्‍स के लिए सहायता दी गई है।नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय शॉप्‍स चलाने के लिए दो वर्षों की अवधि के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करता है जो अनुदान और प्रोत्‍साहन के तौर पर दी जाती है। 
वित्‍तीय सहायता की कुल राशि प्रति शॉप 2.40 लाख तक सीमित की गई है। (PIB)

वि.कासोटिया/यादराम/पवन-2097

मेरा भगवान रथ पर नहीं

टूटी हुई साइकिल पर सवार है 
Himanshu Kumar हिमांशु कुमार लगातार आम जनमानस की बात करने में लगे हिमांशु कुमार की एक नई कविता सामने आई है फेसबुक पर। इस रचना  ज्यों का त्यों दिया जा रहा है। इस रचना को पढने के बाद आपके मन में में जो भी आए आप अवश्य लिखें। आपके विचारीं की इंतज़ार बनी रहेगी। -रेक्टर कथूरिया
Courtesy Photo
मेरा भगवान जूतों से पीटा जाता हैं
और उसकी पत्नी जो देवी है
उसे टट्टी खिलाई जाती है
और गाँव के बाहर पेड़ से बाँध कर उसके बाल काटते हैं बड़ी जाति के पुरुष
क्योंकि वो मानते हैं कि वो असल में एक डायन है

एक दूसरी देवी की बेटी की योनी में पत्थर भरता है तुम्हारा एक देवता

मेरे भगवान की पैंट फटी हुई है
मेरे भगवान के पाँव गंदे हैं
मेरे भगवान से पसीने की तेज गंध आती है
मेरा भगवान रथ पर नहीं
टूटी हुई साइकिल पर सवार है

मेरे भगवान के पिछवाड़े में
ईंट भट्टे का मालिक डंडा घुसेड़ देता है
क्योंकि मेरा भगवान पूरी मजदूरी
मांग रहा था

मेरी देवी के साथ
पूरा थाना
महीना भर
बलात्कार करता है
अब मेरी यह देवी
अपना पेट पालने के लिये चाय की दूकान पर बर्तन मांजती है

आप मुझे नास्तिक समझ रहे थे ?

नहीं जनाब
मेरा भगवान बस आपके
सोने के जेवरों से सजे हुए
लेट कर अपनी पत्नी से पैर दबवाते हुए
भगवान से अलग तरह का है

आपको मेरी इस भाषा से बेचैनी क्यों हो रही है
बस मेरी भाषा थोड़ी वास्तविक सी ही तो है .

मई महीने के रंगीन त्यौहार

फूलों, रंगों और संगीत के कई त्यौहार
                                                                 फ़ोटोः रिया नोवस्ती
मई महीने के पहले दशक में रूसी शहरों में रंगों और संगीत के कई त्यौहार मनाए जाएँगे। आजकल रूस के निवासी रंगों के भारतीय त्यौहार, होली को भी बड़े उत्साह से मनाते हैं। रूस के विभिन्न नगरों में होली के त्यौहार को मनाने का सिलसिला मार्च माह के अंत में ही शुरू हो गया था जो अप्रैल माह से गुज़रता हुआ मई माह में पहुँच जाएगा। आम तौर पर रूस में मई महीने का पहला दशक फूलों, रंगों और संगीत के कई त्यौहारों के रूप में मनाया जाता है। एक मई को श्रम दिवस और नौ मई को विजय दिवस मनाया जाएगा। इसके अलावा साबुन के बुलबुलों का त्यौहार और अंतर्राष्ट्रीय संगीत त्यौहार भी मनाए जाएंगे और रूसी हस्तशिल्प कला के एक प्रदर्शनी-मेले का आयोजन भी किया जाएगा। इस प्रकार, मई महीने के पहले दशक के दौरान रूस के नगरों, कस्बों और गाँवों का माहौल रंगों, फूलों और संगीत से भरपूर रहेगा।

इस साल, 5 मई को मास्को में रंगों का भारतीय त्यौहार, होली फिरसे मनाया जाएगा। हज़ारों की संख्या में लोग एक दूसरे पर रंग और गुलाल डालेंगे। दुनिया का सबसे रंगीन त्यौहार है यह! मास्को में यह उत्सव पूरा दिन जारी रहेगा।

रूस की राजधानी में ही एक अन्य उज्ज्वल और ख़ुशियों-भरा त्यौहार मनाया जाएगा। देश भर से रूसी कारीगरों की हस्तशिल्प कला की एक प्रदर्शनी का आयोजन किया जाएगा। इस प्रदर्शनी-मेले में विचित्र खिलौनों से लेकर घरेलू उपयोग की वस्तुओं तक, कई प्रकार की अद्भुत शिल्प कला-कृतियाँ न केवल देखी जा सकेंगी बल्कि, अगर कोई चाहे तो इन्हें ख़रीद भी सकेगा। इसके अलावा, आप "कारीगरों की नगरी" में जाकर कुछ ही घंटों में इन कला-कृतियों को बनाने के गुर सीख सकेंगे। इस प्रदर्शनी-मेले के दौरान संगीत कार्यक्रमों, राष्ट्रीय वेशभूषा की प्रदर्शनियों और लोक-नृत्यों के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। इसके अलावा, आगुन्तकों को रूसी व्यंजनों का ज़ायका लेने का भी अवसर मिलेगा।

इन सभी त्यौहारों के दौरान आकाश में रंग-बिरंगे गुब्बारे छोड़े जाने की परंपरा है। यह एक बहुत ही सुन्दर नज़ारा होता है। गुब्बारे आसमान में उड़ते-उड़ते पता नहीं कहाँ अलोप हो जाते हैं। इस वर्ष रूस के दूसरे सबसे बड़े नगर सेंट-पीटर्सबर्ग में साबुन के बुलबुले आकाश में छोड़ने का त्यौहार मनाया जाएगा। इस दिन रूस की उत्तरी राजधानी "साबुन के बुलबुलों की नगरी" में बदल जाएगी। इस के केंद्रीय पार्क में इस त्यौहार का उद्घाटन समारोह आयोजित किया जाएगा। इस त्यौहार में हिस्सा लेने की सभी लोगों को अनुमति दी जाएगी। सिर्फ़ एक ही अनिवार्य शर्त होगीः इसके भागीदारों को उज्ज्वल कपड़े या यहाँ तक कि कार्निवाल की पोशाकें पहननी होंगी और उनके हाथों में साबुन के पानी से भरा एक मर्तबान होना चाहिए। इस समारोह का प्रत्येक प्रतिभागी अपने सपने बुन सकता है। उसके मन में कोई उदासी सेंध नहीं लगा सकेगी और उसकी सभी समस्याएँ ऐसे ही ग़ायब हो जाएंगी जैसे साबुन के पानी का बुलबुला फट जाता है।

पूरे रूस में चटख-चमकीले रंगों का माहौल है। चारों तरफ़ रंग-बिरंगे फूल खिले हैं। वातावरण फूलों की सुगंधियों से तरो-ताज़ा है। और ऐसे माहौल में संगीत, मधुर संगीत के बिना मानो किसी रंग की कमी महसूस की जा रही है। संगीत के कार्यक्रमों की कमी। संगीत के बिना कोई त्यौहार कैसे मनाया जा सकता है? तो लीजिए, यह कमी भी पूरी हो गई! रूस के एक सबसे पुराने नगर यरोस्लावल में पाँचवीं बार अंतर्राष्ट्रीय संगीत समारोह का आयोजन किया जाएगा। इस शहर और इसके आसपास के नगरों में कुछ दिनों तक विभिन्न देशों से आए आर्केस्ट्राओं और संगीत-मंडलियों द्वारा शास्त्रीय संगीत लगातार पेश किया जाएगा। यदि मनुष्य के जीवन में चटख-चमकीले रंगों, फूलों की खुशबू और मधुर संगीत का बोलबाला हो तो उसके लिए इससे बेहतर और क्या हो सकता है?  (
रेडिओ  रूस)

कब आएंगे परग्रहवासी?

रूसी समाजविज्ञानियों ने पता लगाने के लिए किया एक जनमत अध्ययन 
क्या मानव ब्रहमांड में अकेला है ?
                                                                                    © फ़ोटो: SXC.hu
विश्लेषण से मालूम हुआ कि लगभग एक चौथाई रूसी लोगों को यह उम्मीद है कि परग्रहवासी हमारी पृथ्वी पर आएंगे|
आधे से अधिक रूसियों को परग्रहवासी जैसी बातों में कोई विश्वास नहीं है| किंतु लगभग 40% लोगों का यह मानना है कि पृथ्वी-इतर सभ्यताएं अस्तित्वमान हैं| आश्चर्य की बात यह है कि ऐसा मानने वालों में उच्च शिक्षा प्राप्त और अच्छी आमदनी वाले पुरुष ही अधिक हैं|
लगभग एक चौथाई रूसियों को विश्वास है कि अगले पचास वर्ष के अंदर-अंदर पृथ्वीवासियों का पृथ्वी-इतर सभ्यताओं से संपर्क स्थापित हो जाएगा| इसके साथ ही वे यह भी मानते हैं कि इस भेंट का स्थान पृथ्वी भी हो सकती है यानी ये इतर-सभ्यताओं वाले पृथ्वी पर अवतरित हो सकते हैं| या फिर ऐसा भी हो सकता है कि अंतरिक्ष का अध्ययन कर रहे पृथ्वी के अंतरिक्षनाविकों की अंतरिक्ष में उनसे कहीं भेंट हो जाए|
रूसी लोगों को सबसे अधिक विश्वास इस बात पर है कि पृथ्वी-इतर सभ्यताओं से भेंट धरतीवासियों के लिए हितकर होगी| अनेक लोगों ने यह मत व्यक्त किया कि दूसरे ग्रहों के निवासी हमसे अधिक बुद्धिमान, उदार और ईमानदार हैं और वे पृथ्वीवासियों को अपने ये सद्-गुण प्रदान करेंगे| लेकिन साथ ही कुछ लोगों को यह आशंका भी है कि पृथ्वी-इतर सभ्यताएं हमें भारी क्षति पहुंचा सकती हैं| उन्हें डर है कि ये सभ्यताएं मानव पर प्रयोग करेंगी या फिर पृथ्वी पर कब्ज़ा ही कर लेंगी|
लगभग एक चौथाई लोग यह मानते हैं कि परग्रहवासी पृथ्वी पर आए थे और उन्होंने पृथ्वीवासियों से संपर्क भी स्थापित कर लिए थे| इनमें से अधिकाँश लोगों का यही मानना है कि यह संपर्क पृथ्वीवासियों के लिए हितकर रहा|
एक और दिलचस्प बात यह है कि आधे से अधिक लोग यह मानते हैं कि देश के नेताओं को पृथ्वी-इतर सभ्यताओं के बारे में कहीं अधिक जानकारी है किंतु वे किन्हीं कारणों से आम लोगों तक यह जानकारी नहीं पहुँचने दे रहे| (रेडिओ रूस)

Wednesday, April 24, 2013

पहले से अधिक बड़ा रहा इस बार का पीरखाना मेला लेकिन----

इक बाप के दो बेटे--किस्मत जुदा जुदा है
इक अर्श पर खड़ा है--इक मांगता गज़ा है
लुधियाना: (पंजाब स्क्रीन टीम): न्यू पीरखाना दरबार लुधियाना के प्रमुख सेवादार बंटी बाबा ने करीब दो वर्ष पूर्व एक अंतरंग भेंट में स्पष्ट कहा था कि मेरा जीवन इन सब लोगों का है---मेरा जीवन एक खुली किताब है---इसके साथ ही उन्होंने कहा था--मैं एक व्यापरी पुत्र हूं---इस लिए आदत से मजबूर---भगवान् के मामले में भी घाटे का सौदा कैसे कर सकता हूं---मैं जानता हूं मैं कुछ भी नहीं---मेरी औकात एक बूंद भर भी नहीं----अगर मांगने जाऊं तो भी जो मांगूंगा वह मेरी अपनी औकात की तरह बहुत तुच्छ ही होगा।।बहुत ही मामूली----बूँद होकर सागर से मुकाबिला सम्भव ही नहीं----इसलिए बूँद को सागर में मिलना होता है तभी वह सागर बनती है----उस समय मैंने भी इस बात को बाबा का प्रवचन समझा ....और बात आई गई हो गई। लेकिन अब जब 2013 का मेला सजा तो बंटी बाबा की दो वर्ष पूर्व कही बात समझ में आने लगी----आसपास के लोगों ने बताया कि जिस दुकान का भाव कुछ वर्ष पहले तक एक लाख रुपया भी नहीं मिलता था वह दूकान अब साढ़े बारह से लेकर 15-15 लाख तक बिकने लगी है। जो लोग काकोवाल रोड पर रहना बुरा समझते थे--यहाँ रहना खतरे की बात समझते थे---या यहाँ बसना उन्हें अपने स्टेट्स के
दैनिक भास्कर से साभार 
मुताबिक नहीं लगता था वही लोग अब यहाँ किसी भी भाव पर जमीन, प्लाट, दूकान या मकान लेकर बस यहीं बसना चाहते है...गीत संगीत और फ़िल्मी दुनिया के कई कलाकार इस दरबार के नजदीक रहने के प्रयासों में हैं तांकि वे अधिक से अधिक समय कला के लिए निकाल सकें---इस दरबार के शुरू होने से पूरी रोड और पूरे इलाके का भाव बढ़ गया---गरीब लोग अपनी जमीन/मकान के कुछ टुकड़े बेच कर रातोरात अमीर बन गए हैं ---यह वही जमीन थी जो कभी उन्हें कौड़ियों के भाव बिकती भी नजर नहीं आती थी--जिसे वे बेकार समझते थे--। जब जमीन के भाव आसमान छूने लगे तो अब समझ में आने लगा कि बूँद सागर कैसे बनती है ! गौरतलब है कि बाबा अब भी यहाँ आने वाले श्र्द्धालूयों से यही कहते हैं मुझ से नहीं पीर बाबा से मांगो---
लोग श्रद्धा से दरबार में जाते हैं--अदब से सर झुकाते हैं और अपने सभी कामों और फिकरों की ज़िम्मेदारी पीर बाबा को सौंप आते हैं---जल्द ही जब उनका काम पूरा हो जाता है तो मन्नत पूरी होने के बाद लोग फिर फिर आते हैं और अपने वादे के मुताबिक यहाँ प्रसाद चढ़ाते हैं---इस तरह यह सिलसिला लगातार बढ़ता ही जा रहा है----छोटे बड़े, अमीर गरीब, हिन्दू सिख, महिला पुरुष यहाँ सब आते हैं---!
दैनिक जागरण से साभार

पर यहाँ बाबा के आसपास कुछ ऐसे लोग भी जुटने लगे जो समझते हैं कि बस जो करते हैं हमीं करते हैं---लगता है इन लोगों को  न पीर बाबा का डर है---न ही बंटी बाबा का। ये कुछ ऐसे लोग हैं जो बहुत ही मेहनत और प्रेम से बनी खीर पर राख डालने का काम करते हैं---सिर्फ इसलिए तांकि   का   सकें---  अपने अपने स्वार्थ में लिप्त ये लोग जिसको भी अपने रास्ते की रुकावट समझते हैं उसे हटाने के साजिशों में जुट जाते हैं---जिस दरबार में बंटी बाबा सब को गले लगाते हैं---- उसी दरबार में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो सजदा करने के मामले में भी आम गरीब जन साधारण को वहां ठीक से सजदा नहीं करने देते---पास ही बीटी माडल स्कूल की गली में रहने वाले कुछ लोगों ने बताया कि जब गुरदास मान के आने की घोषणा हुई तो एक ऊंचे मंच पर बने पीर बाबा हैदर शेख के दरबार में वे लोग माथा  टेकने ही वाले थे---बस इतने में ही वहां मौजूद प्रबंधकों ने उन्हें ऐसे पकड़ कर आगे धकेला जैसे धोबी कपड़े फेंकता है---एतराज़ करने पर वहां का एक चौधरी बोला तुम लोगों की औकात ही क्या है---बताने वाला कह रहा था---मेरा दिल चाहा उसे थप्पड़ मारूं--लेकिन मेरे भाई ने मुझे पकड़ लिया---और कान में कहने लगा---कुछ मत कहो---उल्टा सब लोग हमें पकड़ कर पीट देंगें---जो हमें अपनी औकात बता रहे हैं---पीर बाबा और बंटी बाबा ही इन्हें इनकी अपनी असली औकात बतायेंगे----
दैनिक सवेरा से साभार 
.....जब इनसे कहा गया कि आप लोग बंटी बाबा को सब बता दो---जवाब था--न जी न---जो लोग भरे दरबार में बंटी बाबा और पीर बाबा की प्रवाह नहीं करते--वे हमें कब छोडेंगे----? कुछ और पूछने पर इन लोगों ने औकात बताने वाले और पीटने के अंदाज़ में आगे धकेलने वाले का हुलिया भी बताया जिसे यहाँ जानबूझ कर नहीं दिया जा रहा---बहुत हैरानी हुई---धार्मिक स्थान---धार्मिक आयोजन---सूफियाना महफिल पर कितनी दहशत है लोगों के दिलों में---सुन कर दिल को दुःख हुआ---साथ ही चिंता कि तेज़ी से बढ़ रहे जमीन के भावों पर कहीं यह दहशत ब्रेक न लगा दे।
यह तो हुई आम गरीब जन साधारण से दुर्व्यवहार की बात---पर कुछ लोग पहुँच वाले होते हैं---वहां उनसे गलत सलूक नहीं हो सकता---उन्हें इस तरह औकात नहीं बताई जा सकती---तो इस तरह के मामलों में गुटबंदी होती है…राजनीति होती है---और किसी न किसी बहाने मामला पहुँच जाता है बंटी बाबा के पास---हालाँकि बाबा इन लोगों को कई बार डांट चुके है--झाड़ चुके हैं--- साफ़ साफ़ कह चुके हैं---देखो मेरे पास किसी की शिकायत लेकर मत आया करो---पर साजिशी गुट सरगर्म रहते हैं--इसको बुलाना है---उसको नहीं बुलाना---इसके स्टेज पर चढने देना है---इसको रोकना है---यह सब मीडिया के साथ भी चलता रहा…मेले के मौके पर भी---मीडिया के कुछ मित्र लोगों को कोल्ड ड्रिंक्स पिलाई जा रही थी---जबकि कुछ नए लोगों को पीने वाला पानी देने से भी इनकार किया जा रहा था---मेले के अंतिम दिन तक यही हाल था---कुछ लोग मुख्य मंच पर थे
पंजाब केसरी से साभार 
--कुछ आम संगत के आगे बैठ गए----कुछ बंटी बाबा के मंच पर भी पहुंचे हुए थे--कुछ बिलकुल सामने और कुछ को वहां बैठाया गया जहाँ बिलकुल सामने एक पिल्लर था और न तो मंच नजर आता था--न ही बोलने वाला---अपमानित महसूस करते हुए कुछ मीडिया वाले गुस्से से बाहर भी आ गए---- सोच रहा था इस धार्मिक दरबार में यह सब क्या हो रहा है ??? बंटी बाबा से पूछना चाहा---पर बंटी बाबा तो दूर थे---बहुत ऊंचे मंच पर और रास्ते में थी उनकी दीवार जो केवल जान  पहचान वालों को ही पास जाने का रास्ता देती थी---सोच रहा था---यह सब क्या है---इतने में एक सूफी गायक की आवाज़ आई----नाम था शायद शौकत अली---आवाज़ आ रही थी---
इक बाप के दो बेटे--किस्मत मगर जुदा है---
इक अर्श पर खड़ा है---इक मांगता गज़ा है------
दूर से देखा---बंटी बाबा मस्ती में सर हिल रहे थे---फिर झूमने लगे  और फिर उठ कर उसे इनाम देने भी गए---
दिलचस्प बात है कि किस्मत और जिंदगी में कदम कदम पर फैला हुआ अर्श और फर्श का यह अंतर मीडिया की कवरेज में भी नज़र आया---तीन प्रमुख अख़बारों में इस सूफी महफिल की रिपोर्ट अलग अलग थी---पर सूफी शायरी और गायन की दो चार पंक्तियाँ  किसी भी रिपोर्ट का हिस्सा न बन सकीं---न जाने यह यह आगे से भी आगे न बैठ पाने की नाराजगी थी---या फिर विज्ञापन कम मिलने का गिला---या बैठने की दुर्व्यवस्था का परिणाम ???? 
बंटी बाबा यहाँ कभी डांट कर और कभी प्रेम से सभी से यही कहते हैं कि शराब का सेवन मत करो---उनके उपदेशों में यह बात प्रमुख है-- इसका ज़िक्र बार बार होता है---हर गुरुवार और हर मंगलवार को भी इसकी चर्चा रहती है------पर नारी या पर पुरुष की तरफ  आँख उठाने से भी बाबा मना करते हैं----पर मेले के आखिरी दिन जब गुरदास मान के गीत अभी चला ही रहे थे कि पटवारी और पत्रकार स्तर के कुछ लोग वीआईपी पंडाल से भी उठ कर चले आये क्यूंकि शराब में तल्ली हुए कुछ लोग शराब की बदबू से इस सूफियाना रंग में रंग में भांग डालने आये हुए थे---इन लोगों को न तो बच्चों का कुछ ध्यान था और न ही महिलायों का---ये सब के ऊपर गिरते जा रहे थे---भक्त और श्रद्धालू परेशान थे कि ये लोग पीर बाबा के कहर से भी नहीं डरते---
(पंजाब स्क्रीन टीम)

Sunday, April 21, 2013

मकादूर संगठन करेंगे मई दिवस सम्मेलन का आयोजन

पुडा मैदान में होगा मई दिवस सम्मेलन
लुधियाना:21 अप्रेल 2013: (*लखविन्दर): कारखाना मकादूर यूनियन और टेक्सटाइल हौजरी कामगार यूनियन की ओर से मई दिवस के महान दिन पर कारखाना मकादूर यूनियन और टेक्सटाइल हौजरी कामगार यूनियन की ओर से लुधियाना के पुडा मैदान में मई दिवस सम्मेलन किया जाएगा। यह फैसला आज सुरपाल पार्क, फोकल प्वाइण्ट, लुधियाना में दोनों संगठनों के प्रतिनिधियों की हुई साझी मीटिंग में किया गया। सम्मेलन में मई दिवस आन्दोलन के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की जाएगी। मौजूदा समय में जब मकादूरों-मेहनतकशों की लूट-खसूट तीखी से तीखी होती जा रही है, मई दिवस आन्दोलन की प्रासंगिकता के बारे में और इन हालातों को बदलने की राह के बारे में सम्मेलन में विस्तार से चर्चा की जाएगी। सम्मेलन में क्रान्तिकारी नाटक व गीत भी पेश किए जाएँगे।

टेक्सटाइल-हौजरी कामगार यूनियन के अध्यक्ष राजविन्दर ने कहा कि एक पर्चा बड़े स्तर पर मजदूरों में वितरित किया जाएगा व मीटिंगों-नुक्कड़ सभाओं आदि माध्यमों के जरिए लोगों तक मई दिवस आन्दोलन की शिक्षाओं को पहुँचाया जाएगा और उन्हें मई दिवस सम्मेलन में शामिल होने की अपील की जाएगी। उन्होंने कहा कि मई दिवस की यह इतिहासिक शिक्षा है कि लूटे-खसूटे लोगों को हक तभी हासिल होते हैं जब वे जागृत होकर, एकजुट संघर्ष लड़ते हैं। बिना एकजुट हुए, बिना संघर्ष, बिना कुर्बानियों के कोई हक नहीं मिलता। उन्होंने कहा कि यह एक विडम्बना है कि 127 वर्ष से दुनिया भर में मई दिवस मनाया जा रहा है लेकिन हमारे देश के अधिकतर मकादूर इस दिन के महत्व के बारे में नहीं जानते। उन्होंने कहा कि जब काम के घण्टे कानूनी तौर पर तय नहीं थे, जब मकादूरों का काम पर जाने का समय तो होता था लेकिन घर लौटने का कोई समय नहीं होता था, जब मकादूर 14-16 घण्टे तक काम करने पर मकाबूर थे, उस समय मकादूरों ने आठ घण्टे दिहाड़ी का कानून बनवाने के लिए संघर्ष की शुरुआत की। भारत में भी 1862 में मकादूरों ने इस माँग को लेकर हड़ताल की थी। लेकिन पहली बार बड़े स्तर पर 1 मई 1886 के दिन अमेरिका में इस माँग को लेकर हड़ताल हुई। शिकागो के मकादूरों को सरकार के बरबर जुल्म का सामना करना पड़ा। लेकिन मकादूर जुल्म के आगे न झुके। यह संघर्ष पूरे संसार में फैला। आगे चलकर सारे संसार की सरकारों को आठ घण्टे दिहाड़ी का कानून बनाना पड़ा। ''कम्युनिस्ट इण्टरनेश्नलÓÓ के ऐलान के बाद सन् 1890 से 1 मई का दिन हर वर्ष अन्तरराष्ट्रीय मकादूर दिवस के रूप में मनाया जाता रहा है।
राजविन्दर ने कहा कि मकादूरों ने जो हक असंख्य कुर्बानियों के जरिए हासिल किए थे वे फिर से दुनिया भर में छीने जा रहे हैं। हमारे देश में 93 प्रतिशत मकादूर वे हैं जिन्हें कार्यस्थल पर कानून अधिकार हासिल नहीं होते। न तो उन्हें 8 घण्टे दिहाड़ी का अधिकार हासिल है और न ही न्यूनतम वेतन, पहचान पत्र, हाजिरी कार्ड, ई.एस.आई. इ.पी.एफ., हादसों व बीमारियों की रोकथाम के प्रबन्ध, हादसे व बीमारियों की सूरत में मुआवजा, साप्ताहिक व अन्य छुट्टियों सहित लगभग सबी कानूनी अधिकार हासिल नहीं हैं। उन्होंने कहा कि अगर ये अधिकार लागू हो जाएँ तो कुछ हद तक मकादूरों को राहत मिल सकती है। लेकिन देश का पूँजीपति वर्ग ये अधिकार भी उन्हें देने के लिए तैयार नहीं। मई दिवस अन्दोलन से प्रेरणा व शिक्षा लेकर देश के मकादूर वर्ग के हक हासिल करने के लिए बड़े पैमाने पर लामबन्द होना होगा। उन्होंने कहा कि ज्यों-ज्यों मौजूदा पूँजीवादी व्यवस्था का देश और विश्व स्तर पर आर्थिक संकट गहराता जा रहा है,  त्यों-त्यों जनता पर आर्थिक बोझ बढ़ाया जा रहा है। इसके कारण जनता में रोष भी बढ़ता जा रहा है। इन हालातों से निपटने के लिए जनता को धर्म, जाति, क्षेत्र, राष्ट्र के नाम पर बाँटने और जनता कों आपसे में लड़ाने-मराने की साजिशें तेज होती जा रही हैं। ऐसे समय में मई दिवस की शिक्षाओं को मकादूरों-मेहनतकशों तक लेकर जाने की सख्त जरूरत है।
राजविन्दर ने सभी मकादूरों, मेहनतकशों, इंसाफपसंद नागरिकों को मई दिवस सम्मेलन में पहुँचने की अपील की है।

लखविन्दर कारखाना मकादूर यूनियन, पंजाब के अध्यक्ष हैं -----Mobile Number है--फोन-9646150249

Thursday, April 18, 2013

पीरखाना लुधियाना में मेले की सभी तैयारियां मुक्कमल

पंडाल के लिए सजाई गई ढाई एकड़ जमीन भी कम पड़ने की आशंका
श्री लखदाता पीर जी निगाहें वाले का जन्म दिन इस बार भी बहुत धूमधाम से मनाया जा रहा है। बंटी बाबा की देख रेख और मार्गदर्शन में लुधियाना के न्यू अग्रवाल पीरखाना में इस बार भी यह मेला पूरे जोशो खरोश के साथ लग रहा है। इस बार लगने वाले मेले का स्वरूप पहले के सभी मेलों से विशाल होगा। आयोजन की सफलता के लिए बनी गई अलग अलग टीमें कुशलता से अपना अपना काम कर रही हैं। मेले की सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। लुधियाना के गली बाजारों में एक बार फिर उत्साह पूर्ण चहल पहल है। मेले से पहले ही मेले का माहौल बना हुआ है। लोगों के उत्साह को देखते हुए पता चला है कि इस बार के मेले में पंजाब से बाहर की संगत भी बहुत जोशो खरोश से आ रही है। इस इलाके में कारोबार करते होटल वाले, दुकानों वाले भी खुश हैं 
की अधिक संगत के आने से उनके कारोबार में भी इजाफा होगा। मेला स्थान तक आने वाले रिक्शा, आटो और टैक्सियाँ वाले स्टेशन पर गाड़ी आते ही सवारियों को पीरखाना चलने की आवाजें लगाने लगते हैं। सेवा करने वाली संगत बहुत ही अदब और प्यार हर आने वाले की आवभगत में लग जाते हैं। यह सारा माहौल देख कर लगता है कि जैसे किसी बड़े परिवार के बड़े से खुले घर में पहुँच गए हों।गौरतलब है कि इस बार मेले में सूफी गायन को नई बुलंदियों पर पहुँचाने वाले गुरदास मान भी विशेष तौर पर पहुँच रहे हैं। बाबा जी की पवित्र चादर अजमेर शरीफ से लाई जा रही है। लोगों के उत्साह को देखते हुए इस बार ढाई एकड़ जगह केवल पंडाल के लिए ले ली गयी है। इस सम्बन्ध में निकलने वाली भव्य रथ यात्रा को लेकर भी संगत में भारी उत्साह है। यह रथ यात्रा 20 अप्रैल को दरेसी मैदान से चलेगी और अपने रूट से होती हुई पीरखाना पहुँच कर विश्राम करेगी। अगले दिन अर्थात 21 अप्रैल को सुबह साढ़े दस बजे चादर की रस्म होगी।इसके बाद 11बजे झंडे की रस्म होगी और इसके तुरंत बाद दोपहर को एक बजे केक काटा जायेगा। शाम होते होते चार बजे होगी मेहँदी की रस्म और पांच बजे शुरू होगी सूफियाना शायरी की महफिल। सूफी गायन की मस्ती के ये प्याले अगले दिन 22 अप्रैल को भी छलकेंगे। मस्ती की इस महफिल में गुरदास मान के साथ ही हंसर हयात निजामी, अनीस साबरी, शकील साबरी, सरदार अली, अमित धर्मकोटी, राकेश राधे, ललित गोयल, टोनी सुल्तान और बहुत से अन्य कलाकार। सूफी एंकर हेमंत वालिया मंच संचालन करेंगे। दूरदराज से  आने वाली संगत के लिए विशेष प्रबंध किये गए हैं तांकि किसी को भी कोई असुविधा न हो।-रेक्टर कथूरिया 
पीरखाना लुधियाना में मेले की सभी तैयारियां मुक्कमल 

Wednesday, April 17, 2013

डीआरडीओ

16-अप्रैल-2013 16:20 IST
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन-डीआरडीओ की उपलब्धियां
रक्षा विशेष लेख                                                      --*नंगसुंगलेम्‍बा आओ                                                                                                                                                                                                                           
     रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन-डीआरडीओ देश का एक महत्‍वपूर्ण संगठन हैं जो रक्षा प्रौद्योगिकी के विकास में लगा हुआ है। इसका मिशन आधुनिक किस्‍म की रक्षा प्रणालियां और प्रौद्योगिकियों का विकास करना और देश की रक्षा सेवाओं के लिए प्रौद्योगिकी समाधान प्रदान करना है। संगठन ने प्रौद्योगिकी विकास के क्षेत्र में नये और वृहद आयाम स्‍थापित किये हैं।
     हाल के वर्षों में डीआरडीओ ने आत्‍मनिर्भरता पर जो ध्‍यान दिया है, उससे रक्षा सेवाओं के लिए आधुनिक प्रणालियां और महत्‍वपूर्ण प्रौद्योगिकियां विकसित हुई हैं और आत्‍मनिर्भरता का सूचकांक 30 प्रतिशत से बढ़कर 55 प्रतिशत तक पहुंच गया है।
     सामरिक प्रणालियों में दक्ष डीआरडीओ ने कई उपलब्धियां हासिल की हैं और लम्‍बी दूरी तक मार करने वाली सामरिक मिसाइल अग्नि-5 के शानदार प्रक्षेपण से संगठन ने नई ऊंचाईयों को छुआ है। अग्नि-1, अग्नि-2, पृथ्‍वी-2 और अग्नि-3 ने देश की सामरिक शक्ति को मजबूत बनाने में योगदान दिया, जबकि अग्नि-5 को सशस्‍त्र सेनाओं के अस्‍त्रों में शामिल करने की तैयारियां की जा रही हैं। 70 से अधिक प्रमुख मिसाइल प्रणालियों का प्रक्षेपण, इस महत्‍वपूर्ण क्षेत्र में डीआरडीओ की शक्ति और दक्षता को दर्शाता है।
     कई प्रकार के सफल परीक्षणों और नई प्रौद्योगिकियों के इस्‍तेमाल के बाद जलगत प्रणाली बीओ-5 के निर्माण की मंजूरी मिलना संगठन की एक और बड़ी उपलब्धि है।
     भारत की पहली स्‍वदेशी परमाणु शक्ति युक्‍त पनडुब्‍बी-आईएनएस अरिहन्‍त समुद्री परीक्षणों के लिए तैयार है। लम्‍बी दूरी की क्रूज मिसाइल निर्भय अपनी प्रारंभिक उड़ान भर चुकी है। सफल इंटरसेप्‍शन परीक्षणों के बाद विकसित की गई दो-स्‍तरीय बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा प्रणाली की विश्‍वसनीयता प्रदर्शित हो गई है।
     कई लक्ष्‍यों को साधने वाली मध्‍यम दूरी की वायु रक्षा प्रणाली से विकसित आकाश एक और शानदार उपलब्धि है।
     सर्वश्रेष्‍ठ सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्राह्मोस, जिसका प्रक्षेपण थल, वायु, समुद्र और समुद्र के अंदर के प्‍लेटफार्मों से तेज गति के साथ हमले के लिए किया जा सकता है, आधुनिक समय का एक और महत्‍वपूर्ण हथियार है। इसका ब्‍लॉक-2 डिजाईन लक्ष्‍य की पहचान कर सकता है और ब्‍लॉक-3 डिजाईन सुपरसोनिक गति के साथ गहराई तक गोता लगाने की क्षमता रखता है, जिसके कारण यह एक अत्‍यंत मारक क्षमता वाला हथियार बन गया है।
     जमीन से जमीन तक मार करने वाली नई प्रहार मिसाइल 150 किलोमीटर से भी अधिक दूरी तक गोले फेंक सकती है और एक तरह से पिनाका रॉकेट और पृथ्‍वी मिसाइल के अंतर को पूरा करती है।
     देश में निर्मित एक्टिव ऐरे रेडार एंटिना से युक्‍त एईडब्‍ल्‍यूएंडसीएस प्‍लेटफॉर्म डीआरडीओ की एक अन्‍य महत्‍वपूर्ण उप‍लब्धि है। इसके व्‍यापक उड़ान परीक्षण किये जा रहे हैं।
     मिग-27, जगुआर और सुखोई-30 विमानों की उडान क्षमता में सुधार से इनकी लडाकू क्षमताओं में वृद्धि हुई है।
     देश में पहली बार डिजाईन और निर्मित किये गये विमान इंजन कावेरी की सफल उडानों के बाद सफल परीक्षण चल रहे हैं। यूएवी के लिए वेंकल रोटरी इंजन को सफल रूप से विकसित करने के बाद यूएवी निशांत में इसका प्रयोग एक और बड़ी उपलब्धि है।
     मुख्‍य युद्धक टैंक-अर्जुन से लैस दो रेजीमेंट भारतीय सेना की शान हैं। अर्जुन मार्क-2 में लगभग 70 नये फीचर हैं और इसे रिकॉर्ड समय में विकसित किया गया है।
     पिनाका रॉकेट लांचर को और विकसित करके लंबी दूरी के पिनाका-2 का निर्माण किया गया है, जिसके परीक्षण चल रहे हैं।
     एक नयी पुल निर्माण प्रणाली का विकास किया गया है, जिससे 46 मीटर लम्‍बा पुल तैयार किया जा सकता है और जो 70 टन के भार को झेल सकता है। अब इसके परीक्षण चल रहे हैं।
     भारतीय नौ-सेना की आवश्‍यकता के लिए बहुत उच्‍च गुणवत्‍ता वाले सेंसर USHUS, NAGAN और HUMSA NG को नौ-सेना के जहाजों में इस्‍तेमाल के लिए विकसित किया गया है। भारी वजन वाले टॉरपिडो वरूणास्‍त्र के समुद्र में व्‍यापक परीक्षण हो चुके हैं और इसे अस्‍त्र प्रणालियों में शामिल किया जाना है।
     रेडार और इलैक्‍ट्रॉनिक युद्ध प्रणालियों के लिए डब्‍ल्‍यूएलआर, 3डी टीसीआर, भारानी और अश्‍लेषा जैसे अत्‍यंत आधुनिक किस्‍म की रेडार प्रणालियां विकसित की गई हैं।
     डीआरडीओ ने रक्षा सेनाओं की आवश्‍यकताओं के लिए विशेष सामग्री के विकास में अग्रणी भूमिका निभाई है। हाल की उपलब्धियों में एमआई 17 हैलीकॉप्‍टर के लिए हल्‍के हथियारों का निर्माण और भारतीय नौ-सेना के लिए 30 हजार टन के डीएमआर स्‍टील का उत्‍पादन शामिल हैं।
     आज के युद्ध परिदृश्‍य की आवश्‍यकताओं को देखते हुए डीआरडीओ ने मानव रहित युद्धक मशीनें विकसित करनी शुरू की हैं, जो बहुत महत्‍वपूर्ण हैं। इनमें दूर से संचालित यान दक्ष बम गिराने की दिशा में एक महत्‍वपूर्ण उपलब्धि है। यूएवी रूस्‍तम-1 की कई सफल उड़ानें हो चुकी हैं। कई लघु और सूक्ष्‍म यूएवी विकसित किये गये हैं।
     नौ-सेना के सब-मरीन एसकेप सूट के लिए, पैराशूटधारियों के लिए उतरने की विशेष प्रणाली के लिए और भारतीय वायु सेना के हल्‍के हैलीकॉप्‍टर की ऑक्‍सीजन प्रणाली के लिए डीआरडीओ को बडे पैमाने पर ऑर्डर मिले हैं। डीआरडीओ ने ऑन बोर्ड ऑक्‍सजीन जेनरेशन सिस्‍टम का भी विकास किया है।
     सैनिकों की सहायता के लिए सौर ऊर्जा के प्रयोग वाले मॉड्यूलर ग्रीन शेल्‍टर का विकास भी एक महत्‍वपूर्ण उपलब्धि है।
     डीआरडीओ ने सामाजिक क्षेत्र के लिए भी पर्यावरण हितैषी बॉयो डाइजेस्‍टर तैयार किये हैं जो अत्‍यंत ठंडे क्षेत्रों में मनुष्‍यों के शौच का निपटान करते हैं। इन्‍हें रेल डिब्‍बों के लिए और लक्षद्वीप समूह के लिए भी विकसित किया गया है। दो लाख से अधिक ग्राम पंचायतों के लिए जैव-शौचालय विकसित करने के लिए भी इस प्रौद्योगिकी का इस्‍तेमाल किया जा रहा है।
     मलबे के अंदर दबे हुए या बोर-वेल में गिरे पीडि़तों की पहचान के लिए सोनार टैक्‍नोलॉजी से लाइफ डिटेक्‍टर संजीवनी का विकास किया गया है। जल क्षेत्रों के नीचे की सतह कितनी सख्‍त है, इसकी पहचान के लिए तरंगिणी उपकरण का विकास किया गया है।
     इन सब प्रयासों का एक ही उद्देश्‍य है कि रक्षा प्रणालियों और प्रौद्योगिकियों के डिजाईन विकास और उत्‍पादन में भारत को एक विश्‍व स्‍तरीय केंद्र के रूप में विकसित किया जाये, ताकि इसे अन्‍य देशों पर निर्भर न रहना पडे।
     भारत की रक्षा शक्ति आज ऐसी बुलंदियों पर पहुंच गई है कि यह उन ऐसे चार देशों में से एक है जिनके पास बहुस्‍तरीय सामरिक त्रास क्षमता है, उन पांच देशों में से एक देश है जिसके पास अपना बीएमडी कार्यक्रम है, उन 6 देशों में से एक देश है जिसके पास अपना मुख्‍य युद्धक टैंक है और उन  7 देशों में से एक देश है जिसके पास अपने चौथी श्रैणी के युद्धक विमान हैं।

* लेखक रक्षा मंत्रालय में निदेशक हैं
मीणा/राजगोपाल/चन्‍द्रकला-73
पूरी सूची-15.04.13

ऑनलाइन शि‍कायत प्रणाली के माध्‍यम से 2662 शि‍कायतें

राष्‍ट्रीय उपभोक्‍ता हेल्‍पलाइन को मार्च, 2013 में 12,121 कॉल की गई
    राष्‍ट्रीय उपभोक्‍ता हेल्‍पलाइन (एनसीएच) ने मार्च, 2013 के दौरान 12,121 कॉल प्राप्‍त की। इन दूरभाष कॉलों/शि‍कायतों के अलावा एनसीएच वेबसाइट पर ऑनलाइन शि‍कायत प्रणाली के माध्‍यम से 2662 शि‍कायतें भी प्राप्‍त की गईं।

      इनमें सबसे अधि‍क कॉल दि‍ल्‍ली से प्राप्‍त हुईं। इसके बाद उत्‍तर प्रदेश, महाराष्‍ट्र, हरि‍याणा, राजस्‍थान, बि‍हार, पश्‍चि‍म बंगाल, गुजरात, मध्‍य प्रदेश और पंजाब का स्‍थान रहा।

      मार्च, 2013 के दौरान उक्‍त शीर्ष 10 राज्‍यों के संबंध में की गई कॉलों का ब्‍यौरा नीचे दि‍या गया है:-

क्र.सं.
राज्‍य
शि‍कायतें
कुल कॉलों का प्रति‍शत
1
दि‍ल्‍ली
2963
24.45
2
उत्‍तर प्रदेश
1984
16.37
3
महाराष्‍ट्र
1383
11.41
4.
हरि‍याणा
991
8.18
5.
राजस्‍थान
845
6.97
6.
बि‍हार
588
4.85
7.
पश्‍चि‍म बंगाल
526
4.34
8.
गुजरात
464
3.83
9.
मध्‍य प्रदेश
427
3.52

10.
पंजाब
397
3.28

       अधि‍कतम 19 प्रति‍शत शि‍कायतें टेलीकॉम क्षेत्र की प्राप्‍त हुई। इसके बाद का स्‍थान उत्‍पाद, बैंकिंग और ई-कॉमर्स का रहा। देश के उपभोक्‍ता, टोल फ्री राष्‍ट्रीय उपभोक्‍ता, हेल्‍पलाइन संख्‍या 1800-11-400 पर संपर्क कर सकते हैं तथा उपभोक्‍ता संबंधि‍त समस्‍याओं के लि‍ए दूरभाष पर काउंसलिंग भी प्राप्‍त कर सकते हैं। उपभोक्‍ता हेल्‍पलाइन उपभोक्‍ता मामलों के संबंध में सूचना, सलाह और मार्गदर्शन भी प्रदान करती है। शि‍कायतों को वेबसाइट:www.nationalconsumerhelpline.in. पर भी दर्ज कि‍या जा सकता है।      
वि.कासोटिया\यादराम/राजीव – 1899

Friday, April 05, 2013

कॉमरेड शालिनी को भावभीनी श्रद्धांजलि

शालिनी--जो आखिरी सांस तक बनी रही मौत के लिए भी चुनौती 
साथियों ने लिया अधूरे कार्यों और सपनों को पूरा करने का संकल्‍प
लखनऊ, 4 अप्रैल. कॉमरेड शालिनी जैसी युवा सांस्कृतिक संगठनकर्ता के अचानक हमारे बीच से चले जाने से जो रिक्तता पैदा हुई है उसे भरना आसान नहीं होगा. उन्होंने एक साथ अनेक मोर्चों पर काम करते हुए लखनऊ ही नहीं पूरे देश में प्रगतिशील और क्रान्तिकारी साहित्य तथा संस्कृति के प्रचार-प्रसार में जो योगदान दिया वह अविस्मरणीय रहेगा.
का. शालिनी की स्मृति में आज यहाँ `जनचेतना` तथा `राहुल फ़ाउण्डेशन` की ओर से आयोजित श्रद्धांजलि सभा में शहर के बुद्धिजीवियों तथा नागरिकों के साथ ही दिल्ली, पंजाब, मुम्बई, इलाहाबाद, पटना, गोरखपुर सहित विभिन्न स्थानों से आये लेखकों, संस्कृतिकर्मियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और साहित्यप्रेमियों ने उन्हें बेहद आत्मीयता के साथ याद किया. उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करने के साथ ही सभा में उन उद्देश्यों को आगे बढ़ाने का संकल्प व्यक्त किया गया जिनके लिए शालिनी अन्तिम समय तक समर्पित रहीं.

शालिनी पिछले तीन  महीनों से पैंक्रियास के कैंसर से जूझ रही थीं और गत 29 मार्च को दिल्ली के धर्मशिला कैंसर अस्पताल में उनका निधन हो गया था. वे केवल 38 वर्ष की थीं.

राहुल फ़ाउण्‍डेशन के सचिव सत्‍यम ने कहा कि का[ शालिनी का राजनीतिक-सामाजिक जीवन बीस वर्ष की उम्र में ही शुरू हो चुका था. गोरखपुर, इलाहाबाद और लखनऊ में प्रगतिशील साहित्य के प्रकाशन एवं वितरण के कामों में भागीदारी के साथ ही शालिनी जन अभियानों, आन्दोलनों, धरना-प्रदर्शनों आदि में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती रहीं. जनचेतना पुस्तक केन्द्र के साथ ही वे अन्य साथियों के साथ झोलों में किताबें और पत्रिकाएँ लेकर घर-घर और दफ़्तरों में जाती थीं, लोगों को प्रगतिशील साहित्य के बारे में बताती थीं, नये पाठक तैयार करती थीं. गोरखपुर में युवा महिला कॉमरेडों के एक कम्यून में तीन वर्षों तक रहने के दौरान शालिनी स्‍त्री मोर्चे पर, सांस्कृतिक मोर्चे पर और छात्र मोर्चे पर काम करती रहीं. एक पूरावक़्ती क्रान्तिकारी कार्यकर्ता  के रूप में काम करने का निर्णय वह 1995 में ही ले चुकी थीं.

इलाहाबाद में `जनचेतना` के प्रभारी के रूप में काम करने के दौरान भी अन्य स्‍त्री कार्यकर्ताओं की टीम के साथ वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रों के बीच और इलाहाबाद शहर में युवाओं तथा नागरिकों के बीच विभिन्न सामाजिक-राजनीतिक गतिविध्यिों में हिस्सा लेती रहीं. इलाहाबाद के अनेक लेखक और संस्कृतिकर्मी आज भी उन्हें याद करते हैं.

पिछले लगभग एक दशक  से लखनऊ उनकी कर्मस्थली था. लखनऊ स्थित `जनचेतना` के केन्द्रीय कार्यालय और पुस्तक प्रतिष्ठान का काम सँभालने के साथ ही वह `परिकल्पना,` `राहुल फ़ाउण्डेशन` और `अनुराग ट्रस्ट` के प्रकाशन सम्बन्धी कामों में भी हाथ बँटाती रहीं. `अनुराग ट्रस्ट` के मुख्यालय की गतिविधियों, पुस्तकालय, वाचनालय, बाल कार्यशालाएँ आदि की ज़िम्मेदारी उठाने के साथ ही कॉ[ शालिनी ने ट्रस्ट की वयोवृद्ध मुख्य न्यासी दिवंगत कॉ[ कमला पाण्डेय की जिस लगन और लगाव के साथ सेवा और देखभाल की, वह कोई सच्चा सेवाभावी कम्युनिस्ट ही कर सकता था. 2011 में `अरविन्द स्मृति न्यास` का केन्द्रीय पुस्तकालय लखनऊ में तैयार करने का जब निर्णय लिया गया तो उसकी व्यवस्था की भी मुख्य जिम्मेदारी शालिनी ने ही उठायी. वह `जनचेतना` पुस्तक प्रतिष्ठान की सोसायटी की अध्यक्ष, `अनुराग ट्रस्ट` के न्यासी मण्डल की सदस्य, `राहुल फ़ाउण्डेशन` की कार्यकारिणी सदस्य और परिकल्पना प्रकाशन की निदेशक थीं. ग़ौरतलब है कि इतनी सारी विभागीय ज़िम्मेदारियों के साथ ही शालिनी आम राजनीतिक प्रचार और आन्दोलनात्मक सरगर्मियों में भी यथासम्भव हिस्सा लेती रहती थीं. बीच-बीच में वह लखनऊ की ग़रीब बस्तियों में बच्चों को पढ़ाने भी जाती थीं. लखनऊ के हज़रतगंज में रोज़ शाम को लगने वाले जनचेतना के स्‍टॉल पर पिछले कई वर्षों से सबसे ज़्यादा शालिनी ही खड़ी होती थीं.

कवयित्री कात्यायनी ने उन्हें बेहद हार्दिकता से याद करते हुए कहा कि हर पल मौत से जूझते हुए शालिनी हमें सिखा गयी कि असली इंसान की तरह जीना क्या होता है. आख़िरी दिनों तक शालिनी अपनी ज़िम्मेदारियों और राजनीतिक-सामाजिक गतिविधियों के बारे में ही सोचती रहती थीं. अक्सर फोन पर वे साथियों को कुछ न कुछ जानकारी या सलाह दिया करती थीं. शुरू से ही उन्हें अपने से कई गुना ज़्यादा दूसरों का ख़्याल रहता था. उन्हें मालूम था कि मौत दहलीज़ के पार खड़ी है मगर मौत का भय या निराशा उन्हें छू तक नहीं गयी थी. स्वस्थ होकर ज़िम्मेदारियों के मोर्चे पर वापस लौटने में उनका विश्वास और इसे लेकर उनका उत्साह हममें भी आशा का संचार करता था.

कॉ[ शालिनी एक कर्मठ, युवा कम्युनिस्ट संगठनकर्ता थीं. आज के दौर में बहुत से लोगों की आस्‍थाएं खंडित हो रही हैं, लोग तरह-तरह के समझौते कर रहे हैं, बुर्जुआ संस्‍कृति का हमला युवा कार्यकर्ताओं के एक अच्‍छे-खासे हिस्‍से को कमज़ोर कर रहा है, मगर शालिनी इन सबसे रत्तीभर भी प्रभावित हुए बिना अपनी राह चलती रहीं. एक बार जीवन लक्ष्य तय करने के बाद पीछे मुड़कर उन्होंने कभी कोई समझौता नहीं किया. उसूलों की ख़ातिर पारिवारिक और सम्‍पत्ति-सम्‍बन्‍धों से  पूर्ण विच्छेद कर लेने में भी शालिनी ने देरी नहीं की. एक सूदख़ोर व्यापारी और भूस्वामी परिवार की पृष्ठभूमि से आकर, शालिनी ने जिस दृढ़ता के साथ पुराने मूल्‍यों को छोड़ा और जिस निष्कपटता के साथ कम्युनिस्ट जीवन-मूल्यों को अपनाया, वह आज जैसे समय में दुर्लभ है और अनुकरणीय भी.

अनुराग ट्रस्‍ट के अध्‍यक्ष और चित्रकार रामबाबू, आह्वान के सम्‍पादक अभिनव सिन्‍हा, आख़ि‍री दिनों में शालिनी के साथ रहीं उनकी दोस्‍त और कॉमरेड कविता और शाकम्‍भरी, जनचेतना की गीतिका, लेखिका सुशीला पुरी, नम्रता सचान, आरडीएसओ के ए[एम[ रिज़वी आदि ने शालिनी के व्‍यक्तित्‍व के अलग-अलग पहलुओं को याद किया.

भारतीय महिला फेडरेशन  की आशा मिश्रा ने कहा कि शालिनी जिन मूल्यों और जिस विचारधारा के लिए लड़ती रहीं, आखिरी सांस तक उस पर डटी रहीं. छोटी उम्र में जितनी वैचारिक समझदारी, कामों के प्रति गहरी निष्ठा शालिनी में दिखती थी, इसके उदाहरण कम ही देखने को मिलते हैं.

देश के अलग-अलग हिस्सों  से बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों, एक्टिविस्टों द्वारा भेजे गये कुछ चुनिन्‍दा शोक-संदेशों को उनके आग्रह पर उनकी ओर से पढ़ा गया. एकीकृत नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के सांस्‍कृतिक प्रभाग के प्रमुख निनु चपागाईं ने कहा कि उनकी पार्टी के सांस्कृतिक कार्यकर्ता जनचेतना, अनुराग ट्रस्ट और राहुल फ़ाउण्डेशन के साथ एकजुटता व्यक्त करते हैं ताकि वे कामरेड शालिनी के अनेक दायित्वों को पूरा कर सकें. उन असंख्य लोगों के ज़रिए जिनके लिए उन्होंने क्रान्तिकारी साहित्य उपलब्ध तथा कराया तथा सांस्कृतिक संघर्ष के अनेक मोर्चों पर उनके कार्यों से आने वाले अनेक वर्षों तक परिणाम मिलते रहेंगे. `पहल` के सम्‍पादक ज्ञानरंजन ने कहा कि हमारे सारे वैचारिक मोर्चों पर काम करते हुए शालिनी ने जो बलिदान दिया वो अपने आप में एक मिसाल है. इतने कठिन समय में ऐसा कोई और उदाहरण हमारे सामने नहीं है. साहित्‍यकार शिवमूर्ति ने अपने संदेश में कहा कि कामरेड शालिनी का निधन संघर्षशील आम जन के लिए एक अपूरणीय क्षति है. एक लम्बे समय से मैं उनके व्यक्तित्व के विभिन्न कोणों से परिचित था. उनकी मृत्यु पूर्व लिखी गयी लम्बी कविता `मेरी आखिरी इच्छा` पढ़ने से उनके निडर और क्रान्तिकारी विचारों और दृढ़ इच्छाशक्ति का पता चलता है.

पी[यू[सी[एल[ की कविता श्रीवास्तव ने शालिनी, उनके कार्यों, उनके लेखन, उनके विचार और उनके साहस को क्रान्तिकारी सलाम करते हुए कहा कि शालिनी का ब्‍लॉग मेरे जीवन में हुई कुछ सबसे अच्छी बातों में से एक है. वरिष्‍ठ लेखक-पत्रकार अजय सिंह ने कहा कि मेरे लिए शालिनी और लखनऊ में हज़रतगंज के गलियारे जनचेतना पुस्तक स्‍टॉल जैसे एक-दूसरे के पर्याय बन गये थे. शालिनी हमेशा हल्की व दोस्ताना मुस्कान से स्वागत करतीं, और नयी-पुरानी किताबों व पत्रिकाओं के बारे में बताती थीं. स्टूल पर सीधी, तनी हुई बैठी शालिनी की मुद्रा मेरे ज़ेहन में अंकित है. प्रगतिशील वसुधा के सम्‍पादक राजेन्‍द्र शर्मा ने अपने सन्‍देश में कहा कि कामरेड शालिनी ने एक साथ कई मोर्चों पर जूझते हुए जनसंघर्ष की एक व्यापक परिभाषा गढ़ी थी. उन जैसी ईमानदार साथी का इतना आकस्मिक निधन स्तब्धकारी दुर्घटना है. हमारी कतारों से एक उज्ज्वल ध्रुवतारा अस्त हो गया.

कवि नरेश सक्सेना, मलय, विजेन्‍द्र, नरेश चन्द्रकर, कपिलेश भोज, लेखक सुभाष गाताड़े, डा[ आनन्द तेलतुम्बडे, चन्‍द्रेश्‍वर, वीरेन्‍द्र यादव, मदनमोहन, भगवानस्‍वरूप कटियार, प्रताप दीक्षित, शालिनी माथुर, शकील सिद्दीकी, गिरीशचन्‍द्र श्रीवास्‍तव, अजित पुष्‍कल, फिल्‍मकार फ़ैज़ा अहमद ख़ान, उद्भावना के सम्‍पादक अजेय कुमार, बया के सम्‍पादक गौरीनाथ, सबलोग के सम्‍पादक किशन कालजयी, समयान्‍तर के सम्‍पादक पंकज बिष्‍ट, जनपथ के सम्‍पादक ओमप्रकाश मिश्र, प्रो[ चमनलाल, पत्रकार जावेद नकवी, दिव्‍या आर्य, डा[ सदानन्‍द शाही, शम्‍सुल इस्‍लाम, मुम्‍बई के हर्ष ठाकौर, लोकायत, पुणे के नीरज जैन, सीसीआई की ओर से पार्थ सरकार, जन संस्‍कृति मंच के महासचिव प्रणय कृष्‍ण, जलेस के प्रमोद कुमार, सामाजिक कार्यकर्ता अशोक चौधरी, वी[आर[ रमण, डा[ मीना काला, मोहिनी मांगलिक, हरगोपाल सिंह, नाट्यकर्मी  राजेश, डा[  साधना  गुप्‍ता सहित अनेक व्‍यक्तियों ने का[ शालिनी के लिए अपने शोक-संदेशों में कहा कि उन्होंने तमाम कठिनाइयों से लड़ते हुए जिस तरह जीने की जद्दोजहद जारी रखी वह सभी नौजवानों और खासकर उन स्त्रियों के लिए एक मूल्यवान शिक्षा है जो इस देश को बेड़ियों से आज़ाद कराने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं. क्रान्तिकारी आन्दोलन की दशा को ध्यान में रखते हुए, उनकी कमी को पूरा करना आसान नहीं होगा.

इस अवसर पर शालिनी के अन्तिम अवशेषों  की मिट्टी पर उनकी स्मृति में  एक पौधा लगाया गया.

शालिनी भी बहुत से लोगों की तरह  अपनी जिंदगी के मजे लूट सकती थी पर उसने अपने सरे सुख-आराम छोड़ दिए तांकि इस समाज को इंसानों के रहने लायक  बनाया जा सके। उसके सपने अधूरे रहे पर उसके साथी न निराश हुए न हताश। वे लगातार संघर्ष कर रहे हैं उन सपनों को साकार करने के लिए। यदि आप भी चाहते हैं एक नए स्वस्थ समाज का निर्माण-तो आप भी अपना 
योगदान दे सकते हैं। शालिनी के सपनोंकी चर्चा आप कर सकते हैं जन चेतना, राहुल फाऊंडेशन तथा अनुराग ट्रस्ट के राम बाबू और सत्यम से। फोन नम्बर हैं:  0522-2786782 Ḳ 8853093555 Ḳ 8960022288 Ḳ 9910462009


मैं अन्तिम साँस तक ज़ि‍न्‍दगी की जंग लड़ूँगी

Monday, April 01, 2013

16 बंगलादेशी मछुआरों के शव समुद्र में मिले

                       सभी मृतकों के हाथ-पैर बँधे हुए थे
कुछ दिन पूर्व लापता हुए बांग्लादेशी मछुयारों के शव मिल गए हैं। रेडियो रूस ने यह समाचार देते हुए सिन्हुया के हवाले से बताया कि मुर्तकों के हाथ पाँव बंधे हुए थे। रेडियो ने बताया कि सोमवार को बंगलादेश के दक्षिणी-पश्चिमी समुद्री-तट पर कुतुब्दिया द्वीप के पास बंगाल की खाड़ी में 16 मछुआरों के शव मिले हैं। कोक्स बाज़ार के पुलिस प्रमुख मुहम्मद आज़ाद मियाँ के हवाले से सिन्हुआ समाचार समिति ने यह ख़बर दी है।
उन्होंने बताया कि कुछ दिन पहले 23 मछुआरे कुतुब्दिया की ओर रवाना हुए थे जो बाद में लापता हो गए थे। उनकी खोज की जा रही थी। सभी मृतकों के हाथ-पैर बँधे हुए थे।
कोक्स बाज़ार के पुलिस अधिकारी मुहम्मद आज़ाद मियाँ ने बताया कि ऐसा लगता है कि इन लोगों के हाथ-पैर बाँधकर इन्हें जीवित ही समुद्र में फेंक दिया गया था। पुलिस मामले की जाँच कर रही है। पुलिस का अनुमान है कि समुद्री डकैतों ने इन मछुआरों की हत्या की होगी।

16 बंगलादेशी मछुआरों के शव समुद्र में मिले