Thursday, December 19, 2013

भारत के समस्त शासनाध्यक्षों से विनम्र अनुरोध//मनीराम शर्मा

Thu, Dec 19, 2013 at 9:09 PM
भारत में मात्र 25% पुलिस बल ही थानों में जनता की सेवा के लिए
मान्यवर,
पुलिस बल की तैनाती–कानून-व्यवस्था तथा अनुसन्धान एवं दोषसिद्धि
आप इस तथ्य से अवागत होंगे कि अमेरिका में प्रति लाख जनसंख्या 256 और भारत में 130 पुलिस है जबकि अमेरिका में भारत की तुलना में प्रति लाख जनसंख्या 4 गुणे मामले दर्ज होते हैं| फिर भी भारत में प्रति लाख जनसंख्या 56 केन्द्रीय पुलिस बल इसके अतिरिक्त हैं| अमेरिका में प्रति लाख जनसंख्या 5806 मुकदमे दायर होते हैं जबकि भारत में यह दर मात्र 1520 है| तदनुसार भारत में प्रति लाख जनसंख्या 68 मात्र पुलिस होना पर्याप्त है| किन्तु भारत में मात्र 25% पुलिस बल ही थानों में जनता की सेवा के लिए तैनात है और शेष बल लाइन आदि में तैनात है जिसमें से एक बड़ा भाग अंग्रेजी शासनकाल से ही विशिष्ट लोगों को वैध और अवैध सुरक्षा देने, उनके घर बेगार करने, वसूली करने आदि में लग जाता है|


भारत में अंग्रेज, जनता पर अत्याचार कर उनका शोषण करने और ब्रिटेन के राज कोष को धन से भरने के लिए आये थे अत: उनकी सुरक्षा को खतरे का अनुमान तो लगाया जा सकता है| किन्तु जनतन्त्र में शासन की बागडोर जनप्रिय, सेवाभावी और साफ़ छवि वाले लोगों के हाथों में होती है अत: अपवादों को छोड़ते हुए उनकी सुरक्षा को कोई ख़तरा नहीं हो सकता| फिर भी इन राजपुरुषों की सुरक्षा को लोकतंत्र में भी कोई ख़तरा होता है तो उसके लिए उनका आचरण ही अधिक जिम्मेदार है|   

पुलिस अपनी बची खुची ऊर्जा व समय  का उपयोग अनावश्यक गिरफ्तारियों में करती है| वर्ष भर में देश में लगभग एक करोड़ गिरफ्तारियां होती हैं व देश के पुलिस आयोग के अनुसार 60% गिरफ्तारियां अनावश्यक हो रही हैं| राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अनुसार भी देश में गत तीन वर्षों में कम से कम 3,668 अवैध गिरफ्तारियां हुई हैं| यह आंकडा तो मात्र रिपोर्ट किये गए मामले ही बताता है जो वास्तविकता का मात्र 5% ही है| इसमें राज्य आयोगों और बिना रिपोर्ट हुए/दबाये गए आंकड़े जोड़ दिए जाएं तो स्थिति भयावह नजर आती है|     

दुखद तथ्य है कि अपनी सुरक्षा के लिए, जिस पुलिस पर देश की जनता पूरा खर्च कर रही उसका उसे मात्र 25% प्रतिफल ही मिल रहा है और न केवल आम नागरिक की सुरक्षा के साथ समझौता किया जा रहा है बल्कि अनुसंधान में देरी का लाभ दोषियों को मिल रहा है| आपराधिक मामलों में 10-15 वर्ष मात्र अनुसंधान में आम तौर पर लगना इस दोषपूर्ण तैनाती नीति की ही परिणति है| अत: अब नीति बनायी जाए की कुल पुलिस बल का कम से कम आधा भाग जनता की सेवा में पुलिस थानों में तैनात किया जाए ताकि जनता कि सुरक्षा सुनिश्चित हो सके, अपराधियों को शीघ्र दंड मिल सके और उन पर प्रभावी नियंत्रण पाया जा सके|

यदाकदा किसी संवेदनशील मामले में न्यायालय द्वारा वरिष्ठ अधिकारी द्वारा अनुसंधान का आदेश दिया जाता है तो भी बयान हैड कांस्टेबल ही लेता और वही रिपोर्ट बनाता है| वरिष्ठ पुलिस अधिकारी तो वातानुकूलित कार्यालयों में बैठकर मात्र हस्ताक्षर ही करते हैं और बयान लेने कहीं बाहर नहीं जाते हैं| मात्र हस्ताक्षर करने के लिए देश की गरीब जनता की जेब से इतना भारी वेतन और सुविधाएं देना किस प्रकार न्यायोचित है|   

पुलिस तो जनता की सुरक्षा के लिए क्षेत्र में कार्य करने वाला बल है जिसका कार्यालयों में कोई कार्य नहीं है| सभी स्तर के पुलिस अधिकारियों को कार्यक्षेत्र में भेजा जाना चाहिए और उन्हें, अपवादों को छोड़कर, हमेशा ही चलायमान ड्यूटी पर रखा जाना चाहिए| आज संचार के उन्नत साधन हैं अत: आवश्यकता होने पर किसी भी पुलिस अधिकारी से कभी भी संपर्क किया जा सकता है और पुलिस चलायमान ड्यूटी पर होते हुए भी कार्यालय का कामकाज देख सकती है| पुलिस अधिकारियों को यह भी निर्देश हो को वे पुलिस थानों के कार्यालय की बजाय जनता से संपर्क कर निरीक्षण रिपोर्ट बनाएं|

सादर ,   
भवनिष्ठ                                                                            
मनीराम शर्मा                                                        दिनांक 19 .12 .13 
एडवोकेट
नकुल निवास, रोडवेज डिपो के पीछे
सरदारशहर-331403
जिला-चुरू(राज)

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