Saturday, November 23, 2013

कमांडरों के संयुक्‍त सम्‍मेलन में प्रधानमंत्री का भाषण

22-नवंबर-2013 20:27 IST
प्राणों की आहूति देने वालों को श्रद्धांजलि अर्पि‍त 
हमारी सशस्‍त्र सेनाओं के वरिष्‍ठतम नेतृत्‍व के इस सम्‍मेलन में एक बार फिर बोलते हुए मुझे बेहद खुशी हो रही हैं। हमारी सेनाओं में शामिल पुरूष और महिलाएं सुरक्षा के काफी कठिन माहौल में काम करते हैं, लेकिन उन्‍हें हमेशा आदर्श पेशेवराना अंदाज, साहस और प्रतिबद्धता के साथ चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उनका मार्गदर्शक होने के नाते आप लोगों ने हमारी सेनाओं का विश्‍वास और गौरव बढ़ाने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई है। मैं आप सभी को और आपकी सेवाओं के लिए धन्‍यवाद देना चाहता हूं। 

सबसे पहले मैं अपने देश के लिए प्राणों की आहूति देने वालों को श्रद्धांजलि अर्पि‍त करना चाहता हूं। हम खासतौर से बेहद पीड़ा और दु:ख के साथ उन सैनिकों को याद करते है जो मुम्‍बई में पनडुब्‍बी दुर्घटना में मारे गये और हमारे वो सैनिक जो अपनी सीमाओं की रक्षा करने और आतंकवाद का मुकाबला करते हुए शहीद हो गए। हम अपने उन पायलटों और वायु सैनिकों का भी स्‍मरण करते हैं जिन्‍होंने उत्‍तराखंड में लोगों की जान बचाने के लिए अपने प्राण न्‍यौछावर कर दिए, हम उनके प्रति‍ कृतज्ञ है। साथ ही हम उन अनेक सैनिकों को भी याद करते हैं जिनके वीरतापूर्ण कारनामों की सार्वजनिक रूप से चर्चा नहीं हुई, लेकिन जिन्‍हें असह्य और प्रतिकूल माहौल में जोखिम उठाना पड़ा। उन्‍होंने भी देश की सेवा की। 

मित्रों मैं नहीं चाहता कि मेरा आज का भाषण रक्षा के क्षेत्र में हमारी पिछले वर्षों की उप‍लब्धियों की व्‍याख्‍या बने। उन सभी के बारे में आप सभी लोग पहले से ही जानते है। इसके बजाय मैं अपने आस-पास के माहौल पर ध्‍यान केन्द्रित करूंगा और मैं समझता हूं कि हमें सुनिश्चित करना होगा कि हमारी सशस्‍त्र सेनाएं इससे निपटने में पूरी तरह सक्षम हों। अपने पड़ोसियों के साथ सुरक्षा की अनोखी चुनौतियों की चर्चा करने से पहले मैं कुछ सामान्‍य बिंदुओं पर प्रकाश डालना चाहता हूं। 

सबसे पहले अगर आप पिछले दशक के वैश्विक सामरिक माहौल को देखें तो आप इस बात को नजरंदाज नहीं कर सकते कि जैसे-जैसे आर्थिक पेंडुलम पश्चिम से पूर्व की तरफ बढ़ रहा है वैसे-वैसे सामरिक महत्‍व की चीजों पर भी ध्‍यान केन्द्रित हो रहा है जैसा कि हमारे पूर्व के समुद्रों में बढ़ते विवाद और इस क्षेत्र में अमरीका द्वारा उससे संबंधित ''केंद्र बिन्‍दु'' या ''पुन:संतुलन'' का उदाहरण है। यह अनिश्चितता के साथ विकास है। हम अभी तक नहीं जानते कि ये आर्थिक और सामरिक संक्रमण शांतिपूर्ण होगा अथवा नहीं, लेकिन इस चुनौती का यहां मौजूद श्रोताओं को सामना करना होगा। 

दूसरा वैश्वीकरण एक ऐसा विषय है जिसका हमें हर क्षेत्र में सामना करना होगा। लेकिन यह नई अथवा शीत युद्ध के बाद की घटना नहीं है। हमें प्‍लीनी और रोमन साम्राज्‍य को याद करने की जरूरत है और यह सच्‍चाई है कि पूर्व से सिल्‍क और मसालों का आयात करने के लिए रोम के सम्राट के हाथ खाली हो गए थे। आज वैश्वीकरण की गति इंटरनेट सहित प्रौद्योगिकी से चलती है। 

हालांकि वैश्वीकरण ने आर्थिक और व्‍यापारिक मोर्चों पर देशों और नागरिकों के बीच आपस में निर्भरता को बढ़ा दिया है, उसने सुरक्षा के क्षेत्र में कड़ी प्रतिस्‍पर्धा और प्रतिद्वंद्विता पैदा की है। इन परस्‍पर विरोधी स्‍वरों का प्रबंधन, जिसे अमरीकी राष्‍ट्रीय सुरक्षा एजेंसी द्वारा बनाई गई, वैश्विक निगरानी कार्यविधि द्वारा उजागर किया गया है, हमारी शासन नीति के लिए अनिवार्य है। निश्चित रूप से हमारा उद्देश्‍य ठोस राष्‍ट्रीय क्षमता हासिल करना होना चाहिए, अथवा शब्‍दकोष में जिसे व्‍यापक राष्‍ट्रीय ताकत के रूप में परिभाषित किया गया है। यह आर्थिक, प्रौद्योगिकीय और औद्योगिक कौशल का मिश्रण है। 

तीसरा, आजादी के बाद पहले छ: दशकों में देश को अपनी क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता की रक्षा के लिए अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ा और देश तथा उसकी सेना हर मौके पर खरी उतरी। लोग भारतीय सेना की देशभक्ति और उसके पेशेवराना अंदाज का लोहा मानते हैं, लेकिन भारतीय सेना को आगे क्‍या करना है? हम शांति के रास्‍ते के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन यदि सेना को किसी खतरे अथवा चुनौती का सामना करना पड़ता है तो वह भारतीय हितों की रक्षा करने में सक्षम होनी चाहिए। 

अब हम अपने पड़ोसियों की स्थिति पर आते हैं, इसमें कोई संदेह नहीं कि हमें लगातार चुनौतियों को सामना करना पड़ेगा। पश्चिम एशिया में जारी उथल-पुथल ने न केवल हमारी ऊर्जा सुरक्षा और जीविका तथा 70 लाख भारतीय की सुरक्षा को प्रभावित किया है बल्कि कट्टरपंथ, आतंकवाद, हथियारों के प्रसार और सांप्रदायिक विवाद के लिए संकट बन गया है जो हमारे समुद्रों को छू सकता है। एशिया प्रशांत क्षेत्र जिसके साथ हमारे संबंध हर क्षेत्र में बढ़ रहे है, समान रूप से महत्‍वपूर्ण है। 

हमारे उच्‍च रक्षा संगठनों को इन विशेष घटनाक्रमों की तरफ खासतौर से ध्‍यान देना चाहिए। साथ ही हमारी सामरिक सीमाओं में वस्‍तुओं, ऊर्जा और खनिजों के वैश्विक समुद्री व्‍यापार, विश्‍वभर में पहले प्रवासी भारतीयों के कल्‍याण और भारत की राजधानी में बढ़ते वैश्विक पदचिन्‍हों की रक्षा करने की जरूरत है। जैसे-जैसे हमारी क्षमता बढ़ती जाएगी, हमारे सामने प्राकृतिक आपदाओं अथवा विवाद और अस्थिरता के क्षेत्रों में मदद का आह्वान बढ़ता जाएगा। इन स्थितियों से कैसे निपटा जाएगा यह कार्य आपके सामने है। मैं आपके सामने अपने कुछ विचार रखना चाहता हूं। 

मैं रक्षा मंत्रालय और सशस्‍त्र सेनाओं के साथ-साथ डीआरडीओ से आग्रह करता हूं कि वे इन अनुभवों को जोड़े और हमारी सरकार की पहल वाली विविध कार्यबल की रिपोर्टों की समीक्षा करे ताकि सैनिक सामानों के उत्‍पादन में स्‍वदेशी क्षमता का उच्‍च सूचकांक हासिल किया जा सके। काफी लंबे समय से हम निजी बनाम सार्वजनिक क्षेत्र के फायदे-नुकसान पर बहस कर रहे हैं। यह अधिक उपयोगी होगा यदि हम अपने सार्वजनिक क्षेत्र, निजी उद्यमों, अनुसंधान प्रयोगशालाओं को पूरी ताकत देने के लिए औसत राष्‍ट्रीय क्षमता के संदर्भ में विचार करें ताकि उत्‍पादन, अनुसंधान और विकास के लिए सृजनात्‍मक और प्रभावी स्‍वदेशी आधार बनाए जा सके। हमें घरेलू रक्षा औद्योगिक आधार तैयार करने के लिए अनुकूल अंतर्राष्‍ट्रीय माहौल का लाभ उठाना होगा। 

हमें उच्‍च रक्षा प्रबंधन के लिए सही ढांचा स्‍थापित करने के लिए तत्‍काल और ठोस प्रगति करने तथा निर्णय लेने में उचित नागरिक-सैनिक संतुलन बनाने की जरूरत है जो हमारे जटिल सुरक्षा माहौल की मांग है। एक बार फिर मैं आप लोगों को इस बात के लिए प्रोत्‍साहित करता हूं कि इसे सर्वोच्‍च पेशेवर महत्‍व दें, अलग-अलग सेवाओं के बीच वर्तमान मतभेदों को दूर करते हुए सामंजस्‍य स्‍थापित करे और भविष्‍य के लिए एक खाका तैयार करें। मैं आपको आश्‍वासन देना चाहता हूं कि राजनीतिक नेतृत्‍व द्वारा आपकी सिफारिशों पर सावधानीपूर्वक विचार किया जाएगा। 

दोनों मुद्दे जो मैंने अभी उठाएं वे हमारे समक्ष मंडरा रहे गंभीर संकट को देखते हुए प्रासंगिक है। सैनिक उपकरणों और सेनाओं में हमारा निवेश हमारे राष्‍ट्रीय संसाधनों से मेले खाता हुआ होना चाहिए। अधिकतर पिछले दशकों के दौरान, हमें 8 प्रतिशत की दर से औसत वार्षिक वृद्धि का लाभ मिला, लेकिन पिछले दो वर्षों में विकास की गति धीमी हुई है और हमें घटती-बढ़ती विनिमय दर और व्‍यापार के क्षेत्र में अड़चनों की संभावना सहित अनिश्चित अंतर्राष्‍ट्रीय आर्थिक माहौल का सामना करना पड़ रहा है। इसमें जरा भी संदेह नहीं है कि हम अपनी वर्तमान आर्थिक मंदी से उभर जाएंगे, लेकिन हमें अपनी रक्षा प्राप्ति योजनाओं में सावधानी बरतनी होगी तथा अपनी चादर के अनुसार ही अपने पैर पसारने होंगे। हमें अपने विरोधियों की क्षमताओं को भी ध्‍यान में रखना होगा, हमें सीमित संसाधन उपलब्‍धता को ध्‍यान में रखते हुए दीर्घकालिक लाभ योजना बनानी होगी। यह एक ऐसा कार्य है जिसे प्रा‍थमिकता के आधार पर करना होगा। 

हमारी सशस्‍त्र सेना के दिल में लोग बसते है। यह हमारी सेना की विशिष्‍ट मूल्‍य व्‍यवस्‍था है जो उसके मानवीय संसाधन को सुसंगति प्रदान करता है। जिस वैश्वीकरण और लोगों की बढ़ती आकांक्षाओं का मैंने पहले जिक्र किया उसका हमारे अपने लोगों पर काफी प्रभाव पड़ा है। सेना भी इससे अछूती नहीं है, वरिष्‍ठ मार्गदर्शक होने के नाते वर्दी में अपने पुरूषों और महिलाओं के जीवन और कल्‍याण की जिम्‍मेदारी आपकी है। कंमाडर होने के नाते आपको र्इमानदारी से लेकर अलंघनीय सिद्धांतों का आत्‍मविश्‍लेषण करना होगा। उदाहरण प्रस्‍तुत करना होगा। मैं आप लोगों से आग्रह करूंगा कि उस पुरानी कहावत की तरफ गौर जिसमें किसी भी सेना के लिए मानव संसाधनों का प्रबंधन सर्वोच्‍च है। भारतीय सेना का उत्‍कृष्‍ट नाम है और आप लोगों से बेहतर कोई नहीं जानता कि किस तरह इसे चमकाया जा सकता है। 

हाल के समय में हमारे देश में नागरिक-सैनिक संबंधों की प्रकृति के बारे में चिंताएं उठाई गई है। मैं स्‍पष्‍ट तौर पर बता देना चाहता हूं कि भारत के राजनीतिक नेतृत्‍व को अपनी सेना और लोकतांत्रिक ढांचे के भीतर उसके संस्‍थागत खरेपन पर पूरा भरोसा है। हमारी सेना की अराजनीतिक प्रकृति और उसका पेशेवराना अंदाज दुनिया के लिए ईर्ष्‍या पैदा करती है और इसने भारतीय लोकतांत्रिक अनुभव विकसित किया है। हमारे लोकतंत्र और संस्‍थानों ने किसी भी मुद्दे से निपटने में अपनी क्षमता साबित की है। 

मित्रों, मैं जानता हूं कि आप मेरी इस बात से सहमत होंगे कि हमारे देश की वास्‍तविक क्षमता राष्‍ट्रीय प्रयोजन की उत्‍तम उद्देश्‍यों से मिलती है। हमें अपनी अर्थव्‍यवस्‍था को उच्‍च विकास के रास्‍ते पर ले जाना होगा। हमें अपना औद्योगिक और विनिर्माण आधार विकसित करने की जरूरत है। हमें भारत में अविष्‍कारों की ताकत बढ़ानी होगी ताकि हम अपने सामने खड़ी चुनौतियों के नए समाधान ढूंढ सके। हमें अपने आर्थिक विकास को सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से अधिक समग्र, क्षेत्रीय दृष्टि से संतुलित और पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ बनाना होगा। इन सबसे ऊपर हमें अपने मूल्‍यों को मजबूत बनाने की जरूरत है जो हमें लोकतंत्र, कानून के शासन व्‍यक्तिगत आजादी, सामाजिक और धार्मिक सौहार्द और वैश्विक शांति की परिभाषा देते हैं। 

मैं जानता हूं कि हमारी सशस्‍त्र सेनाएं इसी सिद्धांत के अनुरूप आचरण कर रही हैं और शेष दुनिया के लिए उदाहरण प्रस्‍तुत किया है। उनके पास जर्बदस्‍त ताकत है लेकिन उन्‍होंने परिपक्‍वता और जिम्‍मेदारी के साथ इसका उपयोग किया है। वे कठिन से कठिन मिशन के लिए तैयार है, लेकिन शांति के लिए प्रतिबद्ध हैं। उन्‍होंने देश की रक्षा के लिए तूफानों, कड़ाके की ठंड और तपती गर्मी का बहादूरी से मुकाबला किया है, इसलिए भारत अपने सपनों को हकीकत में बदल सकता है। आने वाले हफ्तों और महीनों में हमारी सुरक्षा चुनौतियां कठिन बनी रहेंगी लेकिन हमारा संकल्‍प अडिग रहेगा। मुझे विश्‍वास है कि हमारी सशस्‍त्र सेनाएं झंडे और देश के प्रति अपनी सामूहिक जिम्‍मेदारी उत्‍साह और जोश से निभाएंगी, जो उनका पर्याय बन चुका है। मैं आपके प्रयासों में आप सभी की सफलता की कामना करता हूं। 

धन्‍यवाद, जय हिन्‍द 
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वीके/केपी/एलडी-7101

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