Thursday, September 19, 2013

जसपाल बावा का रंग: नये ज्ञान के संग

हर चीज 'अल्लाद्दीन' की नहीं होती
जसपाल बावा जब पंजाब में थे और संघर्ष के कठोरतम दौर में से गुजर रहे थे उन दिनों में भी उन्होंने न हंसना छोड़ा और न ही दोस्तों के साथ मिलना जुलना---केवल मिलना जुलना ही नहीं---उनके काम आना भी। जानेमाने स्वर्गीय कलमकार अजीत सिंह सिक्का से मेरी भेंट बावा जी के यहाँ ही हुई थी।  विदेश की धरती पर जाकर भी उन्होंने अपनी खूबियाँ नहीं छोड़ी। हाँ वहां की अच्छी बातों को भी समाहित कर लिया। हाल ही में जब मेरी धर्म पत्नी का देहांत हुआ तो मुझे सब से अधिक कमी बावा जी की महसूस हुई वही मेरे दुःख को समझ सकते थे और उसे दूर करने का कोई तरीका भी सुझा सकते थे। गौरतलब है कि बावा जी ओशो के रंग में इतने रंगे की खुद भी बहुत रहस्यवादी हो गए। उनके इस करिश्मे का अहसास अचानक उस समय होता जब एक दम महसूस होने लगता की कहाँ गया वोह गम जिसने हमें कुछ ही पल पूर्व घेर रखा था। उनकी बहुत सी खूबियाँ हैं जिनकी चर्चा किसी अलग पोस्ट में होगी फिलहाल आप पढिये उनकी एक नई पोस्ट--   
Jaspal Bawa
"एक गरीब लड़के को एक चिराग मिला उसने उसे जोर से रगड़ा..?"
"ध... ड़ा... म...!"
"जोर का धमाका हुआ और वो गरीब लड़का मर गया और साथ में 40 और को ले गया..!"

"जमाना बदल गया है, हर चीज 'अल्लाद्दीन' की नहीं होती, कुछ चीजें 'मुजाहिद्दीन' की भी होती है..!"

"लावारिस पड़ी वस्तुओँ को लालच बस न छुएँ, ये बम हो सकते हैँ..!"

No comments: