Friday, August 30, 2013

INDIA: खाद्य सुरक्षा कानून: आधी थाली भरी या आधी थाली खाली

Fri, Aug 30, 2013 at 7:01 AM
An Article by the Asian Human Rights Commission                           *--प्रशान्त कुमार दूबे
तमाम अटकलों को दरकिनार करते हुए अंततः खाद्य सुरक्षा बिल लोकसभा में पास हो ही गया | खाद्य सुरक्षा को कानूनी अधिकार बनाने की दिशा में एक कदम और आगे की ओर बढ़ा | विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने सरकार को इस बिल को लाने के लिए बधाई देते हुए कहा कि यह हमारी मजबूरी है कि हमें इस कमजोर, आधे-अधूरे बिल का समर्थन करना पड़ रहा है | सरकार ने हमारे सुझावों को तवज्जो ही नहीं दी है | ज्ञात हो कि इस महत्त्वपूर्ण बिल के सम्बन्ध में 318 प्रस्ताव आये और जिसमें से सरकार के भी 11 प्रस्ताव सम्मिलित थे | सरकार के सभी प्रस्तावों को छोड़कर बाकी सब प्रस्ताव एक-एक करके गिर गए | एक और तो विपक्ष यह कहने से बाज नहीं आया कि सरकार ने चुनावी दांव खेला है तो वहीँ सरकार ने कहा कि हमने तो केवल अपना चुनावी वायदा पूरा किया है | हमने तो भूखे लोगों के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाई |
यह कानून इस दौर में आया है जबकि दुनिया की 27 प्रतिशत कुपोषित जनता भारत में है | 42 करोड़ लोग रोजाना भूखे पेट सोते हैं| 47 फीसदी बच्चे कुपोषित हैं| 5 वर्ष तक की उम्र के 70 फीसदी बच्चे खून की कमी से ग्रसित हैं| इस विपरीत दौर में जहाँ 1972 में प्रति व्यक्ति अनाज उपभोग 15.3 किलोग्राम था, जो कि अब घटकर 12.2 किलोग्राम प्रतिमाह हो गई है| देश में 415 लाख टन अनाज सुरक्षित रखे जाने की क्षमता है जबकि 190 लाख टन अनाज पन्नियों के नीचे पड़ा है| अतः यह तो बहुत जरुरी था कि यह कानून आये और इसीलिये किसी भी राजनैतिक दल ने इस बिल के लिए औपचारिक रूप से इसका विरोध नहीं किया था| लेकिन सरकार को इस पर आ रही रुकावटों के चलते अध्यादेश लाना पडा था | हालाँकि इस बिल को लेकर अभी भी कई पेंच हैं, जिन पर कोई भी बात नहीं हुई है |
इस बिल की खूबी यह है कि इसमें राशन व्यवस्था का विस्तार तो हुआ है| इसमें सभी तबकों की गर्भवती महिलाओं को 6 माह तक प्रति माह 1000 रूपये के मातृत्व लाभ की बात कही गई है| इसमें से बच्चों के निवाले के सन्दर्भ में ठेकेदारों को भी दूर रखा गया है| गरमा पके भोजन पर बात की है | खाद्य सुरक्षा योजनाओं में अगले 3 साल तक नकद हस्तान्तरण पर भी रोक लगी है | राज्यों को इसके लिए आवश्यक प्रावधान के लिए अब 6 माह की अपेक्षा अब 1 साल का समय दिया है | पहले से ही बेहतर प्रदर्शन करने वाले राज्यों का कोटा नहीं काटा जाएगा | जिन मोटे अनाजों के रकबे में पिछले छह दशकों में पैंतालीस फीसद की कमी दर्ज की गई थी, उन मोटे अनाजों को भी इसमें शामिल किया गया है, जो कि एक बेहतर कदम है | इससे मोटे अनाजों को उगाने में किसान भी रूचि दिखाएँगे |
पर एसा नहीं कि इस बिल में सभी कुछ शामिल है | इसमें से सार्वभौमिकीकरण का मुद्दा गायब है, अभी भी यह शहरी क्षेत्र की 50 फीसदी और ग्रामीण क्षेत्र की 75 फीसदी जनता को ही कवर करता है| इसके साथ-साथ यह भी तय नहीं है कि किसे इसमें शामिल किया गया है और किसे नहीं| सरकार को चाहिए था कि वह इसमें या तो सभी को शामिल करती नहीं तो यह स्पष्ट करती कि किन समूहों को इसमें से बाहर किया जा रहा है | यहाँ अभी तक दुविधा की स्थिति बनी हुई है | इसी सरकार के कार्यकाल में प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने हंगामा रिपोर्ट जारी करते हुए कुपोषण को राष्ट्रीय शर्म बताया था | पर अफ़सोस कि इसी सरकार ने लोगों को कुपोषण से जूझने के लिए आवश्यक दालों और तेल का प्रावधान इसमें नहीं किया है| ज्ञात हो कि 318 प्रस्तावों में से सबसे ज्यादा इसी विषय पर प्रस्ताव आये थे | इंडियन कौंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च के प्रावधानों के अनुसार प्रति माह प्रति व्यक्ति 14 किलो की न्यूनतम जरुरत को किनारे करते हुए केवल 5 किलो का प्रावधान किया गया है | यह कानून केवल वितरण की बात करता है, यानी उत्पादन और भंडारण को लेकर विस्तृत बात इसमें नहीं है | इसके अलावा बेघर व्यक्तियों के भोजन के लिए भी कोई भी प्रावधान नहीं किया गया है|
भोजन का अधिकार अभियान की कविता श्रीवास्तव ने इस बिल का स्वागत करते हुए कहा कि हमें ख़ुशी है कि आज संसद ने रोटी के सवाल को महत्वपूर्ण समझा है| संसद ने महिलाओं की खाद्य सुरक्षा को केंद्र में रखकर बात की | संसद ने बच्चों की भूख और कुपोषण को भी तरजीह दी | कविता कहती हैं कि हमें लगा कि देश के आम आदमी की भूख अब संसद के लिए मायने रखने लगी है | उन्होंने कहा कि निश्चित रूप से इस बिल में अभी बहुत ही खामियां हैं लेकिन सरकार एक कदम आगे तो आई है | उन्होंने कहा कि भोजन के अधिकार को कानूनी मान्यता देने के लिए ही 2001 से माननीय उच्चतम न्यायालय में रिट पिटीशन(196/2001) के जरिये मांग की थी, लेकिन सरकार ने इस कानून को बनाने में 12 साल लगा दिए | उन्होंने कहा कि दुःख इस बात का भी है कि छत्तीसगढ़ में एक सशक्त कानून बन जाने के बावजूद भी सरकार ने उससे सीख नहीं ली | छतीसगढ़ में आज राशन व्यवस्था का लीकेज 10 फीसदी से भी कम रह गया है जबकि दूसरी ओर देश भर में यह लीकेज 49 फीसदी तक है |
विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा ने सदन में कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार ने खाद्य सुरक्षा कानून बनाकर एक बेहतर उदाहरण पेश किया है, लेकिन सरकार ने उससे कोई सीख नहीं ली !!! भाजपा ने बार-बार इस मॉडल की बात करके यह बताने की कोशिश की, कि भाजपा ने इस कानून के सन्दर्भ में अगुआई की है| भाजपा ने इस बिल के सार्वभौमिकीकरण के सम्बन्ध में प्रस्ताव भी दिया, जो कि खारिज हो गया | लेकिन इस बात का उसके पास कोई जवाब नहीं था कि यदि छत्तीसगढ़ का बिल इतना ही बेहतर है तो फिर भाजपा शासित अन्य राज्य सरकारों (गुजरात और मध्यप्रदेश) ने यह क्यों नहीं अपनाया !! इसके अलावा छत्तीसगढ़ ने भी अभी तक खाद्य सुरक्षा कानून का सार्वभौमिकीकरण क्यों नहीं किया ?
भोजन का अधिकार अभियान यह भी कहता है कि सरकार यह बात बार-बार प्रचारित कर रही है कि इसमें लगभग 1.25 लाख करोड़ की जरुरत होगी, जो कि एक बड़ी रकम है | जबकि सरकार वर्तमान में ही खाद्य सब्सिडी पर 90 करोड़ के आसपास खर्च कर रही है, इसलिए अतिरिक्त राशि का बिगुल नहीं बजाना नहीं चाहिए क्यूंकि केवल 35,000 करोड ही अतिरिक्त खर्च करने होंगे| जबकि यही सरकार बड़ी-बड़ी कंपनियों को हर साल करोड़ों रुपयों की छूट करों के रूप में दे रही है| तो फिर आम जनों के प्रति सरकार की संवैधानिक जवाबदेही पर इतनी हाय तौबा नहीं मचनी चाहिए|
मुलायम सिंह ने सदन में चर्चा के दौरान यह भी कहा कि सरकार को पहले राज्यों के मुख्यमंत्रियों से बात करनी थी, लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया | लगभग सभी विपक्षी दलों ने यही कहा | यहाँ सवाल यह है कि जब यह बिल संसद की स्टेंडिंग कमेटी के पास था, और जिस कमेटी में लगभग हर बड़े दल का प्रतिनिधि था, तब इन दलों ने आम आदमी के प्रति अपनी प्रतिबध्दता क्यों नहीं प्रदर्शित की !! जबकि वहां पर पूरा मौक़ा था | राज्यों पर बोझ पढ़ना एक जरुरी विषय हो सकता है, और शायद आगे चलकर इस पर और स्पष्टता आएगी | एक महत्त्वपूर्ण बात यह भी है कि किसानों को आश्वासन दिया कि खाद्य सुरक्षा कानून लागू होने के बाद भी उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) मिलना जारी रहेगा। मंडियों में जो भी अनाज आएगा, उसकी खरीद की जाएगी। वैसे तो यह विधेयक ज्यादा से ज्यादा वितरण की बात करता है, यह कहीं भी उत्पादन और भंडारण की बात नहीं करता है | इसके पीछे सूचना के अधिकार से मिली यह जानकारी महत्वपूर्ण है कि जबकि पिछले तीन सालों में 17,546 टन अनाज केवल सरकारी खाद्य भंडारों में ही सड़ गया है | हालांकि केन्द्रीय मंत्री थामस ने कहा कि भंडारण क्षमता 5.50 करोड़ टन से बढ़कर 7.5 करोड टन हो गई जो 2014-15 तक 8.5 करोड़ टन हो जाएगी।
यह कानून सरकार के लिए एक गेमचेंजर कानून हो सकता था लेकिन सरकार ने यह मौक़ा गंवा दिया है | यह बिल शहरी क्षेत्र की आधी और ग्रामीण क्षेत्र की एक चौथाई आबादी को कोई भी खाद्य सुरक्षा प्रदान नहीं करता है | बेघरों के सम्बन्ध में भी कोई भी प्रावधान न कर सरकार ने गांधी के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचने के सपने को भी चकनाचूर कर दिया है | आज राष्ट्रपति ने इस विधेयक पर हस्ताक्षर कर दिए हैं | अब देखना यह होगा कि राज्यसभा में इस बिल का पहुँचना केवल रस्मअदायगी होगी या फिर वहां पर भी कोई बहस होगी | आज सरकार ने थाली भरी होने का सुनहरा ख्वाब तो दिखा दिया है लेकिन दरसल में थाली तो आधी ही भरी है, आधी थाली तो अभी भी खाली ही है | खुशी है तो बस इस बात की कि संसद ने आम आदमी की भूख को तवज्जो देकर उस पर सार्थक बहस की है|--*प्रशांत कुमार दुबे
*About the Author: Mr. Prashant Kumar Dubey is a Rights Activist working with Vikas Samvad, AHRC's partner organisation in Bophal, Madhya Pradesh. He can be contacted at prashantd1977@gmail.com

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