Monday, March 25, 2013

मऊ फिल्म उत्सव: सफ़र का पांचवां पड़ाव

Sun, Mar 24, 2013 at 11:04 PM
चले चलो कि वोह मंजिल अभी नहीं आई---

एक वक्त था जब नया दौर, मदर इण्डिया, जागते रहो, मजदूर, नमक हराम जैसी फिल्मों ने एक नी चेतना के प्रचार प्रसार में अपना योगदान दिया था। यह सिलसिला अधिक समय तक नहीं चला था की जन विरोधी शक्तियों ने सिनेमा को अपना हथियार बना कर जनता पर वार किया। इसके परिणाम बहुत घातक भी निकले पर जल्द ही जन शक्तियां सम्भल गई। सफदर हाशमी की शहादत ने इसमें एक नी जान डाली। पंजाब में भाई मन्ना सिंह के नाम से जाने जाते गुरशरण सिंह जी ने मोर्चा सम्भाला---जो उनका देहांत होने के बाद भी जोर शोर से जारी है। अब एक अच्छी खबर आई है अयोध्या से जहाँ मऊ फिल्म उत्सव:जरी है। जन सिनेमा के सफ़र का पांचवां पड़ाव जारी है। आज इस आयोजन का अंतिम दिन है।

गौरतलब है कि अयोध्या फिल सोसायटी के बाद मऊ फिल्म सोसायटी का गठन 2008 के एक सम्मेलन के दौरान हुई बातचीत के चलते हुआ, जब साथी अरविन्द ने इस दिशा में सक्रिय कदम उठाते हुए 23 मार्च 2009 को अन्य साथियों के साथ मिलकर अपने गांव साहूपुर में पहला मऊ फिल्म उत्सव आयोजित किया। इस तरीके से मऊ फिल्म उत्सव की शुरुआत हुई। यह आयोजन शाम को शुरू होकर देर रात तक चलता है जिसमें सार्थक फिल्मों के जरिये आम लोगों से संवाद कायम करने की कोशिश की जाती है। पहले फिल्म उत्सव के दौरान आनंद पटवर्धन की फिल्म 'जंग और अमन' के प्रदर्शन के दौरान साझी विरासत के दुश्मनों ने पत्थरबाज़ी की थी जिससे हमें और ताकत मिली व अपने अभियान में हमारा विश्वास मज़बूत होता गया।
मऊ का अपनी साझी विरासत का शानदार इतिहास रहा है, लेकिन साम्प्ररदायिक ताकतें यहां की आबोहवा में मज़हबी ज़हर घोलने की साजिश में लगातार लगी रहती हैं। इन तमाम अवरोधों के बावजूद गांवों से शुरू हुआ यह सफर लगातार आगे बढ़ता जा रहा है और आज यह अपने पांचवें साल में प्रवेश कर गया है। गांव में उत्सव की पुरानी परम्परा को सहेजते हुए इस बार मऊ जिले के देवकली, पतिला और सलाहाबाद में तीन दिवसीय आयोजन इतिहास का गवाह बनने जा रहा है, जहां 'शहादत से शहादत तक' नामक आयोजन 23 से 25 मार्च 2013 के बीच सफलता पूर्वक जारी है। यह तीन दिवसीय आयोजन शहीद-ए-आज़म भगत सिंह के शहादत दिवस से गणेश शंकर विद्यार्थी के शहादत दिवस तक हो रहा है। इस बार का फिल्म उत्सव समर्पित है इरोम शर्मिला को जो आज के इस लोकतन्त्र पर एक बहुत बढ़ा सवाल बन उभरी है। अपनी महानता के ढोल पीटने वालों की पोल खोलती इरोम शर्मिला। सत्ता और राजनीती की हकीकत को बेनकाब करती इरोम शर्मिला के अथक संघर्ष को है। 

मऊ फिल्म उत्सव में शामिल होने के लिए देश भर से हमारे पास हर रोज़ फोन आ रहे हैं जिससे हमारा हौसला बढ़ा है। हम आप सभी को खुले दिल से आमंत्रित करते हैं। बहुत से लोग समय पर पता न लग पाने के कारण इसमें शामिल नहीं हो पाए। पर इन सभी ने अपनी प्रसन्नता भी व्यक्त की और शुभ कामनाएं भी भेजीं। 

इस ढांचे को और बेहतर बनाने की ज़रूरत है। अपने ऊर्जावान और उत्साही साथियों की मदद से यह कारवां अपने शुरुआती तेवर के साथ दिन-ब-दिन आगे बढ़ता जा रहा है। इस सफ़र से जुड़ने के लिए हमें और नये साथियों की ज़रूरत है। उनका रास्ता खुला हुआ है, वे जब और जैसे आएं, हम उनका तहेदिल से स्वागत करते हैं। उम्मीद है की इस बार का आयोजन इस जन सिनेमा के काफिले को और विशाल करेगा। आयी हम सभी मिलजुल कर चलें। याद रखें और लगातार सबको याद दिलाते जायें---
चले चलो कि वोह मंजिल अभी नहीं आई----


प्रदर्शित फिल्में
Tales from the Margins/Kavita Joshi/23 min
 AFSPA,1958/Haobam Paban Kumar/76 min
 Inqilab/Gauhar Raza/40 min
 Jai Bim Comrade/Anand Patwardhan/199 min
 Children of Heaven/Majid Majidi/ 89 min
 Gaon Chodab Nahin/KP Sasi/5:18 sec

Garm Hava/ MS Sathyu/146 min
 Bawandar/Jag Mundhra/125 min
 India Untouched/Stalin K/108 min

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