Thursday, January 31, 2013

देश सर्वोपरि है//राजीव गुप्ता

Wed, Jan 30, 2013 at 11:44 AM
ऐसी विषम परिस्थिति में हिन्दू-आतंकवाद का नाम क्यों ?
देश सर्वोपरि है. विश्व - पटल पर भारत का परचम लहराने वाले स्वामी विवेकानन्द का 150वाँ जन्मदिन, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और रामकृष्ण मिशन के साथ-साथ भारत सरकार भी मना रही है. परन्तु जिस तरह जयपुर के कांग्रेस-चिन्तन शिविर से भारत के गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने  "हिन्दू-आतंकवाद" नाम का चुनावी शिगूफा  छेड़ा, सारा देश सकते में आ गया. गृहमंत्री के इस दुर्भाग्यपूर्ण बयान से देश स्तब्ध है.  मात्र सत्ता पाने के लिए विश्व समुदाय के सामने पूरे देश को कलंकित करना कहां तक उचित है ? आतंकवाद को भगवे रंग में रंगकर पहले पी. चिदम्बरम ने भगवा-आतंकवाद का नाम लेकर संघ पर प्रहार  किया, जब इतने से भी इन सत्ता-लोलुप नेताओं का पेट नहीं भरा तो आतंकवाद का वर्गीकरण कर पुन: संघ के साथ -साथ करोड़ो हिन्दुओ पर प्रहार कर दिया.  हमारा आपस मे वैचारिक मतभेद हो सकता है. वैचारिक मतभेद ही लोकतंत्र को और अधिक मजबूत करता है.  मात्र इन वैचारिक मतभेदों को कारण गृहमंत्री को देश की छवि धूमिल करना कहां तक उचित है ? गृह मंत्री के ऐसे बयान से क्या यह मान लिया  की स्वामी विवेकानंद की 150 जयन्ती मनाना सरकारी  ढोंग से अधिक कुछ नहीं है ? क्योंकि गृहमंत्री के बयान से देश की छवि को गहरा धक्का लगा है.

अब पाकिस्तान के आतंकी गृह मंत्री के बयान से प्रसन्न होकर विश्व समुदाय से भारत को "आतंकवादी देश" घोषित करने की मांग कर रहे है.  अभी तक भारत ने पाकिस्तान को 'आतंकवाद' के विषय पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अलग - थलग किया हुआ था. परन्तु अब पाकिस्तान विश्व समुदाय के समक्ष यह  बात पूरे जोर - शोर से उठायेगा कि  भारत में जितने भी आतंकवादी हमले हुए है, उसे भारत ने खुद करवाएँ  है, इसकी पुष्टि खुद वहाँ के गृहमंत्री ने की है. पाकिस्तान की करतूतो की वजह से सीमा पर बढ़ा तनाव अभी कम भी नहीं हुआ है, ऐसी विषम परिस्थिति में शिंदे ने हिन्दू - आतंकवाद का नाम क्यों लिया ?  कल तक कांग्रेस ने सुशील कुमार शिंदे के इस बयान को उनके मुंह से गलती से निकलने  की बात कह थी रही थी, परन्तु कांग्रेस के नेता, भारत के विदेश मंत्री जैसे सरीखे लोग तथाकथित "तथ्यों के आधार" पर गृहमंत्री का बचाव करने में कोइ कसर नहीं छोड़ रहे है. अगर गृहमंत्री के तथ्य सही है,  तो उन्हें  दोषियो पर  कार्यवाही करने से रोका किसने है ? सुशील कुमार शिंदे को यह ध्यान रखना चाहिए कि वे कांग्रेस पार्टी के नहीं 'देश' के गृहमंत्री है.

कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्त्ता अपना विवेक खो बैठे हैं, परिणामतः बार - बार एक देशभक्त संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ  के ऊपर अपने शब्दों के माध्यम से कुठाराघात करते रहते है .इनकी आखों पर राजनीति की ऐसी परत चढी है कि समाज को बांटने के लिए संघ को कभी "भगवा आतंकवाद" से संबोधित करते है तो कभी "फासिस्ट-संगठन" की संज्ञा देते हैं .कांग्रेस के नेता हिटलर के प्रचार मंत्री गोयबेल्स के दोनों सिद्धांतो पर चलते है .मसलन एक – किसी भी झूठ को सौ बार बोलने से वह सच हो जाता है. दो – यदि झूठ ही बोलना है, तो सौ गुना बड़ा बोलो .इससे सबको लगेगा कि बात भले ही पूरी सच न हो; पर कुछ है जरूर . इसी सिद्धांतों पर चलते हुए कांग्रेसी हर उस व्यक्ति की आड़ में संघ को बदनाम करने कोशिश करते है, जो देशहित की बात करता है.

इसकी आड़ में वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को लपेटने के चक्कर में हैं, जिसकी देशभक्ति तथा सेवा भावना पर विरोधी भी संदेह नहीं करते .भारत में स्वाधीनता के बाद भी अंग्रेजी कानून और उसकी मानसिकता बदस्तूर जारी है . इसीलिए कांग्रेसी नेता आतंकवाद को मजहबों में बांटकर इस्लामी, ईसाई आतंकवाद के सामने ‘भगवा आतंक’ का शिगूफा कांग्रेसी नेता छेड़ कर देश की जनता को भ्रमित करने नाकाम कोशिश करते है .

जो सभ्यता पूरे विश्व के कल्याण का उदघोष करती हो और उस सभ्यता का जोरदार समर्थन करने वाले लोगों को बदनाम करने की साजिश वर्तमान सरकार की नियत को दर्शाता है . भारतीय चिंतन में ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ की भावना और भोजन से पूर्व जीव-जंतुओं के लिए भी अंश निकालने का प्रावधान है. ‘अतिथि देवो भव’ का सूत्र तो अब शासन ने भी अपना लिया है.

खुद कमाओ खुद खाओ यह प्रकृति है , दूसरा कमाए तुम छीन कर खाओ यह विकृति है और खुद कमाओ दूसरे को खिलाओ यह भारतीय संस्कृति है .परन्तु तथाकथित वैश्वीकरण अर्थात ग्लोब्लाईजेशन के इस दौर में अपने को अधिक आधुनिक कहलाने की होड़ के चक्कर में व्यक्ति जब अपनी  पहचान,  अपने राष्ट्रीय स्वाभिमान, अपने मूल्यों तथा  अपनी संस्कृति से समझौता करने को आतुर हो तो ऐसे विकट समय में अपने देश की ध्वजा-पताका थामे अगर कोई भारत में भारतीयता की बात करता हो तो उसे बदनाम करने के लए तरह - तरह के हथकंडे अपनाये जाते है .क्या स्वतंत्र भारत में भारतीयता की बात करना गुनाह है ?

आज भारत अनेक आतंरिक कलहों से जूझ रहा है .देश में कही नक्सलवाद , आतंकवाद अपने चरम पर है तो असम समेत अनेक राज्यो मे साम्प्रदायिक दंगे हो रहे है. बंग्लादेशी घुसपैठ सबको विदित ही है .कृषि - प्रधान कहलाने वाले देश में  कृषक आत्महत्या को मजबूर हो रहा है . राजनैतिक पार्टियाँ बस अपने स्वार्थ-पूर्ति में ही लगी रहती है कोई पार्टी जाति के नाम पर वोट मांगती है तो कोई किसी विशेष समुदाय को लाभ पहुचाने के लिए उन्हें कोटे के लोटे से अफीम चटाने का काम करती है . राजनेताओं पर राजनीति का ऐसा खुमार चढ़ा है कि वे अपनी सस्ती राजनीति चमकाने के चक्कर में देश की अखंडता के साथ खिलवाड़ करने से भी बाज नहीं आते . जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी दिल्ली में खुले आम देश की अखंडता को चुनौती देकर चले जाते है और किसी के कानो पर जूं तक नहीं रेंगती .  आज भ्रष्टाचार का हर तरफ बोलबाला है, परन्तु बावजूद इसके, सरकार को इस समस्या से ज्यादा चिंता इस बात की है, कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले के पीछे कही संघ तो नहीं है . क्या संघ के लोग इस देश के नागरिक नहीं है ? क्या संघ के लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज नहीं उठा सकते ? संघ अछूत  है क्या ? किसी प्रसिद्ध चिन्तक ने कहा है  कि जो कौमें अपने पूर्वजों को भुला देती है, वो ज्यादा दिन तक नहीं चलती है .
-राजीव गुप्ता                                              देश सर्वोपरि है//राजीव गुप्ता

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