Tuesday, December 25, 2012

भक्ति में शक्ति के आधार पर आगे बढ़ रहा गौरव सग्गी

अभिनय और गायन में फिर लुधियाना की मौजूदगी का अहसास
पंजाबी फिल्मों की बात चले तो जो नाम और चेहरे एकदम जहन में आते है उनमें से एक चेहरा है सरदार भाग सिंह का। चंडीगढ़ के बस स्टैंड से बाहर निकलते ही सडक पार करके उनके घर में जाना किसी वक्त रोज़ की बात हुआ करती थी। वक्त की गर्दिश में फिर यह सिलसिला न चाहते हुए ही लगातार कम होता चला गया। यहाँ रोज़ी रोटी के फ़िक्र में ऐसे सिलसिले अक्सर कम हो जाते हैं। पर उनकी जो बातें अब तक जहन में हैं उनमें से एक है सोमवार। वह सोमवार को उपवास रखते थे। भगवान् शिव में उनकी गहरी आस्था थी। शिव का नटराज रूप उनके ड्राईंग रूम में भी सजा होता। कभी मूड होने पर वह भगवान् शिव और कला की विस्तृत चर्चा भी करते। 
Photo Courtesy:Sara Tariq
इसी तरह गायन और अभिनय के क्षेत्र में अपना लोहा मनवाने वाली सुलक्षना पंडित भी बहुत अध्यात्मिक थी।सर्दी हो या ओले बरस रहे हों हर रोज़ सुबह पूरे केशों सहित स्नान करना और फिर पूजा पाठ में काफी समय गुज़ारना उनकी दिनचर्या में शामिल था। उनकी आवाज़ में भी जादू सा था और अभिनय में भी। बहुत सी लोकप्रिय फिल्मों में यादगारी भूमिका निभा पाना और फिर फिल्म फेयर एवार्ड भी हासिल कर लेना कोई आसान बात नहीं थी। हालाँकि उनके सामने चुनौती भी सख्त थी और प्रतियोगिता भी। 
दर्शकों के मन में हनुमान जी की छवि बनने के बाद दारा सिंह जी भी धर्म कर्म में बहुत रुचि लेने लगे। शायद यही कारण है कि दर्शक उनमें हनुमान जी को ही देखने लगे। पहले पहले मुझे लगता था की शायद इस तरह के सात्विक किस्म के लोग तामसिक प्रवृतियों से भरी फ़िल्मी दुनिया में सफल नहीं हो सकेंगे। पर इन सबकी सफलता देख कर दुनिया के साथ साथ मैं खुद भी हैरान रह गया। पंजाबी फ़िल्मी दुनिया के महारथी भाग सिंह ने किस तरह अपनी बेटी बरखा को पत्रकारिता की बारीकियों से अवगत करा कर एक कुआलिफाईड पत्रकार बनाया। अभिनय में नई जान डालने 
पठानकोट में गौरव सग्गी के  
भक्ति रस में झूमते भक्त 
वाली अपनी धर्मपत्नी कमला भाग सिंह के साथ किस तरह कदम दर कदम मिला कर कठिन से कठिन रास्तों पर चल कर सफलता की ऊंचाइयों को छुआ यह किसी करामत से कम नहीं। मुझे उनके परिवार के साथ इतय एक एक पल बिना किसी कोशिश के अब तक याद है। भाग सिंह जी का गोरा   रंग और मेहंदी रंगी भूरी दाड़ी कुल मिलकर उनकी शख्सियत बहुत ही आकर्षक लगती रिटायर्मेंट के बाद इस तरह की  सहेज पान तभी संभव होता है जब दिल और दिमाग के ख्याल भी बहुत खूबसूरत हों। ज़िन्दगी के सभी रंगों को उन्हों ने मुस्करा कर समझा। हर मुश्किल को उन्होंने हर बार सुस्वागतम कहा। एक आम इंसान की तरह ज़िंदगी जीते जीते वह अचानक ही अपनी सहजता के कारण खास हो जाते। मुझे याद है एक बार एक फ़िल्मी मेले के आयोजन को लेकर कुछ पत्रकार दोस्तों ने काफी कुछ विरोध में लिखा पर जब वे भाग सिंह जी के सम्पर्क में आये तो उनका नजरिया पूरी तरह बदल गया। वे समझ गए कि मामले को देखना अपनी अपनी सोच पर भी निर्भर करता है। जादू केवल जादूगर की छड़ी में नहीं शब्दों में भी होता है। बाद में यह विरोध दोस्ती में बदल गया। वे पत्रकार दोस्त दिल्ली से उन्हें मिलने विशेष तौर पर चंडीगढ़ आते।
लुधियाना का गौरव सग्गी 
इसी तरह दारा सिंह जी ने भी धमकियों और चुनौतियों को बहुत ही सहजता से सवीकार करके ज़िन्दगी जीने के नए अदाज़ सिखाये। चंडीगढ़ में दारा स्टूडियो की स्थापना का काम आसान नहीं था। मुझे पता चला कि उन्हें उतनी जगह नहीं मिली जितनी वह चाहते थे। किसी सनसनीखेज़ खबर की चाह में मैंने दारा जी से इसी मुद्दे पर सवाल कर दिया। दारा जी मुझे देखकर मुस्कराए और बहुत ही सहजता से बोले अगर सरकार यह जगह भी न देती तो हम क्या कर लेते? दारा जी जैसे महान लोगों ने जिंदगी को जो सलीके और सबक सिखाये उनकी अहमियत वक्त के साथ साथ लगातार बढती रहेगी। उनके पास बैठ कर, उनसे बातें करके एक नई ऊर्जा का अहसास होता था।
आज अचानक यह सब कुछ मुझे याद आ रहा है एक नए युवा चेहरे को देख कर। लुधियाना का गौरव सग्गी भी फ़िल्मी दुनिया को समर्पित है लेकिन पूरी तरह सात्विक रहते हुए। तकरीबन तकरीबन हर रोज़ उपवास, हर रोज़ पूजा पाठ, हर रात्रि मेडिटेशन। सोने में चाहे आधी रात हो जाये लेकिनउठना वही रात को दो बजे और ठंडे पानी से नहा कर रम जाना पूजा पाठ में। मेडिटेशन, रियाज़ या फिर शूटिंग, रिकार्डिंग या कोई और परफोर्मेंस बस यही है गौरव की दिनचर्या। मैंने कभी गौरव को आम लडकों की तरह इधर उधर आलतू फालतू बातों में नहीं देखा। लुधियाना से मुम्बई और मुम्बई से विदेश तक यही है उसका लाइफ स्टाइल।
कहते हैं धरती गोल भी है बहुत छोटी भी। बस इसी सिद्धांत पर एक बार हमारी मुलाकात पठानकोट में हुई। सुबह मूंह अँधेरे से लेकर देर शाम तक हम एक साथ रहे। यह सब किसी प्रोजेक्ट को लेकर था और इसके बारे में वहां शायद किसी को खबर भी नहीं थी लेकिन हमें वहां बिना किसी पूर्व कार्यक्रम के जाना पड़ा एक ही आयोजन में। हम सब ने जलपान किया लेकिन गौरव का उपवास था। खाना तो दूर जल या चाये की एक बूँद भी नहीं। अचानक ही मेरे सामने किसी आयोजक ने मंच पर गौरव का नाम अनाऊंस करवा दिया और उसके बाद कमरे में आ कर कहा कि अब आप मंच पर आ जाइये अगली बारी आपकी है। सुन कर मुझे चिंता हुई। मुझे मालूम था कि गौरव ने सुबह से कुछ नहीं खाया। 
चाये या पानी का एक घूँट भी नहीं। मुझे लगा कि शायद यह लड़का कहीं मंच पर गिर न पड़े। इसके साथ ही न वहां गौरव की टीम थी न ह साज़ और संगीत का पर्याप्त प्रबंध। पर गौरव के चेहरे पर न चिंता, न डर, न ही घबराहट। आशंकित मन के साथ कुछ ही पलों के बाद मैं भी पीछे पीछे बाहर बने मंच पर चला गया।वहां मेरे देखते ही देखते गौरव ने भगवान् का नाम लेकर अपना गायन शुरू कर दिया। कुछ ही पलों में वहां मौजूद सभी लोग पहले तो मस्त हुए फिर उठ कर गौरव के साथ साथ झूमने लगे।मुझे वह दिन अब भी याद आता है तो मुझे फिर फिर हैरानी होने लगती है। सुबह से लेकर रात तक मैंने गौरव पर से आँख नहीं हटाई तां कि वह छुप कर कहीं कुछ खा तो नहीं रहा पर सचमुच उसने सारा दिन कुछ नहीं खाया-पीया। मुझे लगता है कि इस के बावजूद इतनी अच्छी परफारमेंस किसी दैवी शक्ति से ही संभव हो सकी। गौरतलब है की मेडिटेशन करने वालों की कार्यक्षमता अक्सर बढ़ जाती है। मन की शक्ति एकाग्र हो जाने से उनकी योग्यता विकसित होती है।यही कारण है गौरव एक्टिंग में भी काम कर रहा है और गीत संगीत में भी। इसके साथ ही कैमरे की बारीकियों  को भी वह बहुत ही अच्छी तरह से समझता है। अपनी लोकप्रिय एल्बम "रब दा सहारा" में उसने गायन और अभिनय दोनों में अपना जादू दिखाया है। आखिर में एक बात और इस सबके लिए वह अपने पिता अश्विनी सग्गी और माता के आशीर्वाद को ही एक वरदान मानता है।-रेक्टर कथूरिया 


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भक्ति में शक्ति के आधार पर आगे बढ़ रहा गौरव सग्गी 

Wednesday, December 19, 2012

मामला दिल्ली में सामूहिक बलात्कार की घटना का

19-दिसंबर-2012 19:53 IST
काले शीशे/पर्दे लगे बसों/वाहनों को तुरंत जब्त करने का निर्णय 
केंद्रीय गृहमंत्री का संसद में अतिरिक्त वक्तव्य 
केंद्रीय गृहमंत्री श्री सुशील कुमार शिंदे द्वारा आज संसद में दक्षिणी दिल्ली में सामूहिक बलात्कार की घटना पर जारी अतिरिक्त वक्तव्य का मूलपाठ निम्नानुसार हैः- 

यह वक्तव्य मेरी ओर से 18 दिसंबर 2012 को संसद के दोनों सदनों में दिए गये वक्तव्य के बाद है जिसमें मैंने कहा था कि मैं घटना के बारे में दिल्ली पुलिस के अधिकारियों और गृह सचिव तथा गृह मंत्रालय के अधिकारियों के साथ विस्तृत समीक्षा करूंगा।

छः अभियुक्तों में से चार अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया गया है और शेष दो अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस की टीमें लगातार छापे मार रही हैं। जांच की निकटतापूर्वक निगरानी के लिए पुलिस उपायुक्त के नेतृत्व में एक विशेष जांच दल गठित किया गया है। बसंत विहार पुलिस थाने में भारतीय दंडविधान संहिता की धारा 365/376(2)(जी)/377/394/34 के अधीन 17 दिसंबर 2012 को प्राथमिकी संख्या 413 दर्ज की गयी है। जिसमें धारा 307 और 201 को भी जोड़ दिया गया है। इसके अलावा भारतीय पुलिस सेवा की एक महिला अधिकारी के साथ एक पुलिस दल को यह निर्देश दिया गया है कि वे नियमित रूप से अस्पताल जाकर पीड़िता के स्वास्थ्य की स्थिति का जायजा लेते रहें और पीड़िता के माता-पिता के साथ संपर्क कायम रखें।

मैंने चलती बसों में जघन्य अपराध होने के पहलू का मूल्यांकन किया है। पुलिस अधिकारियों और परिवहन आयुक्त के साथ स्थिति की समीक्षा के बाद यह निर्णय लिया गया है कि काले शीशे और पर्दे लगी बसों/व्यावसायिक वाहनों को तुरंत जब्त कर लिया जायेगा।

सभी व्यावसायिक वाहनों/बसों को रात में दिल्ली में चलते समय लाइट जलाने की हिदायत दी जाएगी। बस की ड्यूटी समाप्त होने पर उन्हें चालक/स्टाफ के पास न होकर मालिक की निगरानी में खड़ा किया जाएगा। अनुबंध कैरेज की शर्तों या परमिट की किसी शर्त का उल्लंघन किये जाने पर बस जब्त कर ली जाएगी और परमिट रद्द कर दिया जाएगा। दिल्ली पुलिस सभी सार्वजनिक वाहनों के चालकों/स्टाफ का सत्यापन करेगी। बिना चालक/स्टाफ का सत्यापन कराने वाली बसों/ऑटो को जब्त कर लिया जाएगा। सभी सार्वजनिक वाहनों पर चालक का लाइसेंस और फोटो के साथ सभी विवरण को हेल्प लाइन के साथ प्रदर्शित करना आवश्यक होगा, जिसपर शिकायत दर्ज की जा सके।

यह भी निर्णय लिया गया कि दिल्ली पुलिस को और अधिक वाहन उपलब्ध कराकर पी सी आर बेड़े में बढोतरी की जाए तथा जी पी एस लगाए जाएं ताकि केंद्रीय नियंत्रण कक्ष उनकी गतिविधि का पता लगा सके।  (PIB)
 19-दिसंबर-2012 19:53 IST****
वि.कासोटिया/सुधीर/इन्‍द्रपाल/अखलद चित्रदेव-6228

आरक्षण पर राजनीति//राजीव गुप्ता


इन्हे बस अपने–अपने वोट बैंक की चिंता
Tue, Dec 18, 2012 at 9:03 AM
                      यह तस्वीर समय लाईव से साभार 
राज्यसभा द्वारा सोमवार को भारी बहुमत से 117वाँ संविधान विधयेक के पास होते ही पदोन्नति मे आरक्षण विधेयक के पास होने का रास्ता अब साफ हो गया है. अब यह विधेयक लोकसभा मे पेश किया जायेगा. हलांकि इस विषय के चलते भयंकर सर्दी के बीच इन दिनो राजनैतिक गलियारो का तपमान उबल रहा था. परंतु इस विधेयक के चलते यह भी साफ हो गया कि गठबन्धन की इस राजनीति मे कमजोर केन्द्र पर क्षेत्रिय राजनैतिक दल हावी है. अभी एफडीआई का मामला शांत भी नही हुआ था कि अनुसूचित जाति एव जनजाति के लिये पदोन्नति मे आरक्षण के विषय ने जोर पकड लिया. एफडीआई को लागू करवाने मे सपा और बसपा जैसे दोनो दल सरकार के पक्ष मे खडे होकर बहुत ही अहम भूमिका निभायी थी, परंतु अब यही दोनो दल एक-दूसरे के विरोध मे खडे हो गये है. इन दोनो क्षेत्रीय दलो के ऐसे कृत्यो से यह एक सोचनीय विषय बन गया है कि इनके लिये देश का विकास अब कोई महत्वपूर्ण विषय नही है इन्हे बस अपने – अपने वोट बैंक की चिंता है कि कैसे यह सरकार से दलाली करने की स्थिति मे रहे जिससे उन्हे तत्कालीन सरकार से अनवरत लाभ मिलता रहे.
लेखक राजीव गुप्ता 
2014 मे आम चुनाव को ध्यान मे रखकर सभी दलो के मध्य वोटरो को लेकर खींचतान शुरू हो गयी है. उत्तर प्रदेश के इन दोनो क्षेत्रीय दलो के पास अपना – अपना एक तय वोट बैंक है. एक तरफ बसपा सुप्रीमो मायावती ने राज्यसभा अध्यक्ष हामिद अंसारी पर अपना विरोध प्रकट करते हुए यूपीए सरकार से अनुसूचित जाति एव जनजाति के लिये आरक्षण पर पांचवी बार संविधान संशोधन हेतु विधेयक लाने हेतु सफल दबाव बनाते हुए एफडीआई मुद्दे से हुई अपने दल की धूमिल छवि को सुधारते हुए अपने दलित वोट बैंक को सुदृढीकरण करने का दाँव चला तो दूसरी तरफ सपा ने उसका जोरदार तरीके से विरोध जता करते हुए कांग्रेस और भाजपा के अगडो-पिछडो के वोट बैंक मे सेन्ध लगाने का प्रयास कर रही है.इस विधेयक के विरोध मे उत्तर प्रदेश के लगभग 18 लाख कर्मचारी हडताल पर चले गये तो समर्थन वाले कर्मचारियो ने अपनी – अपनी कार्यावधि बढाकर और अधिक कार्य करने का निश्चय किया. भाजपा के इस संविधान संशोधन के समर्थन की घोषणा करने के साथ ही उत्तर प्रदेश स्थित उसके मुख्यालय पर भी प्रदर्शन होने लगे. सपा सुप्रीमो ने यह कहकर 18 लाख कर्मचारियो की हडताल को सपा-सरकार ने खत्म कराने से मना कर दिया कि यह आग उत्तर प्रदेश से बाहर जायेगी और अब देश के करोडो लोग हडताल करेंगे. दरअसल मुलायम की नजर अब एफडीआई मुद्दे से हुई अपने दल की धूमिल छवि को सुधारते हुए अपने को राष्ट्रीय नेता की छवि बनाने की है क्योंकि वो ऐसे ही किसी मुद्दे की तलाश मे है जिससे उन्हे 2014 के आम चुनाव के बाद किसी तीसरे मोर्चे की अगुआई करने का मौका मिले और वे अधिक से अधिक सीटो पर जीत हासिल कर प्रधानमंत्री बनने का दावा ठोंक सके.

मुलायम को अब पता चल चुका है कि दलित वोट बैंक की नौका पर सवार होकर प्रधानमंत्री के पद की उम्मीदवारी नही ठोंकी जा सकती अत: अब उन्होने अपनी वोट बैंक की रणनीति के अंकगणित मे एक कदम आगे बढते हुए अपने “माई” (मुसलमान-यादव) के साथ-साथ अपने साथ अगडॉ-पिछडो को भी साथ लाने की कोशिशे तेज कर दी है. उनकी सरकार द्वारा नाम बदलने के साथ-साथ कांशीराम जयंती और अम्बेडकर निर्वाण दिवस की छुट्टी निरस्त कर दी जिससे दलित-गैर दलित की खाई को और बढा दिया जा सके परिणामत: वो अपना सियासी लाभ ले सकने मे सफल हो जाये. दरअसल यह वैसे ही है जैसे कि चुनाव के समय बिहार मे नीतिश कुमार ने दलित और महादलित के बीच एक भेद खडा किया था ठीक उसी प्रकार मुलायम भी अब समाज मे दलित-गैर दलित के विभाजन खडा कर अपना राजनैतिक अंकगणित ठीक करना चाहते है.

कांग्रेस ने भी राज्यसभा मे यह विधेयक लाकर अपना राजनैतिक हित तो साधने के कोई कसर नही छोडा क्योंकि उसे पता है कि इस विधेयक के माध्यम से वह उत्तर प्रदेश मे मायावती के दलित वोट बैंक मे सेन्ध लगाने के साथ-साथ पूरे देश के दलित वर्गो को रिझाने मे वह कामयाब हो जायेंगी और उसे उनका वोट मिल सकता है. वही देश के सवर्ण-वर्ग को यह भी दिखाना चाहती है कि वह ऐसा कदम मायावती के दबाव मे आकर उठा रही है, साथ ही एफडीआई के मुद्दे पर बसपा से प्राप्त समर्थन की कीमत चुका कर वह बसपा का मुहँ भी बन्द करना चाहती है. भाजपा के लिये थोडी असमंजस की स्थिति जरूर है परंतु वह भी सावधानी बरतते हुए इस विधेयक मे संशोधन लाकर एक मध्य-मार्ग के विकल्प से अपना वोट बैंक मजबूत करने की कोशिश मे है. दरअसल सपा-बसपा के बीच की इस लडाई की मुख्य वजह यह है कि जहाँ एक तरफ मायावती अपने को दलितो का मसीहा मानती है दूसरी तरफ मुलायम अपने को पिछ्डो का हितैषी मानते है. मायवती के इस कदम से मुख्य धारा मे शामिल होने का कुछ लोगो को जरूर लाभ मिलेगा परंतु उनके इस कदम से कई गुना लोगो के आगे बढने का अवसर कम होगा जिससे समाजिक समरसता तार-तार होने की पूरी संभावना है परिणामत: समाज मे पारस्परिक विद्वेष की भावना ही बढेगी.

समाज के जातिगत विभेद को खत्म करने के लिये ही अंबेडकर साहब ने संविधान मे जातिगत आरक्षण की व्यवस्था की थी परंतु कालांतर मे उनकी जातिगत आरक्षण की यह व्यवस्था राजनीति की भेंट चढ गयी. 1990 मे मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू करने के निर्णय ने राजनैतिक दलो के राजनैतिक मार्ग को और प्रशस्त किया परिणामत: समूचा उत्तर प्रदेश इन्ही जातीय चुनावी समीकरणो के बीच फंसकर विकास के मार्ग से विमुख हो गया. इन समाजिक - विभेदी नेताओ को अब ध्यान रखना चाहिये कि जातिगत आरक्षण को लेकर आने वाले कुछ दिनो आरक्षण का आधार बदलने की मांग उठने वाली है और जिसका समर्थन देश का हर नागरिक करेगा, क्योंकि जनता अब जातिगत आरक्षण-व्यवस्था से त्रस्त हो चुकी है और वह आर्थिक रूप से कमजोर समाज के व्यक्ति को आरक्षण देने की बात की ही वकालत करेगी.

बहरहाल आरक्षण की इस राजनीति की बिसात पर ऊँट किस करवट बैठेगा यह तो समय के गर्भ में है, परंतु अब समय आ गया है कि आरक्षण के नाम पर ये राजनैतिक दल अपनी–अपनी राजनैतिक रोटियां सेकना बंद करे और समाज - उत्थान को ध्यान में रखकर फैसले करे ताकि समाज के किसी भी वर्ग को ये ना लगे कि उनसे उन हक छीना गया है और किसी को ये भी ना लगे कि आजादी के इतने वर्ष बाद भी उन्हें मुख्य धारा में जगह नहीं मिली है. तब वास्तव में आरक्षण का लाभ सही व्यक्ति को मिल पायेगा और जिस उद्देश्य को ध्यान मे रखकर संविधान में आरक्षण की व्यवस्था की गयी थी वह सार्थक हो पायेगा.      राजीव गुप्ता(9811558925)

आरक्षण पर राजनीति//राजीव गुप्ता

Saturday, December 15, 2012

2013 के लिए भारत सरकार का केलेंडर जारी

केलेंडर आम आदमी तक पहुंचने का महत्‍वपूर्ण माध्‍यम–मनीष तिवारी
शुक्रवार 14 दिसम्बर 2012 को नए आ रहे वर्ष 2013 के लिए भारत सरकार का केलेंडर जारी किया गया। इस अवसर पर सूचना और प्रसारण मंत्री श्री मनीष तिवारी मंचपर संबोधित करते हुए। (फोटो:पीआईबी
सूचना और प्रसारण मंत्री श्री मनीष तिवारी की उपस्थिति में आज 2013 के लिए भारत सरकार का केलेंडर जारी किया गया। इस अवसर पर दूरसंचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री श्री कपिल सिब्‍बल, कार्मिक जन शिकायत और पेंशन तथा प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्‍य मंत्री श्री वी. नारायणसामी, भारतीय प्रेस परिषद के अध्‍यक्ष न्‍यायमूर्ति मार्कंडेय काट्जू, सूचना और प्रसारण सचिव श्री उदय कुमार वर्मा भी मौजूद थे। केलेंडर की विषय वस्‍तु भारत निर्माण और सरकार की अन्‍य प्रमुख योजनाओं पर आधारित है। 

इस अवसर पर श्री मनीष तिवारी ने कहा कि सूचना के साधन के रूप में केलेंडर सरकार की नीतियों के बारे में जानकारी देने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह स्थिति इसके बावजूद है, जब मीडिया डिजीटल माध्‍यमों के जरिए अपनी पहुंच बना रहा है। केलेंडर में दिखाया गया कि प्रमुख योजनाएं आम आदमी के दरवाजें तक पहुंचे, खासतौर से इसमें आम आदमी के हक की जानकारी दी गई हैं। सरकार का प्रयास है कि वे लोगों तक समग्र विकास हासिल करने के उद्देश्‍य से बनाई गई नीतियों को पहुंचाए। श्री तिवारी ने कहा कि ग्रामीण इलाकों में लोगों को दीवार पर केलेंडर टांगने का शौक होता है। इसलिए सरकार द्वारा जारी यह केलेंडर सूचना का एक महत्‍वपूर्ण स्रोत बन सकता है। 

इससे पहले श्री कपिल सिब्‍बल और श्री वी. नारायणसामी ने विभिन्‍न प्रमुख योजनाओं के जरिए आम आदमी के अधिकारों और हक को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा की गई पहल की जानकारी दी। 

इस केलेंडर को सूचना और प्रसारण मंत्रालय के विज्ञापन और दृश्‍य प्रचार निदेशालय ने डिजाइन किया और छापा है। इसमें भारत सरकार के विभिन्‍न प्रमुख कार्यक्रमों का चित्रण है। इस केलेंडर की विषयवस्‍तु है : भारत निर्माण – सबका हित, सबका हक। 

जनवरी के महीने में आधार आधारित प्रत्‍यक्ष नगद हस्‍तांतरण योजना को दर्शाया गया है, जिसे जनवरी 2013 से 51 जिलों में लागू किया जाएगा। 

फरवरी महीने में अल्‍पसंख्‍यकों के कल्‍याण के लिए प्रधानमंत्री के नए 15 सूत्री कार्यक्रम की जानकारी दी गई है। 

मार्च के महीने में सर्वशिक्षा अभियान का चित्रण है। अप्रैल में मिड-डे मील योजना, मई में महात्‍म गांधी राष्‍ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, जून में सार्वभौमिक टीकाकरण, जुलाई में साक्षर भारत अभियान, अगस्‍त में जनानी-शिशु सुरक्षा कार्यक्रम, सितंबर में अनुसूचित जातियों का सशक्तिकरण, अक्‍तूबर में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, नवंबर में राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना और दिसंबर के महीने में जानी-पहचानी इंद्रा आवास योजना को दर्शाया गया है। (PIB)  14-दिसंबर-2012 19:49 IST***
वि.कासोटिया/कविता/तारा-6134

Tuesday, December 04, 2012

राजनीति के भंवर मे एफडीआई

Mon, Dec 3, 2012 at 9:14 PM
यह कैसी जुगाड की राजनीति है ?              राजीव गुप्ता
अपनी जुगाड-राजनीति के लिये प्रसिद्ध यू.पी.ए.-2 सरकार वर्तमान समय मे अपने कार्यकाल के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार के ऐलान के साथ कि एफडीआई मुद्दे पर संसद मे नियम 184 के तहत चर्चा होगी. परिणामत: एफडीआई पर आखिरकार सरकार का रुख नरम पड़ा और संसद मे गतिरोध टूटा. यू.पी.ए.-2 के अहम सहयोगी सपा, बसपा और डीमके जैसे दलो ने वर्तमान सराकार को बचाने हेतु भले ही सशर्त समर्थन देने की बात की हो परंतु आज़ादी के बाद से सत्ताधारी दलो के पास इससे ज्यादा राजनैतिक दिवालियापन अब तक देखने को नही मिला. यह कैसी जुगाड की राजनीति है कि जो दल सडको पर जनता के हित की बात करते हुए सत्ताधारी दलो की नीतियो का खुलकर विरोध करने हेतु धरना-प्रदर्शन कर अपनी गिरफ्तारी देते है वही दल संसद के अन्दर सत्ता की मलाई खाने हेतु उन्ही सत्ताधारी दलो की सरकार को गिरने से बचाने हेतु उनका संकटमोचन बनकर खडे हो जाते है.

डीएमके ने तो यहाँ तक कह दिया कि  अगर वे एफडीआई के विरोध में वोट करते हैं तो यह यूपीए सरकार के लिए खतरा होगा और बीजेपी के सत्ता में आने से बाबरी मस्जिद जैसी घटनाएं हो सकती हैं. वही सपा और बसपा का तर्क है कि साम्प्रदायिक शक्तियो को सत्ता से दूर रखने हेतु ही वे सरकार के साथ खडी होंगी. जबकि सच्चाई यह है कि अभी पिछले दिनो चार राज्यो आन्ध्र प्रदेश - चारमीनार , असम - कोकराझार, महाराष्ट्र – मुम्बई, उत्तर प्रदेश – फैज़ाबाद, बरेली, कोसीकलाँ मे साम्प्रदायिक दंगे भडके परंतु इन सभी राज्यो मे भाजपा की सरकार न होकर कांग्रेस, एन.सी.पी व सपा जैसे दलो की ही सरकार है. इसके उलटे गुजरात, मध्यप्रदेश, छतीसगढ, झारखंड, गोवा, कर्नाटक, बिहार आदि जिन राज्यो मे भाजपा व उसके समर्थक दलो की सरकार है वहाँ पर इस समय किसी भी प्रकार के साम्प्रदायिक दंगे नही हुए. इन दलो के बयानो को देखते हुए क्या यह मान लिया जाय कि राजनीति मे देश के विकास का मुद्दा अब कोई स्थान नही रखता तथा चर्चा विकास केन्द्रित होने की बजाय सिर्फ साम्प्रदायिकता की आड मे सत्ता लोलुपता के चलते जुगाड-केद्रित ही राजनीति पर होगी.       

22 नवंबर से शुरू हुए शीतकालीन सत्र की हंगामेदार शुरुआत के बीच तृणमूल कांग्रेस द्वारा पेश किया गया अविश्वास प्रस्ताव जरूरी समर्थन न मिल पाने की वजह से लोकसभा में भले ही गिर गया. परंतु  पूंजी निवेश के नाम पर एफडीआई का फैसला अब उसके गले की फांस बन चुका है. एफडीआई पर सरकार के फैसले के विरोध मे जहाँ 4-5 दिसम्बर को राष्ट्रव्यापी आन्दोलन के चलते व्यापारी सडको पर उतरेंगे तो वही इस गम्भीर विषय पर राजनैतिक पंडित संसद मे बहस कर वोटिंग करगे. संप्रग सरकार खुदरा व्यापार में सीधे विदेशी निवेश (एफडीआई) का विरोध करने वाले दलों को जोड़-तोड़कर जुगाड से उन्हे अपने साथ कर संसद में बहुमत जुटाने में अगर सफल हो भी जाती है तो माकपा महासचिव प्रकाश करात के अनुसार वाम दल उसे लागू करने के लिए फेमा में संशोधन के समय भी मत विभाजन पर जोर देगा. उनके अनुसार केंद्र की संप्रग सरकार अमेरिका और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दबाव में खुदरा व्यापार के क्षेत्र में एफडीआई की अनुमति देने के बाद अब वह संसद में बहुमत जुटाने के लिए इसका विरोध करने वाले दलों को जोड़ने-तोड़ने में लगी है. सपा नेता राम गोपाल यादव के अनुसार अगर सरकार एफडीआई का मुद्दा राज्यसभा में लाती है तो वे उसके खिलाफ मतदान करेंगे परंतु लोकसभा मे सपा सरकार के साथ खडी रहेगी. कृषि मंत्री शरद पवार के अनुसार भारत मे बहुब्रांड खुदरा कारोबार में विदेशी निवेश का स्वागत है और इससे किसानों और उपभोक्ताओं दोनों को फायदा होगा. दूसरी तरफ पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा के अनुसार बहु ब्रांड खुदरा क्षेत्र में एफडीआई लागू करना गरीबों के खिलाफ अपराध है. एक तरफ प्रधानमंत्री द्वारा यह तर्क दिया जा रहा है कि खुदरा व्यापार के क्षेत्र में बडी कंपनियों के उतरने से प्रत्येक वर्ष एक करोड़ रोजगार का सृजन होगा पर हकीकत यह है कि इसके कारण करीब पांच करोड़ लोगों की आजीविका छिन जाएगी. इसका ताज़ा उदाहरण यह भी है कि  अमेरिका और मेक्सिको जैसे देशों में खुदरा व्यापार के क्षेत्र में एफडीआई की अनुमति दिया जाना विफल  साबित हुई. इन राजनैतिक पंडितो के मंतव्यो से यही लगता है कि अब बिसात बिछ चुकी है और इनके बीच चल रहे शह और मात के खेल के बीच आम जनता पिसकर मात्र तमासबीन बनी हुई है.

इसका एक पहलू और भी है कि  अगर हम कुछ दिनो पूर्व प्रधानमंत्री द्वारा दिये गये "शहीदी वाले" वक्तव्य पर ध्यान दे  जिसमे उन्होने कहा था कि “जाना होगा तो लडते-लडते जायेंगे”  तो पायेंगे कि महँगाई, भ्रष्टाचार जैसे गम्भीर आरोपो से घिरी सरकार अब अपनी छवि सुधारने मे लग गयी है. उसके पास सरकार चलाने के लिये जुगाड से पर्याप्त संख्या बल है और अगर कभी उस संख्या बल में कोई कमी आई तो उसके पास आर्थिक पैकेज और सीबीआई रूपी ऐसी कुंजी है जिसकी बदौलत वह किसी भी दल को समर्थन देने के लिए मजबूर कर सकती है. अगर इतने में भी बात न बनी और मध्यावधि चुनाव हो भी गए तो कांग्रेस जनता को यह दिखाने के लिए हमने अर्थव्यस्था को पटरी पर लाने की कोशिश तो की थी पर इन राजनैतिक दलों ने आर्थिक सुधार नहीं होने दिया का ऐसा भंवरजाल बुना जायगा कि आम-जनता उसमे खुद फंस जायेगी.

इस समय भारत की जनता के सम्मुख राजनैतिक दलों की विश्वसनीयता ही सवालो के घेरे में है और वह इन सब उठापटक के बीच मौन होकर स्थिति को भांप रही है. सरकार बेनकाब हो चुकी है और महँगाई की मार से आम जनता त्राहि - त्राहि कर रही है.  आम आदमी जो छोटे - मोटे व्यापार से अभी तक अपना परिवार पाल रहा था सरकार ने अपने एफडीआई के  फैसले से उसको बेरोजगार करने का पुख्ता इंतजाम कर लिया है क्योंकि खुदरे व्यापार से सीधे आम जनता का सरोकार है. सरकार को यह ध्यान रखना चाहिये कि विदेश निवेश करने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियां हमारे देश मे व्यापार करने के लिये ही आयेंगी अत: वे अपने मुनाफे के बारे मे ही सोचेंगी.

भारत जैसा देश जहां की आबादी लगभग सवा सौ करोड़ हो , आर्थिक सुधार की अत्यंत आवश्यकता है परन्तु आर्थिक सुधार भारतीयों के हितों को ध्यान में रखकर करना होगा न कि विदेशियों के हितो को ध्यान में रखकर.  ऐसे मे सरकार किसके इशारे पर और किसको खुश करने के लिये और क्या छुपाने के लिए आर्थिक सुधार के नाम पर इतनी जल्दबाजी में इतने विरोधे के बावजूद  इतने बड़े - बड़े फैसले ले रही है असली मुद्दा यह है. राजनेता तो राजनीति करते ही है परन्तु परेशानी तो आम जनता को ही होती है ऐसे में भला आम जनता जाये तो कहाँ जाये.
--राजीव गुप्ता, 9811558925

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राजनीति के भंवर मे एफडीआई

Saturday, December 01, 2012

देश में शोक की लहर

पूर्व प्रधानमंत्री श्री इंद्र कुमार गुजराल के निधन पर गहरा दुःख 
पूर्व प्रधानमंत्री श्री इंद्र कुमार गुजराल के निधन पर  देश में शोक की लहर दौड़ गयी है।  है की पंजाब के साथ उनका गहरा लगाव था। प्रधानमंत्री सहित बहुत  वरिष्ठ नेतायों ने उनके निधन पर दुःख व्यक्त किया है।ने श्री इंद्र कुमार गुजराल के निधन पर शोक व्‍यक्‍त किया 
प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने पूर्व प्रधानमंत्री श्री इंद्र कुमार गुजराल के निधन पर शोक व्‍यक्‍त किया है। 
प्रधानमंत्री के संदेश का पाठ इस प्रकार है: 
' मुझे श्री आई.के.गुजराल के निधन का बेहद अफसोस है। उनके निधन से देश ने एक बुद्धिजीवी, विद्वान व्‍यक्ति और एक कुशल राजनेता खोया है। उनका उदारवादी और मानवतावादी दृष्टिकोण हमारे स्‍वतंत्रा आंदोलन के नेताओं की शिक्षाओं पर आधारित था। मुझे वयक्तिगत तौर पर लगता है कि मैंने एक खास दोस्‍त खोया है जिसके ज्ञान, आदर्शवाद और सामाजिक समानता के प्रति उनकी गंभीर चिंता ने मेरे ज़हन में गहरी छाप छोड़ी। मैं अक्‍सर उनके परामर्श और राय लेता था तथा उसे काफी महत्‍व भी देता था। 
श्री गुजराल एक शांत और आदर्शवादी व्‍यक्ति थे जो अपने सिद्धांतो पर चलते थे । वे एक बुद्धिजीवी और संवदेनशील व्‍यक्ति थे। उन्‍होंने अपने लंबे और उत्‍कृष्‍ट करियर के दौरान कई राजनीतिक और राजनयिक जिम्‍मेदारियां निभाईं। उन्‍होंने जो भी पद ग्रहण किया उस पर पूरी निष्‍ठा से काम किया। वे अपने साथ कार्य करने वाले व्‍यक्तियों के प्रति बेहद स्‍नेहशील और दयालु थे। युवा जीवन में अपने अनुभवों से वे पक्‍के समाजवादी धारणा के विचारक थे। 
अपनी इन विशेषताओं के कारण उन्‍होंने जो भी कार्यालय संभाला उस पर अपनी छाप छोड़ी। वे एक राजनयिक थे जिन्‍होंने रूस और तटस्‍थ विश्‍व के साथ भारत के रिश्‍ते प्रगाढ़ किए। विदेश मंत्री के रूप में उन्‍होंने गंगा जल समझौते के साथ भारत-बांग्‍लादेश के संबंधों को फिर से मजबूत किया। उन्‍होंने पाकिस्‍तान के साथ वार्ता का माहौल बनाया तथा भारत-श्रीलंका के ऐतिहासिक मुक्‍त व्‍यापार समझौते पर बातचीत शुरू की। एक समृद्ध दक्षिण एशिया के उनके दृष्टिकोण के लिए उन्‍हें हमेशा याद रखा जाएगा। 
उन्‍होंने प्रधानमंत्री के रूप में दबाव और कठिन परिस्थितियों में धैर्य से काम करने का उदाहरण दिया तथा अपने सिद्धांतो के प्रति निष्‍ठा का प्रदर्शन किया। 
पंजाब में विद्यार्थी के रूप में राजनीतिक सक्रियता और गतिविधियों से शुरूआत करते हुए उनके सार्वजनिक सेवा के लंबे वर्ष का समापन उच्‍च कार्यकारी कार्यालय में पदभार ग्रहण करने के साथ हुआ। 
भारत सरकार और अपनी ओर से मैं श्री गुजराल के परिवार के प्रति गहरी संवेदना व्‍यक्‍त करता हूं और प्रार्थना करता हूं कि ईश्‍वर उन्‍हें यह दुख सहने की शक्ति और धैर्य प्रदान करे।' 
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रेल मंत्री पवन कुमार बंसल ने श्री इन्‍दर कुमार गुजराल के निधन पर शोक व्‍यक्‍त किया 
रेल मंत्री पवन कुमार बंसल ने श्री इन्‍दर कुमार गुजराल के निधन पर गहरा शोक प्रकट किया। 
अपने संवेदना संदेश में श्री पवन बंसल ने बताया कि ‘’श्री आई.के.गुजराल दक्ष राजनेता थे, उन्‍होंने राष्‍ट्र निर्माण में उल्‍लेखनीय योगदान दिया’’। 
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डॉ. फारूक अब्‍दुल्‍ला ने श्री आई.के.गुजराल के निधन पर गहरा शोक प्रकट किया 
केन्‍द्रीय नवीन और नवीकरणीय उर्जा मंत्री डॉ. फारूक अब्‍दुल्‍ला ने पूर्व प्रधानमंत्री श्री आई.के.गुजराल के निधन पर गहरा शोक व्‍यक्‍त किया। अपने संवेदना संदेश में उन्‍होंने श्री गुजराल को ‘’कुशल राजनीतिज्ञ, राजनयिक और मानवतावादी बताया। श्री गुजराल ने भारत और पाकिस्‍तान के बीच बेहतर सम्‍बन्‍ध बनाने के लिए अथक प्रयास किए’’।
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