Monday, July 30, 2012

चुनौती जिस्म और जिंदगी दोनों को खोखला कर रहे नशे की

लुधियाना पुलिस ने और तेज़ किया अभियान
 नशे की नज़र अब पंजाब को भी लग चुकी है। जिंदगी को बेरंग और जिस्म को बेजान करने वाली नशे की लत असंख्य घरों लो बर्बाद कर चुकी है
पंजाब में नशे से चल रही बर्बादी की आंधी को रोकने के लिए अब पंजाब पुलिस ने भी कमर कास ली है नशे  को जढ़ से उखाड़ने में जुटी पुलिस को इस मिशन में सफलता भी मिल रही है। यह सफ;ता बताती है कि आंधी मों भी चिराग जला लिया गया जय।
Courtesy photo
पंजाब पुलिस ने समाजिक संगठनों को साथ लेकर नशे की लत के खिलाफ जन चेतना जागरूक करने के लिए संगोष्ठियों ला एक सिलसिला और तेज़ किया है पिछले कई बरसों से चल रहे इस अभियान में एक नई जान फूंकते हुए लुधियाना के कमिश्नर ईश्वर सिंह ने अब हर थाना क्षेत्र में इस मकसद के कार्य करने का आदेश दिया है। आदेश के बाद काम शुरू भी किया गया है। कहीं नाटकों का मंचन हो रहा है तो कहीं गीत संगीत. कहीं पर डिबेट हो रही है तो कहीं पर प्रदर्शनी या संगोष्ठी का आयोजन। ऐसा ही आयोजन रविवार 29 जुलाई को भी हुआ लुधियाना के के वी एम स्कूल में......
इस मौके पर कुछ ऐसे लोग भी थे जो पुलिस के इस अभियान के अंतर्गत अब नशे को हमेशां के लिए छोड़ चुके हैं यहाँ नशेडी भी थे जिनके जिस्मों पर बने इंजेक्शनों के निशान अपनी कहानी खुद कह रहे थे. अब पूरी तरह नशे के चंगुल से मुक्त हो कर समान्य ज़िन्दगी जी रहे एक युवक ने नशे से होने वाली तबाही का एक  मंजर असब के सामने रखा। नशे से मुक्त हुए इस युवक भरे गले से सब बताया ता कि उसे सुन रहे देख रहे लोग बच सकें। 
इस मौके पर इस अभियान के साथ बहुत लम्बे समय से जुड़े हुए डाक्टर इन्द्रजीत सिंह धींगडा ने भी इस मिशक के मकसद को लेकर नीदिया के साथ कुछ बातें की. काफी लम्बे समय से डाक्टर कोटनिस अस्पताल के मेडिकल सुप्रिटेंडेंट की ज़िम्मेदारी पूरी तनदेही से निभा रहे डाक्टर धींगरा समाज सेवा के लोटे अजस्र अग्रसर रगते हैं। विचारों से वामपंथी भी उन्हें अपना मानते हैं और धर्मकर्म के लोग भी। उन्होने नशे की ब्रै पर भी थोड़े से शब्दों में बहुत कुछ कहा और नशे के खिलाह पुलिस व समाज के इस सन्तुक्त अभियान पर भी। उन्होंने बताया की यह अभियान सन 2005 से चल रहा है।  
पुलिस कमिश्नर ईश्वर सिंह ने जहाँ नशे की बुराई और नशे के खिलाफ किये जा रहे प्रयासों की चर्चा की वहीँ यह भी साफ़ साफ़ कहा कि पुलिस नशे की बुराई को समाप्त करने के लिए और समाज को बचाने के लिए दृढ़ संकल्प है
पुलिस कमिश्नर ईश्वर सिंह ने यह भी साफ़ साफ़ कहा अगर किसी को नशे के किसी व्यापारी का पता चले तो वह सीधा मुझे बताये.
अब देखना है कि पैसे और राजनीति के मकडजाल में फ़ैल रहे नशे के कारोबार को जड़ से उखाड फेंकने में पुलिस कहाँ तक सफल होती है. आओ दुआ करें कि पुलिस जल्द सफल हो। ---रेक्टर कथूरिया

लुधियाना के लोग फिर हुए मायूस

एक जानीमानी कम्पनी के बर्गर में छोटे से सांप जैसा जीव 
बड़े बड़े शहरों में अक्सर होती हैं छोटी छोटी बातेंइस तरह का जवाब एक बार फिर मिला लुधियाना वासियों को उस समय जब बर्गर में सांप मिलने की खबर से भी नहीं चेता प्रशासन क्यूंकि बर्गर किसी सडक किनारे खड़ी रेहड़ी से नहीं बल्कि एक बड़ी कम्पनी से मिला था। जब  नाम बड़े और दर्शन छोटे की बात एक बार फिर उस समय सही सिद्ध हुई जब एक जानी मानी अंतर्राष्ट्रीय कम्पनी के बर्गर में छोटा सा सांप मिला. इस घटना के बाद लुधियाना के लोग भोजन की साफ़ सफाई और शुद्धता को लेकर बेहद निराश हो गए हैं
गर्मी और व्यस्तता से बचकर थोडा सा स्कून पाने के लिए लोग फुर्सत के कुछ पल निकाल ही लेते हैं. यही किया था उस दिन लुधियाना में एक मध्यवर्गीय परिवार ने इस परिवार ने अपने छोटे से नन्हे मुन्ने की फरमाईश पूरी करने के लिए बर्गर मंगवायाबच्चा चूंकि छोटा था इस लिए स्वयम अपने मूंह से नहीं कह सकता था उसकी मोम (माता) ने बर्गर काट काट क्र उसे खिलाना शुरू कर दिया बर्गर के छोटे छोटे टुकड़े करते करते सामने आया एक सांप का बच्चा. इसे देख कर परिवार के होश उड़ गए महिला की चीख निकली तो बाकी के ग्राहक भी वहां आये. मामला देख कर सब भडक उठे. वहीं मौजूद एक ग्राहक ने इस साडी घटना की वीडियो बना ली
आप उस समय की तस्वीरें भी देख सकते हैं......जिनमें बर्गर खाने वाले परिवार के मुखिया और सबंधित रेस्टुरेंट के मैनेजर  भी नज़र आ रहे हैं.
इस घटना से निराश हुए लोग इस बात को लेकर भयभीत भी हैं की इतनी बड़ी साख के रेस्टोरेंट में भी यह हाल है.

अब देखना है की सडक किनारे खड़ी छोटी छोटी रेहड़ियों पर जोर आजमाई करने वाला प्रशासन बड़ी कम्पनी के सामने भी आँख उठा पाटा है या नहीं ?   --रेक्टर कथूरिया

Saturday, July 28, 2012

प्रधानमंत्री ने बांटा हिंसा पीड़ित लोगों का दुःख

असम के हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में एक जिला कोक्राहार  भी है। इस जिले में जब राहत कैम्प लगा तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह विशेष तौर पर वहां पहुंचे और हिंसा प्रभावित लोगों के दुःख सुने। इस अवसर पर असम के राज्यपाल जे बी पटनायक और मुख्यमंत्री तरुण गंगोई भी मौजूद थे। हिंसा का शिकार हुए इन बेगुनाह लोगों का दुःख उनके चेहरे से ही ब्यान हो रहा था। जब प्रधानमन्त्री ने शनिवार 28 जुलाई 2012 को इन लोगों से यह भेंट की पत्र सूचना कार्यालय के छायाकार ने दुःख की इन घड़ियों को भी कैमरे में कैद कर लिया ता कि जब भी लोग इन तस्वीरों को देखें तो इन तस्व्वेरों में छुपा दर्द उन्हें साम्प्रदायिकता से दूर रहने का संदेश याद दिलाता रहे। 

आखिर ये दंगे होते ही क्यों है // राजीव गुप्ता

धर्म लोगों में नसेड़ी की अफीम की तरह विद्यमान होता है
जो खोखला होने के बावजूद नशा नहीं त्यागना चाहता 
नाईजीरिया के जोस शहर में साम्प्रदायिक हिंसा: साभार चित्र 
1948 के बाद भारत में पहला सांप्रदायिक दंगा 1961 में  मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर में हुआ ! उसके बाद  से अब तक  सांप्रदायिक दंगो की झड़ी सी लग गयी !  बात चाहे 1969 में गुजरात के दंगो  की हो , 1984 में सिख विरोधी हिंसा की हो, 1987 में मेरठ के दंगे हो जो लगभग दो महीने तक  चला था और कई लोगो ने अपनी जान गंवाई थी,  1989 में हुए भागलपुर - दंगे की बात हो, 1992 - 93 में बाबरी काण्ड के बाद मुंबई में भड़की हिंसा की हो, 2002 में गुजरात - दंगो की हो, 2008 में कंधमाल की हिंसा की हो या फिर अभी पिछले दिनों ही उत्तर प्रदेश के बरेली में फ़ैली सांप्रदायिक हिंसा की हो अथवा इस समय सांप्रदायिक हिंसा की आग में सुलगते हुए  असम  की हो जिसमे अब तक पिछले  सात दिनों से जारी हिंसा में करीब दो लाख लोगों ने अपना घर छोड़ा दिया तथा इनमें से कइयो के घर जला दिए गए और ज्यादातर लोग सरकार द्वारा बनाए गए 125 राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं !  यह एक कटु सत्य है कि विभिन्न समुदायों के बीच शांति एवं सौहार्द स्थापित करने की राह में सांप्रदायिक दंगे एक बहुत बड़ा रोड़ा बन कर उभरते है और साथ ही मानवता पर ऐसा गहरा घाव छोड़ जाते है जिससे उबरने में मानव को कई - कई वर्ष तक लग जाते है ! ऐसे में समुदायों के बीच उत्पन्न तनावग्रस्त स्थिति में किसी भी देश की प्रगति संभव ही नहीं है !  साम्यवादी चिन्तक काल मार्क्स ने धर्म को अफीम की संज्ञा देते हुए कहा था कि धर्म लोगों में नसेड़ी की अफीक की तरह विद्यमान होता है, जो हर हाल में नशा नहीं त्यागना चाहता है, भले ही वह अन्दर से खोखला क्यों ना हो जाय !  समाज की इसी कमजोरी को राजनेताओ ने सत्ता की लोलुपता में सत्ता हथियाने हथियार बनाया , भले ही इसकी बेदी पर सैकड़ों मासूमों के खून बह जाय !
धर्मनिरपेक्षता और संविधान

भारतीय संविधान के तहत भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है जहां कई मतों को मानने वाले लोग एक साथ रहते है ! ध्यान देने योग्य है कि धर्मनिरपेक्ष शब्द संविधान के 1976 में हुए 42वें संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया ! यह संशोधन सभी धर्मों की समानता और धार्मिक सहिष्णुता सुनिश्चित करता है ! चूंकि भारत का कोई अपना आधिकारिक धर्म नहीं है अतः यहाँ ना तो किसी धर्म को बढावा दिया जाता है और ना ही किसी से धार्मिक - भेदभाव किया जाता है ! भारत में सभी धर्मों का सम्मान किया जाता है और सभी मतानुयायो के साथ एक समान व्यवहार किया जाता है ! भारत में हर व्यक्ति को अपने पसन्द के किसी भी धर्म की उपासना, पालन और प्रचार का अधिकार है !  सभी नागरिकों, चाहे उनकी धार्मिक मान्यता कुछ भी हो कानून की नजर में बराबर है ! साथ ही  सरकारी या सरकारी अनुदान प्राप्त स्कूलों में कोई धार्मिक अनुदेश लागू भी नहीं होता !

सांप्रदायिक हिंसा के कारण

अगर हम बड़े - बड़े साम्प्रदायिक दंगो को छोड़ दे तो भी देश में गत वर्ष हुई सांप्रदायिक हिंसा भड़कने के मूल में किसी भी समुदाय की धार्मिक भावनाओ का आहत होना, सहनशीलता और धैर्य की कमी के साथ - साथ  और क्रिया का प्रतीकारात्मक उत्तर देना ही शामिल है ! अभी हाल ही में  पिछले हफ्ते उत्तर प्रदेश के बरेली में भड़की सांप्रदायिक हिंसा के पीछे पुलिस के मुताबिक मूल वजह यह थी कि शहर के शाहाबाद इलाके में कांवड़ियों द्वारा रात को साउंड सिस्टम बजाने दूसरे समुदाय के लोगो की भावनाए आहत हो गयी थी !  बात चाहे अप्रैल  2011 को  मेरठ में सांप्रदायिक हिंसा की हो अथवा सितंबर 2011 को राजस्थान के भरतपुर के गोपालगढ़ में साम्प्रदायिक हिंसा या फिर सितम्बर 2011 में  मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में दौलतगंज चौराहे पर गणेश - प्रतिमा  की स्थापना को लेकर सांप्रदायिक हिंसा की हो शुरुआत हमेशा छोटे - छोटे दंगो से ही होती है जो कि पूर्वनियोजित नहीं होते ! आखिर ये बिभिन्न समुदाय के लोग एक -  दूसरे की धार्मिक भावनाओं पर कुठाराघात करते ही क्यों है यह एक हम सबके सम्मुख विचारणीय प्रश्न मुह बाए खड़ा है ! इन दिनों असम सांप्रदायिक हिंसा की भेट चढ़ा हुआ है जिसमे लाखो लोग बेघर हो गए है और कई लोग अपनी जान गँवा चुके है तो कई लोग घायल है ! ऐसी ही साम्प्रदायिक हिंसा अगस्त 2008 में उत्तरी असम के उदलगुड़ी और बरांग जिलों में भी हुई थी परन्तु लगता है कि उन दंगों से तरुण गोगोई और उनके मंत्रिमंडल ने कोई सबक नहीं लिया ! असम को आज भी एक गरीब और पिछड़ा राज्य माना जाता है ! योजना आयोग के आकड़ों के मुताबिक 2010 तक असम के 37.9 फीसदी लोग गरीबी रेखा से नीचे रह रहे थे ! असम में गरीबी के आकड़े बढ़े हैं ! 2004-05 में 34.4 फीसदी लोग ही वहा गरीबी रेखा से नीचे रहते थे !

क्या कहते है आंकड़े

गृहमंत्रालय के अनुसार द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबित देश भर में पिछले चार सालो में सांप्रदायिक हिंसा के लगभग 2,420 से अधिक छोटी - बड़ी घटनाएं हुई  जिसमें कई लोगो को अपनी जान से हाथ ढोना पड़ा ! इन आंकड़ों का अगर हम औसत देंखे तो देश में किसी न किसी हिस्से में हर दिन कोई न कोई सांप्रदायिक हिंसा की घटना हो ही जाती है जिसमे कई बेगुनाह लोग मारे जाते है और कई घायल हो जाते है ! गृहमंत्रालय का  भी मानना है कि देश के लिए सांप्रदायिक हिंसा प्रमुख चिंता का विषय बन गया है ! क्योंकि सरकारी तंत्र यह मानता है कि सांप्रदायिक हिंसा का समाज पर दूरगामी प्रभाव छोड़ता है जिससे समाज में कटुता का ग्राफ सदैव बढ़ता है ! परन्तु अगर ऐसा माना जाय कि सरकार का नेतृत्व थामने वाले जनता के प्रतिनिधि ही किसी न किसी रूप में सांप्रदायिकता की आड़ में अपनी राजनैतिक रोटिया सकते है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी, इसका ताज़ा उदाहरण देश की राजधानी दिल्ली ने सुभाष पार्क के स्थानीय विधायक को देखा परन्तु जनता की सहनशीलता एवं धैर्य से कोई बड़ी अनहोनी होते - होते बच गयी ! परन्तु जब यह सहनशीलता जनता नहीं दिखाती तो देश साम्प्रदायिक दंगो की भेट चढ़ जाता है !  अगर हम हाल ही के पिछले कुछ वर्षो के आकड़ो पर नजर डाले तो आकडे इस बात की पुष्टि कर देते है कि जनता ने जहा सहनशीलता नहीं दिखाई वहा सांप्रदायिक दंगे हुए है ! एक आकंड़ो के अनुसार वर्ष 2010 में सांप्रदायिक हिंसा की 651 घटनाओं में जहा एक तरफ 114 लोगों को अपनी जान से हाथ ढोना पडा था तो दूसरी तरफ 2,115 व्यक्ति घायल हो गए थे ! वर्ष 2009 में सांप्रदायिक हिंसा की 773 घटनाओं में लगभग 123 लोगों की मौत हो गई थी जबकि 2,417 लोग घायल हुए थे !  वर्ष 2008 में सांप्रदायिक हिंसा की 656 घटनाओं में 123 लोगों की जान गयी थी और 2,270 लोग घायल हुए थे !

सांप्रदायिक हिंसा रोकने के लिए उपाय    

भारत सरकार को चाहिए कि साफ़ नियति से बिना देरी किये हुए इसी मॉनसून सत्र में सभी दलों के सहयोग एवं सहमति से संसद में कानून बनाकर इस नासूर रूपी समस्या पर नियंत्रण करे ! ध्यान देने योग्य है कि सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा निवारण विधेयक - 2011 का एक प्रारूप सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने तैयार किया था परन्तु इस प्रारूप से सरकार की नियति पर सवालिया निशान खड़े हो गए थे !  सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं अक्सर त्योहारों के नजदीक ही होती है अतः सरकार को त्योहारों के समीप चौकस हो जाना चाहिए और ऐसे क्षेत्र को संवेदनशील घोषित कर कुछ हद तक ऐसी सांप्रदायिक घटनाओ को कम किया जा सकता है ! ध्यान देने योग्य है कि अक्टूबर 2011 को सांप्रदायिक हिंसा की बढ़ती घटनाओं के चलते केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम ने मुख्यमंत्रियों को सचेत रहने को कहा था ! और साथ ही सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भेजे पत्र में चिदंबरम ने सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील स्थानों की पहचान कर उन पर विशेष नजर रखने को कहा था ! अक्टूबर 2008 को राष्ट्रीय एकता परिषद का उद्घाटन  समारोह में  सांप्रदायिक ताकतों पर प्रहार करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उड़ीसा, कर्नाटक और असम की सांप्रदायिक हिंसा का हवाला देते हुए  कहा था कि यह खतरनाक होने के साथ ही भारत की मिली जुली संस्कृति पर हमला हैं और इनसे कड़ाई से निपटने की जरूरत है ! किसी भी देश के विकास के लिए परस्पर सांप्रदायिक सौहार्द का होना नितांत आवश्यक है ! अतः आम - जन को भी देश की एकता - अखंडता और पारस्परिक सौहार्द बनाये रखने के लिए ऐसी सभी देशद्रोही ताकतों को बढ़ावा न देकर अपनी सहनशीलता और धैर्य का परिचय देश के विकास में अपना सहयोग करना चाहिए ! आज समुदायों के बीच गलत विभाजन रेखा विकसित  की जा रही है ! विदेशी ताकतों की रूचि के कारण स्थिति और बिगड़ती जा रही  है जो भारत की एकता को बनाये रखने में बाधक है ! अतः अब समय आ गया है देश भविष्य में ऐसी सांप्रदायिक घटनाये न घटे इसके लिए प्रतिबद्ध हो !
- राजीव गुप्ता , 9811558925

Wednesday, July 25, 2012

क्रांति आकर रहेगी

दस्तकों का अब किवाड़ों पर असर होगा ज़रूर;
हर हथेली खून से तर और जियादा बेकरार ! 
दुशियंत जी की उपरोक्त पंक्तियाँ अचानक याद आइन, माहौल देख कर बिना जहन पर कोई दबाव डाले होठों से निकल पड़ीं। इसके साथ ही .यह अहसास भी एक बार फिर जगा कि क्रांति  तो अब हर हाल में आकर ही रहेगी. .आयोजन पटियाला में था और लोग अन्ना टीम को सुनने दूर दूर से आये थे वहां अन्ना टीम से जुड़े अरविन्द केजरीवाल,  गोपाल राये  जी , संजय सिंह और कई अन्य लोग भी थे। लोगों की भीड़ कोई ज्यादा नहीं थी पर जो थे वे पूरी तरह समर्पण भाव से आये थे। वहाँ भाड़े पर लाये लोगों का शोरुगुल नहीं था। सभी लोग बहुत ही अनुशासन में थे और वह भी अपने आप. कोई किसी को डांट या घूर नहीं रहा था। कुछ लोग मंच पर रहना चाहते थे; केवल इसलिए कि अन्ना टीम के कुछ अधिक नजदीक  बैठ सकें मंच से आदेश हुआ तो सभी लोग बिना  किसी हील हुज्जत के नीचे उतर गए। 
वहां ऐसे लोगों की भीड़ भी थी जो अपने साथ हुए भ्रष्टाचार का विवरण पूरे सबूतों सहित लेकर वहां पहुंचे थे। इन सभी लोगों को यही लग रहा था अगर आना टीम उनका मामला देख ले तो समस्या हल हो जाएगी। पर सबूतों के बावजूद सभी को एक ही जवाब मिल रहा था की जांच के बाद सही पाए जाने पर ही अन्ना टीम किसी मुद्दे को उठाएगी वरना बिलकुल नहीं। मैं शिकायत कर्तायों की भीड़ और उनका विशवास देख कर हैरान था। आम तौर पर कोई आम कमज़ोर इन्सान सुनवाई न होने पर अपनी शिकायत लेकर किसी वरिष्ठ और बड़े अफसर के पास जाता है। मुझे लगा यहाँ अपनी शिकायत लाने वाले लोग निश्चय ही अन्ना टीम को, इस आन्दोलन को सरकार से कहीं बड़ा समझ कर आये हैं। 
इन लोगों में ही एक लडकी थी जो वीलचेयर पर बैठी थी। जब वह कार्यक्रम खत्म होने के बाद लंगर हाल में पहुंची तो मैंने पुछा कि चलने फिरने की लाचारी के बावजूद तुम यहाँ आई हो।...क्यूं आई हो ? पूछते समय मुझे अटपटा जरूर लगा पर तुरंत और कुछ सूझा ही नहीं। जवाब में वह मुस्करा कर बोली मुझे केजरीवाल जी को सुनना था अन्ना आन्दोलन का एक हिस्सा बनना था सो चली आई। फगवाडा से आई आस्था नाम की इस लडकी के परिजन उसके साथ थे। नुस्के चेहरे पर इतनी दूरी से आने की कोई थकावट और न ही गर्मी के मौसम की कोई बेचैनी। मैंने पूछा क्या तुमने पहले कभी केजरीवाल जी को नहीं सुना ? जवाब था सुना है पर केवल टीवी पर। आज आमने सामने पहली बार सुना। मैंने फिर उसकी वीलचेयर की और देखते हुए पूछा की इतनी गर्मी में और इतनी दूरी से यहाँ आना ज़रूरी था क्या ? तुम्हारी हालत देख कर लगता है तुम्हे काफी तकलीफ हुई होगी। जवाब में वह फिर मुस्करा दी और बोली जी ज़रूर हुई है पर देश को बचना हो तो जाब देने को भी तैयार रहना पड़ता है। मैं इस जवाब के लिए तैयार नहीं था। मेरा मन भी भर आया और आँखें भी। जहन में कौंध गया फिल्म नायक का वह सीन जिसमें एक अपाहिज लड़का अनिल कपूर से कहता है मेरा देश भी मेरी तरह लंगड़ा हो गया इसे उठा कर चला दीजिये। इस लडके की यह बात सुन कर ही अनिल कपूर राजनीति में आने को तैयार होता है। उस दिन फिल्म नहीं थी पर आस्था नाम की यह लडकी मुझे अपनी मौन शब्दों से समजा रही थी कि वास्तविक जिंदगी कहीं अधिक रोमांचिक होती है, कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण जिसमें रीटेक का कोई मौका भी नहीं मिलता मौका गंवा दिया तो गंवा दिया। आखिर में मैंने आस्था से इतना ही पुछा की इस आयोजन का पता कैसे लगा / बोली ललित दीदी हैं न उनहोंने बताया था। मैं फिर हैरान था।  जिस ललित को मैं एक आम सी लडकी समझता था वह इतनी प्रभावशाली है कि आस्था जैसे लोग टांग न होते हुए भी फगवाडा से चलकर पटियाला पहुँच सकते हैं ! मुहे लगा कि अब क्रांति आ कर ही रहेगी ! आस्था को वहां देखकर मेरे मन की आस्था भी भी एक बार फिर मजबूत हो गई।  अचना होठों पर आया।..इतनी शक्ति हमें देना दाता मन का विस्वास कमज़ोर हो न ..रेक्टर कथूरिया 
सबंधित पोस्ट।..अवश्य देखें:
 नींव के पत्थर/देश को बचाने की अल्ख जगाता अन्ना आन्दोलन

Sunday, July 22, 2012

मामला पंजाब के विकास का //बिजली पानी ज़रूरी या मैट्रो ?

मैट्रो की बजाय लोगों को पीने का पानी दें बादल:
  विकास की बातों को परनीत कौर ने लिया आड़े हाथों  
राजपुरा, 21 जुलाई: कांग्रेस पार्टी की सांसद केन्द्रीय विदेश राज्य मंत्री महारानी परनीत कौर ने पंजाब में विकास की लम्बी चौड़ी बातें करने वालों को आड़े हाथों लिया है।  एक शोक सभा के बाद मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा कि सच बात तो यज है कि पंजाब में जो थोडी-बहुत सरकार चल रही है, वह केन्द्र सरकार की सहायता की वजह से ही चल रही है। पंजाब में मैट्रो चलाने के बड़े-बड़े दावे करने वालों का यह हाल है कि यह सारकार लोगों को पीने के लिए साफ-सुथरा पानी भी उपलब्ध नहीं करा सके। 
पंजाब की हालत पर यह विचार केन्द्रीय विदेश राज्य मंत्री महारानी परनीत कौर ने राजपुरा में कांग्रेस कार्यकर्ता नरिन्दर सोनी के पिता बलराज सोनी की मौत के बाद रस्म पगडी के मौके पर पहुंचने के बाद मीडिया   से बातचीत के दौरान रखे।  मौजूदा अकाली-भाजपा सरकार को बिल्कुल फेल सरकार बताते हुए उन्होंने कहा कि पंजाब के लोगों को बिजली की कोई कमी न आने देने वालों का यह हाल है कि लोगों को भारी बिजली कटों के चलते काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। बिजली न दे सकने के बाद सरकार ने बिजली के दरों में बेतहाशा बढ़ोतरी कर दी है, जिससे महंगाई और बढ़ जायेगी। पटियाला की कई कालोनियों में सीवरेज की पाइपें फट जाने से सीवरेज का गंंदा पानी पीने के पानी में मिल जाने से कई कालोनियों के लोग बीमार हो गये हैं।  पटियाला में गराीबों के लिये बना एक मात्र अस्पताल का यह हाल है कि बैड आदि पर चादरें नहीं हैं, केन्द्र सरकार ने  पिछले समय में आठ करोड़ रुपया अस्पताल के लिये दिया था, उसमें से सिर्फ 30 लाख रुपया खर्च किया  है वह भी पता नहीं कहांं खर्च किया है। सरकार से जो कार्य नहीं होता वह केन्द्र के जिम्मे मढ़ देते हैं। कांग्रेसी नेता दीपइन्द्र सिंह ढिल्लों द्वारा कांग्रेस को छोड़कर अकाली दल में शामिल होने के सवाल पर महरानी परनीत कौर ने कहा कि ढिल्लों द्वारा कांग्रेस पार्टी छोडऩे का मुझे बहुत दु:ख है। जिला पटियाला के एकमात्र जंक्शन स्टेशन पर लोगों की लम्बे समय से चली आ रही मांग, जरूरी यात्री गाडिय़ों का ठहराव नहीं करवा सकने के सवाल को अपने चिर परिचित अंदाज़ से टालते हुए उन्होंने कहा कि मैंने कई बार कोशिश की है, शायद कोई तकनीकी दिक्कत होगी। उन्होंने आश्वासन दिया की वह अपनी कोशिश जारी रखेंगी।

मकसद बैंकिंग सुविधाएं उपलब्ध कराना

करीब 74,000 बस्तियों की पहचान वित्तीय समावेश:   विशेष  लेख
              :                                                                               * शमीमा  सिद्दीकी (पीआईबी) 
वर्ष 2010-2011 के आम बजट के समय अपने भाषण में वित्त मंत्री ने सभी बैंकों को निर्देश दिया था कि व्यवसाय साथियों (बिजनेस कॉरिसपॉन्डेंट ) के जरिए शाखाहीन बैंकिंग सहित विविध मॉडलों और प्रौद्योगिकियों के इस्तेमाल से मार्च 2012 तक 2000 से अधिक आबादी वाली बस्तियों को समुचित बैंकिंग सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं। इस वित्तीय समावेश अभियान का नाम स्वाभिमान रखा गया । बौंकों ने राज्य स्तरीय बैंकर्स समितियों के तंत्र के जरिए वित्तीय समावेश के लिए अपना खाका तैयार किया है तथा बैंकिंग सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए 2000 से अधिक आबादी वाली देश की करीब 74,000 बस्तियों की पहचान की है। मार्च 2000 तक बैंकिंग सेवाओं के विस्तार के लिए ये बस्तियां सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, निजी क्षेत्र के बैंकों और सहकारी बैंकों को आवंटित की गई थी। राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति संयोजक बैंकों से प्राप्त जानकारी के अनुसार अभियान के तहत पहचाने गए 74,398 गांवों में से 74,194 गांवों को बैंकिंग सेवाएं उपलब्ध करा दी गई हैं तथा मार्च 2012 के अंत तक 3 करोड़ 16 लाख वित्तीय समावेश बैंक खाते खोले गए हैं।

इसके अतिरिक्त, बैंकों को व्यवसाय साथी मॉडलों के तहत शामिल गांवों में अति लघु शाखाएं खोलने की सलाह दी गई है जहां बैंक की तरफ से नामित अधिकारी सप्ताह में पूर्वनिर्धारित दिन और समय पर लैप टॉप के साथ उपलब्ध होंगे। व्यवसाय साथी एजेंट रोकड़ सेवाएं उपलब्ध कराएंगे जबकि बैंक अधिकारी बैंक द्वारा पेश अन्य सेवाएं उपलब्ध कराएंगे, फील्ड जांच करेंगे और बैंकिंग लेन-देन का अनुवर्ती निरीक्षण करेंगे।

सरकार ने अक्तूबर 2011 में वित्तीय समावेश के बारे में रणनीति और दिशानिर्देश जारी किए हैं जिनके जरिए बैंकों को यह सलाह दी गई कि बैंक वाले जिलों के तहत 5,000 या अधिक आबादी वाली सभी बस्तियों और अन्य जिलों में 10,000 या अधिक आबादी वाली बस्तियों में सितंबर 2012 तक बैंक शाखाएं खोली जाएं। राज्य स्तरीय बैंकर्स समितियों के संयोजक बैंकों से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार खोली जाने वाली 3,905 बैंक शाखाओं में से अप्रैल, 2012 के आखिर तक 739 बैंक शाखाएं खोली गई हैं।

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को भी इस तरह से शाखा विस्तार योजना तैयार करने की सलाह दी गई कि 2011-12 में बैंक शाखाओं में 10 प्रतिशत वृद्धि और 2012-13 में भी इतनी ही वृद्धि हो। अनंतिम आंकड़ों के अनुसार 2011-12 के दौरान क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों ने 914 शाखाएं खोली हैं।

सरकार के निरंतर प्रयासों से 31 मार्च, 2011 के अनुसार देश में बिना बैंक वाले 71 विकास खंडों में से सभी विकास खंडों में 31 मार्च, 2012 के आखिर तक बैंकिंग सुविधाएं उपलब्ध करा दी गई हैं। अगले कदम के रूप में ऐसे सभी विकास खंडों में व्यवसाय साथी और अति लघु शाखा उपलब्ध कराने की सलाह दी गई है जहां अब तक सिर्फ मोबाइल बैंकिंग  ही उपलब्ध है।

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’निदेशक (मीडिया एवं संचार) , पसूका, वित्त मंत्रालय से प्राप्त जानकारी के आधार पर

 21-जुलाई-2012 21:07 IST  
  

Monday, July 16, 2012

हिन्दू उत्थान परिषद की और से एक और अर्थपूर्ण प्रयास

शहीदों के परिवारों को सम्मानित करने का एलान
लुधियाना: समाज को एक स्वस्थ दिशा देते हुए हिंदू उत्थान परिषद की तरफ से स्वतंत्रता दिवस पर एक और आयोजन किया जा रहा है। इस शुभ अवसर पर भारत माता पूजन व स्वतंत्रता से पूर्व स्वतंत्रता संग्राम व स्वतंत्रता के बाद देश की एकता व अखंडता के लिए प्राण न्यौछावर करने वाले शहीदों को नमन भी किया जायेगा और उनके परिवारों का सम्मान भी होगा। संगठन की तरफ से भारत माता का पूजन करने के लिए राज्य स्तरीय समारोह का आयोजन 15 अगस्त को स्थानीय गुरुनानक देव भवन में होगा। समारोह में शहीदों के परिवारों को विशेष रूप से सम्मानित भी किया जाएगा। उक्त जानकारी हिंदू उत्थान परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष विनोद जैन ने स्थानीय तालाब मंदिर में परिषद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी को संबोधित करते हुए दी। समारोह की तैयारियों की जानकारी देते हुए श्री जैन ने बताया कि कार्यक्रम के प्रबंध सुचारू रुप से चलाने के लिए 11 सदस्यीय कमेटी का गठन भी किया गया है। सुनील खन्ना को कमेटी का संयोजक व सुरेश अग्रवाल व संजय शर्मा को कमेटी का सह संयोजक नियुक्त किया गया है। परिषद के राष्ट्रीय महासचिव कुंवर रंजन सिंह ने बताया कि राज्य स्तरीय समारोह में भारत पूजन के बाद भ्रूण हत्या व नशे की रोकथाम के लिए दो लघु नाटकों का मंचन भी किया जाएगा। समारोह में आजादी से पूर्व व आजादी के बाद देश की एकता व अखंडता के लिए प्राण न्यौछावर करने वाले शहीदों के परिवारों को सम्मानित किया जाएगा। इस अवसर पर कई अन्य विशेष लोगों के साथ साथ विनोद जैन, कुंवर रंजन सिंह, बाल कृष्ण वर्मा, सुनील खन्ना, प्रमोद बाबा, सोहन लाल गर्ग, मुकेश भार्गव, महावीर प्रसाद, राकेश शर्मा, गोपाल कृष्ण शर्मा, ओम प्रकाश वर्मा, देव नारायण, मोहित वर्मा, बिट्टू तिवारी व संतान के कई और  भी सदस्य भी मौजूद थे। गौरतलब है की हिन्दू उत्थान परिषद धर्म शास्त्रों में बताये गए मार्ग पर चलते हुए पूरे समाज को समृद्ध व् शक्तिशाली बनाने के लिए दृढ संकल्प है।

Sunday, July 08, 2012

नींव के पत्थर/देश को बचाने की अल्ख जगाता अन्ना आन्दोलन

लगा हैं इन्हें रोग दौलत का ऐसा, बहन-बेटियों के ये तन बेच देंगे ! 
जन लोकपाल ही बस एक समाधान
नींव के पत्थर आपने बहुत बार देखे होंगें। किसी भी इमरत की स्थिरता और लम्बी आयु इन्हीं पर निर्भर होती है। आज आपसे चर्चा की जा रही है कुछ ऐसे नींव के पत्थरों की जो ज़िन्दगी और मानवता की इमारत  को मजबूत करने के लिए खुद चल कर आ गये हैं बलिदान के रास्ते पर।. न तो यहाँ कोई पद मिला है न ही धन मिलने की सम्भावना और न ही कोई और फायदा। अगर कुछ मिलेगा तो सुबह शाम काम ही काम,, धुप हो या बारिश बस चलते ही जाना,, गर्मी हो या सर्दी अन्ना हजारे का संदेश हर हाल तक घर घर पहुँचाना। पूरे देश को जगाना, भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करना इनका उद्देश्य: 

मेहनत और कामकाज तो ये लोग अपने और अपने परिवार के लिए भी तो कर सकते थे ! क्या मजबूरी आन पड़ी की ये लोग निकल पड़े सारे सुख आराम छोड़ कर। जब लोग एयर कंडीशंड कमरों  में आराम कर रहे होते हैं तो ये लोगो गर्मी की इस कडक धुप में इधर से उधर घूम रहे होते हैं। एक मंजिल से दूसरी मंजिल की तरफ। ये सब लोग पड़े ,  हैं,ज्ञानवान हैं अनुभवी हैं पर इन्हें समझ आ चुकी है कि अगर देश ही लुट जायेगा तो कहाँ बचेगा घर और कहाँ बचेगा परिवार ? देश के आम आदमी को बचाने के लिए, लुटेरों को बेनकाब करके सजा दिलाने के लिए ते लोग निकल पड़े हैं अपना सब कुछ छोड़ कर। इनसे मेरी पहली मुलाकात हुई लुधियाना के एक वरिष्ठ पत्रकार और समाज सेवी विनोद जैन जी के कार्यालय में।.सरदार हरिंद्र सिंह के मार्गदर्शन  में चल रही इस टीम में ललित दीदी भी है,, पवित्र सिंह भी और अशोक पठानिया भी। इन चारो सदस्यों को बस एक ही जनून है की किसी भी तरह देश को बचना है।..जन लोकपाल लाना है। यकीन कीजिये इनसे मिलने के बाद भी आप भी इनके हमराह बन सकते हैं इनकी बातों में जादू है क्यूंकि दिल से जो बात निकलती है असर रखती है, पर नहीं ताकत-ए -परवाज़ मगर रखती है।.यर लोग तो समझ चुके हैं की अगर हम अब भी नहीं चेते तो फिर देश खतरे में है।.एक शायर मयंक जी के शब्दों में गौर कीजिये::
बसेरा है सदियों से शाखों पे जिसकी,
ये वो शाख वाला चमन बेच देंगे।

सदाकत से इनको बिठाया जहाँ पर,
ये वो देश की अंजुमन बेच देंगे।

लिबासों में मीनों के मोटे मगर हैं,
समन्दर की ये मौज-ए-जन बेच देंगे।

सफीना टिका आब-ए-दरिया पे जिसकी,
ये दरिया-ए गंग-औ-जमुन बेच देंगे।

जो कोह और सहरा बने सन्तरी हैं,
ये उनके दिलों का अमन बेच देंगे।

जो उस्तादी अहद-ए-कुहन हिन्द का है,
वतन का ये नक्श-ए-कुहन बेच देंगे।

लगा हैं इन्हें रोग दौलत का ऐसा,
बहन-बेटियों के ये तन बेच दें
 
इस पोस्ट पर भी आपके विचारों की इंतजार तो बनी रहेगी। आप अन्ना से सहमत न भी हों तो अपने विरोध विचारों को भी भेजिए तांकि स्वस्थ बहस हो सके और आशंका भी दूर हो सके। --रेक्टर कथूरिया। 

पटियाला में अन्ना की आंधी   

Friday, July 06, 2012

पटियाला में भी अन्ना की आंधी

भर्ष्टाचार ही है महंगाई का प्रमुख कारण:केजरीवाल
लुधियाना के पत्रकारों ने भी रखा अन्ना टीम के सामने दिल का दर्द
पटियाला: देश की खस्ता हाल आर्थिकता के कारणों को परत दर परत कुरेदते हुए अन्ना टीम ने पटियाला वासियों को भी एक बार फिर अन्ना के रंग में रंग दिया।. तकरीबन सभी वक्ता समय की पाबंदी का ध्यान रख रहे थे।अन्ना हजारे टीम की कोर कमेटी के सदस्य अरविंद केजरीवाल ने यूपीए  सरकार को आड़े हाथों लेते हुए साफ साफ कहा कि देश में बढ़ती महंगाई का मुख्य कारण मंत्रियों का भ्रष्टाचार है। इन भ्रष्ट मंत्रियों के कारण ही देश के सभी वर्गों में भ्रष्टाचार फ़ैल चूका है। पटियाला की राजपुरा रोड पर स्थित कोहिनूर पैलेस में बहुत ही सादगी और सहजता से हुए कार्यक्रम में शायर श्नाज़ हिन्दुस्तानी ने एक ऐसा रंग बाँध रखा था की मर्मिक्षब्दों में देश की व्यथा सुन कर कभी तो लोग रो देते और कभी ताल से ताल मिलाते हुए पूरी लय से ताली बजाने  लगते।.लगता था कि ये लोग संगीत की सुरों के विशेषज्ञ हों। लोग कम थे पर अनुशासित और ध्यान मगन थे। शायद इस लिए कि इन्हें कहीं से भी भाड़े पर ढो कर नहीं लाया गया था। देश का दर्द और अन्ना का प्यार इन्हें तेज़ धुप और सख्त गर्मी में भी यहाँ खींच लाया था।.इन लोगों को केजरीवाल बहुत ही सादे से शब्दों में देश के बिगड़ चुके अर्थ तन्त्र की बारीकियां समझा रहे थे। उन्होंने कहा::अगर भ्रष्टाचार रुक जाए तो देश का विकास हो सकता है। शूगर की बीमारी होने के कारण अपनी जान को खतरे में दाल कर भी अन्ना के विचारों की अंधी को हर गली मोहल्ले तक पहुँचाने में लगे श्री अरविंद केजरीवाल को जब पगड़ी बाँधी गयी तो शायर शहनाज़  हिन्दुस्तानी बोले मुझे ते मंच पर बैठे सभी लोग भगत सिंह लग रहे हैं। इस अवसर पर श्री कह्रिवाल की धर्म पत्नी भी उनके साथ थी। गुरुवार को जनलोकपाल बिल के लिए लोगों का समर्थन जुटाने के लिए इस कार्यक्रम का आयोजन पटियाला में इंडिया अगेन्स्ट करप्शन संस्था द्वारा लिया गया था। उन्होंने कहा केंद्र सरकार का वार्षिक बजट 14 लाख करोड़ व राज्य सरकारों का 10 लाख करोड़ है जिनको मिलाकर 24 लाख करोड़ रुपये बनता है। आंकड़ों को और विस्तार में बताते हुए 24 लाख करोड़ में से अगर 5 प्रतिशत राशि भ्रष्टाचार में खर्च हो रही मानी जाए तो वो सरकार द्वारा पेट्रोल पर वसूले जा रहे टैक्स से कहीं अधिक है। ऐसे में पेट्रोल पर लगा 33 रुपये प्रति लीटर टैक्स कम हो सकता है। कार्यक्रम में मौजूद कुमार विश्वास ने कहा कि वह अन्ना हजारे की टीम के साथ अपने लिए व अपने देश को भ्रष्टाचार से मुक्त करवाने के लिए जुड़े हैं। कुमार विश्वास ने कहा कि देश वासियों को देश की बागडोर विदेशी महिला के पुत्र के हाथों में नहीं सौंपना चाहिए। कमेटी के सदस्य संजय सिंह ने कहा कि अन्ना हजारे का संघर्ष देश की आजादी की दूसरी लड़ाई है। लिहाजा युवा शहरों व गांवों में जाकर संघर्ष के साथ दूसरों को जोड़ें। इससे अभियान को जन जन तक पहुंचाया जा सकेगा ताकि सरकार जन लोकपाल बिल को लाने में मजबूर हो जाए। समारोह को सफल बनाने में  डा. धर्मवीर गांधी, कुंदन गोगिया, जरनैल सिंह मनु, हरिंदर सिंह, ललित दीदी पवित्र सिंह  राजवीर बठिंडा, जसवीर गांधी, कैप्टन बलजीत सिंह और विनोद जैन (लुधियाना) का सरगर्म सहयोग रहा। 
इस अवसर पर लुधियाना से गए पत्रकारों ने हिन्दू य्त्थान परिषद के नेता विनोद जैन के नेतुर्त्व में अन्ना टीम के सामने  अपने दिल का दर्द भी रखा।. इन पत्रकारों का कहना है ली वे भर्ष्टाचार के खिलाफ रहते हैं इसलिए लुधियाना के एक अधिकारी ने उन्हें सरेआम ब्लैकलिस्ट करके वह सूची मीडीया को भी जारी कर दी।. पत्रकारों का कहना है की अगर सबंधित अधिकारी ने इस मामले में क्षमा नहीं मांगी तो पत्रकार भी अपना जवाबी अभियान तेज़ करने पर मजबूर होंगें।. गौरतलब है कि  ब्लैकमेलिंग का आरोप लगने के पत्रकार संगठनों ने एक जवाबी अभियान शुरू किया है जिसमें अधिकारी वर्ग की और से किये जा रहे घोटालों को बेनकाब करने में तेज़ी लायी जा रही है।. अन्ना टीम ने कहा है इस मामले की जांच के बाद ही वह इस पर कुछ ख सकेंगे।.--रेक्टर कथूरिया 

सबंधित रचनायें।..अवश्य देखें  
क्रांति आकर रहेगी

 नींव के पत्थर/देश को बचाने की अल्ख जगाता अन्ना आन्दोलन

Wednesday, July 04, 2012

मुठभेड़ पर सवाल//दैनिक ट्रिब्यून का सम्पादकीय

सीआरपीएफ की मुठभेड़ में 20 लोगों की मौत पर विवाद
छत्तीसगढ़ के बीजापुर जनपद में सीआरपीएफ की मुठभेड़ में 20 लोगों की मौत पर उठे विवाद ने अर्धसैनिक बलों की भूमिका पर एक बार फिर सवाल खड़े किये हैं। एक ओर जहां केंद्रीय गृहमंत्री ने सुरक्षा बलों की पीठ थपथपायी है वहीं मामले की जांच के लिए बनी समिति में राज्य के कांग्रेस अध्यक्ष व एक केंद्रीय मंत्री भी शामिल हैं। कहा जा रहा है कि फसल की तैयारी के लिए हो रही बैठक में शामिल ग्रामीण, महिला व बच्चों को अर्धसैनिक बलों ने निशाना बनाया। मरने वालों में एक लड़की भी शामिल है। सीआरपीएफ दावा कर रही है कि नक्सली ढाल के रूप में महिला व बच्चों को इस्तेमाल कर रहे हैं। सवाल यह भी उठाया जा रहा है कि इतनी बड़ी मुठभेड़ के बाद जटिल भौगोलिक परिस्थिति वाले इलाके में एक भी सुरक्षा बल जवान का हताहत न होना बताता है कि मुठभेड़ में शिकार लोगों की ओर से कोई प्रतिरोध सामने नहीं आया। हालांकि बीजापुर मुठभेड़ की हकीकत सामने लाने के लिए सामाजिक कार्यकर्ताओं और माकपा ने दिल्ली में आंदोलन किया। दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र सच्चर ने 29 जून की मुठभेड़ को फर्जी बताते हुए सुप्रीम कोर्ट से मामले की जांच कराने की मांग की है। सच्चर आरोप लगाते हैं कि आदिवासी फसल बोने से पहले अपने रीति-रिवाजों के अनुसार भूमि-पूजन की तैयारी कर रहे थे। उधर, कांग्रेस राज्य के गृहमंत्री के उस बयान को मुद्दा बना रही है जिसमें उन्होंने कहा कि नक्सलियों की मदद करने वाले ग्रामीणों को मार गिराया जायेगा। इस मामले की जांच के लिए कांग्रेस की राज्य इकाई ने बारह सदस्यीय कमेटी भी गठित की है।
इसमें दो राय नहीं कि बीजापुर के इस इलाके में नक्सलवादियों की खासी सक्रियता है लेकिन यह कहना कि इलाके का हर ग्रामीण नक्सलवादी है, तर्कसंगत नजर नहीं आता। माना कि कुछ लोग सशस्त्र प्रतिरोध के जरिये कानून-व्यवस्था को चुनौती दे रहे हैं लेकिन इसके चलते सुरक्षा बलों को इसका अधिकार नहीं मिल जाता कि बीस लोगों को गोलियों से भून दें। उन्हें आत्मसमर्पण के लिए भी बाध्य किया जा सकता था और देश की कानून व्यवस्था के तहत दोषी पाये जाने पर दंडित किया जा सकता था। ऐसे मामलों पर यदि मानवाधिकार संगठन संज्ञान लेते हैं तो शासन-प्रशासन को उनकी बात सुननी चाहिए। राज्य के मुख्यमंत्री दलील दे रहे हैं कि नक्सली महिला व बच्चों को ढाल की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं तो दोनों तरफ से पिसने वालों की मदद या रक्षा कौन करेगा? विगत में भी फर्जी मुठभेड़ों पर देश के सर्वोच्च न्यायालय ने गंभीर टिप्पणियां की हैं। बहरहाल, नक्सलवादियों के नाम पर निहत्थे व निर्दोष लोगों को गोलियों का शिकार बनाने की इजाजत तो नहीं दी जा सकती। अकसर देखा गया है कि केंद्रीय सुरक्षा बलों को न तो स्थानीय जटिल भौगोलिक परिस्थितियों की जानकारी होती है और न ही स्थानीय पुलिस से बेहतर तालमेल। इसके चलते निर्दोष लोगों के शिकार बनने की संभावना बनी रहती है। मुठभेड़ में जिन बड़े नक्सली नेताओं को मारने की बात सीआरपीएफ कर रही थी, उनके बारे में स्थानीय पुलिस व सीआरपीएफ स्पष्ट कहने की स्थिति में नहीं हैं। ऐसा लगता है कि वे बचाव की मुद्रा में हैं। जब सीआरपीएफ मामले में आंतरिक विभागीय जांच की बात कर रही है तो इसके मायने यह हैं कि उसे मुठभेड़ की वास्तविकता पर संदेह है। ऐसे मामलों से स्थानीय लोगों में सुरक्षा बलों के प्रति विश्वास खत्म होता है, जिसका फायदा नक्सली उठाते हैं।

Monday, July 02, 2012

हरित अर्थ व्यवस्था

पर्यावरण पर भी विशेष                                                                   *एम.वी.एस. प्रसाद
विश्व पर्यावरण दिवस हर वर्ष 5 जून को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य पर्यावरण से संबंधित मामलों के बारे में विश्व में जागरूकता पैदा करना और इसके प्रति राजनीतिक ध्यान आकर्षित करना और कार्यवाई को प्रोत्साहित करना है। अतीत में आयोजित विश्व पर्यावरण दिवस विषयक समारोहों में भूमि और जल, ओजोन परत, जलवायु परिवर्तन, मरूस्थलीकरण और टीकाऊ विकास आदि के प्रति विशेष ध्यान आकृष्ट करना शामिल है।

विश्व पर्यावरण दिवस संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1972 में स्थापित किया गया था। यह स्टाकहोम में मानवीय पर्यावरण पर आयोजित सम्मेलन के उद्घाटन के उपलक्ष्य में घोषित किया गया था। सन् 2012, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम और विश्व पर्यावरण दिवस की 40वीं वर्षगांठ है। साथ ही, ब्राजील में टीकाऊ विकास पर हुए प्रथम संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (पृथ्वी शिखर सम्मेलन) को अब 20 वर्ष पूरे हो गए हैं।

विश्व पर्यावरण दिवस क्यों मनाएं

     जब हम जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों और पर्यावरण में गिरावट देखते हैं तो उसके लिए आसानी से अन्य लोगों को दोष देने लगते हैं। जैसा कि पर्यावरण संबंधी नीति को प्राथमिकता न देना; कार्पोरेट संगठनों को ग्रीन हाऊस गैस उत्सर्जन जैसे मामले उठाने के लिए; पर्यावरण के लिए जोरदार आवाज न उठाने के लिए गैर सरकारी सगंठनों को; और कोई कार्यवाही न करने के लिए व्यक्ति विशेष को आदि। तथापि, विश्व पर्यावरण दिवस एक ऐसा दिन है जब हमें अपने मतभेदों को भुलाकर पर्यावरण सुरक्षा के क्षेत्र में प्राप्त उपलब्धियों को मनाना चाहिए।

    विश्व पर्यावरण दिवस मना कर हम अपने आपको और अन्य लोगों को पर्यावरण की देखरेख के महत्व की याद दिलाते हैं। पर्यावरण दिवस समूचे विश्व में अनेक प्रकार से मनाया जाता है जैसे रैलियां, साइकिल यात्रा परेड, हरित संगीत समारोह, स्कूलों में निबंध और विज्ञापन प्रतियोगिताओं का आयोजन, वृक्षारोपण, चीजों को फिर से प्रयोग में लाने के प्रयास, स्वच्छता अभियान आदि। सन् 2012 के लिए विश्व पर्यावरण दिवस का विषय है- हरित अर्थ व्यवस्था : क्या आप इसमें शामिल हैं?

    सरलतम शब्दों में हरित अर्थ व्यवस्था वह है जिसमें कार्बन उत्सर्जन कम हो, संसाधन कुशल हो और सामाजिक रूप में समग्र हो। व्यवहारिक रूप में हरित अर्थ व्यवस्था वह है जिसका आय और रोजगार का विकास ऐसे सार्वजनिक और निजी निवेश से संचालित हो जो कार्बन उत्सर्जन और प्रदूषण कम करें, ऊर्जा और संसाधन कुशलता बढ़ाएं और जैव विविधता तथा परिस्थितिकी प्रणालियों के नुकसान को रोकें। यदि हरित अर्थ व्यवस्था, सामाजिक समानता और समग्रता के बारे में है तो तकनीकी रूप में यह सब हमारे बारे में है।

    हरित अर्थ व्यवस्था हमारे जीवन के लगभग सभी पहलुओं को छूती है और हमारे विकास के बारे में है। यह टिकाऊ ऊर्जा, हरित रोजगार, निम्न कार्बन अर्थ व्यवस्थाओं, हरित नीतियों, हरित भवनों, कृषि, मत्स्य पालन, वानिकी, उद्योग, ऊर्जा कौशल, टिकाऊ पर्यटन, टिकाऊ परिवहन, कचरा प्रबंधन, जल कौशल और अन्य सभी संसाधनों की कुशलता। ये सभी कारक हरित अर्थ व्यवस्था के सफलतापूर्ण कार्यान्वयन से संबद्ध हैं।

    विश्व आज एक बड़े संकट का सामना कर रहा है और हाल के वर्षों में हमने वैश्विक वित्तीय संकट, अनाज संकट, तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव, परिस्थितिकरण व्यवस्था की गिरावट और जलवायु परिवर्तन में असाधारण परिवर्तन के समन्वय को देखा है। एक-दूसरे से संबद्ध ये संकट मानव जाति की इस ग्रह पर शांतिपूर्ण और निरंतर रहने की योग्यता के लिए चुनौती हैं और इसके प्रति विश्व की सरकारों और नागरिकों को तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि जैसे-जैसे विश्व के देश गंभीर आर्थिक मंदी से उबर रहे हैं, यह हरित अर्थ व्यवस्था की आवश्यकता पर जोर दे रहे हैं।

क्या किया जा सकता है? 

भवन
निर्माण और भवन,  संसाधनों और जलवायु को काफी नुकसान पहुंचाते हैं। ऊर्जा की बचत के इस नुकसान को कम किया जा सकता है।

मत्‍स्‍य पालन
    विश्‍व के अनेक भागों में मछलियों के अत्‍यधिक दोहन से मछलियों के भावी भंडारों के समाप्‍त होने का खतरा है। हम मछली पकड़ने के टिकाऊ प्रणालियों को बढ़ावा देकर इस खतरे को टाल सकते हैं।  इसलिए टिकाऊ समुद्री खाद्य पदार्थों का दोहन करना चाहिए।

वानिकी
    वनों के कटाव से विश्‍व में ग्रीन हाउस गैस  के 20 प्रतिशत तक उत्‍सर्जन होता है।  वनों के टिकाऊ प्रबंधन से पर्यावरण और जलवायु को नुकसान पहुंचाए बिना समुदायों और पारिस्‍थितिकीय प्रणालियों का समर्थन जारी रखा जा सकता है।  कागज के उत्‍पादों की मांग को कम करने के लिए इलैक्‍ट्रॉनिक फाइलों को प्रयोग में लाएं। जब आप वनों के  प्रमाणित, टिकाऊ उत्‍पादों का समर्थन करते हैं तो एक प्रकार से आप स्‍वस्‍थ पर्यावरण और टिकाऊ आजीविका का समर्थन करते हैं।  

परिवहन
    अपनी कार में अकेले यात्रा करना पर्यावरण की दृष्टि से उचित नहीं है आर्थिक रूप से भी यह अकुशल है। कार को आपस में मिलकर प्रयोग में लाने से अथवा सार्वजनिक परिवहन में यात्रा करने से पर्यावरण के प्रभाव कम होते हैं और आर्थिक रूप से भी किफायती होने के साथ-साथ यह समाज को भी सुदृढ़ करता है। थोड़ी दूरी तक जाने के लिए पैदल चलना अथवा साइकिल की सवारी करना आपके स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी अच्छा है। जब आप सामान लाने ले जाने के वैकल्पिक तरीकों को अपनाते हैं तो परिवहन क्षेत्र में आप हरित अर्थ व्यवस्था का समर्थन करते हैं।

जल
    विश्व में अरबों लोगों को पीने का स्वच्छ पानी अथवा स्वच्छता की उन्नत सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं और जनसंख्या वृद्धि इस समस्या को और भी जटिल बना देती है। पानी का समझदारी से प्रयोग जैसे छोटे-छोटे उपाय इस अमूल्य संसाधन की बचत करने में सहायक हो सकते हैं। जब आप इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं तो पानी के नल को बंद कर दें, अपनी वाशिंग मशीन का उस समय तक प्रयोग न करें जब तक आपके पास धोने के लिए पूरे कपड़े न हो जाएं, नहाते समय फव्वारे का प्रयोग सीमित समय तक करें और वर्षा होने के तुरंत बाद अपने आँगन (लॉन) को न सीचें। संसाधनों का कुशलता पूर्वक प्रयोग हरित अर्थ व्यवस्था की कुंजी है और जल हमारे सर्वाधिक महत्वपूर्ण संसाधनों में से एक है।

कृषि
    विश्व की जनसंख्या 7 बिलियन है और सन् 2050 तक यह 9 बिलियन से भी बढ़ जाएगी। इसका अर्थ हुआ पहले से भीड़ भाड़ वाले शहरों पर और अधिक दबाव। इन शहरों में अब हमारे आधे से भी अधिक लोग रहते हैं और इसका प्राकृतिक संसाधनों पर भी दबाव बढ़ेगा, क्योंकि आबादी के बढ़ने के साथ-साथ अनाज, पानी और बिजली की मांग भी बढ़ेगी। इसलिए, समय आ गया है कि प्रत्येक व्यक्ति को भोजन उपलब्ध कराने की अपनी योग्यता सुनिश्चित करने के लिए टिकाऊ कृषि का समर्थन करें। अपनी सब्जियां उगाएं और किसानों के स्थानीय बाजारों से खरीदारी करें। जब आप स्थानीय, आर्गेनिक और टिकाऊ खाद्य उत्पाद खरीदते हैं तो आप उत्पादकों को यह संदेश भेजते हैं कि आप कृषि के लिए हरित अर्थ व्यवस्था का समर्थन करते हैं।

ऊर्जा
    ऊर्जा के वर्तमान मुख्य स्रोत जैसे तेल, कोयला और गैस आदि न केवल स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए हानिकारक है। वे ऊर्जा की बढ़ती हुई आवश्यकताओं के जगत में टिकाऊ भी नहीं हैं। आप ऐसे कारोबार और उत्पादों में निवेश करके स्वच्छ, अक्षय ऊर्जा के विकास का समर्थन कर सकते हैं। ऊर्जा की व्यक्तिगत किफायत में सुधार के उपायों पर विचार करते हुए हम अक्षय ऊर्जा को अपनाने के लिए काम कर सकते हैं। जब आप प्रयोग में नहीं ला रहे हैं तो बत्तियां बुझा दीजिए और उपकरणों के पलग हटा दीजिए।

कचरा
    बचे हुए सामान को फिर से काम में लाने योग्य बनाने और बचे हुए भोजन का कम्पोस्ट तैयार करने से हमारे प्राकृतिक संसाधनों की मांग को कम किया जा सकता है।

    पर्यावरण और टिकाऊ विकास के इस महत्वपूर्ण वर्ष में विश्व के नेता 1992 में रियो डी जनेरियो में हुए ऐतिहासिक पृथ्वी शिखर सम्मेलन के 20 वर्ष बाद अब फिर संयुक्त राष्ट्र के टिकाऊ विकास संबंधी शिखर सम्मेलन में मिलेंगे।

    टिकाऊपन, विकास के सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय आयामों को संतुलित करके सभी के लिए एक अवसर प्रदान करना है। हमें इस धारणा को गलत सिद्ध करना है कि आर्थिक स्वास्थ्य और पर्यावरण के बीच विरोधाभास है। सही नीतियों और सही निवेश अपना कर हम अपने पर्यावरण की सुरक्षा कर सकते हैं, अर्थव्यवस्था में सुधार ला सकते हैं, रोजगार के अवसर पैदा कर सकते हैं और सामाजिक प्रगति को गति प्रदान कर सकते हैं।

    हरित अर्थ व्यवस्था में टिकाऊ विकास प्राप्त करने और असाधारण रूप से गरीबी समाप्त करने की क्षमता है। विश्व के नेताओं, सिविल सोसायटी और उद्योग को इस परिवर्तन के लिए सहयोग से काम करने की आवश्यकता है। संपदा, समृद्धि और खुशहाली के परम्परागत उपायों पर पुनर्विचार करने और पुन: परिभाषित करने के लिए नीति-निर्माताओं और नागरिकों को निरंतर प्रयास करना चाहिए।  (पीआईबी) 05-जून-2012 16:23 IST**

* संयुक्त निदेशक, पसूका, चेन्नई

यादें: वो भी क्या दिन थे

एशियन क्लब की सफलता के पीछे छुपा सुखमिंदर 
पंजाब केसरी से साभार
मुझे याद है उन दिनों हालात अछे नहीं थे। गोली का माहौल था। सुबह घर से निकलते वक्त पता नहीं होता था की रात को लौटना होगा या नहीं। उन दिनों मेरी मुलाकात एक ऐसे युवा से हुयी जो उन दिनों भी मस्त था. सारे हालात की पूरी पूरी खबर रखते हुए भी एक तरह हालात से बेखबर वह अपनी ही धुन में मस्त रहता। कभी गीत संगीत, कभी कोई समाज सेवा और कभी इसी तरह का कुछ एनी कार्यक्रम। यह युवक था सुखमिंदर सिंह। पुलिस विभाग की सभी खबरें मीडीया को यही युवक प्रदान करता। डी आई जी  के पी आर ओ की ज़िम्मेदारी वह बाखूबी निभाता रहा। एक दिन उसने एशियन क्लब की स्थापना का एलान किया। हमें कुछ अजीब सा लगा। इतने बड़े बैनर का क्लब चलाना कोई बच्चों का खेल थोड़े था। पर अपनी धुन में मस्त वह मुश्किल को पार करता रहा। संकट या रूकावट की बात को वह हंस कर ताल देता जैसे कुछ सुना ही न हो। बाद में दैनिक जागरण पंजाब में आया तो हम लोगों ने दैनिक जागरण के  स्टाफर के तौर पर भी कार्य किया। हम एक तरह से दैनिक जागरण पंजाब स्न्स्कर्ण के फाऊँडर स्टाफर थे। अब तो यह अख़बार पंजाब में सफलता से निकल रहा है लेकिन वे दिन बहुत मुश्किलों से भरे थे। हम जहाँ भी कहीं जाते तो अफसर और नेता लोग हमें मुस्कराते हुए पूछते जी जगराता करा रहे हो क्या ? अब तो इसी अख़बार में बहुत से नए लोग आ चुके हैं और उन्हें शायद उन लोगों की कोई याद नहीं होगी जो एक तरह से नींव का पत्थर बन कर काम करते रहे। बाद में यही युवक इलेक्ट्रानिक मीडीया की तरफ मुड गया। आज भी वह सहारा समय के लिए सफलता से काम कर रहा है। इसके साथ साथ ज्योतिष पर भी उसकी पकड़ लगातार बढ़ रही है। अब उसका ज्यादा समय गीत संगीत की बजाये मेडिटेशन, साधना और लोगों को उपाय बताने में गुजरता है। ज्योतिष की लगन और टीवी चैनल के लिए काम करते वक्र बहुत कुछ छूट गया पर एशियन क्लब के लिए वह अब भी समय निकालता है। साथसाथ समाज सेवा के अवसर को भी वह हाथ से जाने नहीं देता। आज के युग में जब सारा सारा दिन व्यर्थ की गप्पें हांकने वाले यह कहते नहीं थकते कि बस जी समय ही नहीं मिला।भने बाज़ी के इस युग में भी सुखमिंदर सचमुच व्यस्त होने के बावजूद समय निकाल लेता है केवल अपने दोस्तों के लिए नहीं बल्कि उन आम लोगों के लिए भी जो उसके लिए अक्सर अन्जान होते हैं। मैं नहीं कर रहा दिल से अपने आप दुया निकल रही है ऐसे मित्र की सफलता के लिए। -- -रेक्टर कथूरिया  

धर्म कर्म में लगे लोग

आज के स्वार्थ भरे युग में जहाँ एक ओर भाई भाई का गला काटने से भी संकोच नहीं करता वहीँ पर कुछ लोग ऐसे भी हैं जो भारतीय संस्कृति और धर्म व नैतिकता के मार्ग पर चल रहे हैं। इस तरह के कुछ लोगों ने इसी तरह के मकसद के लिए एक विशेष आयोजन किया जहाँ 75 जरूरतमन्द महिलायों को राशन देकर राहत प्रदान की गयी। कार्यक्रम में आयोज्कोमं और प्रबंधकों के साथ साथ विहिप पंजाब के प्रमुख रविन्द्र अरोड़ा, महिला  कांग्रेस पंजाब  हेमू स्ग्ग्द और सिटीजन काउन्सिल के जाने माने समाज सेवी दर्शन अरोड़ा भी मौजूद थे।

श्रावण 4 जुलाई से

श्रावण में करें ज्योतिर्लिंगाराधना      --गोपालजी गुप्त
भारत के आध्यात्मिक चिन्तन में श्रावण का महीना माहेश्वर शिव को अतिशय प्रिय है तभी तो इसी माह में चारों ओर का परिवेश शिवमय हो उठता है। संपूर्ण ब्रह्माण्ड तथा लघु रह्माण्ड रूपी मानव शरीर पंच महाभूत तत्व (क्षिति, जल, पावक, गगन, समीर) से निर्मित माना गया है। भारतीय परम्परा में इन पांच भूत तत्वों के  मंदिर मात्र दक्षिण भारत में हैं—शिवाकॉची (चेन्नई) में एकाम्बरनाथ या एकाम्रेश्वर (पृथ्वी तत्व), त्रिचनापल्ली में जम्बुकेश्वर (जल तत्व), तिरुवणमलै में अरुणाचलेश्वर (अग्नि तत्व), तिरुमलैया तिरुपतिबाला से थोड़ी दूर उत्तर स्थित कालाहस्ती में कालहस्तीश्वर (वायु तत्व), सागर से 5 किलोमीटर दूर कावेरी तट पर चिदम्बरम् (आकाश तत्व)—इसी के प्रतीक रूप शिव के 5 मुख दिखाये जाते हैं। अत: मात्र शिवोपासना से पंचमहाभूत तत्वोपासना का भाव समाहित हो जाता है।
लिंग शब्द मात्र शिव के साथ संयुक्त है किसी अन्य देवता के साथ नहीं। यहां लिंग शब्द शिश्न का भाव प्रदर्शित नहीं करता अपितु इसका आशय है चिन्ह, अभिज्ञान। लिंग की व्युत्पत्ति शास्त्रों में लीनमर्थं गमयतीति लिङ्गम् से की गई है जिसका आशय है सम्पूर्ण सृष्टि प्रलय काल में जिसमें लीन हो जाती है वही लिंग है। स्कन्द पुराणानुसार आकाश लिंग है पृथ्वी उसकी पीढिका तथा समस्त देवताओं का वासस्थल, इसी में सब लीन हो जाते हैं/सब का लय होता है। इसी से इसे लिंग कहते हैं। लिंग पुराणानुसार लिंग के मूल भाग में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु, सबसे ऊपरी भाग में शिव विराजते हैं। लिंग की वेदिका महादेवी तथा लिंग महेश्वर हैं। अत: मात्र शिवलिंग पूजन से सभी देवी-देवताओं की पूजा सम्पन्न हो जाती है।
वैसे तो सम्पूर्ण भारत में सर्वाधिक शिवलिंग के मंदिर मिलते हैं किंतु शिवपुराण (कोटिरुद्र संहिता-1/21-24) के अनुसार भारत में कुछ विशिष्ट स्थानों पर साधकों को सिद्धि प्रदान करने वाले ज्योतिर्लिंग तथा उनके उपज्योतिर्लिंग विद्यमान हैं जिनके प्रात: नाम स्मरण मात्र से सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं तथा जिनके दर्शन से समस्त पाप क्षय होता है। श्रावण मास में तो वहां पर विशिष्ट मेले—आयोजन भी होते हैं। ज्योतिर्लिंगों की संख्या 12 है तथा प्रत्येक के एक उपज्योतिर्लिंग भी है जिनका विवरण निम्रवत् हैं:—
1. सोमनाथ—यह ज्योतिर्लिंग सौराष्ट्र के काठियावाड़ के प्रभास क्षेत्र में स्थित है। इनका उपज्योतिर्लिंग ‘अन्तकेश्वरÓ महीनदी तथा सागर के संगम पर स्थित है।
2. मल्लिकार्जुन—तमिलनाडु के कृष्णानगर में कृष्णानदी के किनारे श्रीशैल पर स्थित है। भृगुकक्ष क्षेत्र में रुद्रेश्वर नाम से इनका उपज्योतिर्लिंग है।
3. महाकालेश्वर/महाकाल—मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र-उज्जैन, जिसका पुराना नाम अवन्तीपुर था, के क्षिप्रानदी तट पर स्थित है। नर्मदानदी के तट पर दूधनाथ या दुग्धेश्वर के नाम से उपज्योतिर्लिंग विद्यमान है।
4. ओंकारेश्वर—मालवा क्षेत्र में ही नर्मदानदी तट पर ओंकारेश्वर तथा अमलेश्वर नामक दो शिवलिंग मिलते हैं जो एक ही लिंग के दो पृथक स्वरूप माने जाते हैं। विन्दुसरोवर तट पर कर्मदेश्वर नामक उपज्योतिर्लिंग स्थित है।
5. केदारेश्वर/केदारनाथ—उत्तराखंड में उत्तरकाशी में मंदाकिनी नदी के किनारे-हिमालय के केदार शिखर पर स्थित है। यमुनानदी के तट पर भूतेश्वर नामक उपज्योतिर्लिंग विद्यमान है।
6. भीमशंकर—महाराष्ट्र में मुंबई से पूर्व दिशा तथा पुणे से उत्तर भीमा नदी के किनारे सह्यात्र पर्वत पर स्थित है। इसे मतान्तर से दो अन्य स्थान पर भी माना जाता है। उत्तराखंड के नैनीताल के उज्जनक नामक स्थान पर स्थित भीमशंकर मंदिर तथा असोम के गुवाहाटी के ब्रह्मपुर पर्वत पर स्थित मंदिर। सह्यïपर्वत पर भीमेश्वर उप ज्योतिर्लिंग विद्यमान है।
7. विश्वनाथ मंदिर—उत्तर प्रदेश के वाराणसी का काशीविश्वनाथ मंदिर।
8. त्र्यम्बकेश्वर—नासिक के पंचवटी से लगभग 28 किलोमीटर दूर गोदावरी नदी के किनारे ब्रह्मगिरी पर्वत पर स्थित है।
9. वैद्यनाथ धाम/वैद्यनाथ—झारखंड के दुमका नामक जनपद में स्थित है। इसे चिताभूमि भी कहते हैं। मतान्तर से आंधप्रदेश के हैदराबाद के परलीगांव में इसे स्थित मानते हैं।
10. नागेश्वर/नागेश—गुजरात के बड़ोदरा के दारुक वन में स्थित है। मतान्तर से हैदराबाद के औढ़ाग्राम का शिवलिंग तथा अल्मोड़ा का जोगेश्वर शिवलिंग को भी मानते हैं। भूतेश्वर नामक उपज्योतिर्लिंग मल्लिका सरस्वती तट पर स्थित है।
11. रामेश्वरम् (सेतुबंध)—तमिलनाडु के रामनाथन जनपद में सागर किनारे है। गुप्तेश्वर को इनका उपज्योतिर्लिंग कहा गया है।
12. घुष्मेश्वर/घृष्णेश्वर—हैदराबाद के दौलताबाद से 19 किलोमीटर दूर बेरूल गांव में स्थित है। व्याघ्रेश्वर को इनका उपज्योतिर्लिंग मानते हैं।
शिवपुराण (शतरुद्र संहिता-द्वितीय अध्याय) में शिव को अष्टमूर्ति कहकर उनके आठ रूपों शर्व, भव, रुद्र, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान, महादेव का उल्लेख है। शिव की इन अष्ट मूर्तियों द्वारा पांच महाभूत तत्व, ईशान (सूर्य), महादेव (चंद्र), क्षेत्रज्ञ (जीव) अधिष्ठित हैं। चराचर विश्व को धारण करना (भव), जगत के बाहर भीतर वर्तमान रह स्पन्दित होना (उग्र), आकाशात्मक रूप (भीम), समस्त क्षेत्रों के जीवों का पापनाशक (पशुपति), जगत का प्रकाशक सूर्य (ईशान), धुलोक में भ्रमण कर सबको आह्लाद देना (महादेव) रूप है। शिवपुराण (वायवीय संहिता-पूर्वखंड द्वितीयाध्याय) में समस्त जीव को पशु तथा उनके कल्याणकर्ता को पशुपतिनाथ कहा गया है, यही पशुपतिनाथ शिव हैं। शिव के इस अष्टमूर्ति उपासना से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की पूजा हो जाती है।
चूकि सूर्य तथा शिव एक ही हैं अत: सूर्य के सभी मंदिर भी शिवालय हैं। चंद्रमा का मंदिर नहीं मिलता किंतु इनके पर्याय सोम का सोमनाथ मंदिर तथा बांग्लादेश के चटगांव का चंद्रनाथ क्षेत्र मंदिर चंद्र रूप में  उपास्य है। पशुपतिनाथ मंदिर नेपाल के काठमाण्डू में है। वैसे भगवान शिव की प्रसन्नता हेतु उनके पंचाक्षरी (नम: शिवाय) के स्तोत्र मंत्र का जाप कर साधक शिवमय होता है. (दैनिक ट्रिब्यून से साभार)

कहानी घर घर की के अंतर्गत एक ख़ास मुलाकात

जनाब अगर आपको खाने पीने की हर चीज़ घर में ही हर पल तैयार मिलने लगे तो क्या बनेगा होटल वालों का, क्या होगा ढाबा चलाने वालों का और सडक किनारे तरह तरह का माल बेचने वालों का / आप उनका ध्यान भले ही भूल जायें पर आपकी पत्नियाँ उनका भी ध्यान रखती हैं। आखिर वे लोग भी तो समाज का ही हिस्सा हैं। अगर उनमें निराशा या क्रोध पनपा तो इसका खामियाजा भी तो समाज को ही भुगतना पड़ेगा न. इस लिए कभी कभी पत्नियाँ कुछ ऐसा भी करती हैं की उन्हें कुछ फायदा हो जाये। अगर आप अभी भी नहीं सक्झे तो इस तस्वीर में प्रकाशित पंक्तियों को जरा ध्यान से पढिये।
अगर आप परिणाम अपनी मर्जी का चाहते हैं तो फिर देर मत लगायें और कर लीजिये होम साइंस या कुकिंग का कोर्स। पत्नी की मदद के बहाने आपके भी सभी स्वाद पूरे हो हया करेंगे। हैं न फायदे की बात !। 

Sunday, July 01, 2012

ब्लैकमेलिंग के आरोपों का मामला और गरमाया

जेपीसी ने किया जवाबी जंग का एलान
ब्लैकमेलर हम नहीं बल्कि हम पर आरोप लगाने वाले अधिकारी  
79 ब्लैकमेलरों की लिस्ट जारी होने के बाद पत्रकारों ने बेशक खामोश रहना ही उचित समझा हो लेकिन इसे लेकर मचा हडकम्प जारी है इसी बीच अकाली दल का युवा विंग खुल कर नायब तहसीलदार हरमिंदर सिंह सिद्धू के पक्ष में उतर आया है। दैनिक जागरण में 1 जुलाई 2012 के अंक में प्रकाशित रक खबर के मुताबिक यूथ अकाली दल ने ब्लैकमेलरों पर पर्चे दर्ज करने की मांग भी की है। अकाली दल जैसी अनुशासित पार्टी के युवा विंग का इस तरह खुल कर मैदान में आना एक साफ़ संकेत है कि वह सर्कार को बदनाम करने वाले सभी तत्वों के खिला खुल कर दो दो हाथ करने को तैयार है। अन्ना हजारे की टीम का खुल कर साथ देने वाले मुख्य प्म्नरी प्रकाश सिंह बादल भी भ्रष्ट तत्वों से निजात पाने के लिए अब आर पार की लड़ाई का बना चुके हैं। हाल ही में 79 भ्रष्टाचारियों के नामों का खुलासा करने वाले अधिकारी का समर्थन वास्तव में इमानदार अधिकारीयों के मनोबल को बढ़ाने के प्रयासों की एक सरगर्म शुरूयात है। अकाली दल के युवा विंग का इस तरह का ब्यान एक तरह से एलान है कि वह इमानदार अधिकारीयों की पीठ नहीं लगने देगा। आने वाले दिनों में हवा का रुल्ह और साफ़ हो जायेगा फिलहाल आप पढ़िए दैनिक जागरण में प्रकाशित खबर इस तरह है:   
 ब्लैकमेलरों पर दर्ज हो पर्चे:यूथ अकाली दल
जासं, लुधियाना : नायब तहसीलदार हरमिंदर सिंह सिद्धू के समर्थन में यूथ अकाली दल ने संवाददाता सम्मेलन करके ब्लैकमेलिंग के आरोपियों के खिलाफ मामले दर्ज करने की मांग की। साथ ही, नायब तहसीलदार की ओर से भ्रष्टाचार व ब्लैकमेलिंग के खिलाफ छेड़ी गई जंग को लेकर उनको सम्मानित करने का फैसला लिया गया। पक्खोवाल रोड में हुई बैठक के दौरान यूथ नेता ने कहा कि प्रदेश सरकार व प्रशासन से तहसीलों में सक्रिय ब्लैकमेलरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। गौरतलब है कि नायब तहसीलदार ने मंगलवार को कथित धमकियों से तंग आकर ब्लैकमेलिंग करने वाले 79 आरोपियों की सूची जारी की थी। पक्खोवाल रोड में हुई बैठक के दौरान यूथ अकाली दल के राष्ट्रीय महासचिव गुरप्रीत सिंह बबल, दौरान रविंदर सिंह, गगनप्रीत सिंह, तरनप्रीत सिंह, इंदर सिंह, मनदीप सिंह, अजय शर्मा, हरप्रीत सिंह, मनप्रीत माटा, हरप्रीत ंिसंह, डंग, गुरलवलीन सिंह, पवनदीप, तजिंदर सिंह, इकबालजीत सिंह, विक्की, प्रभजोत सिंह, इंदरजीत सिंह ढिल्लो, गुरमीत सिंह, जसबीर सिंह, मोहित बैंस, लक्की, राजू ठकराल, इंदरपाल सिंह विक्की, सर्बजीत सिंह व लखविंदर सिंह आदि मौजूद थे।
इसी बीच जर्नलिस्ट प्रेस काउन्सिल ने इसी सम्बन्ध में अपनी सरगर्मी तेज़ कर दी है। इस सन्गठन के प्रधान संजीव कुमार ने बताया की अगर हम बोले तो सब को नानी याद आ जाएगी। उन्होंने सवाल भी किया की अगर कोई अधिकारी खुद पूरी तरह से इमानदार हो तो उसे ब्लैकमेल कर ही कौन स्क्तःई। ब्लैमेल किया ही उसे जाता है जिसने कुछ काले काम किये हों और सबूत भी छोड़ दिए हों। ब्लैकमेलर हम नहीं बल्कि हम पर आरोप लगाने वाले इस तरह के अधिकारी खुद हैं।एक अनोपचारिक भेंट में उन्होंने यह भी कहा कि कभी तो यह अधिकारी खुद ही 79 नामों की लिस्ट जारी करता है और फिर खुद ही ख देता है जी मीडीया के नाम गलती से दल गए। जिन्हें जल्द ही निकल लिया जायेगा। संजीव कुमार ने कहा की इस तरह की गलतियाँ करने वाले अधिकारी की दिमागी हालत का इलाज कराया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा की आजकल तनाव भरे माहौल में हर कोई परेशान है पर इसका मतलब यह तो नहीं दूसरों पर कीचड़ उछालना शुरू कर दो। दूसरों को बिना कारण परेशान करना शुरू कर दो। उन्होंने कहा की हमने इस सरे मामले की रिपोर्ट अपने संगठन के केन्द्रीय कार्यालय को भेज दी है. वहां से जैसा भी आदेश आएगा आन्दोलन उसी के हिसाब से होगा। जे पी सी ने इस सम्बन्ध में मुख्य न्यायधीश  को एक पत्र भी लिखा है। इस पत्र को पूरा पढने के लिए आप इस की तस्वीर पर क्लिक करें पत्र बढ़ा हो जायेगा। आप इस सम्बन्ध में क्या सोचते हैं अवश्य लिखिए। आपके विचारों की इंतज़ार बनी रहेगी।  --रेक्टर कथूरिया 

कलाम ने किया अपनी नई पुस्तक में खुलासा

राष्ट्रपति रहते हुए इस्तीफा तक लिख दिया था कलाम ने 
नयी दिल्ली, 30 जून (वार्ता)। राष्ट्रपति पद पर रहते हुये डा.एपीजे अब्दुल कलाम ने 23 मई, 2005 की आधी रात को बिहार विधानसभा भंग किये जाने को सुप्रीमकोर्ट द्वारा असंवैधानिक ठहराये जाने के बाद अपना इस्तीफा लिख दिया था। यह रहस्योद्घाटन डा. कलाम ने अपनी नई पुस्तक ‘टर्निंग प्वाइंट ए जर्नी थ्रू चैलेंजेज’ में किया है। उन्होंने लिखा है कि जब बिहार विधानसभा भंग करने के बारे में सुप्रीमकोर्ट का फैसला आया तो उन्होंने अपना इस्तीफा लिख दिया था, लेकिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इस आग्रह के बाद उन्होंने अपना विचार त्याग दिया कि इस इस्तीफे से हंगामा मच जायेगा और उनकी सरकार गिर जायेगी। डा. कलाम उस समय मास्को में थे, जब डा. सिंह ने उन्हें दो बार फोन किया और बिहार के राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर विधानसभा भंग करने के लिये केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा लिये गये फैसले की जानकारी दी थी। डा. कलाम ने लिखा है कि उन्होंने प्रधानमंत्री से पूछा था कि आखिर बिहार विधानसभा को भंग करने की इतनी जल्दी क्या है, जिसे पहले ही छह महीने के लिये निलंबित किया  हुआ था। पूर्व राष्ट्रपति ने जानकारी दी कि उन्होंने सरकार के इस मंतव्य को समझने के बाद विधानसभा भंग करने के आदेश पर दस्तखत कर दिये कि उसने इसके लिये मन बना लिया है।
डा. कलाम ने लिखा है कि उन्हें महसूस हुआ कि उनके विशेष आग्रह के बाद भी सरकार ने  राष्ट्रपति के निर्णय को अदालत के समक्ष  सही ढंग से नहीं रखा जिस कारण मंत्रिमंडल के निर्णय के खिलाफ प्रतिकूल न्यायिक टिप्पणी हुई। उन्होंने लिखा है  कि मंत्रिमंडल उनका था और उन्हें  जिम्मेदारी लेनी चाहिये।
गुजरात दंगों के बाद राज्य  के अपने दौरे के बारे में भी डा. कलाम ने अनेक खुलासे किये हैं। उन्होंने लिखा है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उनसे यह सवाल किया था, क्या आप समझते हैं कि आपका इस समय गुजरात जाना जरूरी है। उन्होंने इसका जबाब देते हुये श्री वाजपेयी से कहा था कि वह इसे एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी समझते हैं ताकि वह लोगों की पीड़ा को कम करने  तथा राहत कार्यों में तेजी लाने में मददगार बन सकें। साथ ही लोगों में एकजुटता का भाव पैदा हो।  उन्होंने बताया है कि ऐसी परिस्थिति में कभी किसी राष्ट्रपति ने किसी घटनास्थल का दौरा नहीं किया था। इसलिये उन्हें अपनी इस यात्रा को लेकर अनेक सवालों का सामना करना पड़ा। मंत्रालय और नौकरशाही के स्तर पर यह सुझाव दिया गया कि उन्हें इस मौके पर गुजरात नहीं जाना चाहिये। इसकी एक बड़ी वजह राजनीतिक थी। डा. कलाम ने लिखा है कि इन सबके बावजूद उन्होंने वहां जाने का मन बनाया। वह तीन राहत शिविरों और नौ दंगा प्रभावित क्षेत्रों में गये. जहां भारी नुकसान हुआ था। उन्होंने एक घटना का ब्योरा देते हुये लिखा है कि जब वह एक राहत शिविर में पहुंचे तो छह वर्ष का एक बच्चा उनके पास आया और उनके दोनों हाथ थामकर बोला, राष्ट्रपतिजी मुझे अपने माता-पिता चाहिये। इस पर वह निरूत्तर हो  गये। उन्होंने बताया है कि इसके बाद उन्होंने उसी जगह पर जिलाधिकारी के साथ बैठक की। मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी आश्वासन दिया कि इस बच्चे की शिक्षा और देखभाल की जिम्मेदारी सरकार उठायेगी।  उन्होंने लिखा है इस यात्रा के दौरान उनके जहन में सिर्फ एक ही बात कौंधती रही कि क्या विकास ही हमारा एकमात्र एजेंडा नहीं होना चाहिये। किसी भी धर्म के आदमी को खुशी से जीने का मूलभूत अधिकार है। किसी को भी भावनात्मक एकता को खतरे में डालने का हक नहीं है क्योंकि यही एकता हमारे देश की जीवनरेखा है और देश  की अलग पहचान बनाती है। (
दैनिक ट्रिब्यून से साभार)

जीरो बजट प्राकृतिक खेती

नियमित लाभ और विकास का अदभुत फार्मूला  
विशेष लेख                                                                           *मनोहर कुमार जोशी 
धरती में इतनी क्षमता है कि वह सब की जरूरतों को पूरा कर सकती है, लेकिन किसी के लालच को पूरा करने में वह सक्षम नहीं है..............

महात्मा गांधी के सोलह आना सच्चे इस वाक्य को ध्यान में रखकर जीरो बजट प्राकृतिक खेती की जाये, तो किसान को न तो अपने उत्पाद को औने-पौने दाम में बेचना पड़े और न ही पैदावार कम होने की शिकायत रहे । लेकिन सोना उगलने वाली हमारी धरती पर खेती करने वाला किसान लालच का शिकार हो रहा है । कृषि आधारित अर्थव्यवस्था वाले इस देश में रासायनिक खेती के बाद अब जैविक खेती सहित पर्यावरण हितैषी खेती, एग्रो इकोलोजीकल फार्मिंग, बायोडायनामिक फार्मिंग, वैकल्पिक खेती, शाश्वत कृषि, सावयव कृषि, सजीव खेती, सांद्रिय खेती, पंचगव्य, दशगव्य कृषि तथा नडेप कृषि जैसी अनेक प्रकार की विधियां अपनाई जा रही हैं और संबंधित जानकार इसकी सफलता के दावे करते आ रहे हंै । परन्तु किसान भ्रमित है । परिस्थितियां उसे लालच की ओर धकेलती जा रही हैं। उसे नहीं मालूम उसके लिये सही क्या है ? रासायनिक खेती के बाद उसे अब जैविक कृषि दिखाई दे रही है । किन्तु जैविक खेती से ज्यादा सस्ती, सरल एवं ग्लोबल वार्मिंग (पृथ्वी के बढ़ते तापमान) का मुकाबला करने वाली “जीरो बजट प्राकृतिक खेती“ मानी जा रही है ।


जीरो बजट प्राकृतिक खेती क्या है....?जीरो बजट प्राकृतिक खेती देसी गाय के गोबर एवं गौमूत्र पर आधारित है । एक देसी गाय के गोबर एवं गौमूत्र से एक किसान तीस एकड़ जमीन पर जीरो बजट खेती कर सकता है । देसी प्रजाति के गौवंश के गोबर एवं मूत्र से जीवामृत, घनजीवामृत तथा जामन बीजामृत बनाया जाता है । इनका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है । जीवामृत का महीने में एक अथवा दो बार खेत में छिड़काव किया जा सकता है । जबकि बीजामृत का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने में किया जाता है । इस विधि से खेती करने वाले किसान को बाजार से किसी प्रकार की खाद और कीटनाशक रसायन खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है। फसलों की सिंचाई के लिये पानी एवं बिजली भी मौजूदा खेती-बाड़ी की तुलना में दस प्रतिशत ही खर्च होती है ।


गाय से प्राप्त सप्ताह भर के गोबर एवं गौमूत्र से निर्मित घोल का खेत में छिड़काव खाद का काम करता है और भूमि की उर्वरकता का ह्रास भी नहीं होता है। इसके इस्तेमाल से एक ओर जहां गुणवत्तापूर्ण उपज होती है, वहीं दूसरी ओर उत्पादन लागत लगभग शून्य रहती है । राजस्थान में सीकर जिले के एक प्रयोगधर्मी किसान कानसिंह कटराथल ने अपने खेत में प्राकृतिक खेती कर उत्साह वर्धक सफलता हासिल की है । श्री सिंह के मुताबिक इससे पहले वह रासायिक एवं जैविक खेती करता था, लेकिन देसी गाय के गोबर एवं गोमूत्र आधारित जीरो बजट वाली प्राकृतिक खेती कहीं ज्यादा फायदेमंद साबित हो रही है।
प्राकृतिक खेती के सूत्रधार महाराष्ट्र के सुभाष पालेकर की मानें तो जैविक खेती के नाम पर जो लिखा और कहा जा रहा है, वह सही नहीं है । जैविक खेती रासायनिक खेती से भी खतरनाक है तथा विषैली और खर्चीली साबित हो रही है । उनका कहना है कि वैश्विक तापमान वृद्धि में रासायनिक खेती और जैविक खेती एक महत्वपूर्ण यौगिक है । वर्मीकम्पोस्ट का जिक्र करते हुये वे कहते हैं... यह विदेशों से आयातित विधि है और इसकी ओर सबसे पहले रासायनिक खेती करने वाले ही आकर्षित हुये हैं, क्योंकि वे यूरिया से जमीन के प्राकृतिक उपजाऊपन पर पड़ने वाले प्रभाव से वाकिफ हो चुके हंै।

कृषि वैज्ञानिकों एवं इसके जानकारों के अनुसार फसल की बुवाई से पहले वर्मीकम्पोस्ट और गोबर खाद खेत में डाली जाती है और इसमें निहित 46 प्रतिशत उड़नशील कार्बन हमारे देश में पड़ने वाली 36 से 48 डिग्री सेल्सियस तापमान के दौरान खाद से मुक्त हो वायुमंडल में निकल जाता है । इसके अलावा नायट्रस, आॅक्साईड और मिथेन भी निकल जाती हंै और वायुमंडल में हरितगृह निर्माण में सहायक बनती है । हमारे देश में दिसम्बर से फरवरी केवल तीन महीने ही ऐसे हंै, जब तापमान उक्त खाद के उपयोग के लिये अनुकूल रहता है ।

वर्मीकम्पोस्ट खाद बनाने में इस्तेमाल किये जाने वाले आयातित केंचुओं को भूमि के उपजाऊपन के लिये हानिकारक मानने वाले श्री पालेकर बताते हंै कि दरअसल इनमें देसी केचुओं का एक भी लक्षण दिखाई नहीं देता । आयात किया गया यह जीव कंेचुआ न होकर आयसेनिया फिटिडा नामक जन्तु है, जो भूमि पर स्थित काष्ट पदार्थ और गोबर को खाता है । जबकि हमारे यहां पाया जाने वाला देशी केंचुआ मिट्टी एवं इसके साथ जमीन में मौजूद कीटाणु एवं जीवाणु जो फसलों एवं पेड़- पौधों को नुकसान पहुंचाते हंै, उन्हें खाकर खाद में रूपान्तरित करता है । साथ ही जमीन में अंदर बाहर ऊपर नीचे होता रहता है, जिससे भूमि में असंख्यक छिद्र होते हैं, जिससे वायु का संचार एवं बरसात के जल का पुर्नभरण हो जाता है । इस तरह देसी केचुआ जल प्रबंधन का सबसे अच्छा वाहक है । साथ ही खेत की जुताई करने वाले “हल “ का काम भी करता है ।

जीरो बजट प्राकृतिक खेती जैविक खेती से भिन्न है तथा ग्लोबल वार्मिंग और वायुमंडल में आने वाले बदलाव का मुकाबला एवं उसे रोकने में सक्षम है । इस तकनीक का इस्तेमाल करने वाला किसान कर्ज के झंझट से भी मुक्त रहता है । प्राप्त जानकारी के अनुसार अब तक देश में करीब 40 लाख किसान इस विधि से जुड़े हुये हंै । (पीआईबी) 28-जून-2012 18:04 IST


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*लेखक स्वतंत्र पत्रकार है

"छोटा मांगे तो भीख; बड़ा मांगे तो चंदा है।"

खेद है पर नाम भूल रहा हूँ. बहुत पहले कुछ किसी बहुत अच्छे शायर का लिखा कुछ पढ़ा था। डायरी में नोट भी किया पर वह डायरी भी किताबों के सागर में कहीं खो गयी। शायर ने चोट की थी मांगने वालों पर। कहा था: "छोटा मांगे तो भीख; बड़ा मांगे तो चंदा है।" आज अचानक यह पंक्ति याद आई फेसबुक पर एक पोस्ट को देख कर। इस पोअत मेंईसा क्या है आप खुद ही देख लीजिये जनाब और बताइए कि  कैसी  लगी यह पोस्ट और कैसा लगा इसमें  ? विचार आपके विचारों की इंतज़ार में। --रेक्टर कथूरिया