Saturday, June 30, 2012

मामला सरबजीत का//राजीव गुप्ता

पाकिस्तान का मानवीयता के साथ क्रूर मजाक
                                                                                                                                                                  साभार चित्र 
राजीव गुप्ता,स्तंभकार
दोनों देशो में अचानक भरतमिलाप हो जाने की उम्मीद  किसी को भी नहीं होनी चाहिए इसकी पुष्टि सरबजीत की रिहाई के मसले पर पाकिस्तान ने अपने रवैये से सिद्ध कर दिया ! परन्तु इस सबके बावजूद रिश्ते सुधारनेकी जो पहल दोनों तरफ से शुरू हुई है , वह ईमानदारी के बिना ज्यादा आगे नही जा सकती , इसका ध्यान दोनों देशो को रखना चाहिए  !  ज्ञातव्य है कि सरबजीत सिंह को 1990 में पाकिस्तान के लाहौर और फ़ैसलाबाद में हुए चार बम धमाकों के सिलसिले में गिरफ़्तार किया गया था और उन्हें फांसी की सजा सुनाई गयी थी ! बम विस्फोट के आरोपों में मौत की सजा पाए पिछले बीस वर्षों से  लाहौर स्थित कोट लखपत  जेल में बंद सरबजीत के मसले पर बात - बात पर अपनी बात से पलटकर धोखा देने वाले पाकिस्तान से भारत अब उम्मीद लगाये भी या नहीं यह एक यक्ष प्रश्न बन गया है ! वैसे भी पाकिस्तान विश्व के सभी देशो को लगभग हर मुद्दे पर बात-बात में दगा देने की महारत हासिल है परिणामतः विश्व पटल पर पाकिस्तान की नियत पर सदैव से  प्रश्नचिन्ह लगता रहा है जिससे उसकी साख को धक्का लगता है ! हाल ही में इसी मंगलवार को पूरे दिन भारत और पाकिस्तान दोनों जगहों की मीडिया में राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी द्वारा सरबजीत सिंह की फाँसी की सज़ा को उम्र कैद में तबदील कर देने की चर्चा ग़र्म थी ! परन्तु पाकिस्तान की पलटी ने फिर से अपने आपको प्रश्नचिन्ह के घेरे में खड़ा कर लिया !
ग़लतफ़हमी के शिकार
इस मामले पर ग़लतफ़हमी  इतनी ज़्यादा थी कि  भारत के विदेश मंत्री एसएम कृष्णा ने सरबजीत को रिहा करने से जुड़े कथित कदमों के लिए जरदारी को धन्यवाद तक कर दिया तो वही दूसरी तरफ पाकिस्तान के केंद्रीय मंत्रियों तक ने सरबजीत को माफी की ख़बर का स्वागत कर दिया ! एक केंद्रीय मंत्री शेख वकास ने तो यहाँ तक कहा था कि उनकी सरकार भारत और पाकिस्तान के आम लोगों को करीब लाने की कोशिश कर रही है और इसलिए इस प्रकार के फैसले लिए जा रहे हैं ! केंद्रीय मंत्री शेख वकास ने कहा था कि सरबजीत के मामले को विस्तार से पढ़ने के बाद पता चलता है कि उनकी रिहाई से पाकिस्तान को कोई नुक़सान नहीं है बल्कि फायदा है और तो और वकास ने सरबजीत की रिहाई के कारण को विस्तार से समझाते हुए यहाँ तक कहा था, “जब भारत ने पाकिस्तानी नागरिक डॉक्टर खलील चिश्ती को रिहा किया था और वह स्वदेश लौटे थे तो उसके बाद पाकिस्तानी सरकार पर अतंरराष्ट्रीय दबाव बढ़ गया था कि वह सरबजीत सिंह जैसे क़ैदियों को रिहा करे !” इस पूरे प्रकरण के चंद घंटो के ही भीतर इस ख़बर के गलत साबित कर पाकिस्तान अपनी बात से पलट गया जिससे कई सवाल खड़े हो गए हैं और जिनके उत्तर आना अपेक्षित है परन्तु ऐसा लगता है कि पाकिस्तान की यह अनबूझी पहेली मात्र भारत की जन - भावनाओ के साथ क्रूर मजाक के अतिरिक्त और कुछ नहीं रह गयी है !
मीडिया का सारा दोष
फरहातुल्लाह बाबर ने इस उपापोह की स्थिति को साफ करते हुए दावा किया कि मीडिया ने ब्रेकिंग न्यूज की हड़बड़ी के चलते सरबजीत सिंह का नाम चला दिया उन्होंने आगे कहा कि ”मैने भारतीय टीवी चैनल से बातचीत में सुरजीत का नाम लिया था न कि सरबजीत का ! लेकिन क्योंकि उनके दिमाग में बस सरबजीत का ही नाम था इसलिए जल्दबाजी में उन्होंने सरबजीत सिंह की ही खबर बना दी !” फरहातुल्लाह बाबर साहब यही नहीं रुके तथा तथ्यों का हवाला देते हुए एक कदम और आगे बढ़कर बोले कि “इसकी प्रमाणिकता तो किसी भी वक्त सिद्ध की जा सकती है कि जो पत्र कानून मंत्रालय ने गृह मंत्रालय को मंगलवार को भेजा था उसमें किसका नाम है - सुरजीत सिंह का या फिर सरबजीत का. अगर उसमें सुरजीत सिंह का नाम है तो दबाव में नाम बदलने वाली बात तो अपने आप ही खारिज हो जाती है !” ध्यान देने योग्य है कि जो पाकिस्तान मात्र चंद घंटो में ही अपनी बात से मुकर जाता है भला उसके तथ्य विश्वसनीय होंगे भी अथवा नहीं !!
भारत में निराशा का दौर
सरबजीत की रिहाई की गलत खबर से जहां भारत में निराशा छाई गई, वहीं पाकिस्तान के सामाजिक कार्यकर्ताओं और सरबजीत सिंह के वकील ने कहा कि इससे पाकिस्तान की छवि काफी खराब हुई है ! सरबजीत सिंह के वकील अवैस शैख के अनुसार “कोई सोच भी नहीं सकता कि ऐसा होगा क्योंकि सरबजीत और सुरजीत दोनों का मामला अलग है ! राष्ट्रपति जरदारी तो केवल सरबजीत सिंह की सजा को माफ कर सकते हैं जबकि सुरजीत सिंह तो उम्र कैद के कैदी थे !” उनके अनुसार पाकिस्तान ने सरबजीत सिंह के मामले में दुनिया अच्छा संदेश नहीं भेजा है और इसको लेकर सरकार की कड़ी आलोचना हो रही है कि वह इस मामलों को गंभीरता से नहीं ले रही है !
कट्टरपंथियों का दबाव
जरदारी के प्रवक्ता ने टीवी चैनलों पर साफ तौर पर सरबजीत का नाम लिया था लेकिन देर रात नाम को लेकर भ्रम होने की बात कैसे पैदा हुई, इस बारे में यहां राजनयिक हलकों में सवाल पूछे जा रहे हैं ! अटकलें हैं कि पाकिस्तान की मिलिट्री ने एक बार फिर भारत-पाक रिश्तों को सामान्य बनाने की पाक सरकार की कोशिशों को नाकाम किया है !  पाकिस्तानी राष्ट्रपति कार्यालय के प्रवक्ता ने अपने बयान में बिल्कुल साफ कहा था कि सरबजीत की दया याचिका पर विचारकरके राष्ट्रपति ने उन्हें रिहा करने का फैसला किया है! लेकिन जैसे ही यह खबर प्रसारित हुई , वैसे ही पाकिस्तानकी धार्मिक कट्टरपंथी पार्टियों जमात - ए - इस्लामी और जमात - उद - दावा ने यह कहकर आसमान सिर पर उठा लिया कि सरबजीत का अपराध अजमल कसाब के मचाए कत्लेआम से भी बुरा है और सुप्रीम कोर्ट के फैसलेकी अनदेखी करते हुए उसे रिहा करने का कदम उठाकर आसिफ अली जरदारी ने हिंदुस्तान के आगे घुटने टेक दिएहैं ! पाकिस्तानी मीडिया के एक वर्ग में भी इस फैसले की निंदा की गई थी ! पाक के चर्चित टीवी न्यूज एंकर हामिद मीर ने सरबजीत को भारत का अजमल कसाब तक बता दिया !
सिलसिलेवार घटनाक्रम
अदालत को अपने बचाव में सरबजीत ने तर्क दिया कि वो निर्दोष हैं और भारत के तरन तारन के किसान हैं ! गलती से उन्होंने सीमा पार की और पाकिस्तान पहुंच गए ! सरबजीत पर जासूसी के आरोप लगाने के बाद  उन पर लाहौर की एक अदालत में मुक़दमा चला और पहली बार 1991 में न्यायाधीश ने उनको मौत की सज़ा सुना दी गई ! निचली अदालत की ये सज़ा हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी बहाल रखी ! सरबजीत ने सुप्रीम कोर्ट में एक पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी जिसे 2006 में खारिज कर दिया गया ! मार्च 2008 को पाकिस्तान की समाचार एजेंसियों के हवाले से खबर आई कि सरबजीत की फांसी तारीख तय हो गई है और उसे 1 अप्रैल को फांसी दे दी जाएगी ! पर 19 मार्च को ये खबर आई कि 30 अप्रैल तक के लिए सरबजीत की फांसी पर रोक लगा दी गई है !  भारत के विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी ने संसद में ये बयान दिया कि पाकिस्तान में क़ैद भारतीय बंदी सरबजीत सिंह की फाँसी 30 अप्रैल तक टाल दी गई है ! इसके बाद इसी साल पाकिस्तान में मानवाधिकार मामलों के पूर्व मंत्री अंसार बर्नी ने सरबजीत राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ के पास एक दया याचिका भेजी ! इस याचिका में अंसार बर्नी ने अपील की कि सरबजीत की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया जाए या उन्हें रिहा कर दिया जाए !
गलत पहचान
पिछले साल 2011 में पाक में कैद सरबजीत सिंह का मामला एक बार फिर पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट में जा पहुंचा ! सरबजीत के पाकिस्तानी वकील ओवैश शेख ने असली आरोपी मनजीत सिंह के खिलाफ जुटाए तमाम सबूत पेश कर मामला फिर से खोलने की अपील की ! वकील ओवैश शेख ने कोर्ट में दावा किया कि उनका मुवक्किल सरबजीत बेगुनाह है और वो मनजीत सिंह के किए की सजा काट रहा है ! ओवैश शेख का कहना था सरबजीत को सन 1990 में मई-जून में कराची बम धमाकों का अभियुक्त बनाया गया है, जबकि वास्तविकता में 27 जुलाई 1990 को दर्ज एफआईआर में मनजीत सिंह को इन धमाकों का अभियुक्त बताया गया है ! पाकिस्तान का कहना था कि सरबजीत ही मनजीत सिंह है जिसने बम धमाकों को अंजाम दिया था !
दया– याचना
इसके बाद से लगातार पाकिस्तान के मानवाधिकार कार्यकर्ता अंसार बर्नी उनकी बहन दलबीर कौर सरबजीत सिंह की रिहाई के लिए लगातार प्रयास करते रहे ! इस दौरान दलबीर कौर अपने भाई से मिलने पाकिस्तान की कोटलखपत जेल भी गईं और सरबजीत की रिहाई के लिए भारत में मुहिम चलाती रहीं और पाकिस्तान सरकार से दया की गुहार लगाती रहीं ! मई 2012 में भारत में पाकिस्तानी बंदी खलील चिश्ती को पाकिस्तान यात्रा की उच्चतम न्यायालय से इजाजत मिलने के बाद प्रेस परिषद अध्यक्ष न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू ने पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी से सरबजीत सिंह को रिहा करने की अपील की ! अपने पत्र में उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश काटजू ने कहा कि इस मामले में एक महत्वपूर्ण साक्ष्य सरबजीत का कथित इकबालिया बयान था, जिसमें उन्होंने हमलों की जिम्मेदारी ली थी लेकिन सभी जानते हैं कि हमारे देशों में कैसे इकबालिया बयान हासिल किया जाता है !  
दोनों देशो के बीच पनपी खाई को पाटने का इससे बेहतरीन मौका पाकिस्तान के पास और नहीं आयेगा ! सारे राजनैतिक एवं कूटनीतिक संबंधो को दरकिनार करते हुए पाकिस्तान को  लगभग बीस वर्षो से वहां की जेल में बंद सरबजीत को अपनी दरियादिली दिखाते हुए मानवता और नैतिकता के आधार पर रिहा कर देना चाहिए जिससे कि भारत - पाकिस्तान सम्बन्ध और प्रगाढ़ ही होगे  अन्यथा पाकिस्तान का यह शर्मनाक कदम सदा के लिए कलंकित होकर रह जायेगा !
- राजीव गुप्ता, स्तंभकार ,  राजीव गुप्ता,स्तंभकार
9811558925

मां गंगा के अमृत जल को बचाने के लिए जारी है आन्दोलन

गंगा जल पिला कर दिया गया साधना को विराम   
गंगा सेवा आन्दोलन से सबंधित खबर का चित्र पंजाब केसरी से साभार 
मां गंगा के लिए प्रेम का शिद्दत भरा अहसास मुझे हुआ कुछ माह पूर्व जब गंगा पुत्र स्वामी आनन्द जी पंजाब की यात्रा पर आये। एक विशेष भेंट में उनहोंने बताया कि किस तरह से लोग आज भी गंगा के लिए समर्पित हैं केवल समर्पित ही नहीं बल्कि जान देने को भी तैयार हैं। उन्होंने बताया की निगमानन्द जी के बलिदान ने गंगा आन्दोलन में एक नयी रूह फूंकने का काम किया। उनकी बात को सुन कर अविश्वास का कोई कारण ही नहीं बनता था। देखते ही देखते उनहोंने पंजाब में भी गंगा सेवा मिशन की स्थापना कर दी। आरती ठाकुर जैसी समर्पित गंगा भक्त से यह काम काफी आसानी और तेज़ी से सिरे चढ़ा।  यहाँ संगठन का गठन, सभी नए लोगों के अहम और सम्मान का ध्यान रखते हुए यह सब करना काफी मुश्किल था पर सब हुआ। अधिकारीयों से मिलना, उन्हें ज्ञापन देना और सेवा आन्दोलन को आगे बढ़ाना।..शायद सब किसी दैवी कृपा से हो रहा था।जल्द ही एक विशेष टीम पंजाब से रवाना भी हुयी ता की अन्य राज्यों में इस आन्दोलन को तेज़ कर सकें। अब खबर आई है वाराणसी से जहाँ गंगा प्रेमी साधकों की तपस्या को गंगा जल पिला कर विराम दिया गया है।पूरा विवरण आप पढ़ सकते है इस खबर की तस्वीर पर क्लिक करके। यदि आपके क्षेत्र में भी गंगा सेवा पर कुछ हो रहा है तो उसकी जानकारी अवश्य दें। --रेक्टर कथूरिया 

विज्ञानं का नया कमाल

बीयर अपने आप होगी ठंडी बस दो ही मिनट में   
विज्ञान के विकास का सिलसिला लगातार जारी है। अब नया करिश्मा सामने आया है बीयर को खुद बखुद ठंडा रखने का एक नया तरीका। केवल दो मिनटों के समाया में बीयर को बर्फ जैसा ठंडा करने वाला ई विशेष किस्म का कैन इसी वर्ष के अंत तक बाज़ार में आ जायेगा। इस खबर को पंजाब केसरी से साभार यहाँ भी प्रकाशित किया जा रहा है। अख़बार ने इसे 30 जून 2012 को अपने दर्पण पृष्ठ पर प्रकाशित किया है।

कला का एक नया कमाल

चेहरे पर चार चार आंखें   
कलाकार भी कई बार कमाल करते हैं। ऐसी अदभुत कला  का प्रदर्शन कि  देखने वाला दंग रह जाये। कुछ ऐसा ही कमाल किया है इस कलाकार ने। चेहरे पर दो नहीं चार आंखें, हाथ पर खिलखिलाते दांत औए बाजू पर लगी जिप।आपको यह तस्वीर कैसी लगी अवश्य बताएं। इस तस्वीर को यहाँ प्रकाशित किया जा रहा है पंजाब केसरी से साभार।अखबार ने इसे 30 जून 2012 को प्रकाशित किया है अपने विश्व अवलोकन पृष्ठ परआपको यह तस्वीर कैसी लगी अवश्य बताएं आपके विचारों की इंतज़ार बनी रहेगी। यदि आपके पास भी ऐसी कोई तस्वीर हो तो उसे हमें भेजिए हम उसे आपके नाम के साथ पंजाब स्क्रीन में प्रकाशित करेंगे।

Friday, June 29, 2012

तनाव और सुरक्षा में कामकाज जारी

दोनों गुट सरगर्म:जारी हो सकती हैं कई सूचियाँ 

पंजाब केसरी में प्रकाशित खबर
लुधियाना की पशिचमी तहसील में काम काज तो हो रहा है पर पूरे तनाव के साथ और सुरक्षा प्र्बन्दों में। इंतज़ार है दी सी साहिब के आने की। वह छुट्टी पर हैं और 30 जून को लौटेंगे। इसी बीच दोनों तरफ के गुट अपनी अपनी नई रणनीति की तैयारी में जुटें हैं। जिन लोगों का नाम जारी की गयी सूची में हैं वे तलाश कर रहे हैं सरकारी पक्ष को बुरी तरह से नीचा दिखाने का बहाना और दूसरी तरफ अंदर अंदर ही जारी है ब्लैकमेलरों को जद से उखड डालने की कोशिश। हैरानी है की जिन पत्रकारों के नाम इस सूची में हैं वे क्यूं नहीं बोले।सूची में दर्ज कुछ लोग यह कहते भी सुने गए की न तो सूची पर कोई हस्ताक्षर हैं और न ही कोई स्टेम्प हम इस बेसिर पैर के दस्तावेज़ पर कुछ कहें भी क्यूं? कुछ और पत्रकार यह कहते भी सुने जा रहे हैं की यह लिस्ट तो एक शुरूयात भर है। अभी बहुत से अधिकारी बाकी हैं बहुत से विभाग बाकी हैं। सर्कार ने ज़रा सा भी इशारा कर दिया तो ऐसे नामों की सूचियाँ थाना छोंकी और गाँव पंचायत तक भी जरी हो सकती हैं।आपको याद होगा कि लुधियाना में 29 ब्लैकमेलरों के नामों की एक सूची जारी की गयी थी। 
शहर में 79 ब्लैकमेलर इन सब की लिस्ट भी मीडीया के पास पहुँच चुकी है। अब यह बात अलग है कि किसी अख़बार ने इसकी चर्चा करना उचित समझा और किसी ने नहीं। पंजाबी दैनिक पहरेदार ने तो लिस्ट का स्कैन चित्र भी प्रकाशित कर दिया लेकिन दैनिक जागरण ने कहा: "दैनिक जागरण के पास इस लिस्ट की प्रति है, मगर उसमें शामिल लोगों पर अभी सिर्फ आरोप हैं। इसलिए उनके नाम प्रकाशित नहीं किए जा रहे हैं।" इसी तरह दैनिक भास्कर ने इस पर कहा," सूची जारी होने के तरणत बाद  इसे लगातार प्रमुखता दे रहा है।
दैनिक भास्कर ने लुधियाना सिटी भास्कर में कहा,"सबसे अच्छी बात यह है कि आपके दैनिक भास्कर से जुड़े किसी भी व्यक्ति का नाम इस कलि सूची में नहीं है।"
पंजाब केसरी में प्रकाशित खबर
दैनिक जागरण में इस मुद्दे पर पूरी खबर इस तरह है:जागरण संवाददाता, लुधियाना : लोगों की रजिस्ट्री करवा कर अपने वारे न्यारे करने वाले अब प्रशासन को खटक गए हैं। इस धंधे के लिए ब्लैकमेकिंग करने वालों की एक लिस्ट तैयार हो गई है। नायब तहसीलदार लुधियाना पश्चिमी ने तहसील में ब्लैकमेंलिग का धंधा करने का आरोप लगाते हुए 79 व्यक्तियों की सूची जारी की। शहर में मचा हड़कंप इस सूची के बाद शहर में हड़कंप मच गया है। तहसीलदार का स्पष्ट कहना है कि सूची में शामिल लोग रोजाना एक-एक रजिस्ट्री का कोटा चाहते हैं। जारी सूची में करीब तीन दर्जन वकील, अढ़ाई दर्जन के करीब पत्रकार, आधे दर्जन के करीब राजनैतिक पार्टियों के नेता, कुछेक आरटीआई एक्टिविस्ट व अन्य लोग शामिल हैं। होगी कानून कार्यवाही : नायब तहसीलदार नायब तहसीलदार हरमिंदर सिंह ने कहा कि इस बारे में एसडीएम को अवगत कराया जा चुका है और बुधवार को एसडीएम से विचार विमर्श के बाद उक्त व्यक्तियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। लगते रहे हैं भ्रष्टाचार के आरोप सब-रजिस्ट्रार कार्यालय आए दिनों विवादों में छाया रहता है। भ्रष्टाचार को लेकर आम जनता सब-रजिस्ट्रार कार्यालयों के अधिकारियों व स्टाफ पर आरोप लगाती रही है। लेकिन इस बार लुधियाना सब-रजिस्ट्रार कार्यालय पश्चिमी के नायब तहसीलदार हरमिंदर सिंह ने 79 व्यक्तियों की सूची जारी कर सनसनी फैला दी है। (दैनिक जागरण के पास इस लिस्ट की प्रति है, मगर उसमें शामिल लोगों पर अभी सिर्फ आरोप हैं। इसलिए उनके नाम प्रकाशित नहीं किए जा रहे हैं।)
           मीडीया की गंभीरता साबित करती है कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ इस जंग में भ्रष्टाचार के खिलाफ है और किसी का कोई लिहाज़ करने वाला भी नहीं। अब बारी प्रशासन की नेक नियति साबित होने की है। --रेक्टर कथूरिया 

Wednesday, June 27, 2012

आम आदमी के मनोभावों ब्यान करती कविता

हालाँकि महंगाई के लिए एक सिस्टम भी ज़िम्मेदार होता है और सत्ता वर्ग की नीतियां भी परजब जब भी महंगाई बढती है तो आम आदमी के गुस्से और आलोचना का  का शिकार बनना पड़ता है अक्सर प्रधान मंत्री या वित्त मंत्री को। इस बार भी आम आदमी की नाराज़गी का निशाना बने हैं वित्त मंत्री। आम आदमी को लग रहा है की महंगाई की नीतियां बनाने और लागू करने का पुरस्कार मिल रहा है वित्त मंत्री को राष्ट्रपति बना कर। आम आदमी की इस नारजगी को शब्द दिए हैं शायर बोधी स्तव कस्तूरिया ने।उनकी काव्य रचना को हम पंजाब स्क्रीन में प्रकाशित कर रहे हैं। यह र्च्घ्ना अभी हाल ही में प्राप्त हुयी है। आप इसके बारे में क्या सोचते हैं अवश्य बताएं।--रेक्टर कथूरिया 
दुहाई है दुहाई //बोधीस्तव कस्तूरिया
वाह रे काँग्रेसी सरकार तुझे दुहाई है दुहाई !!
प्रणव जी को राष्ट्र्पति-भवन का दिया तोह्फ़ा
क्योंकि उनके बजट से ही तो आई ये मँहगाई!
वाह रे काँग्रेसी सरकार तुझे दुहाई है दुहाई !!
भारत का सालाना बजट-घाटा बढता जा रहा है,
फ़िर मुद्रा कोष को१०००० डालर की थैली थमाई!
वाह रे काँग्रेसी सरकार तुझे दुहाई है दुहाई !!
गरीबी बढाने के अजब तरीके तूने कैसे सुझाये,
तभी डालर के मुकाबले रुपये ने मुँह की खाई !
वाह रे काँग्रेसी सरकार तुझे दुहाई है दुहाई !!
पैट्रोल और डीज़ल अब इत्र की शीशी मे आयेगा
कभी सब्सीडी का हवाला कभी डालर की बेहयाई!
वाह रे काँग्रेसी सरकार तुझे दुहाई है दुहाई !!
बोधिसत्वकस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दर आगर २८२००७

Tuesday, June 26, 2012

आपातकाल की याद दिलाती कविता मुनादी//धर्मवीर भारती

खलक खुदा का, मुलुक बाश्शा का
   हुकुम शहर कोतवाल का
   हर खासो-आम को आगह किया जाता है
   कि खबरदार रहें
   और अपने-अपने किवाड़ों को अन्दर से
   कुंडी चढा़कर बन्द कर लें
   गिरा लें खिड़कियों के परदे
   और बच्चों को बाहर सड़क पर न भेजें
   क्योंकि
   एक बहत्तर बरस का बूढ़ा आदमी अपनी काँपती कमजोर आवाज में
   सड़कों पर सच बोलता हुआ निकल पड़ा है

   शहर का हर बशर वाकिफ है
   कि पच्चीस साल से मुजिर है यह
   कि हालात को हालात की तरह बयान किया जाए
   कि चोर को चोर और हत्यारे को हत्यारा कहा जाए
   कि मार खाते भले आदमी को
   और असमत लुटती औरत को
   और भूख से पेट दबाये ढाँचे को
   और जीप के नीचे कुचलते बच्चे को
   बचाने की बेअदबी की जाये

   जीप अगर बाश्शा की है तो
   उसे बच्चे के पेट पर से गुजरने का हक क्यों नहीं ?
   आखिर सड़क भी तो बाश्शा ने बनवायी है !
   बुड्ढे के पीछे दौड़ पड़ने वाले
   अहसान फरामोशों ! क्या तुम भूल गये कि बाश्शा ने
   एक खूबसूरत माहौल दिया है जहाँ
   भूख से ही सही, दिन में तुम्हें तारे नजर आते हैं
   और फुटपाथों पर फरिश्तों के पंख रात भर
   तुम पर छाँह किये रहते हैं
   और हूरें हर लैम्पपोस्ट के नीचे खड़ी
   मोटर वालों की ओर लपकती हैं
   कि जन्नत तारी हो गयी है जमीं पर;
   तुम्हें इस बुड्ढे के पीछे दौड़कर
   भला और क्या हासिल होने वाला है ?

   आखिर क्या दुश्मनी है तुम्हारी उन लोगों से
   जो भलेमानुसों की तरह अपनी कुरसी पर चुपचाप
   बैठे-बैठे मुल्क की भलाई के लिए
   रात-रात जागते हैं;
   और गाँव की नाली की मरम्मत के लिए
   मास्को, न्यूयार्क, टोकियो, लन्दन की खाक
   छानते फकीरों की तरह भटकते रहते हैं…
   तोड़ दिये जाएँगे पैर
   और फोड़ दी जाएँगी आँखें
   अगर तुमने अपने पाँव चल कर
   महल-सरा की चहारदीवारी फलाँग कर
   अन्दर झाँकने की कोशिश की

   क्या तुमने नहीं देखी वह लाठी
   जिससे हमारे एक कद्दावर जवान ने इस निहत्थे
   काँपते बुड्ढे को ढेर कर दिया ?
   वह लाठी हमने समय मंजूषा के साथ
   गहराइयों में गाड़ दी है
   कि आने वाली नस्लें उसे देखें और
   हमारी जवाँमर्दी की दाद दें

   अब पूछो कहाँ है वह सच जो
   इस बुड्ढे ने सड़कों पर बकना शुरू किया था ?
   हमने अपने रेडियो के स्वर ऊँचे करा दिये हैं
   और कहा है कि जोर-जोर से फिल्मी गीत बजायें
   ताकि थिरकती धुनों की दिलकश बलन्दी में
   इस बुड्ढे की बकवास दब जाए

   नासमझ बच्चों ने पटक दिये पोथियाँ और बस्ते
   फेंक दी है खड़िया और स्लेट
   इस नामाकूल जादूगर के पीछे चूहों की तरह
   फदर-फदर भागते चले आ रहे हैं
   और जिसका बच्चा परसों मारा गया
   वह औरत आँचल परचम की तरह लहराती हुई
   सड़क पर निकल आयी है।

   ख़बरदार यह सारा मुल्क तुम्हारा है
   पर जहाँ हो वहीं रहो
   यह बगावत नहीं बर्दाश्त की जाएगी कि
   तुम फासले तय करो और
   मंजिल तक पहुँचो

   इस बार रेलों के चक्के हम खुद जाम कर देंगे
   नावें मँझधार में रोक दी जाएँगी
   बैलगाड़ियाँ सड़क-किनारे नीमतले खड़ी कर दी जाएँगी
   ट्रकों को नुक्कड़ से लौटा दिया जाएगा
   सब अपनी-अपनी जगह ठप
   क्योंकि याद रखो कि मुल्क को आगे बढ़ना है
   और उसके लिए जरूरी है कि जो जहाँ है
   वहीं ठप कर दिया जाए

   बेताब मत हो
   तुम्हें जलसा-जुलूस, हल्ला-गूल्ला, भीड़-भड़क्के का शौक है
   बाश्शा को हमदर्दी है अपनी रियाया से
   तुम्हारे इस शौक को पूरा करने के लिए
   बाश्शा के खास हुक्म से
   उसका अपना दरबार जुलूस की शक्ल में निकलेगा
   दर्शन करो !
   वही रेलगाड़ियाँ तुम्हें मुफ्त लाद कर लाएँगी
   बैलगाड़ी वालों को दोहरी बख्शीश मिलेगी
   ट्रकों को झण्डियों से सजाया जाएगा
   नुक्कड़ नुक्कड़ पर प्याऊ बैठाया जाएगा
   और जो पानी माँगेगा उसे इत्र-बसा शर्बत पेश किया जाएगा
   लाखों की तादाद में शामिल हो उस जुलूस में
   और सड़क पर पैर घिसते हुए चलो
   ताकि वह खून जो इस बुड्ढे की वजह से
   बहा, वह पुँछ जाए

   बाश्शा सलामत को खूनखराबा पसन्द नहीं
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आपातकाल पर श्री एल के अडवाणी

भारतीय इतिहास का सर्वाधिक अंधकारपूर्ण कालखंड 
भारत की स्वतंत्रता के छह दशकों में दो तिथियाँ ऐसी हैं, जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता है और ये दोनों जून 1975 से जुड़ी हुई हैं। इनमें से एक है12 जून। सभी राजनीतिक विश्लेषकों को अचंभे में डालते हुए गुजरात विधानसभा चुनावों में इंदिरा कांग्रेस की भारी पराजय हुई। दूसरा, उसी दिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने रायबरेली से इंदिरा गांधी के लोकसभा में चुने जाने को निरस्त कर दिया और इसके साथ ही चुनावों में भ्रष्टाचार फैलाने के आधार पर उन्हें छह वर्षों के लिए चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित कर दिया 
दूसरी तिथि है25 जून। लोकतंत्र-प्रेमियों के लिए यह तिथि स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे काले दिवसों में से एक के रूप में याद रखी जाएगी। इस दुर्भाग्यपूर्ण तिथि से घटनाओं की ऐसी शृंखला चल पड़ी, जिसने विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र को विश्व की दूसरी सबसे बड़ी तानाशाही में परिवर्तित कर दिया।
दिल्ली में जून के महीने में सबसे अधिक गरमी होती है। अतएव जब दल-बदल के विरुध्द प्रस्तावित कानून से संबंधित संयुक्त संसदीय समिति ने बगीचों के शहर बंगलौर, जो कि ग्रीष्मकाल में भी अपनी शीतल-सुखद जलवायु के लिए विख्यात है, में 26-27 जून को अपनी बैठक करने का निर्णय लिया तो मुझे काफी प्रसन्नता हुई। हम दोनोंअटलजी और मैंइस समिति के सदस्य थे, जिसके कांग्रेस (ओ) के नेता श्याम नंदन मिश्र भी सदस्य थे। हालाँकि, जब 25 जून की सुबह मैं दिल्ली के पालम हवाई अड्डे पर बंगलौर जानेवाले विमान पर सवार हुआ तो मुझे इस बात का जरा भी खयाल नहीं था कि यह यात्रा दो वर्ष लंबी अवधि के लिए मेरे 'निर्वासन' की शुरुआत है।
लोकसभा के अधिकारियों ने बंगलौर हवाई अड्डे पर मेरे सहयात्री मिश्र और मेरी अगवानी की। राज्य विधानसभा के विशाल भवन के पास स्थित विधायक निवास पर हमें ले जाया गया। अटलजी एक दिन पहले ही वहाँ पहुँच चुके थे।
26 जून को सुबह 7.30 बजे मेरे पास जनसंघ के स्थानीय कार्यालय से एक फोन आया। दिल्ली से जनसंघ के सचिव रामभाऊ गोडबोले का एक अत्यावश्यक संदेश था। वे कह रहे थे कि मध्य रात्रि के तुरंत बाद जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई और अन्य महत्त्वपूर्ण नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया है। गिरफ्तारी जारी है। पुलिस शीघ्र ही अटलजी और आपको गिरफ्तार करने के लिए पहुँचने वाली होगी।
पुलिस हम लोगों को गिरफ्तार करने के लिए सुबह 10.00 बजे आ पहुँची। प्रख्यात समाजवादी नेता मधु दंडवते भी एक अन्य संसदीय समिति की बैठक में भाग लेने के लिए बंगलौर में मौजूद थे, उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया। हम चारों को बंगलौर सेंट्रल जेल ले जाया गया।
जेल
हम लोगों को आमने-सामने स्थित दो बड़े आकार के कमरों में रखा गया। श्याम बाबू और दंडवते एक कमरे में थे तथा अटलजी और मैं दूसरे कमरे में। हम लोग जल्द ही वहाँ के अनुकूल हो गए। जेल अधिकारियों ने हमें खाना पकाने के बरतन, चीनी मिट्टी के बरतन, खाद्य सामग्रीअन्न और सब्जी दिए, जैसाकि कारागार नियमावली में विनिर्देश था। अटलजी ने स्वेच्छया खाना पकाने की देखभाल करना स्वीकार किया। 'लोकसभा हू'ज हू' में उनकी रुचियों के अंतर्गत 'खाना पकाना' दिया गया है। वे जो खाना पकाते थे, वह सादा किंतु संपूर्ण आहार होता था।
बंगलौर जेल में मुझे अपने जीवन का एक विरल वरदान जो प्राप्त हुआ, वह अकेलापन, और इसका तात्पर्य थाइसका अच्छा उपयोग करना। एक अच्छे पुस्तकालय और शांत अध्ययन-कक्ष के अलावा जेल में एक बैडमिंटन कोर्ट एवं टेबल टेनिस हॉल था, जहाँ मैं नियमित रूप से खेलता था। असल में जयंत, जो कि अब एक शीर्ष टेबल टेनिस खिलाड़ी है, ने सर्वप्रथम इस खेल के प्रति रुचि उस समय विकसित की, जब वह कमला और प्रतिभा के साथ पहली बार मुझसे बंगलौर जेल में मिलने आया था। चूँकि मेरे कई साथी कैदी कर्नाटक से थे, मैंने कन्नड़ सीखना शुरू कर दिया और समाचार-पत्रों की मुख्य खबर पढ़ने और कुछ प्रारंभिक वाक्य बोलने में काफी प्रगति कर ली। समय बिताने का मेरा सर्वप्रिय साधन निश्चित रूप से पुस्तकें और पुस्तकालय था।
जेल के दौरान मेरे सुखद क्षण वे होते थे, जब मुझे या तो कमला या मेरे बच्चों द्वारा लिखे पत्र प्राप्त होते थे अथवा वे मुझसे मिलने बंगलौर आते थे। मुझे पता चला कि अध्यापिका अकसर प्रतिभा और जयंत से पूछती थी'पापा वापस आए?' मेरे बच्चों को यह कहते हुए बहुत कष्ट होता था'नहीं, अभी नहीं।' मुझे अपने कारावास का कभी कोई पछतावा नहीं हुआ, चूँकि यह लोकतंत्र की रक्षा के लिए चुकाया जानेवाला अनिवार्य मूल्य था। फिर भी, कोई भी ऐसी बात जो मेरे बच्चों को कष्ट दे, मुझे क्षोभ से भर देती थी।
भारतीय इतिहास के सर्वाधिक अंधकारपूर्ण कालखंड की समाप्तिवर्ष 1976 के अस्त होते-होते इस बात के संकेत बढ़ने लगे थे कि आपातकालीन सूर्य भी अस्त होगा।
इंदिरा गांधी की अलोकप्रियता देश में और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती जा रही थी। उनका एकमात्र समर्थक सोवियत संघ और कम्युनिस्ट गुट के कठपुतली शासक थे।
16 जनवरी को मैंने डायरी में लिखा'इंडियन एक्सप्रेस में प्रमुख खबर है कि लोकसभा चुनाव मार्च के अंत अथवा अप्रैल के आरंभ में होंगे और इस संबंध में औपचारिक घोषणा संसद् के अगले सत्र के आरंभ में की जाएगी।' इसके दो दिन पश्चात् 18 जनवरी, 1976 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लोकसभा भंग किए जाने की घोषणा की।
डायरी में मेरी आखिरी टिप्पणी, जो 18 जनवरी को मेरे स्वतंत्र होने से कुछ पहले लिखी गई थी, इसप्रकार हैदोपहर में लगभग 1.30 बजे जेल अधीक्षक छबलाणी मेरे कमरे में आए और कहा कि एक वायरलेस संदेश दिल्ली से आया है, जो मेरे कारावास को समाप्त करने के संबंध में है.......
चुनावों की घोषणा और जनता पार्टी का जन्म
बंगलौर में एक दिन व्यतीत करने के बाद मैं मद्रास (अब चेन्नई) चला गया, जहाँ से मैंने 20 जनवरी को दिल्ली के लिए उड़ान भरी। कमला और बच्चे रेलगाड़ी से घर लौटे। इस समय तक अटलजी भी रिहा हो चुके थे। इससे पहले उन्हें दिल्ली के एम्स (AIIMS) अस्पताल में भेज दिया गया था, जहाँ वे स्लिप डिस्क ऑपरेशन के बाद स्वास्थ्य-लाभ कर रहे थे। मोरारजी भाई को तावडू (हरियाणा) के कारावास से मुक्त किया गया। तीन दिन बाद 23 जनवरी को इंदिरा गांधी ने मार्च में चुनाव कराए जाने की घोषणा की। इस घोषणा के बाद कई अन्य राजनीतिक बंदियों को रिहा कर दिया गया।
देश में राजनीतिक घटनाक्रम बिजली की-सी तेजी से बदला। जिस दिन नए चुनावों की घोषणा हुई उसी दिन जयप्रकाशजी ने जनता पार्टी के निर्माण की घोषणा की और अट्ठाईस सदस्यीय एक राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति बनाई, जिसमें मोरारजी देसाई को अध्यक्ष और चरण सिंह को उपाध्यक्ष बनाया गया। इसके सदस्य चार दलोंजनसंघ, कांग्रेस (ओ), सोशलिस्ट पार्टी और लोकदल से थे, जिन्होंने विलय के बाद एक नए दल को जन्म दिया। मधु लिमये, रामधन और सुरेंद्र मोहन के साथ मैं इसके चार महासचिवों में से एक था।
जनता पार्टी के जन्म से देश में राजनीतिक स्थितियाँ बदल गईं। ऐसा लगता था कि यह एक विशाल और हितैषी शक्ति है, जो भारत को उन्नीस महीने के निरंकुश शासन से मुक्ति दिलाएगी। हालाँकि चुनाव होने में अभी कुछ सप्ताह शेष थे और लोगों को अभी आपातकाल पर अपना फैसला देना था, लेकिन हवा में तानाशाही पर लोकतंत्र की विजय की तरंग घुल गई थी। मुझे लगता था कि भारत एक नाटकीय कायांतरण के शीर्ष पर खड़ा है, जो एक युग के समापन और एक नए युग के उदय का संकेत है। इसकी तुलना तीन दशक पूर्व वर्ष 1947 में भारत द्वारा पारगमन के संबंध में किए गए अनुभव से की जा सकती थी। निश्चित रूप से भारत में यह दूसरा स्वतंत्रता संग्राम विजयी हुआ था।
लोकसभा चुनावों की तैयारी के लिए बहुत कम समय बचा था, जो कि 16 मार्च को होने अधिसूचित थे। जनता पार्टी को चुनाव प्रचार के आरंभ से ही कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। हमारा झंडा और चुनाव-चिह्न नए थे, इसलिए मतदाता इसे कम जानते थे। इसके विपरीत, लोग कांग्रेस के चुनाव-चिह्न चरखा से भली-भाँति परिचित थे। हमारी पार्टी के पास संसाधनों का अभाव था, जबकि कांग्रेस के पास अपार धन था। कांग्रेस के पास सरकार-नियंत्रित मीडिया भी था। चूँकि आपातकाल अभी भी औपचारिक रूप से लागू था, लोग आमतौर पर डरे और सशंकित थे। वे खुले तौर पर इस बात पर चर्चा करने को तैयार नहीं थे कि वे अपना वोट किसे देंगे। लेकिन यह सच है कि जनता पार्टी की चुनाव सभाओं में काफी भीड़ जुटती थी; किंतु आरंभिक दिनों में कांग्र्रेस-विरोधी लहर का कोई संकेत नजर नहीं आता था। वास्तव में कांग्रेस के झंडे गाँवों और कस्बों दोनों में जनता पार्टी से बहुत अधिक संख्या में लगे थे।
फिर भी हवा में बदलाव का एक झोंका आ रहा था। एक निर्वाचक भूकंप के पूर्व कंपन का अनुभव हो रहा था।
यह स्पष्ट रूप से सिध्द हो गया, जब 20 मार्च को चुनाव परिणाम घोषित हुए।कांग्रेस स्वतंत्रता के बाद पहली बार पराजित हुई। जनता पार्टी को 542 सदस्यीय सदन में 295 सीटों के साथ स्पष्ट बहुमत मिला। कांग्रेस की सूची मात्र 154 सीटों तक सीमित रह गई। सत्ताधारी दल के लिए यह पराजय उस समय और शर्मनाक हो गई, जब यह खबर फैली कि इंदिरा गांधी रायबरेली से और उनके पुत्र संजय गांधी अमेठी से चुनाव हार गए हैं। ये दोनों उनके अपने निर्वाचन क्षेत्र थे।
आपातकाल आधिकारिक रूप से 23 मार्च, 1977 को समाप्त हो गया। इसके साथ ही भारतीय गणतंत्र के इतिहास की सर्वाधिक अंधकारपूर्ण अवधि का अंत हो गया।
  (ब्लॉग से साभार)

:एक समग्र दृष्टिकोण

-स्‍वास्‍थ्‍य पर  विशेष लेख                                                   एस. सिवकुमार * 
नशीली दवाओं का उपयोग ऐसा विकार है जिसमें हानिकारक तरीके से वस्‍तु का उपयोग होता है जिससे कि अलग तरह की समस्याएँ और परेशानियां उत्‍पन्‍न होती हैं।  किशोर तेजी से नशीली दवाओं का उपयोग कर रहे हैं, विशेषकर ऐसे नशीले पदार्थ (जो तेज दर्द में राहत देने के लिए निर्धारित होते हैं) और ऐसी उत्‍तेजक दवाईयां जो किसी खास देखरेख के अभाव से आए मानसिक अवसाद से जुड़ी समस्‍याओं के इलाज में काम आती है।
पुराने समय में .......
    प्रारंभ में नशीली दवाओं के उपयोगकर्ताओं को ऐसे व्‍यक्तियों के तौर पर देखा जाता था जिनमें नैतिक मूल्‍यों की कमी होती है आमतौर पर यह माना जाता था कि इस लत को वे स्‍वयं नहीं छोड़ सकते। इसे पहली बार अन्‍य रोगों की तरह एक रोग के रूप में एल्‍कोहोलिक्‍स एनोनिमस द्वारा पहचाना गया। एल्‍कोहोलिक्‍स एनोनिमस संगठन ने इस क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाई। इन कारणों का पता लगाया कि एक व्‍यक्ति बेहद कम समय मे इस तरह की दवाइयों के उपयोग से खुद पर क्‍यों नियंत्रण खो देता है। डॉक्‍टर जेली नेक के गहन अध्‍ययन ने शराब/नशीली दवाओं का उपयोग करने वालों के प्रति अब तक की धारणा को बदलने में मदद की। इसके बाद तंत्रिका शारीरिक विज्ञान की प्रगति के बाद, विशेषकर 1956 के बाद ये निष्‍कर्ष निकाला गया कि नशीली दवाओं का उपभोग एक दीर्घकालिक बीमारी है जो व्‍यक्ति को पूरे जीवन भर परेशान करती रहती है और अंतत: उचित उपचार द्वारा इसका इलाज हो सकता है।  नशे की लत के रोग को पुराने समय की तुलना में बेहतर ढंग से समझा जाने लगा है। ऐसे मामलों में उचित उपचार के लिए सहानुभू‍ति की तुलना में रोग की पहचान और नियमित उपचार की जरूरत है। इस रोग का इलाज उन रोगियों के उपचार के समान करना पड़ता है जो मधुमेह पर नियंत्रण या उच्‍च रक्‍तचाप जैसी स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी समस्‍याओं से जूझ रहे हैं।
दवाओं के प्रकार
    गलत रूप से इस्‍तेमाल की जाने वाली दवाओं में ब्राउन शूगर, (इसका निम्‍न रूप हीरोइन है), कैनाविस  (गांजा, भांग और ऐसी अन्‍य श्रेणियां)शामिल हैं। शराब भी नशीली दवाओं की श्रेणी में आती है क्‍योंकि ये एक तरल उत्‍तेजना देने वाला रसायन है। पेंट और अन्‍य सामग्री में प्रयोग किया जाने वाला थिनर को भी नशीला पदार्थ कहा जा सकता है। ऐसे मामले भी नशीली दवाओं के दुरुपयोग के हो सकते है, जहां पर चिकित्‍सक द्वारा निर्धारित की गई दवाओं का अधिक मात्रा अथवा नियत मात्रा से अधिक रूप में सेवन हो। नशे के आदी व्‍यक्ति ये मानते है कि उन्‍हें इससे एक विशेष अनुभूति होती है और इसलिए वे इसका निरंतर इस्‍तेमाल करने लगते हैं, जबकि वास्‍तव में दवा के रूप में जबकि इसकी जरूरत नहीं होती है।
विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन (डब्‍ल्‍यू एच ओ) की रिपोर्ट
    विश्‍व स्वास्‍थ्‍य संगठन जैसे निकायों द्वारा जारी की गई वार्षिक रिपोर्ट सामान्‍यतौर पर प्रयोग की जाने वाली नशीली दवाओं के स्‍वरूप में बढोत्‍तरी/कमी को दर्शाती है, कभी हेरोइन समोकिंग का प्रयोग ज्‍यादा देखने को मिलता है तो कभी भांग का सेवन ज्‍यादा पाया जाता है। इन सभी स्‍वरूपों को किसी और चीज की तुलना में नशीली दवाओं के दुरूपयोग में उतार-चढाव के रूप में ज्‍यादा देखा जाना चाहिए। कोई व्‍यक्ति नशीली दवाओं का आदी है या नहीं, यह तय करने के लिए अनेक मापदंड हैं। ये शारीरिक चेतावनी संकेतों, भावनात्‍मक संकेतों से लेकर पारिवारिक गतिविधियों में अचानक या धीरे-धीरे आए बदलाव हो सकते हैं, जो सामाजिक व्‍यवहार में स्‍पष्‍ट बदलाव लाते हैं। नशीली दवाओं का सेवन करने वाले व्‍यक्ति का भोजन कम हो जाता है और उनको नींद कम आती है, जिससे उनकी आंखें लाल और चमकती हुई दिखती हैं। ऐसा व्‍यक्ति अपनी आम रूचि भी खो सकता है और मनोदशा में अचानक बदलाव का पीडित हो सकता है। वह छुपकर अकेला रहना चाहता है और परिवार से दूर रहने की कोशिश करता है। सामाजिक पक्ष पर वह कुल मिलाकर नकारात्‍मक रवैये के साथ कामचोर बनने की कोशिश करता है। लेकिन अंगूठे के नियम के रूप में यह बेहतर होगा यदि ऐसा व्‍यक्ति एक चिन्‍ह के रूप में एक ही नशीली दवा के प्रयोग से जुडा रहता है, जहां प्रयोग करने वाले को परिणामों की पूरी जानकारी होती है, लेकिन मात्रा और अंतराल के आधार पर मादक द्रव्‍य के उपभोग को खत्‍म करने की विचित्र अक्षमता को रोका जाता है और नशीली दवाओं के दुरूपयोग को छोडने के प्रति एक दुर्गम प्रेरणा के प्रति मोडा जाता है।
दुर्बलता
    नशीली दवाओं का आदी होने के कारणों पर नजर डालने के बदले इसे आदी होने के प्रति दुर्बलता के रूप में समझना बेहतर है। इस आदत के बनने में अनुवांशिक संरचना एक महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाती है। पीडि़त व्‍यक्ति के परिवार के सदस्‍य और मित्र एक अवरोधक के रूप में काम कर सकते हैं या नशीली दवाओं के सेवन की आदत को और बढा सकते हैं ताकि इससे प्राप्‍त होने वाली सकारात्‍मक उम्‍मीद बढ़ सके। अगर उसके आसपास के लोगों की मौन स्‍वीकृति है तो इसे एक सामान्‍य आदत के रूप में लिया जाता है। यह अब नशीली दवाओं का दुरूपयोग नहीं है बल्कि यह सिर्फ यथोचित प्रयोग माना जाएगा। उपरोक्‍त दुर्बलता के लिए मनोवैज्ञानिक-सामाजिक घटक, बचने की क्षमता का अभाव, अत्‍यधिक भावनात्‍मक पीडा के दौरान मित्रों के सहयोग की प्रक्रिया में से कोई एक या सभी जिम्‍मेदार कारण हो सकते हैं।
वापसी के संकेत
     वापसी के संकेत 
एक असहज भावना उत्‍पन्‍न करते हैं और उस मादक द्रव्‍य पर निर्भर करते हैं जिसका सेवन किया गया है। शरीर और मस्तिष्‍क अशांत हो जाता है, काफी चिड़चिड़ा हो जाता है, शरीर के सभी अंग प्रभावित हो सकते हैं और नींद में बाधा आती है। यह शारीरिक संतुलनों के उस जोड़े के समान है, जिसमें एक मापदंड अपनी चरम सीमा पर है और जो भी नियम पूर्वक हो रहा है, वह पुनर्संतुलन की एक प्रक्रिया है। अगर रोगी कम मात्रा में मादक द्रव्‍य का सेवन करना चाहता है तो उसका मस्तिष्‍क उसके पिछले अनुभवों को फिर से याद कर लेता है और पूर्ण संतुष्टि पाने तक उसे ज्‍यादा से ज्‍यादा मादक द्रव्‍य का सेवन करने के लिए उसे बाध्‍य करता है। यह एक ऐसी स्थिति है जिससे पूरी तरह बचना चाहिए। यह याद रखना जरूरी है कि एक नशीली दवा के विकल्‍प के रूप में दूसरी नशीली दवा लेना न तो कोई समाधान है और न ही उपचार।
उपचार
    नशीली दवाओं का सेवन शारीरिक और मानसिक बीमारी है। हालांकि इसका इलाज चिकित्‍सा के तौर पर शुरू किया जा सकता है लेकिन यह पर्याप्‍त नही है इसके लिए रोगी को अत्‍यधिक मनोवैज्ञानिक मदद की आवश्‍यकता होती है। यदि कोई व्‍यक्ति अवसाद की स्थिति में तीन वैलियम गोलियां लेता है तो उसे इनके बिना भी अपना समय गुजारने के लिए समझाने की जरूरत है। इसके लिए लंबे समय के इलाज की जरूरत होती है जिसमें जीवन स्‍तर में बदलाव, परिवार का शामिल होना और कई तरह के उपचार होते हैं।
रोकथाम
    रोकथाम एक सामुदायिक प्रक्रिया है और यह एक समय अथवा एक दिन का मामला नहीं है बल्कि एक लंबी प्रक्रिया है। इस बारे में सिर्फ यह जानकारी देने से काम नहीं चलेगा कि नशीली दवाएं स्‍वास्‍थ्‍य के लिए खराब होती हैं, इसके लिए उनसे बचने की क्षमता का विकास करना, नशीली दवाओं के सेवन के न कहना सीखना, एक अच्‍छा सहयोग तंत्र और समय-समय पर नशीली दवाओं की लत के खिलाफ संदेशों का लगातार प्रचार करना और एक समग्र प्रयास की जरूरत है।
सरकारी पहल
    केन्द्रीय सामाजिक न्‍याय और अधिकारिता मंत्रालय वर्ष 1985-86 से नशीली दवाओं के उपयोग पर रोक और निषेध के लिए योजना का कार्यान्‍वयन कर चुका है जिसका मुख्‍य उद्देश्‍य देश में नशीली दवाओं की मांग में कमी लाने से जुडे कार्यक्रम चलाना है। नशीली दवाओं की लत को छुड़ाना और इसके आदी लोगों के पुनर्वास के लिए कार्यक्रमों के कार्यान्‍वयन के लिए ऐसे दीर्घकालिक और समर्पित स्‍तर के समन्वित प्रयासों की जरूरत है जिन्‍हें स्थिति के अनुरूप ढाला जा सके और यह प्रेरक भी हों। इस मामले में सेवा प्रदान करने के लिए एक मजबूत तंत्र के तौर पर राज्‍य-समुदाय (स्‍वैच्छिक) साझेदारी खासतौर पर सामने आई है। इसके अनुसार, योजना के तहत सेवाओं की लागत का मुख्‍य हिस्‍सा सरकार द्वारा वहन किया जाता है जबकि स्‍वैच्छिक संगठन परामर्श, जागरूकता कार्यक्रम केन्‍द्र, नशामुक्ति और पुनर्वास केन्‍द्र, नशा छुड़ाने से संबंधित शिविर और जागरूकता कार्यक्रमों के माध्‍यम से मूल सेवाएं प्रदान करते हैं। मंत्रालय देश भर में 376 नशामुक्ति और पुनर्वास केन्‍द्रों तथा 68 परामर्श और जागरूकता केन्‍द्रों को चलाने के लिए 361 स्‍वैच्छिक संगठनों की मदद कर रहा है। स्‍वैच्छिक संगठनों के माध्‍यम से चलाये जा रहे इन केन्‍द्रों में इलाज की सुविधा को प्रदान करने का मूल उद्देश्‍य परिवार और समुदाय की मदद को सुनिश्चित करना और इसे अधिकतम स्‍तर तक ले जाना है। लंबे समय तक गहन चिकित्‍सा की जरूरत वाले नशीली दवाओं के आदी रोगियों के चिकित्‍सा उपचार की सुविधा प्रदान करने के लिए सरकारी अस्‍पतालों, प्राथमिक स्‍वास्‍थ्‍य केन्‍द्र आदि में 100 नशामुक्ति केन्‍द्र संचालित किए जा रहे हैं। सरकार की इन पहलों में सेवाओं के न्‍यूनतम मानकों को विकसित करते हुए गुणवत्‍ता आश्‍वासन और न्‍यूनतम मानकों को सुनिश्चित करने के साथ-साथ पेशेवर मानव श्रम विकास शामिल हैं। एक शीर्ष संस्‍थान के तौर पर नशीली दवाओं की रोकथाम के लिए राष्‍ट्रीय केन्‍द्र ने औषधि क्षेत्र में प्रशिक्षण, अनुसंधान और विकास को अनिवार्य कर दिया है जहां अतिसंवेदनशील लक्ष्‍यों के लिए केन्द्रित हस्‍तक्षेप, कार्यस्‍थल रोकथाम कार्यक्रम, सरकार, आई.एल.ओ. गैर सरकारी संगठन तथा कॉरपोरेट क्षेत्र के समन्वित प्रयास परिणाम के रूप में सामने आए हैं। इस सहयोग में विभिन्‍न हितधारकों और ए.आर.एम.ए.डी.ए. के नाम से जाने जाने वाली एल्‍कोहल एवं नशीली दवाओं के दुरूपयोग के खिलाफ संसाधन प्रबंधकों की एसोसिएशन के एक प्रभावी समूह का गठन शामिल है।

Monday, June 25, 2012

लगातार गहराती समस्या

नशीली दवाओं का दुरुपयोग-विशेष लेख            लेखक: प्रदीप सुरीन* 
साभार तस्वीर 
     हाल ही में मुंबई और दिल्ली में कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनमे युवाओं की गिरफ्तारी और ढेर सारे नशीली दवाओं का जखीरा पकड़ा गया। आज जब पूरे विश्व में नशीली दवाओं के दुरुपयोग का दिवस मनाया जा रहा है, एक बात जो बिलकुल साफ नजर आ रही है, वो यह है कि भारत के युवाओं में इसकी जड़ें काफी गहरी होने लगी है। यह समस्या पूरे विश्व के साथ ही भारत के लिए भी एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आई है।            जरा इन आंकड़ों पर गौर फरमाएं, विश्व स्वास्थय संगठन (डब्लूएचओ) के ताजा रिपोर्ट के अनुसार पूरी दुनिया में लगभग 2.5 मिलियन लोगों की मौत सिर्फ शराब पीने के कारण हो रही है। सबसे बुरी तरह से युवा इसकी चपेट में है। रिपोर्ट में बताया गया है कि 15-29 की उम्र वाले युवाओं में से प्रतिवर्ष 3,20,000 की मौत हो रही है। यह संख्या दुनिया में हो रही कुल मोतौं का लगभग नौ फीसदी है। पूरी दुनिया में 15.3 प्रतिशत लोग नशीले दवाओं के कारण प्रभावित हैं। 
           भारत सरकार द्वारा इक्टठा किए गए आंकड़े भी कुछ अच्छे नहीं हैं। 2000-01 में नैशनल सर्वे और यूनाइटेड नेशन ऑफिस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम (यूएनओडीसी) के साझा सर्वे से पता चला है कि देश में 732 लाख लोग अल्कोहल और ड्रग की चपेट में हैं। इनमें से 87 प्रतिशत भाँग खाते हैं, जबकि 20 लाख लोग अफीम का सेवन करते हैं। यही नहीं इस एकमात्र सर्वे में यह भी सामने आया है कि 625 लाख लोग शराब के खतरनाक स्तर तक पीने से ग्रसित पाए गए हैं। हालांकि रिपोर्ट में साफ किया गया है कि यह बहुत छोटे सैंपल में किया गया था।

           केंद्रीय सामाजिक व अधिकारिता मंत्रालय ने इस छोटे सैंपल सर्वे में भी इतने चौंकाने वाले साक्ष्यों को गंभीरता से लेते हुए पूरे देश में नशीले व मादक दवाओं पर ब़डा सर्वे कराने का फैसला किया है। इस सर्वे के लिए नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाजेशन (एनएसएसओ) को जिम्मेदारी दी गई है। इसके एनएसएसओ महाराष्ट्र, पंजाब और मणिपुर में एक बड़ा सैंपल सर्वे भी करेगा। मामले की गंभीरता को देखते हुए देश में कराए जा रहे राष्ट्रीय स्तर के सर्वे में केंद्रीय सामाजिक व अधिकारिता मंत्रालय के अलावा नेश्नल एड्रस कंट्रोल ऑर्गनाजेशन (नाको), नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) और सभी राज्यों के संबंधित घटकों को भी शामिल किया जाएगा।

           इसके अलावा केंद्रीय सामाजिक व अधिकारिता मंत्रालय देश में नशीले दवाओं और शराब की गिरफ्त में आ चुके आम लोगों को इनसे छुटकारा दिलाने के लिए देश व्यापी नशा-उन्मूलन कार्यक्रमों में भी खासी दिलचस्पी दिखा रहा है। मसलन, इसके लिए केंद्र सरकार ने दो खास रणनीतियों पर चलने का निर्णय किय है। पहला, नशा रोकथाम कार्यक्रम है। इसके तहत केंद्रीय सामाजिक व अधिकारिता मंत्रालय नशे की गिरफ्त में फंसे मरीजों को मानसिक, सामाजिक और स्वास्थ्य संबंधि सेवाएं उपलब्ध कराया जा रहा है। इसी के साथ ही युवाओं और बच्चों को नशीले दवाओं के सेवन से दूर रखने और इसके खतरे से आगाह करने के लिए देश के हर जिले, कस्बे और गांवों में जनचेतना अभियान चलाया जा रहा है। इसमें नुक्कड-नाटकों और सामुदायिक हस्तक्षेप को प्राथिमकता दी जा रही है। केंद्र सरकार ने स्थानीय स्वयंसेवी संगठनों को भी लगातार मदद देने की योजना बनाई है।

           दूसरा सबसे अहम कदम नशा मुक्ति और पुनर्वास पर राष्ट्रीय सलाहकार समिति का गठन है। केंद्रीय सामाजिक व अधिकारिता मंत्री की अध्यक्षता में गठित इस समिति में नशा-मुक्ति पर समय समय पर नए नीतियों को लागू करने का प्रावधान है। हाल ही में इस समिति ने अल्कोहल और ड्रग से छुटकारे के लिए नई योजना लागू की है। पूरे देश में नशीली दवाओं के इस्तेमाल को खत्म करने के लिए केंद्र सरकार बहुत जल्द एक राष्ट्रीय नीति लागू करने की योजना बना रही है। सभी घटकों से बातचीत कर इसका मसौदा तैयार किया गया है। जिसे अंतिम मंजूरी के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता वाली कैबिनेट के पास मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। एक बार मंजूरी मिलने के बाद उम्मीद जताई जा रही है कि जल्द इसे संसद में कानून बनने के लिए रखा जाएगा।

           स्वंयसेवी संगठनों को आर्थिक मदद    ऐसी नहीं है कि केंद्रीय सामाजिक व अधिकारिता मंत्रालय देश में नशा मुक्ति के लिए सिर्फ नीतियां ही बनाने का काम कर रही हो। इस बड़े मिशन में सभी तरह से हस्तक्षेप करने के लिए स्वंयसेवी संगठनों की भी पूरी मदद ली जा रही है। राज्य के हर जिले और  गांवों में नशा मुक्ति अभियान के तहत 20 और 40 बिस्तरों के पुनर्वास केंद्र खोलने के लिए 95 प्रतिशत तक आर्थिक मदद मुहैया कराई जा रही है। इन केंद्रों में गरीबी रेखा से नीचे जीने वाले और नशे की बीमारी से ग्रसित लोगों के मुफ्त इलाज के अलावा 900 रूपए प्रतिमाह की आर्थिक सहायता भी देने का प्रावधान रखा गया है। 2009-10 के वित्तीय वर्ष में इस मद में लगभग 96,675 करोड़ रुपए आवंटित किया गया था। जबकि 2010-11 वर्ष के दौरान इसके लिए केंद्रीय सामाजिक व अधिकारिता मंत्रालय ने लगभग 1,10,700 करोड़ रुपए दिए। साल 2011-12 में केंद्र सरकार की और से स्वंयसेवी संगठनों को लगभग 1,20,000 करोड़ रुपए सिर्फ नशा-मुक्ति अभियान के लिए आवंटित किया गया।

           भले नशीली दवाओं के दुरुपयोग पर केंद्र सरकार की प्रभावी योजनाएं और नीतियां काफी व्यापक जनता को ध्यान में रखकर बनाई जा रही हो। लेकिन असल चुनौती तब सामने आएगी जब पूरे देश में नशीले उत्पादों पर होने वाले सर्वे के आंकड़े सामने आ जाएंगे। संभावना है कि नए रिर्पोटों के आने के बाद सरकार को मौजूदा नीतियों को बड़े बदलाव के साथ लागू करना पड़े। (पीआईबी)  
25-जून-2012 15:50 IST

*प्रधान संवाददाता, दैनिक भास्कर

Sunday, June 24, 2012

बाबा बर्फानी की कृपा से नापाक साजिश फिर नाकाम

अमरनाथ यात्रा से पहले आतंकी साजिश नाकाम 
पंजाब केसरी से साभार 
जम्मू/पुंछ  (बलराम/ धनुज):  अमरनाथ यात्रा से पहले सेना ने आज बड़ी आतंकी साजिश को नाकाम कर दिया। जानकारी के अनुसार पुंछ जिले के पोथा के जंगलों में तलाशी के दौरान सुरक्षा बलों ने आज भारी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद बरामद कर आतंकवादियों के मन्सूबों पर पानी फेर दिया है। सेना और पुलिस के संयुक्त दल ने इस क्षेत्र से 2 आई.ई.डी., 3 राइफल्स और 16 ग्रेनेड बरामद किए हैं। ऐसा नहीं है कि श्री अमरनाथ यात्रा में खलल डालने की कोशिश पहली बार हुई है। इससे पहले भी वर्ष 2010 में शिवभक्तों को जहां कश्मीर में पत्थरबाजी के दौर का सामना करना पड़ा वहीं 2011 में जवाहर टनल के पास एक बस से भारी मात्रा में विस्फोटक पदार्थ बरामद कर सुरक्षा बलों ने आतंकी साजिश को नाकाम किया था।
सुरक्षा बलों की इस मुस्तैदी की बदौलत ही पिछले वर्ष पवित्र श्री अमरनाथ गुफा में हिम शिवङ्क्षलग के रूप में विराजमान बाबा बर्फानी के दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं ने पिछले सभी रिकार्ड ध्वस्त कर नया कीॢतमान स्थापित किया था।   जम्मू-कश्मीर बेहद संवेदनशील राज्य होने के नाते केवल श्री अमरनाथ यात्रा मार्ग पर ही नहीं बल्कि पूरे राज्य में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है। सुरक्षित यात्रा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से जम्मू-कश्मीर पुलिस और सेना के अलावा केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की 76 कंपनियों को विशेष तौर पर तैनात किया गया है। (पंजाब केसरी से साभार


कैसे कैसे कलाकार

तस्वीर देख कर आपको हैरानी हो सकती है पर तस्वीर पूरी तरह से सच है। लोग इतनी बढ़ी संख्या में एकत्र भी हैं और नग्न भी। एक तरह की नग्न परेड जो न तो किसी तरह का रोष व्यक्त करने के लिए हो रही है और न ही किसी अत्य चारी के आदेश पर। ये लोग नग्न हुए हैं किसी कलाकार के लिए जो इन्हें देख कर अपनी तस्वीर में जान भरना चाहता है। लोग भूख से तडप रहे हैं। अलग अलग हिंसक घटनायों में गोलियों और बमों का शिकार हो रहे हैं पर कलाकार के मन पर इस सब का कोई प्रभाव ही नहीं. वह इन्हें नग्न करवा क्र अपनी नई तस्वीर बनाना छह रहा है। आप ऐसी कला के बारे में क्या सोचते हैं कला कला के लिए या फिर कला लोगों के लिए ???  आपके विचारों की इंतज़ार बनी रहेगी। इस तस्वीर को हम यहाँ प्रकाशित कर रहे हैं दैनिक पंजाब केसरी से साभार। इस पैरेड में 1700 लोगों ने भाग लिया।

Friday, June 22, 2012

इस वर्ष हुई अनाज की खरीद सबसे अधिक

केंद्रीय अनाज भंडार में 823 लाख मीट्रिक टन से अधिक का भंडारअनाज के भंडारण के लिए और आवश्‍यकता वाले राज्‍यों को तेजी से अनाज पहुंचाने के लिए किये गये कई
   इस वर्ष अनाज की सबसे अधिक खरीद को देखते हुए खाद्य मंत्रालय ने अनाज के भंडारण के लिए और आवश्‍यकता वाले राज्‍यों को तेजी से अनाज पहुंचाने के लिए कई उपाय किये हैं। इन उपायों में मौजूदा भंडारण क्षमता का उपयोग, अतिरिक्‍त क्षमता का निर्माण, खराब हो रहे अनाज को हटाने की योजना के साथ-साथ दैनिक आधार पर अनाज को एक स्‍थान से दूसरे स्‍थान तक पहुंचाने की निगरानी जैसे उपाय शामिल हैं। यह जानकारी केंद्रीय खाद्य मंत्री प्रो.के.वी.थॉमस ने आज यहां एक संवादाता सम्‍मेलन में दी।

    उन्‍होंने कहा कि अनाज के रिकार्ड उत्‍पादन और न्यूनतम समर्थन मूल्‍य में बढ़ोतरी के साथ अनाज की खरीद के लिए किये गये बेहतर उपायों से इस‍ वर्ष अनाज की सबसे अधिक खरीद हुई है। 1 जून, 2012 को केंद्रीय अनाज भंडार में 823.17 लाख मीट्रिक टन का भंडार था, जिसमें 501.69 लाख मीट्रिक टन गेहूं और 321.48 लाख मीट्रिक टन चावल था।

    प्रो.थॉमस ने कहा कि केंद्रीय भंडार के लिये खरीदे गए अनाज का भंडारण भारतीय खाद्य निगम और राज्‍य सरकार तथा इनकी एजेंसियों द्वारा किया जाता है। पिछले पाँच वर्षों में भारतीय खाद्य निगम की भंडारण क्षमता 31 मार्च, 2008 को 238.94 लाख मीट्रिक टन थी, जो लगभग 40 प्रतिशत बढ़कर 31 मार्च, 2012 को 336.04 लाख मीट्रिक टन हो गई।

    भारतीय खाद्य निगम और राज्‍य सरकार तथा इनकी एजेंसियां अनाज का भंडारण ढके हुए स्‍थान पर करती है और अनाज रखने के लिए प्‍लेटफार्म (चौकी) बनायी जाती है। इसके लिए कैप (CAP-COVER AND PLINTH) और कच्‍चा कैप भंडारण का तरीका अपनाया जाता है। 1 जून, 2012 को 273.96 लाख मीट्रिक टन गेहूं का खुले में भंडारण किया गया था- वैज्ञानिक कैप में 207.79 लाख मीट्रिक टन और कच्‍चा कैप में 66.17 लाख मीट्रिक टन।

    केंद्रीय भंडार के गेहूं के कुल भंडार में से 87 प्रतिशत ढके हुए और कैप स्‍टोरेज में किया जाता है और इसे सुरक्षित भंडारण माना जाता है। बाकी का 13 प्रतिशत गेहूं कच्‍चे स्‍थानों पर किया जाता है, जिससे नुकसान का खतरा बना रहता है। कच्चे स्‍टोरेज में रखे गए अनाज में से 65.66 लाख मीट्रिक टन अनाज का भंडारण पंजाब, हरियाणा, मघ्‍यप्रदेश और राजस्‍थान में है।

    कच्‍चे स्‍टोरेज में रखे गए अनाज के संरक्षण के लिए सरकार सभी प्रयास कर रही है, क्‍योंकि वहां नुकसान का खतरा है। भारतीय खाद्य निगम के गोदामों की क्षमता के उपयोग में महत्‍वपूर्ण वृद्धि हुई है। 30 अप्रैल, 2011 को इसकी क्षमता का उपयोग 77 प्रतिशत था, जो 31 मई, 2012 को बढ़कर 98 प्रतिशत हो गया।

    अभूतपूर्व अनाज भंडार की स्थिति को देखते हुए विशेष उपाय के रूप में भारतीय खाद्य निगम ने 18 मई, 2012 को चावल के लिए ढेरी का आकार बढ़ाकर 162 मीट्रिक टन करने और गेहूं के लिए 181 मीट्रिक टन करने के आदेश जारी किये थे, ताकि क्षमता का अधिक से अधिक उपयोग हो सके। इस तरीके से भारतीय खाद्य निगम 5 से 10 लाख टन अधिक अनाज का भंडारण कर सका।

    निगम से कहा गया है कि वह राज्‍य सरकारों के साथ मिलकर अतिरिक्‍त भंडारण की योजना बनाए और निजी भंडारण स्‍थलों तथा सहकारी चीनी मिलों   आदि के भंडारण स्‍थलों आदि की सूची तैयार करे।

    भंडारण क्षमता की कमी वाले क्षेत्रों के महाप्रबंधकों से कहा गया है कि वे वास्‍तविक उपयोग के आधार पर भंडारण क्षमता किराये पर भी ले सकते है। उन्‍हें केंद्रीय भंडारण निगम, राज्‍य भंडारण निगम, एजेंसियों और निजी लोगों से आवश्‍यकतानुसार अनाज के भंडारण स्‍थल किराये पर लेने के लिए अधिकार दिये गये है। इसकी रूपरेखा इस प्रकार है:-

अधिक प्राथमिकता- वे स्‍थल, जहां गेहूं को कच्‍चे मैदान में और निचाई वाले स्‍थानों पर रखा गया है।

मध्‍यम प्राथमिकता- वे स्‍थल, जहां गेहूं को रोलर फ्लोर मिलों, चावल फ्लोर मिलों, चीनी मिलों आदि में रखा गया है।

कम प्राथमिकता- वे स्‍थल जहां गेहूं को भारतीय खाद्य निगम/राज्‍य सरकार के गोदामों के अंदर सड़क के किनारे रखा गया है। ऐसे भंडारण को लम्‍बे समय तक सुरक्षित माना जाता है।

    गेहूं को एक स्‍थान से हटाकर दूसरी जगह ले जाने के लिए ग्रेडिंग के आधार पर फैसला लिया जाता है और भारतीय खाद्य निगम दैनिक आधार पर इसकी निगरानी करता है। सरकार ने 5 करोड़ 98 लाख टन चावल और गेहूं लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली और अन्‍य कल्याण‍ योजनाओं के अंतर्गत रखा है। इसमें से गरीबी की रेखा से ऊपर के परिवारों को 60 लाख टन अधिक अनाज तथा गरीबी की रेखा के नीचे के परिवारों को 50 लाख टन अतिरिक्‍त अनाज दिया जायेगा। इससे गरीबी की रेखा से नीचे के 1.8 करोड़ अधिक परिवारों को लाभ होगा।

     इसके अलावा सरकार 30 लाख टन गेहूं खुले बाजार में बिक्री के लिए जारी कर रही है। खादय मंत्रालय ने सभी राज्‍यों के खाद्य सचिवों से कहा है कि वे अनाज भंडारण की आवश्‍यकता के लिए सरकारी-निजी भागीदारी के अंतर्गत गोदाम बनाने की अपनी योजनाएं बनाएं।

     वर्ष 2011-12 में ग्रामीण बुनियादी ढांचा विकास कोष के अंतर्गत गोदाम बनाने के लिए 2000 करोड़ रूपये रखे गए थे, जिसके उपयोग से कुछ राज्यों में लगभग 90 लाख टन अतिरिक्‍त क्षमता के गोदाम बनाए गए हैं। चालू वित्‍त वर्ष में इसके लिए 5 हजार करोड़ रूपये रखे गए हैं।

    राज्‍यों से ग्रामीण भंडारण योजना का भी लाभ उठाने को कहा गया है। इसके अंतर्गत 1 अप्रैल, 2001 से अब तक 310 लाख टन क्षमता के लिए 7 हजार से अधिक परियोजनाएं स्‍वीकृत की जा चुकी है।

    19 राज्यों में निजी उद्यमों और केंद्रीय तथा राज्‍य भंडारण निगमों के जरिए गोदाम विकसित करने के लिए शुरू की गई योजना के अंतर्गत 151.96 लाख टन की भंडारण क्षमता विकसित की जानी है। चालू वित्‍त वर्ष में उम्‍मीद है और 40 लाख टन की भंडारण क्षमता उपलब्‍ध हो जायेगी। (पीएआईबी)  
21-जून-2012 17:26 IST



              

Tuesday, June 19, 2012

न्‍यायालयों में लंबित मामलों से निपटना

विशेष लेख                                                                                                 के के पंत
न्‍यायालयों में बड़ी संख्‍या में बकाया और विचाराधीन मामले चिंता का विषय बने हुए हैं क्‍योंकि इससे अदालतों में मामले के निपटारे में देर लग रही है। 3 करोड़ लंबित मामलों में से 74 प्रतिशत 5 साल से कम पुराने हैं। भारत के मुख्‍य न्‍यायाधीश ने 5 साल से अधिक के 26 प्रतिशत पुराने मामलों को निपटाने के लिए न्‍यायिक व्‍यवस्‍था 5+ मुक्‍त करने की आवश्‍यकता बताई है। सरकार न्‍यायपालिका के साथ मिलकर लगातार देश में न्‍यायिक व्‍यवस्‍था में सुधार का प्रयास कर रही है। इस दिशा में सरकार ने वर्ष 2007 से न्‍यायालयों में कम्‍प्‍यूटरीकरण आरंभ किया है वर्ष 1993-94 से ही न्यायपालिका के बुनियादी ढ़ांचे में सुधार में निवेश किया जा रहा है।  हाल में भारत के मुख्‍य न्‍यायाधीश द्वारा राष्‍ट्रीय न्‍यायालय प्रबंधन व्‍यवस्‍था की स्‍थापना के बारे में अधिसूचना जारी की गई है। इससे मामले के प्रबंधन, न्‍यायालय प्रबंधन, न्‍यायालयों के प्रदर्शन को मापने के लिए मानक स्‍थापित करने और देश में न्‍यायिक आकंड़ों की एक राष्‍ट्रीय प्रणाली जैसे मुद्दों को पूरा करने में मदद मिलेगी।

आपराधिक न्‍याय व्‍यवस्‍था में निगोशिएबल इन्‍स्‍ट्रूमेंट्स एक्‍ट 1881 (पराक्रम्‍य लिखित अधिनियम) तथा मोटर वाहन अधिनियम 1988 के मामलों से न्‍यायिक व्‍यवस्‍धा अवरूद्ध हो रही है। इसे अवरोध मुक्‍त करने के लिए प्राथमिकता के तौर पर उन्‍हें विशेष अदालतों, लोक अदालतों और वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र द्वारा निपटाने के गंभीर प्रयास किए जा रहे हैं। राज्‍यों को भी निर्देश दिये गए हैं कि वे 13वें वित्‍त आयोग के तहत इस उद्देश्‍य तथा मामलों के निपटारे के लिए विशेष अदालतें और सुबह और शाम के न्‍यायालयों की स्‍थापना के लिए दिए गए धन का उपयोग करें

न्‍यायालयों में मामलों में देरी और बकाया मामलों में कमी लाने की  सरकार की कोशिश निरंतर जारी है। संरचनात्‍मक परिवर्तन और मामलों के निपटारे में न्‍यायालयों के प्रदर्शन की निगरानी दोनों के लिए पहले भी कई कदम उठाए गए हैं। विशेष अभियानों से भी मामलों के निपटारे में तेजी आई है। इनमें से एक, 1 जुलाई 2011 से 31 दिसम्‍बर 2011 के बीच चलाया गया।

हाल में सरकार ने राष्‍ट्रीय न्‍याय प्रदानकर्ता और विधिक सुधार  मिशन स्‍थापित किया है जो न्‍यायिक व्‍यवस्‍था में देरी और लंबित मामलों में विलम्‍ब जैस मुद्दों से निपटेगा तथा सभी स्तरों पर विभिन्‍न्‍उपायों द्वारा बेहतर उत्‍तरदायित्‍व स्‍थापित करेगा। इन उपायों में प्रदर्शन मानक की स्‍थापना और इसकी निगरानी, और विभिन्‍न स्‍तरों पर प्रशिक्षण के ज़रिए क्षमतावर्धन शामिल हैं।

इसके अलावा सरकार राज्‍यों को कई प्रकार की सहायता प्रदान कर रही है।  13वें वित्‍त आयोग ने वर्ष 2010-15 के बीच 5 वर्षों के लिए 5  हजार करोड़ के अनुदान की मंजूरी दी है। यह धन राज्‍यों को अनुदान के रूप में कई तरह के पहल के लिए दिये जा रहे हैं। इनमें मौजूदा संसाधनों के उपयोग से न्‍यायालयों में सुबह/शाम/पाली अदालतें चलाकर  कार्य के घंटों को बढ़ाना, नियमित अदालतों के काम के दबाव को कम करने के लिए लोक अदालतों को सहायता पहुंचाना, राज्‍य के विधिक सेवा प्राधिकरणों को अधिरिक्‍त धन उपलब्‍ध कराना जिससे कि वे हाशिेये पर पहुंचे लोगों को कानूनी सहायता में वृद्धि कर उन्‍हें न्‍याय पाने में मदद कर सकें, वैकल्पिक विवाद समाधान व्‍यवस्‍था को बढ़ावा देना जिससे की अदालतों के बाहर भी मामले का कुछ निपटारा हो सके, प्रशिक्षण कार्यक्रमों के जरिए न्‍यायिक अधिकारियों तथा जन और सरकारी वकीलों की क्षमता में वृद्धि और प्रत्‍येक न्‍यायिक जिले और उच्‍च न्‍यायालयों के भवनों में अदालत प्रबंधको के पद सृजित करना शामिल है। इस मद में राज्‍यों को 1353.62 करोड़ रुपये पहले ही जारी किए जा चुके हैं।

     केन्‍द्रीय योजना के तहत देश में जिला और अधीनस्‍थ न्‍यायालयों के कम्‍प्‍युटरीकरण और सर्वोच्‍च न्‍यायालय तथा उच्‍च न्‍यायालयों में आर्इसीटी सुविधाओं के उन्‍नयन के लिए केन्‍द्र सरकार द्वारा 100 प्रतिशत धन मुहैया कराया जा रहा है। देश में 31 मार्च 2012 तक 14229 अदालतों में से 9697 न्‍यायालयों को कम्‍प्‍युटरिकृत किया जा चुका है। बा‍की के न्‍यायालयों में कम्‍प्‍युटरीकरण का काम 31 मार्च 2014 तक पूरा हो जाएगा।

नागरिकों को उनके घर तक न्‍याय हासिल कराने के लिए ग्राम न्‍यायालयों के गठन के वास्‍ते ग्राम अधिनियम 2008 बनाया गया है। केन्‍द्र सरकार ग्राम न्‍यायालयों के गठन में गैर आवर्ती खर्च के लिए राज्‍यों को सहायता प्रदान कर रही है जिसकी खर्च की सीमा प्रति ग्राम न्‍यायालय 18 लाख रूपये है। केन्‍द्र सरकार इन ग्राम न्‍यायालयों के परिचालन के लिए पहले तीन वर्षों में हर साल सहायता देगी, जिसकी प्रति ग्राम पंचायत सीमा 3.20 लाख होगी।  राज्‍य सरकार द्वारा दी गई सूचना के आधार पर 153 ग्राम न्‍यायालय पहले ही अधिसूचित किये जा चुके हैं। इनमें से 151 ग्राम न्‍यायालय कार्यरत हैं।

न्‍यायपालिका की बुनियादी सुविधाओं के विकास के लिए एक केंद्र प्रायोजित योजना वर्ष 1993-94 से चलाई जा रही है जिसके तहत न्‍यायालय भवनों और न्‍यायिक अधिकारियों के आवासों के निर्माण के लिए केंद्रीय सहायता दी जा रही है ताकि राज्‍य सरकारों के संसाधन में बढ़ोत्‍तरी हो सके। इस योजना के तहत केन्‍द और राज्‍य सरकार 75 और 25 के आधार पर खर्च साझा करते हैं।  केवल पूर्वोत्‍तर क्षेत्र में इसका अनुपात अलग है जहां केन्‍द्र सरकार 90 प्रतिशत खर्च वहन करती है और वहां की राज्‍य सरकारें 10 प्रतिशत।  इस योजना के तहत 31 मार्च 2012 तक अब तक 1841 करोड़ रुपये दिये जा चुके हैं।

   सरकार न्‍यायालयों में मामलों के त्‍वरित निपटारे के लिए वकीलों और न्‍यायाधीशों सहित प्रतिभाशाली और अनुभवी लोगों को नियुक्‍त करने की आवश्यकता से भी अवगत है। 1977 में संविधान के अनुच्‍छेद 312 के तहत संशोधन कर एक अखिल भारतीय न्‍यायिक सेवा-एआईजेएस बनाया गया। बाद में विधि आयोग की रिपोर्टों, प्रथम राष्‍ट्रीय न्‍यायिक वेतन आयोग, केंद्र-राज्‍य सरकार के संबंधों के बारे में बनी समिति और वि‍भाग से संबद्ध संसदीय स्‍थायी समिति ने भी एआईजेएस को अपना व्‍यापक समर्थन दिया। हालांकि एआईजेएस के बारे में राज्‍य सरकारों और उच्‍च न्‍यायालयों के साथ हुए विचार विमर्श में आम सहमति संभव नहीं हो सकी है। पर सरकार का और अधिक  विश्‍वसनीय तथा मान्‍य निरूपण के जरिए इसे जारी रखने का प्रस्‍ताव है।

लेखक पत्र सूचना कार्यालय (दिल्‍ली) में उपनिदेशक हैं।                   
(13-जून-2012 20:26 IST}

Monday, June 18, 2012

कराची में बनेगी मेहदी हसन की मज़ार

2000 वर्ग गज की जमीन मजार के लिए स्वीकृत
नयी दिल्ली, 17 जून (भाषा)। शहंशाह-ए-गज़ल मेहदी हसन की मज़ार उत्तरी कराची में 2000 वर्ग गज के परिसर में बनाया जायेगा। यह मज़ार कराची की धरोहरों में से एक होगी।
लंबी बीमारी से जूझने के बाद मेहदी हसन का पिछले सप्ताह कराची के आगा खान अस्पताल में निधन हो गया। उनके बेटे आरिफ ने कराची से फोन पर बताया, ‘सिंध के गर्वनर डाक्टर इशरतुल इबाद ने 2000 वर्ग गज की जमीन अब्बा की मजार के लिए स्वीकृत की है। यह उत्तरी कराची इलाके स्थित शाह मोहम्मद कब्रिस्तान में है और वहीं उनकी मजार बनाई जाएगी।’
उन्होंने कहा, ‘इस जमीन के आसपास सीमारेखा बनाई जा रही है। मजार के लिए मंजूर इस 2000 वर्ग गज के परिसर को मेहदी हसन परिवार के नाम कर दिया गया है। परिवार के बाकी सदस्यों की कब्रें भी यहां बनाई जा सकती हैं। हमारे लिए इससे खुशी की बात क्या होगी कि मरने के बाद अब्बा की मजार के बगल में ही हम सबकी भी कब्रें होंगी।’
इसके अलावा कराची मेट्रोपोलिटन कारपोरेशन ने मेहदी हसन की याद में एक संग्रहालय और संगीत लाइब्रेरी भी शुरू करने का ऐलान किया है। इसमें उनकी बेहतरीन गज़लों और गीतों के अलावा निजी सामान भी नुमाइश के लिए रखा जायेगा।
आरिफ ने बताया कि गायिकी की मेहदी हसन की विरासत को उनके बेटे कामरान मेहदी संभालेंगे जो अमेरिका के शिकागो में रहते हैं।
उन्होंने कहा, ‘कामरान बहुत अच्छा गाते हैं और उसके कई एलबम आ चुके हैं। भारत में भी फिल्मों में गाने की बात चल रही है। वह अब्बा की गायिकी की विरासत को संभालने के लिए तैयार हो रहा है।  (दैनिक ट्रिब्यून से साभार)

Sunday, June 17, 2012

आत्म हत्या पर अशोक सहगल की विशेष परिचर्चा

लोग क्यूं करते हैं आत्महत्या? 
आत्म हत्या का कदम आसन नहीं होता पर फिर भी बहुत से लोग ये कदम उठाते हैं. आखिर वे कैसे ले लेते हैं अपनी ही जान अपने ही हाथों। इस पर एक विशेष परिचर्चा की है दैनिक पंजाब केसरी के सम्वाददाता अशोक सहगल ने। मेडिकल क्षेत्र की बीत में काफी लम्बर समय से सक्रिय श्री सहगल अपनी विनम्रता के कर्ण बहुत लोकप्रिय भी हैं पर खबर के मामले में किसी का लोहाज़ नहीं करते। उम्मीद है आपको उनकी यह परिचर्चा पसंद आएगी। हम इसे पंजाब केसरी से साभार प्रकाशित कर रहे हैं। 

आपको यह परिचर्चा कैसी लगी अवश्य बताएं। आपके विचारों की इंतज़ार हमेशां की तरह इस बार भी बनी रहेगी। --रेक्टर कथूरिया 

आषाढ़ी गुप्त नवरात्र का महात्मय

गुप्त नवरात्र 20 जून से                             --डॉ. नवरत्न कपूर 
संस्कृत के व्याकरण-आचार्य ऋषि पाणिनी ने ‘नवरात्र’ शब्द के बारे में कहा है : ”नवानां रात्रीणं समाहार नवरात्रम्” (अष्टïाध्यायी 2/4/29)। वस्तुत : ‘नवरात्र’ शब्द में दो शब्दों की संधि है; वे हैं ‘नव+रात्र।’ इनमें से ‘नव’ शब्द संख्या-वाचक है और ‘रात्र’ का अर्थ है रात्रि -समूह। हिन्दी -भाषी क्षेत्र में सामान्यत: लोगों ने ‘नवरात्र’ शब्द को ‘नौराते’ बना डाला है। पंजाबी भाषा में इसी का उच्चारण ‘नुराते’ बन गया है और मराठी में ‘नौरता।’
अधिकतर ज्योतिषीगण चार प्रकार के नवरात्रों का उल्लेख करते हैं और इन्हें क्रमश: इन चार महीनों में मनाने की परम्परा है, यथा : (1) चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक; (2) आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक; (3) आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक;  (4) माघ माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक। ‘चैत्र मास’ के नवरात्रों को ‘वासंतिक नवरात्र’ और ‘आश्विन मास के नवरात्रों को ‘शारदीय नवरात्र’ भी पुकारा जाता है, जो तत्संबंधी ऋतुओं के बोधक होते हैं। ज्योतिषाचार्य ‘आषाढ़’ और ‘माघ’ माह के नवरात्रों को ‘गुप्त नवरात्र’ पुकारते हैं। इसमें हमें खड्ग त्रिशूलधारिणी महिषासुरमर्दिनी का ध्यान करते हुए सर्वशक्ति-संपन्न होने की कामना प्रतिदिन करनी चाहिए। इससे यही सिद्ध होता है कि माता दुर्गा के केवल इसी रूप की पूजा निरंतर नौ दिन करनी चाहिए।
गुजरात में सभी हिन्दू-त्योहार विक्रमी चांद्र वर्ष की तिथियों के अनुसार भारत के अन्य प्रदेशों की तरह मनाए जाते हैं और इस चांद्र वर्ष का आरंभ चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से माना जाता है। किंतु लोहाना वंश के गुजरातियों के कुची, हलारी तथा ठक्कर गोत्र के लोग अपना  नववर्ष ‘आषाढ़  बीज’ (आषाढ़ शुक्ल द्वितीया) को मनाते हैं। ‘लोहाना-समाज’ अपना मूल स्थान ‘लाहौर’ (पाकिस्तान) के समीपस्थ ‘लोहाना’ नामक ग्राम बताते हैं। समूचे भारत में जहां नववर्ष का आरंभ चैत्र शुक्ला प्रतिपदा से माना जाता है और उसी दिन से वासंतिक नवरात्र आरंभ हो जाते हैं; फिर भी ‘सिन्धी समाज’ नववर्ष के आरंभ का बोधक ‘चेटी चांद महोत्सव’ चैत्र शुक्ला द्वितीया को मनाता है। विचित्र संयोग की बात है कि लोहाना समाज का नववर्ष भी द्वितीया तिथि को मनाया जाता है, भले ही महीना ‘चैत्र’ के स्थान पर ‘आषाढ़’ हो। वस्तुत: यह ‘आषाढ़ी गुप्त नवरात्र’ का दूसरा दिन होता है। संयोग की बात है कि उड़ीसा प्रांत में स्थित ‘जगन्नाथपुरी की यात्रा’ का उत्सव भी ‘आषाढ़ी  गुप्त नवरात्र की द्वितीया’ को मनाया जाता है। इस मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण अपनी पत्नी या रास-लीला वाली सहेली राधिका जी के साथ नहीं बल्कि अपने बड़े भाई बलराम जी तथा बहन सुभद्रा जी के साथ मूर्तिमान रहते हैं। इन तीनों की चल मूर्तियों को आषाढ़-द्वितीया वाली शोभा-यात्रा में अलग-अलग रथों पर सजाया जाता है। इन रथों का निर्माण-कार्य प्रतिवर्ष  ‘अक्षय तृतीया’ (ज्येष्ठï शुक्ल तृतीया) के शुभ दिन से ही आरंभ होता है, जबकि उस दिन वृंदावन (जिला मथुरा, उत्तर प्रदेश) वाले ‘बांके बिहारी मंदिर’ में स्थापित भगवान कृष्ण की मूर्ति को चंदन का लेप करके सजाया जाता है। उन दोनों भाइयों समेत सुभद्रा की पूजा वहीं पर होती है।
महाराष्ट्र के ‘वारकरी संप्रदाय’ के श्रद्धालुगण भगवान श्रीकृष्ण को ‘विट्ठल नाथ’ विठोबा’ अथवा प्रभु पुण्डरीक’ पुकारते हैं। महाराष्ट्र के जिला पुणे’, के पंढरपुर नामक स्थान पर विट्ठल नाथ का प्राचीनतम मंदिर है, जिसकी यात्रा आषाढ़ी एकादशी अर्थात् देवशयनी एकादशी से आरंभ हो जाती है। जनश्रुति है कि विट्ठलनाथ जी अपनी पटरानी रुक्मिणी जी को बताए बिना गुप्त रूप में पंढरपुर चले आए थे। वे उन्हें ढ़ूंढ़ती हुई पंढरपुर पहुंच गई थीं। अत: विट्ठलनाथ जी की मूर्ति के साथ मंदिर में रुक्मिणी जी भी विद्यमान रहती हैं।
बंगाल में आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को ‘मनोरथ द्वितीया व्रत’ कहा जाता है। उस दिन स्त्रियां मां दुर्गा से अपनी मनोकामनाएं-पूर्ति हेतु व्रत रखती हैं। आषाढ़ शुक्ल षष्ठी को बंगाल में कर्दम षष्ठी, कुसुंभा षष्ठी तथा स्कंद षष्ठी भी कहा जाता है। उस दिन भगवान शिव और माता पार्वती के छोटे पुत्र ‘स्कंद’ और उनकी पत्नी षष्ठी देवी की पूजा की जाती है। आषाढ़ शुक्ल सप्तमी को भारत के पूर्वी भाग में सूर्य पूजा का उत्सव मनाया जाता है। आषाढ़ शुक्ल आष्टïमी को त्रिपुरा में खरसी-पूजा उत्सव मनाया जाता है। तत्संबंधी प्रसिद्ध मेला खवेरपुर नामक कस्बे में भरता है, जिसमें अधिकतर संन्यासी ही भाग लेते हैं। संन्यासधारिणी स्त्रियां तंबाकू से भरी हुई चिलम में कश लगाकर, धुआं छोड़कर लोगों को आश्चर्यचकित कर देती हैं।
तमिलनाडु में आषाढ़ मास की अष्टïïमी को मनाए जाने वाले महोत्सव को ‘अदि पुरम’ कहा जाता है। आषाढ़ मास को तमिल भाषा में ‘अदि’ और ‘पर्व’ को ‘पुरम’ कहा जाता है। उस दिन लोग अपने परिवार की सुख-शांति हेतु शक्ति-देवी की पूजा करते हैं।
आषाढ़ शुक्ल नवमी ‘गुप्त नवरात्र’ का अंतिम दिन होता है। उस दिन कश्मीर के शरी$फ भवानी मंदिर में विशाल मेला भरता है। उसी दिन ‘हरि जयंती’ के कारण वैष्णव भक्त व्रत भी रखते हैं और वैष्णव मंदिरों के दर्शनार्थ जाते हैं। उसी दिन ‘भडल्या नवमीं’ पर व्रतधारिणी स्त्रियां भी घर में अथवा देवी-मंदिर में पूजा करती हैं।
  (दैनिक ट्रिब्यून से साभार)

भाजपा का जेल भरो आंदोलन 22 जून को

 महंगाई के बहाने जनता के साथ दूरियां कम करने का प्रयास
आम लोगों से दूर होती जा रही भारतीय जनता पार्टी अब इस बढ़ रही दूरी पर कुछ चिंतित हुयी नजर आ रही है। महंगाई के मुद्दे को लेकर 22 जून से जेल भरो आन्दोलन का एलान इसी चिन्तन से पैदा हुआ लग रहा है। इस खबर को विस्तार से प्रकाशित किया है पंजाब के लोकप्रिय समाचार पत्र दैनिक पंजाब केसरी ने अवश्यक प्रमुखता के साथ।  
 पंजाब केसरी के सम्वाददाता प्रदीप गुप्ता ने इस खबर में भी बहुत ही कम शब्दों में गहरे पानी पैठ वाली बात का प्रयास किया है। अब आंदोलनों से महंगाई कम हो पायेगी या नहीं इसे लेकर बहुत बार बहुत कुछ कहा जा चूका है आप इस क्या सोचते हैं अवश्य बताएं। आपके विचारों की इंतज़ार बनी रहेगी।. --रेक्टर कथूरिया

तलाक की वजह फेसबुक!

तलाक के ऐसे मामलों में निरंतर वृद्धि 
एक 26 वर्षीय ‘कुंवारी’ पत्नी ने दिल्ली की अदालत में तलाक की अर्जी देते हुए कहा है कि उसे उसके ‘मानसिक नपुंसक’ पति से अलग किया जाये। ‘मानसिक क्रूरता’ के आधार पर इस लड़की के तलाक के कारण को समझा जा सकता है। लेकिन अगर तलाक की वजह यह हो कि जीवनसाथी ने फेसबुक पर स्टेटस अपडेट नहीं किया है या सही नहीं दिया है तो इसे क्या कहा जायेगा?
चौंकने की आवश्यकता नहीं है। तलाक के ऐसे मामलों में निरंतर वृद्धि हो रही है जिनकी पृष्ठभूमि में फेसबुक है। इंग्लैंड में कराये गये एक ताजे सर्वेक्षण के अनुसार,  एक-तिहाई तलाक फेसबुक के कारण हो रही हैं। यह टे्रंड केवल पश्चिमी देशों तक सीमित नहीं है। परिवार न्यायालयों से संबंधित वकीलों का कहना है कि भारत में भी फेसबुक के कारण टूटने के कगार पर पहुंचे विवाहों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है।
बीती मई के आखिरी सप्ताह में एक युवा जोड़ा मुम्बई के परिवार न्यायालय के न्यायाधीश के सामने खड़ा था। दोनों का एक-दूसरे पर आरोप यह था कि दूसरा हमेशा फेसबुक से चिपका रहता है। न्यायाधीश ने दोनों को पहले तो डांटा और फिर उनकी काउंसलिंग की। आखिरकार दोनों ने स्वीकार किया कि वह अब भी एक दूसरे से प्रेम करते हैं, और ‘अनफे्रंड’ (दोस्ती तोडऩे के लिए इंटरनेट की यही अंगे्रजी है, भले ही गलत हो) करने की बजाए अपने विवाह को बचाए रखने के लिए एक और प्रयास करने के लिए तैयार हैं।
परिवार न्यायालय के हस्तक्षेप से कुछ विवाह अवश्य बच पा रहे हैं। लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि फेसबुक के कारण वैवाहिक जीवन पर कुप्रभाव पड़ रहा है। फेसबुक एक ऐसी सोशल नेटवर्किंग साइट है जो बिछड़ों को मिलाने का दावा करती है,  लेकिन यह एक ऐसी लत है जिस पर मिनट कितनी जल्दी घंटे में तबदील होते हंै, मालूम ही नहीं पड़ता। चूंकि ज्यादा समय फेसबुक पर खर्च हो जाता है, इसलिए पति-पत्नी एक-दूसरे को ज्यादा समय नहीं दे पाते। यही कारण दोनों में मनमुटाव या अलगाव का रिश्ता बनता है और अकसर मामला अदालत तक पहुंच जाता है।
वैवाहिक जीवन में फेसबुक से आने वाली एक समस्या स्टेटस अपडेट की है। फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग की हाल में शादी हुई है। लेकिन फेसबुक पर अभी तक उन्होंने अपना स्टेटस ‘विवाहित’ दर्ज नहीं किया है। इसके विपरीत उनकी पत्नी प्रेसिला चान ने स्टेटस ‘विवाहित’ घोषित किया है। इन दोनों की नई-नई शादी तो स्टेटस में विरोधाभास को फिलहाल बर्दाश्त कर रही है, लेकिन अगर यही बात मुम्बई के किसी जोड़े ने कर दी होती तो विवाद गहरा हो जाता। तमिलनाडु के एक छोटे से शहर से कुछ दिन पहले यह खबर आई कि पति ने फेसबुक पर अपनी ‘बुनियादी जानकारी’ सही/पूरी नहीं दी थी, इसलिए पत्नी ने इसे ‘मानसिक क्रूरता’ मानते हुए अदालत में तलाक के लिए दस्तक दी है।
सीधी-सी बात यह है कि अगर आप वैवाहिक या प्रेम-संबंधों में दरार पैदा नहीं करना चाहते हैं तो बेहतर यह है कि फेसबुक पर अपने बारे में सही व पूर्ण जानकारी दें और स्टेटस को नियमित अपडेट भी करते रहें। ऐसा करना आपके लिए इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि फेसबुक पोस्ट को अब अदालतें सबूतों के रूप में स्वीकार कर रही हैं।
आप एफबी विंडोज और फेसबुक पर जो समय गुजारते हैं उसे अदालतें ऐसे ही मान रही हैं जैसे आप ऑनलाइन पोर्न देख रहे हों। चूंकि ऑनलाइन पोर्न देखकर समय नष्ट करना अदालत की दृष्टि में मानसिक क्रूरता है, जो कि तलाक का एक आधार है, इसलिए फेसबुक पोस्ट व फोटो भी मानसिक कू्ररता के साक्ष्य बन सकते हैं।
पुणे में एक महिला ने देखा कि उसके पति को फेसबुक की ‘लत’ पड़ गई है और वह महिला दोस्तों को ‘एड’ कर रहा है। उसने परिवार न्यायालय में तलाक की अर्जी दायर कर दी। सबूत के तौर पर उसने अपने पति के फेसबुक अकाउंट को पेश किया। तसवीरें व पोस्ट होते हैं, वह अपने आप में पर्याप्त सबूत हैं यह साबित करने के लिए कि आप बेवफाई कर रहे हैंैं।
बेवफाई व व्यभिचार के मामले पहले भी हाते थे। फेसबुक से बस माध्यम बदल गया है और यह भी कि पहले झूठ बोलने व मामले को छुपाने की गुंजाइश रहती थी, लेकिन अब फेसबुक से सब कुछ सबके सामने है। चूंकि अकाउंट आपका है, इसलिए आप यह भी नहीं कह सकते कि जो कुछ पोस्ट किया गया है वह आपके खिलाफ साजिश है। शायद यही कारण है कि अदालतें भी अब फेसबुक को ठोस सबूत के रूप में स्वीकार कर रही है। चेन्नई में एक महिला ने फेसबुक पर अपने पति को दूसरी महिला के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देखा। यह पोस्ट उस महिला की दोस्त के दोस्त के पेज पर था। फोटो को महिला ने अदालत में सबूत के तौर पर पेश किया। वह इसी आधार पर तलाक मांग रही है।
हाल ही के एक मामले में एक व्यक्ति को जब अपनी पत्नी के बारे में उसके फेसबुक अकाउंट से ‘असलियत’ मालूम हुई तो वह तलाक के लिए अदालत में पहुंच गया। अजीब बात यह है कि लोग अदालत में कुछ कहते हैं और ऑनलाइन सच पोस्ट करते हैं। फेसबुक इनसान के असली चेहरे को सबके सामने लाकर खड़ा कर देती है।
फेसबुक के जरिए लोग धोखाधड़ी भी कर रहे हैं, इसलिए उसे अदालत में साक्ष्य के तौर पर देर सवेर पेश ही किया जाता। अगर अपने बारे में फेसबुक पर गलत जानकारी देकर आप किसी को ‘फंसा’ लेते हैं तो सच खुलने के बाद फेसबुक पर दी गई झूठी जानकारी आपके खिलाफ गवाह बन जायेगी। मुम्बई की एक 21 वर्षीय लड़की को फेसबुक पर एक युवक पसंद आया। दिल्ली के इस लड़के ने लड़की को फ्लाइट का टिकट भेजा ताकि वह उसके ‘पैरेंट्स’ से मुलाकात कर सके। लड़की जब दिल्ली आई तो लड़का उसे एक पंडित के पास वैदिक विवाह के लिए ले गया। तभी लड़की को मालूम हुआ कि वह लड़का तो महिलाओं की तस्करी करता है। उसने अपने पैरेंट्स को मुम्बई से बुला लिया। लड़की को उसके पैरेंट्स वापस मुम्बई ले गए, लेकिन अब तलाक का मामला अदालत में चल रहा है। लड़के ने फेसबुक पर जितनी भी गलत जानकारियां दी थीं, वह उसके खिलाफ दफा 420 का कारण बनेंगी।
जो लोग फेसबुक पर अफेयर या फ्लर्ट कर रहे हैं, वह सावधान हो जाएं क्योंकि उनकी यही नादानियंा उनके खिलाफ न सिर्फ सबूत बनेंगी बल्कि तलाक का कारण भी बन सकती हैं।
—वीना सुखीजा  (दैनिक ट्रिब्यून से साभार)