राष्ट्रपति रहते हुए इस्तीफा तक लिख दिया था कलाम ने
नयी
दिल्ली, 30 जून (वार्ता)। राष्ट्रपति पद पर रहते हुये डा.एपीजे अब्दुल
कलाम ने 23 मई, 2005 की आधी रात को बिहार विधानसभा भंग किये जाने को
सुप्रीमकोर्ट द्वारा असंवैधानिक ठहराये जाने के बाद अपना इस्तीफा लिख दिया
था। यह रहस्योद्घाटन डा. कलाम ने अपनी नई पुस्तक ‘टर्निंग प्वाइंट ए जर्नी
थ्रू चैलेंजेज’ में किया है। उन्होंने लिखा है कि जब बिहार विधानसभा भंग
करने के बारे में सुप्रीमकोर्ट का फैसला आया तो उन्होंने अपना इस्तीफा लिख
दिया था, लेकिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इस आग्रह के बाद उन्होंने अपना
विचार त्याग दिया कि इस इस्तीफे से हंगामा मच जायेगा और उनकी सरकार गिर
जायेगी। डा. कलाम उस समय मास्को में थे, जब डा. सिंह ने उन्हें दो बार फोन
किया और बिहार के राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर विधानसभा भंग करने के
लिये केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा लिये गये फैसले की जानकारी दी थी। डा.
कलाम ने लिखा है कि उन्होंने प्रधानमंत्री से पूछा था कि आखिर बिहार
विधानसभा को भंग करने की इतनी जल्दी क्या है, जिसे पहले ही छह महीने के
लिये निलंबित किया हुआ था। पूर्व राष्ट्रपति ने जानकारी दी कि उन्होंने
सरकार के इस मंतव्य को समझने के बाद विधानसभा भंग करने के आदेश पर दस्तखत
कर दिये कि उसने इसके लिये मन बना लिया है।
डा. कलाम ने लिखा है कि उन्हें महसूस हुआ कि उनके विशेष आग्रह के बाद भी सरकार ने राष्ट्रपति के निर्णय को अदालत के समक्ष सही ढंग से नहीं रखा जिस कारण मंत्रिमंडल के निर्णय के खिलाफ प्रतिकूल न्यायिक टिप्पणी हुई। उन्होंने लिखा है कि मंत्रिमंडल उनका था और उन्हें जिम्मेदारी लेनी चाहिये।
गुजरात दंगों के बाद राज्य के अपने दौरे के बारे में भी डा. कलाम ने अनेक खुलासे किये हैं। उन्होंने लिखा है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उनसे यह सवाल किया था, क्या आप समझते हैं कि आपका इस समय गुजरात जाना जरूरी है। उन्होंने इसका जबाब देते हुये श्री वाजपेयी से कहा था कि वह इसे एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी समझते हैं ताकि वह लोगों की पीड़ा को कम करने तथा राहत कार्यों में तेजी लाने में मददगार बन सकें। साथ ही लोगों में एकजुटता का भाव पैदा हो। उन्होंने बताया है कि ऐसी परिस्थिति में कभी किसी राष्ट्रपति ने किसी घटनास्थल का दौरा नहीं किया था। इसलिये उन्हें अपनी इस यात्रा को लेकर अनेक सवालों का सामना करना पड़ा। मंत्रालय और नौकरशाही के स्तर पर यह सुझाव दिया गया कि उन्हें इस मौके पर गुजरात नहीं जाना चाहिये। इसकी एक बड़ी वजह राजनीतिक थी। डा. कलाम ने लिखा है कि इन सबके बावजूद उन्होंने वहां जाने का मन बनाया। वह तीन राहत शिविरों और नौ दंगा प्रभावित क्षेत्रों में गये. जहां भारी नुकसान हुआ था। उन्होंने एक घटना का ब्योरा देते हुये लिखा है कि जब वह एक राहत शिविर में पहुंचे तो छह वर्ष का एक बच्चा उनके पास आया और उनके दोनों हाथ थामकर बोला, राष्ट्रपतिजी मुझे अपने माता-पिता चाहिये। इस पर वह निरूत्तर हो गये। उन्होंने बताया है कि इसके बाद उन्होंने उसी जगह पर जिलाधिकारी के साथ बैठक की। मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी आश्वासन दिया कि इस बच्चे की शिक्षा और देखभाल की जिम्मेदारी सरकार उठायेगी। उन्होंने लिखा है इस यात्रा के दौरान उनके जहन में सिर्फ एक ही बात कौंधती रही कि क्या विकास ही हमारा एकमात्र एजेंडा नहीं होना चाहिये। किसी भी धर्म के आदमी को खुशी से जीने का मूलभूत अधिकार है। किसी को भी भावनात्मक एकता को खतरे में डालने का हक नहीं है क्योंकि यही एकता हमारे देश की जीवनरेखा है और देश की अलग पहचान बनाती है। (दैनिक ट्रिब्यून से साभार)
डा. कलाम ने लिखा है कि उन्हें महसूस हुआ कि उनके विशेष आग्रह के बाद भी सरकार ने राष्ट्रपति के निर्णय को अदालत के समक्ष सही ढंग से नहीं रखा जिस कारण मंत्रिमंडल के निर्णय के खिलाफ प्रतिकूल न्यायिक टिप्पणी हुई। उन्होंने लिखा है कि मंत्रिमंडल उनका था और उन्हें जिम्मेदारी लेनी चाहिये।
गुजरात दंगों के बाद राज्य के अपने दौरे के बारे में भी डा. कलाम ने अनेक खुलासे किये हैं। उन्होंने लिखा है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उनसे यह सवाल किया था, क्या आप समझते हैं कि आपका इस समय गुजरात जाना जरूरी है। उन्होंने इसका जबाब देते हुये श्री वाजपेयी से कहा था कि वह इसे एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी समझते हैं ताकि वह लोगों की पीड़ा को कम करने तथा राहत कार्यों में तेजी लाने में मददगार बन सकें। साथ ही लोगों में एकजुटता का भाव पैदा हो। उन्होंने बताया है कि ऐसी परिस्थिति में कभी किसी राष्ट्रपति ने किसी घटनास्थल का दौरा नहीं किया था। इसलिये उन्हें अपनी इस यात्रा को लेकर अनेक सवालों का सामना करना पड़ा। मंत्रालय और नौकरशाही के स्तर पर यह सुझाव दिया गया कि उन्हें इस मौके पर गुजरात नहीं जाना चाहिये। इसकी एक बड़ी वजह राजनीतिक थी। डा. कलाम ने लिखा है कि इन सबके बावजूद उन्होंने वहां जाने का मन बनाया। वह तीन राहत शिविरों और नौ दंगा प्रभावित क्षेत्रों में गये. जहां भारी नुकसान हुआ था। उन्होंने एक घटना का ब्योरा देते हुये लिखा है कि जब वह एक राहत शिविर में पहुंचे तो छह वर्ष का एक बच्चा उनके पास आया और उनके दोनों हाथ थामकर बोला, राष्ट्रपतिजी मुझे अपने माता-पिता चाहिये। इस पर वह निरूत्तर हो गये। उन्होंने बताया है कि इसके बाद उन्होंने उसी जगह पर जिलाधिकारी के साथ बैठक की। मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी आश्वासन दिया कि इस बच्चे की शिक्षा और देखभाल की जिम्मेदारी सरकार उठायेगी। उन्होंने लिखा है इस यात्रा के दौरान उनके जहन में सिर्फ एक ही बात कौंधती रही कि क्या विकास ही हमारा एकमात्र एजेंडा नहीं होना चाहिये। किसी भी धर्म के आदमी को खुशी से जीने का मूलभूत अधिकार है। किसी को भी भावनात्मक एकता को खतरे में डालने का हक नहीं है क्योंकि यही एकता हमारे देश की जीवनरेखा है और देश की अलग पहचान बनाती है। (दैनिक ट्रिब्यून से साभार)
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