Wednesday, July 04, 2012

मुठभेड़ पर सवाल//दैनिक ट्रिब्यून का सम्पादकीय

सीआरपीएफ की मुठभेड़ में 20 लोगों की मौत पर विवाद
छत्तीसगढ़ के बीजापुर जनपद में सीआरपीएफ की मुठभेड़ में 20 लोगों की मौत पर उठे विवाद ने अर्धसैनिक बलों की भूमिका पर एक बार फिर सवाल खड़े किये हैं। एक ओर जहां केंद्रीय गृहमंत्री ने सुरक्षा बलों की पीठ थपथपायी है वहीं मामले की जांच के लिए बनी समिति में राज्य के कांग्रेस अध्यक्ष व एक केंद्रीय मंत्री भी शामिल हैं। कहा जा रहा है कि फसल की तैयारी के लिए हो रही बैठक में शामिल ग्रामीण, महिला व बच्चों को अर्धसैनिक बलों ने निशाना बनाया। मरने वालों में एक लड़की भी शामिल है। सीआरपीएफ दावा कर रही है कि नक्सली ढाल के रूप में महिला व बच्चों को इस्तेमाल कर रहे हैं। सवाल यह भी उठाया जा रहा है कि इतनी बड़ी मुठभेड़ के बाद जटिल भौगोलिक परिस्थिति वाले इलाके में एक भी सुरक्षा बल जवान का हताहत न होना बताता है कि मुठभेड़ में शिकार लोगों की ओर से कोई प्रतिरोध सामने नहीं आया। हालांकि बीजापुर मुठभेड़ की हकीकत सामने लाने के लिए सामाजिक कार्यकर्ताओं और माकपा ने दिल्ली में आंदोलन किया। दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र सच्चर ने 29 जून की मुठभेड़ को फर्जी बताते हुए सुप्रीम कोर्ट से मामले की जांच कराने की मांग की है। सच्चर आरोप लगाते हैं कि आदिवासी फसल बोने से पहले अपने रीति-रिवाजों के अनुसार भूमि-पूजन की तैयारी कर रहे थे। उधर, कांग्रेस राज्य के गृहमंत्री के उस बयान को मुद्दा बना रही है जिसमें उन्होंने कहा कि नक्सलियों की मदद करने वाले ग्रामीणों को मार गिराया जायेगा। इस मामले की जांच के लिए कांग्रेस की राज्य इकाई ने बारह सदस्यीय कमेटी भी गठित की है।
इसमें दो राय नहीं कि बीजापुर के इस इलाके में नक्सलवादियों की खासी सक्रियता है लेकिन यह कहना कि इलाके का हर ग्रामीण नक्सलवादी है, तर्कसंगत नजर नहीं आता। माना कि कुछ लोग सशस्त्र प्रतिरोध के जरिये कानून-व्यवस्था को चुनौती दे रहे हैं लेकिन इसके चलते सुरक्षा बलों को इसका अधिकार नहीं मिल जाता कि बीस लोगों को गोलियों से भून दें। उन्हें आत्मसमर्पण के लिए भी बाध्य किया जा सकता था और देश की कानून व्यवस्था के तहत दोषी पाये जाने पर दंडित किया जा सकता था। ऐसे मामलों पर यदि मानवाधिकार संगठन संज्ञान लेते हैं तो शासन-प्रशासन को उनकी बात सुननी चाहिए। राज्य के मुख्यमंत्री दलील दे रहे हैं कि नक्सली महिला व बच्चों को ढाल की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं तो दोनों तरफ से पिसने वालों की मदद या रक्षा कौन करेगा? विगत में भी फर्जी मुठभेड़ों पर देश के सर्वोच्च न्यायालय ने गंभीर टिप्पणियां की हैं। बहरहाल, नक्सलवादियों के नाम पर निहत्थे व निर्दोष लोगों को गोलियों का शिकार बनाने की इजाजत तो नहीं दी जा सकती। अकसर देखा गया है कि केंद्रीय सुरक्षा बलों को न तो स्थानीय जटिल भौगोलिक परिस्थितियों की जानकारी होती है और न ही स्थानीय पुलिस से बेहतर तालमेल। इसके चलते निर्दोष लोगों के शिकार बनने की संभावना बनी रहती है। मुठभेड़ में जिन बड़े नक्सली नेताओं को मारने की बात सीआरपीएफ कर रही थी, उनके बारे में स्थानीय पुलिस व सीआरपीएफ स्पष्ट कहने की स्थिति में नहीं हैं। ऐसा लगता है कि वे बचाव की मुद्रा में हैं। जब सीआरपीएफ मामले में आंतरिक विभागीय जांच की बात कर रही है तो इसके मायने यह हैं कि उसे मुठभेड़ की वास्तविकता पर संदेह है। ऐसे मामलों से स्थानीय लोगों में सुरक्षा बलों के प्रति विश्वास खत्म होता है, जिसका फायदा नक्सली उठाते हैं।

1 comment:

helloorders said...

Ganesh Chaturthi (IAST: Gaṇēśa Chaturthī), also known as Vinayaka Chaturthi(Vināyaka Chaturthī), is the Hindu festival that reveres god Ganesha. A ten-day festival, it starts on the fourth day of Hindu luni-solar calendar month Bhadrapada, which typically falls in Gregorian months of August or September.

Happy Ganesh Chaturthi 2017 Quotes