Monday, July 02, 2012

श्रावण 4 जुलाई से

श्रावण में करें ज्योतिर्लिंगाराधना      --गोपालजी गुप्त
भारत के आध्यात्मिक चिन्तन में श्रावण का महीना माहेश्वर शिव को अतिशय प्रिय है तभी तो इसी माह में चारों ओर का परिवेश शिवमय हो उठता है। संपूर्ण ब्रह्माण्ड तथा लघु रह्माण्ड रूपी मानव शरीर पंच महाभूत तत्व (क्षिति, जल, पावक, गगन, समीर) से निर्मित माना गया है। भारतीय परम्परा में इन पांच भूत तत्वों के  मंदिर मात्र दक्षिण भारत में हैं—शिवाकॉची (चेन्नई) में एकाम्बरनाथ या एकाम्रेश्वर (पृथ्वी तत्व), त्रिचनापल्ली में जम्बुकेश्वर (जल तत्व), तिरुवणमलै में अरुणाचलेश्वर (अग्नि तत्व), तिरुमलैया तिरुपतिबाला से थोड़ी दूर उत्तर स्थित कालाहस्ती में कालहस्तीश्वर (वायु तत्व), सागर से 5 किलोमीटर दूर कावेरी तट पर चिदम्बरम् (आकाश तत्व)—इसी के प्रतीक रूप शिव के 5 मुख दिखाये जाते हैं। अत: मात्र शिवोपासना से पंचमहाभूत तत्वोपासना का भाव समाहित हो जाता है।
लिंग शब्द मात्र शिव के साथ संयुक्त है किसी अन्य देवता के साथ नहीं। यहां लिंग शब्द शिश्न का भाव प्रदर्शित नहीं करता अपितु इसका आशय है चिन्ह, अभिज्ञान। लिंग की व्युत्पत्ति शास्त्रों में लीनमर्थं गमयतीति लिङ्गम् से की गई है जिसका आशय है सम्पूर्ण सृष्टि प्रलय काल में जिसमें लीन हो जाती है वही लिंग है। स्कन्द पुराणानुसार आकाश लिंग है पृथ्वी उसकी पीढिका तथा समस्त देवताओं का वासस्थल, इसी में सब लीन हो जाते हैं/सब का लय होता है। इसी से इसे लिंग कहते हैं। लिंग पुराणानुसार लिंग के मूल भाग में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु, सबसे ऊपरी भाग में शिव विराजते हैं। लिंग की वेदिका महादेवी तथा लिंग महेश्वर हैं। अत: मात्र शिवलिंग पूजन से सभी देवी-देवताओं की पूजा सम्पन्न हो जाती है।
वैसे तो सम्पूर्ण भारत में सर्वाधिक शिवलिंग के मंदिर मिलते हैं किंतु शिवपुराण (कोटिरुद्र संहिता-1/21-24) के अनुसार भारत में कुछ विशिष्ट स्थानों पर साधकों को सिद्धि प्रदान करने वाले ज्योतिर्लिंग तथा उनके उपज्योतिर्लिंग विद्यमान हैं जिनके प्रात: नाम स्मरण मात्र से सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं तथा जिनके दर्शन से समस्त पाप क्षय होता है। श्रावण मास में तो वहां पर विशिष्ट मेले—आयोजन भी होते हैं। ज्योतिर्लिंगों की संख्या 12 है तथा प्रत्येक के एक उपज्योतिर्लिंग भी है जिनका विवरण निम्रवत् हैं:—
1. सोमनाथ—यह ज्योतिर्लिंग सौराष्ट्र के काठियावाड़ के प्रभास क्षेत्र में स्थित है। इनका उपज्योतिर्लिंग ‘अन्तकेश्वरÓ महीनदी तथा सागर के संगम पर स्थित है।
2. मल्लिकार्जुन—तमिलनाडु के कृष्णानगर में कृष्णानदी के किनारे श्रीशैल पर स्थित है। भृगुकक्ष क्षेत्र में रुद्रेश्वर नाम से इनका उपज्योतिर्लिंग है।
3. महाकालेश्वर/महाकाल—मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र-उज्जैन, जिसका पुराना नाम अवन्तीपुर था, के क्षिप्रानदी तट पर स्थित है। नर्मदानदी के तट पर दूधनाथ या दुग्धेश्वर के नाम से उपज्योतिर्लिंग विद्यमान है।
4. ओंकारेश्वर—मालवा क्षेत्र में ही नर्मदानदी तट पर ओंकारेश्वर तथा अमलेश्वर नामक दो शिवलिंग मिलते हैं जो एक ही लिंग के दो पृथक स्वरूप माने जाते हैं। विन्दुसरोवर तट पर कर्मदेश्वर नामक उपज्योतिर्लिंग स्थित है।
5. केदारेश्वर/केदारनाथ—उत्तराखंड में उत्तरकाशी में मंदाकिनी नदी के किनारे-हिमालय के केदार शिखर पर स्थित है। यमुनानदी के तट पर भूतेश्वर नामक उपज्योतिर्लिंग विद्यमान है।
6. भीमशंकर—महाराष्ट्र में मुंबई से पूर्व दिशा तथा पुणे से उत्तर भीमा नदी के किनारे सह्यात्र पर्वत पर स्थित है। इसे मतान्तर से दो अन्य स्थान पर भी माना जाता है। उत्तराखंड के नैनीताल के उज्जनक नामक स्थान पर स्थित भीमशंकर मंदिर तथा असोम के गुवाहाटी के ब्रह्मपुर पर्वत पर स्थित मंदिर। सह्यïपर्वत पर भीमेश्वर उप ज्योतिर्लिंग विद्यमान है।
7. विश्वनाथ मंदिर—उत्तर प्रदेश के वाराणसी का काशीविश्वनाथ मंदिर।
8. त्र्यम्बकेश्वर—नासिक के पंचवटी से लगभग 28 किलोमीटर दूर गोदावरी नदी के किनारे ब्रह्मगिरी पर्वत पर स्थित है।
9. वैद्यनाथ धाम/वैद्यनाथ—झारखंड के दुमका नामक जनपद में स्थित है। इसे चिताभूमि भी कहते हैं। मतान्तर से आंधप्रदेश के हैदराबाद के परलीगांव में इसे स्थित मानते हैं।
10. नागेश्वर/नागेश—गुजरात के बड़ोदरा के दारुक वन में स्थित है। मतान्तर से हैदराबाद के औढ़ाग्राम का शिवलिंग तथा अल्मोड़ा का जोगेश्वर शिवलिंग को भी मानते हैं। भूतेश्वर नामक उपज्योतिर्लिंग मल्लिका सरस्वती तट पर स्थित है।
11. रामेश्वरम् (सेतुबंध)—तमिलनाडु के रामनाथन जनपद में सागर किनारे है। गुप्तेश्वर को इनका उपज्योतिर्लिंग कहा गया है।
12. घुष्मेश्वर/घृष्णेश्वर—हैदराबाद के दौलताबाद से 19 किलोमीटर दूर बेरूल गांव में स्थित है। व्याघ्रेश्वर को इनका उपज्योतिर्लिंग मानते हैं।
शिवपुराण (शतरुद्र संहिता-द्वितीय अध्याय) में शिव को अष्टमूर्ति कहकर उनके आठ रूपों शर्व, भव, रुद्र, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान, महादेव का उल्लेख है। शिव की इन अष्ट मूर्तियों द्वारा पांच महाभूत तत्व, ईशान (सूर्य), महादेव (चंद्र), क्षेत्रज्ञ (जीव) अधिष्ठित हैं। चराचर विश्व को धारण करना (भव), जगत के बाहर भीतर वर्तमान रह स्पन्दित होना (उग्र), आकाशात्मक रूप (भीम), समस्त क्षेत्रों के जीवों का पापनाशक (पशुपति), जगत का प्रकाशक सूर्य (ईशान), धुलोक में भ्रमण कर सबको आह्लाद देना (महादेव) रूप है। शिवपुराण (वायवीय संहिता-पूर्वखंड द्वितीयाध्याय) में समस्त जीव को पशु तथा उनके कल्याणकर्ता को पशुपतिनाथ कहा गया है, यही पशुपतिनाथ शिव हैं। शिव के इस अष्टमूर्ति उपासना से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की पूजा हो जाती है।
चूकि सूर्य तथा शिव एक ही हैं अत: सूर्य के सभी मंदिर भी शिवालय हैं। चंद्रमा का मंदिर नहीं मिलता किंतु इनके पर्याय सोम का सोमनाथ मंदिर तथा बांग्लादेश के चटगांव का चंद्रनाथ क्षेत्र मंदिर चंद्र रूप में  उपास्य है। पशुपतिनाथ मंदिर नेपाल के काठमाण्डू में है। वैसे भगवान शिव की प्रसन्नता हेतु उनके पंचाक्षरी (नम: शिवाय) के स्तोत्र मंत्र का जाप कर साधक शिवमय होता है. (दैनिक ट्रिब्यून से साभार)

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