Sunday, June 17, 2012

आषाढ़ी गुप्त नवरात्र का महात्मय

गुप्त नवरात्र 20 जून से                             --डॉ. नवरत्न कपूर 
संस्कृत के व्याकरण-आचार्य ऋषि पाणिनी ने ‘नवरात्र’ शब्द के बारे में कहा है : ”नवानां रात्रीणं समाहार नवरात्रम्” (अष्टïाध्यायी 2/4/29)। वस्तुत : ‘नवरात्र’ शब्द में दो शब्दों की संधि है; वे हैं ‘नव+रात्र।’ इनमें से ‘नव’ शब्द संख्या-वाचक है और ‘रात्र’ का अर्थ है रात्रि -समूह। हिन्दी -भाषी क्षेत्र में सामान्यत: लोगों ने ‘नवरात्र’ शब्द को ‘नौराते’ बना डाला है। पंजाबी भाषा में इसी का उच्चारण ‘नुराते’ बन गया है और मराठी में ‘नौरता।’
अधिकतर ज्योतिषीगण चार प्रकार के नवरात्रों का उल्लेख करते हैं और इन्हें क्रमश: इन चार महीनों में मनाने की परम्परा है, यथा : (1) चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक; (2) आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक; (3) आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक;  (4) माघ माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक। ‘चैत्र मास’ के नवरात्रों को ‘वासंतिक नवरात्र’ और ‘आश्विन मास के नवरात्रों को ‘शारदीय नवरात्र’ भी पुकारा जाता है, जो तत्संबंधी ऋतुओं के बोधक होते हैं। ज्योतिषाचार्य ‘आषाढ़’ और ‘माघ’ माह के नवरात्रों को ‘गुप्त नवरात्र’ पुकारते हैं। इसमें हमें खड्ग त्रिशूलधारिणी महिषासुरमर्दिनी का ध्यान करते हुए सर्वशक्ति-संपन्न होने की कामना प्रतिदिन करनी चाहिए। इससे यही सिद्ध होता है कि माता दुर्गा के केवल इसी रूप की पूजा निरंतर नौ दिन करनी चाहिए।
गुजरात में सभी हिन्दू-त्योहार विक्रमी चांद्र वर्ष की तिथियों के अनुसार भारत के अन्य प्रदेशों की तरह मनाए जाते हैं और इस चांद्र वर्ष का आरंभ चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से माना जाता है। किंतु लोहाना वंश के गुजरातियों के कुची, हलारी तथा ठक्कर गोत्र के लोग अपना  नववर्ष ‘आषाढ़  बीज’ (आषाढ़ शुक्ल द्वितीया) को मनाते हैं। ‘लोहाना-समाज’ अपना मूल स्थान ‘लाहौर’ (पाकिस्तान) के समीपस्थ ‘लोहाना’ नामक ग्राम बताते हैं। समूचे भारत में जहां नववर्ष का आरंभ चैत्र शुक्ला प्रतिपदा से माना जाता है और उसी दिन से वासंतिक नवरात्र आरंभ हो जाते हैं; फिर भी ‘सिन्धी समाज’ नववर्ष के आरंभ का बोधक ‘चेटी चांद महोत्सव’ चैत्र शुक्ला द्वितीया को मनाता है। विचित्र संयोग की बात है कि लोहाना समाज का नववर्ष भी द्वितीया तिथि को मनाया जाता है, भले ही महीना ‘चैत्र’ के स्थान पर ‘आषाढ़’ हो। वस्तुत: यह ‘आषाढ़ी गुप्त नवरात्र’ का दूसरा दिन होता है। संयोग की बात है कि उड़ीसा प्रांत में स्थित ‘जगन्नाथपुरी की यात्रा’ का उत्सव भी ‘आषाढ़ी  गुप्त नवरात्र की द्वितीया’ को मनाया जाता है। इस मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण अपनी पत्नी या रास-लीला वाली सहेली राधिका जी के साथ नहीं बल्कि अपने बड़े भाई बलराम जी तथा बहन सुभद्रा जी के साथ मूर्तिमान रहते हैं। इन तीनों की चल मूर्तियों को आषाढ़-द्वितीया वाली शोभा-यात्रा में अलग-अलग रथों पर सजाया जाता है। इन रथों का निर्माण-कार्य प्रतिवर्ष  ‘अक्षय तृतीया’ (ज्येष्ठï शुक्ल तृतीया) के शुभ दिन से ही आरंभ होता है, जबकि उस दिन वृंदावन (जिला मथुरा, उत्तर प्रदेश) वाले ‘बांके बिहारी मंदिर’ में स्थापित भगवान कृष्ण की मूर्ति को चंदन का लेप करके सजाया जाता है। उन दोनों भाइयों समेत सुभद्रा की पूजा वहीं पर होती है।
महाराष्ट्र के ‘वारकरी संप्रदाय’ के श्रद्धालुगण भगवान श्रीकृष्ण को ‘विट्ठल नाथ’ विठोबा’ अथवा प्रभु पुण्डरीक’ पुकारते हैं। महाराष्ट्र के जिला पुणे’, के पंढरपुर नामक स्थान पर विट्ठल नाथ का प्राचीनतम मंदिर है, जिसकी यात्रा आषाढ़ी एकादशी अर्थात् देवशयनी एकादशी से आरंभ हो जाती है। जनश्रुति है कि विट्ठलनाथ जी अपनी पटरानी रुक्मिणी जी को बताए बिना गुप्त रूप में पंढरपुर चले आए थे। वे उन्हें ढ़ूंढ़ती हुई पंढरपुर पहुंच गई थीं। अत: विट्ठलनाथ जी की मूर्ति के साथ मंदिर में रुक्मिणी जी भी विद्यमान रहती हैं।
बंगाल में आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को ‘मनोरथ द्वितीया व्रत’ कहा जाता है। उस दिन स्त्रियां मां दुर्गा से अपनी मनोकामनाएं-पूर्ति हेतु व्रत रखती हैं। आषाढ़ शुक्ल षष्ठी को बंगाल में कर्दम षष्ठी, कुसुंभा षष्ठी तथा स्कंद षष्ठी भी कहा जाता है। उस दिन भगवान शिव और माता पार्वती के छोटे पुत्र ‘स्कंद’ और उनकी पत्नी षष्ठी देवी की पूजा की जाती है। आषाढ़ शुक्ल सप्तमी को भारत के पूर्वी भाग में सूर्य पूजा का उत्सव मनाया जाता है। आषाढ़ शुक्ल आष्टïमी को त्रिपुरा में खरसी-पूजा उत्सव मनाया जाता है। तत्संबंधी प्रसिद्ध मेला खवेरपुर नामक कस्बे में भरता है, जिसमें अधिकतर संन्यासी ही भाग लेते हैं। संन्यासधारिणी स्त्रियां तंबाकू से भरी हुई चिलम में कश लगाकर, धुआं छोड़कर लोगों को आश्चर्यचकित कर देती हैं।
तमिलनाडु में आषाढ़ मास की अष्टïïमी को मनाए जाने वाले महोत्सव को ‘अदि पुरम’ कहा जाता है। आषाढ़ मास को तमिल भाषा में ‘अदि’ और ‘पर्व’ को ‘पुरम’ कहा जाता है। उस दिन लोग अपने परिवार की सुख-शांति हेतु शक्ति-देवी की पूजा करते हैं।
आषाढ़ शुक्ल नवमी ‘गुप्त नवरात्र’ का अंतिम दिन होता है। उस दिन कश्मीर के शरी$फ भवानी मंदिर में विशाल मेला भरता है। उसी दिन ‘हरि जयंती’ के कारण वैष्णव भक्त व्रत भी रखते हैं और वैष्णव मंदिरों के दर्शनार्थ जाते हैं। उसी दिन ‘भडल्या नवमीं’ पर व्रतधारिणी स्त्रियां भी घर में अथवा देवी-मंदिर में पूजा करती हैं।
  (दैनिक ट्रिब्यून से साभार)

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