आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश के बाद अल्पसंख्यको के नाम पर राजनीति करने वाली यूं.पी.ए - 2 की अगुआई वाले सबसे प्रमुख घटक दल कांग्रेस पार्टी की नियत पर अब सवाल उठने लगने लगे है ! ऐसा लगता है कि उसकी धर्माधारित राजनीति पर अब ग्रहण लग गया है ! ध्यान देने योग्य है कि अभी हाल ही में संपन्न हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के चलते केंद्र सरकार ने ओबीसी के 27 प्रतिशत आरक्षण के कोटे से 4 .5 प्रतिशत आरक्षण अल्पसंख्यक समुदाय को देने की घोषणा की थी ! सरकार की चुनावों के दौरान इस प्रकार की लोकलुभावनी घोषणा को मुस्लिम वोट बैंक को लुभाने का चुनावी पैतरा मानकर चुनाव आयोग ने विधानसभा चुनावों तक इसके अमल में रोक लगा दी थी परन्तु केंद्र सरकार ने विधानसभा चुनावों के परिणाम आते ही अपने फैसले को लागू कर दिया
राजीव गुप्ता लेखक |
हाई कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा हाई कि सिर्फ धर्म आधारित आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं जा सकती, इसपर सलमान खुर्शीद ने कहा कि यह सही है कि संविधान में केवल धर्म आधारित आरक्षण का प्रावधान नहीं है लेकिन यह पिछड़े वर्गों के कोटे पर दिया गया कोटा था और सरकार ने मंडल कमिशन की रिपोर्ट के आधार पर ही इस कोटे का प्रावधान किया था ! परन्तु अदालत ने पाया कि पहले मसौदे (ओएम) में कहा गया है कि एक बार राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग कानून की धारा 2(सी) में परिभाषित अल्पसंख्यकों से संबंध रखने वाले शैक्षणिक और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग के नागरिकों के लिए 4 .5 प्रतिशत का आरक्षण तय किया जाता है और दूसरे ओएम के जरिए अल्पसंख्यकों के लिए कोटे में कोटा बना दिया जाता है ! इस पर आँध्रप्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश मदन बी लॉकर तथा न्यायमूर्ति पीवी संजय कुमार की खंडपीठ ने कहा कि सहायक सॉलीसिटर जनरल ने ऐसा कोई सबूत पेश नहीं कर पाए जो अल्पसंख्यकों के सजातीय समूह वाले पिछड़े वर्ग के तौर पर किए गए वर्गीकरण को सही ठहराता हो परिणामतः हम यह मानते हैं कि मुस्लिम, इसाई, बौद्ध और पारसी एक सरीखे समूह नहीं हैं ! पीठ ने यह भी ध्यान दिलाया कि पूरे मसौदे में इस्तेमाल किए गए अल्पसंख्यकों से संबंध रखने वाले या अल्पसंख्यकों के लिए जैसे शब्दों से संकेत मिलता है कि 4 .5 प्रतिशत कोटा केवल मजहब के आधार पर ही बनाया गया है ! लिहाजा, हमारे पास 4 .5 प्रतिशत आरक्षण को खारिज करने के अलावा कोई दूसरा बेहतर विकल्प नहीं है !
यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि इससे पहले केंद्र सरकार ने अपने फैसले का बचाव करते हुए यह दलील दी थी कि उसने सच्चर कमेटी की सिफारिशों को लागू करने की ओर कदम बढाया है और यही संस्तुति कांग्रेस पार्टी के 2009 के घोषणापत्र में भी थी अतः इसे मात्र मुस्लिम हितों से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए ! अल्पसंख्यकों को उनके पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण दिया गया, न कि मजहब के आधार पर ! परन्तु सरकार का तर्क है धरा का धरा रह गया ! दरअसल सरकार ने बड़ी चतुराई से उस समय हो रहे पांच राज्यों में चुनाव के दौरान अल्पसंख्यक आरक्षण का एक चुनावी शिगूफा छोड़ा था क्योंकि उसने अपने इस चुनावी पैतरे से एक साथ तीन राज्यों में पंजाब, गोवा और उत्तर प्रदेश में निशाना साधा ! मसलन पंजाब में सिख समुदाय पर आरक्षण का लाभ मिलने का वादा किया गया तो उत्तरप्रदेश में मुसलमानों पर और गोवा में ईसाईयों पर दांव लगाया !
देश में पड़ रही भयंकर गर्मी के इस मौसम में आये हाई कोर्ट के इस फैसले ने राजनीति गलियारों में उबाल ला दिया है ! अल्पसंख्यक - आरक्षण के इस मुद्दे पर बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि एक तरफ जहा कांग्रेस इस मामले में राजनीति कर रही है वही दूसरी तरफ यूपीए मुसलमानों को आरक्षण के मामले में गंभीर नहीं है ! बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने भी इस मसले पर यूपीए सरकार को निशाने पर लेते हुए कहा कि सरकार द्वारा की गयी गलतियों को ठीक करने का काम अदालतों को करना पड़ रहा है ! एक तरफ टीडीपी (तेलगू देशम पार्टी ) के अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू ने केंद्र सरकार द्वारा कोटे के अंदर कोटा देने की बजाय संविधान में संशोधन करके मुसलमानों के लिए अलग से कोटे की व्यवस्था करने की वकालत की तो दूसरी तरफ लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष रामबिलास पासवान ने रंगनाथ मिश्रा की रिपोर्ट के अनुसार मुसलमानों को आरक्षण देने की बात कही ! गौरतलब है कि रंगनाथ मिश्र आयोग ने अल्पसंख्यको को शिक्षा , सरकारी नौकरी एवं समाज कल्याण योजनाओं में 15 प्रतिशत पिछड़े वर्ग के कोटे के अंतर्गत आरक्षण देने की संस्तुति की थी ! इस 15 प्रतिशत आरक्षण में 10 प्रतिशत आरक्षण मुस्लिम समुदाय के लिए और बाकी 5 प्रतिशत आरक्षण अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के लिए प्रावधान है ! आरक्षण की इस बिसात पर ऊँट किस करवट बैठेगा यह तो समय के गर्भ में है परन्तु यूंपीए सरकार की नियत की कलई अब खुल गयी है ! अब समय आ गया है कि आरक्षण के नाम पर सरकार राजनैतिक रोटियां सेकना बंद करे और समाज - उत्थान को ध्यान में रखकर फैसले करे ताकि किसी भी तबके को ये ना लगे कि उनसे उन हक छीना गया है और किसी को ये ना लगे कि आजादी के इतने वर्ष बाद भी उन्हें मुख्य धारा में जगह नहीं मिली है ! तब वास्तव में आरक्षण का लाभ सही व्यक्ति को मिल पायेगा जिसके लिए संविधान में आरक्षण की व्यवस्था की गयी थी !
- राजीव गुप्ता, स्वतंत्र पत्रकार , 9811558925
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