Sunday, May 06, 2012

शिव कुमार बटालवी की स्मृति में

शिव के विचारों में क्रांति की तब्दीली आ गयी थी
समय चलता रहता है कभी रुकता नहीं पर वक्त बे वक्त लगे घाव भरने के बाद भी उस वक्त की याद नहीं भूलने देते जिस में चोट लगी थी। दर्द का अहसास उस गुज़रे हुए वक्त को बार बार सामने ला कर खड़ा कर देता है। ऐसा ही दिन था आज का दिन।  भर में पंजाबी शायरी को नई बुलंदियों पर पहुंचाने वाला शायर हमेशां के लिए हम से बिछुड़ गया था। अपने महा काव्य  लूना  में उसने औरत के दर्द को, उसके साथ होने वाल्रे अन्याय को जिस शिद्दत के साथ प्रस्तुत किया उस अंदाज़ की बराबरी किसी और रचना में शायद नजर नहीं आती।आँखों में आंसू आ जाते हैं। दिल में एक रुदन सा उठता है लगता है जैसे किसी ने पकड़ कर झंक्झौर दिया हो। मोहब्बत और औरत के दर्द की बात करने वाला शिव कुमार कविता के मामले में भी पूरी तरह ईमानदार था। अपनी काव्य रचना में वक्त आने पर उसने अपने साथ भी लिहाज़ नहीं किया। उस ने गुरू के आगे स्वीकार किया की मैं शर्मसार हूँ। 

उसने साफ कहा की मेरा कोई गीत नहीं ऐसा जो तेरे मेच आ जावे। उसके विचारों में तबदीली पर बहुत कम लिखा गया है। यह तब्दीली साफ  र्तौर पर किसी क्रांति की तब्दीली थी। अगर शिव कुछ समय भी और जीवित रह जाता तो उसकी रचना उसकी एक नयी छवि को सामने लाती। पर अफ़सोस की ऐसा नहीं हुआ। उम्र ने भी उसके साथ वफा न की। मोहब्बत से क्रांति तक की अंतर्यात्रा  एलान खुल कर नहीं हो सका। उसके दिलो दिमाग में उठा विचारों  तूफ़ान होठों तक तो आया अपर बुलंद नारा न बन पाया।  अगर आपकी नजर में कुछ ऐसा हो तो हमें अवश्य भेजें। उसे आपके नाम के साथ प्रकाशित करके हमें प्रसन्नता होगी। शिव कुमार बटालवी के विचारों में आई तबदीली उसकी प्रसिद्ध कविता "आरती" नाम के काव्य संग्रह में दर्ज है। इस पर जल्द ही अलग से भी की जाएगी। फिलहाल आप इस खास रिपोर्ट को देखिये और बताईये की यह आपको कैसी लगी। इस वीडियो को यू ट्यूब  से साभार लिया गया है। आपके विचारों की इंतज़ार बनी रहेगी।-रेक्टर कथूरिया 

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