Tuesday, February 28, 2012

प्रेम के मायाजाल में, कई बार कसम खाई

पंजाब स्क्रीन:कविता सप्ताह:अलका सैनी की पांचवीं रचना:मायाजाल
"मायाजाल"
मेरे भीतर भी शब्दों के 
कई महासागर उफन रहे ,
आत्म- मंथन के वास्ते 
सुबक रहे ,
शिकायतों , नाराजगी के 
द्वंद्व पनप रहे ,
दिल के भरे बादल 
कोने में दुबक रहे ,
तुम्हारे शब्द बाण, सीने 
के लहुलुहान घाव रिसने लगे ,
कभी सोचूं , कैसे छूटूं ? 
इस जी के जंजाल से,

बुरी फंस गई 
प्रेम के मायाजाल में,
कई बार कसम खाई 
मन ही मन रुकने की ,
मोबाइल बंद करने की ,
फेसबुक डी. एक्टीवेट करने  की ,
प्रोफाइल फोटो उड़ाने  की ,
आई. डी.  ब्लोक करने की ,
खुद  को ही पोक करने की ,
अगले ही पल 
सांस रुकने लगी ,

कैसा अनोखा ये मायाजाल  !

हर पीड़ा , दुःख को भांप ,
शब्दों के पुलिंदों को ढांप ,
प्यार हर शब्द पर हावी ,
हर आत्म -मंथन में भारी ,
प्यार का सागर और गहरा जाता है ,
विष पीकर भी अमृत नजर आता  है 
ये मायाजाल !!!

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