Friday, February 24, 2012

पंजाब स्क्रीन में कविता सप्ताह की शुरूयात

हर रोज़ एक नई कविता:नया प्रयोग:नई पहल:अलका सैनी
                                                                                         चित्र साभार: द ड्रीम्ज़ 
कई बार ऐसा महसूस होता है कि शायर की शायरी आम तौर पर शायर की रचना ही नहीं होती, वह रचना होने के साथ साथ शायर पर हुई एक ऐसी दिव्य इनायत भी होती है जो उसे अमरता प्रदान करती है. कविता जब उतरती है तो वह भी अपना माध्यम तलाश करती है. वह हर किसी पर नहीं उतरती. जोर जबरदस्ती से भी नहीं उतरती. तुकबन्दी करने वालों के हिस्से में तुकबन्दी आती है और शायरी वालों के हिस्से शायरी. यह भी एक नसीब ही होता है की कुछ शायर दरबारी राग में खो जाते हैं और कुछ शायर लोगों के शायर ह जाते हैं और सदिय्प्न तक लोगों के दिलों की धडकनों में जीवित रहते हैं.  कभी कभी शायरी इतनी गहरायी की बात करती है कि सातों समन्दरों की गहराई भी उसके सामने कम लगती है और कभी कभी इतनी ऊंची उड़ान पर कि सातों आसमानों की ऊँचाई को भी मात कर देती है. शायरों की शायरी और पाठकों के दरम्यान अधिक समय और स्थान न लेते हुए एक छोटी सी बात यही की इस बार से पंजाब स्क्रीन में कविता सप्ताह की शुरूयात भी की जा रही है. हर महीने के आखिरी सप्ताह में होगी हर रोज़ किसी किसी न किसी ऐसे शायर की रचना जो समय समय पर वक्त निकाल कर अपनी रचना के ज़रिये पंजाब स्क्रीन को सम्मान देते रहे हैं. इस सप्ताह की शुरूयात हम कर रहे हैं अलका सैनी की कविता से. इस सप्ताह हर रोज़ उनकी एक कविता होगी. चंडीगढ़ में रह रही शायरा अलका सैनी ने सियासत को भी बहुत नज़दीक से देखा है और पत्रकारिता को भी. हिंदी पंजाबी साहित्य को भी और अन्य राज्यों में विकसित गैर हिंदी साहित्य को भी. समाज से दर्द लेकर बदले में मुस्कराहट लौटाना, धोखा खा कर भी कहना कोई बात नहीं और धोखा देने वाले पर फिर विश्वास कर लेना .. अलका सैनी की जीवन शैली का अंग भी है. आपको इस कविता में क्या महसूस हुआ अवश्य बताएं आपके विचारों की इंतज़ार बनी रहेगी. आज पहले दिन प्रस्तुत है एक कविता सपने कल होगी नई कविता.
सपने
कल रात मुझे पता चला
सपनों में भी कविताएं बनती है
सपनों की धुंधली आकृतियाँ
स्मृतियों के कोहरे से बनती है
कल रात उसने मुझे सपनों में घुसकर जगाया
मैं बुदबुदाई और ज़ोर से चिल्लाई

" माँ, मैं झूठ नहीं बोल रही
...... मेरा घर मत तोड़ो"
पास में सोये मोनू ने कहा मम्मी
तभी मेरी जीभ उलट गई
और आवाज धीमी होते होते मैं फिर सो गई


कल ही मुझे पता चला सपनों की
एक दुनिया होती है
जिसमे नायक
खलनायक और साधारण पात्र होते है
लड़ते है ,झगड़ते है
रोते है ,हँसते है
मगर किसी का कुछ नहीं बिगड़ता
सभी अक्षुण्ण


पर असली दुनिया में हाहाकार
शोरगुल आपाधापी
सारी अवस्थाएँ बदलती है
मनोरोग से प्रेमरोग
प्रेमरोग से मृत्युयोग
नेपथ्य बदल जाता है
सारे पात्र झूठे
सारे संवाद खोखले


काश ! सपनों की दुनिया लंबी

                                    --अलका सैनी 

1 comment:

SAMVEDNA said...

atyant sundar aur bhav poorN rachnaa