Friday, January 20, 2012

पहल लाई परि‍वर्तन

वि‍शेष लेख                                                                                     *किशन रतनानी
हम उत्‍साहि‍त और आशापूर्ण हैं लेकि‍न साथ ही सतर्क और चौकन्‍ने भी
महात्‍मा गांधी का कहना था कि‍ अपने प्रयोजन में दृढ़ वि‍श्‍वास रखने वाला इति‍हास के रूख को बदल सकता है।
     सामाजि‍क परि‍वर्तन भी तभी आते हैं जब हम प्रयोजन में दृढ़ वि‍श्‍वास रखें। दृढ़ वि‍श्‍वास के साथ-साथ सक्रि‍यता और सकारात्‍मकता के साथ पहल करें। ऐसी पहल परि‍वर्तन लाती है।
     वर्ष 2011 में स्‍वास्‍थ्‍य के क्षेत्र में ऐसे कई परि‍वर्तन देखने को मि‍ले हैं, जि‍सका श्रेय चुनौति‍यों को समझने और सुलझाने की सटीक, बहुस्‍तरीय और अभि‍नव नीति‍ तथा स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय द्वारा की गई पहल को जाता है।
     एक साल तक पोलि‍यो मुक्‍त भारत ऐसा ही एक परि‍वर्तन है जो नजर आ रहा है। 13 जनवरी 2011 को पश्‍चि‍म बंगाल के हावड़ा जि‍ले के पांचला ब्‍लाक में एक बालि‍का पोलि‍यो से ग्रस्‍त पायी गई थी।
     अगले तीन वर्षों तक पोलि‍यो का पूरी तरह उन्‍मूलन अब हमारा प्रमुख प्रयोजन है। इसी बात को ध्‍यान में रखते हुए केंद्रीय स्‍वास्‍थ्‍य एवं परि‍वार कल्‍याण मंत्री श्री गुलाम नबी आजाद ने कहा- ‘‘हम उत्‍साहि‍त और आशापूर्ण हैं, लेकि‍न साथ ही सतर्क और चौकन्‍ने भी।’’
     हर बार जब राष्‍ट्रीय पल्‍स पोलि‍यो टीकाकरण अभि‍यान चलाया गया, इसके हर दौर में 24 लाख वैक्‍सीनेटर, डेढ़ लाख सुपरवाईजर और 20 करोड़ से ज्‍यादा लोगों ने ये सुनि‍श्‍चि‍त कि‍या कि‍ 17 करोड़ 20 लाख बच्‍चों को पोलि‍यो की दवा पि‍ला दी जाए। चलती-फि‍रती टीमों का अपूर्व योगदान भी महत्‍वपूर्ण रहा।
      पिछले दशक के दौरान एचआईवी से ग्रस्‍त नए लोगों की वार्षिक संख्‍या में 50 प्रतिशत से अधिक की कमी आई है। राष्‍ट्रीय एड्स  नियंत्रण कार्यक्रम और उसकी रोकथाम के उपायों के अधीन विभिन्‍न कार्यक्रमों के प्रभाव का यह एक सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण साक्ष्‍य है।
12 जनवरी को केन्‍द्रीय स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण मंत्री श्री गुलाम नबी आजाद ने राष्‍ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन के रे‍ड रिबन एक्‍सप्रेस के तीसरे चरण का शुभारंभ किया। रेड रिबन एक्‍सप्रेस की मल्‍टी-मीडिया और बहु-क्षेत्रीय सामूहिक जागरूकता परियोजना एक नई पहल है और अपने तरह के एक अद्वितीय उदाहरण के रूप में विश्‍व भर में इसकी सराहना की गई है। पहली दिसम्‍बर, 2007 को रेड रिबन एक्‍सप्रेस के पहले चरण की शुरूआत हुई थी, जो जानकारी जन-जन तक पहुंचाने पर केन्द्रित था। वर्ष 2009 में इसका दूसरा चरण आरंभ किया गया था, जो सलाह और उपचार सेवाओं पर आधारित था। तीसरे चरण में सूचना शिक्षा और संचार वाहनों तथा लोक कला दलों के जरिये विशेषकर राजस्‍थान, मध्‍य प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा और छत्‍तीसगढ़ राज्‍यों में प्रदर्शनियों के साथ सूक्ष्‍म आयोजना पर जोर दिया जा रहा है, ताकि यह रेलगाड़ी जिन जि़लों से होकर गुजरेगी उसके आसपास की जनता को इसके बारे में जानकारी मिल सके।
·         संशोधित राष्‍ट्रीय क्षय रोग कार्यक्रम के तहत रोग की पहचान दर 75% तक और पूर्ण इलाज दर 85% तक आ गई है। क्षय रोग से होने वाली मृत्‍यु  के मामलों में भी 43% की कमी आई है।
·         नया डॉट्स लोगो शुरू किया गया- डॉट्स : पूरा कोर्स, पक्‍का इलाज’’ यह क्षय रोग और इसके आविर्भाव के बारे में उभरती चुनौतियों की प्रतिक्रिया का द्योतक है।

प्रजनन व शिशु स्‍वास्थ्‍य के क्षेत्र में कुछ ऐसे ही परिवर्तन हुए हैं :-

·         नवजात मृत्‍यु अनुपात वर्ष 2005 के 58 से घटकर 2009 में प्रति हजार नवजात 50 पर आ गयी है।
·         मातृ मृत्‍यु दर भी वर्ष 2004-2006 में 254 प्रति एक लाख प्रसव से घटकर वर्ष 2007-09 के दौरान 212 प्रति एक लाख प्रसव पर आ गई है।
·          प्रजनन दर 2005 में 2.9 से घटकर 2009 में 2.6 पर आ गई है।
·          व्‍यापक प्रतिरक्षण कार्यक्रम( यूआईपी) के तहत देश के 12-24 माह के 61 प्रतिशत बच्‍चे 6 बीमारियों का टीका ले चुके हैं।
·         देश में संस्‍थागत प्रसव, वर्ष 2007-08 के दौरान 47 %(डीएलएचएस III 2007-08)   से बढ़कर 2009 में 72.9 % हो गया है जैसा कि कवरेज इवेल्‍यूएशन सर्वे (सीईएस-2009) में पाया गया।
·         व्‍यापक प्रतिरक्षण कार्यक्रम के तहत हेपाटाइटिस बी का टीका और खसरा के दूसरे डोज का टीका लगाना शुरू किया गया है। साल 2011-12 के दौरान हेपाटाइटिस 'बी' का टीका अब पूरे देश में दिया जा रहा है। तमिलनाडु और केरल में 15 लाख बच्‍चों को प्रायो‍गिक तौर पर पेंटावैलेंट टीका दिया जा रहा है जो पांच बीमारियों डिप्‍थीरिया, कुकुरखांसी, टिटनेस, हेपेटाइटिस बी और हेमोफीलयस एन्‍फलुएंजा 'बी' से बच्‍चों को सुरक्षा प्रदान करता है।
·         जच्‍चा -बच्‍चा की सुरक्षा के लिए 1 जून 2011 को जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम शुरू किया गया जिसके तहत जन स्‍वास्‍थ्‍य संस्‍थाओं में प्रसव कराने वाली सभी गर्भवती महिलाओं का प्रसव मुफ्त होगा चाहे वह सीजेरियन ही क्‍यों न हो। इसके तहत मुफ्त दवा, रक्‍त, भोजन और आने-जाने का नि:शुल्‍क परिवहन उपलब्‍ध करवाया जा रहा हैं। जन्‍म के बाद 30 दिनों तक नवजात शिशु को संबंधित संस्‍थान में लाने ले जाने के लिए भी ये व्‍यवस्‍थाएं उपलब्‍ध होंगी। 35 में से 32 राज्‍यों और सभी केंद्र शासित-प्रदेशों में यह योजना लागू है।
·         स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय ने मदर एंड चाइल्‍ड ट्रैकिंग सिस्‍टम (एमसीटीएस) नाम से एक ई-गवर्नेंस (ई-गवर्नेंस इनिशिएटिव) पहल की है जिसका उद्देश्‍य सभी गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं की जानकारी जुटाना है ताकि जच्‍चा-बच्‍चा भी महिला के गर्भधारण से लेकर प्रसव के 42 दिन बाद और नवजात बच्‍चों के मामले में उसके 5 वर्ष तक का होने तक उपचार और प्रतिरक्षण सुनिश्चित किया जा सके। 11 दिसंबर 2011 तक इस प्रणाली के तहत एक करोड़ 27 लाख 41 हजार 402 महिलाओं तथा 69 लाख 55 हजार 165 बच्‍चों का पंजीकरण कराया गया है।
·         स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा एक संयुक्‍त जच्‍चा-बच्‍चा स्‍वास्‍थ्‍य कार्ड जारी किया गया है। जिससे गर्भवती महिलाओं और गर्भ में पल रहे बच्‍चे के स्‍वास्‍थ्‍य पर  प्रसव पूर्व से जन्‍म के बाद तक निगरानी रखी जा सके।
·         2005-06 के दौरान जननी सुरक्षा योजना के तहत 7.39 लाख गर्भवती महिलाओं को फायदा पहुंचा। 2011 में लगभग एक करोड़ 13 लाख गर्भवती महिलाओं को नकद राशि देकर मदद दी गई। इस योजना पर वर्ष 2005-06 में जहां 38 करोड़ रूपये खर्च हुए  वहीं वर्ष 2010-11 में यह राशि बढ़कर 1618 करोड़ रूपये तक पहुंच गई है।
·        ''आशा'' नाम से भी एक नई योजना चल रही है जो 42 दिनों तक नवजात के घर जाकर उनके स्‍वास्‍थ्‍य पर नजर रखती है।
·         किशोरियों में मासिक धर्म के दौरान स्‍वास्‍थ्‍य की सावधानी के लिए खास कर आदिवासी और ग्रामीण इलाकों में सब्सिडी पर नैप्किन उपलब्‍ध कराना शुरू किया गया है। इसके पहले चरण में 20 राज्‍यों के 152 जिलों में 10-19 वर्ष की 14 लाख किशोरियों को इसका लाभ मिला है।
        राष्‍ट्रीय स्‍वास्‍थ्‍य बीमा योजना भी एक अभि‍नव पहल के रूप में सामने है। अप्रैल 2008 से अमल में आई इस योजना में 31 दि‍संबर 2011 तक 2 करोड़ 57 लाख स्‍मार्ट कार्ड चलन में थे और 24 राज्‍यों/केंद्रशासि‍त प्रदेशों में 29 लाख 25 हजार से ज्‍यादा लोग अस्‍पताल में भर्ती होने की सुवि‍धा का लाभ ले पाए। इसमें बि‍ल्‍डिं‍ग व नि‍र्माण मजदूर, महात्‍मा गांधी राष्‍ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून से लाभान्‍वि‍त ग्रामीण, रेहड़ी पटरी वाले, बीड़ी मजदूर व घरेलू नौकर भी शामि‍ल कि‍ए गए हैं।
परि‍वर्तन के कई पैमाने हैं। सबसे बेहतर परि‍वर्तन वो होता है जि‍से हम महसूस करें, हम सभी महसूस करें। परि‍वर्तन समाज, देश और दुनि‍या को नजर आए। यह एक सामूहि‍क प्रयास है जि‍समें सरकार, समाज, संस्‍था और व्‍यक्‍ति‍ के रूप में हम सबकी सक्रि‍य साझेदारी और सकारात्‍मक सोच जरूरी है। ऐसी पहल परि‍वर्तन की पराकाष्‍ठा तक पहुँचे, आइए कामना करें।   ****


*लेखक पत्र सूचना कार्यालय नई दिल्‍ली में उपनिदेशक (मीडिया एवं संचार)हैं।

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