Monday, May 30, 2011

यह भारत देश है मेरा !

जहाँ एक ओर देश की गरीब जनता भूख से दम तोड़ रही है वहीँ दूसरी और कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनके वेतन आसमान को छो रहे हैं. नयी दिल्ली से रविवार कलो समाचार एजेंसी भाषा ने अपनी एक खबर में बताया है कि मुकेश अंबानी तथा 29 अन्य कारपोरेट कार्याधिकारियों का सालाना वेतन एक करोड़ रुपए से भी अधिक है। इनमें से चार कार्याधिकारी तो अंबानी की ही कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज से हैं। क्यूं जनाब है न कमाल ! इस खबर के मुताबिक इतना ओन्न्चे किस्म का वेतन पाने वालों में जेएसडब्ल्यू एनर्जी के सज्जन जिंद, हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन के अजीत गुलाबचंद, रेमंड के गौतम हरि सिंघानिया, आईसीआईसीआई बैंक की चंदा कोचर, एक्सिस बैंक की शिखा शर्मा तथा इन्फोसिस टेक्नालाजीज के एस गोपालकृष्णन और एस डी शिबूलाल हैं। गौरतलब है कि 31 मार्च, 2011 को समाप्त वित्त वर्ष के लिए कंपनियों की सालाना रपट अभी सामने आ रही हैं जिसमें कंपनियां अपने शीर्ष प्रबंधन के वेतन का खुलासा कर रही हैं। अप्रैल के अंतिम दिनों से लेकर अब तक जिन सूचीबद्ध कंपनियों की सालाना रपटें आई हैं उनमें से 30 शीर्ष कार्याधिकारियों का सालाना वेतन एक करोड़ रुपए से अधिक पाया गया है।  
कैपिटल लाइन द्वारा एकत्रित आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि जिन 30 सूचीबद्ध कंपनियों की रपटें सामने आई हैं उनमें से 13 के कार्याधिकारियों को 2010-11 में एक करोड़ रुपए से अधिक का वेतन मिला। यहाँ आंकड़ों और हकीकत में कितना अंतर होता है सभी जानते हैं इस लिए अनुमान लगाना आसान न होगा कि वास्तव में इन लोगों कि असली आमदनी कितनी होगी. उल्लेखनीय है कि
रिलायंस इंडस्ट्रीज में चेयरमैन मुकेश अंबानी के साथ निखिल मेसवानी, हितल मेसवानी, पीएमएस प्रसाद तथा पवन कुमार कपिल का वेतन भी एक करोड़ रुपए से अधिक है। आईसीआईसीआई बैंक में चार कार्याधिकारियों का सालाना वेतन एक करोड़ रुपए से अधिक है, जबकि इन्फोसिस में टीवी मोहनदास पई तथा के दिनेश सहित पांच कार्याधिकारियों का वेतन एक करोड़ रुपए से ज्यादा है।
जेएसडब्ल्यू एनर्जी में एनके जैन, ललित कुमार तथा एसएसराव का वेतन भी बिलकुल इसी दायरे में आता है। वैसे आने वाले दिनों में कई और बड़ी कंपनियों की सालाना रपट आनी है ऐसे में एक करोड़ रुपए से अधिक वेतन पाने वाले शीर्ष अधिकारियों की सूची और लंबी ही होगी। इससे पहले 2009-10 में 800 से अधिक कार्याधिकारियों का वेतन एक करोड़ रुपए से अधिक था। इस साल में मुकेश अंबानी का सालाना वेतन 15 करोड़ रुपए था जो तीन साल से अपरिपर्तित है। हालांकि 2009-10 में वेतन भुगतान को देखा जाए तो मुकेश अंबानी काफी पीछे हैं क्योंकि इस दौरान सन टीवी नेटवर्क के कलानिधि मारन तथा कावेरी मारन का सालाना वेतन 37|08 करोड़ रु (प्रत्येक) रहा था। देश कि जनता लगातार बढ़ रहे इस वितीय अन्तराल के कारण दो मुख्य भागों में बंट रही
।  जब तक अमीरी greebee की यह रेखा गहरी होती रहेगी तब तक बेचैनी भी बढती रहेगी

Sunday, May 29, 2011

मैं शिव शाही में विश्वास रखता हूं, लोकशाही में नहीं-बाल ठाकरे

अपने दम खम पर राजनीती  करने वाले बाल ठाकरे ने एक बार फिर कुछ खरी खरी कही हैं मुम्बई पर हमेशां अपना दबदबा बनाये रखने वाले बल ठाकरे ने कहा है कि राजनीति में कोई किसी का करीबी नहीं होता। महाराष्ट्र में गत दो दशकों से भाजपा के साथ गठबंधन के बावजूद शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे का कहना है  हर कोई राजीनीतिक दल अपने फायदे-नुकसान का आकलन करके गठजोड की रणनीति बनाता है। आप किसी के पास करीब भी होते है लेकिन साथ ही और किसी के लिए दरवाजा भी बंद करते है। एक टीवी चैनल को दिए साक्षात्कार में ठाकरे ने कहा कि जब 20 साल आडवाणी और वाजपेयी थे तब बात कुछ और ही थी। उन्होंने कहा कि वह वक्त ही कुछ और था। जब उनसे विचारधारा के मुद्दे पर पूछा गया तो उन्होंने साफ कह्य कि राज्नीते में कोई विचारधारा नहीं होती। खरी खरी कहने के अंदाज़ को जारी रखते हुए उन्होंने अन्ना हजारे के अभियान के अभ्याँ को भी अपनी आलोचना का निशाना बनाया अन्ना हजारे के अभियान की आलोचना करते हुए बाल ठाकरे ने कहा कि वह एक राजनीतिक कार्टूनिस्ट हैं औरइस मामले के पीछे छिपे राजनीतिक विचार को बहुत अच्छी तरह समझते हैं। देश में जिस तरह का लोक तन्त्र है उस पर अपना निशाना साधते हुए उन्होंने कहा आप लोकतंत्र के चार अन्य स्तंभों के ऊपर खड़े होना चाहते हैं। आपका लोकतंत्र, मेरा लोकतंत्र नहीं है। मैं लोकतंत्र में विश्वास नहीं करता। मैं शिव शाही अर्थात शिवाजी के शासन सिस्टम में विश्वास रखता हूं, लोकशाही में नहीं। देखते हैं ठाकरे इस शिवा शाही को लागो करने और कराने के लिये क्या करते हैं?
इसी बीच सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने कहा कि अगर 16 अगस्त तक लोकपाल बिल पारित नहीं किया जाता है तो मैं दोबारा जंतर-मंतर पर जाकर आमरण अनशन करूंगा। वह शनिवार को बंगलूरू में अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। यहां एक सार्वजनिक बैठक में उन्होंने प्रधानमंत्री डाक्टर मनमोहन सिंह को एक अच्छा इंसान बताया, लेकिन साथ ही कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का नाम लिए बिना कहा कि असली समस्या तो रिमोट कंट्रोल में है। अन्ना हजारे ने साफ़ शब्दों में कहा कि मनमोहन सिंह बुरे व्यक्ति नहीं हैं, लेकिन जो भी समस्याएं आती हैं वह सिर्फ रिमोट कंट्रोल की वजह से आती हैं। अब देखना है कि अन्ना इस रिमोट कंट्रोल से निपटने के लिए क्या करते हैं ? अगर आप कि नजर में इस सारे मामले ला कोई और फ्लू हो या फिर कोई नयी बात तो अवश्य ख डालिए और वह भी जल्द से जल्द. आपके विचारों की इंतज़ार बनी हुयी है.  

Friday, May 27, 2011

शादी और युद्ध में सिर्फ़ एक अन्तर है...!


चित्र साभार:पापुलर कार्टून 

शेर की शादी में चूहे को देखकर हाथी ने पूछा - "भाई तुम इस शादी में किस हैसियत से आये हो?" चूहा बोला, " जिस शेर की शादी हो रही हैवह मेरा छोटा भाई है।" हाथी का मुँह खुला का खुला रह गयाबोला, "शेर और तुम्हारा छोटा भाई?" चूहा - "क्या कहूँशादी के पहले मैं भी शेर ही था।" यह तो हुई मजाक की बातलेकिन पुराने समय से ही दुनिया का मोह छोड़करसच की तलाश में भटकनेवाले भगोड़ों को सही रास्ते पर लाने के लिएशादी कराने का रिवाज़ हमारे समाज में रहा है। कई बिगड़ैल कुँवारों को इसी पद्धति से आज भी रास्ते पर लाया जाता है। हम सबने कई बार देखा-सुना है कि तथाकथित सत्य की तलाश में भटकने को तत्पर आत्माशादी के बाद पत्नी को प्रसन्न करने के लिए लगातार भटकती रहती है। कहते भी हैं कि "शादी वह संस्था है जिसमें मर्द अपनी 'बैचलर डिग्रीखो देता है और स्त्री 'मास्टर डिग्रीहासिल कर लेती है।"
प्रायः शादी के पहले की ज़िंदगी पत्नी को पाने के लिए होती है और शादी के बाद की ज़िंदगी पत्नी को ख़ुश रखने के लिए। तक़रीबन हर पति के लिए पत्नी को ख़ुश रखना एक अहम और ज्वलंत समस्या होती है और यह समस्या चूँकि सर्वव्यापी है,अतः इसे हम चाहें तो राष्ट्रीय (या अंतर्राष्ट्रीय) समस्या भी कह सकते हैं। लगभग प्रत्येक पति दिन-रात इसी समस्या के समाधान में लगा रहता हैपर कामयाबी बिरलों के भाग्य में ही होती है। सच तो यह है कि आदमी की पूरी ज़िंदगी पत्नी को ही समर्पित रहती है और पत्नी है कि ख़ुश होने का नाम ही नहीं लेती। अगर ख़ुश हो जाएगी तो उसका बीवीपन ख़त्म हो जाएगाफिर उसके आगे-पीछे कौन घूमेगाकिसी ने ठीक ही तो कहा है कि "शादी और प्याज में कोई ख़ास अन्तर नहीं - आनन्द और आँसू साथ-साथ नसीब होते हैं।"
पत्नी को ख़ुश रखना इस सभ्यता की संभवतः सबसे प्राचीन समस्या है। सभी कालखण्डों में पति अपनी पत्नी को ख़ुश रखने के आधुनिकतम तरीकों का इस्तेमाल करता रहा है और दूसरी ओर पत्नी भी नाराज़ होने की नई-नई तरक़ीबों का ईजाद करती रहती है। एक बार एक कामयाब और संतुष्ट-से दिखाई देनेवाले पति से मैंने पूछा- 'क्यों भाई पत्नी को ख़ुश रखने का उपाय क्या है?' वह नाराज़ होकर बोला- 'यह प्रश्न ही गलत है। यह सवाल यूँ होना चाहिए था कि पत्नी को भी कोई ख़ुश रख सकता है क्या?' उन्होंने तो यहाँ तक कहा कि "शादी और युद्ध में सिर्फ़ एक अन्तर है कि शादी के बाद आप दुश्मन के बगल में सो सकते हैं।" 
जिस पत्नी को सारी सुख-सुविधाएँ उपलब्ध होंवह इस बात को लेकर नाराज़ रहती है कि उसका पति उसे समय ही नहीं देता। अब बेचारा पति करे तो क्या करेसुख-सुविधाएँ जुटाए या पत्नी को समय देइसके बरअक्स कई पत्नियों को यह शिकायत रहती है कि मेरे पति आफिस के बाद हमेशा घर में ही डटे रहते हैं। इसी प्रकार के आदर्श-पतिनुमा एक इन्सान(?)से जब मैंने पूछा कि 'पत्नी को ख़ुश रखने का क्या उपाय है?'तो उसने तपाक से उत्तर दिया-'तलाक।मुझे लगा कि कहीं यह आदमी मेरी ही बात तो नहीं कह रहा हैमैं सोचने लगा, " 'विवाहऔर 'विवादमें केवल एक अक्षर का अन्तर है शायद इसलिए दोनों में इतना भावनात्मक साहचर्य और अपनापन है।"
पतिव्रता नारियों का युग अब प्रायः समाप्ति की ओर है और पत्नीव्रत पुरुषों की संख्याप्रभुत्व और वर्चस्व लगातार बढत की ओर है। यदि इसका सर्वेक्षण कराया जाय तो प्रायः हर दसरा पति आपको पत्नीव्रत मिलेगा। मैंने सोचा क्यों न किसी अनुभवी पत्नीव्रत पति से मुलाकात करके पत्नी को ख़ुश रखने का सूत्र सीखा जाए। सौभाग्य से इस प्रकार के एक महामानव से मुलाकात हो ही गईजो इस क्षेत्र में पर्याप्त तजुर्बेकार थे। मैंने अपनी जिज्ञासा जाहिर की तो उन्होंने जो भी बतायाउसे अक्षरशः नीचे लिखने जा रहा हूँताकि हर उस पति का कल्याण हो सकेजो पत्नी-प्रताड़ना से परेशान हैं- 
१ - ब्रह्ममुहुर्त में उठकर पूरे मनोयोग से चाय बनाकर पत्नी के लिए 'बेड टीका प्रबंध करें। इससे आपकी पत्नी का 'मूड नार्मल'रहेगा और बात-बात पर पूरे दिन आपको उनकी झिड़कियों से निजात मिलेगी। वैसे भीकिसी भी पत्नी के लिए पति से अच्छा और विश्वासपात्र नौकर मिलना मुश्किल हैइसलिए इसे बोझस्वरूप न लेंबल्कि सहजता से युगधर्म की तरह स्वीकार करें। कहा भी गया है कि "सर्कस की तरह विवाह में भी तीन रिंग होते हैं - एंगेजमेंट रिंगवेडिंग रिंग और सफरिंग।" 
२ - अगर आपका वास्ता किसी तेज़-तर्रार किस्म की पत्नी से है तो उनके तेज में अपना तेज (अगर अबतक बचा हो तो) सहर्ष मिलाकर स्वयं निस्तेज हो जाएँ। क्योंकि कोई भी पत्नी तेज-तर्रार पति की वनिस्पत ढुलमुल पति को ही ज्यादा पसन्द करती है। इसका यह फायदा होगा कि आप पत्नी से गैरजरूरी टकराव से बच जाएँगेअब तो जो भी कहना होगापत्नी कहेगी। आपको तो बस आत्मसमर्पण की मुद्रा अपनानी है। 
३- आपकी पत्नी कितनी ही बदसूरत क्यों न होआप प्रयास करकेमीठी-मीठी बातों से यह यकीन दिलाएँ कि विश्व-सुन्दरी उनसे उन्नीस पड़ती है। पत्नी द्वारा बनाया गया भोजन (हालाँकि यह सौभाग्य कम ही पतियों को प्राप्त है) चाहे कितना ही बेस्वाद क्यों न होउसे पाकशास्त्र की खास उपलब्धि बताते हुए पानी पी-पीकर निवाले को गले के नीचे उतारें। ध्यान रहेऐसा करते समय चेहरे पर शिकायत के भाव उभारना वर्जित है,क्योंकि "विवाह वह प्रणाली हैजो अकेलापन महसूस किए बिना अकेले जीने की सामर्थ्य प्रदान करती है।" 
४ - पत्नी के मायकेवाले यदि रावण की तरह भी दिखाई दे तो भी अपने वाकचातुर्य और प्रत्यक्ष क्रियाकलाप से उन्हें'रामावतारसिद्ध करने की कोशिश में सतत सचेष्ट रहना चाहिए। 
५ - आप जो कुछ कमाएँउसे चुपचाप 'नेकी कर दरिया में डालकी नीति के अनुसार बिल्कुल सहज समर्पित भाव से अपनी पत्नी के करकमलों में अर्पित कर दें और प्रतिदिन आफिस जाते समय बच्चों की तरह गिड़गिड़ाकर दो-चार रूपयों की माँग करें। पत्नी समझेगी कि मेरा पति कितना बकलोल है कि कमाता खुद है और रूपये-दो रूपयों के लिए रोज मेरी खुशामद करता रहता है। एक हालिया सर्वे के अनुसार लगभग पचहत्तर प्रतिशत पति इसी श्रेणी में आते हैं। मैं अपील करता हूँ कि शेष पच्चीस प्रतिशत भी इस विधि को अपनाकर राष्ट्र की मुख्यधारा में सम्मिलित हो जाएँ और सुरक्षित जीवन-यापन करें।
अंत में उस अनुभवी महामानव ने अपने इस प्रवचन के सार-संक्षेप के रूप में यह बताया कि उक्त विधियों को अपनाकर आप भले दुखी हो जाएँलेकिन आपकी पत्नी प्रसन्न रहेगी और उनकी मेहरबानी के फूल आप पर बरसते रहेंगे। किसी ने बिलकुल ठीक कहा है कि "प्यार अंधा होता है और शादी आँखें खोल देती है।" मेरी भी आँखें खुल गई। कलम घिसने का रोग जबसे लगासाहित्यिक मित्रों की आवाजाही घर पर बढ़ गई। चाय-पानी के चक्कर में जब पत्नी मुझे पूतना की तरह देखती तो मेरी रूह काँप जाती थी। मैंने इससे निजात पाने का रास्ता ढूँढ ही लिया। 
आपने फूल कई रंगों के देखे होंगेलेकिन साँवले या काले रंग के फूल प्रायः नहीं दिखते। 
लेखक;श्यामल सुमन 
मैंने अपने नाम 'श्यामलके आगे पत्नी का नाम 'सुमनजोड़ लिया। हमारे साहित्यिक मित्र मुझे 'सुमनजी-सुमनजीकहकर बुलाते हुए घर आते। धीरे-धीरे नम्रतापूर्वक मैंने अपनी पत्नी को विश्वास दिलाने में आश्चर्यजनक रूप से सफलता पाई कि मेरे उक्त क्रियाकलाप से आखिर उनका ही नाम तो यशस्वी होता है। अब मेरे घर में ऐसे मित्रों भले ही स्वागत-सत्कार कम होता होपर मैं निश्चिन्त हूँ कि अब उनका अपमान नहीं होगा। किसी ने ठीक ही कहा है कि "विवाह वह साहसिक-कार्य है जो कोई बुजदिल पुरुष ही कर सकता है।"-- श्यामल सुमन   

Thursday, May 26, 2011

वामपंथ के पतन के बाद आइए अपनी जड़ों में करें विकल्पों की तलाश


प्रो.बृजकिशोर कुठियाला
ऐसा माना जाता है कि भारत टेक्नॉलाजी के क्षेत्र में विकसित अर्थव्यवस्थाओं से लगभग 20 वर्ष पीछे चलता है। हाल ही में हुए विधानसभा के परिणाम से यह सिद्ध हुआ कि राजनीतिक विचारधारा के विस्तार और विकास में भी हम लगभग इतने ही वर्ष पीछे चल रहे हैं। शेष विश्व में साम्यवाद का सूर्य दो दशक पहले अस्त हो गया और वर्ष 2011 में भारत में साम्यवाद के दुर्ग केरल और पश्चिम बंगाल में भी यह विचारधारा धराशायी हुई। रूस, चेकोस्लोवाकिया और पूर्वी जर्मनी में साम्यवाद के पतन के लिये विश्लेषकों ने मार्क्स और लेनिन की विचारधारा को दोषी पाया। परन्तु भारत में मतदाताओं ने साम्यवाद को नकारा तो अधिकतर टिपण्णीकार वहाँ के संगठन और सरकार की कार्यप्रणाली को दोषी पा रहे हैं। यदि ऐसा होता तो वाममोर्चा को दो राज्यों में इतनी करारी हार का मुँह नहीं देखना पड़ता। पश्चिम बंगाल में तो वाम मोर्चे का अपमानजनक पतन हुआ है। कुल 294 में से केवल 63 साम्यवादी ही जीत कर विधानसभा में आये हैं। केरल में प्रदर्शन पश्चिम बंगाल से बेहतर परन्तु कुल मिलाकर शर्मनाक ही रहा। जहाँ पूर्व में दोनों दलों में थोड़े अन्तर से ही हार होती थी, इस चुनाव में वाम दलों को 140 में से केवल 68 स्थान ही प्राप्त हुए।
विषय संगठन की कमजोरी और सरकार की आम व्यक्ति की अपेक्षाओं में असफल रहना तो है, पर कहीं न कहीं यह प्रश्न भी उठना चाहिए की आखिर साम्यवाद का पतन क्यों? तर्क और व्यवहार के आधार पर साम्यवादी विचारधारा बड़ी आकर्षक लगती है क्योंकि वह सभी की समानता की बात करती है। समाज में एक ही वर्ग हो, ऐसा साम्यवादी विचारधारा का उद्देश्य रहता है। यहाँ तक तो ठीक है परन्तु इस समानता को प्राप्त करने के लिये जो आधार माना जाता है, उसके अनुसार हर व्यक्ति को एक राजनीतिक प्राणी की भूमिका में सोचा जाता है। व्यक्ति अपने अधिकारों को प्राप्त करे और अपने से उच्च श्रेणी वालों को या तो अपने स्तर पर लाये या फिर खुद उनके स्तर तक जाये। मूल स्रोत का तत्त्व है कि समाज का एक वर्ग शेष समाज का शोषण करता है।
हर नागरिक की मूल आवश्यकता रोटी, कपड़ा और मकान है, ऐसा साम्यवाद मानता हैं और सबको समान रोटी, कपड़ा और मकान मिले ऐसी व्यवस्था करना उद्देश्य है। विश्व में अनेकों उदाहरण ऐसे हैं जहाँ हिंसक क्रांति से साम्यवाद स्थापित हुआ और समानता स्थापित करने का प्रयास हुआ। वर्षों के बाद एक अलग तरह की वर्ग व्यवस्था समाज में बन गई और वर्गहीन समाज केवल सपना ही रह गया। रूस, पूर्व जर्मनी व क्यूबा में ऐसा ही हुआ। चीन में ऐसा ही हो रहा है।
कुछ देशों के साम्यवादियों ने हिंसक क्रांति की संभावना को कठिन या असम्भव मानते हुए प्रजातांत्रिक माध्यम से साम्यवाद की स्थापना का प्रयास किया। भारत में दोनों ही प्रयोग हुए सी.पी.एम. व सी.पी.आई. व सहयोगी दलों ने पश्चिम बंगाल केरल व कुछ-कुछ अन्य प्रान्तों में ऐसे सफल प्रयास किये। साथ ही कट्टर साम्यवादियों के बड़े हिस्से ने हिंसक क्रांति में विश्वास रखा और माओवाद और नक्सलवाद को विस्तार दिया। प्रजातंत्र के माध्यम ने तो साम्यवाद को सिकोड़ दिया। साम्यवाद का हिंसक रूप अपना प्रभाव बढ़ा रहा है, परन्तु क्रांति जैसी सफलता न तो उसको अभी मिली है और न ही मिलने का आसार नज़र आता है।
मूल समस्या कहीं साम्यवाद की अधूरी और कमजोर विचारधारा की है। समाज में एक नागरिक की भूमिका राजनीति के साथ-साथ सामाजिक आर्थिक व सांस्कृतिक भी है। केवल रोटी, कपड़ा और मकान से समाज नहीं बनता है। संबंध, परम्पराएं, संस्कृति और एक दूसरे पर निर्भरता मनुष्य के समाज के अनिवार्य अंग है। जिनको साम्यवाद या तो नकाराता है और या उनकी भूमिका अत्यन्त गौण मानता है इसलिये कुछ समय के बाद साम्यवाद पतन को प्राप्त होता है। अनेक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने अपने जीवन के महत्वपूर्ण प्रारम्भिक वर्ष साम्यवादी विचार के प्रचार-प्रसार में लगाये परन्तु कुछ ही वर्षों में उनको साम्यवाद का अधूरापन और अव्यवहारिकता समझ में आयी। उन्होंने साहस किया और कम्युनिस्ट आन्दोलन से अपने को अलग कर लिया। केरल और बंगाल की जनता को भी अब यह बोध हो गया है कि कम्युनिज्म के माध्यम से उनका विकास होना संभव नहीं है और जब ‘माँ, माटी और मानुस’ का विकल्प उन्हें मिला तो उन्होंने उसे सहज स्वीकार किया।
साम्यवाद का विकल्प पूंजीवाद माना जाता है और दोनों के बीच में कई रंगों का समाजवाद भी आता है। पूंजीवाद में व्यक्ति को एक उपभोक्ता के रूप में माना जाता है। जिसकी आवश्यकता को पूर्ण करने के लिये वस्तुओं और सेवाओं का निर्माण होता है। जिसमें पूंजी लगती है और उसका विस्तार होता है। मौलिक आवश्यकताएं पूर्ण होने पर और छद्म और काल्पनिक जरूरतें पैदा की जाती हैं जिससे की नयी-नयी वस्तुओं और सेवाओं की मांग बढ़े और पूंजी का चक्र चलता रहे। एक स्थिति ऐसी आती है कि व्यक्ति और समाज समृद्धि के ऐसे पड़ाव पर पहुंच जाते हैं जहाँ से आगे जाने का कोई रास्ता नहीं होता और जो होता है वह सब व्यर्थ लगता है। जहाँ राजनीतिक व्यक्ति होने से समानता प्राप्त करना अव्यावहारिक है वहीं उपभोक्ता व्यक्ति होने से मनुष्य का विकास भ्रमित रहता है और दिशाविहीनता का भाव बढ़ता है। विश्व में कम्युनिज्म लगभग समाप्त हो गया और पूंजीवाद असफल होता हुआ लगता है। आखिर विकल्प क्या है? विकल्प समग्रता में है। मनुष्य एक जीव होने के साथ-साथ एक सांस्कृतिक प्राणी भी है। भौतिक आवश्यकताएं पूर्ण होने पर उसके मन में प्रकृति के विषय में प्रश्न उठते हैं और उनका उत्तर पाना उसके लिये जीवन का उद्देश्य बनता है। उसको भौतिक जगत के साथ-साथ ऐसी भी अनुभूति होती है कि मानों पूरे विश्व में एकरूपता व एकात्मता हो। मनुष्य विभिन्नता को सृष्टि का नियम मानता है और उससे संबंध बना कर आनन्द प्राप्त करता है। समाज में प्रतिस्पर्द्धा के स्थान पर सहयोग और आपसी निर्भरता को वहाँ अधिक सार्थक और व्यावहारिक मानता है।
विविधता होने के बावजूद उसको लगता है कि सभी में कुछ एक समान तत्त्व भी हैं। जब उसको यह अनुभूति होती है कि सृष्टि के हर जीव और जड़ में कहीं न कहीं एक समान तत्त्व की उपस्थिति है तो ‘सब अपना’ और ‘सभी अपने’ का भाव आता है। भारत के प्राचीन ग्रंथों में इसी प्रकार के दर्शन का बार-बार वर्णन मिलता है। युनान और रोम के प्राचीन ग्रंथों में भी एकरूपता की बात कही गई है। अमरीका के मूल निवासियों जिनको रेड इंडियन के रूप में जाना जाता है, की संस्कृति में भी पक्षियों, पर्वतों, नदियों और बादलों आदि का मनुष्य से संबंध माना गया है। मैक्सिको के एक विश्व प्रसिद्ध लेखक पाएलो कोहेलो ने अपने उपन्यास ‘अलकेमिस्ट’ में लिखा है कि मनुष्य को रेत, मिट्टी पेड़, पर्वत, जल, वायु, बादल, घोड़े इत्यादि सभी से संवाद करने की क्षमता होनी चाहिए। उसने आगे लिखा है कि जब ऐसा होता है तो समूची प्रकृति षड़यन्त्र करके मनुष्य को सफल बनाती है। इस विचारधारा को राजनीतिक दृष्टि से सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का नाम दिया गया और दर्शन में इसे एकात्म मानववाद कहा गया। विश्व के वर्तमान परिवेश में जब साम्यवाद प्रायः नष्ट हो गया है और पूंजीवाद अंधी गली में अपने को पाता है, तो एकात्म मानववाद में मनुष्यता को अपने विकास का विकल्प ढूंढना होगा। प्रवक्ता से साभार)  

जेल में मज़दूर नेता आमरण अनशन पर


बाहर समर्थकों ने मोर्चा संभालाऑनलाइन अभियान भी हुआ तेज़ 
नई दिल्‍ली: 3 मई को मज़दूरों पर चली गोलियों और उसके विरोध में 9 तारीख के शांतिपूर्ण मजदूर सत्‍याग्रह के बर्बर दमन के बाद और 20 मई को लाठीचार्ज के बाद फर्जी आरोपों में दो महिला साथियों समेत 14 मजदूर नेताओं की गिरफ्तारी का मामला तूल पकड़ रहा है। जेल में बंद मजदूर नेताओं ने आज भी आमरण अनशन जारी रखा। दूसरी तरफ, उनके समर्थकों ने गोरखपुर शहर के विभिन्‍न इलाकों में प्रचार अभियान चलाकर प्रशासन के झूठ का भंडाफोड़ किया। इसके अलावा देश-विदेश के ट्रेडयूनियन कर्मियों, एक्टिविस्‍टों, जनवादी अधिकार और मानवाधिकार कर्मियों ने मुंबई की सीनियर एडवोकेट कामायनी बाली महाबल द्वारा मायावती के नाम जारी की गई ऑनलाइन अपील पर हस्‍ताक्षर करके पुलिस-प्रशासन द्वारा मजदूर आंदोलन के दमन की निंदा की और फर्जी आरोपों में गिरफ्तार नेताओं की रिहाई की मांग की।
गोरखपुर मजदूर आंदोलन समर्थक नागरिक मोर्चा ने बताया कि आज सुबह से ही गोरखपुर में अलग-अलग कारखानों के मजदूर और आंदोलन समर्थक छात्रों-युवाओं ने भगवानपुर मोहल्‍ला, बरगदवां गांव, बरगदवा चौराहा,मोहरीपुर, गीडा, विकासनगर के इलाकों में घर-घर जाकर लोगों को प्रशासन के झूठ और पक्षपातपूर्ण रवैये के बारे में बताया। उन्‍होंने इन इलाकों में पोस्‍टर चिपकाकर और पर्चे बांटकर भी मालिक-प्रशासन-नेता-गुंडा गठजोड़ का भंडाफोड़ किया। उधर, संयुक्‍त मजदूर अधिकार संघर्ष मोर्चा ने कहा कि 3 मई के गोलीकांड के दोषी फैक्‍ट्री मालिक, माफिया सरगना प्रदीप सिंह को गिरफ्तार नहीं किया गया, फर्जी मुकदमों में बंद किए मजदूर नेताओं को छोड़ा नहीं गया और शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन कर रहे मजदूरों के बर्बर दमन के जिम्‍मेदार अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई तो वे अपना अभियान तेज़ कर देंगे। उन्‍होंने बताया कि मजदूरों ने फैसला किया है कि जब तक वी.एन. डायर्स से निकाले गए 18 मजदूरों को काम पर वापस नहीं लिया जाएगा तब तक एक भी मजदूर काम पर नहीं जाएगा।
दूसरी तरफ, आज जारी की गई ऑनलाइन अपील पर सुबह तक 130 हस्‍ताक्षर किए जा चुके थे। हस्‍ताक्षर करने वाले नामों में एडवोकेट और सामाजिक कार्यकर्ता कामायनी बाली महाबल, ट्रेडयूनियन और मानवाधिकार कर्मी सुधा उपाध्‍याय एवं रोमा, एन.ए.पी.एम. के मधुरेश,हल्‍द्वानी से लेखक एवं संस्‍कृतिकर्मी अशोक कुमार पाण्‍डेय, मुंबई से फोटो जर्नलिस्‍ट जावेद इक़बाल, यू.के. से स्‍टीफन कार्डवेल, हैदराबाद यूनिवर्सिटी के प्रो. बी.आर. बापूजी, अमेरिका से फ्रे‍डरिक डिसूज़ा,  पत्रकार मेहताब आलम,प्रियरंजन, अमलेंदु उपाध्‍याय, संदीप शर्मा, दीपांकर चक्रवर्ती, कमेटी फॉर कम्‍युनल एमेटी, मुंबई के शुक्‍ल सेन, कोलकाता से गौतम गांगुली, सायन भट्टाचार्य, मेदिनीपुर अनिर्बान प्रधान, जगदलपुर से अली सैयद, चेन्‍नई से रंजनी कमल मूर्ति एवं अन्‍य छात्रों-सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं-पत्रकारों के नाम शामिल हैं। ऑनलाइन पिटीशन पर हस्‍ताक्षर करने यह सिलसिला जारी है। इसके अतिरिक्‍त देशभर से जागरूक नागरिक उत्तर प्रदेश और विशेषतौर पर गोरखपुर प्रशासन को फोन-फैक्‍स-ईमेल करके भी पुलिस-प्रशासन द्वारा शांतिपूर्ण मजदूर आंदोलन के दमन और मजदूर नेताओं की गिरफ्तारी पर विरोध जता रहे हैं।
उल्‍लेखनीय है कि गोरखपुर में 3 मई के गोलीकांड के दोषियों की गिरफ्तारी और अन्‍य मांगों को लेकर 16 मई से भूख हड़ताल पर बैठे मजदूर 20 मई को जिलाधिकारी कार्यालय ज्ञापन देने जा रहे थे तो पुलिस ने उन पर बर्बर लाठीचार्ज करके 73 मजदूरों को हिरासत में लिया था जिनमें से अधिकांश मजदूर देर रात छोड़ दिए गए थे लेकिन बीएचयू की छात्रा श्‍वेता, स्‍त्री मजदूर सुशीला देवी और अन्‍य 12 को गिरफ्तार कर लिया गया था। पुलिस 20 तारीख को दिन में ही मजदूर नेता तपीश मैंदोला को किसी अन्‍य स्‍थान से उठा ले गई थी और अगले दिन कोर्ट में उनकी पेशी से पहले तक तपिश की गिरफ्तारी से इंकार करती रही। बाद में दोपहर को अचानक तपिश कोमजिस्‍ट्रेट के सामने पेश कर दिया गया। सभी मजदूर नेताओं पर पुलिस नेतीन-तीन फर्जी मुकदमे दायर किए हैं। जेल भेजे गए सभी 14 मजदूर नेताओं ने जेल में आमरण-अनशन शुरू कर दिया है। इनमें से श्‍वेता और सुशीला देवी पिछले 6 दिन से आमरण अनशन पर हैं जिसके कारण उनकी हालत लगातार बिगड़ रही है। इसके बावजूद उन्‍होंने जेल में भी आमरण अनशन शुरू कर दिया है। दो मुकदमों में दोनों को जमानत मिलने के बावजूद पुलिस द्वारा दायर किए गए तीसरे मुकदमे में उन्‍हें जमानत नहीं मिली थी। 

Wednesday, May 25, 2011

धमकी के बाद दिल्ली में विस्फोट--सुरक्षा हुयी और सख्त

दिल्‍ली में बुधवार 25 मई की दोपहर को धमाका होने की जो वारदात हुयी है उससे साफ हो चुका है कि भारत पर आतंकी खतरा एक बार फिर से मडरा रहा है.केटी प्रमुख स्थानों को दहलाने की धमकी के बाद दिल्ली उच्च न्यायालय के बाहर एक मध्यम तीव्रता का कार बम विस्फोट होना कोई मामूली मामला नहिउन है. गौरतलब है कि दिल्ली हाईकोर्ट के गेट नंबर 7 के बाहर पार्किंग में आज दोपहर एक बजे धमाके से कोर्ट परिसर में कोहराम मच गया. विस्फोट से किसी के हताहत होने की फिलहाल कोई सूचना नहीं है. यह धमाका न्यायालय परिसर के गेट नम्बर सात के करीब पार्किंग में खड़ी फोर्ड फिगो कार में हुआ. धमाके कि सूचना मिलते ही पुलिस और अग्निशमन दल घटना स्थल पर पुहंच गया व् पूरे इलाके को घेर लिया गया.इसी बीच दिल्ली पुलिस का कहना है कि ये धमाका कार के रेडिएटर में हुआ है लेकिन मीडिया ने सूत्रों के हवाले से कहा कि यह विस्फोट सवा एक बजे हुआ और विस्फोटक एक बैग में रखा था.विस्फोटक भरा यह पॉलिथीन बैग फोर्ड फिगो गाड़ी  के बोनट के नीचे रखा गया था जिसका नम्‍बर DL 4 CAF 7935 बताया गया है.उल्लेखनीय है कि यह पार्किंग कोर्ट कर्मचारियों और वकीलों के लिए बनाई गई है. जिस तरह से धमाका हुआ है उससे लगता है कि पूरी साजिश के साथ विस्फोटक प्लांट किया गया था.लंच के समय में ये धमाका हुआ है. वहीं, पुलिस ने मौके से एक बैटरी अपने कब्जे में लिया है. धमाके के बाद फोर्ड फिगो गाड़ी का शीशा टूट गया है. बोनट भी क्षतिग्रस्त हो गया है.
आपको याद होगा कि चार दिन पहले नई दिल्ली रेलवे स्टेशन इंचार्ज को डाक के माध्यम से एक पत्र मिला था. इस पत्र में लश्कर-ए-तोएबा नाम के आतंकी संगठन ने कहा था कि वो ओसामा बिन लादेन की मौत का बदला लेने के लिए भारत में बम धमाके करेगा. एक बहुत ही अहम बात कि पत्र में 25 मई की शाम 5 बजे का समय दिया गया था और नई दिल्ली स्टेशन, चिड़ियाघर, लाल किला, एयरपोर्ट को निशाना बनाने की धमकी दी थी. दिल्ली में दोपहर को हुआ धमाका इस धमकी पत्र को भी गंभीर बना देता है. इस खबर को तकरीबन सभी टीवी चैनलों ने प्रमुखता से दिखाया था.

Saturday, May 21, 2011

बहुत पहले भगत ने कर दिखाया था जो संसद में


ये सत्ता हो गयी बहरी,धमाका कर दिखाऊँ क्या?


                                                                                            श्यामल सुमन की काव्य रचनाएँ 

तस्वीर

श्यामल सुमन

अगर तू बूँद स्वाती की, तो मैं इक सीप बन जाऊँ
कहीं बन जाओ तुम बाती, तो मैं इक दीप बन जाऊँ
अंधेरे और नफरत को मिटाता प्रेम का दीपक
बनो तुम प्रेम की पाती, तो मैं इक गीत बन जाऊँ


तेरी आँखों में गर कोई, मेरी तस्वीर बन जाये
मेरी कविता भी जीने की, नयी तदबीर बन जाये
बडी मुश्किल से पाता है कोई दुनियाँ में अपनापन
बना लो तुम अगर अपना, मेरी तकदीर बन जाये


भला बेचैन क्यों होता, जो तेरे पास आता हूँ
कभी डरता हूँ मन ही मन, कभी विश्वास पाता हूँ
नहीं है होंठ के वश में जो भाषा नैन की बोले
नैन बोले जो नैना से, तरन्नुम खास गाता हूँ

कई लोगों को देखा है, जो छुपकर के गजल गाते
बहुत हैं लोग दुनियाँ में, जो गिरकर के संभल जाते
इसी सावन में अपना घर जला है क्या कहूँ यारो
नहीं रोता हूँ फिर भी आँख से, आँसू निकल आते


है प्रेमी का मिलन मुश्किल, भला कैसी रवायत है
मुझे बस याद रख लेना, यही क्या कम इनायत है
भ्रमर को कौन रोकेगा सुमन के पास जाने से
नजर से देख भर लूँ फिर, नहीं कोई शिकायत है !


उलझन

सभी संतों ने सिखलाया, प्रभु का नाम है जपना
सुनहरे कल भी आयेंगे, दिखाते रोज एक सपना
वतन आजाद वर्षों से बढ़ी जनता की बदहाली,
भले छत हो न हो सर पे, ये सारा देश है अपना

कोई सुनता नहीं मेरी, तो गाकर फिर सुनाऊँ क्या?
सभी मदहोश अपने में, तमाशा कर दिखाऊँ क्या?
बहुत पहले भगत ने कर दिखाया था जो संसद में,
ये सत्ता हो गयी बहरी, धमाका कर दिखाऊँ क्या?


मचलना चाहता है मन, नहीं फिर भी मचल पाता
जमाने की है जो हालत, कि मेरा दिल दहल जाता
समन्दर डर गया है देखकर आँखों के ये आँसू,
कलम की स्याह धारा बनके, शब्दों में बदल जाता

लिखूँ जन-गीत मैं प्रतिदिन, ये साँसें चल रहीं जबतक
कठिन संकल्प है देखूँ, निभा पाऊँगा मैं कबतक
उपाधि और शोहरत की ललक में फँस गयी कविता,
जिया हूँ बेचकर श्रम को, कलम बेची नहीं अबतक

खुशी आते ही बाँहों से, न जाने क्यों छिटक जाती?
मिलन की कल्पना भी क्यों, विरह बनकर सिमट जाती?
सभी सपने सदा शीशे के जैसे टूट जाते क्यों?
अजब है बेल काँटों की सुमन से क्यों लिपट जाती?

                                                  ----श्यामल सुमन 

श्यामल सुमकी कवितायेँ आपको कैसी लगीं...इस पर अवश्य कुछ लिखिए...आपके विचारों की इंतज़ार रहेगी. आप उन्हें यहां पर भी मिल सकते हैं अर्थात मनोरमा के पास जा कर...बस यहां क्लिक कीजिये..--रेक्टर कथूरिया 

Friday, May 20, 2011

नारी शक्ति के लिए बना एतिहासिक दिन

शुक्रवार 20 मई को भी लोगों का ध्यान फिर खबरों पर केन्द्रित रहा. पशिचमी बंगाल में  लम्बे संघर्ष के बाद प्राप्त हुयी जीत के बाद ममता बनर्जी  राज्य की प्रथम महिला मुख्यमंत्री के तौर पर सत्ता सम्भाल ली. कोलकाता के राज्य भवन में हुए एक समारोह के दौरान राज्यपाल एम् के नारायणन ने ममता को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई. लोगों के साथ और जड़ने की कवायद ममता ने नए पद के साथ और तेज़ कर दे है. शपथ ग्रहण समारोह के तुरंत बाद  के बाद ममता ने मंत्री मंडल के 43 शियोगियों के साथ .राज्य भवन से राज्य सचिवालय तक का आठ सो मित्र लम्बा सफर पैदल तय किया.समारोह में शामिल होने के लिए 3200 निमंत्रित मेहमानों में सोनागाचे में जीवन व्यतीत करने वाली यौनकर्मियों के परिजनों को बुलाया गया था वहीँ नंदी ग्राम और सिंगूर में हुयी हिंसा का शिकार होने वालों के परिजनों को भी विशेष तौर पर न्योता भेजा गया था. .कर्ज़ से कराह रहे बंगाल के सर पर दो लाख करोड़ रूपये का कर्ज़ है और ममता को व्बिरासत में मिला खजाना खाली है. इस खाली खजाने से लोगों को राहत कैसे देनी है और नए कर लगाने से कैसे बचना है यह किसी परीक्षा से कम नहीं होगा. इसके साथ ही माओवाद  की चुनौती भी काफी बड़ी होगी.साथ  ही साथ सी पी एम की नयी रणनीतियों  को कैसे नाकाम बनाना है यह भी बहुत ही अहम बात होगी. इस पर जब जब भी कुछ नया मिलेगा हम आपके सामने लाते रहेंगे. अब चलते हैं अगली खबर की ओर.. यह तो थी एम से ममता बनर्जी की बात अब करते हैं एम से ही मायावती की बात.  दलित समाज के लिए करिश्मा बन कर उभरी मायावती का कहना है कांग्रेस पार्टी किसानो पर फूहड़ राजनीती कर रही है. यूपी की मुख्या मंत्री ने कहा कि कांग्रेस इस तरह कि ओछी राज्नेती  करने से बाज़  आये. गाँव भाता पारसोल में हुयी जांच के दौरान वहां कि राख में से किसी किस्म के मानव अवशेष न मिलने कि रिपोर्ट आने से माया वती सरकार अब कांग्रेस पर पूरी तरह से आक्रामक हो गयी है. गौरतलब है कि यह जांच फोरेंसिक विभाग ने कि ठगी. कांग्रेस कि तरफ से रहुल गाँधी ने आरोप लगाया था कि पुलिस ने महिलायों से बलात्कार किये और किसानों कि हत्याएं करके उनके शव जला दिए. इन आरोपों कि जांच के लिए इस राख के नमूने आगरा स्थित केन्द्रीय फोरेंसिक प्रयोगशाला में भेजे गए थे. रिपोर्ट में मानव अवशेष न मिलने कि पुष्टि हुयी है. अब देखते हैं कि आगे क्या रुख लेता है किसान आन्दोलन. --रेक्टर कथूरिया  

चीन ने पाकिस्तान को दिया हौंसला

 अमेरिका को दी चेतावनी  दलाईलामा के लिए खोले दरवाज़े 
खबर जितनी महत्वपूरण है उतनी ही हैरानकुन भी. चीन की सरकार ने दलाईलामा के प्रति अपने रुख में नरमी लाते हुए कहा है कि दलाईलामा का तिब्बत में स्वागत है. दलाई लामा कि तरफ से सन्यास लेने के बाद चीन कि सरकार ने पहली बार इस तरह कि नरमी दिखाई है. गौर तलब है कि दलाईलामा ने मार्च म,हीने में सन्यास ले लिया था और उनकी राजनीतिक जिम्मेदारियां लोबसांग सांगे को अपना प्रधानमन्त्री चुन लिया था. इस समय 43 वर्षों कि उम्र के संगे आज कल हार्वर्ड में अध्यापन करते हैं. इस नए घटनाक्रम के बाद पहली बार चीन सरकार कि तरफ से एक उच्च अधिकारी पद्मा चोलिंग ने कहा कि अगर दलाई लामा अपनी अलगाव वादी सरगर्मियों को छोड़ दें और तिब्बत शान्ति के साथ बोद्ध धर्म के लिए  काम करें तो उनका स्वागत है. आपो याद होगा कि दलाई लामा अलगाव वाद जैसी सरगर्मियों के आरोपों को बहुत पहले ही नकार चुके हैं. अपनी मात्र भूमि के लिए सार्थक स्वायत्तता  की मांग को लेकर 1959  से जलावतनी का जीवन बिता रहे दलाई लामा को 1989 में शान्ति के लिए नोबल पुरूस्कार भी मिला था. पहली ही नजर में अपना बना लेने का जादू उनके व्यक्तित्व में है. लम्बे संघर्ष के बावजूद उन्होंने कभी अपने अंदोलन की गति कम नहीं होने दी. 
75 बरस की उम्र में भी वह पूरी  तरह से सक्रिय हैं. प्राकृतिक  सुन्दरता और देवभूमि के तौर पर जाने जाते  हिमाचल प्रदेश में धर्मशाला के  पास मैक्डोल गंज में उनकी सरकार का मुख्यालय भी है जहाँ तिब्बत के जन जेवन को जी कर देखा जा सकता है. वहां के लोग अपने इस वृद्ध नेता की तस्वीरें लगा कर घर घर उनकी पूजा करते हैं. एक प्रमुख सैलानी स्थल बन चुके इस स्थान पर जा कर तिब्बत की सांस्कृतिक धरोहर के दर्शन भी बहुत ही नजदीक से किये जा सकते हैं. इस पर बहुत सी बातें की जा सकती हैं पर बाकी फिर कभी सही. अब चलते हैं अगली खबर की ओर..तन की बाकी खबरों की खबर भी ली जा सके.
तिब्बत की आज़ादी के आन्दोलन को सामन्ती दासता का आन्दोलन कहने वाली चीन सरकार ने पकिस्तान पर की गयी अमेरिकी कारवाई पर गहरा  रोष व्यक्त करते हुए कहा है कि अमेरिका पकिस्तान से दूर रहे. पकिस्तान के एक अंग्रेजी अखबार दी नेशन में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक चीन ने कहा है कि पकिस्तान कि संप्रुभता का सम्मान किया जाना चाहिए. चेन के प्रधान मंत्री वें ज्याबयो ने इस आशय का ब्यान उस वक्त दिया है जब पाकिस्तान के प्रधान मंत्री यूसफ रज़ा गिलानी चीन के दौरे पर हैं. ओसामा बिन लादेन के खिलाफ पकिस्तान पर की गयी अमेरिकी कारवाई के गिलानी की यात्रा और चीन का ब्यान दोनों ही महत्वपूर्ण हैं. इसी सम्बन्ध में यूसफ  रज़ा गिलानी ने भी कहा है की चीन हमारा सबसे अच्छा दोस्त है.. --रेक्टर कथूरिया  

Wednesday, May 18, 2011

औरत होने का दर्द कौन समझता है ?

                       "औरत होने का दर्द "



औरत होने का दर्द कौन समझता है ?,
 हर कोई बस परखता है !

कभी माँ, कभी बीवी बनकर बलि की देवी बनती   है 
नौ महीने गर्भ के  बीज को पल- पल खून से सींचती है 
नव कोपल के फूटने के लम्बे इन्तजार को झेलती है 
कौन आगे बढकर प्यार से माथे का पसीना पौंछता है ?
नवजीव के खिलने के असहनीय दर्द को कौन समझता है ?,
हर कोई  बस परखता है !

माँ बनकर अपने जिगर के टुकड़े को हर दिन बढ़ते देखती है 
कभी प्यार से तो, कभी डांट  से पुचकारती है 
खुद भूखा  रहकर भी हर एक का पेट भरती  है 
कभी रात का बचा भात तो ,कभी दिन की बची रोटी रात में खाती है 
इस बलिदान को कौन समझता है ?, 
हर कोई बस परखता है !

कभी पति, कभी बच्चों की  दूरी को  कम करते पिस जाती है 
बच्चें लायक हो तो पिता का सीना गर्व से फूलता है 
परीक्षा में कम  निकले तो हर कोई माता को कोसता है 
हम सफ़र के माथे की हर शिकन को तुरंत भांप लेती  है 
इस ममता को कौन समझता है ?,
 हर कोई बस परखता है !

कभी बेटी, कभी बहन बनकर सब सह जाती  है 
कभी बाप , कभी भाई के गुस्से में  भी मुस्कुराती  है 
मायके में बचपन के आँगन का हर कर्ज चुकाती है 
अपने हर गम, हर दुःख में भी सबका गम भुलाती है 
इस दुलार को कौन समझता है ?, 
हर कोई बस परखता है !

कभी प्रेमिका बनकर, कभी दोस्ती के नाम पर छली जाती  है 
खुद गुस्सा होकर भी अपने प्रेमी को हर पल मनाती है 
प्रेमी के मन की हर बात  बिन कहे  समझ जाती है 
 अपना हर आंसू  उससे छुपा लेती  है 
कभी उसकी याद में तो, कभी बेरुखी में तड़पती है 
इस जलन को कौन समझता है ? , 
हर कोई बस परखता है !

कभी बहू बनकर दहेज़ के नाम पर ताने सह जाती  है 
बेटी पैदा करने  पर  गुनाहगार ठहराई  जाती है 
कभी प्रसव तो , कभी गर्भ -पात की पीड़ा  झेल जाती है 
अपने ही अरमानों की अर्थी  अपने कांधो पर उठाती है 
इस संवेदना को कौन समझता है ? , 
हर कोई बस परखता है !
                  
                                                              ---अलका सैनी

किसने रची देश और सुरक्षा एजंसियों को बदनाम करने की साज़िश?

देश में एक महत्वपूर्ण और सम्वेदनशील राज्य के मुख्यमंत्री का हैलीकाप्टर गायब हो जाता है और हमें कुछ पता ही नहीं चलता. इस के बावजूद यहाँ बातें उठती हैं की हम भी अमेरिका जैसी कारवाई करेंगे. एक तरफ अनाज सड़ता है दूसरी तरफ लोग भूख से मरते रहते हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट की फटकार सुन कर भी यहाँ श्रम आने जैसी कोई बात नजर ही नहीं आती. अपराधी थानों के सामने या थानों मेंआ कर अपने विरोधी को निशाना बना जाते हैं लेकिन यहाँ न किसी के दिल को दर्द होता है और न ही दिमाग में कोई चिंता उठती है. लोगों को सरेआम गले में टायर दाल दाल कर जला दिया जाता है लेकिन २६ बरस गुजर जाने के बाद भी अपराधी सरें घुमते हैं और कहते हैं की लो कर लो जो करना है. अब इस तरह की बातों से हैरानी होनी भी बंद हो गयी है लेकिन एक खबर ने हिला कर रख दिया है. लादेन के खिलाफ  अचानक और गुपचुप हुयी अमेरिकी कारवाई से जितनी फजीहत पाकिस्तान सरकार और वहां की सुरक्षा एजंसियों  को हुयी उससे भी ज्यादा बुरी हालत लग रही है अब हमारे यहाँ.  पाकिस्तान को जिन 50 मोस्ट वांटेड अपराधियों की सूची सौंपी गयी है उनमें से एक मोस्ट वांटेड अपराधी यहाँ देश में ही है.. गौरतलब है कि जिसे सन 2003 में हुए बम धमाके का आरोपी बताया गया है वह वह ठाणे के ही वागले एस्टेट में रह रहा है. आपको यद् होगा कि ये धमाके मुम्बई सेंट्रल, मुलुंड और विलय परले में हुए थे. वजहल  कमर नाम के इस आरोपी ने एक टीवी चैनल को भी बताया कि वह तो यहाँ अपनी बीमार मन, पत्नी और बच्चों के साथ रह रहा है. वजहल ने मिडिया को बताया कि वह कभी पाकिस्तान नहीं गया. उसने यह भी कहा कि सन 2010 में उसे अवैध हथियार रखने के एक मामले में गिरफ्तार अवश्य किया गया था लेकिन बाद में सभी मामलों में जमानत पर रिहा कर दिया गया.  अब इस खबर की चर्चा पूरी दुनिया में हो रही है. पूरे देश और देश कि सुरक्षा एजंसियों का नाम मिटटी में मिलाने की साज़िश से भी इंकार नहीं किया जा सकता पर सारी हकीकत किसी व्यापक जाँच के बाद ही सामने अ पायेगी. आयो देखते हैं की यह जांच कब तक पूरी होती है. --रेक्टर कथूरिया  

Saturday, May 14, 2011

भारत के कानून // रवि वर्मा

Sat, May 14, 2011 at 3:02 PM
भारत में 1857 के पहले ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन हुआ करता था वो अंग्रेजी सरकार का सीधा शासन नहीं था | 1857 में एक क्रांति हुई जिसमे इस देश में मौजूद 99 % अंग्रेजों को भारत के लोगों ने चुन चुन के मार डाला था और 1% इसलिए बच गए क्योंकि उन्होंने अपने को बचाने के लिए अपने शरीर को काला रंग लिया था | लोग इतने गुस्से में थे कि उन्हें जहाँ अंग्रेजों के होने की भनक लगती थी तो वहां पहुँच के वो उन्हें काट डालते थे | हमारे देश के इतिहास की किताबों में उस क्रांति को सिपाही विद्रोह के नाम से पढाया जाता है | Mutiny और Revolution में अंतर होता है लेकिन इस क्रांति को विद्रोह के नाम से ही पढाया गया हमारे इतिहास में | 1857 की गर्मी में मेरठ से शुरू हुई ये क्रांति जिसे सैनिकों ने शुरू किया था, लेकिन एक आम आदमी का आन्दोलन बन गया और इसकी आग पुरे देश में फैली और 1 सितम्बर तक पूरा देश अंग्रेजों के चंगुल से आजाद हो गया था | भारत अंग्रेजों और अंग्रेजी अत्याचार से पूरी तरह मुक्त हो गया था | लेकिन नवम्बर 1857 में इस देश के कुछ गद्दार रजवाड़ों ने अंग्रेजों को वापस बुलाया और उन्हें इस देश में पुनर्स्थापित करने में हर तरह से योगदान दिया | धन बल, सैनिक बल, खुफिया जानकारी, जो भी सुविधा हो सकती थी उन्होंने दिया और उन्हें इस देश में पुनर्स्थापित किया | और आप इस देश का दुर्भाग्य देखिये कि वो रजवाड़े आज भी भारत की राजनीति में सक्रिय हैं | अंग्रेज जब वापस आये तो उन्होंने क्रांति के उद्गम स्थल बिठुर (जो कानपुर के नजदीक है) पहुँच कर सभी 24000 लोगों का मार दिया चाहे वो नवजात हो या मरणासन्न | बिठुर के ही नाना जी पेशवा थे और इस क्रांति की सारी योजना यहीं बनी थी इसलिए अंग्रेजों ने ये बदला लिया था | उसके बाद उन्होंने अपनी सत्ता को भारत में पुनर्स्थापित किया और जैसे एक सरकार के लिए जरूरी होता है वैसे ही उन्होंने कानून बनाना शुरू किया | अंग्रेजों ने कानून तो 1840 से ही बनाना शुरू किया था और मोटे तौर पर उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था को ध्वस्त कर दिया था, लेकिन 1857 से उन्होंने भारत के लिए ऐसे-ऐसे कानून बनाये जो एक सरकार के शासन करने के लिए जरूरी होता है | आप देखेंगे कि हमारे यहाँ जितने कानून हैं वो सब के सब 1857 से लेकर 1946 तक के हैं |
1840 तक का भारत जो था उसका विश्व व्यापार में हिस्सा 33% था, दुनिया के कुल उत्पादन का 43% भारत में पैदा होता था और दुनिया के कुल कमाई में भारत का हिस्सा 27% था | ये अंग्रेजों को बहुत खटकती थी, इसलिए आधिकारिक तौर पर भारत को लुटने के लिए अंग्रेजों ने कुछ कानून बनाये थे और वो कानून अंग्रेजों के संसद में बहस के बाद तैयार हुई थी, उस बहस में ये तय हुआ कि "भारत में होने वाले उत्पादन पर टैक्स लगा दिया जाये क्योंकि सारी दुनिया में सबसे ज्यादा उत्पादन यहीं होता है और ऐसा हम करते हैं तो हमें टैक्स के रूप में बहुत पैसा मिलेगा" | तो अंग्रेजों ने सबसे पहला कानून बनाया Central Excise Duty Act और टैक्स तय किया गया 350% मतलब 100 रूपये का उत्पादन होगा तो 350 रुपया Excise Duty देना होगा | फिर अंग्रेजों ने समान के बेचने पर Sales Tax लगाया और वो तय किया गया 120% मतलब 100 रुपया का माल बेचो तो 120 रुपया CST दो | फिर एक और टैक्स आया Income Tax और वो था 97% मतलब 100 रुपया कमाया तो 97 रुपया अंग्रेजों को दे दो | ऐसे ही Road Tax, Toll Tax, Municipal Corporation tax, Octroi, House Tax, Property Tax लगाया और ऐसे करते-करते 23 प्रकार का टैक्स लगाया अंग्रेजों ने और खूब लुटा इस देश को | 1840 से लेकर 1947 तक टैक्स लगाकर अंग्रेजों ने जो भारत को लुटा उसके सारे रिकार्ड बताते हैं कि करीब 300 लाख करोड़ रुपया लुटा अंग्रेजों ने इस देश से | तो भारत की जो गरीबी आयी है वो लुट में से आयी गरीबी है | विश्व व्यापार में जो हमारी हिस्सेदारी उस समय 33% थी वो घटकर 5% रह गयी, हमारे कारखाने बंद हो गए, लोगों ने खेतों में काम करना बंद कर दिया, हमारे मजदूर बेरोजगार हो गए | इस तरीके से बेरोजगारी पैदा हुई, गरीबी-बेरोजगारी से भुखमरी पैदा हुई और आपने पढ़ा होगा कि हमारे देश में उस समय कई अकाल पड़े, ये अकाल प्राकृतिक नहीं था बल्कि अंग्रेजों के ख़राब कानून से पैदा हुए अकाल थे, और इन कानूनों की वजह से 1840 से लेकर 1947 तक इस देश में साढ़े चार करोड़ लोग भूख से मरे | तो हमारी गरीबी का कारण ऐतिहासिक है कोई प्राकृतिक,अध्यात्मिक या सामाजिक कारण नहीं है | हमारे देश में अंग्रेजों ने 34735 कानून बनाये शासन करने के लिए, सब का जिक्र करना तो मुश्किल है लेकिन कुछ मुख्य कानूनों के बारे में मैं संक्षेप में लिख रहा हूँ |         
  • Indian Education Act - 1858 में Indian Education Act बनाया गया | इसकी ड्राफ्टिंग लोर्ड मैकोले ने की थी | लेकिन उसके पहले उसने यहाँ (भारत) के शिक्षा व्यवस्था का सर्वेक्षण कराया था, उसके पहले भी कई अंग्रेजों ने भारत के शिक्षा व्यवस्था के बारे में अपनी रिपोर्ट दी थी | अंग्रेजों का एक अधिकारी था G.W.Litnar और दूसरा था Thomas Munro, दोनों ने अलग अलग इलाकों का अलग-अलग समय सर्वे किया था | 1823 के आसपास की बात है ये | Litnar , जिसने उत्तर भारत का सर्वे किया था, उसने लिखा है कि यहाँ 97% साक्षरता है और Munro, जिसने दक्षिण भारत का सर्वे किया था, उसने लिखा कि यहाँ तो 100 % साक्षरता है, और उस समय जब भारत में इतनी साक्षरता है | और मैकोले का स्पष्ट कहना था कि भारत को हमेशा-हमेशा  के लिए अगर गुलाम बनाना है तो इसकी देशी और सांस्कृतिक शिक्षा व्यवस्था को पूरी तरह से ध्वस्त करना होगा और उसकी जगह अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी और तभी इस देश में शरीर से हिन्दुस्तानी लेकिन दिमाग से अंग्रेज पैदा होंगे और जब इस देश की यूनिवर्सिटी से निकलेंगे तो हमारे हित में काम करेंगे, और मैकोले एक मुहावरा इस्तेमाल कर रहा है "कि जैसे किसी खेत में कोई फसल लगाने के पहले पूरी तरह जोत दिया जाता है वैसे ही इसे जोतना होगा और अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी " | इसलिए उसने सबसे पहले गुरुकुलों को  गैरकानूनी घोषित किया, जब गुरुकुल गैरकानूनी हो गए तो उनको मिलने वाली सहायता जो समाज के तरफ से होती थी वो गैरकानूनी हो गयी, फिर संस्कृत को गैरकानूनी घोषित किया, और इस देश के गुरुकुलों को घूम घूम कर ख़त्म कर दिया उनमे आग लगा दी, उसमे पढ़ाने वाले गुरुओं को उसने मारा-पीटा, जेल में डाला | 1850 तक इस देश में 7 लाख 32 हजार गुरुकुल हुआ करते थे और उस समय इस देश में गाँव थे 7 लाख 50 हजार, मतलब हर गाँव में औसतन एक गुरुकुल और ये जो गुरुकुल होते थे वो सब के सब आज की भाषा में Higher Learning Institute हुआ करते थे उन सबमे 18 विषय पढाया जाता था, और ये गुरुकुल समाज के लोग मिल के चलाते थे न कि राजा, महाराजा, और इन गुरुकुलों में शिक्षा निःशुल्क दी जाती थी | इस तरह से सारे गुरुकुलों को ख़त्म किया गया और फिर अंग्रेजी शिक्षा को कानूनी घोषित किया गया और कलकत्ता में पहला कॉन्वेंट स्कूल खोला गया, उस समय इसे फ्री स्कूल कहा जाता था, इसी कानून के तहत भारत में कलकत्ता यूनिवर्सिटी बनाई गयी, बम्बई यूनिवर्सिटी बनाई गयी, मद्रास यूनिवर्सिटी बनाई गयी और ये तीनों गुलामी के ज़माने के यूनिवर्सिटी आज भी इस देश में हैं | और मैकोले ने अपने पिता को एक चिट्ठी लिखी थी बहुत मशहूर चिट्ठी है वो, उसमे वो लिखता है कि "इन कॉन्वेंट स्कूलों से ऐसे बच्चे निकलेंगे जो देखने में तो भारतीय होंगे लेकिन दिमाग से अंग्रेज होंगे और इन्हें अपने देश के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने संस्कृति के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने परम्पराओं के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने मुहावरे नहीं मालूम होंगे, जब ऐसे बच्चे होंगे इस देश में तो अंग्रेज भले ही चले जाएँ इस देश से अंग्रेजियत नहीं जाएगी " और उस समय लिखी चिट्ठी की सच्चाई इस देश में अब साफ़-साफ़ दिखाई दे रही है |  और उस एक्ट की महिमा देखिये कि हमें अपनी भाषा बोलने में शर्म आती है, अंग्रेजी में बोलते हैं कि दूसरों पर रोब पड़ेगा, अरे हम तो खुद में हीन हो गए हैं जिसे अपनी भाषा बोलने में शर्म आ रही है, दूसरों पर रोब क्या पड़ेगा | लोगों का तर्क है कि अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है, दुनिया में 204 देश हैं और अंग्रेजी सिर्फ 11 देशों में बोली, पढ़ी और समझी जाती है, फिर ये कैसे अंतर्राष्ट्रीय भाषा है | शब्दों के मामले में भी अंग्रेजी समृद्ध नहीं दरिद्र भाषा है | इन अंग्रेजों की जो बाइबिल है वो भी अंग्रेजी में नहीं थी और ईशा मसीह अंग्रेजी नहीं बोलते थे | ईशा मसीह की भाषा और बाइबिल की भाषा अरमेक थी | अरमेक भाषा की लिपि जो थी वो हमारे बंगला भाषा से मिलती जुलती थी, समय के कालचक्र में वो भाषा विलुप्त हो गयी |  संयुक्त राष्ट संघ जो अमेरिका में है वहां की भाषा अंग्रेजी नहीं है, वहां का सारा काम फ्रेंच में होता है | जो समाज अपनी मातृभाषा से कट जाता है उसका कभी भला नहीं होता और यही मैकोले की रणनीति थी |
  • Indian Police Act - 1860 में इंडियन पुलिस एक्ट बनाया गया | 1857 के पहले अंग्रेजों की कोई पुलिस नहीं थी इस देश में लेकिन 1857 में जो विद्रोह हुआ उससे डरकर उन्होंने ये कानून बनाया ताकि ऐसे किसी विद्रोह/क्रांति को दबाया जा सके | अंग्रेजों ने इसे बनाया था भारतीयों का दमन और अत्याचार करने के लिए | उस पुलिस को विशेष अधिकार दिया गया | पुलिस को एक डंडा थमा दिया गया और ये अधिकार दे दिया गया कि अगर कहीं 5 से ज्यादा लोग हों तो वो डंडा चला सकता है यानि लाठी चार्ज  कर सकता है और वो भी बिना पूछे और बिना बताये और पुलिस को तो Right to Offence है लेकिन आम आदमी को Right to Defence नहीं है | आपने अपने बचाव के लिए उसके डंडे को पकड़ा तो भी आपको सजा हो सकती है क्योंकि आपने उसके ड्यूटी को पूरा करने में व्यवधान पहुँचाया है और आप उसका कुछ नहीं कर सकते | इसी कानून का फायदा उठा कर लाला लाजपत राय पर लाठियां चलायी गयी थी और लाला जी की मृत्यु हो गयी थी और लाठी चलाने वाले सांडर्स का क्या हुआ था ? कुछ नहीं, क्योंकि वो अपनी ड्यूटी कर रहा था और जब सांडर्स को कोई सजा नहीं हुई तो लालाजी के मौत का बदला भगत सिंह ने सांडर्स को गोली मारकर लिया था | और वही दमन और अत्याचार वाला कानून "इंडियन पुलिस एक्ट" आज भी इस देश में बिना फुल स्टॉप और कौमा बदले चल रहा है | और बेचारे पुलिस की हालत देखिये कि ये 24 घंटे के कर्मचारी हैं उतने ही तनख्वाह में, तनख्वाह मिलती है 8 घंटे की और ड्यूटी रहती है 24 घंटे की | और जेल मैनुअल के अनुसार आपको पुरे कपडे उतारने पड़ेंगे आपकी बॉडी मार्क दिखाने के लिए भले ही आपका बॉडी मार्क आपके चेहरे पर क्यों न हो | और जेल के कैदियों को अल्युमिनियम के बर्तन में खाना दिया जाता था ताकि वो जल्दी मरे, वो अल्युमिनियम के बर्तन में खाना देना आज भी जारी हैं हमारे जेलों में, क्योंकि वो अंग्रेजों के इस कानून में है | 
  • Indian Civil Services Act - 1860 में ही इंडियन सिविल सर्विसेस एक्ट बनाया गया | ये जो Collector हैं वो इसी कानून की देन हैं | भारत के Civil Servant जो हैं उन्हें Constitutional Protection है, क्योंकि जब ये कानून बना था उस समय सारे ICS अधिकारी अंग्रेज थे और उन्होंने अपने बचाव के लिए ऐसा कानून बनाया था, ऐसा विश्व के किसी देश में नहीं है, और वो कानून चुकी आज भी लागू है इसलिए भारत के IAS अधिकारी सबसे निरंकुश हैं | अभी आपने CVC थोमस का मामला देखा होगा | इनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता | और इन अधिकारियों का हर तीन साल पर तबादला हो जाता था क्योंकि अंग्रेजों को ये डर था कि अगर ज्यादा दिन तक कोई अधिकारी एक जगह रह गया तो उसके स्थानीय लोगों से अच्छे सम्बन्ध हो जायेंगे और वो ड्यूटी उतनी तत्परता से नहीं कर पायेगा या उसके काम काज में ढीलापन आ जायेगा | और वो ट्रान्सफर और पोस्टिंग का सिलसिला आज भी वैसे ही जारी है और हमारे यहाँ के कलक्टरों की जिंदगी इसी में कट जाती है | और ये जो Collector होते थे उनका काम था Revenue, Tax, लगान और लुट के माल को Collect करना इसीलिए ये Collector कहलाये और जो Commissioner होते थे वो commission पर काम करते थे उनकी कोई तनख्वाह तय नहीं होती थी और वो जो लुटते थे उसी के आधार पर उनका कमीशन होता था | ये मजाक की बात या बनावटी कहानी नहीं है ये सच्चाई है इसलिए ये दोनों पदाधिकारी जम के लूटपाट और अत्याचार मचाते थे उस समय | अब इस कानून का नाम Indian Civil Services Act से बदल कर Indian Civil Administrative Act हो गया है, 64 सालों में बस इतना ही बदलाव हुआ है  | 
  • Indian Income Tax Act - इस एक्ट पर जब ब्रिटिश संसद में चर्चा हो रही थी तो एक सदस्य ने कहा कि "ये तो बड़ा confusing है, कुछ भी स्पष्ट नहीं हो पा रहा है",  तो दुसरे ने कहा कि हाँ इसे जानबूझ कर ऐसा रखा गया है ताकि जब भी भारत के लोगों को कोई दिक्कत हो तो वो हमसे ही संपर्क करें | आज भी भारत के आम आदमी को छोडिये, इनकम टैक्स के वकील भी इसके नियमों को लेकर दुविधा की स्थिति में रहते हैं | और इनकम टैक्स की दर रखी गयी 97% यानि 100 रुपया कमाओ तो 97 रुपया टैक्स में दे दो और उसी समय ब्रिटेन से आने वाले सामानों पर हर तरीके के टैक्स की छुट दी जाती है ताकि ब्रिटेन के माल इस देश के गाँव-गाँव में पहुँच सके | और इसी चर्चा में एक सांसद कहता है कि "हमारे तो दोनों हाथों में लड्डू है, अगर भारत के लोग इतना टैक्स देते हैं तो वो बर्बाद हो जायेंगे या टैक्स की चोरी करते हैं तो बेईमान हो जायेंगे और अगर बेईमान हो गए तो हमारी गुलामी में आ जायेंगे और अगर बरबाद हुए तो हमारी गुलामी में आने ही वाले है" | तो ध्यान दीजिये कि इस देश में टैक्स का कानून क्यों लाया जा रहा है ? क्योंकि इस देश के व्यापारियों को, पूंजीपतियों को, उत्पादकों को, उद्योगपतियों को, काम करने वालों को या तो बेईमान बनाया जाये या फिर बर्बाद कर दिया जाये, ईमानदारी से काम करें तो ख़त्म हो जाएँ और अगर बेईमानी करें तो हमेशा ब्रिटिश सरकार के अधीन रहें | अंग्रेजों ने इनकम टैक्स की दर रखी थी 97% और इस व्यवस्था को 1947 में ख़त्म हो जाना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ और आपको जान के ये आश्चर्य होगा कि 1970-71 तक इस देश में इनकम टैक्स की दर 97% ही हुआ करती थी | और इसी देश में भगवान श्रीराम जब अपने भाई भरत से संवाद कर रहे हैं तो उनसे कह रहे है कि प्रजा पर ज्यादा टैक्स नहीं लगाया जाना चाहिए और चाणक्य ने भी कहा है कि टैक्स ज्यादा नहीं होना चाहिए नहीं तो प्रजा हमेशा गरीब रहेगी, अगर सरकार की आमदनी बढ़ानी है तो लोगों का उत्पादन और व्यापार बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करो | अंग्रेजों ने तो 23 प्रकार के टैक्स लगाये थे उस समय इस देश को लुटने के लिए, अब तो इस देश में VAT को मिला के 64 प्रकार के टैक्स हो गए हैं | महात्मा गाँधी के देश में नमक पर भी टैक्स हो गया है और नमक भी विदेशी कंपनियां बेंच रही हैं, आज अगर गाँधी जी की आत्मा स्वर्ग से ये देखती होगी तो आठ-आठ आंसू रोती होगी कि जिस देश में मैंने नमक सत्याग्रह किया कि विदेशी कंपनी का नमक न खाया जाये आज उस देश में लोग विदेश कंपनी का नमक खरीद रहे हैं और नमक पर टैक्स लगाया जा रहा है | शायद हमको मालूम नहीं है कि हम कितना बड़ा National Crime कर रहे हैं |  
  • Indian Forest Act - 1865 में Indian Forest Act बनाया गया और ये लागू हुआ 1872 में | इस कानून के बनने के पहले जंगल गाँव की सम्पति माने जाते थे और गाँव के लोगों की सामूहिक हिस्सेदारी होती थी इन जंगलों में, वो ही इसकी देखभाल किया करते थे, इनके संरक्षण के लिए हर तरह का उपाय करते थे, नए पेड़ लगाते थे और इन्ही जंगलों से जलावन की लकड़ी इस्तेमाल कर के वो खाना बनाते थे | अंग्रेजों ने इस कानून को लागू कर के जंगल के लकड़ी के इस्तेमाल को प्रतिबंधित कर दिया | साधारण आदमी अपने घर का खाना बनाने के लिए लकड़ी नहीं काट सकता और अगर काटे तो वो अपराध है और उसे जेल हो जाएगी, अंग्रेजों ने इस कानून में ये प्रावधान किया कि भारत का कोई भी आदिवासी या दूसरा कोई भी नागरिक पेड़ नहीं काट सकता और आम लोगों को लकड़ी काटने से रोकने के लिए उन्होंने एक पोस्ट बनाया District Forest Officer जो उन लोगों को तत्काल सजा दे सके, उसपर केस करे, उसको मारे-पीटे | लेकिन दूसरी तरफ जंगलों के लकड़ी की कटाई के लिए ठेकेदारी प्रथा लागू की गयी जो आज भी लागू है और कोई ठेकेदार जंगल के जंगल साफ़ कर दे तो कोई फर्क नहीं पड़ता |  अंग्रेजों द्वारा नियुक्त ठेकेदार जब चाहे, जितनी चाहे लकड़ी काट सकते हैं | हमारे देश में एक अमेरिकी कंपनी है जो वर्षों से ये काम कर रही है, उसका नाम है ITC पूरा नाम है Indian Tobacco Company इसका असली नाम है American Tobacco Company, और ये कंपनी हर साल 200 अरब सिगरेट बनाती है और इसके लिए 14 करोड़ पेड़ हर साल काटती है | इस कंपनी के किसी अधिकारी या कर्मचारी को आज तक जेल की सजा नहीं हुई क्योंकि ये इंडियन फोरेस्ट एक्ट ऐसा है जिसमे सरकार के द्वारा अधिकृत ठेकेदार तो पेड़ काट सकते हैं लेकिन आप और हम चूल्हा जलाने के लिए, रोटी बनाने के लिए लकड़ी नहीं ले सकते और उससे भी ज्यादा ख़राब स्थिति अब हो गयी है, आप अपने जमीन पर के पेड़ भी नहीं काट सकते | तो कानून ऐसे बने हुए हैं कि साधारण आदमी को आप जितनी प्रताड़ना दे सकते हैं, दुःख दे सकते है, दे दो विशेष आदमी को आप छू भीं नहीं सकते | और जंगलों की कटाई से घाटा ये हुआ कि मिटटी बह-बह के नदियों में आ गयी और नदियों की गहराई को इसने कम कर दिया और बाढ़ का प्रकोप बढ़ता गया | 
  • Indian Penal Code - अंग्रेजों ने एक कानून हमारे देश में लागू किया था जिसका नाम है Indian Penal Code (IPC ) | ये Indian Penal Code अंग्रेजों के एक और गुलाम देश Ireland के Irish Penal Code की फोटोकॉपी है, वहां भी ये IPC ही है लेकिन Ireland में जहाँ "I" का मतलब Irish है वहीं भारत में इस "I" का मतलब Indian है, इन दोनों IPC में बस इतना ही अंतर है बाकि कौमा और फुल स्टॉप का भी अंतर नहीं है | अंग्रेजों का एक अधिकारी था टी.वी.मैकोले, उसका कहना था कि भारत को हमेशा के लिए गुलाम बनाना है तो इसके शिक्षा तंत्र और न्याय व्यवस्था को पूरी तरह से समाप्त करना होगा | और आपने अभी ऊपर Indian Education Act पढ़ा होगा, वो भी मैकोले ने ही बनाया था और उसी मैकोले ने इस IPC की भी ड्राफ्टिंग की थी | ये बनी 1840 में और भारत में लागू हुई 1860 में | ड्राफ्टिंग करते समय मैकोले ने एक पत्र भेजा था ब्रिटिश संसद को जिसमे उसने लिखा था कि "मैंने भारत की न्याय व्यवस्था को आधार देने के लिए एक ऐसा कानून बना दिया है जिसके लागू होने पर भारत के किसी आदमी को न्याय नहीं मिल पायेगा | इस कानून की जटिलताएं इतनी है कि भारत का साधारण आदमी तो इसे समझ ही नहीं सकेगा और जिन भारतीयों के लिए ये कानून बनाया गया है उन्हें ही ये सबसे ज्यादा तकलीफ देगी | और भारत की जो प्राचीन और परंपरागत न्याय व्यवस्था है उसे जडमूल से समाप्त कर देगा"| और वो आगे लिखता है कि " जब भारत के लोगों को न्याय नहीं मिलेगा तभी हमारा राज मजबूती से भारत पर स्थापित होगा" | ये हमारी न्याय व्यवस्था अंग्रेजों के इसी IPC के आधार पर चल रही है | और आजादी के 64 साल बाद हमारी न्याय व्यवस्था का हाल देखिये कि लगभग 4 करोड़ मुक़दमे अलग-अलग अदालतों में पेंडिंग हैं, उनके फैसले नहीं हो पा रहे हैं | 10 करोड़ से ज्यादा लोग न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं लेकिन न्याय मिलने की दूर-दूर तक सम्भावना नजर नहीं आ रही है, कारण क्या है ? कारण यही IPC है | IPC का आधार ही ऐसा है | और मैकोले ने लिखा था कि "भारत के लोगों के मुकदमों का फैसला होगा, न्याय नहीं मिलेगा" | मुक़दमे का निपटारा होना अलग बात है, केस का डिसीजन आना अलग बात है, केस का जजमेंट आना अलग बात है और न्याय मिलना बिलकुल अलग बात है | अब इतनी साफ़ बात जिस मैकोले ने IPC के बारे में लिखी हो उस IPC को भारत की संसद ने 64 साल बाद भी नहीं बदला है और ना कभी कोशिश ही की है |   
  •  Land Acquisition Act - एक अंग्रेज आया इस देश में उसका नाम था डलहौजी | ब्रिटिश पार्लियामेंट ने उसे एक ही काम के लिए भारत भेजा था कि तुम जाओ और भारत के किसानों के पास जितनी जमीन है उसे छिनकर अंग्रेजों के हवाले करो | डलहौजी ने इस "जमीन को हड़पने के कानून" को भारत में लागू करवाया, इस कानून को लागू कर के किसानों से जमीने छिनी गयी | जो जमीन किसानों की थी वो ईस्ट इंडिया कंपनी की हो गयी | डलहौजी ने अपनी डायरी में लिखा है कि " मैं गाँव गाँव जाता था और अदालतें लगवाता था और लोगों से जमीन के कागज मांगता था" | और आप जानते हैं कि हमारे यहाँ किसी के पास उस समय जमीन के कागज नहीं होते थे क्योंकि ये हमारे यहाँ परंपरा से चला आ रहा था या आज भी है कि पिता की जमीन या जायदाद बेटे की हो जाती है, बेटे की जमीन उसके बेटे की हो जाती है | सब जबानी होता था, जबान की कीमत होती थी या आज भी है आप देखते होंगे कि हमारे यहाँ जो शादियाँ होती हैं वो सिर्फ और सिर्फ जबानी समझौते से होती है कोई लिखित समझौता नहीं होता है, एक दिन /तारीख तय हो जाती है और लड़की और लड़का दोनों पक्ष शादी की तैयारी में लग जाते है लड़के वाले निर्धारित तिथि को बारात ले के लड़की वालों के यहाँ पहुँच जाते है, शादी हो जाती है | तो कागज तो किसी के पास था नहीं इसलिए सब की जमीनें उस अत्याचारी डलहौजी ने हड़प ली | एक दिन में पच्चीस-पच्चीस हजार किसानों से जमीनें छिनी गयी | परिणाम क्या हुआ कि इस देश के करोड़ों किसान भूमिहीन हो गए | डलहौजी के आने के पहले इस देश का किसान भूमिहीन नहीं था, एक-एक किसान के पास कम से कम 10 एकड़ जमीन थी, ये अंग्रेजों के रिकॉर्ड बताते हैं | डलहौजी ने आकर इस देश के 20 करोड़ किसानों को भूमिहीन बना दिया और वो जमीने अंग्रेजी सरकार की हो गयीं | 1947 की आजादी के बाद ये कानून ख़त्म होना चाहिए था लेकिन नहीं, इस देश में ये कानून आज भी चल रहा है | हम आज भी अपनी खुद की जमीन पर मात्र किरायेदार हैं, अगर सरकार का मन हुआ कि आपके जमीन से हो के रोड निकाला जाये तो आपको एक नोटिस दी जाएगी और आपको कुछ पैसा दे के आपकी घर और जमीन ले ली जाएगी | आज भी इस देश में किसानों की जमीन छिनी जा रही है बस अंतर इतना ही है कि पहले जो काम अंग्रेज सरकार करती थी वो काम आज भारत सरकार करती है | पहले जमीन छीन कर अंग्रेजों के अधिकारी अंग्रेज सरकार को वो जमीनें भेंट करते थे, अब भारत सरकार वो जमीनें छिनकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भेंट कर रही है और Special Economic Zone उन्हीं जमीनों पर बनाये जा रहे हैं और ये जमीन बहुत बेदर्दी से लिए जा रहे हैं | भारतीय या बहुराष्ट्रीय कंपनी को कोई जमीन पसंद आ गयी तो सरकार एक नोटिस देकर वो जमीन किसानों से ले लेती है और वही जमीन वो कंपनी वाले महंगे दाम पर दूसरों को बेचते हैं | जिसकी जमीन है उसके हाँ या ना का प्रश्न ही नहीं है, जमीन की कीमत और मुआवजा सरकार तय करती है, जमीन वाले नहीं | एक पार्टी की सरकार वहां पर है तो दूसरी पार्टी का नेता वहां पहुँच के घडियाली आंसू बहाता है और दूसरी पार्टी की सरकार है तो पहले वाला पहुँच के घडियाली आंसू बहाता है लेकिन दोनों पार्टियाँ मिल के इस कानून को ख़त्म करने की कवायद नहीं करते और 1894 का ये अंग्रेजों का कानून बिना किसी परेशानी के इस देश में आज भी चल रहा है | इसी देश में नंदीग्राम होते हैं, इसी देश में सिंगुर होते हैं और अब नोएडा हो रहा है | जहाँ लोग नहीं चाहते कि हम हमारी जमीन छोड़े, वहां लाठियां चलती हैं, गोलियां चलती है | आपको लगता है कि ये देश आजाद हो गया है ? मुझे तो नहीं लगता | 
  • Indian Citizenship Act - अंग्रेजों ने एक कानून लाया था Indian Citizenship Act, आप और हम भारत के नागरिक हैं तो कैसे हैं, उसके Terms और Condition अंग्रेज तय कर के गए हैं | अंग्रेजों ने ये कानून इसलिए बनाया था कि अंग्रेज भी इस देश के नागरिक हो सकें | तो इसलिए इस कानून में ऐसा प्रावधान है कि कोई व्यक्ति  (पुरुष या महिला) एक खास अवधि तक इस देश में रह ले तो उसे भारत की नागरिकता मिल सकती है (जैसे बंगलादेशी शरणार्थी) | लेकिन हमने इसमें आज 2011 तक के 64 सालों में रत्ती भर का भी संशोधन नहीं किया | इस कानून के अनुसार कोई भी विदेशी आकर भारत का नागरिक हो सकता है, नागरिक हो सकता है तो चुनाव लड़ सकता है, और चुनाव लड़ सकता है तो विधायक और सांसद भी हो सकता है, और विधायक और सांसद बन सकता है तो मंत्री भी बन सकता है, मंत्री बन सकता है तो प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भी बन सकता है | ये भारत की आजादी का माखौल नहीं तो और क्या है ? दुनिया के किसी भी देश में ये व्यवस्था नहीं है | आप अमेरिका जायेंगे और रहना शुरू करेंगे तो आपको ग्रीन कार्ड मिलेगा लेकिन आप अमेरिका के राष्ट्रपति नहीं बन सकते, जब तक आपका जन्म अमेरिका में नहीं हुआ होगा | ऐसा ही कनाडा में है, ब्रिटेन में है, फ़्रांस में है, जर्मनी में है | दुनिया में 204 देश हैं लेकिन दो-तीन देश को छोड़ के हर देश में ये कानून है कि आप जब तक उस देश में पैदा नहीं हुए तब तक आप किसी संवैधानिक पद पर नहीं बैठ सकते, लेकिन भारत में ऐसा नहीं है | कोई भी विदेशी इस देश की नागरिकता ले सकता है और इस देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन हो सकता है और आप उसे रोक नहीं सकते, क्योंकि कानून है, Indian Citizenship Act , उसमे ये व्यवस्था है | ये अंग्रेजों के समय का कानून है, हम उसी को चला रहे हैं, उसी को ढो रहे हैं आज भी, आजादी के 64 साल बाद भी | आप समझते हैं कि हमारी एकता और अखंडता सुरक्षित रहेगी ? 
  • Indian Advocates Act - हमारे देश में जो अंग्रेज जज होते थे वो काला टोपा लगाते थे और उसपर नकली बालों का विग लगाते थे | ये व्यवस्था आजादी के 40-50 साल बाद तक चलता रहा था | हमारे यहाँ वकीलों का जो ड्रेस कोड है वो इसी कानून के आधार पर है, काला कोट, उजला शर्ट और बो ये हैं वकीलों का ड्रेस कोड | काला कोट जो होता है वो आप जानते हैं कि गर्मी को सोखता है, और अन्दर की गर्मी को बाहर नहीं निकलने देता, और इंग्लैंड में चुकी साल में 8-9 महीने भयंकर ठण्ड पड़ती है तो उन्होंने ऐसा ड्रेस अपनाया, अब हम भारत में भी ऐसा ही ड्रेस पहन रहे हैं ये समझ से बाहर की बात है | हमारे यहाँ का मौसम गर्म है और साल में नौ महीने तो बहुत गर्मी रहती है और अप्रैल से अगस्त तक तो तापमान 40-50 डिग्री तक हो जाता है फिर ऐसे ड्रेस को पहनने से क्या फायदा जो शरीर को कष्ट दे, कोई और रंग भी तो हम चुन सकते थे काला रंग की जगह, लेकिन नहीं | हमारे देश में आजादी के पहले के जो वकील हुआ करते थे वो ज्यादा हिम्मत वाले थे | लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक हमेशा मराठी पगड़ी पहन कर अदालत में बहस करते थे और गाँधी जी ने कभी काला कोट नहीं पहना और इसके लिए कई बार उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ा था, लेकिन उन लोगों ने कभी समझौता नहीं किया |
  • Indian Motor Vehicle Act - उस ज़माने में कार/मोटर जो था वो सिर्फ अंग्रेजों, रजवाड़ों और पैसे वालों के पास होता था तो इस कानून में प्रावधान डाला गया कि अगर किसी को मोटर से धक्का लगे या धक्के से मौत हो जाये तो सजा नहीं होनी चाहिए या हो भी तो कम से कम | साल डेढ़ साल की सजा हो ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए उसको हत्या नहीं माना जाना चाहिए, क्योंकि हत्या में तो धारा 302 लग जाएगी और वहां हो जाएगी फाँसी या आजीवन कारावास, तो अंग्रेजों ने इस एक्ट में ये प्रावधान रखा कि अगर कोई (अंग्रेजों के) मोटर के नीचे दब के मरा तो उसे कठोर और लम्बी सजा ना मिले | ये व्यवस्था आज भी जारी है और इसीलिए मोटर के धक्के से होने वाली मौत में किसी को सजा नहीं होती | और सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस देश में हर साल डेढ़ लाख लोग गाड़ियों के धक्के से या उसके नीचे आ के मरते हैं लेकिन आज तक किसी को फाँसी या आजीवन कारावास नहीं हुआ | 
  • Indian Agricultural Price Commission Act - ये भी अंग्रेजों के ज़माने का कानून है | पहले ये होता था कि किसान, जो फसल उगाते थे तो उनको ले के मंडियों में बेचने जाते थे और अपने लागत के हिसाब से उसका दाम तय करते थे | अंग्रेजों ने हमारे कृषि व्यवस्था को ख़त्म करने के लिए ये कानून लाया और किसानों को उनके फसल का दाम तय करने का अधिकार समाप्त कर दिया | अंग्रेज अधिकारी मंडियों में जाते थे और वो किसानों के फसल का मूल्य तय करते थे कि आज ये अनाज इस मूल्य में बिकेगा और ये अनाज इस मूल्य में बिकेगा, ऐसे ही हर अनाज का दाम वो तय करते थे | आप हर साल समाचारों में सुनते होंगे कि "सरकार ने गेंहू का,धान का, खरीफ का, रबी का समर्थन मूल्य तय किया" | ये किसानों के फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य होता है, मतलब किसानों के फसलों का आधिकारिक मूल्य होता है | इससे ज्यादा आपके फसल का दाम नहीं होगा | किसानों को अपने उपजाए अनाजों का दाम तय करने का अधिकार आज भी नहीं है इस आजाद भारत में | उनका मूल्य तय करना सरकार के हाथ में होता है | और आज दिल्ली के AC Room में बैठ कर वो लोग किसानों के फसलों का दाम तय करते हैं जिन्होंने खेतों में कभी पसीना नहीं बहाया और जो खेतों में पसीना बहाते हैं, वो अपने उत्पाद का दाम नहीं तय कर सकते |  
  • Indian Patent Act - अंग्रेजों ने एक कानून लाया Patent Act , और वो बना था 1911 | Patent मतलब होता है एक तरह का Legal Right, कोई व्यक्ति, वैज्ञानिक या कंपनी अगर किसी चीज का आविष्कार करती है तो उसे उस आविष्कार पर एक खास अवधि के लिए अधिकार दिया जाता है | ये जा के 1970 में ख़त्म हुआ श्रीमती इंदिरा गाँधी के प्रयासों से लेकिन इसे अब फिर से बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दबाव में बदल दिया गया है | अभी विस्तार से नहीं लिखूंगा मतलब इस देश के लोगों के हित से ज्यादा जरूरी है बहुराष्ट्रीय कंपनियों का हित |     
ये हैं भारत के विचित्र कानून, सब पर लिखना संभव नहीं है और ज्यादा बोझिल न हो जाये इसलिए यहीं विराम देता हूँ | इन कानूनों के किताब बाज़ार में उपलब्ध हैं लेकिन मैंने इनके इतिहास को वर्तमान के साथ जोड़ के आपके सामने प्रस्तुत किया है, और इन कानूनों का इतिहास, उन पर हुई चर्चा को ब्रिटेन के संसद House of Commons की library से लिया गया हैं | अब कुछ छोटे-छोटे कानूनों की चर्चा करता हूँ |
  • अंग्रेजों ने एक कानून बनाया था कि गाय को, बैल को, भैंस को डंडे से मारोगे तो जेल होगी लेकिन उसे गर्दन से काट कर उसका माँस निकल कर बेचोगे तो गोल्ड मेडल मिलेगा क्योंकि आप Export Income बढ़ा रहे हैं | ये कानून अंग्रेजों ने हमारी कृषि व्यवस्था को बर्बाद करने के लिए लाया था | लेकिन आज भी भारत में हजारों कत्लखाने गायों को काटने के लिए चल रहे हैं | 
  • 1935 में अंग्रेजों ने एक कानून बनाया था उसका नाम था Government of India Act , ये अंग्रेजों ने भारत को 1000 साल गुलाम बनाने के लिए बनाया था और यही कानून हमारे संविधान का आधार बना | 
  • 1939 में राशन कार्ड का कानून बनाया गया क्योंकि उसी साल द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू हुआ और अंग्रेजों को धन के साथ-साथ भोजन की भी आवश्यकता थी तो उन्होंने भारत से धन भी लिया और अनाज भी लिया और इसी समय राशन कार्ड की शुरुआत की गयी | और जिनके पास राशन कार्ड होता था उन्हें सस्ते दाम पर अनाज मिलता था और जिनके पास राशन कार्ड होता था उन्हें ही वोट देने का अधिकार था | और अंग्रेजों ने उस द्वितीय विश्वयुद्ध में 1732 करोड़ स्टर्लिंग पोंड का कर्ज लिया था भारत से जो आज भी उन्होंने नहीं चुकाया है और ना ही किसी भारतीय सरकार ने उनसे ये मांगने की हिम्मत की पिछले 64 सालों में | 
  • अंग्रेजों को यहाँ से चीनी की आपूर्ति होती थी | और भारत के लोग चीनी के बजाय गुड (Jaggary) बनाना पसंद करते थे और गन्ना चीनी मीलों को नहीं देते थे | तो अंग्रेजों ने गन्ना उत्पादक इलाकों में गुड बनाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया और गुड बनाना गैरकानूनी घोषित कर दिया था और वो काननों आज भी इस देश में चल रहा है | 
  • पहले गाँव का विकास गाँव के लोगों के जिम्मे होता था और वही लोग इसकी योजना बनाते थे | किसी गाँव की क्या आवश्यकता है, ये उस गाँव के रहने वालों से बेहतर कौन जान सकता है लेकिन गाँव के उस व्यवस्था को तोड़ने के लिए अंग्रेजों ने PWD की स्थापना की | वो PWD आज भी है | NGO भी इसीलिए लाया गया था, ये भी अंग्रेजों ने ही शुरू किया था |  
  •  हमारे देश में सीमेंट नहीं होता था बल्कि चुना और दूध को मिला कर जो लेप तैयार होता था उसी से ईंटों को जोड़ा जाता था | अंग्रेजों ने अपने देश का सीमेंट बेचने के लिए 1850 में इस कला को प्रतिबंधित कर दिया और सीमेंट को भारत के बाजार में उतारा | हमारे देश के किलों (Forts) को आप देखते होंगे सब के सब इसी भारतीय विधि से खड़े हुए थे और आज भी कई सौ सालों से खड़े हैं | और सीमेंट से बने घरों की अधिकतम उम्र होती है 100 साल और चुने से बने घरों की न्यूनतम उम्र होती है 500 साल |  
  • आप दक्षिण भारत में भव्य मंदिरों की एक परमपरा देखते होंगे, इन मंदिरों को पेरियार जाती के लोग बनाते थे आज की भाषा में वो सब के सब सिविल इंजिनियर थे, बहुत अद्भुत मंदिरों का निर्माण किया उन्होंने | एक अंग्रेज अधिकारी था A.O.Hume, इसी ने 1885 में कांग्रेस की स्थापना की थी, जब ये 1890 में मद्रास प्रेसिडेंसी में अधिकारी बन के गया तो इसने वहां इस जाति को मंदिरों के निर्माण करने से प्रतिबंधित कर दिया, गैरकानूनी घोषित कर दिया | नतीजा क्या हुआ कि वो भव्य मंदिरों की परंपरा तो ख़त्म हुई ही साथ ही साथ वो सभी बेरोजगार हो गए और हमारी एक भवन निर्माण कला समाप्त हो गयी | वो कानून आज भी है | 
  • उड़ीसा में नहर के माध्यम से खेतों में पानी तब छोड़ा जाता था जब उसकी जरूरत नहीं होती थी और जब जरूरत होती थी यानि गर्मियों में तो उस समय नहरों में पानी नहीं दिया जाता था | आप भारत के पूर्वी इलाकों को देखते होंगे, जिसमे शामिल हैं पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखण्ड और उड़ीसा, ये इलाके पिछड़े हुए हैं | कभी आपने सोचा है कि ये इलाके क्यों पिछड़े हुए हैं ? जब कि भारत के 90% Minerals इसी इलाके में होते हैं | अभी मुझे इससे सम्बंधित दस्तावेज मिल नहीं पाए हैं इसलिए इस पर ज्यादा नहीं लिखूंगा | कभी मैं विलियम बेंटिक और मैकोले के बीच हुई बातचीत के बारे में लिखूंगा कि कैसे वो अपने बातचीत में कलकत्ता और लन्दन की तुलना कर रहे हैं, और 1835 के आस पास हुई बातचीत के आधार पर ये जाहिर होता है कि लन्दन निहायती घटिया शहर है और कलकत्ता उस समय सबसे समृद्ध | 
  • एक कानून के हिसाब से बच्चे को पेट में मारोगे तो Abhortion और पैदा होने पर मारोगे तो हत्या | Abhortion हुआ तो कुछ नहीं लेकिन उसे पैदा होने के बाद मारा तो हत्या का मामला बनेगा | 
  • अंग्रेजों ने सेना के लिए कानून बनाया था | इसके सैनिकों को मूंछ (mustache) रखने पर अतिरिक्त भत्ता मिलता था | सेना में आज भी मूंछ रखने पर उसके देख रेख और maintainance के लिए भत्ता मिलता है |   
  • आपमें से बहुतों ने क़ुतुब मीनार के पास एक लोहे का स्तम्भ देखा होगा जो सैकड़ों साल से खुले में है लेकिन आज तक उसमे जंग (Rust) नहीं लगा है | ये स्टील बनाने की जो कला थी वो हमारे देश के आदिवासियों के पास थी जो कि आज के झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और ओड़िसा के इलाकों में रहते थे और वो कच्चा लोहा वहीं के खदानों से निकाल के लाते थे और इस तरीके के उन्नत किस्म का लोहा बनाते थे | आज दुनिया में इतनी उच्च तकनीक होने के बावजूद ऐसा लोहा कोई देश नहीं बना पाया है जिस पर जंग न लगे | तो अंग्रेजों ने इस तकनीक को बर्बाद करने के लिए एक कानून बनाया कि कोई भी आदिवासी खदानों से कच्चे लोहे नहीं निकालेगा, और कोई ऐसा करते हुए पकड़ा गया तो उसे 40 कोड़े पड़ेंगे और अगर फिर भी बच गया तो उसको गोली मार दी जाएगी | इस तरह से ये तकनीक इस देश में अंग्रेजों ने ख़त्म की | और वो कानून आज भी चल रहा है और ध्यान दीजियेगा कि इन्ही इलाकों में माओवाद और नक्सलवाद चल रहा है |
अजीब अजीब कानून है इस देश में | आप ध्यान देंगे कि अंग्रेजों ने जो भी कानून बनाया था उससे वे भारत के अर्थव्यवस्था, सामाजिक व्यवस्था, शिक्षा व्यवस्था को ख़त्म करना चाहते थे और ख़त्म भी किया था, मैं कहना ये चाहता हूँ कि अंग्रेजों ने जो भी कानून बनाये थे वो अपने फायदे और हमारे नुकसान के लिए था और हमें आजादी के बाद इसे ख़त्म कर देना चाहिए था लेकिन अंग्रेजों के गुलामी की एक भी निशानी को हमने 64 सालों में मिटाया नहीं | सब को संभाल के और सहेज के रखा है और हर साल अपने को मुर्ख बनाने के लिए 15 अगस्त और 26 जनवरी को झंडा फहराते है, स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस मनाते हैं | स्वतंत्रता का मतलब होता है अपना तंत्र/अपनी व्यवस्था | ये स्वतंत्रता है या परतंत्रता ? हमने अपना कौन सा तंत्र विकसित किया है इन 64 सालों में ? सब तो अंग्रेजों का ही है | अगर झंडा फहराना ही स्वतंत्रता है तो भीकाजी कामा ने बहुत पहले तिरंगा फहरा दिया था तो क्या हम आजाद हो गए थे | स्वतंत्रता का मतलब है अपनी व्यवस्था जिसमे आप गुलामी की एक एक निशानी को, एक एक व्यवस्था को उखाड़ फेंकते हैं, उन सब चीजों को अपने समाज से हटाते हैं जिससे गुलामी आयी थी, वो तो हम नहीं कर पाए हैं, इसलिए मैं मानता हूँ कि आजादी अधूरी है, इस अधूरी आजादी को पूर्ण आजादी में बदलना है, अपनी व्यवस्था लानी है, स्वराज्य लाना है, इसके लिए आपको और हमको ही आगे आना होगा | गुलामी के कानूनों को ही अगर हमारी संसद आगे बढाती जाये और चलाती जाये इसके लिए संसद नहीं बनाई हमने और इसके लिए चुनाव नहीं होते और करोडो रूपये खर्च नहीं किये जाते | हमने हमारी अपनी व्यवस्थाओं को चलाने के लिए संसद बनाई है | ये जो गुलामी की व्यवस्था आजादी के 64 साल बाद भी चल रही है तो उसे तो ख़त्म करना ही पड़ेगा | आज नहीं तो कल किसी को तो ये सवाल करना ही होगा | भारत की राजनितिक पार्टियाँ ये सवाल नहीं उठाती है, ये मंदिर-मस्जिद के सवाल उठाती हैं और हमको उसी में उलझाये रखती है, इन कानूनों को जो गुलामी की निशानी है उनका सवाल नहीं उठती हैं | समाज को बाँट देने वाले जितने प्रश्न है वो ये उठाती हैं लेकिन गुलामी वाले कानूनों के सवाल नहीं उठाती हैं |

यकीन मानिये हमारे देश की आजादी की लड़ाई के समय जितने भी देशभक्त शहीद हुए, जैसे खुदीराम बोस, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, अशफाकुल्लाह, वीर सावरकर, सुभाष चन्द्र बोस, उधम सिंह आदि आदि, ये तो कुछ नाम हैं ऐसे 7 लाख से ऊपर देशभक्त थे, उन सब की आत्मा आज भी भटक रही होगी, और वो आपस में एक दुसरे से यही सवाल कर रहे होंगे कि हम कितने मुर्ख थे जो ऐसे देश के लिए जान दिए | या तो वो मुर्ख थे या फिर हम महामूर्ख हैं जो इन सब व्यवस्थाओं को सहेज के और संभाल के रखे हुए हैं |

हमारे सारे दुखों का कारण ये व्यवस्था है जब हम इस व्यवस्था को हटायेंगे तभी हमें सुख की प्राप्ति होगी | जिस देश में धर्मग्रन्थ गीता की रचना हुई और जिसमे कर्म करने को कहा गया और कर्म की प्रधानता बताई गयी, उसी देश के लोग भाग्यवादी हो गए | भाग्य के भरोसे बैठने से कुछ नहीं होगा, उठिए, जागिये और इस व्यवस्था को बदलिए क्योंकि दुःख हमें है नेताओं को नहीं |

एक भारत स्वाभिमानी
रवि वर्मा