Thursday, March 31, 2011

पलासी के युद्ध की सच्चाई कुछ और है

बहाव के साथ बहने वाले लोग आकार बहुत बड़ी संख्या में होते हैं क्यूंकि यह आसान भी तो होता है. क्या हो रहा है उन्हें कभी महसूस नहीं होता. कभी कोई दर्द नहीं उठता. उठे तो उसे दबा दिया जाता है. कठिन रह पर चलने की हिम्मत सभी में तो होती भी नहीं.अगर कोई तड़प कर बोल उठे तो उसे ये लोग पागल समझते हैं. पर हकीकत तो यह है कि इस तरह के जिन लोगों को पागल समझा जाता है वही पते की वो बातें बताते हैं जिनकी समझ बाकी दुनिया को बहुत ही देर से आती है. इस बार एक तडप भरा लेख आया है रवि वर्मा का. उनके तथ्यों पर लोगों को मतभेद हो सकते हैं पर उनकी तड़प उनके देश प्रेम पर कोई किन्तु नहीं करने देती. प्रस्तुत है उनका लेख सन 1757 की पलासी की लड़ाई. आपके विचारों का इंतजार तो रहेगा ही.--रेक्टर कथूरिया 

पुस्तक के कुछ अंश

कुछ समय से मैंने ये निर्णय लिया है की भारत के उन चीजों के बारे में आप सब लोगों को जानकारी दूँ जो हमें गलत बताया गया है | आप लोगों के ज्ञान को मैं कम कर के नहीं आंक रहा हूँ लेकिन कई बातें ऐसी होती हैं जो असल में वैसी होती नहीं है जैसा हमें बताया जाता है | मसलन भारत में हमेशा ये पढाया गया की भारत अंधेरों का देश था, भारत मदारियों का देश था, भारत संपेरों का देश था, अंग्रेज़ आये तो उन्होंने हमें सब सिखाया, हमें शिक्षित किया | अंग्रेज नहीं आते तो हमारे यहाँ पिछड़ापन ही पसरा रहता, हम अंधेरों में ही घिरे रहते, वगैरह वगैरह | दुःख तो ज्यादा तब होता है जब हमारे देश के प्रधानमंत्री और अन्य कैबिनेट मंत्री इस तरीके की बात करते हैं | क्या हम वाकई अँधेरे में थे ? क्या हम वाकई जाहिल थे ? क्या हम वाकई पिछड़े थे ? ये सवाल मेरे मन में हमेशा रहा | फिर मन ये जवाब भी देता था की अगर हम वाकई पिछड़े थे तो क्या अंग्रेज यहाँ 250  साल घास छिल रहे थे, उसके पहले पुर्तगाली आये, स्पनिश आये, और बहुत से लोग आये | मैं आप सब से पूछता हूँ की गरीब के घर में कोई रहता है क्या ? और उनको सुधारने और अच्छा बनाने का ठेका कोई लेता है क्या ? और वो भी गोरी चमड़ी वाले ? असंभव | इसी सिलसिले में मैंने कुछ तथ्य आप सब लोगों के सामने लाने का संकल्प लिया है | आज पेश है पहली कड़ी .................
सन 1757  की पलासी की लड़ाई
जैसा की आप सब जानते हैं की अंग्रेजों को भारत में व्यापार करने का अधिकार जहाँगीर ने 1618  में दिया था और 1618  से लेकर 1750  तक भारत के अधिकांश रजवाड़ों को अंग्रेजों ने छल से कब्जे में ले लिया था | बंगाल उनसे उस समय तक अछूता था | और उस समय बंगाल का नवाब था सिराजुदौला | बहुत ही अच्छा शासक था, बहुत संस्कारवान था | मतलब अच्छे शासक के सभी गुण उसमे मौजूद थे | अंग्रेजों का जो फ़ॉर्मूला था उस आधार पर वो उसके पास भी गए व्यापार की अनुमति मांगने के लिए गए लेकिन सिराजुदौला ने कभी भी उनको ये इज़ाज़त नहीं दी क्यों की उसके नाना ने उसको ये बताया था की सब पर भरोसा करना लेकिन गोरों पर कभी नहीं और ये बातें उसके जेहन में हमेशा रहीं इसलिए उसने अंग्रेजों को व्यापार की इज़ाज़त कभी नहीं दी | अंग्रेजों ने कई बार बंगाल पर हमला किया लेकिन हमेशा हारे | मैं यहाँ स्पष्ट कर दूँ की अंग्रेजों ने कभी भी युद्ध करके भारत में किसी राज्य को नहीं जीता था वो हमेशा छल और साजिस से ये काम करते थे | उस समय का बंगाल जो था वो बहुत बड़ा राज्य था उसमे शामिल था आज का प. बंगाल, बिहार, झारखण्ड, उड़ीसा, बंग्लादेश, पूर्वोत्तर के सातों राज्य और म्यांमार (बर्मा) | हम जो इतिहास पढ़ते हैं उसमे बताया जाता है की पलासी के युद्ध में अंग्रेजों और सिराजुदौला के बीच भयंकर लड़ाई हुई और अंग्रेजों ने सिराजुदौला को हराया | लेकिन सच्चाई कुछ और है | मन में हमेशा ये सवाल रहा की आखिर सिराजुदौला जैसा शासक हार कैसे गया और ये भी सवाल मन में था की आखिर अंग्रेजों के पास कितने सिपाही थे और सिराजुदौला के पास कितने सिपाही थे | भारत में पलासी के युद्ध के ऊपर जितनी भी किताबें हैं उनमे से किसी में भी इस संख्या के बारे में जानकारी नहीं है | इस युद्ध की जानकारी उपलब्ध है लन्दन के इंडिया हाउस लाइब्ररी में | बहुत बड़ी लाइब्ररी है और वहां भारत की गुलामी के समय के 20  हज़ार दस्तावेज उपलब्ध है | वहां उपलब्ध दस्तावेज के हिसाब से अंग्रेजों के पास पलासी के युद्ध के समय मात्र 300  सिपाही थे और सिराजुदौला के पास 18  हजार सिपाही | किसी भी साधारण आदमी से आप ये सवाल कीजियेगा की एक तरफ 300  सिपाही और दूसरी तरफ 18  हजार सिपाही तो युद्ध कौन जीतेगा ? तो जवाब मिलेगा की 18  हजार वाला लेकिन पलासी के युद्ध में 300  सिपाही वाले अंग्रेज जीत गए और 18  हजार वाला सिराजुदौला हार गया | और अंग्रेजों के House  of  Commons   में ये कहा जाता था की अंग्रेजों के 5  सिपाही = भारत का एक सिपाही | तो सवाल ये उठता है की इतने मज़बूत 18  हजार सिपाही उन कमजोर 300  सिपाहियों से हार कैसे गए ?
अंग्रेजी सेना का सेनापति था रोबर्ट क्लाइव और सिराजुदौला का सेनापति था मीरजाफर | रोबर्ट क्लाइव ये जानता था की आमने सामने का युद्ध हुआ तो एक घंटा भी नहीं लगेगा और हम युद्ध हार जायेंगे और क्लाइव ने कई बार चिठ्ठी लिख के ब्रिटिश पार्लियामेंट को ये बताया भी था | इन दस्तावेजों में क्लाइव की दो चिठियाँ भी हैं | जिसमे उसने ये प्रार्थना की है की अगर पलासी का युद्ध जितना है तो मुझे और सिपाही दिए जाएँ | उसके जवाब में ब्रिटिश पार्लियामेंट के तरफ से ये चिठ्ठी भेजी गयी थी की हम अभी (1757  में) नेपोलियन बोनापार्ट के खिलाफ युद्ध लड़ रहे हैं और पलासी से ज्यादा महत्वपूर्ण हमारे लिए ये युद्ध है और इस से ज्यादा सिपाही हम तुम्हे नहीं दे सकते | तुम्हारे पास जो 300  सिपाही हैं उन्ही के साथ युद्ध करो | रोबर्ट क्लाइव ने तब अपने दो जासूस लगाये और उनसे कहा की जा के पता लगाओ की सिराजुदौला के फ़ौज में कोई ऐसा आदमी है जिसे हम रिश्वत दे लालच दे और रिश्वत के लालच में अपने देश से गद्दारी कर सके | उसके जासूसों ने ये पता लगा के बताया की हाँ उसकी सेना में एक आदमी ऐसा है जो रिश्वत के नाम पर बंगाल को बेच सकता है और अगर आप उसे कुर्सी का लालच दे तो वो बंगाल के सात पुश्तों को भी बेच सकता है | और वो आदमी था मीरजाफर, और मीरजाफर ऐसा आदमी था जो दिन रात एक ही सपना देखता था की वो कब बंगाल का नवाब बनेगा | ये बातें रोबर्ट क्लाइव को पता चली तो उसने मीरजाफर को एक पत्र लिखा | ये पत्र भी उस दस्तावेज में उपलब्ध है | उसने उस पत्र में दो ही बाते लिखी | पहला ये की " अगर तुम हमारे साथ दोस्ती करो और ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ समझौता करो तो हम युद्ध जीतने के बाद तुम्हे बंगाल का नवाब बना देंगे" और दूसरी बात की "जब तुम बंगाल के नवाब हो जाओगे तो बंगाल की सारी सम्पति तुम्हारी हो जाएगी और उस सम्पति में से 5 % हमें दे देना और बाकि तुम जितना लूटना चाहो लुटते रहना" | मीरजाफर तो दिन रात यही सपना देखा करता था तो उसने तुरत रोबर्ट क्लाइव को एक पत्र लिखा की " मुझे आपकी दोनों शर्तें मंज़ूर हैं बताइए करना क्या है ? " तो   क्लाइव ने इस सम्बन्ध में अंतिम पत्र लिखा और कहा की " तुमको बस इतना करना है की युद्ध जिस दिन शुरू होगा उस दिन आप अपने 18  हजार सिपाहियों से कहना की वो मेरे सामने समर्पण कर दे | तो मीरजाफर ने कहा की ये हो जायेगा लेकिन आप अपने जबान पर कायम रहिएगा | क्लाइव का जवाब था की हम बिलकुल अपनी जबान पर कायम रहेंगे |
और तथाकथित युद्ध शुरू हुआ 23  जून 1757 को और बंगाल के 18 हजार सिपाहियों ने सेनापति मीरजाफर के कहने पर 40 मिनट के अन्दर समर्पण कर दिया और रोबर्ट क्लाइव के 300 सिपाहियों ने बंगाल के 18 हजार सिपाहियों को बंदी बना लिया और कलकत्ता के फोर्ट विलियम में बंद कर दिया और 10 दिनों तक सबों को भूखा प्यासा रखा और ग्यारहवें दिन सब की हत्या करवा दी | और हत्या करवाने में मीरजाफर क्लाइव के साथ शामिल था | उसके बाद क्लाइव ने मीरजाफर के साथ मिल कर मुर्शिदाबाद में सिराजुदौला की हत्या करवाई | उस समय मुर्शिदाबाद बंगाल की राजधानी हुआ करती थी | और फिर वादे के अनुसार क्लाइव ने मीरजाफर को बंगाल का नवाब बना दिया | और बाद में क्लाइव ने अपने हाथों से मीरजाफर को छुरा घोंप कर मार दिया |
इसके बाद रोबर्ट क्लाइव ने कलकत्ता को लुटा और 900 पानी के जहाज सोना, चांदी, हीरा, जवाहरात लन्दन ले गया | वहां के संसद में जब क्लाइव गया तो वहां के प्रधानमंत्री ने उस से पूछा की ये भारत से लुट के तुम ले के आये हो तो क्लाइव ने कहा की नहीं इसे मैं भारत के एक शहर कलकत्ता से लुट के लाया हूँ | कितना होगा ये ? मैंने इसकी गणना तो नहीं क़ि है लेकिन Roughly  1000  Million  स्टर्लिंग पौंड का ये होगा (1  Million  = 10  लाख) | उस समय (1757 ) के स्टर्लिंग पौंड के कीमत में 300  गुना कमी आयी है और आज के हिसाब से उसका मूल्याङ्कन किया जाये तो ये होगा 1000X1000000X300X80 | Calculator  तो फेल हो जायेगा  | रोबर्ट क्लाइव अकेला नहीं था ऐसे 84  अधिकारी भारत आये और सब ने भारत को बेहिसाब लुटा | वारेन हेस्टिंग्स, कर्जन,लिलिथ्गो, डिकेंस, बेंटिक, कार्नवालिस जैसे लोग आते रहे और भारत को लुटते रहे | ये थी पलासी के युद्ध की असली कहानी | अगली बार 1757  से थोडा आगे बढूँगा |
मीरजाफर ने अपनी हार और क्लाइव की जीत के बाद कहा की "अंग्रेजो आओ तुम्हारा स्वागत है इस देश में तुम्हे जितना लुटा है लूटो बस मुझे कुछ पैसा दे दो और कुर्सी दे दो" | 1757  में तो सिर्फ एक मीरजाफर था जिसे कुर्सी और पैसे का लालच था अभी तो हजारों मीरजाफर इस देश में पैदा हो गए हैं जो वही भाषा बोल रहे हैं | जो वैसे ही देश को गुलाम बनाने में लगे हुए हैं जैसे मीरजाफर ने इस देश को गुलाम बनाया था | सब पार्टी के नेता एक ही सोच रखते हैं चाहे वो ABC पार्टी के हों या XYZ पार्टी के | आप किसी को अच्छा मत समझिएगा क्यों की इन 64  सालों में सब ने चाहे वो राष्ट्रीय पार्टी हो या प्रादेशिक पार्टी,  प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सत्ता का स्वाद तो सबो ने चखा ही है |  

Tuesday, March 29, 2011

कुछ याद उन्हें भी कर लो जो लौट के घर न आये

भारतीय शास्त्रों में  बार बार यह बात याद दिलाई जाती है कि इंसान को अपने धर्म में हर पल कायम  रहना चाहिए. धर्म और स्वभाव का गहरा मेल है. जैसे आग जलाती है, हवा सुखाती है ये सब उनका स्वभाव है. सूर्य हमें रौशनी भी देता है और गर्मी भी, चाँद हमें चांदनी देता है जो आँखों को ठंडक देती हुयी महसूस होती हैं. इनमें से कभी भी कोई अपने धर्म से नहीं हटा. लेकिन इंसान बार बार किसी न किसी बहाने से अपने मानवीय धर्म और प्रेम प्यार के धर्म से हट जाता है. कभी जाति के नाम पर, कभी भाषा के नाम पर, कभी मज़हब के नाम पर और कभी क्षेत्र के नाम पर. लेकिन जो लोग धर्म पर कायम रहते हैं उनके सामने दुनिया झुकती है. इसमें देर चाहे हो जाये लेकिन अंधेर कभी नहीं होता. कभी वक्त था कि रूस और अमेरिका एक दूसरे के सामने खड़े थे. एक दूसरे को मिटाने के लिएआतुर. मास्को और वाशिंगटन कभी इस नफरत को भूल पायेंगे कभी किसी ने नहीं सोचा था. पर इस तस्वीर ने मुझे बहुत कुछ सोचने को मजबूर किया. तस्वीर में अमेरिकी रक्षा विभाग के सचिव रोबर्ट एम गेटस एक मकबरे पर फूल माला अर्पित करके अपने श्रद्दा सुमन अर्पित कर रहे हैं. मकबरा किसी सैनिक का है. सैनिक का नाम मैं नहीं जानता लेकिन जो बात पता चल सकी वह यह कि तस्वीर में दिखाया गया मकबरा मास्को में है. इस तस्वीर को अमेरिकी रक्षा विभाग के लिए कैमरे में क्लिक किया  Cherie Cullen/ ने 22 मार्च 2011 को. इस तस्वीर को देख कर जहन में लता जी का गाया हुआ  वह अमर गीत भीआने लगता है...कुछ याद उन्हें भी कर लो जो लौट के घर न आये....अगर आपके मन में भी कुछ आ रहा है तो उसे तुरंत लिख भेजिए. चाहे डाक से चाहे इमेल से. आपके विचारों का स्वागत होगा. आपको यह तस्वीर कैसी लगी ? इस पर अपने विचार भी भेजें और अगर आपके पास भी कोई अच्छी तस्वीर हो तो उसे अवश्य भेजें उसे आपके नाम के साथ प्रकाशित किया जायेगा. --रेक्टर कथूरिया. 

Tuesday, March 22, 2011

चला गया सच का एक और पहरेदार

आज के इस युग में भी जब सब कुछ बिकायू हो चूका है अलोक तोमर एक अपवाद बने हुए थे. एक ऐसी मिसाल जो सब के सामने होनी भी चाहिए. न डॉ, न दबाव, न रंजिश न लिहाज़....या बेबाकी थी उनके लेखन में.  केवल लेखन ही नहीं जीवन भी तो ऐसा ही था खुली किताब की तरह. जो मन में होता वही जुबान पे भी और वही कलम से निकले शब्दों में भी. बार बार सच बोला, बार संकट उठाये और बार बार उस गीत को जी कर दिखाया...न मूंह छुपा के जिओ और न सर झुका के जिओ...ग़मों का दौर भी आये तो मुस्करा के जिओ...
धारदार पत्रकारिता और सच कहने की दलेरी को उन्होंने कठिन समय में भी जिंदा रखा. उनके जाने से सिर्फ इस बार ही नहीं हमेशां के लिए होली का त्यौहार फीका फीका सा हो गया है. खबर सुनी तो यकीन नहीं आया. पता किया तो मालूम हुआ कि रविवार को सुबह ग्यारह बज कर दस मिनट पर उन्होंने अंतिम सांस ली.
पचास की उम्र कोई जाने की उम्र तो नहीं होती पर सच बोलने की साधना करते करते कलम के इस बहादुर सिपाही ने इस उम्र में ही अलविदा कह दी. मध्यप्रदेश के मुरैना जिले में 1960 में जन्मे अलोक तोमर के लिए नवंबर-84 में हुआ सिख्खों का हत्याकांड एक चुनौती की तरह था लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार किया.उनकी सच बोलने की हिम्मत ने उन्हें जनसत्ता में बुलंदियों पर पहुंचा दिया. वह खबर एजेंसी  वार्ता से भी जुड़े रहे. टीवी चैनल सीएनईबी से भी. यह संख्या बहुत लम्बी है संक्षिप्त में कहें तो यही की वह हर जगह सच इ जुड़े थे और आम इंसान की लड़ाई लड रहे थे. इस जंग में उन्होंने कभी परवाह नहीं की चाहे सामने कोई अख़बार हो या फिर चैनल. सच सामने लाने के लिए वह सारे बखिये उधेड़ देते. अब सच का वह पहरेदार नहीं रहा. उनके चाहने वाले अगर सच की जंग को जारी रख सकें तो यह उन्हें सच्ची श्रद्दांजलि होगी. उन्होंने जो असू; अपनाये, जिन्हें अपना खून इ कर भी जिंदा रखा उनकी रक्षा का फ़राज़ हम सभी का बनता है. उनके पास बहुत से मौके आये थे. रातो रात वह भी मिडिया किंग बन सकते थे. नयाचैनल शुरू करने या नया अख़बार निकालने के सभी जुगाड़ों से वह अवगत थे पर वह सच का साह न छोड़ सकते थे और न ही उन्होंने छोड़ा.   --रेक्टर कथूरिया        .  

Wednesday, March 16, 2011

जब लिखी कहानी वि्धाता ने इन्सान की

जब लिखी कहानी वि्धाता ने इन्सान की ,

क्यू लिखी यह दुरगति उसने जापान की !! 

 जब लिखी....

होली हम गर खेलते है, क्या भुला पायेंगे?

११ मार्च २०११ की होली उस भगवान की !! 

जब लिखी.....

भूक्म्प और सूनामी क्यूं एक साथ लिखी?

यह तो प्रतीत होती है कल्पना शैतान की!! 

जब लिखी ......

कलियुग मे बेशक पाप का घडा भर गया,

पर बेरहमो की बलि,है गल्ती भगवान की!! 

जब लिखी.....

आज मै स्वच्छ्न्द हू ,यह कहने के लिये,
तुम ही सुधारो अब , नियति भगवान की!! 

जब लिखी...

बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७



Tuesday, March 15, 2011

कम्प्यूटर :वायरस और निदान


कम्प्यूटर से काम आसान हुआ था और इंटरनेट ने दुनिया की दूरियां कम करके सोने पे सुहागे का काम कर दिया. इस ऐतिहासिक सुविधा  के साथ ही आई वायरस की मुसीबत. इस मुसीबत को वही जनता है जिसने एक आध बार इसका शिकार बन कर देख लिया हो. अब कानपुर में रहने वाले सूचना तकनोलोजी के विशेषज्ञ आशीष टंडन  ने एक बहुत ही काम की रचना पोस्ट की है इसी विषय पर. यह वायरस क्या होता है, कैसे काम करता है और इस से कैसे निपटा जा सकता है इस तरह के सभी सवालों के कुछ आसान से जवाब देने की कोशिश की है उन्होंने अपनी सी छोटी सी रचना में उम्मीद है आ को इस का फायदा होगा.  --रेक्टर कथूरिया  
क्या है कंप्यूटर VIRUS //आशीष टंडन

पहले जानना जरुरी है की कंप्यूटर VIRUS होता क्या है ,यह एक प्रकार का प्रोग्राम होता है जो की इन्टरनेट के माध्यम से या फिर एक्स्तेर्नल DEVICES से आ जाता हैं,यह एक REPEATED प्रोग्राम होता हैं जो की हमारे कंप्यूटर को हेंग कर देता हैं ,इसके इतिहास पैर नजर डालें तो पाएंगे की सबसे पहला VIRUS इयर १९७० में क्रीपेर VIRUS ...अरपानेट पैर पाया गया ,कंप्यूटर प्रोग्राम ROTHER J व्यापक रूप से पाया गया ,कंप्यूटर के बूट सेक्टर को इन्फेक्ट करने वाला पहला VIRUS पाकिस्तान के FAROOQUE अल्वी भाइयों ने बनाया था ,उसके बाद कई VIRUS अब तक बन चुकें हैं,और बन रहें हैं ,
कई VIRUS अब ऐसे हैं जो REPPRODUCTIVE नहीं होते हैं मसलन मल्वारे ,ADWARE ,SPYWARE आदि ,लेकिन ये सभी VIRUS की श्रेणी में आते हैं ,
कंप्यूटर वोर्म्स तथा ट्रोजन होर्से में हैं अंतर

साधारणता लोग दोनों को एक जैसा समझते हैं ,पर कंप्यूटर वोर्म्स एक कंप्यूटर वोर्म हैं जो की कंप्यूटर के सिक्यूरिटी सिस्टम को एफ्फेक्ट करते हैं ,यह नेटवर्क में जुड़े दुसरे कंप्यूटर को बिना होस्ट कंप्यूटर के PERMISSION के एफ्फेक्ट करता हैं ,वहीँ ट्रोजन होर्से से EFFECTED कंप्यूटर में दीखता सबकुछ ऊपर से सामान्य हैं पर अन्दर ही अन्दर यह सिस्टम के कोर फाइल को बर्बाद करता रहता है ,
कैसे हटायें VIRUS को
एक आसान तरीका विंडो BASED सिस्टम के लिए है की उसे सिस्टम RESTORE कर दिया जाई,कई VIRUS लेकिन ऐसे होते हैं जो सिस्टम के टास्क मेनेजर को या सिस्टम रेस्टोरे आप्शन को कम करने से रोक देते हैं ,यदि ऐसा होता है तो सिस्टम को LOG आउट करके फिर से SAFE MODE में खोले और यहाँ से सिस्टम RESTORE आप्शन को सेलेक्ट कर RESTORE करें ,यदि इससे भी बात नहीं बनती है तो सिस्टम के OPERATING सिस्टम को RE इन्स्टाल करना ही एक उपाय हैं ,
VIRUS से बचाव के लिए क्या करें
VIRUS से बचाव के लिए सिस्टम में दो USER बनाये जो की कण्ट्रोल पनेल में जाकर USER अकाउंट को सक्रिय करने से होगा यहाँ एक ADMINSTRATIVE USER रहता हैं इसको जैसे का तैसा रहने दें गेस्ट अकाउंट को ACTIVE करे और इसमें लिमिटेड USERS को सेलेक्ट करें ,इससे आप का सिस्टम कई तरह के बहरी VIRUS ATTACK से बचेगा ,इसके अलावे मार्केट में उपलब्ध ANTIVIRUS को भी सिस्टम में दल सकते हैं ,लेकिन इनको इन्टरनेट के जरिये अपडेट करना जरूरी होता है.  
अगर एंटी virus आपके कंप्यूटर में इन्स्टाल है तो आपके कंप्यूटर में virus attack करने पर उसका रियल टाइम scanning आप्शन उस virus को detect कर लेगा और virus को निष्क्रिय कर देगा. बस इस बात का ध्यान रखे की आप अच्छी कंपनी का एंटी virus का प्रयोग करे जैसे की नोर्टन एंटी virus ,quick heal एंटी virus ,Kaspersky anti virus,mcfee anti virus and if you need a cheap and best anti virus then go for Guardian Anti virus it is the product of Quick Heal Anti Virus--आशीष टंडन

आपको यह रचना कैसी लगी अवश्य बताएं.आपके विचारों और सुझावों की इंतज़ार रहेगी.--रेक्टर कथूरिया 

Friday, March 11, 2011

शंकर लाल बागड़ी की स्मृति में आयोजन 13 को

मानवाधिकारों और नागरिक अधिकारों का ज़िक्र चले तो पी यूं सी एल अर्थात पीपल्ज़ यूनियन फार सिवल लिबर्टीज़ का नाम एक दम जहन में आता है. यह सब हुआ है इस संगठन की और से तुरंत की जाती रही हिम्मत वराना कार्यवाहियों के कारण ही संभव हो सका है. जान पर खेल कर, हट तरह का खतरा उठाना, सच को सच कहना और अधिकारों की बात उठाना कभी भी आसान नहीं रहा. बहादुरों  के इस काफिले में एक थे शंकर लाल बागड़ी. पी यूं सी एल की मध्य प्रदेश इकाई के प्रमुख थे.कानून के शिक्षक भी थे और साथ ही वकील भी थे . मानवता से लगाव था जनून की हद तक. जब जब भी मध्य प्रदेश में कुछ ऐसा  वैसा नजर आया उन्हों ने अपनी पूरी ताक़त से एक्शन किया. उनकी स्मृति में एक विशेष कार्यक्रम हो रहा है १३ मार्च रविवार को इन्दोर की नेहरू पार्क रोड पर स्थित  के एस जी एस आई परिसर के गोल्डन जुबली आडीटोरीयम में. कार्यक्रम की अध्यक्षता करेंगे वीरेंद्र दत्त ज्ञानी. इस मौके पर विशेष तौर पर पहुँच रही हैं सुश्री मेघा पाटकर और सुश्री सुधा भारद्वाज.यह कार्यक्रम शाम को सादे पांच बजे शुरू हो कर सादे सात बजे तक चलेगा. किसी भी तरह की जन कारी के लिए आप विनीत जी से सम्पर्क कर सकते हैं उनके मोबाईल नंबर 098931-92740 पर, प्रमोद जी से बात हो सकती है उनके मोबाईल नंबर  098270-21000 पर और इसी मकसद के लिए अशोक जी भी सहर्ष हाज़िर रहेंगे अपने मोबाईल नंबर 094245-77474 पर. आप इसमें शामिल होने का प्रयास अवश्य करें. अगर निमन्त्रण पत्र पढने में कोई असुविधा हो तो पत्र की इमेज पर जा कर क्लिक करें' इसका अकार बड़ा हो जायेगा. --रेक्टर कथूरिया  

Tuesday, March 08, 2011

जो दवा के नाम पे ज़हर दे उसी चारागर की तलाश है....

अरुणा की हालत बहुत ही करुणा जनक है.उसकी हड्डियाँ चरमरा चुकी हैं,त्वचा में सक्रमण हो चुका है.कलाईयाँ भीतर की और मुड  चुकी हैं.कोमा में पड़ी अरुणा में अगर जिंदगी की कोई निशानी है तो बस यही कि उसकी सांस चल रही है.दुनिया के बहुत से हिस्सों में इस बात पर बहस जारी है कि अगर किसी की  हालत असहनीय हद तक बिगड़ जाये और केवल मौत ही उसे दर्द से छुटकारा दिला सकती हो तो ऐसी हालत में मौत बुरी नहीं होगी लेकिन कानूनी पेचीदगियां और समाजिक सरोकारों के चलते अभी तक इस इच्छा मृत्यु को पूरी मान्यता नहीं मिल सकी. गौरतलब है कि अमेरिका के ओरेगांव में सम्मानजनक मृत्यु से संबंधित यह अधिनियम 1997 से ही लागू हो गया था हालांकि अमेरिका के 15 राज्यों में इसे 'असिस्ट सुसाइड' के रूप में मान्यता देने के लिए वोटिंग कराई गई लेकिन इसे कानूनी मान्यता मिली केवल ओरेगांव में. आपको याद होगा कि यह वही ओरेगांव है जहां के बहुत से लोगों ने कभी भारतीय दर्शन से प्रभावित हो कर जिंदगी जीने के अनूठे और ऐतिहासिक तरीके व  सलीके सीखे थे. इसी तरह अल्बानिया और लग्जमबर्ग में भी यूथनेशिया को लीगल माना हुआ  है.ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी हिस्से में भी नब्बे के दशक में एक छोटी सी अवधि के लिए इसकी इजाजत हुआ करती थी. दुनिया के जाने माने और बहु चर्चित देश स्विट्जरलैंड में भी आत्महत्या तो जुर्म है लेकिन किसी लाइलाज बीमारी की स्थिति में मृत्यु पाने की इजाजत वहां 1942 में ही दे दी गई थी. वहां भी ऐसी इच्छा मौत केवल डाक्टर कि सहायता से ही मिल सकती है. इस काम को वहां अपराध नहीं माना जाता और इसके लिए डॉक्टरों को सजा नहीं होती. इसी तरह नीदरलैंड में भी डॉक्टरों की मदद से दी गई इस तरह की मृत्यु को वैध माना गया है. दुनिया के बहुत से एनी भागों में भी जहां इसे उचित नहीं माना जाता वहां भी उन लोगों की  कमी नहीं है जो इसके हक में हैं. पर यह भारत है. मेरा भारत महान.यहां कहा जाता है कि जब तक सांस तब तक आस. बस इसी आस और उम्मीद को लेकर मुंबई के केईएम अस्पताल की नर्स रहीं अरुणा शानबाग को बचाने के लिए वहां कि नर्सें और डाक्टर पूरी तन्मयता से उसकी सेवा में लगे हैं.यह वही अस्पताल है जहां 37 वर्ष पूर्व अरुणा के  साथ अस्पताल के ही कर्मचारी सोहनलाल वाल्मीकि ने 27 नवंबर 1973 को कुत्ता बांधने वाली ज़ंजीर गले में बाँध कर यौनाचार किया था.तभी से अरुणा कोमा में हैं.अब उसकी उम्र साठ वर्ष की हो चुकी है. इच्छा मृत्यु पर जस्टिस मार्कन्डेय काटजू और ज्ञानसुधा मिश्रकी बेंच ने अपने 110 पृष्ठ के इस ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एक तरह से परोक्ष इच्छा मृत्यु की इजाजत तो दे दी है लेकिन साथ ही इंजेक्शन के जरिए मौत की नींद सोने की इच्छा रखने वालों को सक्रिय दया मृत्यु के प्रावधान को सिरे से नकार दिया और कहा कि भारत में इस तरह की मौत चाहने वालों की इच्छा पूरी नहीं की जा सकती. उल्लेखनीय है कि अस्पताल के बिस्तर पर लंबे समय तक बेहोशी की हालत में पडे मरीज को निष्क्रिय इच्छा मृत्यु की इजाजत कडी शर्तो के साथ दी जाती है. इस नाज़ुक मामले पर न्यायमूर्ति काटजू ने कहा कि सचेतन दया मृत्यु यानी एक्टिव यूथनेशिया पूरी तरह से अवैध है क्योंकि इसके लिए कोई संवैधानिक प्रावधान नहीं है.साथ ही माननीय न्यायालय ने यह भी कहा कि कुछ विशेष परिस्थितियों में उच्च न्यायालय की अनुमति पर जीवन रक्षक प्रणाली को हटाकर अचेतन दया मृत्यु की अनुमति दी जा सकती है.अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय तीन प्रमुख चिकित्सकों की राय लेने के साथ ही सरकार तथा अचेतावस्था में पडी मरीज के करीबी रिश्तेदारों की राय जानने के बाद इसकी अनुमति प्रदान कर सकता है.काबिले ज़िक्र है कि अरूणा रामचंद्रन शानबाग ने 1966 में केईएम हॉस्पिटल में नर्स की नौकरी से कैरियर की शुरूआत की थी.सुनहरे भविष्य के सपने संजो कर यहां आई अरुणा को क्या मालुम था कि उसके साथ यहां यह होगा. हॉस्पिटल में ही एक सफाई कर्मी ने अरूणा को हवस का शिक्कर बनाया तबसे वह कोमा में है.मौत की आज्ञा उसकी दोस्त पिंकी वीरानी ने मांगी थी.पिंकी ने भोजन बंद करने का आदेश मांगा था ताकि अरुणा इस नारकीय जीवन से मुक्त हो सके। 
पंजाब केसरी में भी खबर 
दर्द और रोग से ग्रस्त मरीजों को इच्‍छा मृत्‍यु दिए जाने की मांग करने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि उन्‍हें मारने की इजाजत नहीं दी जा सकती.माननीय  अदालत ने इतने वर्षों से उनकी देखभाल कर रहे अस्पताल स्टाफ की भी तारीफ की. इच्छा मौत की याचिका रद्द होने की खबर आते ही अस्पताल के स्टाफ ने खुशियाँ मनायीं और एक दुसरे का मूंह भी मीठा कराया.  गौरतलब है कि जस्टिस मार्केंडेय काटजू और जस्टिस ज्ञानसुधा मिश्रा की बेंच ने फैसला देते हुए कहा कि कुछ असाध्‍य बीमारियों से पीडि़त मरीजों के मामले में कानूनी तौर पर लाइफ सपोर्ट सिस्‍टम हटाया जा सकता है. लेकिन अरुणा शानबाग के मामले में तथ्य, परिस्थिति, डॉक्टरों की राय आदि को ध्यान में रखकर यह इजाजत नहीं दी जा सकती. बेंच ने यह भी कहा कि वर्तमान में इच्छा मृत्यु के संबंध में कोई कानून भी मौजूद नहीं है लेकिन कुछ मामलों के लिए कानून बनाया जा सकता है.कभी किसी ने शायराना अंदाज़ में कहा गया था कि जो दवा के नाम पे ज़हर दे उसी चारागर की तलाश है. मन और तन की यह हालत अक्सर उस समाया होती है जब दर्द सभी सीमाएं पार कर जाता है. जब हर सीमा पार करके भी दर्द से निजात नहीं मिलती. दर्द जब हद से बढ़ कर भी दवा नहीं होता तो फिर केवल मौत के मूंह में जिंदगी महसूस होने लगती है. ऐसी हालत में मौत की मांग बार बार उठती है. लेकिन यह दुनिया है. मांगने से यहां कुछ नहीं मिलता. न जिंदगी न मौत. साहिर लुधियानवी साहिब ने कभी लिखा था..
मौत कभी भी मिल सकती है, लेकिन जीवन कल न मिलेगा. 
मरने वाले सोच समझ ले, फिर तुझको यह पल न मिलेगा. 
लेकिन विज्ञान की तरक्की ने सब कुछ नहीं तो बहुत कुछ को आसान भी कर दिया है. आज मौत भी मिल सकती है और वो भी दर्द के बिना. मेडिकल क्षेत्र में एक्टिव यूथनेशिया एक ऐसी विधि है  जिसमें मरीज को जहर आदि का इंजेक्शन लगाकर सीधे तौर पर मार दिया जाता है लेकिन ऐसा करते या कराते वक्त पाप की भावना अगर मन में आ जाये तो इसमें भागीदार रहे लोग खुद को उम्र भर माफ़ नहीं कर पाते. उन्हें लगता है कि उन्हों ने हत्या कि है पाप किया है, किसी से जीने का अधिकार छीना है.इस लिए एक दूसरा तरीका भी है जिसका नाम है यूथनेशिया बाई ओमीशन: इस तरीके के अंतर्गत  इच्छा मौत  को चाहने वाले मरीज को दी जा रही जीवन रक्षक सुविधा हटा ली जाती है और सब कुछ प्रकृति पर छोड़ दिया जाता है. मरीज़ खुद-बी-खुद मौत की आगोश में पहुँच जाता है. इसमें भागीदार लोग खुद को कसूओर्वार समझाने कि ग्लानी से मुक्त रह जाते हैं. इसके अलावा एक तीसरा तरीका भी है जिसे कहा जाता है पैसिव यूथनेशिया. इस विधि में जीवन रक्षक प्रणाली (लाइफ सपोर्ट सिस्टम), दवाएं और इलाज रोकना, भोजन और पानी की आपूर्ति रोकना, हृदय और सांस के लिए मदद रोकने जैसी चीजें शामिल हैं.उनके साथ हुए कुकर्म का उन्हे इंसाफ तो नही मिला, लेकिन जिंदा लाश ढोना अब मुमकिन नही. अरुणा कि इस दर्द भरी दास्ताँ पर जहाँ याचिका करता पिंकी वीरानी ने किताब लिखी है वहीँ मुम्बई कि एक महिला पत्रकार सविता एच खर्तदे ने महत्वपूर्ण मुद्दे की बात उठाई है कि अरुणा की जिंदगी बर्बाद करने वाले  को सज़ा क्यूं नहीं? सविता ने बहुत ही मार्मिक शब्दों में लिखा,"अरुणा की कहानी सुनकर और हालत देखकर कलेजा कांप उठा उठता है.कोर्ट से यही निवेदन है कि उन्हे इज्जत की मौत बख्श दे. खत्म कर दे उनकी शारीरिक पीडा को.जीवन के 36 साल से शारीरिक और मानसिक पीडा से बेहाल अरूणा की देखभाल मुंबई के के.ई.एम अस्पताल की नर्सें और कर्मचारी कर रहे है. अरूणा का बस यही परिवार है जो कि खून के रिश्ते से बढकर. खून के रिश्तेदार भी तिमारदारी करने में हिचकिचाते है लेकिन अस्पताल कर्मी नही. उनको तो सलाम है, लेकिन आज भगवान के अस्तित्व पर शंका हो रही है.भगवान को माननेवालों में से मैं जरूर हूं, लेकिन आज इस दर्द को देखकर लग रहा है कि भगवान है ही नही, होते तो इतने निष्ठुर नही होते। सरकार से निवेदन है कि कानून में कुछ प्रावधान करें ऐसे मार्मिक मामलों की तह में जाकर के पीडितों के दु:खों को दूर करे. उस फाईल को खोलकर उस वहशी दरींदे को मृत्यूदंड की सजा सुनाये जिसने एक नाजूक सी जिंदगी को बर्बाद कर दिया." महत्वपूरण मुद्दों को उठाने वाली इस पत्रकार सविता की पोस्ट को आप यहां क्लिक करके भी पढ़ सकते हैं.अगर इच्छा मौत की सुविधा को कानूनी मान्यता मिल जाती है तो बहुत से लोगों के लिए यह किसी वरदान से कम नहीं होगी क्यूंकि उन्हें दर्द से निजात मिलना बहुत ही आसान हो जायेगा पर क्या गारंटी है कि मुजरिमाना सोच के लोग अनैतिक ढंग तरीके अपना कर इसे अपने विरोधियों को मिटाने के लिए नहीं करेंगे? इस तरह के बहुत से सवाल भी सामने हैं.समाजिक न्याय और आम इंसान की सुरक्षा को बचाने के लिए इनके जवाब भी अभी से ढूँढने होंगे. -रेक्टर कथूरिया 

Saturday, March 05, 2011

तुम भी अपने घर बुला कर देख लो


इस रचना के पीछे भी एक लम्बी कहानी है. यह रचना कैसे कई सालों में पूरी हुयी, इस के पीछे क्या है इस पर एक नावल लिखा जा सकता है. इसकी शुरूयात किसे जहन में रख कर हुयी...इस सब की चर्चा कभी बाद में की जाएगी. फ़िलहाल इतना ही की इसके कुछ अश्यार फेसबुक पर दिए गए थे. कुछ और नए  शेयर बहुत देर बाद जहन में आयें. अब पुराने और नए सभी अश्यार आपके सामने हैं. साथ ही फेसबुक पर मिले कुछ अनमोल कोमेंट भी शामिल हैं. आपके विचारों की इंतज़ार रहेगी ही.....:  

--रेक्टर कथूरिया

 

                                                                      

गज़ल  

आओ आ के तुम भी मंज़र देख लो; 
जिस जगह रहता हूं खण्डहर देख लो.
  
हर जगह भगवान तो होता ही है;
ये भी क्या लगता है मन्दर देख लो.

जिस जगह मिल जाए मन का मीत जब;
वो जगह बन जाए मन्दर  देख लो.

मौत भी मेरी ह्सीं हो जाएगी,
बस मुझे इक बार पल भर देख लो.

तेरी आंखों में अगर इक झील है,
मेरा दिल भी है समंदर देख लो.
  
फेसबुक पे ही कभी मिल जाओ अब;
वक्त का यह भी कलंडर  देख लो.

जो चौरासी में हुया सब याद है;
और इक गुज़रा नवम्बर देख लो.

आज भी अर्जुन यहाँ पर बहुत हैं;
पर कहाँ होगा स्वयम्बर देख लो. 

प्यार के इस नाम पर सच है कहाँ,
लोग करते हैं आडम्बर देख लो.
  
दिल जला कर चैन ही मिलता है तो,
फिर मिरा तुम दिल जला कर देख लो.

क्यूं अन्धेरों में घिरे हो दोस्तों,
रौशनी में तुम भी आ कर देख लो. 

क्या हकीकत है यहां और क्या नहीं,
बात की हर तह में जा कर देख लो.

देख ली सारी ही दुनिया फिर भी पर,
इक नज़र तुम भी जालन्धर देख लो. 

फोन के बिन भी तो हो सकती है बात,
चैट या कोई मैसंजर देख लो. 

तू नहीं तो तेरी यादों का तुफान,
उठ रहा मन में बवंडर देख लो. 
  
फिर नया इक साल अब आने को है,
जा रहा है यह दिसम्बर देख लो.


शोर से कुछ भी नहीं  होता कभी; 
आसमां सर पे उठा कर देख लो.

गीत में जादू सा बस छा जायेगा;
दिल की बातें गुनगुना कर देख लो.

बांटता हूँ प्यार मैं जायूं जहाँ;
तुम भी अपने घर बुला कर देख लो.

गर हुआ उसमें दर्द होगा असर;
दास्तां अपनी सुना कर देख लो.


साथ काँटों से भी निभ जायेगा फिर; 
फूल उल्फत के खिला कर देख लो.

मैं तुम्हारा हर सितम सह जायूंगा;
तुम मुझे फिर से सता कर देख लो.
-------रेक्टर कथूरिया-----






    • Dharam V Sharma वाह.......अति सुन्दर ......!!!!!
      December 18, 2010 at 4:53pm ·  ·  1 person

    • Samvedna Duggal fb par he kabhi mil jaao ab......wow rectorji!!!
      December 18, 2010 at 4:57pm ·  ·  1 person

    • Naresh Matia 
      bahut khoob Reactor ji...........aur jis tarah se aapne aaj ki aadhunik duniyal ka bhi isme samaavesh kiya hai wo kabil-e-tareef hai......


      //फेसबुक पे ही कभी मिल जाओ अब;
      वक्त का यह भी कलंडर देख लो.


      .फोन के बिन भी तो हो सकती है बात,
      चैट या कोई मैसंजर देख लो//.....
      bahut badiya..........

      December 18, 2010 at 5:09pm ·  ·  3 people

    • Iqbal Gill 
      तेरी आंखों में अगर इक झील है,
      मेरा दिल भी है समंदर देख लो.


      दिल जला कर चैन ही मिलता है तो,
      फिर मिरा तुम दिल जला कर देख लो.

      ਕਿਹੜਾ ਕਿਹੜਾ ਸ਼ਿਅਰ ਲਿਖਾਂ ਸਾਰੀ ਗ਼ਜ਼ਲ ਹੀ ਖੂਬਸੂਰਤ ਹੈ
      ਸਰ ਜੀ ਸ਼ੁਕਰੀਆ ਸਾਂਝਾ ਕਰਨ ਲਈ

      December 18, 2010 at 5:28pm ·  ·  1 person

    • Varinder Sond Binda ‎22 ji boht hi vadhiya..grt..
      December 18, 2010 at 5:48pm via Facebook Mobile ·  ·  1 person

    • Meena Sharma wah kya baat hai Rector Ji...!!!
      December 18, 2010 at 5:56pm ·  ·  1 person

    • Parveen Kathuria रेक्टर जी...दिल को छू गयी....आपकी ग़ज़ल....वाह... क्या हकीकत है यहां और क्या नहीं....बात की हर तह में जा कर देख लो.
      December 18, 2010 at 6:12pm ·  ·  1 person

    • Gurjinder Mangat one of the best i have ever read

      thanx Rector ji for sharing
      love that

      December 18, 2010 at 6:21pm ·  ·  1 person;


        • Rector Kathuria मीना शर्मा, विराट ठक्कर, धर्मवीर शर्मा, नरेश मटिया, इकबाल गिल, वरिंदर सिंह बिंदा और उन सभी मित्रों का शुक्रीया. जिन्होंने इसे पसंद किया....
          December 18, 2010 at 6:40pm · 

        • Rector Kathuria धर्मवीर जी शुक्रीया.....
          December 18, 2010 at 6:40pm · 

        • Rector Kathuria सम्वेदना जी बहुत बहुत धन्यवाद...
          December 18, 2010 at 6:40pm · 

        • Rector Kathuria नरेश जी आपने वक्त निकाला....धन्यवाद...
          December 18, 2010 at 6:41pm ·  ·  1 person

        • Rector Kathuria इकबाल जी आपके शब्दों से बहुत बल मिला..
          December 18, 2010 at 6:41pm · 

        • Rector Kathuria वरिन्द्र सिंह बिंदा जी शुक्रीया...
          December 18, 2010 at 6:41pm · 

        • Rector Kathuria मीना शर्मा जी बहुत बहुत धन्यवाद...
          December 18, 2010 at 6:42pm · 

        • Rector Kathuria परवीन जी आपके शब्दों में जो प्रोत्साहन है..उसके लिए शुक्रीया..
          December 18, 2010 at 6:42pm · 

        • Rector Kathuria गुरजिंदर मांगट जी बहुत बहुत धन्यवाद...
          December 18, 2010 at 6:42pm · 

        • Gulshan Dayal 
          जिस जगह मिल जाए मन का मीत जब;
          वो जगह बन जाए मन्दर देख लो.wow that is so like me..
          जो चौरासी में हुया सब याद है;
          और इक गुज़रा नवम्बर देख लो. so sad...
          क्यूं अन्धेरों में घिरे हो दोस्तों,
          रौशनी में तुम भी आ कर देख लो.
          Very nice....enjoyed it very much!!!

          December 18, 2010 at 6:44pm ·  ·  1 person

        • Alka Saini 
          जिस जगह मिल जाए मन का मीत जब;
          वो जगह बन जाए मन्दर देख लो.
          bahut sundar ahsaas...............


          मिल जाए मन का मीत जब:
          तो खुदा तो उसके अन्दर देख लो

          December 18, 2010 at 7:07pm ·  ·  1 person

        • Mohinder Rishm 
          Rector sahib, hairaan haan....hansi-khed vich vi tusi kinne gambhir massle laye han gazal vich......!!! shabad aam han par arth dunghe....!!
          purane cultur nu chhuhia hai taan ajj da FB, chat, fon vagerah vi sab kuj ayea hai.....tuhade ton ih kalla sikhan vaali hai....! bahut khoob...!

          December 18, 2010 at 7:55pm ·  ·  1 person

        • Bodhi Satva Kastooriya आपके दिल में जगह मिल गयी ,
          पंजाब स्क्रीन का नया नंबर देख लो !
          इस दरिया दिली के लिए शुक्रिया ,
          झाँक कर इस दिल के अन्दर देख लो !!

          December 18, 2010 at 8:34pm ·  ·  1 person

        • Tarlok Singh Judge Very Very Very Very Nice Ghazal Rector ji. Reading and enjoying time and again.
          December 18, 2010 at 8:40pm ·  ·  1 person

        • Jaswant Singh Aman Kathuria g, kamal hai!
          December 18, 2010 at 8:48pm · 

        • Tarsem Deogan wah.. bahut khoobsurat.. kathuriya saab
          December 18, 2010 at 9:33pm · 

        • Bodhi Satva Kastooriya अति सुंदर भाव प्रवण रचना है !साथ ही धर्म से ऊपर मानव धर्म का आग्रह !
          December 18, 2010 at 9:51pm · 

        • Poonam Matia 
          Rector ji .......bahut kamaal .........
          //जिस जगह मिल जाए मन का मीत जब;
          वो जगह बन जाए मन्दर देख लो.


          मौत भी मेरी ह्सीं हो जाएगी,
          बस मुझे इक बार पल भर देख लो//.............
          dil se nikli baat dil kii gahraaiyon tak le jaati hai
          aao yara jara doob ke,dil-e- samandar dekh lo ...........

          December 18, 2010 at 10:34pm ·  ·  2 people

        • Rector Kathuria गुलशन दियाल जी आप को इसके अश्यार पसंद आये....इसका लिखना सार्थक हुआ.....!
          December 18, 2010 at 11:07pm · 

        • Rector Kathuria अलका सैनी जी आपने तो कमाल कर दिया....बहुत खूब कहा आपने.... तो खुदा तो उसके अन्दर देख लो...!
          December 18, 2010 at 11:08pm · 

        • Rector Kathuria सुरेश चन्द्र जी...आपने सराहा तो यह गजल मुझे और अच्छी लगने लगी....!
          December 18, 2010 at 11:08pm · 

        • Rector Kathuria महिंद्र रिशम जी...सच बात तो यह है की इस अंदाज़ को सीखने के पीछे आपसे भी मुझे बहुत प्रेरणा मिली है.....आप बहुत ही अच्छा लिखते हैं...!
          December 18, 2010 at 11:09pm · 

        • Rector Kathuria बोधी सत्व कस्तूरिया जी...आपने तो मुझे लाजवाब कर दिया..इतने स्नेह के लिए शुक्रिया कबूल कीजिये...
          December 18, 2010 at 11:10pm · 

        • Rector Kathuria जज साहिब मैं तो न चाहते हुए भी इस सब कुछ से दूर चला गया था.....
          बहुत देर बाद एक तरह से दोबारा ही शुरू किया...
          आप सारे नहीं तो बहुत से हालात से ज़रूर वाकिफ रहे हैं...
          आपके शब्दों से बहुत होंसला मिला...
          बहुत बहुत शुक्रिया...!

          December 18, 2010 at 11:10pm · 

        • Rector Kathuria जसवंत सिंह जी बहुत बहुत शुक्रिया....!
          December 18, 2010 at 11:11pm · 

        • Rector Kathuria रमन कथूरिया जी इस बल्ले बल्ले में आपका बहुत सा हाथ है....
          December 18, 2010 at 11:12pm · 

        • Rector Kathuria बोधी सत्व कस्तूरिया जी....आप ने इसे बहुत अच्छे शब्द दिए....
          .....धर्म से ऊपर मानव धर्म का आग्रह !
          बहुत बहुत शुक्रिया....!

          December 18, 2010 at 11:15pm · 

        • Rector Kathuria पूनम मटिया जी अपने दिल-इ-समन्दर की बात करके तो कमाल ही कर दिया.....बहुत बहुत शुक्रिया.....!
          December 18, 2010 at 11:17pm ·  ·  1 person

        • Jatinder Lasara ਕਿਆ ਬਾਤਾਂ ਕਥੂਰੀਆ ਸਾਹਿਬ...!!! Good work...!!!
          आओ आ के तुम भी मंज़र देख लो;
          जिस जगह रहता हूं खण्डहर देख लो.
          तेरी आंखों में अगर इक झील है,
          मेरा दिल भी है समंदर देख लो.

          December 19, 2010 at 1:41am ·  ·  1 person

        • Shiv Kumar nice words veer g :-)
          December 19, 2010 at 10:22am ·  ·  1 person

        • DrSushil Raheja SUpERRRRRRRRRRRRR
          DuPERRRRRRRRRRRRRRRRRRRRR

          December 19, 2010 at 12:29pm ·  ·  2 people

        • Navin C. Chaturvedi 
          तेरी आंखों में अगर इक झील है.........
          आज भी अर्जुन यहाँ ............
          दिल जला कर चैन ही मिलता है तो,.............
          इक नज़र तुम भी जालन्धर देख लो..............


          भाई रेक्टर जी बधाई| क्या मजेदार और सार्थक ग़ज़ल पेश की है आपने| काफ़िए के निर्वाह के साथ साथ विषयों का चुनाव भी वंदनीय है|

          December 19, 2010 at 9:38pm ·  ·  1 person

        • Rector Kathuria नवीन जी मैं तो ग़ज़ल कहना छोड़ ही चूका था.....

          ....आपने सोयी हुयी आग दुबारा सुलगा दी.....

          December 19, 2010 at 10:05pm ·  ·  1 person

        • Madhu Gujadhur क्यूं अन्धेरों में घिरे हो दोस्तों,

          रौशनी में तुम भी आ कर देख लो.

          बहुत सुन्दर प्राह जी बहुत ही सुन्दर..खास तौर पर ये दो लाइंस तो बेहद ही सुन्दर है अँधेरे में घिरे बन्दे को रौशनी का आमंत्रण देना ..बहुत ही सुन्दर भाव हैं. बधाई आप को

          December 19, 2010 at 11:25pm ·  ·  1 person

        • Madhu Gujadhur जालंधर आने का इतना सुन्दर निमंत्रण .....अब तो आना ही होगा |
          December 19, 2010 at 11:26pm ·  ·  1 person

        • Rector Kathuria मधु जी रौशनी को निमंत्रण आपके विचारों का है असर है....!
          December 19, 2010 at 11:32pm · 

        • Rector Kathuria ‎@ Madhu Gujadhur Ji...:मेरा जन्म भी लुधियाना का है और रिहाइश भी लेकिन नवां ज़माना अखबार में काम करते वक्त इस शहर से भावनात्मक सम्बन्ध जुड़ गया.लुधियाना ककी ब्जय्ते अब भी वहां पर शांति अधिक मिलती है....
          December 19, 2010 at 11:35pm · 

        • Madhu Gujadhur धन्यवाद प्राह जी ...मन्त्र कहता है "तमसो माँ ज्योतिर्गमय " अर्थात मुझे अन्धकार से प्रकाश की और ले चलो ..और किसी और को प्रकाश की और आने का आमंत्रण दे रहे है ये तो मन्त्र से भी आगे की बात कर दी आप ने प्राह जी ...
          December 19, 2010 at 11:37pm ·  ·  1 person

        • Kawaldeep Singh 
          ‎..
          जिस जगह मिल जाए मन का मीत जब;
          वो जगह बन जाए मन्दर देख लो.


          Vah! Kamal...

          Is gazal me kita kuch bhar diya... Apna Shaher bhi guma di.. Man ke meet se bhi milva diya.. Facebook ki sair bhi karva di.. Chat Messenger se guftagu bhi farma li.. Chaurasi ke dardon ko yaad kar aankhe bhi nam ki.. Aur Naye saal ko aamantran de kar nayi shama bhi jla di..

          Khoobsooratam :)

          December 20, 2010 at 8:39am ·  ·  1 person

        • Rector Kathuria 
          ‎@ Kawaldeep Singh...Darasal Zindgi Mein Bahut Se Rang Aate Hain....
          Kabhi Khushi Kabhi Gam...Bas usi Ka Asar Hai.....NA June Bhool Sakta Hai...NA Hi November....is se sambandhi Haalaat aur Kaaran.....!


          Mera JAnam Aur Rihaih Ab Bhi Ludhiana ...See More

          December 20, 2010 at 9:17am ·  ·  1 person

        • Jasbir Kalravi मौत भी मेरी ह्सीं हो जाएगी,

          बस मुझे इक बार पल भर देख लो.

          wah ji wah...kya baat hai

          December 21, 2010 at 7:17pm ·  ·  1 person

        • Anupama Pathak सुन्दर गज़ल!
          December 22, 2010 at 5:42pm ·  ·  1 person

        • Rector Kathuria Jasbeer Kalrawi Ji Bahut Bahut Dhnnvaad
          December 23, 2010 at 4:33pm · 

        • Rector Kathuria Anupama Ji Bahut Bahut Shukriya.....!
          December 23, 2010 at 4:34pm · 

        • Harjinder Singh Lall 
          आओ आ के तुम भी मंज़र देख लो;


          जिस जगह रहता हूं खण्डहर देख लो.


          हर जगह भगवान तो होता ही है;

          ये भी क्या लगता है मन्दर देख लो.

          inna kaudaa sach nahi likhidaa rector ji ..................GHAZAL BAHUT ACHI HAI BAHUT WADHIYAA

          January 6 at 4:21pm · 

        • Rector Kathuria Lall Sahib Kauda Sach Bolne ki Aadat Sikhaane waale chand logon merin Aap bhi to shaamil rahe....Sazayon ka bhi pata tha fir bhi Aap sach bolte rahe...likhte rahe....Vaise...Karein kya....Aam Taur Par Sach hota hi Bahut Kadwa hai....!~
          January 6 at 5:14pm ·  ·  1 person

        • Jas Chahal Rector ji, chote-chote sheron main guzre huye aur naye waqat ki haqikat bahut pyare andaaz main bayan ki hai aapne. Thanks
          February 13 at 11:30pm · 

        • Rector Kathuria Jas Chahal Ji Bahut Bahut Shukriya....apne sneh ko bnayae rakhiyega...!
          February 14 at 9:27am · 

        • Kamna Saxena INSANIYAT jagane ka behtar prayaas... very nice sir.
          February 19 at 7:22pm · 

        • Anu Shri 
          फेसबुक पे ही कभी मिल जाओ अब;


          वक्त का यह भी कलंडर देख लो.


          प्यार के इस नाम पर सच है कहाँ,
          ...See More

          Yesterday at 11:57am · 

        • Rector Kathuria कामना जी बहुत बहुत शुक्रिया .... काश इस तरह इन्सानियत जाग सके...
          Yesterday at 12:07pm · 

        • Rector Kathuria अनु श्री जी आपने इसे पसंद किया....बहुत अच्छा लगा.....बहुत बहुत धन्यवाद....1
          Yesterday at 12:08pm ·  ·  1 person

        • Pardeep Raj Gill kathuria sahib,. ba- kamal........
          Yesterday at 12:53pm ·  ·  1 person

        • Journalist Ranjeet Singh 
          आओ आ के तुम भी मंज़र देख लो;


          जिस जगह रहता हूं खण्डहर देख लो.


          हर जगह भगवान तो होता ही है;
          ...See More

          23 hours ago · 

        • Rector Kathuria बहुत बहुत शुक्रिया प्रदीप राज गिल जी....!
          23 hours ago ·  ·  1 person

        • Rector Kathuria जर्नलिस्ट रंजीत सिंह जी बहुत बहुत धन्यवाद...आपका अंदाज़ भी खूब है....!
          23 hours ago ·  ·  1 person

        • Asha Pandey Ojha Asha bahut sundar
          17 hours ago ·  ·  1 person

        • Rector Kathuria Asha Ji....Bahut Bahut Shukriya....!
          17 hours ago · 

        • Sandhya Arya simply greatttttt.........thank you so much
          17 hours ago ·  ·  1 person

        • Azra Waqar pl.write yr ghazal in roman so that others who cannot read gurmukhi , can also read it
          16 hours ago ·  ·  1 person

        • Anita Chana bhut sadgi naal sachi rachna rachi hai..... lots love light and healing..
          16 hours ago ·  ·  1 person

        • Rector Kathuria ‎@Sandhya Arya....: Bahut Bahut Shukriya Sandhya Ji...Bhavishya mein Bhi Apne Vichaaron Se Avgat Karwaate Rahiye....!
          16 hours ago · 

        • Rector Kathuria ‎@Azra Waqar..... ji Zaroor.....Aur Jalad.....Aapne Bilkul Sahi Kaha....!
          16 hours ago · 

        • Rector Kathuria ‎@Anita Chana ..Anita Ji Bahut Bahut Dhanyavaad.......!!!!
          16 hours ago · 

        • Tarsem Deogan will say this is fantastic
          13 hours ago ·  ·  1 person

        • Rector Kathuria Thank You Very much Tarsem Ji......Bahut Bahut Shukriya....!
          13 hours ago ·