Monday, February 21, 2011

लुधियाना में एक नया जिम

स्वस्थ्य और सुन्दरता की चाह के साथ ही बढ़ रहा है जिम जाने का रीवाज. जिस्म की शक्ति,सुडोलता, सुन्दरता और रंग को लेकर युवा वर्ग के साथ साथ बड़ी उम्र के लोग भी  जिम के दीवाने बन रहे हैं. इसे देखते हुए जिम का प्रचलन पूरी दुनिया में अब आम हो चूका है. लुधियाना के माडल टायून एक्स्टेंशन इलाके में खुला नया जिम वादा करता है उन सभी सुविधायों का जो कि एक अच्छे जिम में होनी चाहियें. जीरो ग्रेवेटी स्लिमिंग ब्यूटी एंड डांस स्टूडियो के राजन नागपाल और मिस शिखा ने उदघाटन के अवसर पर कहा कि हम सब कुछ एक ही छत के तले प्रदान करेंगे.        

Sunday, February 13, 2011

तन से तन का मिलन हो न पाया तो क्या.....!


दूरदर्शन पर फ़िल्मी गीतों का कार्यक्रम रंगोली मुझे हमेशां से ही पसंद था और आज भी ये प्रोग्राम दिल को लुभाता है. शायद वजह है उसमें दिए जाने वाले पुराने गीत, उनका थोडा सा विवरण, फिल्म का नाम, गायक का नाम, शायर का नाम और सब से बढ़ कर गीत के बोल जो साथ साथ नीचे लिखे नज़र भी आते हैं. इन सब खूबीयों के बावजूद ज़िन्दगी की भाग दौड़ इसे नियमत नहीं देखने देती. लेकिन आज सुबह याद आया तो उंगलियां अपने आप रिमोट पर थिरकीं और सामने चल रहा था डी डी नैशनल पर रंगोली. इसकी शानदार पेशकारी  में एक नयी जान डालने वाली श्वेता तिवारी जिसने कभी कसौटी ज़िन्दगी की नाम के धारावाहिक में भी अभिनय की नयी बुलंदियों को छूआ था. वही प्रेरणा यानी कि शवेता तिवारी 14 फरवरी अर्थात  वेलेंटाईन  डे की तरफ  इशारा करते हुए कह रही थी कि चलो शुक्र है वर्ष में एक दिन तो इस इज़हार के लिए सुनिश्चित हुआ. उसने पुराने ज़माने के उस दौर की चर्चा भी की कि जब लोग सारी सारी उम्र इज़हार की बात सोचते ही रह जाते और उनकी महबूब या महबूबा किसी और के साथ विवाह बंधन में बंध जाते.  कोई माने या न माने पर ऐसा बहुत से लोगों के साथ हुआ होगा. 
उस समय के दस्तूर और चलन अलग थे.अगर कोई कहता था कि जब प्यार किया तो डरना क्या... तो लोग उसे कुछ अलग सी नजरों से देखते.थे लेकिन अब तकरीबन वही बात सारा ज़माना कह रहा है....प्यार किया कोई चोरी नहीं की छुप छुप आहें भरना क्या...मुझे एक और गज़ल याद आ रही है जिसे कई गायिक गायिकायों  ने बहुत ही अच्छे अंदाज़ से गाया... उसमें बहुत से शेयर याद रहते हैं, दिल दिमाग में उतर जाते हैं ..उनमें एक शेयर है...:
कोई जुर्म नहीं इश्क जो दुनिया से छुपाये....
हमने तुम्हे चाहा है हजारों में कहेंगे.....!
इस सब का ख्याल मुझे आया अनु श्री की एक छोटी सी पोस्ट देख कर. अनु ने सवाल उठाया है कि 
प्रेम दिवस पर इतनी दिखावट...! 
सचमुच प्रेम है या सिर्फ बनावट...? 
सिर्फ एक दिन इतनी सारी लगावट..?
आपका क्या विचार हैः तो आप ही बतायेंगे लेकिन मुझे याद आया एक गीत जो बहुत देर पहले सुना था.....उसकी कुछ पंक्तियाँ थीं...
मोहब्बत जो करते हैं वो; मोहब्बत जताते नहीं
धडकनें अपने दिल कि कभी किसी को सुनाते नहीं...!
मज़ा क्या रहा जब कि खुद कर दिया हो 
मोहब्बत का इज़हार अपनी जुबां से.....! 
लीजिये आप भी सुनिये कश्मीर की कली फिल्म का यह यादगारी गीत..इशारो इशारों   से दिल लेने वाले...!  
हमारी दुया है कि आपको आपका प्यार ज़रूर मिले पर कभी कभी हालात और किस्मत दरम्यान में आ जाते हैं.....उस हालत में बहुत शक्ति मिलती है इन पंक्तियों से...: 
तन से तन का मिलन हो न पाया तो क्या....
मन से मन का मिलन कोई कम तो नहीं...
खुशबू आती रहे फूल खिलते रहे....
सामने हो चमन कोई कम तो नहीं...!
चांद मिलता नहीं सब को संसार में...;
है दिया ही बहुत रौशनी के लिए...!
छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए ;
ये मुनासिब नहीं आदमी के लिए...!
प्यार से भी ज़रूरी कई काम हैं ;
प्यार सब कुछ नहीं ज़िन्दगी के लिए...!
सन 1968 में आई फिल्म सरस्वती चन्द्र का यह गीत बहुत मकबूल हुआ था. इसे लिखा था इन्दीवर ने और अपनी खूबसूरत आवाज़ दी थी सुर सम्राज्ञी लता मंगेशकर ने.  इस गीत को सुनने के लिए यहाँ क्लिक करें..! वैसे आप इस दिन पर क्या सोचते हैं अवश्य बताएं.आपके विचारों कि इंतज़ार रहेगी....:-रेक्टर कथूरिया 

Friday, February 11, 2011

सवाल एक बच्चे की जान का


नाम है शिव और उम्र है केवल तीन वर्ष. उसके गरीब माता पिता उसे अस्पताल ले तो आये पर इलाज उनके बस में नहीं. पिता दिहाड़ी करता है और उसे महीने में काम मिलता है बीस दिन. मां घरों में काम कर के बहुत मुश्किल से कमाती है महीने का 1200/-रूपये. इन सभी मजबूरियों के इस दौर में यह गरीब मां बाप अपने बेटे को तड़पता हुआ नहीं देख पाए. इलाज महंगा है और उसे सर्जरी की आवश्यकता है. आप सभी लोग अगर चाहें तो इस तीन वर्षीय बालक की ज़िन्दगी बच सकती है.उसकी हालत नाज़ुक है और उसका तुरंत इलाज बहुत अवश्यक है.  इस मकसद के लिए लुधियाना के सी एम सी अस्पताल में व्यक्तिगत तौर पर भी सम्पर्क किया जा सकता है और फोन के ज़रिये भी. सम्पर्क करने के लिए आप इन नम्बरों पर फोन कर सकते  हैं.:  डा.विलियम भट्टी- 9876609924,  डा.ध्रुव घोष- 9915198894, डा नंदिनी के बेदी- 9914360480. उम्मीद है की आप इस मामले मिओं पीछे नहीं हटेंगे. आपकी इंतजार में है तीन वर्ष का एक बालक शिव.--रेक्टर कथूरिया  

Saturday, February 05, 2011

भारतीय डाक विभाग में नयी क्रांति

कभी केवल डाक का ही ज़माना था. डाक और डाकिये की इंतज़ार हर घर में रहती थी. फिल्मों में इस पर गीत लिखे और फिल्माए गए. डाक विभाग अपने आप में एक बहुत बड़ी रियासत की तरह ही था. रेलवे स्टेशन पर आर एम एस (रेलवे मेल सर्विस) का काम दिन रात 24 घंटों चला करता था.  रेल गाड़ियों में डाक के अलग डिब्बे तो खैर आज भी हैं. देश और दुनिया  का एक एक कोना  इस डाक प्रणाली ने जोड़ा हुआ था.  हालांकि यह सारा काम बहुत ही ज़िम्मेदारी से निपटाया जाता था पर फिर भी कुछ लोग इसमें कोताही कर ही जाते थे.  मुझे याद है लुधियाना में करीब 25 -30  बरस पूर्व डाक का एक बोरा एक डाकिये ने गंदे नाले पर फेंक दिया था. वास्तव में यह कई दिन की जमा हुई अनबंटी डाक थी. घर की बहुत सी परेशानियों और हालात से घबराया हुआ डाकिया शराब की लत का शिकार हो गया और उसने इक्कठी हुई डाक को इस तरह फेंक कर उस बोझ से छुटकारा हासिल कर लिया. यह इतिफाक ही था कि इसका पता चल गया और लोगों की शिकायत पर विभाग के अधिकारियों ने खुद मौके पर पहुंच कर इस डाक को बेहद खराब हालत में बरामद किया. यहां डाकिये का नाम जानबूझ कर नहीं दिया जा रहा. यह सारा मामला उन दिनों अखबारों में भी छपा था. पंजाब केसरी पत्र समूह ने इस पर सम्पादकीय भी लिखे.  इसी तरह की कई और गड़बड़ियाँ  भी इस विभाग में घर करतीं रहीं. कुछ पैसों के बदले में किसी के पत्र किसी को सौंप देना. बहुत ही आम बात हो गयी थी.  डाक अपने गन्तव्य तक नहीं पहुंची या कई दिन देरी से पहुंची तो इस पर कुछ कारगर नहीं हो पाता था. डाक गुम हो गयी तो उसका कुछ पता न चलता. देश विदेश से आने वाले महंगे तोहफे अक्सर खुर्द बुर्द होने की बातें सुनने में आतीं पर सरकार के कानों पर कभी जूं न सरकती. शिकायतों और औपचारिक जांच पड़तालों में ही बात आई गयी हो जाती. हालांकि डाक विभाग ने बहुत से करिश्मे भी दिखाए पर इन सब पर पानी फेरने का काम किया कुछ काली भेड़ों ने. चुपके से शुरू हुई प्राईवेट  कोरिअर सर्विस धीरे धीरे इतने बड़े डाक विभाग के लिए एक चुनौती बन गयी. इस समय लोग इन कोरियर सेवायों पर अधिक विशवास करते हैं. अब जबकि डाक विभाग समाप्त होने के किनारे पर है उस समय सरकार को फिर जाग आई है.  अवश्यक सेवायों में आते इस महकमे को बचाने के लिए सरकार ने कुछ ऐसा किया है जो बहुत पहले होना चाहिए था.  खबर ऐजंसी भाषा की ओर से नयी दिल्ली डेट लाईन से 4 फरवरी को जारी एक खबर के मुताबिक सरकार ने डाक विभाग को विशिष्ट पहचान संख्या से जोड़ दिया है ताकि लोगों को उनकी चिट्ठियां समय पर मिल सकें और उन्हें अपने खतों की स्थिति के बारे में जानकारी मिल सके. इंटरनेट के युग में उठाया गया यह कदम निशचय ही एक खुशखबरी वाली बात है. ग्रामीण भारत में पोस्ट आफिस और डाकिए के महत्व और प्रासंगिकता को देखते हुए इस का स्वागत करना बनता है. आज भी बहुत बड़ी संख्या में लोग डाक विभाग पर निर्भर करते हैं. डाक विभाग और भारतीय विशिष्ठ पहचान संख्या (यूआईडीएआई) ने इस आशय के सहमति पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए हैं. 
लोग अब यह पता कर सकते हैं कि उनकी चिट्ठी पते पर पहुंची है या नहीं.केंद्रीय दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल ने इस अवसर पर कहा कि भारत गांवों का देश है.ग्रामीण भारत में आज भी डाकिया सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति है.हम चाहते हैं कि सूचना के प्रवाह के इस माध्यम को प्रौद्योगिकी से जोड़ा जाए ताकि गांवों में रहने वाले लोगों को फायदा हो.डाक विभागयूआईडीएआई के बीच यह सहयोग इसी दिशा में एक प्रयास है जो देश में समावेशी विकास सुनिश्चित करेगा.यूआईडीएआई के अध्यक्ष नंदन नीलेकणि ने कहा, ‘ डाक विभाग को अत्याधुनिक बनाने की दिशा में यह गठजोड़ एक महत्वपूर्ण पहल लग रहा है जिससे आम आदमी कुछ और मज़बूत होगा.उन्होंने कहा कि इसके माध्यम से अब लोगों को इस बात का पता चल सकेगा कि उनकी चिट्ठी कहां है.अब इस नयी व्यवस्था से कोई भी व्यक्ति आनलाइन माध्यम से इस बात का आग्रह कर सकता है कि उनकी चिट्ठी उनके लिखे पते पर पहुंची है या नहीं. मोबाईल फोन और इंटरनेट के इस अति आधुनिक युग में डाक विभाग का फिर से शक्तिशाली होना एक नया इतिहास रचने के समान होगा. आइये डाक विभाग में इस नयी क्रांति को खुशआमदीद  कहते हुए  इसके जल्द सफल होने की कामना करें. इस सब पर आपके विचारों की इंतज़ार भी बनी हुई है.-रेक्टर कथूरिया   

अब शराब पीकर गाड़ी चलाने वाले सावधान

जागो रे से साभार 
हालांकि आजकल अच्छी  ख़बरों के मुकाबिले घोटालों, हत्यायों और साजिशों की खबरें ज्यादा रहती हैं पर  फिर भी कभी कभी कुछ खबरें घुटन भरे माहौल में ताज़ी हवा के कुछ ऐसे झोंके लेकर आती हैं कि फिर से नयी उमीदें जाग उठती हैं. कुछ देर पहले खबर आई थी शराबी ड्राइवरों पर अंकुश लगाने में फिसड्डी है पंजाब.एक और ऐसी ही खबर थी कि शराब पीकर गाड़ी चलाने वाले दोषियों में आधे अमृतसर के हैं.  एक ऐसी ही खबर अख़बारों में दिखी डेट लाईन  नयी दिल्ली से जिसे 4 फरवरी को जारी किया खबर ऐजंसी भाषा ने. यह खबर उन लोगों को राहत देने वाली है जो अक्सर उन लोगों की गाड़ियों के नीचे आ कर कुचले जाते है जो शराब के दो चार जाम लगा कर हवा की रफ्तार से बातें करने लगते हैं.  लेकिन अब शराब पीकर गाड़ी चलाने वाले सावधान हो जाएं, क्योकि इसके एवज में दस हज़ार रुपए तक का जुर्माना और एक साल की सजा का ऐलान कभी भी लागू होने के नज़दीक है.
जागो रे से साभार 
मोटर वाहन अधिनियम में सुधार की सिफारिशों को यदि मान लिया जाता है, तो राजधानी में शराब पीकर गाड़ी चलाना या ड्राइविंग करते हुए मोबाइल फोन पर बात करना काफी महंगा साबित हो सकता है. अधिनियम में सुधार के सुझावों को यदि मंजूरी मिल जाती है, तो गाड़ी चलाते समय मोबाइल फोन पर बात करने वालों को एक हज़ार रुपए तक का जुर्माना अदा करना होगा. इस मकसद के ल;इए बनाई गयी एक विशेषज्ञ समिति ने जो सुझाव दिए हैं उनमें कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति शराब पीकर गाड़ी चलाता पकड़ा जाता है, और उसके 100 एमएल रक्त में 150 एमजी तक शराब पाई जाती है, तो उसे छह माह से एक साल की सज़ा होनी चाहिए या उस पर दस हजार रुपए का जुर्माना लगाया जाना चाहिए; या फिर दोनों सजाएं भी  हो सकती हैं. अगर गाड़ी चलाने वाले ने कुछ कम शराब भी पी है अर्थात उसके शरीर में 30 से 150 एमजी तक शराब पाई जाती है, तो उसे छह माह की सजा या पांच हजार रुपए का जुर्माना या अर्थदंड और जेल,  दोनों हो सकती हैं.पूर्व सड़क सचिव एस सुंदर की अध्यक्षता वाली दस सदस्यीय समिति द्वारा तैयार 411 पृष्ठों की रिपोर्ट में ये सुझाव दिए गए हैं. इस विशेषज्ञ समिति ने अपनी रिपोर्ट सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री सी पी जोशी को सौंपी है. अब देखना यह है कि आये दिन किसी न किसी की जान लेकर अच्छे भले बसते हुए घरों को उजाड़ दे ने वाले इन सड़क हादसों के लिए ज़िम्मेदार लोगों पर नकेल डालने की यह शुरूआत कितनी जल्दी एक्शन में आ कर कारगर साबित होती है. अगर आप इस विषय पर कुछ सोच रहे हैं तो झटपट उसे कागज़ पर उतारिये. आपके विचारों की इंतज़ार जारी है. --रेक्टर कथूरिया 

Wednesday, February 02, 2011

तेरी जुदाई


बात इन्टरनैट की चले तो अचानक ही दिल-ओ-दिमाग में बहुत कुछ आने लगता है।  आम दुनिया की तरह बहुत सी खतरनाक और गलत बातें यहां भी होती हैं जिनकी वजह से कई बार पूरे का पूरा माहौल ही संशय पूर्ण सा लगने लगता है. लेकिन कुछ हिम्मतवर लोग यहाँ भी हैं जो इस अन्धकार को चीरते हुए आगे बढ़ रहे हैं. इस अँधेरे में भी जो लोग कोई न कोई मशाल उठा कर कला और कविता जैसी यादगारी बातें कर रहे हैं, एक नया इतिहास रच रहे हैं उनमें एक नाम पूनम मटिया का भी है.वही पूनम जिसे मिलने के लिए इंटरनैट की दुनिया के मित्र भी दूर दूर से विशेष तौर पर मिलने जाते हैं. पूनम जैसे कलाकारों ने दूर दूर बैठे लोगों को भी एक परिवार की तरह जोड़ दिया है. स्वार्थ और गला काट प्रतियोगिता के इस युग में यह किसी करिश्मे से कम नहीं है. दिलचस्प बात है इस नए स्वस्थ माहौल की रचना में पूनम के पति नरेश मटिया भी पूरी तरह सहयोग करते हैं.आपने पूनम मटिया की कवितायों का रंग पंजाब स्क्रीन में कहीं पहले भी देखा है आइये इस बार देखते हैं पूनम मटिया की कुछ कवितायों का एक नया रंग. --रेक्टर कथूरिया  
 भुलाओ न इतना 
खींचों न रबर इतना कि टूट जाए
दुखाओ न दिल इतना कि दर्द फिर सह न पाए
भुलाओ न किसी को ऐसे कि वो रूठ जाए
ढील न दो पतंग को इतनी कि कट ही जाए
झूले झुलाओ ऐसे कि ‘हिंडोला’आगे तो जाए
पर लौट के फिर अपने पास ही आये

तेरी जुदाई 
पत्थर दिल हो गए हैं हम
नहीं आती मौत भी आसानी से
तेरी जुदाई इम्तिहान लेती है
हर सांस पर इक उम्र तमाम होती है'
कश-म-कश
निशब्द ,निस्तेज ,निरीह सी
पाँव कुछ बंधे-बंधे से, पर
हस्त-उँगलियों में अजीब सी थिरकन
दिमाग कुछ अशांत और
दिल में कुछ उथल-पुथल
आँखें पथराई सी ,पर
निहारती ‘पथ’ किसी का
अजीब कश-म-कश,जैसे कोई भंवर
अजनबी ,अनजान सी तलाशती
‘मंजिल’ छुपी धुंधलके में किसी
आईना 

ये आइना भी अजीब होता है 

असलियत दिखाता है
बड़ा बेदर्द है
आजकल पहले सा दोस्त नहीं
जाने क्यों दुश्मनी निभाता है.

खुद पर यकीन 
इन्तेजार में उम्र यूँही तमाम न कीजिये 
सवालों के हल भी ढूँढ ही लीजिए 
नाम जो लबों तक आया है 
उस शख्स को अपनी ख्वाबगाह में जगह दीजिए 
क्योंकर शको-शुबहा करता है ए-दिल 
अल्लाह को सजदा कीजिये 
और खुद पर यंकी कीजिए 
जमाल-ए-हुस्न 
आजकल ‘उसका’ भी ये आलम है ‘पूनम’
चाँद आसमां में रहता है, मगर
जिक्र उसका जाने क्यों सरे आम होता है
रोशन होते हैं चिराग उसके नाम से
जमाल से उसके चुंधिया जाती हैं नज़रें
हर गुलशन का ‘वही’ गुलफाम होता है
झील सी गहरी उसकी आँखों में नहा कर
खुद चाँद भी ज़लवा-फरोश होता है...

आपको पूनम मटिया की कवितायों का यह रंग कैसा लगा अवश्य बताएं.आपके विचारों की इंतज़ार बनी रहेगी.तस्वीरों की कविता तस्वीरों पर क्लिक करके बड़ी की जा सकती है.-रेक्टर कथूरिया