Thursday, December 01, 2011

उत्तरपूर्व की जनजातियों की कुल जनसंख्या लगभग एक करोड़

एक विशेष पुस्तक का विमोचन         -राजीव गुप्ता की ख़ास रिपोर्ट 
पुस्तक के लेखक श्री जितेंद्र बजाज ने समझाया पूरा विस्तार  

समाजनीति समीक्षण केंद्र की पुस्तिका "भारत की अनुसूचित जनजातियाँ: धर्मानुसार जनसांख्यिकी  एवं प्रतिनिधित्व (Schedule Tribes of India : Religious Demography and Representation )"  का लोकार्पण दिनांक 24 नवम्बर 2011, बृहस्पतिवार को दीनदयाल शोध संस्थान, दिल्ली में किया गया। पुस्तक के लेखक श्री जितेंद्र बजाज ने पुस्तक के निष्कर्ष की चर्चा करते हुए बताया कि उत्तरपूर्व की  जनजातियों की कुल जनसंख्या लगभग एक करोड़ है, जिसमें से लगभग पैंतालीस प्रतिशत ईसाई मतावलंबी है। मध्य-भारत के तीन राज्यों छतीसगढ़, झारखण्ड और ओड़िसा की जनजातियों की कुल संख्या लगभग सवा दो करोड़ है, जिसमे मात्र सात-आठ प्रतिशत ईसाई मतावलंबी है। भारतीय प्रशासनिक सेवा ( आई. ए .एस )  सूची में उत्तरपूर्व मूल के जनजातीय अधिकारियों की संख्या 130 है, जिनमें से 105  ईसाई मतावलंबी हैं। और छत्तीसगढ़, झारखंड एवं ओडिशा मूल के मात्र 17  जनजातीय अधिकारी इस सूची में हैं, इनमें से आठ ईसाई मतावलंबी हैं। इस अध्ययन से ऐसा लगती है कि भारत सरकार जनजातियों के आरक्षण के नाम पर मात्र ईसाई मतावलंबियों को ही आरक्षण दे रही है।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता श्री सुब्रह्मण्यम स्वामी ने समाजनीति समीक्षण केंद्र के कार्यों की प्रशंसा करते हुए कहा कि समाजनीति समीक्षण केंद्र  की पुस्तकें प्रामाणिकता एवं प्रस्तुति दोनों आयामों में प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों के स्तर के होती हैं। केंद्र का शोध सर्वथा विश्वसनीय होता है। इसलिये अपने मूल धर्म में स्थित जनजातियों के केंद्रीय सेवाओं में प्रतिनिधित्व का जो चित्र इस पुस्तक में प्रस्तुत हुआ है वह अत्यंत चिंतनीय है। जनजातियों की इस दुर्गति के लिए वृहद् हिन्दू समाज  ही उत्तरदायी है। परंतु हिंदु समाज की ही स्थिति ईसाइयों और मुसलमानों के मुकाबले अत्यंत खराब है। जब तक हिंदु समाज अपने हितों की रक्षा करने के लिये सबल होकर खड़ा नहीं होता तब तक जनजातियों के हितों की रक्षा करना तो संभव नहीं।

कार्यक्रम  के विशेष अतिथि श्री दिलीप सिंह भूरिया ( पूर्व अध्यक्ष, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आयोग) ने बहुत भावुक होते हुए कहा कि भारत की जनजातियां तो सर्वदा अपने के  सनातनी मानती आयी हैं। उन्हें अपने को सनातनी मानने और कहलाने में कोई संकोच नहीं होता, जबकि वृहद् हिंदु समाज के लोग अपने को सनातनी हिंदु कहने-कहलाने में प्रायः हिचकते हैं। श्री भूरिया ने यह भी कहा कि जनजातियों के लोग वन के सिंहों के समान वीर हैं और भारत की स्वतंत्रता के लिये उन्होंने सर्वदा बढ़चढ़ कर पराक्रम किया है। आज की विकट स्थिति से निकलने का उपाय भी वे निकालेंगे ही।

कार्यक्रम की अध्यक्षता लोकसभा के उपाध्यक्ष श्री कड़िया मुंडा ने की। अपने अध्यक्षीय भाषण में उन्होंने जनजातियों के सहज सनातनी होने की बात को आग्रहपूर्वक दोहराया। उन्होंने अत्यंत आग्रहपूर्वक यह भी कहा कि जनजातियों के सेवाओं में आरक्षण का बड़ा भाग धर्मपरिवर्तित ईसाइयों के ले जाने के विषय पर अदालतों में जाना चाहिये। उनका कहना था कि सर्वोच्च न्यायालय यह निर्णय कर चुका है कि धर्म परिवर्तित ईसाई जनजातियों की सुविधा के अधिकारी नहीं हैं। इसलिये जहाँ-जहाँ ईसाई लोग जनजातियों की सुविधायें भोग रहे हैं वहाँ-वहाँ अदालतों में ये मामले ले जाये जाने चाहियें।
वनवासी कल्याण आश्रम के अध्यक्ष श्री जगदेव ओराँव भी इस कार्यक्रम में उपस्थित थे। उन्होंने अपना आशीर्वाद देते हुए कहा कि वनवासी कल्याण आश्रम इस स्थिति का सामना करने के लिये सब प्रकार के प्रयत्न करने के लिये कटिबद्ध है।
कल्याण आश्रम की ओर से श्री हर्ष चौहान ने समाजनीति समीक्षण केंद्र को एवं उपस्थित अतिथियों को धन्यवाद दिया। केंद्र की ओर से केंद्र के अध्यक्ष श्री एम डी श्रीनिवास ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए सब को याद दिलवाया कि ईसाई लोग उत्तरपूर्व और धुर-दक्षिण के तटीय प्रदेश को अपना गढ़ मानते हैं। इन क्षेत्रों में वे किसी गैर-ईसाई उपस्थिति को बर्दाश्त नहीं करते। इस संबंध में उनका आग्रह इतना गहन है कि वे कू़डनकूलम जैसे राष्ट्रीय महत्त्व के प्रकल्प का विरोध करने से भी नहीं हिचकिचाते।
वनवासी कल्याण आश्रम के मीडिया मीडिया प्रभारी के श्री राजीव गुप्ता ने बताया कि कार्यक्रम में लगभग 200 लोगों ने भाग लिया। इनमें 12 सांसद भी थे।

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