Saturday, November 26, 2011

कहीं ये थप्पड़ किसी क्रांति का आगाज़ तो नहीं ?

सरकार को अब जागना ही होगा अन्यथा...लेखक:राजीव गुप्ता
जब खाने-पीने की चीजों के दामों में आग लग जाय और रसोई के चूल्हे की आग गैस सिलेंडर महंगा होने से बुझ जाय , सरकार के मंत्री के घोटालो के चलते पूरी सरकार भ्रष्टाचार में डूबी हो , विदेशों में जमा काले धन को स्वदेश में लाने के लिए सरकार टालमटोल का रवैया अपनाये तो ऐसे में जनता में आक्रोश पैदा होना लाजमी है! अगर सरकार अब भी न चेती तो कही हालात नियंत्रण से बाहर न हो जाय जिसका आगाज़ एक शख्स  ने वर्तमान कृषि मंत्री शरद पवार जी पर थप्पड़ मार कर अपने आक्रोश का इजहार तो कर दिया जो कि बहुत ही निंदनीय है परन्तु सरकार को अब जागना ही होगा अन्यथा कही ये हालात और भड़क कर बेकाबू न हो जाय !  

फ़्रांस की 1756 की क्रांति का इतिहास साक्षी है , जो कि कोई सुनियोजित न होकर जनता के आक्रोश का परिणाम थी !  जब जनता किंग लुईस के शासन में महंगाई और भ्रष्टाचार से परेशान होकर सडको पर उतरी और तो पूरे राजघराने को ही मौत के घाट उतारते हुए अपने साथियों को ब्रूस्सील ( Brusseel ) जेल को तोड़कर बाहर निकाल कर क्रांति  की शुरुआत की ! परिणामतः वहां  लोकतंत्र  के साथ - साथ  तीन नए शब्द  Liberty , Equality ,  Fraternity  अस्तित्व में आये ! वास्तव में उस समय राजघराने का जनता की तकलीफों से कोई सरोकार नहीं था ! इसका अंदाजा हम उस समय की महारानी मेरिया एंटोनियो के उस वक्तव्य से लगा सकते है जिसमे उन्होंने भूखमरी और महंगाई से बेहाल जनता से कहा था कि " अगर ब्रेड नहीं मिल रही तो केक क्यों नहीं खाते !"
ऐसी ही एक और क्रांति सोवियत संघ में भी हुई थी ! जिसका परिणाम वहां की जारशाही का अंत के रूप में हुआ था ! कारण लगभग वहां भी वही थे जो कि फ़्रांस में थे जैसे खाने-पीने की वस्तुओं का आकाल , भ्रष्टाचार में डूबी सत्ता और सत्ता के द्वारा जनता के अधिकारों का दमन ! सोवियत संघ में लोकतंत्र तो नहीं आया परन्तु वहां कम्युनिस्टों  की सरकार बनीं!
जब अर्थव्यवस्था ध्वस्त होने के कगार पर हो , मंहगाई के साथ - साथ बेरोजगारी दिन - प्रतिदिन बढ़ रही हो , और सरकार अपनी दमनकारी एवं गलत नीतियों से जनता की आवाज को दबाने कोशिश कर रही हो तो जनता सडको पर उतरकर अपना आक्रोश प्रकट करने लग जाती है और यदि समय रहते हालात को न संभाला गया तो यही जनता भयंकर रूप लेकर सत्ताधारियों को सत्ता से बेदखल करने से पीछे भी नहीं हटती जिसका गवाह इतिहास के साथ साथ अभी हाल हे में हुए कुछ देशों के घटनाचक्र है ! सत्ता - परिवर्तन करने के लिए लोग अपने शासक गद्दाफी का अंत करने से भी पीछे नहीं हटे ! एक तरफ  कभी अमेरिका और ब्रिटेन के लोग आर्थिक मंदी और बेरोजगारी के चलते प्रदर्शन करते है तो वही दूसरी तरफ मिस्र की जनता सड़कों पर है, जिसके चलते  मिस्र आज भी सुलग रहा है !
आंकड़ो की बजीगीरी सरकार चाहे जितनी कर ले पर वास्तविकता इससे कही परे है ! बाज़ार में रुपये की कीमत लगातार गिर रही है अर्थात विदेशी निवेशक लगातार घरेलू शेयर बाज़ार से पैसा निकाल रहे है ! गौरतलब है कि रुपये की कीमत गिरने का मतलब विदेशी भुगतान का बढ़ जाना है अर्थात पेट्रोलियम पदार्थो की कीमतें और बढ़ेगी ही जिससे कि अन्य वस्तुओ की कीमतों में भी इजाफा होगा ! महंगाई को सरकार पता नहीं क्यों आम आदमी की समस्या नहीं मानना चाहती ? एक तरफ जहां हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री दुनिया के माने हुए अर्थशास्त्री है, 
राजीव गुप्ता(लेखक)
विदेशों में जाकर आर्थिक संकट से उबरने की सलाह देते है और अपने देश में मंहगाई से आम आदमी का कचूमर निकाल कर कहते है कि हमारे पास कोई जादू की छडी नहीं है तो दूसरी तरफ वित्त मंत्री जी महंगाई कम होने की तारीख पर तारीख देते रहते है जैसे कि कोई अदालतीये कार्यवाही में तारीख दे रहे हो !
उदारवादी आर्थिक नीतियों का फायदा सीधे - सीधे पूंजीपतियों को ही होता है और आम आदमी महंगाई के बोझ - तले पिस जाता है !  अब असली मुद्दा यह है कि आम आदमी जाये  तो कहा जाये ? ऐसे में जनता में सरकार के प्रति आक्रोश  तो लाज़मी ही है ! जनता का यह आक्रोश कोई विकराल रूप ले ले उससे पहले सरकार को आत्मचिंतन कर इस सुरसा रूपी महंगाई की बीमारी से जनता को निजात दिलाना ही होगा, क्योंकि एक बार राम मनोहर लोहिया जी  ने भी कहा था कि  जिंदा कौमें पांच साल तक इंतज़ार नहीं किया करती है , ऐसे में मुझे लगता है  कि कही ये थप्पड़ किसी क्रांति का आगाज़ तो नहीं है !   



आपको राजीव गुप्ता जी का यह यह लेख कैसा लगा, आप इस विषय पर क्या सोचते हैं, क्या कहना चाहते हैं, इसे खान तक उचित मानते हैं...इस तरह के सभी मुद्दों पर आपके विचारों का इंतजार बना रहेगा. आज़ादी के इतने दशकों बाद अगर आम आदमी का नेतायों के प्रति यह रवाया बन गया है तो इसके लिए वास्तव में ज़िम्मेदार  कौन है ? आप इस सारे मामले पर अपने विचारों को शब्द दीजिये लेकिन
सब कुछ सलीके से कहिये. विचारों के साथ आपका पूरा पता, इमेल पता , फोन नम्बर और तस्वीर अवश्यक है.आपके विचारों को भी प्रकाशित किया जायेगा.आप चाहेंगे तो आपका नाम पता गुप्त भी रखा जायेगा
. -रेक्टर कथूरिया     
        

2 comments:

Anonymous said...

सारा देश जनता जानती है की महगाई घटाने का कोई प्रयास नही क्र रही सरकार ?बल्कि खेरीज का सारा ही कारोवार वालमार्ट को दे रही है जोब्द्नाम कम्पनी है जर्मनी कईदेशों में इसके कारनामे चर्चित हैं?दलील यह दी जा रही आगामी तिन सालों में तिन करोड़ लोगों की नोकरी के लिए सर्जन करे?जबकि कमसे कम ५० से ६० करोड़ लोगों के पेट पे लत मर?किउ बेकारी भुखमरी सरकार लाना चाहती?पानी देश का प्रक्रति पडत?सप्लाई विदेशी कम्पनी करेगीं?आज ल्ग्भग१२०००व्हुरस्त्रिय कम्पनियों को सरकार पनाह दे चुकी?विदेशों में मंदी?सब भारत में आना क्या?भारत को लूटना चाहते हैं १% भी गढ़क मिलते किसीको १ करोड़ से ज्यादा होते हैं?ऐसे स्वर्ग में कोन नही आना चाहेगा?जहाँ दलाली दो और कुछ भी काम करा लो?सारे ही नेता ५ ,य१०% को छोड़कर सभी विकने तैयार हैं?देश की बदहाली भ्रष्टाचारी कैंसर के लिए सत्ता के नेता जिम्मेवार हैं?मंहगाई चाहे कितनी बढ़े अपनी नक् पे नेता मक्खी नही वैठने दे सकते ?

Ashoke Mehta said...

मैं तो शरद पवार को इस बहादुर इंसान द्वारा थप्पड़ मारा जाना निन्दनीय नहीं मानता हूँ बल्कि यह एक प्रशंसनीय कार्य है | जो बच्चा बहुत उदंडता करता है तो उसकी उदंडता पर नियंत्रण करने के लिए कभी कभार एक आध थप्पड़ तो रसीद करना ही पड़ता है|