Sunday, October 16, 2011

राष्ट्र की ‘संज्ञा’ को भी परिभाषित करता है उपन्यास ‘बंद कमरा’

 'राष्ट्र समूह वाचक नहीं, बल्कि व्यक्ति वाचक' 
पुस्तक समीक्षा                                                          अनुवादक:दिनेश कुमार माली
‘बंद कमरा’ उपन्यास में राष्ट्र की ‘संज्ञा’ को भी परिभाषित किया गया है,व्यक्ति और राष्ट्र के बीच उत्पन्न हुए द्वन्द-प्रसंगों का भी उल्लेख किया गया है। इस उपन्यास में राष्ट्र को परिभाषित करते हुए लेखिका पाठकों के सम्मुख कुछ सवालों के जरिये हकीकत को उकेरती है ,इराक के ऊपर अमेरिका का आक्रमण किसकी इच्छा से हुआ था जार्ज बुश या अमेरिका की ? गर्बाचोव न होते तो पेरेस्त्रोइका संभव हो पाती क्या रूस में ? इन बातों से यह जाहिर होता है राष्ट्र नामक किसी भी चीज का कोई अस्तित्व नहीं है। शासक से राष्ट्र कभी बड़ा नहीं हो पाता है। शासक के मूड़ और मर्जी से परिचालित होता है एक विशाल लोकतान्त्रिक संस्था, जिसमे करोड़ों लोगों की आस्था टिकी हुई होती है, इसलिए राष्ट्र और व्यक्ति के संघर्ष हमेशा व्यक्ति व्यक्ति के निजी संघर्ष से उत्पन्न होते हैं।“
एक लम्बे अरसे से डॉ. सरोजिनी साहू ओड़िया साहित्य में अपनी सृजनशीलता के लिए पाठकों में चर्चा का विषय रही हैं। सप्रतिभ भाषा-शैली, कथ्य-संप्रेषण और नवीन चेतना-स्तर के कारण वह अपने समसामायिक साहित्यकारों में एक अलग पहचान रखती है। आपका ओडिया उपन्यास ‘गंभीरी घर’ (हिंदी में ‘बंद कमरा ‘) ओडिशा की प्रसिद्ध ‘गल्प-पत्रिका’ के पूजा-अंक में प्रकाशित होते ही ओडिया -पाठकों में चर्चा का एक जबरदस्त विषय बना। पहले की तरह डॉ.सरोजिनी की हर रचनाओं की तरह यह उपन्यास भी आकर्षण का केन्द्र बना। भले ही, कुछ पाठकों में लेखिका के व्यक्तव्य की स्मार्टनेस नागवार गुजरी, मगर अनेक पाठकों ने न केवल इसे सहर्ष स्वीकार किया,बल्कि इस उपन्यास को पढ़कर भावाभिभूत भी हुए.

लेखिका की कहानियों और उपन्यासों में ऎसी ही जादुई विलक्षणता है, जो पाठकों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करती है। कुछ पाठकों ने उपन्यासकार को उसका खुद एक पात्र समझने की गलती की , मगर यह सार्वभौमिक सत्य है, किसी उपन्यास की सफलता इस बात पर निर्भर करती है जहां पाठकों ने उसके अन्दर किन्हीं छिपी हुई सत्य-संवेदनाओं को अपने भीतर अनुभव किया हो।
क्या यह उपन्यास वास्तव में केवल प्रेम पर आधारित उपन्यास है ? क्या लेखिका हिंदु प्रेमिका और मुस्लिम प्रेमी के बारे में अपनी बात रखना चाहती है या भारतीय नारी और पाकिस्तानी पुरुष का अंतरजाल के माध्यम से विकसित हुई यह प्रेम-कहानी को दर्शाना चाहती है ?
कुछ ओडिया पाठक इसे यौन-स्वतंत्रता से संबंधित उपन्यास मानते हैं, जबकि इन सारी चीजों से ऊपर उठकर ‘गंभीरी घर’ का कथ्य और कथानक की व्यापकता और ज्यादा विशाल हो जाती है। इस उपन्यास में व्यक्ति की निसंगता, विशेष रूप से भारतीय नारी की आधुनिक जीवन -धारा में अकेलेपन और रिक्तता की बातें दर्शाई गई है। इस उपन्यास में राष्ट्र की ‘संज्ञा’ को भी परिभाषित किया गया है,व्यक्ति और राष्ट्र के बीच उत्पन्न हुए द्वन्द-प्रसंगों का भी उल्लेख किया गया है। उपन्यास की मुख्य नायिका कूकी के एक ओर है पतिऔर दूसरी तरफ प्रेमी; पति अनिकेत और प्रेमी शफीक। पति की दुनिया में घर-गृहस्थी मानो संवेदनहीन और पत्थर बन चुकी हो, और प्रेमी शफीक की काल्पनिक दुनिया का कहना ही क्या ! शफीक को देखा तक नहीं कूकी ने, स्पर्श करना तो बहुत दूर की बात। शायद इसलिए शफीक के लिए उसके हृदय में उसको पाने की व्याकुलता स्वाभाविक है। परंतु उसकी पहुँच से परे है शफीक का आकाश।बाहर से प्रेम प्रदर्शन नहीं करने वाला दंभी अनिकेत कूकी को प्यार नहीं करता था, ऐसी बात नहीं थी। सभी के सामने कूकी को अपने शरीर के प्रति लापरवाही बरतने से नाराज होकर कूकी पर हाथ उठाने के पीछे भी कहीं न कहीं उसकी प्रेम की भावना छिपी हुई थी। इसी तरह वह कूकी की तबीयत खराब हो जाने पर रात रात जगकर उसकी सेवा करता था । इन दो परस्पर विरोधी पुरुष-व्यक्तित्वों को लेखिका ने अनिकेत के माध्यम से बहुत ही निपुणता से वर्णन किया है। उपन्यास के अंत में अनिकेत की विदेश-यात्रा के समय पाठक देखेंगे, अनिकेत और कूकी में घनिष्ठ प्रेम है।

दिनेश कुमार माली
जबकि बावन स्त्रियों के साथ संभोग किया हुआ, घर में दो बीवियां रखने वाला शफीक विकृत मानसिकता वाला होते हुए भी एक सफल चित्रकार है। मेरा यह मानना है जैसे लेखिका शफीक के अंदर पिकासो को ढूंढ रही हो। पिकासो ने कई स्त्रियों के साथ संबंध बनाए थे। उनके प्रेम और उनकी कामुकता के प्रति आसक्ति भरे खोजी दृष्टिकोण ने उसे विश्व प्रसिद्ध चित्रकार बना दिया था। ये सारी बातें शफीक के अंदर पाई जाती है। परंतु शफीक प्रेमी स्वभाव का है, इसलिए लेखिका ने कूकी का उसके प्रति प्रेम भाव को कई सुन्दर प्रेम कविताओं के पद्यांशों के जरिए दर्शाया है। जहां अनिकेत का आगमन होता है वहाँ भाषा गद्य का रूप ले लेती है। पद्य और गद्य शैली में लिखा गया यह उपन्यास मानवीय हृदय के माधुर्य और तिक्तता को एक साथ प्रकट करता है।
क्या यही है भारतीय नारी की नियति ? हमारी समाज-व्यवस्था, हमारी जीवनचर्या, हमारे संस्कार नारी को अलग कर देते हैं । आधुनिकता, शिक्षा-दीक्षा, संविधान सम्मत समस्त अधिकार होते हुए भी एक नारी अपने प्रेमी और पति से दोनो से विच्छिन्न होकर रह जाती है। वह कैदी है, वह खुद ही अपने को कैद कर लेती है संवेदनशील मातृत्व की सलाखों के पीछे घर नामक चारदीवारी के अंदर। इस विच्छिन्नता बोध को प्रतीक है ‘गंभीरी घर’।
ट्रेजेडी उपन्यास होते हुए भी प्रेम के प्रति आस्थाबोध पाठकों को नजर आएगा। प्रेम के प्रति लेखिका का दृष्टिकोण प्रचलित धारणाओं से उठकर स्वतंत्र रूप में है। पति अनिकेत के प्रेम और प्रेमी शफीक के प्रेम में जो अंतर है, उसे लेखिका ने बड़े से सूक्ष्म ढंग से प्रस्तुत किया है। अनिकेत के प्रेम में है प्रज्ञा और शफीक के प्रेम में आवेग और रोमांच का बाहुल्य ।

एक स्त्री का निश्चल प्यार पाकर एक पर्वटेड कामुक आदमी क्रमशः परफेक्टशन की ओर अग्रसर होता है। स्वयं को यौनता से पृथक करते हुए प्रेम पथ पर बढता जाता है। उसे नारी का शरीर और आकर्षित नहीं करता है। रूखसाना उसके लिए देवी है, इसलिए कूकी के भीतर वह रूखसाना को देखता है।  

कट्टरपंथ , धार्मिक-बंधन, देश, राजनैतिक, भौगोलिक सीमाओं से ऊपर है रूखसाना की स्थिति। इसलिए शफीक कहता है, मेरा कोई अपना देश नहीं है, कलाकार के लिए कोई एक विशेष देश नहीं होता है। उसके पास होते हैं केवल प्रेम के नैसर्गिक संबंध।

इस उपन्यास में कूकी का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण कर लेखिका ने अपने सक्षम लेखन का परिचय दिया है। कुमारी-साधना, ओशों की सम्भोग से समाधि वाली साधना, रागानुराग भक्ति-मार्ग में कूकी विश्वास नहीं रखती थी। वह कहती थी, “शफीक, नहीं, मैं ओशो के दिखाए मार्ग में तुम्हें सहयोग नहीं कर पाऊँगी। मैं अति साधारण औरत हूँ। मेरी आशा और आकांक्षाएं सभी साधारण सी है। मैंअपने प्रेमी से केवल प्रेम की उम्मीद करती हूँ। जीवन जीने की खुराक चाहती हूँ। मुझे किसी भी साधना से क्या लेना-देना ? मुझे मोक्ष प्राप्ति की कोई इच्छा नहीं है। मैं ‘नेरात्मा’बनकर बैठी रहूंगी और तुम व्याकुल शबर की तरह मेरे पास भागे दौड़े आओगे।”

पिकासो के ‘ला कुक्कू मेगनिफिक’ तस्वीर के जरिए लेखिका ने कूकी के अपराध-बोध को दिखाया है। ‘ला कुक्कू मेगनिफिक’ का मतलब होता है, जिस पति की पत्नी अन्य पुरूषों के साथ प्रेम करती है। वह तस्वीर बहुत ही गजब खूबसूरत थी। उस तस्वीर में एक नंगी औरत पहिए वाली गाड़ी में टांगों को उठाकर एक के ऊपर दूसरे को रखकर सोई हुई है। टांगों के भीतर से उसके यौनांग साफ़ दिखाई पड़ता है। एक नग्न पुरुष उस पहिए वाली गाड़ी को खींच रहा है। छुपकर कुछ नंगे लोग उस दृश्य को देख रहे हैं और उस तस्वीर के बायी ओर एक फ्रॉक पहने लड़की हाथ में चाबुक लिए खड़ी है। अपराध-बोध की सुंदर व्याख्या लेखिका और पिकासो की जुगलबंदी इस उपन्यास को एक विशिष्ट दर्जा प्रदान करती है।

इस उपन्यास में राष्ट्र को परिभाषित करते हुए लेखिका पाठकों के सम्मुख कुछ सवालों के जरिये हकीकत को उकेरती है ,इराक के ऊपर अमेरिका का आक्रमण किसकी इच्छा से हुआ था जार्ज बुश या अमेरिका की ? गर्बाचोव न होते तो पेरेस्त्रोइका संभव हो पाती क्या रूस में ? इन बातों से यह जाहिर होता है राष्ट्र नामक किसी भी चीज का कोई अस्तित्व नहीं है। शासक से राष्ट्र कभी बड़ा नहीं हो पाता है। शासक के मूड़ और मर्जी से परिचालित होता है एक विशाल लोकतान्त्रिक संस्था, जिसमे करोड़ों लोगों की आस्था टिकी हुई होती है, इसलिए राष्ट्र और व्यक्ति के संघर्ष हमेशा व्यक्ति व्यक्ति के निजी संघर्ष से उत्पन्न होते हैं। लंदन बम ब्लास्ट में शफीक के गिरफ्तार होने के पीछे आतंकवाद कोई कारण नहीं है, वह तो किसी भी धर्म में विश्वास नहीं रखता था, वह तो इस बात को मानता था कि उसका कोई देश नहीं है, वह कट्टरपंथियों का विरोध भी करता था। वह गिरफ्तार हुआ तो केवल एक छोटे से कारण की वजह से। तबुस्सम और मिल्टरी ऑफिसर के आपसी वैमनस्य और मतभेद से। इस नितांत व्यक्तिगत घटना को एक अंतराष्ट्रीय रूप देकर उसे गिरफ्तार किया गया था।

लेखिका ने इस उपन्यास में आतंकवाद के मलभूत कारणों को जानने की कोशिश की है। अफगानिस्तान से रूसी सैनिकों को हटाने के लिए अमेरिका ने पाकिस्तान में आतंकवादियों का प्रशिक्षण प्रदान किया था। इस्लाम की सुरक्षा के नाम पर ,जेहाद के नाम पर, विश्व के हर प्रांत से मुसलमानों को एकत्रित कर गोरिल्ला युद्ध का प्रशिक्षण दिया था, अस्त्र-शस्त्र बांटे थे। वहीं से शुरू होता है आतंकवाद का बीजारोपण। रूसी सैनिकों ने अफगानिस्तान से हट जाने के बाद अमेरिका भी वहां से हट गया था, क्योंकि वह अप्रत्क्षतः अपने मकसद में सफल हो गया था । वहां से हटते समय छोड़ गया था अस्त्र-शस्त्रों की भरमार खेंपें और उनके ट्रेनिंग कैंप। रह गए थे सिर्फ तालिबानी और जेहादी। उन्होंने कुवैत जैसे भोलेभाले देश को एनजीओ के माध्यम से मुफ्त शिक्षा का प्रलोभन दिखाकर कई कौमी मदरसे खोलें । जहाँ छोटे-छोटे बच्चे धीरे-धीरे मानवीय बंबों और आत्मघाती दस्तों में बदल गए।इस तरह इस उपन्यास में घरेलू आतंकवाद से वैश्विक आतंकवाद के संभावित कारणों का अच्छे ठंग से ताना बना बुना गया है ।

लेखिका ने इसलिए लिखा है,“पूछो, पूछो , अमेरिका को पूछो, अफगानिस्तान से रूस को हटाने के लिए जो हथियार तैयार किए थे, और हृदयहीन रोबोट बनाए थे, अब वे कहाँ जाएंगे ? कहाँ गाडेंगे इतने हथियार ? कैसे भूलेंगे तालिम के वे दिन ? गोला, बारूद, हथियारतो हमेशा खून मांगता है। मांगता है जीवन।”

इसलिए आतंकवाद जितना धर्म आश्रित नहीं होता है, उससे ज्यादा रष्ट्र आश्रित होता है। संभवत अमेरिका का शीत-युद्ध राजनीति लादेन का सृष्टा है। इसलिए लेखिका के उस उपन्यास में अन्तरंग प्रेम के साथ साथ कई बारीक दार्शनिक पहलूओं का जिक्र हैं।

 ‘रेप तथा अन्य कहानियां’ (2011 ) के बाद राजपाल एंड साँस ने    सरोजिनी साहू के चर्चित उपन्यास ‘( अंग्रेजी : ‘The Dark Abode’/ ओडिया ‘गंभीरी घर’)  ’ का हिंदी अनुवाद  ‘बंद कमरा‘ शीर्षक से प्रकाशित किया है.यह उपन्यास पहले से ही मलयालम में ‘इरुंडा कुदरमा’ तथा बंगला में’ मिथ्या गेरोस्थाली’ शीर्षक से केरल तथा बंगला देश से प्रकाशित हो चुकी है. इस उपन्यास का  ऑनलाइन  क्रय हेतु राजपाल एंड साँस पर जाएँ) (परिकल्पना से साभार

2 comments:

दिनेश कुमार माली said...

कथुरिया जी , मैं तो एक साधारण अनुवादक हूँ जो कभी कभार शौकिया तौर पर करता हूँ । समीक्षा करना मेरे बस की बात नहीं है । मैंने इस किताब का अनुवाद किया है समीक्षा नहीं । यह समीक्षा शायद सरोजिनी जी के विद्वान लेखक पति जगदीश मोहंती जी की है तथा यह उनका बड़प्पन हैं कि उन्होने यह क्रेडिट मुझे देने की चेष्टा की हैं ।

दिनेश कुमार माली ,ओड़ीशा

Rector Kathuria said...

प्रिय भाई दिनेश जी,
यह सब तकनीकी गड़बड़ी की वजह से हुआ. यह बात आप भी जानते हैं कि हम सभी आपका कितना सम्मान करते हैं. एक अनुवादक के तौर पर आप ने जो प्रतीष्ठ अर्जित की है...उसका अपना एक अलग ही स्थान है. तकनीकी गड़बड़ी की वजह से आपके दिल को जो चोट लगी...उससे हम सभी को बहुत गहरा दुःख हुआ.है. इस सारी गलती की नैतिक ज़िम्मेदारी मैं अपने ऊपर लेता हुआ आपसे क्षमा चाहता हूँ. आशा है कि आप एक बार फिर से मुस्कराते हुए नजर आयेंगे..इस नाराजगी से कोसों दूर.....
आपका अपना ही,
रेक्टर कथूरिया..