Sunday, August 14, 2011

नहीं रहे शम्मी कपूर....!


दिल फिर उदास है. टी वी ने सुबह सुबह ही खबर दी कि अपनी विशिष्ट याहू शैली के कारण बेहद लोकप्रिय रहे हिंदी फिल्मों के पहले सिंगिंग-डांसिग स्टार शम्मी कपूर अब नहीं रहे. उनके निधन की खबर अमिताभ बच्चन ने ट्विट्टर पर दी.. इस नाशवान दुनिया की हवा में शम्मी ने सुबह पांच बज कर 15मिनट पर अंतिम सांस ली और सभी को अलविदा कह गए. जीवन के हर दौर में बेखौफ होकर ड्राइविंग सहित सभी रंगों का लुत्फ उठाने वाले शम्मी कपूर अपना काफी समय इंटरनेट को भी देते थे. गुजरे दौर के जमाने से ले कर आज के इस आधुनिक युग तक भी लोकप्रिय बने रहे इस जिंदा दिल अभिनेता का स्वास्थ्य पिछले कुछ दिनों से नरम चल रहा था. स्वास्थ्य बिगड़ने के बावजूद भी न निराश हुए और न ही कभी घबराये.  अपने चिरपरिचित जोशीले अंदाज में कहा करते थे कि हफ्ते में तीन दिन अस्पताल जाता हूं. बाकी चार दिन मौज मस्ती करता हूं, लॉन्ग ड्राइव पर  गाड़ी चलाता हूं, वीडियो पर मन पसंद फिल्में देखता हूं, इंटरनेट पर भी मज़े लेता हूं और परिवार के साथ पूरी मस्ती में समय गुजारता हूं. यह जिंदादिली सभी के नसीब में नहीं होती. अपने अलग फ़िल्मी अंदाज़ के जरिए शोहरत की बुलंदियां छूने वाले शम्मी  कपूर में गज़ब का आत्म विष्वास था. अपनी विशिष्ट नृत्य शैली के कारण मशहूर हुए शम्मी कपूर के बारे में एक दिलचस्प तथ्य है कि उन्हें नाचना नहीं आता था और तो और उन्होंने नृत्य का जो प्रशिक्षण लिया था, उसमें भी वह बुरी तरह से नाकाम रहे थे. सवाल सभी के मन में उठता है कि अगर शम्मी कपूर नृत्य नहीं जानते थे तो उन्होंने इंवनिंग इन पेरिस, तीसरी मंजिल, तुम सा नहीं देखा जैसी फिल्मों के प्रसिद्घ नृत्य कैसे किए। इस सवाल के जवाब में उन्होंने तीसरी मंजिल में हेलन के साथ किए नृत्य का उदाहरण देते हुए बताया कि वह इस मशहूर नर्तकी के तेजी से थिरकते पैरों के साथ नाच नहीं सकते थे, लेकिन उन्होंने अपनी भाव भंगिमाओं और चेहरे के रूख से तेज नृत्य की कमी को छिपा लिया था.उनके इस आत्म विशवास को उनका ओवर कान्फीडंस  भी कहा जाता था और अक्सर ही उनका मज़ाक भी उड़ाया जाता था, मज़ाक उड़ाने वालों में उनके अपने भी शामिल थे.  लेकिन वह कभी विचलित नहीं हुए.शम्मी कपूर मानते हैं कि संगीत और धुन की समझ ने उन्हें नृत्य के मामले में काफी मदद की. यही वजह है कि वह आशा पारेख, मुमताज और हेलन जैसी नृत्यकला में पारंगत अभिनेत्रियों के साथ ताल से ताल मिला सके. उनकी पहली फिल्म जीवन ज्योति थी. शुरूयात ज्यादा ज़ोरदार नहीं बन पायी.  हर अच्छे अभिनेता की तरह उन्हें भी शुरू में रेल का डिब्बा, लैला मजनू, ठोकर, शमा, परवाना, हम सब चोर हैं जैसी कई असफल फिल्मों के दौर से गुजरना पड़ा.लेकिन उनका मन कभी कमज़ोर नहीं पड़ा. आखिर वह दिन भी आया जब सफलता उनके क़दमों में थी.  सान १९५७ में उनकी फिल्म तुमसा नहीं देखा को दर्शकों ने बेहद सराहा. आप यह जान कर शायद हैरान हों कि  लोकप्रिय फिल्मकार नासिर हुसैन की यह पहली फिल्म थी. है न दिलचस्प बात ? इस फिल्म में वह शुरू में देवानंद को लेना चाहते थे लेकिन तकदीर तो कुछ और ही लिखी जा चुकी थी. बाद में यह रोल शम्मी कपूर को मिला जिसने उनके डगमगाते फिल्मी करिअर को एक नई दिशा दे दी और शुरू हुआ उनकी बुलंदियों का सफ़र. शम्मी कपूर ने १९५५ में लोकप्रिय अभिनेत्री गीता बाली से शादी की और इसे वह अपने जीवन का महत्वपूर्ण मुकाम मानते हैं. गौरतलब है कि गीता बाली ने संघर्ष के दौर में उन्हें काफी प्रोत्साहन दिया था. गीता की ज़िंदगी ने वफ़ा नहीं की और उनका वैवाहिक जीवन लंबा नहीं रहा.  १९६६ में गीताबाली का निधन हो गया. बाद में शम्मी ने दूसरा विवाह किया. इसके बाद ही करीब तीन साल बाद शम्मी कपूर के जीवन का एक अन्य महत्वपूर्ण वर्ष १९६१ रहा जब जंगली फिल्म रिलीज हुई. उनकी यह पहली रंगीन फिल्म थी. इस लोकप्रिय फिल्म में उनकी याहू शैली और चाहे मुझे कोई जंगली कहे गाने ने कपूर को रातोंरात स्टार का दर्जा दिला दिया. लोगों में अपना  अलग स्थान बनाने वाले इस गीत के बोल आम लोगों की जुबान पर आ गए थे. इस गीत की लोकप्रियता आज भी बरकरार है. शम्मी ने इसके बाद १९६० के दशक में प्रोफेसर, चाइना टाउन, प्यार किया तो डरना क्या, कश्मीर की कली, ब्लफ मास्टर, जानवर राजकुमार, तीसरी मंजिल, बद्तमीज, एन ईवनिंग इन पेरिस, प्रिंस और ब्रह्मचारी जैसी कई सफल फिल्में भी की और सफलता के नए अध्याय लिखे. सान १९६८ में उन्हें ब्रह्मचारी के लिए श्रेष्ठ अभिनय का फिल्म फेयर पुरस्कार मिला. यह फिल्म बाल मानों के साथ साथ बड़ों के दिलो दिमाग पर भी बहुत ही गहरा असर छोडती थी.  कई फिल्म समीक्षक शम्मी कपूर की सफलता का श्रेय मोहम्मद रफी द्वारा गाए गए गानों और शंकर जयकिशन के संगीत को भी देते हैं. इसमें कोई दो राय नहीं है कि उनकी फिल्मों के जरिए दर्शकों ने तेज धुन पर आधारित गानों को काफी पसंद किया. इसके अलावा शम्मी कपूर की संगीत की समझ उनके लिए काफी मददगार साबित हुई.शम्मी कपूर की फिल्मों का एक अन्य पक्ष नई हीरोइनें थीं। जंगली में सायरा बानो, कश्मीर की कली में शर्मिला टैगोर, प्रोफेसर में कल्पना और दिल देके देखो में आशा पारेख ने उनके साथ अपने फिल्मी जीवन की शुरूआत की थी। बढ़ते मोटापे के कारण शम्मी कपूर को बाद में फिल्मों में मुख्य भूमिकाओं से हटना पड़ा, लेकिन वे चरित्र अभिनेता के रूप में फिल्मों में काम करते रहे. उन्होंने मनोरंजन और बंडलबाज नामक दो फिल्मों का निर्देशन भी किया, लेकिन यह फिल्में नहीं चली. चरित्र अभिनेता के रूप में शम्मी कपूर को १९८२ में विधाता फिल्म के लिए श्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार मिला. प्रेम रोग में उन्होंने अपने अभिनय की एक अमिट छाप छोडी. शम्मी कपूर एक लोकप्रिय अभिनेता ही नहीं हरदिल अजीज इंसान भी थे . वह अक्सर कहा करते थे कि मैंने तो एक प्रिंस की तरह ज़िंदगी को जिया है और इस तरह का सुनहरा अवसर कम ही लोगों को मिला करता है.अब तो मैं  बोनस या क्रिकेट की भाषा में अतिरिक्त समय में खेल रहा हूं. उनकी यह जिंदा दिली ही उन्हें आख़िरी सांस तक पूरी तरह जवान और जोशीला बनाये रख सकी. उनके इस जोश और जिंदा दिली को खुद मौत ने भी महसूस किया होगा और पल भर के लिए ज़िंदगी से भर उठी होगी. --विशाल गुप्ता और अशोक  भारती   

1 comment:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आज 14 - 08 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....


...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
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