Tuesday, August 09, 2011

क्या सूख जायेगी गंगा ?


भारत और गंगा नदी के बारे में एक ऑस्ट्रेलियाई रेडियो कार्यक्रम के प्रस्तुतकर्ता काइल सेंडीलैंड्स की टिप्पणियों से वहां रहने वाले भारतीय नाराज हैं. यह नाराजगी भारत तक पहुंच गयी है.
लोगों का कहना है कि काइल ने हमारी पवित्र नदी गंगा और हिंदुओं का मजाक उड़ाया है. लेकिन थोड़ा ठहर कर सोचने पर यह एहसास होता है कि काइल के वक्तव्य में कुछ सच्चाई भी है. गंगा आज सचमुच नाले में तब्दील हो रही है. उसकी इस हालत के लिए हम खुद भी जिम्मेदार हैं.
गंगा भारत की प्रमुख नदी है. देश की एक चौथाई जल की आपूर्ति गंगा नदी से होती है. गंगा जात-पात, ऊंच-नीच और क्षेत्रवाद का भेदभाव नहीं करती है, सबको एक भाव से मिलती है. इसकी इन्हीं खूबियों की वजह से भारत सरकार ने इसे ‘राष्ट्रीय नदी’ का दर्जा दिया है. हिंदुओं के लिए गंगा का जल ( गंगाजल ) पवित्र माना जाता है. जन्म से लेकर मृत्यु तक प्रत्येक आयोजनों में गंगाजल का प्रयोग होता है. इसके बिना कोई भी शुभ कार्य जैसे-पूजापाठ और शादी-ब्याह ओद संपन्न नहीं होते हैं.
धर्मग्रंथों के अनुसार गंगा मोक्ष दायिनी है. देशवासी गंगा को देवी मानते हैं. गंगा केवल नदी ही नहीं, बल्कि यह शुद्धता का प्रतीक है. इसमें एक डुबकी लगाने पर ही जन्म-जन्म के पापों से छुटकारा मिल जाता है. गंगाजल को सैकड़ों वर्ष तक सहेज कर रखा जा सकता है, इसमें न तो कीड़े लगते हैं और न ही खराब होता है. क्या इसके बाद भी हम गंगाविहीन भारत की कल्पना कर सकते हैं ?
आज गंगा गंभीर संकट से गुजर रही है. इसका अस्तित्व खतरे में है. यदि गंगा में प्रदूषण इसी तरह बढ़ता रहा और सरकार इसे संरक्षित करने का कोई कठोर उपाय नहीं करती है, तो इस बात की काफ़ी संभावना है कि अगले पचास वर्ष बाद गंगा किताबों के पन्नों में सिमटी नजर आये,अर्थात् गंगा पूरी तरह खत्म हो जायेगी.
सिमट रही है गंगा
हाल ही में आयी कुछ रिपोर्ट हमें इस संकट से भलीभांति अवगत कराते हैं. वाराणसी में गंगा नदी घाट से लगभग सात से दस फ़ीट अंदर की ओर खिसक गयी है. वाराणसी का दशाश्वमेध घाट से गंगा नौ फ़ीट अंदर खिसक गयी है. इसी प्रकार राजघाट से सात फ़ीट और अस्सी घाट से पांच फ़ीट अंदर खिसक गयी है. वाराणसी में गंगाजल का स्तर पूर्व से लगभग छह फ़ीट नीचे गिर गया है. लोग गंगा स्नान के लिए उसपार जाने के लिए मजबूर हो रहे हैं. अब शाम की गंगा आरती भी अपनी चमक खोने लगी है. लोगों का कहना है कि गंगा में बढ़ते प्रदूषण की वजह से गंगामाता रूठ कर सिमट रही हैं. वराणसी में गंगा का ऐतिहासिक महत्व है. यहां यह दक्षिण दिशा से उत्तर दिशा की ओर बहती है. एक मान्यता यह भी है कि गंगा ने भगवान शिव से वादा किया था कि वह वराणसी छोड़ कर नहीं जायेंगी, लेकिन आज गंगा के सिमटने से लोगों में भय फ़ैल गया है कि कहीं कुछ गलत हो रहा है.
इसीलिए गंगा को मनाने के लिए भक्त नियमित रूप से भजन, कीर्तन और पूजापाठ और उपवास कर रहे हैं. गंगा महासभा के आचार्य जितेंद्र के अनुसार गंगा की स्थिति पर स्थानीय प्रशासन गंगा बिल्कुल सुस्त है. वर्ष 1971 में वाराणसी में गंगा की स्थिति काफ़ी अच्छी थी. इसकी धारा में काफ़ी वेग था. लेकिन आज इसका वेग खत्म होने लगा है. सभी घाट कूड़ेदान में तब्दील हो गये हैं. शहर के सभी सीवरों का गंगा में अनवरत प्रवाह बना हुआ हैं. गंगा में प्लास्टिक के थैले और पुराने कपड़ों का अंबार लगा है. यही वजह है कि गंगा की स्वच्छता तो खत्म तो ही गयी है, बल्कि गंगाजल पीने योग्य तक नहीं रहा है.
कई वजह हैं प्रदूषण के
गंगा को इस स्थिति में पहुंचने के कई कारण हैं जैसे-शहरों के सीवरों का गंदा पानी, उद्योगों से निकला रासायनिक कचरा, डैम और बैराज का निर्माण ओद. डैम से गंगा का प्रवाह प्रभावित होता है. भारत में गंगा का भविष्य कुछ हद तक चीन में निर्मित विभिन्न डैम परियोजनाओं पर भी निर्भर करेगा. चीन तिब्बत से निकलने वाली और दक्षिण ऐशया की ओर बहने वाली अधिकतर नदियों की धारा बदलने की योजना पर काम कर रहा है. यह परियोजना वर्ष 2014 तक पूरी हो जायेगी. हालांकि गंगा का उद्गम गंगोत्री है, जो भारतीय हिमालय में स्थित है. लेकिन नेपाल की प्रमुख नदी जैसे करनाली या प्रमुख सहायक नदियां जैसे-गंडक और कोशी का उद्गम स्थल तिब्बत है.
ये गंगा की प्रमुख सहायक नदियां हैं. यदि इनमें जल की कमी होती है, तो गंगा भी प्रभावित होगी. गंगा पर खतरा चीन की परियोजनाओं से ज्यादा देशी गतिविधियों से है. हमारी जीवनशैली ही गंगा के लिए ज्यादा खतरनाक साबित हो रही है. आलम यह है कि गंगा आज पूरी तरह प्रदूषित हो चुकी है. उद्योगों से निकलने वाले रासायनिक कचरे और सीवरों से निकले गंदे जल गंगा में अनवरत प्रवाहित हो रहे हैं. इन्हें साफ़ करने का कोई प्रावधान नहीं है. गंगा के प्रदूषण से जैव विविधता को खतरा है. कई जलीय जीव और पर्यावरणीय पदार्थो का अस्तित्व ही समाप्ति के कगार पर है.
गंगा सफ़ाई अभियान
गंगा की सफ़ाई के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 1985 में पंद्रह वर्षीय गंगा एक्शन प्लान को वराणसी में लांच किया था. लक्ष्य था,  वर्ष 2000 तक गंगा को पूरी तरह प्रदूषण मुक्त करना. सरकारी आंकड़ों के अनुसार गंगा एक्शन प्लान के तहत  36 हजार करोड़ रुपये खर्च किये जा चुके हैं. आज एक्शन प्लान के लांच हुए 25 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन गंगा को प्रदूषण की समस्या से छुटकारा नहीं मिला है. विशेषज्ञों का कहना है कि सीवरों से निकलने वाला गंदा पानी गंगा को सबसे ज्यादा प्रदूषित करते हैं. हालांकि सभी राज्य सरकारों के पास सीवर के गंदे जल का उपचार करने के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पर्यावरण विभाग, हेल्थ विभाग हैं, लेकिन फ़िर भी कोई सफ़लता नहीं मिली है.
भारत सरकार ने वर्ष 2010 में एक बार फ़िर गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाने की योजना बनायी है. इसके लिए केंद्र सरकार को विश्व बैंक से एक बिलियन डॉलर का कर्ज भी प्राप्त हुआ है. योजना के कार्यान्वयन का जिम्मा 2009 में बनी नेशनल गंगा रीवर बेसीन अथॉरिटी ( एनजीआरबीए ) को सौंपा गया है.एनजीआरबीए का लक्ष्य है कि वह 2020 तक गंगा को प्रदूषण मुक्त कर संरक्षण प्रदान करेगा. मिशन क्लीन गंगा प्रोग्राम के पहले चरण में समग्रतावादी पद्धति अपनाया गया है, जिसमें गंगा के बेसिन को स्वच्छ बनाया जायेगा.
फ़िर मिशन शहरों पर केंद्रित होगा, यहां घरों और उद्योगों से निकलने वाले गंदे पानी और कचरे को साफ़ करने पर ध्यान दिया जायेगा. इसके बाद पांच राज्यों उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में सीवरों के गंदे पानी की निगरानी की जायेगी. क्योंकि कुल प्रदूषण में 35 फ़ीसदी हिस्सेदारी इन्हीं राज्यों की होती है. इसके अलावा गंगा संरक्षण के लिए गंगा नॉलेज सेंटर का गठन किया गया है. लेकिन केवल विश्व बैंक के सहारे रहना ठीक नहीं है, सरकार को भी इसमें रुचि दिखानी होगी, इसके लिए बड़े पैमाने पर सहायता प्रदान करनी होगी.
इच्छाशक्ति की जरूरत
ब्रिटेन के लंदन में बहने वाली थॉमस नदी वर्ष 1950 तक पूरी तरह सीवर में तब्दील हो गयी थी. इसमें ऑक्सीजन की मात्रा समाप्त हो गयी थी. जलीय जीवों के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा था. कई जीव तो खत्म भी हो गये थे. जब पानी सिर से ऊपर बहने लगा तो ब्रिटिश सरकार ने वर्ष 1964 में नदी सफ़ाई अभियान चलाया. इस अभियान को सफ़लता पूर्वक 1970 के दशक के मध्य तक पूरा कर लिया गया. नदी एक बार फ़िर पहले जैसा हो गयी और जल स्वच्छ हो गयी.
इस प्रकार यदि थॉमस नदी को प्रदूषण मुक्त किया जा सकता है, तो कोई कारण नहीं कि गंगा को स्वच्छ नहीं बनाया जा सके. अभी गंगा सफ़ाई अभियान पहले चरण में है. इसमें कोई शक नहीं है कि मिशन की सफ़लता देश भर के विभिन्न राज्यों में गंगा के आसपास रहने वाले लोगों की जागरूकता पर निर्भर करेगी. उनका सहयोग मिशन को समय रहते सफ़ल बना सकती है. बस! जरूरत इस बात की है कि सैकड़ों टन कचरे को गंगा में प्रवाहित न किया जाये. साथ ही सभी प्रकार के जरूरी साजो-सामान की उपलब्धता भी सुनिश्चत करनी होगी. तभी गंगा को पहले जैसा स्वच्छ और निर्मल बनाया जा सकेगा.
* हरिद्वार में गंगा नदी से पत्थरों को निर्माण कार्य के लिए अवैध रूप से निकाला जा   रहा है, जिससे गंगा के तटबंधों को नुकसान हो रहा है.
* देवप्रयाग में गंगोत्री ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे गर्मी के दिनों में गंगा का प्रवाह बढ़ जाता है.
* पर्यावरण को हो रही क्षति का आकलन किये बिना उत्तरकाशी, अलखनंदा और भागीरथी नदी पर अनियोजित डैम के निर्माण से गंगा का प्राकृतिक प्रवाह प्रभावित हो रहा है. इससे पानी में ऑक्सीजन की कमी हो गयी है.
* कानपुर में गैर-शोधित कचरा गंगा को काफ़ी नुकसान पहुंचा रहे हैं.
* कोलकता में 26 सीवरों का पानी बिना शोधित हुए गंगा में गिरता है. वाराणसी और कोलकता में गंगा नहाने योग्य नहीं रही है. वाराणसी में अधजले मृत शरीरों को गंगा में प्रवाहित कर दिया जाता है. प्रत्येक वर्ष लगभग 35 हजार ऐसे मृत शरीर  गंगा में प्रवाहित किये जा रहे हैं. 
* बिहार के भागलपुर में सिंचाई बैराज और प्रदूषण ने गंगा के इको सिस्टम प्रभावित कर दिया है.आज डॉल्फ़िन खत्म होने के कगार पर हैं. (प्रभात खबर से  साभार}  

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