६५ वर्षों का इतिहास बन गया पानी,
संविधान को तज ,सबने की मनमानी!
रो रहा आज गाँधी ,सुभाष,टैगोर,तिलक,
कहाँ गये अब सब नेता जो देश समाज
पर मिट कर कहलाते थे सेवक-बलिदानी !
अपना घर द्वार भारत माता के चरणो मे
रख कर बनते थे वीर सपूत,स्वाभिमानी !
उन्हे देख डरते थे जनरल डायर कायर,
अँगरेजो को याद आती थी अपनी नानी !
अपनो ने,अपनो की खातिर प्रजातंत्र की,
सुफ़ेद चादर ,मैली करने की जब ठानी !
तब भ्रष्टाचार,मिटाने की अन्ना ने की,
शुरूआत एक नई बिगुल बजाने की !
स्वतंत्रता का अर्थ नही समझे अब तक,
क्या मतलब है ऐसा दिवस मनाने की ?
कर्तव्यों को दर किनार कर क्या सूझी
सबको अपना घर भरने और भराने की ?
देर न हो जल्दी जागो,सबको त्यागो,
मँहगी कहीं नही पड जाये, उन्की कुरबानी !
बोधिसत्व कतूरिया
२०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा,
आगरा २८२००७
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