Wednesday, April 27, 2011

औरत की व्यथा // अलका सैनी



परमात्मा ने इस सृष्टि में औरत को भौगौलिक और प्राकृतिक तौर पर आदमी से इस कदर भिन्न बनाया है कि वह समाज में पुरुषों के बीच आकर्षण का केंद्र बनी रहती है . उसकी काया की बनावट के चलते ही वह सुन्दरता की मूरत कहलाई जाती है . इसी भिन्नता के कारण औरत को कदम- कदम पर कठिनाइयों  का सामना करना पढ़ता है . क्यों औरत को एक इंसान की तरह नहीं लिया जाता ? क्यों वह बार- बार पुरुष की शारीरिक भूख का शिकार होती है ? आए दिन जगह- जगह बलात्कार की घटनाएं सुनने में आती है . क्या किसी ने कभी सुना कि एक औरत ने एक आदमी का बलात्कार कर दिया हो ? 
अलका सैनी 
यदि एक औरत अपने जीवन में समाज और देश के लिए कुछ करना चाहती है तो क्यों उसे समान दर्जा नहीं मिलता ? कहने के लिए तो आज के युग में बहुत कुछ बदल गया है परन्तु इस पुरुष प्रधान समाज में औरत अपनी प्राकृतिकऔर शारीरिक  भिन्नता के कारण बरसों से बलि चढ़ती आई है और चढ़ती रहेगी .
यदि एक औरत हिम्मत करके घर से बाहर निकल कर सामाजिक या राजनैतिक क्षेत्र में कुछ करना चाहती है तो क्यों उसे इज्जत  की नजर से नहीं देखा जाता ? ऐसे असंख्य सवाल मेरी दृष्टि में हर औरत के मन पटल में उठते होंगे . अगर वह औरत कुछ कार्य करने के लिए आगे आती है तो पुरुष वर्ग क्यों उससे उसके औरत होने की कीमत वसूलना चाहता है? क्यों उसकी डगर इतनी मुश्किल और काँटों भरी बना दी जाती है कि वह थक- हार कर, निराश होकर घर बैठ जाए और चूल्हे चौंके तक ही सीमित रहे . क्यों उसे अपनी सुन्दरता का मौल चुकाना पढ़ता है ?जैसे कि सुन्दर होना उसके लिए वरदान नहीं  बल्कि अभिशाप बन गया हो. हमारे देश में आजादी के इतने बरसों बाद भी कार्यालयों में जहाँ काफी औरतें घर से बाहर निकल कर पढ़- लिखकर समान रूप से कार्य करने लगी हैं , वहाँ अभी भी राजनैतिक क्षेत्र में कितने प्रतिशत  औरतें सामने आकर देश और समाज के लिए कुछ कर पा रही हैं . और किसे पता है कि जो औरतें आज किसी मुकाम पर पहुँच गई है उन्हें कितनी दिक्कतें झेलनी पढ़ी हो और अपने औरत होने का खामियाजा ना भुगतना पड़ा हो .
अलका सैनी 
क्यों पुरुष वर्ग इतना स्वार्थी है और औरत की देश के शासन में बराबर की भागीदारी नहीं चाहता ? मेरा मानना है कि यदि औरत के हाथों में शहर , कस्बे, प्रांत की भागडोर बराबर रूप से  थमा दी जाए तो शायद हमारे देश में जो असख्य बुराइयां जैसे कि भ्रष्टाचार , नशा खोरी , गरीबी आदि विकराल रूप धारण कर चुकी हैं वो ख़त्म नहीं तो काफी कम अवश्य हो जाएगी . 
औरत संवेदनशील होने के साथ- साथ किसी भी विषम परिस्थिति को समझने की बेहतर परख रखती है क्योंकि वह इस सृष्टि की जननी है . हमारे देश का आज जो पतन देखने को मिल रहा है और उसके बावजूद भी समाज में बदलाव नहीं आ रहा है . क्या यही सच्चाई है पुरुष प्रधान समाज की ? क्या पुरुष वास्तव में सच्चे मन से चाहते  ही नहीं कि औरत घर की चार दीवारी से बाहर निकल कर शासन में हिस्सेदार बने ? अव्वल तो ऐसी कठिन डगर पर चलना और कोई मुकाम हासिल करना बहुत मुश्किल है परन्तु  अगर कुछ प्रतिशत पढ़ी- लिखी महिलाएँ आगे आकर देश में ,समाज में पनप रही कुरीतियों को बर्दाश्त ना कर पाने के कारण कुछ करना चाहती है तो कदम- कदम पर पुरुषों के क़दमों तले क्यों रोंदी जाती हैं ?  
--अलका सैन, 
 ट्रिब्यून कलोनी, जीरकपुर (पंजाब) 

4 comments:

केवल राम said...

आपके सवाल बाजिव हैं लेकिन इनका हल तो ...क्या कहूँ .....यह कुछ मौकापरस्त लोगों की सोच का परिणाम है .....वर्ना यहाँ तो नारी की पूजा की बातें भी की गयी हैं और उसे लक्ष्मी की तरह पूजा भी जाता है लेकिन वर्तमान समाज में मैंने कहीं भी ऐसा नहीं देखा है ..की उसे पूजा जाता है ........आपका कहना सही है ...!

केवल राम said...

आपकी पोस्टों को पढ़कर सोचने पर विवश हो गया मैं बहुत कुछ सोचने के लिए ......आशा है अपने इस विचारोतेजक लेखन को बनाये रखेंगे ....आपका आभार

daanish said...

आलेख ...
मननीय है .

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

पहले की बात

यत्र नार्यस्‍तु पूज्‍यन्‍ते
रमन्‍ते तत्र देवता

अब की बात

सदियों से जो त्रस्त रहा दमनीय रहा
दुनिया में अब वो ही सबसे ऊपर है