Friday, December 31, 2010

क्या बनेगा इस मीडिया का

पूंजी का दबाव बढ़ा तो बढ़ता ही चला गया. इस ने लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ मीडिया को भी प्रभावित किया. जिस की पहले से ही कई मिलें चलती थीं उसने एक आध यूनिट मीडिया का भी खोल लिया. किसी ने चैनल तो किसी ने अखबार. कारोबार का कारोबार और हथियार का हथियार. बिलकुल उसी तरह जैसे बिस्कुट, चाकलेट या साबुन बनाने की फैक्ट्री खोली जाती है. पत्रकारिता की डिग्री लेकर नए जोशोखरोश के साथ निकलने वाले युवा पत्रकार भी इन लोगों के ही काम आने थे और आये भी. इनके दम पर वे लोग भी पत्रकारिता के आकाश पर चमकाने लगे  जिन्हें इस क्षेत्र का क ख ग भी नहीं आता था. परिणाम देश ने भी भुगता, जनता ने भी भुगता और स्वयं अपनी जान जोखिम में डाल कर काम करने वाले पत्रकार भाईचारे ने भी भुगता.वे लोग भी इन अखबारों और चैनलों में न्यूज़ हैड और चैनल हैड जैसे प्रमुख पदों पर पहुंचे जिन्हें इस की जरा भी समझ नहीं थी. विज्ञापन लाने वाले और स्कियोरटी जमा कराने वाले लोग संवाददाता बनने लगे. काबिल लोग बेकार कर दिए गए. यह आग कुछ और फैली तो मालिकों तक भी पहुंचने लगी. उन पर संकट आया तो ये नौसीखिए लोग उनके काम नहीं आ एके. इसकी ताज़ा मिसाल मिली है देश की राजधानी दिल्ली में जिसे बहुत ही सलीके से सब के सामने रखा है विस्फोट ने. पढ़िए आप भी इस दिलचस्प पोस्ट को. --रेक्टर कथूरिया 
   गिरफ्तार हो गये मिस्टर चेयरमैन, चैन की बंसी बजा रहे हैं श्रीमान संपादक

समय के खेल भी निराले होते हैं. छोटे मोटे कारोबार से बिल्डर हो चले विजय दीक्षित ने अपने सखा संतोष भारतीय के साथ मिलकर 2005 में चैनल लांच करने की योजना इसलिए बनाई थी कि उनके धंधे को मीडिया का प्रोटेक्शन मिल सके. लेकिन आज पांच साल बाद वही विजय दीक्षित धोखाधड़ी के एक पांच साल पुराने मामले में गिरफ्तार हो जाते हैं लेकिन उनका अपना ही अनाम सा चैनल और गुमनाम सा संपादक उनके लिए लड़ने की बजाय आफिस में बैठकर चैन की बंसी बजा रहे हैं.
वैसे विजय दीक्षित जैसे व्यापारी जिस दिन से मीडिया व्यापार में उतरे हैं उनकी करतूतों का ही परिणाम है कि उनके संपादक तक को उनकी गिरफ्तारी का असर नहीं होता है. बिल्कुल वैसे ही जैसे विजय दीक्षित की ही पत्रिका सीनियर इंडिया में छपे एक कार्टून के विवाद में आलोक तोमर को जेल हो गयी और विजय दीक्षित को कोई फर्क नहीं पड़ा था. अब खुद विजय दीक्षित गिरफ्तार हैं, जेल में हैं लेकिन उनके संपादकीय प्रभारी राजीव शर्मा को शायद ही कोई फर्क पड़ता हो. हो सकता है राजीव शर्मा का अपना संपादकीय फर्ज आड़े आ रहा हो लेकिन उनकी अपने ही चैनल में इस बात को लेकर असंतोष है कि चैनल ही अपने मालिक के लिए नहीं लड़ रहा है.
विजय दीक्षित की गिरफ्तारी एक धोखाधड़ी के मामले में हुई है. धोखाधड़ी की शिकायत सीमा स्वरूप ने किया है. उनका आरोप है कि विजय दीक्षित की कंपनी में उन्होने पचास लाख का निवेश किया था और कंपनी ने उन्हें आश्वासन दिया था कि उनका निवेश सीनियर माल गुड़गांव में किया गया है. उनके निवेश के बदले में उन्हें निश्चित रिटर्न मिलेगा. ऐसा नहीं हुआ तो सीमा ने पुलिस में शिकायत दर्ज करवा दी जिस पर कार्रवाई करते हुए दिल्ली पुलिस ने दो दिन पहले विजय दीक्षित को गिरफ्तार कर लिया. लेकिन यह तो सार्वजनिक हुई कहानी है.
असल में विजय दीक्षित दिल्ली पुलिस कमिश्नर बीके गुप्ता के निशाने पर हैं. बीके गुप्ता के बेटे ने 2005 में एक कार एक्सीडेन्ट कर दिया था. कार एक्सीडेन्ट भी उस सीरीफोर्ट इलाके में हुआ था जहां उन दिनों एस-1 चैनल का दफ्तर हुआ करता था. उस वक्त चैनल ने बड़ी बहादुरी दिखाते हुए उसे बड़ा मुद्दा बना दिया था. खैर उस वक्त तो बात आयी गयी हो लेकिन जैसे ही बी के गुप्ता दिल्ली के पुलिस कमिश्नर बने उन्होंने दीक्षित के खिलाफ मामलों की फाइलें खुलवा दी. विजय दीक्षित कोई पाक साफ आदमी तो हैं नहीं. आठ से अधिक मामले उनके खिलाफ दर्ज हैं. इसलिए पुलिस ने अपने हिसाब से उनके खिलाफ एक्शन ले लिया. लेकिन मजा देखिए कि जिस बीके गुप्ता के बेटे के खिलाफ चैनल ने पत्रकारिता की बहादुरी दिखाई थी, आज उनका अपना ही मालिक गिरफ्तार हो गया तो चैनलवाले चुप बैठ गये हैं. इसे लेकर चैनल के अंदर ही संपादक श्री के खिलाफ असंतोष है. देखना यह होगा कि मिस्टर चेयरमैन जेल से छूटकर आते हैं तो संपादक महोदय के खिलाफ क्या एक्शन लेते हैं.
            चलते चलते एक अच्छी खबर भी. पेड न्यूज़ को लेकर मीडिया जाग चुका है. देर से ही सही पर इसका विरोध तेज़ी से बढ़ रहा है. भोपाल में 2 जनवरी को इस मुद्दे पर  पत्रकार एकत्र हो रहे हैं.  इस की खबर भी विस्फोट ने बहुत ही अहमीयत से प्रकाशित की है. देखिये एक झलकपेड न्यूज के खिलाफ शुरू हुई बहस अब दिल्ली के दायरे के बाहर निकल रही है. भोपाल में वर्किंग यूनियन आफ जर्नलिस्ट के बैनर तले आगामी 2 जनवरी को देशभर के पत्रकारों का एक जमावड़ा होने जा रहे हैं जिसमें पेड न्यूज पर पत्रकार अपनी परेशानियों को बयान करेंगे.

वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया है कि इस परिचर्चा में देश के 18 राज्यों से प्रतिनिधियों को बुलाया गया है. न केवल देश के अठारह राज्यों से पत्रकारों को पेड न्यूज पर चिंता व्यक्त करने के लिए बुलाया गया है बल्कि पड़ोसी मुल्क श्रीलंका के प्रतिनिधि भी इस परिचर्चा में हिस्सा लेंगे.
परिचर्चा का उद्घाटन स्थानीय शहीद भवन में दोपहर 12.15 बजे बालाभास्कर एस करेंगे. इस अवसर पर माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति बीके कुठियाला और नई दुनिया के स्थानीय संपादक ओम मेहता विशिष्ट अतिथि के बतौर उपस्थित रहेंगे. वर्किंग यूनियन आफ जर्नलिस्ट के प्रांतीय अध्यक्ष राधा वल्लभ ने सभी स्थानीय पत्रकारों से इस परिचर्चा में शामिल होने की अपील की है.

तोड़ न पाओगे इस बार मेरे हौंसलो की उड़ान

डाक्टर विनायक सेन को सुनाई गयी सज़ा को लेकर रोष का सिलसिला जारी है. 30 दिसम्बर 2010 को भोपाल में भी डॉ. बिनायक सेन के समर्थन में एक बैठक की गयी |उस बैठक में बाद यह तय किया गया कि 1 जनवरी 2011 को यादगारे शाहजहानी पार्क में दोपहर 12 बजे से एक सभा का आयोजन किया जायेगा सभा के बाद एक रैली के रूप में सभी सहयोगी नीलम पार्क तक जायेंगे | इस मुद्दे को और आगे चर्चा करने के लिए रैली के बाद नीलम पार्क में एक बैठक भी आयोजित की जाएगी जिसमे इस मुद्दों के विषय में आगे के कार्यक्रम एवं रणनीति तय की जाएगी |
 शिक्षा अधिकार मंच, भोपाल सचिव अनिल सद्गोपाल ने इस सम्बन्ध में जारी एक अपील में कहा है कि उक्त रैली व धरने में बड़ी संख्या में हिस्सा लेकर सरकार को बता दें कि हम भारत के लोकतंत्र को कितना प्यार करते हैं।
  • इस बैठक में एक परचा बनाने का तय हुआ है जिसकी जिम्मेदारी राकेश दीवान/रोली /रिनचीन ने ली है | 
  • जब्बार भाई, रोली और रिनचिन ने  तख्तिया बनाने की जिम्मेदारी ली है 
  • बैनर और शाहजहानी पार्क की व्यवस्था की जिम्मेदारी जब्बार भाई ने ली है 
  • आदेश के सम्बन्ध में जो समीक्षा जो सुधा भरद्वाज, इलिना और कविता ने तैयार की है उसके हिंदी में अनुवाद की जिम्मेदारी एकलव्य के साथियों ने ली है |
आप अनुमान लगा सकते हैं कि शीत लहर के इस मौसम में लोग कितना बढ़ चढ़ कर आगे आ रहे हैं.इन तैयारिओं के सिलसिले में हुई इस विशेष बैठक में कलम के सिपाही भी पीछे नहीं हैं. प्रगतिशील लेखक संघ के शैलेन्‍द्र शैली, गैस  पीड़ितों के संगठन  भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के अब्‍दुल जब्‍बार,  नागरिक अधिकारों कि जानीमानी संस्था पीयूसीएल के दीपक भट्ट, मूल अधिकारों में आते भोजन का अधिकार अभियान की रोली शिवहरे, इसी तरह आइविड की नीलम एवं नताशा , महिला शक्ति के उत्थान में लगी संस्था संगिनी की प्रार्थना मिश्रा, एक अन्य महिला संगठन मप्र महिला मंच की रिनचिन , छात्र शक्ति के प्रतीक अखिल भारतीय क्रांतिकारी विद्यार्थी संगठन, क्‍म्‍युनिस्‍ट पार्टी, इसके साथ ही पत्रकार लज्‍जा शंकर हरदेनिया, राकेश दीवान, एक और संगठन एकलव्य के अंजलि एवं कार्तिक हाईकोर्ट के वकील राघवेन्‍द्र आदि। भी इस अभ्याँ में पूरी तरह सरगर्म हैं.

अंत में रोली की एक कविता  
 
 तुम कितनी ही कोशिश कर लो, 
तोड़ न पाओगे इस बार,
मेरे हौंसलो की उड़ान,
खोने न दूंगी खुद को
अपने काम को नया काम
 नया आयाम दूंगी
 और दूंगी एक नई पहचान
 अपनी आत्मा को
 जो मुझसे शुरू होकर
 ख़त्म होगी मुझी में 
आपको यह कविता कैसी लगी अवश्य बताएं.आपके विचारों की इंतज़ार में.--रेक्टर कथूरिया 

Tuesday, December 28, 2010

पूरी दुनिया में आवाजें उठ रही है डॉ. विनायक सेन के समर्थन में


डाक्टर विनायक सेन, नारायण सान्याल और पीयूष गुहा को लेकर विचार चर्चा लगातार गरमा रही है. श्री राम तिवारी ने अपने ब्लॉग इन्कलाब ज़िंदाबाद में लिखा  है की विगत सप्ताह छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की एक अदालत ने जिन तीन लोगों को नक्सलवादियों का समर्थक होने के संदेह  मात्र के लिए आजीवन कारावास जैसी सजा सुनाई उसकी अनुगूंज बहुत दूर तक बहुत लम्बे समय तक सुनाई देती रहेगी .डॉ विनायक सेन ,नारायण सान्याल और पीयूष गुहा कितने बड़े खूंखार हैं ?.उनसे मानवता और देश को कितना खतरा है ? इस फैसले के बाद  देश की जनता ने जाना और माना की माननीय न्याय मंदिर के शिखर पर विराजित स्वर्ण कलश की चमक इस फैसले से कितनी फीकी हुई है या होने वाली है  इस एतिहासिक न्यायिक फैसले पर जारी  विमर्श के केंद्र में वस्तुत; व्यक्ति नहीं विचारधारा ही है. खास तौर से देश का मध्यम वर्ग और आम तौर पर सभी सुशिक्षित और राष्ट्र निष्ठ भारतीय इस कथन को सगर्व पेश करते हैं की 'हमारा प्रजातंत्र  चीन की साम्यवादी तानाशाही से बेहतर है ,रूसी अमेरिकी और ब्रिटेन के लोकतंत्र में भी अभिव्यक्ति की इतनी आजादी नहीं जितनी की हमारी  महान भारतीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था में है '
श्री राम तिवारी
दुनिया के अधिकांश  देशों और विभिन्न व्यवस्थाओं में दंड नीति की अपनी अपनी खासियतें हैं .किन्तु भारत में उदात्त न्याय दर्शन और मीमांसाएँ हैं -अपराधी भले ही छूट जाये ,किन्तु निर्दोष को सजा नहीं मिलना चाहिए .
बेशक यह सही भी है किन्तु यहाँ बहुत पुरानी पोराणिक आख्यायिका है की "एक हांड़ी दो पेट बनाये ,सुगर नार श्रवण की 'मात्रु -पित्र परम भक्त श्रवण कुमार की पत्नी ने ऐसी हांड़ी वना रखी थी -जिसके दो भाग अंदर ही अंदर थे उसमें वो एक ही समय में एक हिस्से में खीर पकाती थी और दूसरे हिस्से में पतला दलिया,खीर वो अपने पति -श्रवणकुमार को खिलाती  और दलिया अपने सास -ससुर को ,अंधे सास-ससुर यही समझते की जो हम खा रहे हैं वही बेटा श्रवण खा रहा है .भारतीय लोकतंत्र रुपी हांड़ी में भी दो पेट हैं .एक सबल और प्रभुत्वशाली  वर्ग के लिए दूसरा निर्धन अकिंचन असहाय वर्ग के लिए .सारी दुनिया समझती है की हमारे लोकतंत्र की हांड़ी में जो कुछ भी पक  रहा है वो वही है जो वह देख सुन या महसूस कर रहा है .जबकि इण्डिया शाइनिंग का नारा देते वक्त 2008 में यह और भी स्पष्ट हो गया था की उन्नत वैज्ञानिक  तरक्की का लाभ देश की अधिसंख्य जनता तक नहीं पहुँच पाया है और अटलजी को -एन डी ये को अपने विश्वश्त अलायन्स पार्टनर चन्द्र बाबु नायडू जैसों के साथ पराजय का मुख देखना
पड़ा था .तब पता चला की इंडिया और भारत में खाई चोडी होती जा रही है .यह विराट दूरी  सिर्फ आर्थिक या जीवन की गुजर-बसर  तक ही नहीं अपितु सामजिक ,आर्थिक .सांस्कृतिक और न्यायिक क्षेत्रों तक पसरी हुई है .
  देश में आर्थिक सुधारों और लाइसेंस राज के आविर्भाव उपरान्त विगत 20 सालों में इतनी तरक्की हुई की पहले 5 पूंजीपति अर्थात मिलियेनार्स थे अब 54 मिलिय्र्नार्स हो गए हैं .तरक्की हुई की नहीं ?पहले 1990 में गरीबी की रेखा से नीचे 19 करोड़ निर्धन जन थे अब 33 करोड़ हो चुके हैं -तरक्की तो हुई की नहीं ?
यही बात शिक्षा ,स्वास्थ्य ,जीवन स्तर के सन्दर्भ में मूल्यांकित की जाये तो स्थिति और भी भयावह नजर आएगी .भारतीय प्रजातांत्रिक -
न्याय व्यस्था  पर प्रश्न चिन्ह सिर्फ विनायक सेन के सन्दर्भ में या रामजन्म भूमि बाबरी - मस्जिद के सन्दर्भ में
नहीं उठा बल्कि वह आजादी के फ़ौरन बाद से लगातार उठता रहा है .वह तब भी उठा जब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने अलाहाबाद  उच्च न्यायलय में अपनी चुनावी हार को फौरन सर्वोच्च न्यायलय के मार्फ़त जीत में बदल दिया .सवाल तब भी उठा जब शाहबानो  प्रकरण में कानून बदला गया .सवाल तब भी उठा जब लाल देंगा जैसे देशद्रोही से न केवल बात की गई बल्कि उसे मुख्यमंत्री तक बनवा दिया .सवाल अब भी कायम है की हजारों डाकुओं को आत्म समर्पण के बहाने उनके अनगिनत पापों को इस देश के कानून ने और व्यवस्था ने माफ़ किया .एक बार नहीं अनेक बार ,अनेक प्रकरणों और संदर्भो में ऐसा पाया गया की शक्तिशाली  वर्ग -पप्पू यादवों .तस्लीम उद्दीनों ,बुखारियों ,ठाकरे और गुजरात के नरसंहार कर्ताओं की कानून मदद करता पाया गया .

वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण जी ने जिन एक दर्जन माननीयों  के भ्रष्टाचार में लिप्त होने के सबूत सर्वोच्च न्यायलय को दिए हैं उनके लिए अलग दंड विधान है याने कोई कुछ नहीं बोलेगा .यदि बोलेगा तो जुबान काट दी जायेगी .शूली पर लटका दिया जायेगा .इन शक्तिशाली प्रभुत्व   वर्ग के खिलाफ बोलना याने विनायक सेन होना है ,विनायक सेन एक आध तो है नहीं  की उसे जेल भेज दोगे तो ये अंधेर नगरी चोपट राज चलता रहेगा .विनायक सेन पीयूष गुहा और नारायण सान्याल तो भारतीय आत्मा का चीत्कार हैं ,आदरणीयों ,मान नीयो .इतना जुल्म न करो की आसमान रो पड़े और जनता गाने लगे की ये लड़ाई है दिए की और तूफ़ान की ...इस पूरी पोस्ट को आप यहां क्लिक करके भी पढ़ सकते हैं .
डॉ. विनायक सेन 
इसी मुद्दे पर जानी मानी वैब पत्रिका प्रवक्ता ने बाकायदा एक विचार चर्चा शुरू की है. पत्र ने परिचर्चा के शीर्षक में ही पूछा है क्या डॉ. विनायक सेन देशद्रोही हैं? इस परिचर्चा को शुरू करते हुए प्रवक्ता ने लिखा है,"डॉ. विनायक सेन पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बन गए हैं। गौरतलब है कि पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) नेता और मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. सेन को रायपुर जिला एवं सेशन न्‍यायालय के न्‍यायाधीश बीपी वर्मा ने 24 दिसंबर को देशद्रोह और साजिश रचने का दोषी करार दिया। न्‍यायालय ने डा. सेन के साथ ही प्रतिबंधित संगठन भाकपा (माओवादी) पोलित ब्‍यूरो के सदस्‍य नारायण सान्याल व पीजूष गुहा को उम्रकैद की सजा सुनाई। तीनों पर यह आरोप सिद्ध हुआ कि उन्होंने राज्य के खिलाफ षड्यंत्र किया था। आईपीसी की धारा 124 ए के तहत राज्य के खिलाफ षड्यंत्र करने का आरोप लगा। छत्तीसगढ़ जन सुरक्षा अधिनियम की धारा 1, 2, 3 व 5 के तहत डा. सेन को दोषी करार दिया गया। राज्य के खिलाफ गतिविधियों के तहत धारा 39-2 के तहत भी उन्हें दोषी करार दिया गया।" 
प्रवक्ता ने डाक्टर विनायक सेन के विरोध का पक्ष भी उजागर किया. पत्र ने लिखा  है:
डॉ. विनायक सेन के विरोध में
• न्‍यायाधीश बीपी वर्मा ने डॉ. सेन को देश के खिलाफ युद्ध छे़डने, लोगों को भ़डकाने और प्रतिबंधित माओवादी संगठन के लिए काम करने को दोषी करार दिया। उन्‍होंने अपने फैसले में लिखा कि आरोपी नक्सलियों के शहरी नेटवर्क को बढ़ावा देकर शहरों में हिंसक वारदात करवाना चाहते थे।
• फैसले में इस बात का उल्लेख किया गया है कि नारायण सान्याल नक्सली माओवादियों की सबसे बड़ी संस्था पोलित ब्यूरो का सदस्य है, वह बिनायक सेन व पीजूष गुहा के माध्यम से जेल में रहकर ही शहरी क्षेत्रों में हिंसक वारदातों को अंजाम देने की कोशिश में था। पुलिस को जब यह पता चला तो सबसे पहले शहर में बाहर से आने वाले संदिग्ध व्यक्तियों के बारे में होटल, लाज, धर्मशाला व ढाबों पर दबिश दी गई। दबिश के कारण ही पीयूष गुहा पुलिस के हत्थे चढ़ा।
• यह भी पाया गया है कि विनायक सेन नारायण सान्याल के पत्र पीयूष गुहा को गोपनीय कोड के माध्यम से प्रेषित किया करता था। तीनों अभियुक्तों की मंशा नक्सलियों के खिलाफ चल रहे आंदोलन सलवा जुड़ूम को समाप्त करने की भी थी।
डा. बिनायक सेन के मकान की तलाशी में नारायण सान्याल का लिखा पत्र, सेंट्रल जेल बिलासपुर में बंद नक्सली कमांडर मदन बरकड़े का डा. सेन को कामरेड के नाम से संबोधित किया पत्र व 8 सीडी जिसमें सलवा जुडूम की क्लीपिंग व नारायणपुर के गांवों में डा. सेन के द्वारा गांव वासियों व महिलाओं के मध्य बातचीत के अंश मिले हैं।
डॉ. सेन ने 17 महीनों के दौरान माओवादी नेता सान्याल से 33 मुलाकातें कीं।
इसके बाद दूसरा पक्ष भी सब के सामने रखा. ज़रा एक नज़र आप भी देखिये:

डॉ. विनायक सेन के पक्ष में

• डॉक्टर विनायक सेन ने आदिवासी बहुल इलाके छत्तीसगढ़ के लोगों के बीच काम करने की शुरुआत स्वर्गीय शंकर गुहा नियोगी के साथ की थी। पेशे से बाल चिकित्सक सेन ने वहां मजदूरों के लिए बनाए शहीद अस्पताल में लोगों का इलाज करना शुरू कर दिया। साथ ही छत्तीसगढ़ के विभिन्न इलाकों में सस्ते इलाज के लिए योजनाएं बनाने की भी उन्होंने शुरुआत की।
• पीयूसीएल के उपाध्यक्ष के तौर पर उन्होंने छत्तीसगढ़ में भूख से मौतों और कुपोषण का सवाल उठाया। उनका सबसे बड़ा अपराध सरकार की निगाहों में यह माना गया कि उन्होंने सलवा जुडुम को आदिवासियों के खिलाफ बताया था। राज्य की भाजपा सरकार द्वारा चलाए गए इस आंदोलन पर सुप्रीम कोर्ट ने भी सवाल खड़े किए थे। भाजपा ने जब 2005 में छत्तीसगढ़ विशेष जन सुरक्षा अधिनियम लागू किया तो विनायक सेन ने इसका कड़ा विरोध किया था। और इसी कानून के तहत सेन को छत्तीसगढ़ सरकार ने 2007 में गिरफ्तार किया।
एक डाक्टर एवं एक मानवाधिकार कार्यकर्ता के रूप में समाज के दबे-कुचले लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए काम किया।
• सेन कभी हिंसा में शामिल नहीं रहे या किसी को हिंसा के लिए नहीं उकसाया।
• देशद्रोह का अपराध तभी साबित होता है, जब राज्य के खिलाफ बगावत फैलाने का असर सीधे तौर पर हिंसा और कानून-व्यवस्था के गंभीर उल्लंघन के रूप में सामने आए।
• इससे कम कुछ भी किया गया या कहा गया, देशद्रोह नहीं माना जा सकता। सेशन कोर्ट के फैसले में डॉ. सेन को लेकर यह तय नहीं हो पाया कि उन्होंने आखिर ऐसा क्या किया, जिससे राज्य में हिंसा और कानून-व्यवस्था का खतरा पैदा हो गया।
डॉ. विनायक सेन के समर्थन में पूरी दुनिया में आवाजें उठ रही है। मानव अधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने डॉ. सेन को अपना समर्थन दिया। अमेरिका में उन्‍हें भारी समर्थन मिल रहा है। वहां के भारतीय मूल के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया। भारत में भी वाम झुकाव वाले बुद्धिजीवी उनके पक्ष में सड़कों पर उतर रहे हैं। हालांकि देश की दो प्रमुख राष्‍ट्रीय पार्टियां कांग्रेस और भाजपा इस मुद्दे पर चुप्‍पी साधी हुई है।


प्रवक्ता में आप इसी मुद्दे से सबंधित जिन अन्य लेखों को भी यहां क्लिक करके भी पढ़ सकेंगे.उनमें शामिल हैं:
आप इस मुद्दे पर क्या सोचते हैं.....? अवश्य लिखिए....! आपके विचारों का इंतज़ार रहेगा....रेक्टर कथूरिया.

Monday, December 27, 2010

देवभूमि उत्तराखण्ड के खटीमा नगर में "ब्लॉगर मीट का आयोजन"


वन्दना जी का निमन्त्रण था. चर्चामंच पर गया तो वहां बहुत कुछ था. बिलकुल उसी तरह जैसे एक मेला लगा हो. यह मेला था रचनायों का. तरह तरह के खूबसूरत फूलों को एक जगह एकत्र करके जिस गुलदस्ते का करिश्मा यहां दिखाया गया वह सचमुच यादगारी है. ऐसे लगा जैसे किसी बहुत बड़े बाग़ में पहुंच गया. दिल से स्वत ही आभार उठने लगा वन्दना जी के प्रति. यदि उन्होंने नहीं बुलाया होता तो इन सभी नजारों से वंचित रह जाता. वापिसी कि तयारी में था कि एक नया निमन्त्रण देखा. यह निमन्त्रण था डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" की ओर से लिखा था:

प्रिय ब्लॉगर मित्रो!
अपार हर्ष के साथ आपको सूचित कर रहा हूँ कि नववर्ष 2011 के आगमन पर देवभूमि उत्तराखण्ड के खटीमा नगर में एक ब्लॉगरमीट का आयोजन 9 जनवरी, 2011, रविवार को किया जा रहा है! इस अवसर पर आप सादर आमन्त्रित है।
विस्तृत कार्यक्रम साथ कि त्स्वीत में है. गौरतलब है कि खटीमा की दूरी निम्न नगरों से इस प्रकार बताई जाती है. आप इनमें से किस भी ऐसे स्थान तक पहुँचिये जो आपके नज़दीक हो, उसके बाद बाकी की राह आसान हो जाएगी. लीजिये विभिन्न  स्थानों से खटीमा की दूरी का कुछ संक्षिप्त हिसाब किताब.- 

 डॉ.रुपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
दिल्ली से 280 किमी
लखनऊ से 280 किमी है।
देहरादून से 350 किमी
हरिद्वार से 290 किमीमुरादाबाद से 160 किमी
रुद्रपुर से 70 किमी
बरेली से 95 किमी
पीलीभीत से 38 किमी
हल्द्वानी से 90 किमी

♥ दिल्ली से शाम को 4 बजे सम्पर्क क्रान्ति एक्सप्रेस काठगोदाम के लिए चलती है, -जो रात्रि 8ः30 पर रुद्रपुर आ जाती है। रुद्पुर से खटीमा मात्र 70 किमी है। रोडवेज की बसे यहाँ से खटीमा के लिए चलती रहती हैं। इसके अलावा प्रातः 9 बजे ओर रात को 9-30 पर भी ट्रेन रुद्पुर के लिए मिलती हैं।♥ दिल्ली आनन्द विहार से दो दर्जन रोडवेज की बसें प्रतिदिन खटीमा के लिए आती हैं। कश्मीरीगेट से प्रतिदिन दो प्राईवेट लग्जरीबसें 2बाई2 रात को 9 बजे खटीमा के लिए चलती हैं, जो सुबह खटीमा आ जाती हैं। 
देहरादून से रात को 10 बजे काठगोदाम एक्सप्रेस चलती है। जो प्रातः 5 बजे रुद्पुर पहुँच जाती है। यहाँ से रोडवेज की बस डेढ़ घण्टे में खटीमा पहुँचा देती है।
जिनका किराया रोडवेज से कम है।

हरिद्वार से भी 11 बजे रात्रि में काठगोदाम एक्सप्रेस पकड़ कर आप रुद्पुर उतर कर खटीमा की बस से आ सकते हैं।
हरिद्वार और देहरादून से बहुत सी बसें खटीमा के लिए चलती हैं।
मान्यवर मित्रों! 
लखनऊ से ऐशबाग स्टेशन से खटीमा के लिए नैनीताल एक्सप्रेस में 3 रिजर्वेशन कोच टनकपुर के लिए लगते हैं। जो खटीमा प्रातःकाल पहुँच जाते हैं।
लखनऊ से बरेली बड़ी लाइन की ट्रेन तो समय-समय पर मिलती ही रहती हैं। बरेली से रोडवेज की बसें बरेली सैटेलाइट बसस्टैंड से अक्सर मिलती रहती हैं। जो दो घण्टे में खटीमा पहुँचा देती हैं।आप खटीमा 9 जनवरी को अवश्य पधारें!
यहाँ सिक्खों का गुरूद्वारा श्री नानकमत्तासाहिब में मत्था टेकें।
माँ पूर्णागिरि के दर्शन करें। नेपाल देश का शहर महेन्द्रनगर यहाँ से मात्र 20 किमी है।
आप नेपाल की यात्रा का भी आनन्द लें।
मैं आपकी प्रतीक्षा में हूँ!

मित्रो शास्त्री जी तो आपकी प्रतीक्षा कर ही रहे हैं पर आप उन्हें अपना कार्यक्रम सूचित करना न भूलें. उनका ईमेल पता है:rcshashtri@uchcharan.com और वहां पहुँचने का पता है: डॉ. रूपचंद्र शास्त्री "मयंक",टनकपुर रोड, खटीमाऊधमसिंहनगर, उत्तराखंड, भारत - 262308.  उनसे फोन पर आप सम्पर्क कर सकते हैं इन नम्बरों पर:Phone/Fax: 05943-250207, Mobiles: 09368499921, 09997996437 ..... अब आप वहां पहुँचने का पूरा प्रयास अवश्य करें. --रेक्टर कथूरिया     

Friday, December 24, 2010

कुछ राज़ की बातें

कुछ मित्रों का संदेश देखने के लिए फेसबुक पर गया तो वहां अचानक ही मुलाक़ात हुई मनसा आनंद जी से उनकी पोस्ट का शीर्षक बहुत तेज़ी से बुला रहा था. लिखा था  सोना सर्वाधिक प्राण ऊर्जा को अपनी और आकर्षित करता है. बात पते की मालुम होती थी. यूं लगा आज पहली बार रहस्य खुला कि लोग सोने के पीछे पागल क्यूं होते हैं. पूरा लिंक खोला तो सामने सचमुच इसी रहस्य की बात थी. विस्तार से लिखा था.   सोना एक मात्र धातु है जो सर्वाधिक रूप से प्राण ऊर्जा को अपनी तरफ आकर्षित करता है। और यही सोने  का मुल्‍य है, अन्‍यथा कोई मुल्‍य नहीं है। 
इसलिए पुराने दिनों में, कोई दस हजार साल पुराने रिकार्ड उपलब्ध है, जिनमें सम्राटों ने प्रजा को सोना पहनने की मनाही कर रखी थी। कोई आदमी दूसरा सोना नहीं पहन सकता था। सिर्फ सम्राट पहन सकता था। उसका राज था कि वह सोना पहनकर दूसरे लोगों को सोना पहनना रोककर ज्‍यादा जी सकता था। लोगों की प्राण ऊर्जा को अनजाने अपनी तरफ आकर्षित कर सकता था। जब आप सोने को देखते है। तो सिर्फ सोने को देखकर आकर्षित नहीं होते, आपकी प्राण ऊर्जा सोने की तरफ बहनी शुरू हो जाती है। इसलिए आकर्षित होते है। 
इसलिए सम्राटों ने सोने का बड़ा उपयोग किया और आम आदमी को सोना पहनने की मनाही कर दी गई था। कि कोई आदमी सोना नहीं पहन सकता है। इस सम्बन्ध में और पढ़ने के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं और पहुंच सकते हैं ज्ञान की मंज़िल पर जहां आपको मिलेंगे सोने के साथ साथ बहुत सी और चीज़ों के राज़...वो भी बिलकुल सीधी-साधी भाषा में.ओशो सत्संग पर इस तरह की ख़ास ख़ास बातें पोस्ट करने वाले आनंद प्रसाद कहते हैं," ओशो की किरण जीवन में जिस दिन से प्रवेश किया, वहीं से जीवन का शुक्‍ल पक्ष शुरू हुआ, कितना धन्‍य भागी हूं ओशो को पा कर उस के लिए शब्‍द नहीं है मेरे पास.....अभी जीवन में पूर्णिमा का उदय तो नहीं हुआ है। परन्‍तु क्‍या दुज का चाँद कम सुदंर होता है। देखे कोई मेरे जीवन में झांक कर। आस्‍तित्‍व में सीधा कुछ भी नहीं है...सब वर्तुलाकार है , फिर जीवन उससे भिन्‍न कैसे हो सकता है।
कुछ अंबर की बात करे,


  • कुछ धरती का साथ धरे।
    कुछ तारों की गूंथे माला,
    नित जीवन का एहसास करे।। 
    अपने इसी मंच से वह अक्सर ही बताते हैं बहुत सी पते की बातें. उन्होंने बताया कि कैसे होता है....वृक्षों का भी संवेगों और भावनाओं को महसूस करना वृक्षों के संवेगों पर, भावनाओं पर। वह बड़ा हैरान करने वालो प्रयोग हुआ। पहले किसी नह सोचा भी नहीं था कि वृक्षों में संवेग हो सकते है। महावीर के बाद जगदीश चंद्र बसु तक बात ही भूल गई थी। 
    चित्र साभार: स्पिरिट ऑफ़ ट्री 
    फिर जगदीश चंद्र बसु ने थोड़ा बात उठाई कि वृक्षों में जीवन है। लेकिन बसु भी धीरे-धीरे विस्‍मृत हो गए। विज्ञान से यह बात ही खो गई। इसकी चर्चा ही बंद हो गई। अभी अमरीका में फिर पुन: एक नया उद्भव हुआ, आकस्‍मिक हुआ। दुनिया की बहुत सी खोजें आकस्‍मिक हुई है। जो वैज्ञानिक काम कर रहा था वह किसी और दृष्‍टि से काम कर रहा था। लेकिन खोज में उसको यह अनुभव हुआ कि वृक्षों में कुछ संवेदनाएं मालूम होती है। तो उसने वृक्षों में महीन तार जोड़े और यंत्र बनाए देखने के लिए कि वृक्ष भी कुछ अनुभव करते है। तो तुम अगर वृक्ष के पास जाओ कुल्‍हाड़ी लेकिर तो तुम्‍हें कुल्‍हाड़ी लेकिर आता देखकर वृक्ष कंप जाता है। अगर तुम मारने के विचार से जा रहे हो, वृक्ष को काटने के विचार से जा रहे हो तो बहुत भयभीत हो जाता है। अब तो यंत्र है जो तार से खबर दे देते है। 
    नीचे ग्राफ बन जाता है। की वृक्ष कांप रहा है कि नहीं। घबड़ा रहा है, बेचैन हो रहा है, तुम्‍हें कुल्‍हाड़ी लिए आता देख कर। लेकिन अगर तुम कुल्‍हाड़ी लेकर जा रहे हो, और आप का काटने का कोई इरादा नहीं है। कोई विचार नहीं है मन में। सिर्फ गुजर रहे हो वहां से तो वृक्ष बिलकुल नहीं यह तो बड़ी हैरानी की बात है। इसका मतलब यह हुआ की तुम्‍हारे भीतर जो काटने का भाव है, वह वृक्ष को संवादित हो जाता है। फिर जिस आदमी ने वृक्ष काटे है पहले, वह बिना कुल्‍हाड़ी के भी निकलता है तो वृक्ष  कंप जाता है। क्‍योंकि उसकी दुष्‍टता जाहिर है। उसकी दुश्‍मनी जाहिर है।  
    चित्र साभार: किंग बैग 
    लेकिन जिस आदमी ने कभी वृक्ष नहीं काटे है, पानी दिया है पौधों को जब वह पास से आता है तो वृक्ष प्रफुल्‍लता से भर जाता है। उसके भी ग्राफ बन जाते है। कि वह कब प्रफुल्‍ल है, कब प्रसन्‍न है कब परेशान है, भय भीत है। और वैज्ञानिक अद्भुत आश्‍चर्यजनक निष्‍कर्षों पर पहुंचे है कि एक वृक्ष को काटो तो सारे वृक्ष बग़ीचे के कंप जाते है। पीड़ित हो जाते है। और एक वृक्ष को पानी दो तो बाकी वृक्ष भी प्रसन्‍न हो जाते है—जैसे एक समुदाय है। इससे भी गहरी बात जो पता चली है, यह कि एक वृक्ष के पास बैठ कर तुम एक कबूतर को मरोड़ कर मार डालों, तो वृक्ष कंप जाता है। जैसे कबूतरों से भी बड़ा जोड़ है। जैसे सारी चीजें जुड़ी है संयुक्‍त है। होना भी ऐसा ही चाहिए, क्‍योंकि हम एक ही आस्‍तित्‍व की तरंग है। सागर तो एक है, हम उसकी ही लहरें है। एक लहर वृक्ष बन गई एक लहर पशु बन गई, एक लहर मनुष्‍य बन गई। लेकिन हम सब भीतर जुड़े हुए है। इस तरह के बहुत से राज़ जानने के लिए आप केवल एक क्लिक करके जा सकते हैं ओशो सत्संग  पर.