Sunday, November 28, 2010

बेटी का बाप

मच्छर ने आदमी को कटा,आदमी बोला" दिन में भी काट रहे हो,मच्छर बोला," क्या करूं घर में मां-बाप बीमार हैं\, बहन जवान है और लड़के वालों ने एक लीटर खून दहेज में माँगा है. समाज पर तीखी चोट करती हुई यह छोटी सी अणू रचना भेजी है आगरा से बोधिसत्व कस्तूरिया ने. कविता, संगीत और अदाकारी के साथ बहुत ही गहरे से जुड़े हुए बोधिसत्व बहुत ही सम्वेदनशील इन्सान हैं. वैदिक हिन्दू की आस्था के साथ साथ इस बात पर बहुत ही तेज़ नज़र रखते हैं की समाज और राजनीती के क्षेत्र में क्या हो रहा है.उन्होंने एक कविता भी भेजी है जो बताती है कि आज जिस युग को हम आधुनिक कहते नहीं थकते, उस युग में भी एक बेटी का पिता अभी तक निशचिंत नहीं हो पाया.लीजिये पढ़िए उन की कविता और बताईये कि यह आपको कैसी लगी. --रेक्टर कथूरिया
बेटी का बाप
ऐसा लगता है कि बात कल की ही है,
जब मैने अपनी बेटी को रुखसत किया !
बता सकता नहीं मैं कुछ भी आपको ,
कि यह चाक दिल मैने, कैसे-कैसे सिया !! ऐसा लगता है....
उसके रुखसार पर बहते हुए आँसू देख,
सोचा गम न कर,उसको मिल गया है पिया!! ऐसा लगता है ....
गले जब मेरे लगी,कलेज़ा मुँह को आ गया,
कह कुछ न पाया ,लगा वार दिल पर किया!! ऐसा लगता है....
अच्छी तालीम और दहेज़ देकर भी घबराता हूँ,
फ़िर भी उन्होने सीना उसका छलनी किया !! ऐसा लगता है.....
आज भी टेलीफ़ोन पर ,रोने की आवाज़ आती है
न जाने क्यूँ लगता है,किसी ने कुछ किया !! ऐसा लगता है...
अब तो सुबह,अखबार पढने से डर लगता है,
दहेज़-लोभियों ने,बेटी को तो नही जला दिया!!ऐसा लगता है....
आप नही समझेंगे, मै एक बेटी का बाप हूँ,
फ़िर क्यूँ उसे देवी का दर्ज़ा उन्होने है दिया !!ऐसा लगता है.....
 

---बोधिसत्व कस्तूरिया 
२०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७

Friday, November 26, 2010

मत रो माता लाल तेरे बहुतेरे.......!

आज 26 नवंबर है. भारत पर हुए सबसे बड़े आतंकी हमले की दूसरी बरसी.  आज भी उस दिन की याद उसी तरह ताज़ा है. इस मौके पर बहुत  कुछ कहा सुना जा रहा है. उस समय जिस बहादुरी से काम लिया गया उसे याद करते हुए  अखंड भारत वन्दे मातरम (videos) ने  एक वीडियो पोस्ट किया है. इस वीडियो में  देश भक्ति का एक गीत है. इस गीत को 1963 में रलीज़ हुई बन्दिनी फिल्म से लिया गया है. शैलेन्द्र के लिखे हुए इस गीत को आवाज़ दी है मन्ना डे ने और संगीत से सजाया है सचिन दा ने.

26 नवम्बर के ~~ अमर शहीदो...


मत रो माता लाल तेरे बहुतेरे 

मत रो माता लाल तेरे बहुतेरे

जन्मभूमि के काम आया मैं

बड़े भाग है मेरे

मत रो माता लाल तेरे बहुतेरे.....................


ओओ हँस कर मुझको आज विदा कर

जनम सफल हो मेरा

ओओ हँस कर मुझको आज विदा कर

जनम सफल हो मेरा

रोता जग में आया हँसता चला ये बालक तेरा

मत रो माता लाल तेरे बहुतेरे......................


धूल मेरी जिस जगह तेरी

मिटटी से मिल जाएगी

ओओ धूल मेरी जिस जगह तेरी

मिटटी से मिल जाएगी

सौ सौ लाल गुलाबो की फूलबगिया लहराएगी

मत रो माता लाल तेरे बहुतेरे......................


ओओ कल में नहीं रहूँगा लेकिन

जब होगा अँधियारा

ओओ कल में नहीं रहूँगा लेकिन

जब होगा अँधियारा

तारो में तू देखेगी एक हँसता नया सितारा

मत रो माता लाल तेरे बहुतेरे......................


फिर जन्मुंगा उस दिन जब

आजाद बहेगी गंगा

मईया आ फिर जन्मुंगा उस दिन जब

आजाद बहेगी गंगा

उन्नत ढाल हिमालय पर जब लहराएगा तिरंगा

मत रो माता लाल तेरे बहुतेरे......................



इस गीत को सुनने के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं.  

Friday, November 19, 2010

ज़रा सा दिल है लेकिन कम नहीं है. कि इसमें कौन सा आलम नहीं है

सन 2010 के नवम्बर महीने  की 19 तारीख और दिन था शुक्रवार. सुबह सुबह का वक्त. क्रिस्चियन मेडिकल कालेज और अस्पताल में कुछ बच्चे भी चहल कदमी कर रहे थे. हंसते गाते हुए इन बच्चों ने सफेद रंग की टोपियाँ भी पहन रखीं थीं.वे ऐसे घूम फिर रहे थे जैसे कोई विजेता चलता है. 
पता किया तो बात यही निकली वे विजेता ही थे. इन बच्चों ने बहुत ही बहादुरी से जंग लड़ी थी. जंग भी कोई मामूली जंग नहीं. ज़िन्दगी और मौत की जंग. दिल की गंभीर बिमारियों को इन बच्चों ने एक चुनौती की तरह लिया था और उस जंग को जीत भी लिया था.कुछ देर बाद आडीटोरियम में दाखिल हुआ तो वहां का माहौल देख कर इस बार कुछ हैरानी हुई. मंच वही था, हाल वही था, कुर्सियां भी उसी तरह थीं लेकिन मंच पर बनी सक्रीन पर जिगर साहिब का शेयर था:
ज़रा सा दिल है लेकिन कम नहीं है. कि इसमें कौन सा आलम नहीं है. 
एक अस्पताल के आडीटोरियम में इस शायराना माहौल को देख कर बड़ी हैरत हुई. लगा जाना कहीं और था और आ कहीं और गया हूं. लौटने को ही था कि मंच की तरफ एक बार फिर नज़र गयी. माईक पर डाक्टर हरमिंदर सिंह बेदी थे और उन्हें सुनने वालों में पंजाब की स्वास्थ्य मन्त्री लक्ष्मी कान्ता चावला भी थी. दिल की हालत पर, दिल की बीमारियों पर और उन बीमारियों के इलाज पर शायराना ढंग का इतना बढ़िया मेडिकल भाषण मैंने पहली बार सुना. साथ साथ स्लाइड शो भी था. 
इस स्लाइड शो में जो कुछ देखा सुना वह बेहद चिंता जनक था. दिल दहलने लगा. हर वर्ष दो लाख ऐसे बच्चे जन्म लेते हैं जिन्हें दिल की बिमारी जन्म के साथ ही मिलती है. इनमें से केवल पांच हजार बच्चों  का ही इलाज हो पाता है. 
बहुत से बच्चों के वाल्व बुखार के कारण नष्ट हो जाते हैं. इनमें से कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जिन्हें सर्जरी की आवश्यकता होती है पर समय पर इलाज न हो पाने से मामला और बिगड़ जाता है. आमतौर पर यह सब कुछ होता है पैसे की कमी और लापरवाही के कारण.हालत को गंभीर होते देख पंजाब सरकार भी ने भी कुछ अवश्यक कदम उठाये और शुरू हुआ ऐसे बच्चों का निशुल्क इलाज. सरकारी स्कूलों या फिर सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में पढ़ते बच्चों को इस बिमारी से मुक्त करने के लिए चलाया गया विशेष अभियान. सबसे महत्वपूर्ण लेकिन कठिन काम था सर्जरी का. इस मुश्किल को आसान बनाते हुए पंजाब सरकार ने नैशनल रूरल हैल्थ मिशन के अंतर्गत चुना सी एम सी अस्पताल को. सी एम सी अस्पताल के प्रबन्धन और अति आधुनिक मशीनों की धूम तो पहले से ही पूरे विश्व में थी इस पर सोने पे सुहागे वाला काम हुआ तब जब तहां डाक्टर एच एस बेदी ने भी चार्ज संभाल लिया. 
यह डाक्टर बेदी वही हैं जिन्होंने सिडनी आस्ट्रेलिया में होते हुए इस दिशा में काफी नाम कमाया था. वहां के रायल अलेक्सेंदरा अपताल में दिल की गंभीर बीमारियों से ग्रस्त बच्चों के इलाज में उन्होंने गहन अनुभव अर्जित किया. जब वह स्वदेश लौटे तो नयी दिल्ली के एस्कोर्ट हार्ट इन्सीचयूट में उन्होंने बच्चों की हार्ट सर्जरी का विशेष प्रोग्राम भी शुरू किया.  इत्तिफाक से डाक्टर बेदी की टीम ने दिल की बीमारियों से ग्रस्त एक हजार बच्चों का सर्जिकल इलाज किया. इन बच्चों को सर्जरी  की सख्त आवश्यकता भी थी. इसी तरह 50  बच्चों का आप्रेशन नेशनल रूरल हेल्थ मिशन के अंतर्गत किया गया. इन बच्चों में 95 प्रतिशत  बच्चे ऐसे भी थे जिनका आपरेशन रेफर किये जाने के दो दिन के भीतर किया गया. कुछ बच्चे ऐसे भी थे जिनका आप्रेशन करने से दूसरे जानेमाने संस्थानों ने इनकार कर दिया था. इनमें गुरदासपुर की एक बच्ची गुरमुखी भी थी. इस बच्ची के दिल में एक बड़ा सा छेद था. दिल के साथ साथ उसके फेफड़े भी क्षतिग्रस्त हो चुके थे. उसकी जान बचाने के लिए उसके परिवार ने पूरा देश घूमा लेकिन हर जगह उन्हें निराशा ही मिली.  हर जगह पर आप्रेशन करने से इनकार कर दिया गया.  डाक्टर बेदी ने इस बच्ची का भी आप्रेशन किया. अब यह बच्ची बहुत खुश है और बहुत ही स्मार्ट भी दिखती है. आप्रेशन करने वाली इस टीम में डाक्टर बेदी के साथ डाक्टर ऐ. जोसेफ डाक्टर ऐ.गुप्ता, डाक्टर V. Tewarson , संजीव. डाक्टर मीनू और डाक्टर प्रशांत भी शामिल थे. 
डाक्टर बेदी का कहना है कि दिल की कई खराबियां सही वक्त पर सही इलाज से दूर की जा सकती हैं.  गौरतलब है कि जिन का आप्रेव्शन डाक्टर बेदी ने किया उनमेंसे कई अब भारतीय सेना में उच्च अधिकारी हैं और कई पायलेट हैं. उन्हें याद करते हुए डाक्टर बेदी कहते हैं कि उनके दिल वास्तव में चैम्पियन के दिल हैं.  --रेक्टर कथूरिया 

Thursday, November 18, 2010

आर एस एस का विशेष सेमिनार 28 को

हालांकि बहुत से लोग सोशल साइटों को अभी भी केवल प्रेम संदेशों के आदान प्रदान और इंटरनेट रोमांस का प्लेटफार्म ही समझ रहे हैं लेकिन इसके बावजूद उन प्रबुद्ध लोगों की भी कमी नहीं है जो विचारों के लिए भी इस सुविधा का सद-उपयोग कर रहे हैं. इस की बहुत से मिसालें मिल जायेंगी जिनसे साबित होता है कि अब सभी तरह के विचार इस मंच पर आ चुके हैं. इस अवसर का लाभ उठाते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी एक विशेष आयोजन की घोषणा की है. आर एस एस के दिल्ली स्थित सूचना सेल की ओर से जारी इस घोषणा के मुताबिक़  इस आयोजन का मकसद है राष्ट्रीय मुद्दों पर सोशल नेटवर्किंग का सदुपयोग. इस मौके पर संसद सदस्य और वरिष्ठ पत्रकार तरुण विजय खास तौर पर मौजूद रहेंगे.देशबन्धु गुप्ता मार्ग,झंडेवालां क्षेत्र में स्थित केशव कुञ्ज में इस सेमीनार का आरम्भ सुबह 9 बजे शुरू हो जाएगा और औपचारिक जलपान के बाद इसका  सिलसिला देर तक चलेगा. इस सम्बन्ध में राजीव  तुली से उनके मोबाईल फोन नम्बर 098713-38284 और 098680-75801 पर सम्पर्क किया जा सकता है. आप इसमें शामिल होने के लिए फेसबुक पर जाकर भी अपना नाम दर्ज करवा सकते हैं. इस मकसद के लिए आपको बस यहां क्लिक करना होगा. --रेक्टर कथूरिया 
  
अंग्रेजी में जारी वह पत्र इस प्रकार है:

Rashtriya Svayam Sevak Sangh (RSS)
Information Cell Delhi
Dear Friends
Greetings to all of you

Subject: Utilizing Social Networking for a Nationalistic Cause

In today's world IT has become an extremely useful tool for the spread of ideas and ideals. Keeping this in mind the regional the regional RSS office of Delhi has organized a seminar cum workshop on the same topic. Shri. Tarun Vijay (Member Parliament and a Senior Journalist) shall be present on this ocassion to share his views with us on this topic. All those living in the Delhi NCR region who share our ideals of Nationalism are invited for this event on 21 st of November.

Date : Nov, 21 Sunday
Venue: Keshav Kunj, Deshbandhu Gupta Marg, Jhandewalan
Time : 9 AM to 12 AM

Kindly confirm your participation at rajiv_tuli69@yahoo.co.in, by sending you phone number, name and other details. You may also confirm your participation in advance telephonicaly on the following phone numbers

9871338284 (Sri Rajiv Tulli)
9868075801



Wednesday, November 17, 2010

"हवा करती है सरगोशी बदन ये कांप जाता है"

मुशायरे का विवरण 
कम्प्यूटर जैसी बहुत सी तकनीकी सुविधायों के कारण अब किताबों का सुंदर और तेज़ प्रकाशन बहुत आसान तो अवश्य लगने लगा है पर वास्तव में यह इतना आसान भी नहीं हुआ. किताब छप जाने के बाद उसे आम लोगों तक ले कर जाना हमेशां से ही बहुत कठिन रहा है. किताबों और पाठकों के दरम्यान एक पुल का काम करते हुए और  इस मुश्किल को आसान बनाने के प्रयासों में योगदान डालते हुए ओपन बुक्स आनलाइन ने भी एक खुशखबरी सुनाई है. आपकी लिखी किताबों के निशुल्क विज्ञापन की घोषणा करते हुए ओपन बुक्स आनलाइन ने कहा है कि लेखक/प्रकाशक को केवल कुछ नियमों की पालना करनी होगी और पुस्तक की दो प्रतियाँ उपलब्ध करानी होंगीं. इसके साथ ही ओपन बुक्स के सदस्यों को पुस्तक की खरीद का समय दस प्रतिशत की छूट भी प्रदान करनी होगी. इ पूरे विवरण को आप पढ़ सस्कते हैं केवल यहां क्लिक करके. इसके साथ ही किया गया है नए तरही मुशायरे का ऐलान. दिनांक २० नवम्बर से शुरू होकर २३ नवम्बर तक चलने वाले लाइव तरही मुशायरे के लिया इस बार का तरह मिसरा है "हवा करती है सरगोशी बदन ये कांप जाता है". अगर आपने पिछले मुशायरों में भाग नहीं लिया तो आपके लिए यह सुनहरी अवसर भी है. अपनी कविता का जादू सभी के सामने लाईए. कविता जगत आपको बुला रहा है.--रेक्टर कथूरिया  

आओ मिल कर प्यार भरा संसार बनाएं दोस्तों

में समझा था कि बस आज 17 नवम्बर है और आज ईद का त्यौहार है.  बाद में यह भी पता चला कि आज का पंचांग भी कुछ ख़ास है. यह सब एक टिप्पणी में दर्ज था. टिप्पणी में कुछ इस प्रकार लिखा था,"आज स्वाति नक्षत्र है ! शुकल पक्ष के शुरुआती दिन हैं ! आज वोह आ चुका ..जिस का उस को बेसब्री से इंतजार था ..अति उत्सुक है वोह अपने प्रियतम के दीदार के लिए ..प्यार में गुम होकर मरने को तैयार.तड़प तड़प कर यह जान त्याग देगा उस निष्ठुर आशिक के लिए ! जो मूक रहता है चुप बिलकुल चुप....जी दोस्तों यह सच्ची प्रेम कहानी है चाँद और चौकोर की. चाँद पूछता तक नहीं और चौकोर उसके वियोग में, उसकी चाहत में, प्यार में जान गँवा बैठता है..." यह टिप्पणी पढ़ी तो मुझे पता चला कि आज के दिन की अहमीयत तो कुछ और भी है. टिप्पणी फेसबुक पर किसी मित्र ने किसी मित्र की वाल पर की थी.  इसे देखा तो याद आ गया एक बहुत पुराना गीत...चाँद को क्या मालूम चाहता है उसे कोई चौकोर. टिप्पणी के अंत में कुछ यह भी लिखा था यहाँ यह मूल्यांकन करना गलत होगा कि दोनों में से सुंदर कौन है. साथ ही यह निवेदन भी था कि आओ मिल कर प्यार भरा संसार बनाएं दोस्तों त्यागो निष्ठुरता.....! यह दर्द भरा निवेदन किया है फेसबुक पर साई दरबार के नाम से सक्रिय पवन दत्ता ने.   

यह पवन दत्ता संगीत और फिल्मों की दुनिया के बहुत से ऐसे राज़ जानता है जो आम तौर पर सभी को मालुम नहीं हुआ करते. 
तीन बेटियों का पिता है पर उसकी आवाज़ में आज भी एक जवानी है. बात जसपिंदर नरूला की चले, आबिदा परवीन की, मोहम्मद रफ़ी की, पुष्पा हंस की, हंस राज हंस  की या किसी और की उसके पास यादगारी बातों का एक खजाना है. इस खजाने में बहुत सी यादें सीधा सीधा उसके साथ भी जुडी हुई हैं. पवन ने बताया कि एक जसपिंदर नरूला और उनका परिवार एक ही कार में सवार थे. उन्होंने कहा कि जसपिंदर माता की वह वाली भेंट सुनायो. जसपिंदर उस समय किसी ऐसी पार्टी से लौट रही थी जहां नॉन-वैज भी खाया गया था. जसपिंदर ने गाने से मना कर दिया. बहुत बार कहने पर भी जब वह नहीं मानी तो पवन ने खुद ही मेहँदी हसन की गाई हुई एक गज़ल जानबूझ कर बेसुरेपन से गानी शुरू कर दी. जसपिंदर ने सुना तो उसे गुस्सा आ गया और बोली इसे ऐसे नहीं ऐसे गाया जाता है और इस तरह सभी ने उसकी आवाज़ में वह गज़ल सुनी.     
आज के इस कारोबारी युग में जब खून पानी बन चुका है और दिल पत्थर के हो चुके हैं उस दौर में भी  वह जज़्बात की बात करता है. किसी का दुःख दर्द पता चलने पर उसकी मदद के लिए तड़पता है. तड़प भी उनके लिए जिन्हें उसने कभी देखा तक भी नहीं होता. लोग उसकी इस भावुकता का फायदा उठाने से भी नहीं चूकते पर वह कहता है चलो कोई बात नहीं. हर महीने शिर्डी जा कर साईं के दरबार में सजदा करना उसके सब से ज़रूरी कामों में एक है. उसकी आवाज़ में एक सोज़ है, एक दर्द है वह कभी इसका कारण नहीं बताता पर लगता है कि उसने बहुत कुछ झेला है. अभी हाल ही में मैंने उसे टेलीफोन पर सुना...
आएगी आएगी आएगी...
किसी को हमारी याद आएगी...  
दुनिया में कौन हमारा है....
तकदीर का इक सहारा है..
किश्ती भी है टूटी टूटी..
और कितनी दूर किनारा है !!
आप उनकी वाल पर जा अकते हैं केवल यहां क्लिक करके. आपको वहां जा कर कैसा लगा इस पर आप अपने विचार यहां भी भेज सकते हैं कुमैन्ट बाक्स में भी और ईमेल से भी.  --रेक्टर कथूरिया        (फोटो साभार : सुन ले यार) 

Tuesday, November 16, 2010

कैसे हम सम्मान करें?

डाक्टर कीर्तिवर्धन बहुत देर से और बहुत ही अच्छा लिख रहे हैं। पंजाब स्क्रीन पर उनकी चर्चा पहले भी कभी हो चुकी है.  इस बार उनकी नज्म में चर्चा है पूरे विश्व की. कोई वक्त था जब सोवियत संघ के साथ भारत की दोस्ती थी. इस दोस्ती ने बहुत लम्बा रास्ता भी तय किया. बाद में वक्त बदला तो पूरे विश्व में इस तबदीली की हवा चली. इस तबदीली की हवा के परिणामों को बहुत से लोगों ने देखा, सुना और महसूस भी किया. कई लोग खामोश रहे और कयिओं ने इसे अपने शब्द दिए और भविष्य के लिए भी संजो लिया. यहां आप देखिये उनकी एक कविता का रंग, उनकी नाराज़गी का रंग और शिकायत के साथ उसकी वजह भी. अगर आपके विचार कुछ अलग हैं तो भी हम, उन्हें प्रकाशित करेंगे.--रेक्टर कथूरिया.
कैसे हम सम्मान करें?
जिसका उद्देश्य साम्राज्य विस्तार हो
मानवता से जिसको नहीं कहीं प्यार हो
नीतियाँ हों जिसकी स्वयंभू बनने की
ऐसे ओबामा का कैसे हम सम्मान करें?
अफगानिस्तान को जिसने तहस नहस कर दिया
इराक के तेल पर भी अपना कब्ज़ा कर लिया
इसराइल-फिलिस्तीन को आपस मे लड़ा दिया
ऐसे निरंकुश शासक का कैसे हम सम्मान करें?
सोवियत रूस को जिसने टुकडे टुकडे करा दिया
आज भारत वर्ष मे भी अपने पैर पसर रहा
आर्थिक समृधि का छल प्रपंच फैला रहा
ऐसे घर भंजक का कैसे हम महिमागान करें?
अपनी दोहरी चालों  से दुनियां को जो छल रहा
भारत को भी अपना उपनिवेश समझ रहा
पाक को हथियार दे शांति की बात कर रहा
ऐसे चालबाज़ राष्ट्र का कैसे हम गौरव गान करें?
परमाणु अश्त्रों पर कब्ज़ा जिसका सारा हो
इरान के खात्मे को परमाणु ही बहाना हो
संयुक्त राष्ट्र नज़र मे जिसकी नहीं  अहमियत रखता हो
ऐसे दम्भी शासक का कैसे हम स्वागत गान करें?
आर्थिक आतंकवाद को जो पुरजोर समर्थक हो
य्रोपियाँ हितों का भी जो झंडाबरदार हो
तानाशाही की जिसकी रग-रग मे भरमार हो
ऐसे आतंकी प्रशासक का कैसे हम गुणगान करें?
भाई-भाई को आपस मे पहले तो लड़वता हो
मध्यस्थता के नाम पर फिर घर मे घुस जाता हो
घर पर ही जो बाद मे अपना कब्ज़ा बतलाता हो
ऐसे मध्यस्थ सरपंच का कैसे हम सम्मान करें?
अपने उत्पादों को दुनिया मे फैला रहा
हमारे उत्पादों पर प्रतिबन्ध लगा रहा
नीम,हल्दी,तुलसी,चावल का पेटंट करा रहा
ऐसे स्वार्थी व्यापारी का कैसे हम गौरवगान करें?
अश्त्रों का व्यापारी खेल कैसे खेलता
एक को हथियार बाँटें दुसरे को बेचता
बचपन की गोद मे मौत को धकेलता
ऐसे संहारक का कैसे हम सत्कार करें?
जापान मे आज भी विश्व युद्ध याद है
हिरोशिमा नगशाकी इतिहास मे दर्ज है
हर घर मे आज भी अपंगों का साथ है
ऐसे हत्यारों का कैसे हम स्वगात्गान करें?
    --- डॉ. अ कीर्तिवर्धन

Sunday, November 14, 2010

सारे जहां का दर्द......!

शरद भाई बैंक की नौकरी छोड़कर, चाय ठेला चला रहे हैं
"मुख्य रूप से कविता लिखता हूँ । कभी कभी कहानी,व्यंग्य,लेख और समीक्षाएँ भी । एक कविता संग्रह "गुनगुनी धूप में बैठकर " और "पहल" में प्रकाशित लम्बी कविता "पुरातत्ववेत्ता " के अलावा सभी महत्वपूर्ण साहित्यिक पत्रिकाओं में कवितायें व लेख प्रकाशित । संगीत सुनना अच्छा लगता है और मित्र बनाना । झोपड़पट्टियों में जाकर उनके दुखदर्द बाँटता हूँ जिनके पास दुख ही दुख हैं । अपनी तरह से ज़िन्दगी जीने का शौक है इसलिये स्टेट बैंक की नौकरी छोड़कर अपनी फाकामस्ती के रंग लाने के इंतज़ार में हूँ ।" ये शब्द हैं कवि शरद  कोकास के जिसके अंतर मन में लगी आग उसे न कभी आराम करने देती है और न ही कभी चैन लेने देती है. 
बैंक की अच्छी भली नौकरी छोड़ देना आसान नहीं होता लेकिन हमारे शरद भाई ने ऐसा किया. आजकल वे क्या कर रहे हैं ? क्या आप जानना चाहते हैं ? इस सवाल का जवाब दे रहे हैं हमारे एक और ब्लागर भाई संजीव तिवारी. ज़रा देखिये वे क्या कहते हैं,"मेल-मुलाकातों में हमने कभी पूछा भी नहीं कि वे अब क्‍या करते हैं किन्‍तु आज उन्‍हें कर्मनिष्‍ठ देखकर हम चकरा गए, हुआ यूं कि हम भिलाई में आयोजित जन संस्‍कृति मंच के राष्‍ट्रीय अधिवेशन में कुछ ज्ञान बटोरने के लिए गए तो वहां कार्यक्रम स्‍थल के बाजू में शरद भाई हमें चाय ठेले में चाय बनाते मिले .... शरद भाई बैंक की नौकरी छोड़कर, चाय ठेला चला रहे हैं ... हमारी आंखें तो आश्‍चर्य से फटी की फटी रह गई किन्‍तु शरद भाई नें मुस्‍कुराते हुए चाय बनाकर पिलाया और हमने एक फोटो के लिए फलैश चमकाया, आप भी देखें"
संजीव जी बताते हैं कि," शरद कोकाश जी मेरे नगर में ही रहते हैं, गाहे-बगाहे मेल-मुलाकात होते रहती है एवं मोबाईल में बातें भी होती है, वे मुख्‍य रूप से कवितायें लिखते हैं, कहानी,व्यंग्य,लेख और समीक्षाएँ भी लिखते हैं। उनकी एक कविता संग्रह "गुनगुनी धूप में बैठकर" और "पहल" में प्रकाशित लम्बी कविता "पुरातत्ववेत्ता " के अलावा सभी महत्वपूर्ण साहित्यिक पत्रिकाओं में कवितायें व लेख प्रकाशित हुई हैं। इसके साथ ही वे शरद कोकाशपास पड़ोस व ना जादू ना टोना नाम से ब्‍लॉग भी लिखते हैं। उनके पेशे के संबंध में जो जानकारी मुझे है उसके अनुसार से वे भारतीय स्‍टैट बैंक में सेवारत थे जहॉं से उन्‍होंनें स्‍वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली है।"शरद की रचना आम आदमी के दुःख कि बात करती है, उसके शोषण की बात करती है, उसके खिलाफ हो रही साज़िशों की बात कर्त्री है. उनके ब्लागों में, उनकी रचनायों में एक दर्द समाया हुआ है. यहां से वहां तक. इधर से उधर तक. मित्रों से लेकर उन लोगों का दर्द भी जिन्हें वे शायद कभी न मिलें हों. ब्लाग जगत के जानेमाने नाम और सभी से मित्र की तरह मिलने वाले बी एस पाबला जी एक दुर्घटना से बाल बाल बचे. इसका पता शरद जी की पोस्ट से ही लगा पर बहुत देर से. अगर मित्र पाबला जी की उर्घ्तना सुन कर वह दुखी होते हैं तो अरबी में कविता लिखने वाली दून्या की चिंता भी उन्हें बराबर होती है. वह उसका जिक्र भी उसी शिद्दत से करते हैं. कोई जादू टोना का नाटक करके किसी का शोषण करे और कोई किसी और तरीके से. शरद भाई उसे अपनी कलम का निशाना जरूर बताते हैं. आप उनसे यहां क्लिक करके भी मिल सकते हैं और उनके मौजूदा काम का पता बताने वाले भाई संजीव तिवारी से आपकी मुलाकात यहां क्लिक करके हो सकती है. अगर आपके पास भी कुछ ऐसी ही नयी जानकारी हो तो उसे अवश्य भेजें.-रेक्टर कथूरिया 

Friday, November 12, 2010

प्रेम, मस्ती और परम होश की बरसात

पुस्तक के अंश  
पंजाब का नाम लें तो भांगड़ा भी तुरंत याद आता है और भांगड़ा का ज़िक्र चले तो ज़हन में एकदम पंजाब का नाम भी आता है. हज़ारों मुश्किलें सह कर तैयार हुई  फसल की कटाई का वक्त जब आता है तो किसान वैसाखी का त्यौहार मनाता है और खुश हो कर भांगड़े डालता है. इस तरह पंजाब और भांगड़ा एक दूसरे में रचे बसे हुए हैं. भांगड़ा फिल्मों में भी छाया, गीतों में भी छाया इसकी धूम देश विदेश में दूर दूर तक पहुंची पर इतना कुछ होने पर भी भांगड़ा इतने व्यापक स्तर पर नहीं देखा गया. कम से कम मेरी ज़िन्दगी में यह पहली बार थी की मैंने एक ही मंच पर 2100 नौजवानों को भांगड़े की मस्ती में मस्त हो कर नाचते देखा. मंच के नीचे, खुले ग्राऊंड में और अपने अपने घरों में जो लोग इस की ताल से ताल मिला रहे थे उनकी गिनती का अनुमान लगाना भी मुश्किल है. इनमें बच्चे भी थे, नौजवान भी और बुज़ुर्ग भी.  इनमें लडके भी थे और लड़कियां भी, पुरुष भी थे और महिलाएं भी, ये सब उस मस्ती में खोये हुए थे जो परम होश के बी ही बाद मिलती है. यह वोह मस्ती थी जिसके सामने दुनिया और दुनियादारी की यह होश बहुत ही बौनी और बेमानी लगती है. दिलचस्प बात यह थी की मस्ती में नाच रहे यह लोग अभी कुछ मिनट पूर्व ही तो वचन दे कर हटे थे कि वे कोई नशा नहीं करेंगे. वचन देते ही गुरुदेव श्री श्री रविशंकर उन्हें मस्ती का यह प्याला पिला देंगें यह तो किसी ने सोचा भी नहीं होगा  और यह सब इतना होशपूर्वक था कि किसी को कोई कष्ट नहीं, किसी को कोई धक्का नहीं, किसी से कोई छेड़छाड़ नहीं. और यह था एक बड़े आयोजन का एक प्रयास तां कि भांगड़ा को गिन्नीज़ बुक में दर्ज करवाया जा सके. पंजाब कृषि विश्व विद्दालय के खुले मैदान में  लोगों ने नशामुक्त होने ऐ साथ साथ यह वचन भी दिया कि वे कन्या भ्रूण हत्या के पाप से भी पूरी तरह तौबा कर लेंगें. इस मौके पर सत श्री अकाल और बोले सौ निहाल के जयकारे भी खूब गूंजे. उन्हें एक बार फिर सम्मान मिला. यह सब हुआ 11 नवम्बर की शाम  को. ठीक एक दिन पूर्व अर्थात दस नवम्बर को इन लोगों ने अपने प्यारे से गुरूदेव श्रीश्री रविशंकर को आलमगीर  के निकट गाँव जरखड़ में भी यह वचन दिया कि  वे अब कभी नशा नहीं करेंगे. वहां माता साहिब कौर खेल स्टेडीयम में डि-एडिक्शन पर एक विशेष सेमीनार भी था. पी ऐ यू  के विशाल मैदान में एक तरह से मेला ही लगा हुआ था. चहल पहल ऐसे थी जैसे कोई बहुत बड़ा घरेलू समारोह हो. लोग अपने घर की तरह आ जा रहे थे. प्रबन्धक बहुत ही प्रेम से सेवा कर रहे थे जैसे अपने घरों में हों. ऐसे लगता था कि जैसे हिंसा मुक्त समाज का सपना अब साकार होने के नज़दीक है. जीवन जीने की कला अर्थात आर्ट ऑफ़ लिविंग सीखने के लोग बहुत ही स्नेह और उत्साह से उमड़ कर आये हुए थे. सुदर्शन क्रिया का जादू साफ़ साफ़ नज़र आ रहा था. इतना बड़ा आयोजन, इतनी बड़ी संख्या में आये लोग, इतना बड़ा मंच पर कहीं कोई आपाधापी नहीं, कहीं कोई झगडा नहीं.....बस प्रेम ही प्रेम बरस रहा था. आप अगर अभी तक इस प्रेम रस को नहीं चख पाए तो अब देर मत कीजिये. .......अरे हां सच कार्यक्रम में नवजोत सिंह सिद्धू ने भी अपने शायराना अंदाज़ से श्री श्री रविशाकर जी को सुस्वागतम कहा.    ---रेक्टर कथूरिया