Saturday, September 25, 2010

ज़रा सोचिये..........!

ऑरकुट पर हमारे एक मित्र हैं प्रांजल. श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की जन्म स्थली पटना से सम्बन्ध रखने वाले Pranjal बहुत अच्छे अच्छे स्क्रैप भेजते हैं. अब जबकि अयोध्या विवाद पर फैसला आने वाला है तो प्रांजल ने एक नया स्क्रैप  निकाला है.  अपने इस नए स्क्रैप के बारे में प्रांजल कहते हैं:

 

                             हर रोज़ की तरह आज भी मैं दोस्तों के लिए स्क्रैप बना रहा था !

सोचा,.,. आज कौन सी शायरी या सन्देश लिखूं,.
फिर ध्यान हाल फ़िलहाल की गतिविधियों पर गया,.,.

अयोध्या की बाबरी मस्जिद !




हम सबको पता है इस मस्जिद पे हक के लिए हिन्दू मुस्लिम भाई
पिछले 472 साल से आपसी रंजिश में रह रहे हैं,.,.
मौका आने को है कि अब ज़माने बीत जाने के बाद कोर्ट
हफ्ते भर में अपना फैसला सुनाएगी,.,.!!
इतिहास में इतना कुछ हो चुका है कि आज भी कुछ
हिन्दू ओर मुस्लिम भाई एक दुसरे को बेगैरत की नज़रों
से देखतें हैं !
ऐसे में फैसला किसी एक पक्ष में गया तो गुजरात सी त्रासदी
एक बार फिर ज़माने को झेलनी पड़ सकती है !
फिर ज़रा सोचिये,.,.
मरने वाला आप या हम में से ही कोई होगा,.,.
पर डर मरने का नहीं, डर इंसानियत के मिट जाने का है !
क्या हुआ जो मस्जिद हिन्दुओं के नाम हो जाए,.,.
क्या हुआ जो मस्जिद मुसलमानों के नाम ही हो जाए,.,.
अगर इतिहास छानियेगा तो पता चलेगा कि बाबुर कि शासन में
हिन्दू-मुस्लिम दोनों साथ इस मस्जिद में सजदा-पूजा करते थे,.,.
ऐसा अब क्यूँ नहीं हो सकता ?!!

फैसले से पहले ही प्रदेश में हाई अलर्ट है,
फैसले के बाद, फैसले पे न जाने फिर कितने ओर दशकों तक
रंजिश चले,.,.
इसलिए,.,. वक़्त अभी ही है,.,.
इन बातों को अभी ही समझो,.,

हम सब मस्जिद पर अपने अपने हक के लिए दावेदारी कर रहे हैं,.,
लेकिन कभी हमने मस्जिद से इस बारे में पूछा,.,.?!!
पूछ कर देखना,.,. वोह बस इतना ही कहेगी कि मेरा हक तुम
सब पर है !!

दंगे होने से खून बहेंगे, घर जलेंगे,.
फिर मस्जिद को अपना बनाकर कौन आबाद रहेगा ?!!
हालात बिगड़ सकतें हैं,., पर अभी बिगड़े नहीं हैं,.,.
समझदार बनिए और दिल में एक दुसरे के लिए प्यार और
भाईचारा लाइए,.,.
फिर देखिये ज़िन्दगी कितनी ख़ुशी और सम्पूर्णता से गुज़र जाएगी !
मरना सबको है लेकिन मार कर मरने वाले को नहीं,.,.
मर कर प्यार देने वालों को ही मोक्ष मिलती है !

अपनी भारत माता के लिए पहली बार कुछ करने का मौका मिल रहा है हम सबको !
एकजुटता का साथ दीजिये और
अपने हिन्दुस्तान=
हम सब के हिंदुस्तान को बिखरने से बचा लीजिये !!
जय भारत माता !!


यह मेरी कल्पना है,.,.
आपको अगर मेरी कल्पना जायज़ लगे तो
लाल शब्दों को कॉपी कर अपने सारे हिन्दुस्तानी दोस्तों को स्क्रैप कर दें !!
यह मेरी विनती है !!
आप अपने विचार हमसे हमारी कम्युनिटी 
'टेंशन लेने का नहीं देने का ツएक टोपिक 'Jaago Rey' में भी प्रत्यक्ष रख सकतें हैं !!
Pranjal प्यारा सा दोस्त !!;)

Thursday, September 23, 2010

जारी है रेल ट्रैक पर हाथियों की मौत का सिलसिला

एक पुरानी तस्वीर 
इन्सान को इन्सान की कोई परवाह हो या न हो पर हाथियों को इस बात की परवाह अवश्य है की उनके बच्चे कहीं रेल के नीचे न आ जायें. बस प्यार और मोह ममता की इसी भावना को कायम रखते हुए पांच हाथियों ने खुद को कुर्बान कर दिया. ये पांचो हाथी अपने दो नन्हे हाथियों को बचना चाहते थे जो एक रेल मार्ग में फंस चुके थे. यह सब हुआ जलपाईगुड़ी पशिचमी बंगाल के रेल मार्ग में. मौत के मूंह में गए इन सात हाथियों में तीन तो हाथी के बच्चे थे जबकि तीन हथनियां थीं. इनमें से पांच की मौत तो मौके पर ही हो गयी जबकि दो हाथियों ने अस्पताल में जा कर दम तोड़ दिया. यह हादसा बुधवार की रात को उस समय हुआ जब हाथियों का यह झुण्ड मोराघात वन की तरफ से रेलवे लाईन को पार करके दियेना वन जा रहा था जो की रेल लाईन के दूसरी ओर है. इसी बीच दो नन्हे हाथी रेल मार्ग में फंस गए. अन्य पांच हाथी उन्हें निकालने के प्रयास में ही थे की इतने में ही मालगाड़ी आ गयी. हाथियों के चिंघाड़ने की आवाज़ सुन कर जहां वन अधिकारी मौके पर पहुंचे वहीं बहुत से दूसरे हाथी भी वहां पहुंच गए.पढ़िए पूरी खबर बस यहां क्लिक करके. गौरतलब है कि 1987 के बाद 118 हाथी  इसी तरह रेलवे लाईन पर मौत का शिकार हुए. उत्तरांचल वन विभाग और उत्तर रेलवे ने इन मौतों को रोकने के लिए संयुक्त प्रयास भी शुरू किये थे पर अभी तक उनका कोई ठोस नतीजा निकलता दिखाई नहीं दे रहा. अगर आपके पास भी कोई ऐसी खबर हो तो हमें अवश्य  भेजें. हम उसे आपके नाम के साथ प्रकाशित करेंगे.   --रेक्टर कथूरिया 

अयोध्या विवाद पर फैसला टला

अयोध्या मामले पर 24 सितम्बर को आने वाला फैसला अब सुप्रीम कोर्ट ने आगे टाल दिया है. गौरतलब है कि पूरे देश के साथ साथ विदेशों में भी इस फैसले का इंतज़ार हो रहा था. सुप्रीम कोर्ट ने अपना यह फैसला रमेश चन्द्र त्रिपाठी कि याचिका पर दिया है. अब इस मामले पर अगली सुनवाई 28 सितम्बर को होगी. इस पूरी खबर को वन इंडिया ने भी प्रस्तुत किया है और बहुत से अन्य माध्यमों ने भी. गौरतलब है कि मुस्लिम पक्षकारों का पहले से ही यह आरोप था कि कांग्रेस इस मामले में साज़िश रच रही है.इस बात को जनादेश ने भी खुल कर उठाया है. इसी बीच एडीटर्स गिल्ड ने मीडिया संस्थानों से अपील कि है कि वे अयोध्या मामले की कवरेज में सावधानी बरतें. अयोध्या मामले का इंतज़ार पूरे भारत को था. अगर आपके पास इस मामले पर कुछ ख़ास खबर या विचार हो तो हमें तुरंत भेजें हम उसे आपके नाम के साथ प्रकाशित करेंगे. --रेक्टर कथूरिया 

तुम अपनी करनी कर गुज़रो

अख़बारों और टीवी चैनलों के मुकाबिले में बहुत ही तेज़ी से अपना अलग स्थान बना रहे हिंदी ब्लॉग जगत में एक और शानदार ब्लाग आया है...जो फैज़ साहिब को समर्पित है. गौरतलब है कि फैज़ साहिब पर, उनकी शायरी पर बहुत कुछ लिखा गया है और बहुत कुछ लिखा जाता रहेगा. मुझे एक शाम मेरे नाम भी याद है....शीशों का मसीहा कोई नहीं क्या आस लगाये बैठे हो. कविता कोष की वोह ख़ास पोस्ट भी एक महत्वपूर्ण संकलन है. इसी तरह वह ब्लॉग जिसमें फैज़ साहिब की शायरी को संकलित करने के लिए बहुत मेहनत की गयी है. कलाम-ऐ-फैज़ जिसमें ज़िक्र है...
जब कभी बिकता है बाज़ार में मज़दूर का गोश्त 
शाहराहों पे ग़रीबों का लहू बह्ता है 
आग सी सीने में रह रह के उबलती है न पूछ
अपने दिल पर मुझे क़ाबू ही नहीं रहता है.
अंदर की बात में भी कमाल किया गया था. हिंदी कुञ्ज में भी फैज़ साहिब की चर्चा बहुत ही यादगारी अंदाज़ से हुई और साहित्य कुञ्ज का निराला अंदाज़ भी मुझे याद है. इसी तरह चत्रांजलि में भी फैज़ साहिब का क्रांति वाला रंग उभर कर सामने आता है जब वह कहते हैं :
मता-ऐ-लोह कलम छीन गया तो क्या गम है, 
कि खून-ऐ-दिल में डुबोली हैं उंगलियां मैंने. 
इस सब के साथ साथ आज हम जिस ब्लॉग कि चर्चा कर रहे हैं वह मेरी नज़र में कल रात ही आया. इसमें फैज़ साहिब की चर्चा है, उनकी शायरी की चर्चा है, उनकी ज़िन्दगी की चर्चा है. इस ब्लॉग का संचालन कर रही है लखनऊ की ऋचा जिसे नवाबों के शहर का शायराना माहौल कुछ और ज़िम्मेदार और काव्यपूर्ण बना देता है. शायद इसी लिए वह फैज़ साहिब की शायरी के प्रस्तुति करण  को और खूबसूरत भी बना पायी. इस ब्लॉग की  शुरुयात होती है फैज़ साहिब के ही एक बहुत ही अर्थपूर्ण कथन से जिसमें फैज़ साहिब कहते हैं: शेयर लिखना जुर्म न सही लेकिन बेवजह शेयर लिखते रहना ऐसी दानिशमंदी भी नहीं. इसके साथ ही आता है फैज़ साहिब का एक छोटा सा शेयर : 

बात बस से निकल चली है
दिल की हालत संभल चली है
अब जुनूं हद से बढ़ चला है
अब तबीयत बहल चली है.
इसके साथ ही शुरू होती है उनके रूबरू होने की औपचारिकता कुछ इस तरह से:फैज़ की शेर-ओ-शायरी से रु-ब-रु होने से पहले आइये मिलते हैं फैज़ से... यूँ तो फैज़ की शख्सियत और फ़न के बारे में कुछ भी कहने की ना तो हैसियत है हमारी ना ही हम ये हिमाक़त कर सकते हैं... बस जो थोड़ा बहुत उनके बारे में पढ़ा और जाना है वो ही आप सब के साथ बाँट रही हूँ...3 फरवरी सन 1911 को, जिला सियालकोट(बंटवारे से पूर्व पंजाब)के कस्बे कादिर खां के एक अमीर पढ़े लिखे ज़मींदार ख़ानदान में जन्मे फैज़ अहमद फैज़ आधुनिक काल में उर्दू अदब और शायरी की दुनिया का वो रौशन सितारा हैं जिनकी गज़लों और नज़्मों के रौशन रंगों ने मौजूदा समय के तकरीबन हर शायर को प्रभावित किया है. इस ब्लॉग में उनकी ज़िन्दगी की बहुत सी अहम बातों को बेहद खूबसूरती से प्रस्तुत किया गया है. इसे पूरा पढ़ने के लिए बस यहां क्लिक करिए. आपको यह पोस्ट कैसी लगी अवश्य बताएं.    --रेक्टर कथूरिया








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आप फैज़ साहिब को रोमन में पढ़ना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें . आप को बहुत कुछ मिलेगा.
* देवनागरी और रोमन  दोनों में इसे प्रस्तुत करने का प्रयास किया है पंजाबी पोर्टल ने .
* फैज़ साहिब यहां भी हैं पर उर्दू में.
फैज़ साहिब पर एक नज़र यहां भी.

*फैज़ साहिब का आखिरी मुशायरा 

Saturday, September 18, 2010

बच्चे, नक्सलवादी और बैंड

 बंदूक के बल पर सत्ता पाने के प्रयासों में जुटे रक्तरंजित नक्सलवादी अब बच्चों के रोल माडल भी बन चुके हैं. आपको यह बात असत्य या कड़वी लग सकती है पर है यह हकीकत और यह हकीकत सामने आयी है बस्तर में करवाए गए एक सर्वेक्षण के दौरान.सर्वेक्षण में पूछे गए सवालों का जवाब देते हुए इन बच्चों ने सब से प्रथम चुनाव किया नक्सलवादियों का जबकि शिक्षा जगत से जुड़े लोग दूसरे नम्बर पर आये हैं. इसे पूरे विस्तार से प्रकाशित किया है राजकुमार ग्वालानी ने राजतन्त्र में. पढ़ने के लिए यहां चटखा लगायें. इसके साथ ही एक और कहबर आई है बस्तर के जंगलों से. उन्हीं जंगलों से जहां गोली की आवाज़ और बारूद की गंध शायद कोई नयी बात न लगती हो लेकिन वहां से अब आ रही हैं संगीत सवरियां.विस्फोट.कॉम में संजीव तिवारी बता रहे हैं कि  हाल के वर्षों में देश दुनिया बस्तर को सिर्फ इसलिए जानती है कि वहां कब कहां कैसे कितने नक्सली मारे गये या फिर नक्सलियों ने कितने पुलिसवालों को मार गिराया है. लेकिन आदिवासियों की समृद्ध दैवीय परंपरा से एक ऐसा नाद उठ खड़ा हुआ है जो संगीनों की कर्कश आवाज को दबाने के लिए बस्तर से निकल पड़ा है. यह बस्तर बैण्ड है. आदिवासियों की अपनी पहल पर निर्मित हुए बस्तर बैंड देश दुनिया को बस्तर के इस परंपरागत स्वरूप से परिचय करा रहा है जो बस्तर के संगीत में विराजमान दैवीय नाद से श्रोताओं के अनहद को छू रहा है.लीजिये आप भी महसूस कीजिये जंगल के इस आदिवासी संगीत का दैवीय नाद. बस्‍तर बैंड के संयोजन, निर्देशन और परिकल्पना रंगकर्मी एवं लोककलाकार अनूप रंजन पांडेय कहते हैं कि हमारा प्रयास इस बैंड के रूप में बस्तर की अलग-अलग बोलियों और प्रथाओं को एक मंच पर लाने का है। आगे वे सहजता से स्‍वीकार करते हुए कहते हैं कि वे स्‍वयं इन कलाकारों से निरंतर सीख रहे हैं, विलुप्त होते आदिवासी वाद्य यंत्रों के संग्रहण के जुनून ने कब बस्तर बैंड की शक्ल अख्तियार कर ली पता ही नहीं चला। इस खर्चीले, श्रम समय साध्य उपक्रम की शुरुआत करीब 10 साल पहले हुई थी, लेकिन 2004 के आसपास बैंड ने आकार लिया। किसी बड़े मंच पर तीन साल पहले उसकी पहली प्रस्तुति हुई। पूरी रिपोर्ट पढ़ने के लिए बस यहां चटखा लगाना होगा.
गौरतलब है कि इस बैंड को सभी के सामने लाने वाले इसके संयोजक अनूप रंजन पांडे अपने छात्र जीवन से ही इस कला से जुड़े हुए हैं. बस्तर की आदिवासी संस्कृति की संपूर्ण झलक दिखाने वाला बस्तर बैंड अक्टूबर में होने वाले दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स में धमाल मचाएगा। इसे उद्घाटन अवसर की चुनिंदा प्रस्तुतियों के लिए चुना गया है। अब देखना होगा कि इस संगीत से मायोवादियों के दिल और दिमाग में कौन सी संगीत लहरियां झंकृत होती हैं.    --रेक्टर कथूरिया 

ज्ञान, मैडल और नक़ल

संकट में मीडिया एक छोटी सी पोस्ट थी जो पंजाब स्क्रीन पर 17 सितम्बर 2010 को प्रकाशित हुई. इसमें कुछ मुद्दे थे जिन्हें उठाने के लिए कुछ लिंक दिए गए थे. इस पर एक वशिष्ट टिप्पणी प्राप्त हुई जिसे भेजने वाले ने इससे कहीं अधिक महत्व के मुद्दे उठाएं हैं. जिस तरफ से यह टिप्पणी आई उसकी आवाज़ को दबाने के लिए दुनिया भर में साजिशें हुईं. कहीं जानबूझ कर और कहीं किसी मजबूरी, डर या दबाव में. लेकिन यह तो वह आवाज़ थी जिसें तूफानों के सामने चिराग जलाने की ज़िद पूरी करके दिखानी थी और दिखाई भी. अब इस आवाज़ ने फिर चेताया है. ज्ञान और शिक्षा के नाम पर जो अज्ञान एकत्र करके उस पर गौरव दिखाया जा रहा है उस पर टिप्पणी करते हुए यह आवाज़ कहती है, "आज का इंसान भी कुछ ऐसा ही हो गया है जो शिक्षा चाहता हैगोल्ड मेडल चाहता हैसबसे आगे रहना चाहता हैप्रमाण पत्र चाहता है पर ज्ञान नहीं ....ज्ञान के लिए विनम्रता जरुरी हैस्वयं का ज्ञान होना ही ब्रह्म का ज्ञान है." आप पूरी पढ़ने तक पहुंच सके तो आपको भी मिलेगा एक नया ज्ञान और पूरी पढ़ने के लिए आपको बस यहां क्लिक करना होगा. इस पोस्ट पर टिप्पणियों का सिलसिला चला तो किसी मित्र ने अपना एतराज़ दर्ज कराते हुए कहा, "क्या गोल्ड मेडल के साथ ज्ञान असंभव है? ओशो भी तो गोल्ड मेडलिस्ट थे!" इसके जवाब में जो लिंक वहां दिया गया उसे यहां भी दिया जा रहा नकल का ऐसा खेल . अगर आप इस मामले पर कुछ कहना चाहते हैं तो आपका भी स्वागत है. अगर आप के पास कोई ऐसा लिंक है तो आपभी हमें भेजिए हम उसे आपके नाम के साथ प्रकाशित करेंगे.       --रेक्टर कथूरिया 

Friday, September 17, 2010

संकट में मीडिया

मीडिया में बहुत से ऐसे संस्थान भी हैं जो खुद मीडिया के लिए बने नियमों की धज्जियाँ उड़ाने से भी बाज़ नहीं आते. कुछ ऐसा ही मामला सामने आया है मिस्र में जहां एक अखबार ने एक तस्वीर को प्रकाशित करते वक्त कुछ हेरफेर कर दिया. नेतुर्त्व किसी और ने किया था पर दिखा दिया गया किसी और का. वन इंडिया ने इसे बहुत ही प्रमुखता से प्रस्तुत किया है. पूरा मामला जाने के लिए यहां क्लिक करें. इसी बीच मीडिया से जुडी एक और खबर आई है भुवनेश्वर से. उड़िया समाचार पत्र 'दैनिक सूर्यप्रभा' के मालिक, प्रकाशक और मुद्रक बिकास स्वैन को एक छात्र को एक सरकारी कंपनी [^] में नौकरी दिलाने का झांसा देकर 1.5 लाख रुपये एंठने के आरोप में गुरुवार को गिरफ्तार किया गया था। शिकायत दर्ज कराने वाले मोहित पांडा ने मंगलवार को आरोप लगाया था कि स्वैन ने उसे नियुक्ति पत्र दिया था लेकिन वह नकली था। जब उसने अपना पैसा वापस मांगा तो उसे जान से मारने की धमकी दी गई। दूसरी ओर  विपक्षी दलों और पत्रकार संगठनों का कहना है कि उसे सरकार के खिलाफ लिखने के कारण फंसाया गया है।पूरी खबर आप पढ़ सकते हैं यहां क्लिक करके. गौरतलब है की अभी हाल ही में एक और चिंतनीय खबर यह भी आई थी की इराक में सन 2003 में शुरू हुए युद्ध के पश्चात 230 पत्रकार मौत के मूंह में जा चुके हैं. पूरी खबर पढ़िए बस यहां क्लिक करके.    --रेक्टर कथूरिया




एक शहादत और


बस  अब यादें रह गयीं पूनम सपरा की 


...और अब आज़रबाईजान में ब्लागरों पर हकूमती कहर