Tuesday, August 31, 2010

आजाद के एनकाउंटर पर सवाल जारी

पत्रकार हेम पांडे का शव 
माओवादी नेता आज़ाद का शव 
रिपोर्ट बताती है कि नागपुर से आज़ाद को पकड़ने से लेकर उसके एनकाउंटर की खबर आने के बाद तक महाराष्ट्र की नक्सल विंग को कोई जानकारी नहीं थी कि आंध्र प्रदेश एसआईबी कैसे महाराष्ट्र में बिना जानकारी के घुसी। कैसे नागपुर में आकर उसने अपने ऑपरेशन को अंजाम दिया। कैसे महाराष्ट्र के चार जिलों को पार कर आंध्र के अदिलाबाद तक आजाद को बिना जानकारी ले जाया गया। रिपोर्ट में यह भी दर्ज है कि आंध्र एसआईबी के अधिकारी 27 जून को ही नागपुर आ गये थे। 
 यह दिन रविवार का था। यानी उन्हें आजाद के नागपुर पहुंचने की जानकारी पहले से थी। और इसके लिये पहले से व्यूह रचना की गयी। जितनी गाड़ियों ने महाराराष्ट्र की सीमा पार की और नागपुर से आंध्र की सीमा पर कदम रखने से पहले दो जगहों पर टोल टैक्स दिया, उसमें आंध्र की किसी पुलिस जीप के नंबर का कोई जिक्र नहीं है। अन्य गाड़ियों को लेकर जांच रिपोर्ट ने सिर्फ तीन वाहनों पर संदेह जाहिर किया है, जिसमें टाटा इंडिका कार, बुलेरो और टाटा सूमो हैं। लेकिन इन गाडियो के नंबरों की वैधता पर जांच रिपोर्ट में संदेह किया गया है। जो रिपोर्ट महाराष्ट्र के गढचिरोली से आयी है, उसमें इन तीनो गाड़ियों के फर्जी नंबर होने के संकेत भी दिये गये हैं। यानी संकेत यह भी है कि जिन तीन गाड़ियों के नंबर प्लेट संदेहपूर्ण पाये गये, उन्हीं को जांच के दायरे में लाया गया है। इस तरह के कई सवाल  हैं जो इस रिपोर्ट में उठाये गए हैं. हिंदी लोक में प्रकाशित इस खबर को आप पढ़ सकते हैं यहां क्लिक करके
पत्रकार हेम पांडे  की  पत्नी  और  भाई गृहमंत्री के साथ  
और जिस गाड़ी में आजाद को ले जाया गयावह गाड़ी कार थी. यानी सरकारी पुलिस जीप नहीं थी. सबकुछ योजना के तहत हआ. लेकिन तीसरा व्यक्ति कौन था और उस पर अगर आजाद को भरोसा थातो फ़िर वह व्यक्ति उसके बाद से गायब क्यों है?यह आजाद की मौत के बाद नागपुर में तैनात नक्सल विरोधी पुलिस एंटी नक्सल ऑपरेशन की अपनी रिपोर्ट है. अपनी पहल पर नागपुर के एंटी नक्सल ऑपरेशन विंग की यह रिपोर्ट कई मायने में महत्वपूर्ण है. रिपोर्ट तैयार करने का मतलब है कि समूचे रेड कॉरिडोर में सिर्फ़ नागपुर ही वह जगह है,जहां एडीजी रैंक के आइपीएस की तैनाती एंटी नक्सल ऑपरेशन के तहत है और वही जांच करा रहे हैं कि नागपुर से आजाद को बिना उनकी जानकारी के कैसे उठा लिया गया. यानी एंटी नक्सल ऑपरेशन भी मान रहा है कि आजाद को नागपुर से आंध्रप्रदेश के अदिलाबाद में ले जाया गया.
रिपोर्ट के अंश यह भी संकेत दे रहे हैं कि हाल के दौर में आंध्रप्रदेश की एसआइबीमहाराष्ट्र पुलिस या एंटी नक्सल ऑपरेशन के अधिकारियों को जानकारी दिये बगैर दो दर्जन से ज्यादा लोगों को उठा चुकी है . इससे पहले महाराष्ट्र के इस एंटी नक्सल ऑपरेशन ने कभी आंध्रप्रदेश पुलिस की ऐसी कारवाइयों के लेकर कोई पहल की नहीं. लेकिन आजाद के एनकाउंटर के बाद जब राजनीतिक तौर पर इसे फ़रजी बताते हए इसकी जांच की मांग की जा रही हैतो एंटी नक्सल ऑपरेशन के सामने यह भी सवाल खड़ा हआ है कि इसमें उसकी भूमिका को लेकर भी सवाल खड़े हो सकते हैं. प्रभात खबर ने इस रिपोर्ट को महत्व दे कर प्रकाशित किया है. इसे पढ़ने के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं.
गौरतलब है कि हेम पांडे की मौत को लेकर संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिकवैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन यूनेस्को की महानिदेशक इरिना बोकोवा ने कहा, हेम चंद्र पांडे की जिन परिस्थितियों में मौत हुईमैं उन्हें लेकर चिंतित हूं. मैं अधिकारियों से अपील करती हूं कि वे सारी परिस्थितियों पर प्रकाश डालें. हेम पण्डे को जहर का इंजेक्शन दे कर मारने का खुलासा भड़ास ने जुलाई में ही कर दिया था. ओम प्रकाश तिवारी ने समालोचना में भी हेम पांडे की मौत के मुद्दे को उठाया था. इसी बीच आज़ाद की पोस्ट मार्टम रिपोर्ट भी सामने आ चुकी है. उत्तर भारत के जानेमाने समाचार पत्र पंजाब केसरी ने भी इस मामले को एक बार फिर प्रमुखता से उठाते हुए अपने प्रथम पृष्ठ पर इस खबर को जगह दी. इस खबर कि कतरन भी इस खबर के साथ प्रकाशित की गयी है जिस पर क्लिक करके आप पूरी खबर पढ़ सकते हैं.

रिपोर्ट की फोटो 

इसी बीच नक्सल विरोधी प्रचार अभियान भी तेज़ी से जारी है. इस सम्बन्ध में बताया गया है कि जहां एक ओर 
माओवादियों ने अपनी भर्ती तेज़ कर दी है वहीं छात्रों ने नक्सलवादियों की ओर से लगाये गए काले झंडे को उतार फेंका. आने वाला समय शान्ति की खबर कब लेकर आता है इसका पता वक्त ही बता सकेगा.--रेक्टर  कथूरिया

क्या कहते हैं न्याय विशेषज्ञ 
 Azad Encounter: No Point-Blank Justice


क्या यही है सच्ची कहानी

Azad Encounter: Mountain Of Lies

तथ्यों पर एक नज़र
Azad Encounter: Holes In The 




बहुत ही पास से मारा गया
Death By An Inch… Lies By The Mile

पोस्ट रिपोर्ट
Post-mortem indicates Azad was shot from close range

Friday, August 27, 2010

हिन्दू समाज आतंकवादी हो ही नहीं सकता....मास्टर मोहन लाल


"भगवा आतंकवाद" के मुद्दे पर माहौल एक बार फिर गर्मा गया है. भारतीय जनता पार्टी ने भोपाल में इसी मुद्दे पर चर्चा करते हुए इन शब्दों पर कड़ा एतराज़ जताया. भाजपा ने इन शब्दों के खिलाफ जहां अपने तेवर और तीखे कर लिए हैं वहीँ चेतावनी भी दी है कि अगर इन शब्दों का प्रयोग नहीं रुका तो देश भर में इसके खिलाफ सखत प्रतिक्रिया होगी. गौरतलब है कि केन्द्रीय गृह मन्त्री पी चिदंबरम ने हाल ही में कहा था कि भगवा आतंकवाद खतरनाक है और इससे सावधान रहने की आवश्यकता है. 
भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी ने  इन शब्दों पर सख्त एतराज़ करते हुए देशव्यापी प्रतिक्रिया की चेतावनी दी. वहीँ भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने भी इस मुद्दे पर पार्टी की तरफ से रोष व्यक्त किया है. उन्होंने याद दिलाया कि राष्ट्रीय ध्वज बनाने के लिए कांग्रेस की कमेटी ने जिस झंडे की अनुशंसा की थी वह भगवा ही था. अभी भी भगवा रंग राष्ट्रीय ध्वज में सब से ऊपर है. इससे पूर्व शिवसेना सदस्यों ने भी लोक सभा में इस मुद्दे पर अपना रोष व्यक्त करने के लिए सदन से वाकआयूट किया इस खबर को ख़ास खबर सहित मीडिया ने काफी प्रमुखता से स्थान दिया है.
गौरतलब है कि इन शब्दों के प्रयोग पर पहले भी सख्त रोष व्यक्त किया जा चुका है. नागपुर में भी इस मुद्दे काफी चर्चा हुई. आर एस एस के विचारक एम जी वैद्य उर्फ़ बाबू राम वैद्य ने तो इसे एक तोहमत बताते हुए यहां तक कहा कि इसे जल्द से जल्द हटाया जाना चाहीए. उन्होंने यह भी कहा कि जब 1984 में तीन हजार सिखों कि हत्याएं हुईं थीं तो क्या इसे कांग्रेस का आतंकवाद कहा जाना चाहिए....? उन्होंने कहा कि इस साज़िश के अंतर्गत जहां हिन्दू समाज को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है वहीँ मुस्लिम समाज को लुभाने के प्रयास भी हो रहे है. इसी बीच पंजाब के कैबनेट मन्त्री मास्टर मोहन लाल ने तो बहुत ही भावुक होते हुए यह सवाल भी किया कि क्या इन पांच सात लोगों का नाम आने से पूरा हिन्दू समाज ही आतंकवादी हो गया....???? उन्होंने अपने चिर परिचित अंदाज़ में स्पष्ट किया कि हिन्दू समाज आतंकवादी हो ही नहीं सकता...!अब देखना यह होगा कि आरोप की तरह लगते इन शब्दों के प्रयोग का सिलसिला राजनीती की जंग में कब तक जारी रहता है. यदि आपको इस मुद्दे पर कुछ कहना है तो हमें तुरंत अपने विचार भेजिए. हम भी इंतज़ार में हैं और पंजाब स्क्रीन के पाठक भी. --रेक्टर कथूरिया 

Thursday, August 26, 2010

हिंदुस्तान में सचमुच दिलजला आदमी पाना मुश्किल है

यह इन्हीं दिनों की बात है पर अभी तक मुझे यकीन नहीं हो पा रहा. लगता है कोई सपना देख लिया. भला आज के युग में इतने सच कोई इतनी बेबाकी से कैसे बोल सकता है ? किसको है देश की फ़िक्र ? कौन करता है मुद्दों की बात ? कौन छोड़ता है अपना सुख ? कौन करता होगा जनता की बात ? पर यह सभी कुछ है आजके इस कलियुग में है. आज के इस कारोबारी युग में है. मैं पहली बार तो पूरा पढ़ ही नहीं पाया. गला भरा, आँखें भरी..जी चाहा कहीं जा कर छुप छुपा कर रो लूं तो शायद मन हल्का हो जाए. तीन चार बार में तोड़ तोड़ कर पढ़ा तो सारी रात सो नहीं पाया. दिल दिमाग को हिला देने वाला यह आलेख. प्रस्तुत हैं उस सम्पादकीय लेख के कुछ अंश.--रेक्टर कथूरिया 
हरिवंश | 7/18/2010 2:59:25 AM
खबर को पढ़ने के बाद से ही बार-बार यह सवाल बेचैन कर रहा है कि 42 वर्षीय कैक्सी ताइवान में सुख का जीवन जी रहे हैं. इनवेस्टमेंट बैंकर हैं. फ़िर भी वह चीन जाने को क्यों बेचैन हैं? क्यों मौत आमंत्रित करने की बेचैनी है, उनमें? चीन, जहां उन्हें बचा जीवन जेल के शिकंजों में ही गुजारना होगा या मृत्युदंड की सजा होगी.
22 वर्षो से कैसे वह आग एक इंसान में धधकती रह सकती है? यह जानना, इंसान के उत्कर्ष को समझने जैसा है. वह भी इस भोग के युग में? किस तरह वह सुख का जीवन छोड़ अपने मार्गदर्शक और मित्र ली के साथ जेल काटना चाहते हैं? कैक्सी कहते हैं कि इस तरह का जीवन जीना ही मेरे लिए बड़ा सम्मान है.‘इट विल बी ए ग्रेट ऑनर फ़ॉर मी’. एक तरफ़ चीन में आज भी ऐसे नेता हैं, अपने विचारों के लिए मर मिटनेवाले? पर क्या रीढ़ है, भारत के नेताओं की? पद और कुरसी के लिए हर क्षण अपनी आत्मा गिरवी रखने को तैयार हैं. कर्म,जीवन और कनविक्शन में भारतीय नेताओं का कोई तालमेल ही नहीं.
1975-1980 तक भारत में तपे-तपाये नेताओं की पीढ़ी बची थी. जब इमरजेंसी लगी, तो अनेक लोगों ने माफ़ी मांग ली. फ़िर भी रीढ़वाले लोग थे. आज की राजनीति में अगर भारत में यह अग्नि परीक्षा हो जाये, तो कैक्सी के चरित्र के कितने लोग मिलेंगे? आज मामूली प्रतिबद्धता या वैचारिक आग्रह भी हमारे नेताओं में नहीं है. जीतते किसी दल से हैं, समर्थन किसी सरकार को देते हैं. सरकार बनाने में कहीं फ़ुदक कर चले जाते हैं. याद करिए लालू जी के जमाने में भाजपा से लेकर माले तक के विधायक अपनी मूल नाभि (दल) विचार से टूट कर सत्ता पक्ष में जा मिले.
हम रीढ़हीन कौम हैं. पैसे और पद के लिए विचार, संकल्प और अंतरात्मा गिरवी रखनेवाले. हम जयचंद, मीरजाफ़र,जगत सेठ की परंपरा, विचार और प्रभाव में पले-बढ़े लोग हैं. हमारे रक्त में खोट और दोष है.1857 से 1947 के बीच भारतीयों की एक रीढ़वाली कौम पैदा हुई. बहादुरशाह जफ़र, झांसी की रानी, कुंवर सिंह से चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और सुभाष की आवाज. आत्मबलवाले गांधीवादियों की साहसिक परंपरा. पर अब वह सब कुछ अतीत बन रहा है.
विरोध की राजनीति करना, सम्मान की बात नहीं रही. आत्मा की सौदेबाजी कर या गिरवी रख सत्ता पाना उपलब्धि है. दलाल बनना गौरव की बात है. शॉर्टकट सफ़लता आज फ़ैशन में है.क्यों हैं हम ऐसे?
मुझको ऐसा लगता है कि अपने देश में क्रांति, असंभव शब्द मैं इस्तेमाल नहीं करूंगा, प्राय: असंभव हो गयी है. लोग आधे-मुर्दा हैं, भूखे और रोगी हैं, लेकिन संतुष्ट भी हैं. संसार के और देशों में गरीबी के साथ-साथ असंतोष है और दिल में जलन. यहां थोड़ी-बहुत जलन इधर-उधर हो तो हो, लेकिन कोई खास मात्रा में जलन या असंतोष नहीं है.हिंदुस्तान में सचमुच दिलजला आदमी पाना मुश्किल है, जैसा कि यूरोप में होता है. यूरोप में तो आदमी अकड़ जाता है. अंदरूनी जुल्म के खिलाफ़ उस तरह का अकड़ा हुआ आदमी यहां पाना मुश्किल है. मैं इस बात को फ़िर दोहरा देना चाहता हूं कि बाहरी जुल्म के खिलाफ़ तो हमारे यहां भी उखड़े हुए आदमी रहे हैं, लेकिन अंदरूनी जुल्म के खिलाफ़ नहीं.
सच कहने को कोई तैयार नहीं.अब इस प्रकरण में एक नयी जानकारी आयी है, द संडे गार्जियन (20 जून, 2010) में. इस जानकारी के अनुसार एंडरसन की रिहाई के बाद मोहम्मद युनूस के बेटे की गंभीर सजा को अमेरिका ने माफ़ किया. मोहम्मद युनूस नेहरू परिवार के निकट मित्र और विश्वस्त सहयोगी रहे हैं. उनके पुत्र ओदल सहरयार को अमेरिका ने एक अपराध के मामले में 35 वर्ष की सख्त सजा सुनायी थी. इसके ठीक छह महीने पहले 7दिसंबर 1984 को भारत ने यूनियन कार्बाइड के चेयरमैन वारेन एंडरसन द संडे गार्जियन की रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि सहरयार की रिहाई, एंडरसन को सुरक्षित अमेरिका पहुंचाने के बाद हुई. साफ़ है, दोनों घटनाओं के बीच कोई रिश्ता है.यह खेल है सत्ता का. पर भारत में कोई सच बोलने का साहस नहीं कर रहा. दूसरी तरफ़ हाल में मैक्िसको की खाड़ी में तेल का रिसाव हुआ. अमेरिका के समुद्री तट से 65 किलोमीटर दूर. इसमें कुल 11 लोग मारे गये. इस मामले को खुद राष्ट्रपति ओबामा देख रहे हैं. दुनिया की सबसे बड़ी तेल कंपनी बीपी भारी मुसीबत में है. खुद ओबामा कंपनी के खिलाफ़ बयान दे चुके हैं.को भारत से निकालने में मदद की.
एक बार एक ही आदमी को सूली लगायी गयी थी, उस एक का परिणाम गुलामों का नजात साबित हुआ. एक ही आदमी को गोली मार दी गयी थी, उस एक का नतीजा हुआ नफ़रत की जलती हुई मशालें बुझ गयीं. सिर्फ़ 72 आदमियों ने नमक आंदोलन शुरू किया था, और उसके अंत में करोड़ों बिजलियां कौंधने लगी थीं. एक ही बच्चे को सामंत की गाड़ी ने कुचला था और उसके फ़लस्वरुप फ्रांस की गलियों में आजादी को बराबरी की पुकार लहू से भीग कर चिल्लाई थी. एक मंगल पांडेय के शरीर को गोलियों ने छेदा था और उसके नतीजे में लाखों गरज फ़ूट कर निकली थी, दिल्ली चलो- दिल्ली चलो. और एक ही हब्शी को जिंदा जलाया गया था, जब अब्राहम लिंकन ने कहा था कि गुलामी को नेस्तनाबूद कर दो. बगावत एक ही लफ्ज है. उसकी बुनियाद में इंसान है, उसका फ़ैलाव इंकलाब है. उसका नतीजा तख्तों और जुल्मों को पलटनेवाली आजादी है.

मैं एक अघोषित पागल हूं. कड़ियों, ईटों की छत-दीवारें दरकीं, बिना पलस्तर की,टूटे-उखड़े हैं फ़र्श और हैं फ़टी चादरें बिस्तर की,घर की न मरम्मत करा सका, दो बार विधायक रहकर भी, मैं एक खंडहरवासी हूं, खुश हूं इस बदहाली में भी,लाखों जनसाधारण बेघर उनकी पीड़ा से घायल हूं. मैं एक अघोषित पागल हूं. 111 करोड़ के इस मुल्क को आज ऐसे पागल चाहिए! अगर कहीं है, तो उनका विवरण और पता जरूर भेजें. (प्रभात खबर से साभार)
इसे पूरा पढने की हिम्मत और चाहत अगर हो तो बस यहाँ क्लिक कीजिये.  


एक नज़र :गबरू जवान हुआ एक किशोर
                             नदीम अख्तर

अनसुनी का मंचन 27 अगस्त को

अरविन्द गौड़
अनसुनी वास्तव में नाट्य रूपांतरण है हर्ष मंडेर की पुस्तक Unheard Voices का; जिसका स्टेज शो आयोजित किया जा रहा 27 अगस्त दिन शुक्रवार को शाम के 07 :30 बजे. दिल्ली की लोधी रोड पर स्थित इंडिया हैबिटेट सेंटर में इस नाटक का मंचन लोगों में उस वक्त भी एक नया उत्साह पैदा कर रहा है जब लोग बाढ़ की मार में हैं. इसकी स्क्रिप्ट लिखी है मल्लिका साराभाई ने और निर्देशन किया है स्टेज की दुनिया के जानेमाने रंगकर्मी अरविन्द गौड़ ने. वही अरविन्द गौड़ जो समाजिक अन्याय, घरेलू हिंसा, जाति-पाति, साम्प्रदायिकता, सत्ता की हिंसा जिसने मामलों पर अपनी आवाज़ मंच कला के ज़रिये  लगातार बुलंद कर रहे हैं. उनके ही स्थापित किये हुए संगठन अश्मिता आर्ट थिएटर ग्रु की ओर से किये जा रहे इस आयोजन में आप भी आइये ... इसका मज़ा आप निशुल्क ले सकते हैं. निमन्त्रण पत्र पाने के लिए आपको 9540656537, 9911013630 पर सम्पर्क करना होगा.  आपके पास भी अगर कोई ऐसी सूचना हो तो उसे हमारे साथ अवश्य शेयर करें.  --रेक्टर कथूरिया   

Tuesday, August 24, 2010

पूरी सुरक्षा

अफगानिस्तान के दुर्गम क्षेत्रों में सुरक्षा कोई आसान बात नहीं.  लम्बे समय से जंग का मैदान बने हुए इस देश में इस तरह की दुशवारियां भी दशकों से जारी हैं.  वहां वे सभी मुसीबतें हैं जो जंग अपने साथ लाती है. हाल ही में जब 14 अगस्त 2010 को  अफगानिस्तान के Zadran में अफगान इंटरनैशनल सुरक्षा सेनायों में सक्रिय एक अमेरिकी सैनिक अपनी डयूटी निभा रहा था तो अमेरिकी सेना के  Spc. Enoch Fleites  ने  इन पलों को अपने कैमरे में कैद  कर लिया. गौरतलब है कि वहां किये जा रहे सुरक्षा प्रबंधों के अंतर्गत बहुत से स्थान सुरक्षा के नज़रिए से दुश्मन के हाथों मुक्त करवा कर अपने हाथ में कर लिए हैं. आपको यह तस्वीर कैसी लगी, अवश्य बताएं. आपके पास भी अगर कोई ख़ास फोटोग्राफ हो तो उसे हमारे साथ भी शेयर करें हम उसे आपके नाम के साथ प्रकाशित करेंगे. --रेक्टर कथूरिया 

अफगान स्वतन्त्रता की 91 वीं वर्षगांठ

जब 19 अगस्त 2010 को काबुल में अफगानिस्तान की स्वतन्त्रता की 91 वीं वर्षगांठ मनायी गयी तो उस समरोह में अफगान राष्ट्रपति हामिद करज़ई, अफगान रक्षा मन्त्री अब्दुल रहीम वरदक और अन्य उच्च अधिकारी भी शामिल हुए. इस मौके पर रावलपिंडी समझौते पर हुए हस्ताक्षरों की याद भी विशेष तौर पर ताज़ा की गयी जब इसी समझौते के अंतर्गत 1919 में अफगानिस्तान को ब्रिटिश हकूमत से मुक्त कर दिया गया था. देश की आज़ादी के लिए शहीद होने वाले सैनिक जवानों को भी याद किया गया और उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए स्वतन्त्रता स्मृति स्थल पर बहुत ही सम्मान से फूलमालाएं भी अर्पित की गयीं. अमेरिकी रक्षा विभाग के लिए अमेरिकी वायु सेना के Staff Sgt. Bradley Lail ने इन पलों की यादें ताज़ा रखने के लिए इन्हें झट से अपने कैमरे में कैद कर लिया.आपको यह तस्वीर कैसी लगी..हमें अवश्य बताएं. हमें आपके विचारों की इंतज़ार रहेगी.  --रेक्टर कथूरिया 

राहत के पल

इस बार कुदरती आपदाएं पूरी दुनिया में अपना कहर ढा रही हैं.रूस, अमेरिका, चीन, पाकिस्तान और अब भारत. हाल ही में जब पाकिस्तान में बाढ़ आई तो पानी ने बहुत सा इलाका अपनी चपेट में ले लिया. इस तबाही को देख कर पूरी दुनिया का मन पसीज उठा.संकट और विपदा की इस घड़ी में मुसीबत मरे लोगों का साथ देने के लिए बहुत से देशों के लोगों ने तत्परता दिखाई.इसी राहत को लेकर जब अमेरिका का सैनिक वायुयान चिनूक हैलीकाप्टर स्वात घाटी में पहुंचा तो बाढ़ में घिरे लोगों ने कुछ राहत की सांस ली. जब 11 अगस्त 2010 के दिन पाकिस्तान के कुछ लोग इस हैलीकाप्टर से आटे की बोरियां उतार रहे थे अमेरिकी रक्षा विभाग की Sgt. Monica K. Smith ने इन पलों को अपने कैमरे में उतार लिया. अगर आपके पास भी कोई तस्वीर हो तो आप अवश्य भेजें हम उसे आपके नाम के साथ प्रकाशित करेंगे.--रेक्टर कथूरिया  

Saturday, August 21, 2010

एक छोटी सी ब्रेक

जब जंग लगती है तो शुरू हो जाता है कभी भी न खत्म होने वाली समस्यायों का एक लम्बा सिलसिला. लोगों के साथ साथ वहां लड़ने गयी सेना को भी बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. ऐसी हालत में अगर आम जनता और लोगों का आपसी सम्बन्ध मजबूत न हो तो बात और बिगड़ जाती है. इस लिए लोगों से सम्पर्क बनाना, उनके दुःख जानना, उनकी तकलीफों का पता लगाना, अमेरिकी सेना की उस पलटन के जवानों को भी बहुत आवश्यक लगा जो अफगानिस्तान के ज़बूल क्षेत्र में तायनात हैं.  जब इस पलटन के ये जवान 16 अगस्त 2010 को Mizan चौंकी पहुंचे तो इन जवानों ने थोड़ी सी ब्रेक ली. इस छोटी सी ब्रेक के इन पलों को देखते ही देखते अमेरिकी वायु सेना के Senior Airman Nathanael Callon  ने झट से अपने कैमरे में कैद कर लिया. आपको यह तस्वीर कैसी लगी....अवश्य बताएं...रेक्टर कथूरिया 

28 अगस्त को फिर बुलंद होगी पेड न्यूज़ के खिलाफ आवाज़


ज़रा सोचिये कैसा होगा वह दिन जब अखबारों और चैनलों में आतंकवादियों की तरफ से बड़ी बड़ी खबरें छपेंगी कि सबसे अच्छे हैं हम, हमने जहां जहां भी गोलियां चलायी, बम धमाके किये वे बहुत आवश्यक थे, उनमें मासूम लोग नहीं सभी पापी मारे गए, हमने किसी निर्दोष की हत्या नहीं की, हमने तो पापी का वध किया...., भ्रष्ट तत्वों और तस्करों जैसे समाज विरोधी तत्वों की तरफ से कहा जायेगा कि हमने जो रिश्वत ली वह तो बहुत आवश्यक थी, पैसे का संतुलन बनाये रखने के लिए उठाया गया कदम था, उस पैसे के  बदले हमने देश के राज़ नहीं बेचे, जो कागज़ बरामद हुए वे तो रद्दी के टुकड़े थे, बदबू मार रहे थे हमने उन्हें हटा कर सफाई कर दी है...फिर उस पैसे से हमने धर्मस्थलों में लंगर भी तो लगवाये हैं...देश के साथ हुए सौदों से जो पैसा खाने का इल्जाम हम पर है वह तो हमारी कमिशन थी...पूरी तरह से कानूनी कमाई.....अगर इस तरह की बहुत सी खबरें छपने लगें तो आप हैरान मत होना कि यह क्या हो रहा है. पेड न्यूज़ के चलते यही सब होने वाला है. पैसे खर्चो, कुछ कालम या फिर पेज खरीदो और उनमें छपवा डालो अपनी मर्जी की बातें. अगर पैसे थोड़े ज्यादा खर्चे जाएं तो उसके अंत में छोटा सा शब्द विज्ञापन भी नहीं दिखेगा. यही हालत चैनलों में भी आम हो जाएगी. अगर आप के आसपास सारी  की सारी स्थिति नर्क जैसी भी हुई तो भी खबर आयेगी स्वर्ग से सुंदर इलाका.
पेड न्यूज़ की चर्चा राज्य सभा में भी हुई थी, संगोष्ठियों में भी यह मुद्दा उठा, इसे मीडिया घरानों की काली कमाई भी कहा गया..ऐसा और भी बहुत कुछ कहा सुना गया. इसी बीच 5 अगस्त गुरूवार की रात को राजनीती खेल सत्ता का के विषय पर बहस शुरू करने से पहले मोर्य टीवी के एंकर ने ख़बरों की खरीदो फरोख्त के खिलाफ बाकायदा घोषणा की कि मोर्य टीवी मोर्य टीवी पेड न्यूज़ नहीं दिखायेगा.  अब जागरूक पत्रकारों ने इस विरोध को और भी ज़ोरदार बनाते हुए पेड न्यूज़ के खिलाफ बिगुल बजा दिया है.
फिलहाल जो पत्रकार एंटी पेड न्यूज़ फोरम से जुड़ चुके हैं, उनके नाम इस प्रकार हैं- अमरनाथ तिवारी (द पॉयनियर), अजय कुमार (बिहार टाइम्स डॉट काम), आनंद एस. टी. दास (एशियन एज), अभय कुमार (डेक्कन हेराल्ड), धर्मवीर सिन्हा (आज तक, झारखंड), गंगा प्रसाद (जनसत्ता), हरिवंश (प्रभात ख़बर), मणिकांत ठाकुर (बीबीसी), मनोज चौरसिया (स्टेट्समैन), मुकेश कुमार (मौर्य टीवी), निवेदिता झा (नई दुनिया), प्रियरंजन भारती (राजस्थान पत्रिका), सौम्यजीत बैनर्जी (द हिंदू), संतोष सिंह (इंडियन एक्सप्रेस), संजय सिंह (द ट्रिब्यून), सुजीत झा (आज तक, बिहार), श्रीकांत प्रत्यूष (ज़ी न्यूज़), सुरूर अहमद (स्वतंत्र पत्रकार), शशिधर खान (स्वतंत्र पत्रकार)।



फोरम बिहार, झारखंड और दूसरे राज्यों के पत्रकारों का सहयोग और समर्थन हासिल करने के लिए सीधे संपर्क कर रहा है। इस ख़बर के माध्यम से भी वह समस्त पत्रकारों, पत्रकार संगठनों और मीडिया संस्थानों से अपील करता है कि वे इस मुहिम को मज़बूती प्रदान करने के लिए 28 अगस्त को पटना में जुटें और सामूहिक तौर पर आवाज़ बुलंद करें। पेड न्यूज़ के ख़िलाफ़ इस मुहिम से जुड़ने के लिए या इस बारे में अपने सुझाव देने के लिए कृपया इस पते पर मेल करें- antipaidnews@gmail.com
गौरतलब है कि वर्ष 2009 के अंत में एडीटरज गिल्ड ने भी इसे ख़बरों का काला धंधा बताते हुए इसे रोकने के लिए पहल की थी. अब देखना यह है कि मीडिया पर जनता का भरोसा कायम रहता है या दूसरे क्षेत्रों कि तरह यहां भी आम आदमी को निराशा ही हाथ लगने वाली है...???   -रेक्टर कथूरिया 

Tuesday, August 17, 2010

आध्यात्मिकता अमीरों की ट्रांक्विलाइज़र है

परेशानी, तनाव, क्रोध और उतेजना के वे पल जिनमें कुछ कर गुजरने का जोश भी पैदा होता है, हालात को बदलने के लिए जान की बाज़ी लगाने की हिम्मत भी जन्म लेती है, इन्सान आर या पार की जंग लड़ने का मन बनाता है वे अनमोल पल कभी कभी उस समय मिट्टी में मिल जाते हैं जब इन्सान को कोई बहका लेता है केवल यह कह कर कि यह सब तो किस्मत का खेल है, कर्मों का फल, भगवान की इच्छा, तुम क्या कर सकते हो, तुम्हारा क्या बस चलेगा उस सर्वशक्तिमान के सामने बस बैठो और उसका नाम जपो...! शायद इसी लिए धर्म को  अफीम कहा गया. यही विचार बहुत से अमीरों पर भी उस वक्त असर करता है जब वे अपने ही हाथों हो रहे दूसरों के शोषण को देख कर आत्म ग्लानी से भर उठते हैं, इसे बंद करना चाहते हैं..लेकिन यह विचार उन्हें शक्ति देता है इस पाप कि भावना को भूलाने की और  लूट-खसूट और शोषण के इस सिलसिले को जारी रखने की. पूर्व जन्मों के कर्मों की सज़ा और इनाम के चक्कर में उलझा कर यह अमीरों को भी कभी सही पथ पर नहीं आने देता. कभी भगवान कृष्ण ने भी अगर ऐसा ही सोचा या कहा होता तो आज केवल दुर्योधन का ही नाम होता और अर्जुन तो महाभारत से भी पहले ही कहीं खो गया होता. तब का गीता उपदेश आज भी बहुत अर्थपूर्ण है. लेकिन उसके अर्थों में भी आज नए नए संशय डालने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही. मैं यह सब सोच ही रहा था कि शहीद भगत सिंह जी के अत्यंत निकट पारिवारिक सदस्य प्रोफैसर जगमोहन सिंह जी की तरफ से एक मेल मिली. इस मेल में एक विशेष रचना थी जिसे थोडा और खोजने पर पता चला कि इसे कबाडखाना में भी प्रकाशित किया जा चुका है.  रचना बहुत ही महत्वपूर्ण है, इसलिए इसे आप पढ़िए अवश्य. यहाँ केवल इस ख़ास भाषण के कुछ अंश दिए जा रहे है.जो आपको ले चलेंगे उस हकीकत की ओर जिसे बदलने के लिए आप चल सकेंगे संघर्ष की राह पर :--रेक्टर कथूरिया  
इसकी शुरुयात होती है कुछ इस तरह,  'हमारे समय के बड़े कवि-कहानीकार श्री कुमार अम्बुज ने मेल से यह ज़बरदस्त और ज़रूरी दस्तावेज़ भेजा है. बहुत सारे सवाल खड़े करता जावेद अख़्तर का यह सम्भाषण इत्मीनान से पढ़े जाने की दरकार रखता है. इस के लिए श्री कुमार अम्बुज और डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल का बहुत बहुत आभार." (जावेद अख्तर के इण्डिया टुडे कॉनक्लेव में दिनांक 26 फरवरी, 2005 को ‘स्पिरिचुअलिटी, हलो ऑर होक्स’ सत्र में दिए गए व्याख्यान का डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल द्वारा किया गया हिन्दी अनुवाद)


जावेद साहिब ने याद दिलाया," उसी क्षण मैंने महसूस किया कि एक और खासियत है जो मुझमें और आधुनिक युग के गुरुओं में समान रूप से मौज़ूद है. मैं फिल्मों के लिए काम करता हूं. हममें काफी कुछ एक जैसा है. हम दोनों ही सपने बेचते हैं, हम दोनों ही भ्रम-जाल रचते हैं, हम दोनों ही छवियां निर्मित करते हैं. लेकिन एक फर्क़ भी है. तीन घण्टों के बाद हम कहते हैं – “दी एण्ड, खेल खत्म! अपने यथार्थ में लौट जाइए.” वे ऐसा नहीं करते." 


उन्होंने यह भी कहा,'कोई ताज़्ज़ुब नहीं कि पुणे में एक आश्रम है, मैं भी वहां जाया करता था. मुझे वक्तृत्व कला अच्छी लगती थी. सभा कक्ष के बाहर एक सूचना पट्टिका लगी हुई थी: “अपने जूते और दिमाग बाहर छोड़ कर आएं”.


"आप ज़रा दुनिया का नक्शा उठाइए और ऐसी जगहों को चिह्नित कीजिए जो अत्यधिक धार्मिक हैं -चाहे भारत में या भारत के बाहर- एशिया, लातिन अमरीका, यूरोप.... कहीं भी. आप पाएंगे कि जहां-जहां धर्म का आधिक्य है वहीं-वहीं मानव अधिकारों का अभाव है, दमन है. सब जगह. हमारे मार्क्सवादी मित्र कहा करते थे कि धर्म गरीबों की अफीम है, दमित की कराह है. मैं उस बहस में नहीं पड़ना चाहता. लेकिन आजकल आध्यात्मिकता अवश्य ही अमीरों की ट्रांक्विलाइज़र है."


 "आप जानते हैं कि कामयाबी-नाकामयाबी भी सापेक्ष होती है. कोई रिक्शा वाला अगर फुटपाथ पर जुआ खेले और सौ रुपये जीत जाए तो अपने आप को कामयाब समझने लगेगा, और कोई बड़े व्यावसायिक घराने का व्यक्ति अगर तीन करोड भी कमा ले, लेकिन उसका भाई खरबपति हो, तो वो अपने आप को नाकामयाब समझेगा. तो, यह जो अमीर लेकिन नाकामयाब इंसान है, यह क्या करता है? उसे तलाश होती है एक ऐसे गुरु की जो उससे कहे कि “कौन कहता है कि तुम नाकामयाब हो?"


 और भी लोग हैं. ऐसे जिन्हें यकायक कोई आघात लगता है. किसी का बच्चा चल बसता है, किसी की पत्नी गुज़र जाती है. किसी का पति नहीं रहता. या उनकी सम्पत्ति नष्ट हो जाती है, व्यवसाय खत्म हो जाता है. कुछ न कुछ ऐसा होता है कि उनके मुंह से निकल पड़ता है: “आखिर मेरे ही साथ ऐसा क्यों हुआ?” किससे पूछ सकते हैं ये लोग यह सवाल? ये जाते हैं गुरु के पास. और गुरु इन्हें कहता है कि “यही तो है कर्म. लेकिन एक और दुनिया है जहां मैं तुम्हें ले जा सकता हूं, अगर तुम मेरा अनुगमन करो. वहां कोई पीड़ा नहीं है. वहां मृत्यु नहीं है. वहां है अमरत्व. वहां केवल सुख ही सुख है”. तो इन सारी दुखी आत्माओं से यह गुरु कहता है कि “मेरे पीछे आओ, मैं तुम्हें स्वर्ग में ले चलता हूं जहां कोई कष्ट नहीं है”. आप मुझे क्षमा करें, यह बात निराशाजनक लग सकती है लेकिन सत्य है, कि ऐसा कोई स्वर्ग नहीं है. ज़िन्दगी में हमेशा थोड़ा दर्द रहेगा, कुछ आघात लगेंगे, हार की सम्भावनाएं रहेंगी. लेकिन उन्हें थोड़ा सुकून मिलता है. 


और जिस बात पर मुझे ताज़्ज़ुब होता है, और जिससे मेरी आशंकाओं की पुष्टि भी होती है वह यह कि ये तमाम ज्ञानी लोग, जो कॉस्मिक सत्य, ब्रह्माण्डीय सत्य को जान चुके हैं, इनमें से कोई भी किसी सत्ता की मुखालिफत नहीं करता. इनमें से कोई सत्ता या सुविधा सम्पन्न वर्ग के विरुद्ध अपनी आवाज़ बुलन्द नहीं करता. दान ठीक है, लेकिन वह भी तभी जब कि उसे प्रतिष्ठान और सत्ता की स्वीकृति हो. लेकिन आप मुझे बताइये कि कौन है ऐसा गुरु जो बेचारे दलितों को उन मंदिरों तक ले गया हो जिनके द्वार अब भी उनके लिए बन्द हैं? मैं ऐसे किसी गुरु का नाम जानना चाहता हूं जो आदिवासियों के अधिकारों के लिए ठेकेदारों से लड़ा हो. मुझे आप ऐसे गुरु का नाम बताएं जिसने गुजरात के पीड़ितों के बारे में बात की हो और उनके सहायता शिविरों में गया हो. ये सब भी तो आखिर इंसान हैं. जावेद जी ने बहुत कुछ और भी कहा है जिसे आप तभी जान पायेंगे अगर आप इसे पूरा पढेंगे. पूरा पढने के लिए यहां क्लिक करें. 

Monday, August 16, 2010

मधु गजाधर की कविता मेरा देश चर्चामंच पर

बहुत सी तमन्नाएं होती हैं जो कभी पूरी नहीं होतीं, बहुत से खवाब होते हैं जो बुरी तरह टूट जाते हैं, बहुत सी बातें होतीं हैं जो अनकही रह जातीं हैं...हम सभी की ज़िन्दगी में यह सिलसिला ऐसे ही चलता है. हम जिम्मेदारियों के बोझ तले दब कर मुस्कराहट के मुखौटे पहने हुए कब अपनी बारी आने पर किसी और दुनिया में पहुंच जाते हैं कुछ पता नहीं चलता. मन का यह दर्द रोज़ रोज़ हार जाता है. अंतर आत्मा पर बोझ बनता है लेकिन न कभी टूटता है और न ही अपनी हर को स्वीकार करता है. हर रोज़ जगा लेता है नयी उम्मीद का चिराग. हर सफ़र के बाद लगा लेता है पांवों के छालों पर मरहम और फिर मुस्कराते हुए चल पड़ता है अनदेखी अनजानी मंजिलों की तरफ. ज़िन्दगी के इन रंगों को नज़दीक से देखने और फिर उन्हें शब्दों में पिरो सकने की क्षमता रखने वाली संगीता स्वरुप ( गीत ) ने एक खुशखबरी भेजी है.उन्होंने मधु गजाधर की एक कविता चर्चा मंच में शामिल करने की सूचना दी है. उन्होंने बताया कि मंगलवार 17 अगस्त को आपकी रचना  "मेरा देश ...." इस बार  चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है ....." सभी स्नेहियों से निवेदन है कि वे कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ....आपका इंतज़ार रहेगा ..आपकी अभिव्यक्ति ही हमारी प्रेरणा है ... आभार". गौरतलब है कि मधु गजाधर मलेशिया में रहती हैं और वहां के राष्ट्रीय टीवी और रेडियो के लिए कई तरह के कार्यक्रम प्रस्तुत करती हैं. आप भी उनकी रचना को जानें और उस पर अपने अनमोल विचार दें. --रेक्टर कथूरिया 


*संगीता स्वरूप की कवितायें बिखरे मोती पर 

संगीता स्वरुप 
मधु गजाधर 
*उनकी ही कुछ और रचनाएँ गीत...मेरी अनुभूतियां पर भी 

*मधु गजाधर की कविता मेरा देश