Monday, May 31, 2010

पेंटागन में मीटिंग

जापान के रक्षा मन्त्री Toshimi Kitazawa  जब अमेरिका आये तो अमेरिका के रक्षा सचिव रोबर्ट एम गेटस ने उनका स्वागत बहुत ही गर्म जोशी से किया. उनके स्वागत में एक विशेष बैठक पेंटागन में भी रखी गयी. 25 मई 2010 को हुई इस विशेष बैठक के इन स्नेह भरे पलों को अमेरिकी रक्षा विभाग के आर डी वार्ड ने हमेशां के लिए कैमरे में कैद कर लिया. उनमें से एक तस्वीर अब आपके सामने है. आपको यह तस्वीर कैसी लगी.... इसे बताना भूल मत जाना.--रेक्टर कथूरिया

Friday, May 28, 2010

आखिर कब तक...?


अभी अभी हाल ही में एक खबर आई चेन्नई से और मामला है तमिलनाडू के वेल्लूर का जहां कन्या के जन्म का जुरमाना सुनाया गया एक लाख रुपया. कन्या की मां को आदेश दिया गया कि वह इस जुर्माने को अदा करे. कन्या के पिता की इस हैवानियत को जब मीडिया ने सब के सामने रखा तो एक बार फिर यह अहसास हुआ कि क्या हम सचमुच इस आधुनिक युग में ही रहते है....? क्या सचमुच हम लोग उसी देश के रहने वाले हैं जिसकी महानता की बातें हम दिन रात करते हैं....? फेसबुक पर इसे रखा पठानकोट के पंजाबी पंजाब ने. गौरतलब है कि अगर पंजाब में बेटियों को नापसंद करने की शर्मनाक घटनाएँ हुईं हैं तो इनके खिलाफ आवाज़ उठाने के ज़ोरदार प्रयास भी हुए हैं, पुकार केवल छोटी सी फिल्म है.....केवल दो मिनट और आठ सेकंड की लेकिन इसका प्रभाव लम्बी देर तक बना रहता है. इसी तरह पंजाब हेल्थ सिस्टम कारपोरेशन के लिए इसी मुद्दे पर प्रदीप्तो नंदी ने केवल 47 सेकण्ड्स में जो दिखाया है वह एक यादगारी असर छोड़ता है.ऐसे ही केवल 35 सेकण्ड्स की एक बहुत ही छोटी सी फिल्म है जिसे भारत सरकार के डीएवीपी और महिला एवं बाल विकास विभाग ने इसी मुद्दे पर जन चेतना  जागरूक करने के इरादे से बनवाया. इन मासूम बच्चियों को बचाने के लिए एक और बहुत ही संगीतक फिल्म है अंकिता जैन की. केवल पांच मिनट सात सेकण्ड्स की इस फिल्म में दर्शायी गयीं तस्वीरें हिला देती हैं. रूला देती है. बच्चियों को जन्म से भी पहले मौत के घाट उतार देने की चर्चा करती है एक और बहुत ही छोटी सी फिल्म..इन्नोसेंट ड्रीम्स...केवल एक मिनट और 15 सेकण्ड्स की इस फिल्म में भी बहुत दम है. अब रुपिंदर कौर रूपसी ने इसे फेसबुक पर बहुत ही अच्छे ढंग से उठाया है एक ग्रुप बना कर. इसी तरह देश रतन ने भी एक विशेष प्रयास शुरू किया है.लवप्रीत मोगा भी इसी दिशा में सरगर्म हैं.इसी मुद्दे पर उनकी एक ख़ास तस्वीर इस पोस्ट के साथ ही ऊपर दाएं और प्रकाशित की गयी है. ऐसे बहुत से प्रयास और भी हैं. इतना कुछ होने के बावजूद हालत अभी भी खतरनाक और शर्मनाक है. जब तक कानून सख्ती से लागू नहीं होंगें, जब तक समाज इसे शर्मनाक नहीं समझेगा, जब तक बेटियों को बोकज सम्झ्जाने वाली अर्थ व्यवस्था कायम है...तब तक कुछ ठोस होने वाला लगता भी नहीं. आपका क्या ख्याल है इस मुद्दे पर?देवी के नो रूपों की पूजा करने वाले इस देश में, नवरात्र का त्यौहार मनाने वाले इस समाज में....आखिर कब तक चलेगा यह सिलसिला.  --रेक्टर कथूरिया

Wednesday, May 26, 2010

सब कुछ आपका और आप हमारे

बस कुछ शब्द.....या दो चार पंक्तियां.....या तो अच्छा भला दिल उदास हो जाता....या फिर वह उदासी भी दूर हो जाती जिसके दूर होने की बात कभी सपने में भी नहीं सोची जा सकती. जी मैं बात कर रहा हूं मोबाईल पर आते छोटे छोटे संदेशों की. कुछ लोग इसे अब भी आधी आधी रात या फिर उसके बाद भी भेजते है. कुछ तो इतने बेतुके होते हैं की पढ़ कर झुन्ज्लाहट होती है पर कुछ इतने अच्छे की उन्हें संभाल लेने को जी चाहता है. इसकी चर्चा मैंने बहुत पहले भी किसी पोस्ट में की थी. ऐसा ही एक संदेश मुझे एक टीवी चैनल में कार्यरत्त मनप्रीत ने 2 अक्टूबर 2007 की रात को  भेजा. संदेश था: 
कहते हैं कि जब कोई किसी को बहुत याद करता है तो आसमान से एक तारा टूट कर गिरता है.....
एक दिन सारा आसमान खाली हो जाएगा और इल्ज़ाम हम पर आएगा...


इसी तरफ से एक और संदेश था 4 अक्टूबर 2007 की रात को...


नसीब से मिलता है यार, नसीब से मिलता है दीदार, 
नाज़ुक चीज़ हैं ये  संभाल कर रखना 
क्यूंकि नसीब वालों को मिलता है किसी का सच्चा प्यार.. ..


इसी तरह मुस्कान-आँचल  ने 27 जून 2008 की रात को भेजा...


दोस्ती यकीं पे टिकी होती है, 
ये दीवार बड़ी मुश्किल से खड़ी होती है, 
कभी फुर्सत मिले तो पढना किताब रिश्तों की, 
दोस्ती खूं के रिश्तों से भी बड़ी होती है


पंजाब में टीवी पत्रकारिता की दुनिया कोई अधिक पुरानी नहीं है. इसकी नीव रखने में जिन लोगों ने अपना योगदान डाला..वे आज भी सरगर्म हैं अपनी उसी ख़ामोशी के साथ. इनमें से एक ख़ास नाम है हरमिंदर सिंह रोकी का. रेड अलर्ट और सनसनी के ज़रिये कई खतरनाक लोगों की खोजपूर्ण सटोरियों को लोगों के सामने लाने की हिम्मत दिखाने वाले एच एस रोकी की चर्चा फिर कभी सही पर जो संदेश 18 जुलाई 2008 की शाम को आया वह यहां हाज़िर है...
आओ साथ में दुनिया बाँट लें...
समुंदर आपका....लहरें हमारी, 
आसमान आपका, सितारे हमारे, 
सूरज आपका, रौशनी हमारी....
चलो ऐसा करें...सब कुछ आपका और आप हमारे...


24 सितम्बर 2007  की देर रात को मनप्रीत ने अपना संदेश एस एम एस किया...
वह दिल से न जाये तो क्या करूं? 
रह रह कर दिल में आये तो क्या करूं..? 
कहते है सपनों में होती है मुलाकात...
जब नींद ही न आये तो क्या करूं...? 


इसी नाम से एक और संदेश था 30 जुलाई 2007 की रात को...
ज़िन्दगी शुरू होती है रिश्तों से, 
रिश्ते शुरू होते हैं प्यार से, 
प्यार शुरू होता है दोस्तों से 
और 
दोस्त शुरू होते है आपसे...


एक और एस एम एस इसी नाम से आया 6 अगस्त 2007 की रात को....
मौसम को मौसम की बहारों ने लूटा, 
मुझको कश्ती के किनारों ने लूटा, 
अरे वोह तो एक ही कसम से डर गए....
हमें तो उनकी कसम दे कर हजारों ने लूटा


इसी नाम से 24 जनवरी 2008 को एक और संदेश था..
रिश्तों की डोरी कमजोर होती है,, 
आंखों की बातें दिल की चोर होती है, 
खुदा ने जब भी पूछा दोस्ती का मतलब, 
हमारी निगाहें आपकी ओर होती हैं....


एक बार  मुस्कान आँचल ने 27 जून 2008  की रात्रि को (23 :29 :57 बजे) अपने गुस्से का इज़हार कुछ यूं किया...
अजीब इन्सान हो, 
पत्थर का कलेजा है तुम्हारा, 
आग में हाथ डाल कर अपनी हस्त रेखाएं पढ़ते हो तुम, 
शायद इस लिए ज़ख्मों का गरूर है तुम्हारी आंखों में, 
शायद इसी लिए महरम से बेनियाज़ हो तुम. 


अगले ही दिन अर्थात कुछ ही मिनटों के बाद गुस्सा दूर हो चुका था. 28 जून 2008 को (00 :49 :02 बजे)  को नया संदेश आया.. 
लम्हे जुदाई के बेकरार करते हैं, 
हालात मेरे मुझे लाचार करते हैं, 
आंखें मेरी पढ़ तो कभी,  
हम खुद कैसे कहें कि आपको कितना याद करते हैं. 


आखिर में एक टी वी पत्रकार तुषार भारतीय की ओर से 13 फरवरी 2009  की रात को (23 :44 :56 बजे) भेजा गया एक अर्थपूर्ण संदेश:  
भगवान कहते हैं...
तू करता वही है जो तू खुद चाहता है 
पर 
होता वही है जो मैं चाहता हूं. 
तू वही कर जो मैं चाहता हूं...
फिर वही होगा जो तू चाहता है.... 


आपको कुछ मोबाईल संदेशों की यह पेशकारी कैसी लगी अवश्य बताएं. --रेक्टर कथूरिया 

पोस्ट स्क्रिप्ट:  रावण के 10 सर, 20 आखें पर नज़र सिर्फ एक लडकी पर....आपका सर 1, आखें 2 पर नजर हर लडकी पर...अब बतायो असली रावण कौन..? हैपी दशहरा....!  (अरुण शर्मा ने 28 सितम्बर 2009 को भेजा)  . 

अगर आप निशुल्क एस एम एस भेजना चाह रहे हैं तो आजकल इसकी सुविधा भी आम हो गयी है. बस इक साधारण सा पंजीकरण...जिसमें कुछ ही पल लगते हैं...और आप भेज सकते हैं अपना एस एम एस. यह सुविधा कई ओपरेटर तो केवल राष्ट्रीय तक ही देते हैं पर कईयों ने इसका विस्तार भी कर दिया है. आप चाहें तो यहां क्लिक करें और चाहें तो यहां क्लिक कर लें....आपकी मुराद पूरी हो जाएगी. क्यूं है न कमाल. अगर आपको यह सब अच्छा लगा तो दो चार शब्द यहां लिखिए न...!

Tuesday, May 25, 2010

अभ्यास, ट्रेनिंग और परीक्षा

जंग की दुनिया भी अजीब दुनिया है. वहां गोली और गोलों की भाषा में ही बात होती है. वहां जान लेना भी एक कर्त्तव्य और जान देना भी एक कर्त्तव्य. मैदान चाहे कोई भी हो...जंग के असूल आम तौर पर एक जैसे होते है. जिस तस्वीर को आप देख रहे हैं उसमें आप देख रहे हैं अभ्यास, ट्रेनिंग और परीक्षा के पल जगह है अफगानिस्तान में किसी स्थान पर बना हुआ मोर्चा.  जब 18 मार्च 2010 को अमेरिकी सेना के एक अधिकारी U.S. Army Sgt. Joshua Morris ने  १२० एमएम मोर्टार टॉप से गोला दागा तो   Sgt. Derec Pierson ने  इन पलों को अमेरिकी रक्षा विभाग के लिए तुरंत अपने कैमरे में कैद कर लिया. आपको अमेरिकी सेना की यह तस्वीर कैसी लगी इसे बताना भूल मत जाना.              




--रेक्टर कथूरिया    

Sunday, May 16, 2010

हिंदी कविता की कार्यशाला

कोई ज़माना था कि कवि या लेखक कुछ लिखते थे तो सब से बड़ी समस्या होता था उसे छपवाना. जब किसी की पहली रचना छपती तो उसके लिए यह दिन सब से स्वर्णिम दिन की तरह होता. यह सब तो था समाचार पत्रों और पत्रिकायों के मामले में. अपनी पुस्तक का मामला तो किसी महायज्ञ से कम न होता. प्रकाशक ढूँढना उसे मनाना, फिर पांडुलिपि तैयार करना, फिर उसकी भूमिका लिखवाना और फिर पत्र पत्रिकायों में उसकी समीक्षा प्रकाशित करवाना...सचमुच बहुत ही टेड़ी खीर थी. इसके साथ ही होता था कवि सम्मेलनों का आयोजन. कभी किसी शहर में कभी किसी शहर में. वहां पहुंचना आसान नहीं होता था फिर भी वहां बड़े बड़े नामी गिरामी लोग पहुंचा करते थे. जेब तंग हो तब भी कोई न कोई जुगाड़ किया ही जाता था पर अब लगता है कि सब कुछ बदलने वाला है. इसका अहसास  हुआ मुझे हिंदी कविता की एक कार्यशाला को देख कर.इसमें भाग लेने के लिए 882 लोगों के जवाब का अभी भी इंतज़ार था, 365 लोगों ने किसी न किसी मजबूरी के कारण भाग लेने से इनकार कर दिया था और 190 ने भाग लेने की संभावना व्यक्त की लेकिन इस सब के बावजूद 233 शायरों ने कहा के वे भाग ले रहे हैं हर हालत में. 
इस कार्यशाळा का समय था 6 मई 2010 सुबह 6 बजे से 16 मई की रात 9 बजे तक और स्थान था फेसबुक.हिंदी कविता की ओर से  आयोजित इस कविता कार्यशाला जब मैं इस कार्यशाला में पहुंचा तो शाम के साढ़े चार बज चुके थे. मेरे सामने थी Vashini Sharma  की एक ज़बरदस्त कविता. राम की बात करती हुई, अहिल्या की बात करती हुई जब आज की नारी की बात करती है तो उसके तेवर और भी दमदार और तीखे हो जाते हैं. लीजिये आप भी महसूस कीजिये इस में छुपा दर्द... 




शिला का अहिल्या होना
क्या अहिल्या इस युग में नहीं है                    

पति के क्रोध से शापित ,निर्वासित,निस्स्पंद ,शिलावत

वन नहीं भीड -भाड भरे शहर में , वैभव पूर्ण - विलासी जीवन में

रोज़ रात को मरती है बिस्तर पर अनचाहे संबंधों को जीने को विवश

भरसक नकली मुस्कान और सुखी जीवन का मुखौटा ओढ़े ।

एक राम की अनवरत प्रतीक्षा में रत इस अहिल्या को कौन जानता है?


गौरतलब है की इस कार्यशाला में एक तस्वीर भी दी गयी थी जिसमें एक बाघ जल में उछलकूद करता नज़र आता है. कविओं से कहा गया था की वे इस पर कुछ लिखें. इस बात पर धर्मेन्द्र कुमार सिंह ने एक बहुत ही अच्छी रचना लिखी. आप भी इस बाल गीत का आनंद लीजिये.

जंगल में तो लगी आग है,

जान बचा कर भगा बाघ है,

मछली संग बतियायेगा ये,

जमकर आज नहायेगा ये।

बहुत दिनों से ढूँढ रह था,

पानी का ना कहीं पता था,              

गोते आज लगायेगा ये,

जमकर आज नहायेगा ये।

बाघिन बोली थी गुस्साकर, गड्ढे में मुँह आओ धोकर,

तन-मन धोकर जायेगा ये,

जमकर आज नहायेगा ये।

फिर जाने कब पाये पानी,

जाने कब तक है जिन्दगानी,

रो जंगल में जायेगा ये,

जमकर आज नहायेगा ये।


इसी तस्वीर को Madhu Gujadhur ने बहुत ही गंभीरता से लिया और  ललकार कर बोली...





किसने मेरी सुप्तावस्था से मुझ को आज जगाया है ,

आतंकवाद.. ये शब्द कैसे मेरे घर आँगन में आया है

किस की इतनी हिम्मत मेरी दीवारों पर नजर गड़ाई        

कौन है वो किस्मत का मारा किस की अब म्रत्यु है आई

मैं हूँ भारत... मेरी दहाड़ से अब सारा विश्व थर्रायेगा

लिए कटोरा अर्थ ,ज्ञान की भिक्षा यहाँ मांगने आएगा

मेरी शक्ति मेरे ज्ञा
न का तुम को कुछ आभास नहीं ,

देखो मेरे साथ आज भी स्वर्णिम युग का साया है.


इसी तरह Navin C. Chaturvedi ने मौसम में बढ़ रही गर्मी के नजरिये से देखा और कह उठे:उफ़ यह गर्मी :




उफ़ ये गर्मी!
जंगल में भी ,
चैन से रहने नहीं देती|

गर्म लू के थपेड़े,

घायल कर रहे हैं-
मेरी कोमल खाल को|                                                      

और उस पर,
तपता सूरज,
ऊपर से हावी है,
जैसे कि उसने कसम खा रखी हो-
मुझे ,
चैन से बैठे न रहने देने की |

जिनका शिकार कर सकूँ में,
वो भी तो मारे गर्मी के,
छुपे हुए हैं -
अपनी अपनी
शरणस्थलियों में|

भूख को तो सहन कर लूँगा,
पर क्या करूँ प्यास का?

प्यास,
जो सिर्फ़ गले की ही नहीं है,
बदन की भी है|

चलो,
दोनो प्यासों को बुझाने के लिए,
क्यों न,
पानी में ही छलाँग लगाई जाए ||
 -
नवीन सी. चतुर्वेदी
इसी कार्यशाला को और भी यादगारी बनाते हुए Saket Kumar ने  महांभारत की भी बात की और आज की भी. उनकी इन छोटी छोटी कवितायों में से एक यहां भी दी जा रही है.


कह ये वचन वो नारी-शक्ति, बाघिनी सदृश दिखी

सब शूरवीरों के जलद में चिंघाड़ करती वो उडी      
"जब जब जलजला ज्वाल का जल जाएगा जंजाल में
जब जब कनक भूषित मनुज रह जाएगा कंगालमय

जिस दिन धरा पे जननी के अपमान पे सन्नाटा है, ख़ामोशी है
बस जान लेना ये कि बस, महाभारत अब होने ही वाली है"
कहते हैं कि फिर उस दिन ठाकुर जी ने लज्जा की तो लाज रखी
र बाघिन की चिंघाड़ कुरुखेत्र के पहले भी है भला कभी थमी.

एक और युवा कवित्री Swati Kumar  ने बहुत ही सादगी से कई गहरी बातें की. लीजिये आप भी देखिये, सुनिये और पढ़िए :मैं वनराज :
ऊपर जलता सूरज,

नीचे शीतल जल,
और

इनमे कुचाले मारता
मैं वनराज निश्छल,
मुझे क्या लेना इससे
के
गर्मी बढती जाती है,
मुझे नहीं पता मगर
माँ यही बताती है,
मैंने
देखा है यह
के मेरे साथी कम हो रहे हैं,
साथ साथ खेलते कूदते
जाने
कैसे और कहाँ खो रहे हैं,
यूँ उछलते कूदते
जल में विचरते
मैं
बहुत खुश होता हूँ,
अपनी ही दिखती परछाई को
पकड़ने की कोशिश
करता हूँ ||

इसी सुअवसर पर बात करते हुए Shail Agrawal  ने एक अलग से अंदाज़ में बात की. अब वह अंदाज़ कैसा है...यह जानिए उन्हीं की ज़ुबानी:




साथ जो
परछांई-सा पलपल
उलझाता क्यों दूर से
बेचैन एक ख्वाइश
छलांग लगाती उड़ चली
पीछे सब छोड़
जमीं इनकी ना आसमान इनका
पकड़ो, सम्भालो, अधर में लटके
सपने ‘शेर’ नहीं होते
राजदां थीं जो उठती तरंगें
अब बस चन्द बुलबुले
मिटती जातीं झाग बन-बन के
अपना ही शिकार आसां नहीं
ना शिकार औ शिकारी साथ-साथ
खामोशी बिना हवचल के
मानो या न मानो
ौत ही एक खेल, एक अहसास
जिन्दा रह पाए वन में..
--
शैल अग्रवाल

पर वहां एक अंदाज़ और भी था और वह भी अपने आप में अलग सा था. यह शानदार अंदाज़ था योगेश चन्द्र का.




भागो
चाहे जितना ही तेज...
लगाओ कितनी ही उची
छ्लाग
फ़िर भी...
तैरती रहेगी
परछाइया
साथ साथ
तेरे...
अतीत के जलाशय मे !

Ashok Kr ने बहुत ही कम शब्दों में गहरी बात की: 

अपने ही साये से, हूँ मैं परेशान

भागना चाहता हूँ दूर तक  

एक लम्बी छलांग लगाकर
फिर भी यह साया साथ नहीं छोड़ता,
हूँ मैं बेहद हैरान....

इसी तरह इसी तस्वीर पर Meena Chopra का अंदाज़ भी यादगारी बना: 




मुट्ठी भर पानी--

जीवन ने उठा दिया चेहरे से अपने
शीत का वह ठिठुरता नकाब
फिर उसी गहरी धूप में
वही जलता शबाब
सूरज की गर्म साँसों में
उछलता है आज फिर से
छलकते जीवन का
उमड़ता हुआ रुआब|

इन बहकते प्रतिबिम्बों के बीच
कहीं यह ज़िंदगी के आयने की
मचलती मृगतृष्णा तो नहीं?

किनारों को समेटे जीवन में अपने
कहीं यह मुट्ठी भर पानी तो नहीं?
             --
मीना

इसी मुद्दे पर Deepak Jain ने अपने अंदाज़ और तेवरों में बात की: 

क्यूँ ना कुछ मछरियाँ पकड़ी जाए

क्यूँ ना पानी में घात लगाईं जाये

या प्रतिबिम्ब से ही खेला जाये

या बस यूँ ही छलांग लगाईं जाए

मगर का शिकार भी कर ले आज

चलो कुछ अनोखा आजमाया जाए

तुम तपते रहो दिवाकर...

गर हराना है तो तुम्हे हराया जाये.


इंटरनैट की दुनिया को इस ढंग तरीके से सदुपयोग करने का यह सारा प्रयास किया अमृतसर में जन्मी और इस समय लन्दन में बसी हुई Dr.Kavita Vachaknavee ने. इस अनोखे कविता मेले में पाकिस्तान के वरिष्ठ कवि, लेखक और पत्रकार गुल खान देहलवी ने भी नवाज़ा. उनकी गज़ल सर्वश्रेष्ठ रही. आपको यह कार्यशाला कैसी लगी...उन्हें भी ज़रूर बताईगा.  इस कार्यशाला में बहुत कुछ और भी है जनाब.पूरा पढ़े सुने बिना मत जाना. आपकी टिप्पणी का इंतज़ार तो रहेगा ही.--रेक्टर कथूरिया 


पोस्ट स्क्रिप्ट
गुल खान देहलवी की गज़ल :
शाम ढलने वाली है सोचते हैं घर जाएँ
फिर खयाल आता है किस तरफ़ किधर जाएँ

दूसरे किनारे प’ तीसरा न हो कोई
फिर तो हम भी दरिया में बे- खतर उतर जाएँ

हिज़रती परिन्दों का कुछ यकीं नहीं होता
कब हवा का रुख बदले कब ये कूच कर जाएँ

धूप के मुसाफ़िर भी क्या अजब मुसाफ़िर हैं
साए में ठहर कर ये साए से ही डर जाएँ
  


Saturday, May 15, 2010

क्या कहती है दिल की धड़कन ?

क्या कहती है दिल की धड़कन ? शायद यही वह सवाल है उस औरत के मन में जिस के बच्चे को स्टेथस्कोप लगाकर डाक्टर  पता लगा रहा है कि क्या वह पूरी तरह स्वस्थ तो है न ? हैती में वहां के सभी लोगों को स्वास्थ्य सुविधा प्रदान करने के लिए एक विशेष मेडिकल कैंप 12 माय 2010 को शुरू किया गया. यह मेडिकल कैंप 12 मई को शुरू हुआ और 22 मई तक चलेगा. मूलभूत स्वाश्य सुविधाएं प्रदान करने के लिए लगाये गए इस कैंप में हैती के डाक्टर तो थे ही, उनके साथ साथ अमरीका और उरूग्ये के सैनिक अधकारी भी अपने अपने जवानों के साथ मौजूद हैं. इन पलों को और भी यादगारी बनाते हुए इन्हें कैमरे में कैद किया अमेरिकी रक्षा विभाग के Pvt. Samantha D.hall ने और जिसे आप  तस्वीर में देख रहे है दिल की धड़कन सुनते हुए उसका नाम है Nicolas Gonzales और वह उरूग्ये की सेना में नियुक्त है. आप को यह पोस्ट कैसी लगी....यह बताना भूल न जाना. ---रेक्टर कथूरिया  

Wednesday, May 12, 2010

बात राग भैरवी की

आज भी जब पुराने गीतों की बात चलती है तो लोग झूमने लगते हैं. आज भी इन गीतों को उसी तरह सुना जाता है जैसे कि उन दिनों सुना जाता था. उस ज़माने में एक गीत हुआ करता था ज्योत से ज्योत जलाते चलो, प्रेम की गंगा बहाते चलो. सन 1964 में रलीज हुई फिल्म संत ज्ञानेश्वर का यह गीत बहुत लोकप्रिय हुआ था. हर गली में बच्चे बच्चे की जुबान पर बस यही गीत था.  इसी तरह एक और गीत था सन 1963 में आई फिल्म दिल ही तो है का. सी एल रावल और पी एल सन्तोशी की ओर से निर्देशित इस फिल्म में राज कपूर. प्राण, नूतन बहल और कई जाने मने कलाकार थे.  इस गीत के बोल थे : लागा चुनरी पे दाग छुपायूं कैसे, घर जायूं कैसे....! 
      आज भी इन गीतों को बहुत ही ध्यान से सुना जाता है. मुझे इनकी याद ताज़ा हुई एक संदेश से. यह संदेश था जान माने संगीतकार और पंजाब के गौरव हरविंदर सिंह जी का बटाला से. वही बटाला जिसका नाम लेते ही याद आ जाती है शिव कुमार बटालवी की. हरविंदर जी के संदेश में ज़िक्र था राग भैरवी का. उस रात जिन वजहों के कारण मैं इसे नहीं सुन पाया उनमें एक वजह यह भी थी कि इसे रात के तीसरे पहर या फिर सुबह सुबह ही सुनना चाहिए. मुझे संगीत की इन बारीकियों का ज्ञान बिलकुल ही नहीं है पर फिर भी मेरी कोशिश होती है कि जहां तक संभव हो नियमों की पालना अवश्य की जाये. मैंने कई बार महसूस किया कि नियमों की अवहेलना से मन की शान्ति में भी गड़बड़ी हुई. सोच ही रहा था कि इस बारे में कुछ और पता चला. अपने ज़माने का माना हुआ गीत ज्योत से ज्योत  जगाते चलो प्रेम की गंगा बहाते चलो भी राग भैरवी में ही था. अब राग भैरवी क्या होता है--लीजिये आप इसे भी सुनिये सवीडन में हुए उनके लाईव कन्सर्ट में प्रस्तुत की गयी राग भैरवी की धुन. 
              इस मौके सितार पर थे हरविंदर सिंह और उनके साथ तबले पर संगत की गुलफाम साबरी ने जो कि पदमश्री उस्ताद साबरी खान के बेटे हैं.  उन्हों ने राग भैरवी से मिलती जुलती एक और रचना राग किरवानी भी मुझे भेजी. इसे दक्षिण भारत में बहुत ही स्नेह और श्रद्धा के साथ सुना जाता है. हरविंदर जी ने पांच दिसंबर 2009 को सवीडन में हुए लाईव कन्सर्ट में इसकी भी प्रस्तुती की थी. सितार पर खुद हरविंदर जी थे और गायन किया था वहां कि एक युवा और खूबसूरत गायका  Cecilia Aslund  ने. आपको यह राग गायन कैसा लगा ज़रूर बताएं.आपके मन में कोई सवाल उठे तो वह भी ज़रूर पूछिए. हरविंदर जी आप की आशंका अवश्य ही दूर करेंगे           ---रैक्टर कथूरिया 

Monday, May 10, 2010

जब भूख लगती है

दुनिया में प्रेम की तरह भूख भी एक ऐसी जुबान है जिसे किसी को भी सीखना या सिखाना नहीं पढता. इसके साथ ही इसकी एक और खासिअत यह भी है कि यह जाति पाति उंच नीच और रंग नसल भेद को भी मिटा देती है. जैसे नींद आने पर बिस्तर नहीं देखा जाता कि वह कैसा है उसी तरह भूख लगने पर इस बात को नहीं देखा जाता कि भोजन कैसा है, कहां है, उसके साथ क्या है...? इसी तरह की एक हालत उन सैनिक अधिकारिओं की भी हुई जो अफगानिस्तान के एक विशेष टूर पर थे. अमरीकी सेना के एक जनरल David Petraeus ने इंटरनैशनल स्किओरिटी फ़ोर्स के कमांडर पद पर अपनी ज़िम्मेदारी निभा रहे  Stanley  McCrystal, रीजनल कमांड साऊथ के मेजर जनरल Nick कार्टर और अफगानिस्तान में अमरीकी राजदूत Karl Eikenberry भी इस मौके पर उनके साथ थे. जब भूख ने थोडा सताया तो उन्होंने वहीँ कंधार शहर के बाहरी क्षेत्र में बनी एक बेकरी के सामने अफगानी नवयुवकों के साथ मिलकर ब्रैड के साथ अपनी भूख मिटाई. गौरतलब है कि जनरल डेविड अमरीकी सेंट्रल कमेटी के कमांडर भी है.अप्रैल महीने के आखिरी शुक्रवार अर्थात 30 अप्रैल 2010 के दिन भूख मिटाने के इन पलों को अमेरिकी रक्षा विभाग के लिए कैमरे में कैद किया अमेरिकी सेना के Staff Sgt.Lorie Jewell  ने. --रैक्टर कथूरिया 

Sunday, May 09, 2010

कोशिश जिंदगी के राज़ जानने की

जिंदगी क्या है ?  व्यक्ति कहां से आता है और मौत के बाद कहाँ जाता है ? इस तरह के बहुत से सवाल लम्बे अरसे से जवाब मांग रहे हैं. शास्त्रों और ग्रन्थों में इन सवालों का जवाब देने के लिए बहुत कुछ दर्ज है. कुछ भाग्यवान लोगों को यह सब समझ भी आ जाता है पर आम तौर पर लोग इस मुद्दे पर उन लोगों के दबाव में आ जाते हैं जो उन्हें बार बार कहते है की अन्धविश्वासी मत बनो.  हालांकि ऐसा कई बार हुआ है कि विज्ञान के सामने योग और दूसरे क्षेत्रों से कई तरह की चुनौतियां आयीं पर वज्ञान उनका कोई उत्तर नहीं दे सका. अब एक नयी चुनौती आई है प्रहलाद भाई जानी उर्फ़ माता जी. इस समय 81  वर्ष की उम्र  के इस साधक ने पिछले 70 वर्षों से अन्न और जल का पूरी तरह से त्याग कर रखा है. इसके बावजूद वह पूरीं तरह स्वस्थ हैं. बढ़ती हुई उम्र का भी उन पर कोई असर नहीं दिखता. गुजरात के बनासकांठा जिले के एक मन्दिर में रहने वाले इस साधक की इस हैरानकुन दिनचर्या ने सभी को हैरत में डाल रखा है. उन पर 22 अप्रैल से शुरू हुआ शोध 7 मई तक चला. गांधी नगर के चरादा गांव के इस साधक ने ११ वर्ष की आयु में ही सन्यास ले लिया था और 40 वर्ष तक मौन व्रत भी रखा.   
             जब इस मुद्दे को गीता शर्मा ने फेसबुक पर उठाया तो Kislay Savran ने कहा कि  एक इंसान ने सारे विज्ञानं को बौना साबित कर दिया फिर एक बार ....ये योग की है एक स्थिति है ..जिस से जीव आपने आप को चेतना स्वरूप में शुन्य में ले जाकर स्थित कर देता है. तब ये सब बड़ी ही सुगमता से संभव है ....
             इसी तरह Rajendra Kumar ने कहा कि इसे ही कहते है इन्द्रियों को वश में करना आप माने या ना माने पिछले २० सालों में मेरी पत्नी अभी तक हजारों हार्ट अटेक झेल चुकी है ....कैसे सब ईश्वर के साथ होने से !
         Rudresh Tripathi ने इसी मुद्दे पर चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि  इससे एक बात तो स्पष्ट रूप से प्रमाणित होती है वह यह कि, मनुष्य अगर संयमित दिनचर्या का पालन और सच्ची ईश्वर भक्ति करे तो असंभव को भी संभव किया जा सकता है। इस कथ्य के अनेकोँ प्रमाण है। हमारी सनातनी परंपरा और मान्यताऐँ झूठे नहीँ है। इस बात को माता जी अपने तप और लगन से नयी पीढ़ियों के समक्ष एक बार पुन: साबित कर दिया।


          इस  चर्चा में शामिल होते हुए  Chainsingh Shekhawat ने कहा कि यह भारतीय जीवन पद्धति और योग का कमाल है. विशुद्ध भारतीय आत्मा ऐसी ही होती हैं.हमारे देश का आध्यात्म सदैव ही एक रहस्य रहा है.यह तो हम ही हैं जो पश्चिमी जीवन शैली सो अपना आदर्श मान बैठे हैं.
                इस मुद्दे को फेसबुक पर उठानेवाली उठाने वाली Gita Sharma  ने कहा कि तीन सो के करीब डोक्टर वेज्ञानिकों प्रथम जाँच पड़ताल में कुछ भी नही ढूंड पाए ,बाबा जी सही सलामत हैं , एक प्रश्न यह है जब डॉ वेज्ञानिकों के प्ले कुछ ना पड़ता हो ,तब वह टेस्ट आदि के नाम पर मरीज को अपनी लियाकत दिखाना शुरू करते हैं ,जब टेस्टों में भी व्यक्ति सही हो तो भी उसे मरीज बनाकर दवा देना पसंद क्यों करते हैं ?विज्ञान भरोसे के काबिल नही रहा इन बाबा जी की जांच पड़ताल ने साबित कर दिया है !!!!!!!!!!!!!!!!!!!
       इस शोध का समय समाप्त होने के बाद आठ मई को  Gita Sharma ने  एक रिपोर्ट पोस्ट की जिसमें कहा गया कि रक्षा वैज्ञानिक भी नहीं जान सके बाबाजी का राज़ 
ठ्ठशत्रुघ्न शर्मा, अहमदाबाद पिछले 65 साल से बिना कुछ खाए पिए रहने का दावा करने वाले गुजरात के चुनरी वाले बाबा उर्फ माताजी उर्फ प्रहलाद जानी विज्ञान के लिए अबूझ पहेली बन गए हैं। रक्षा विभाग की शोध संस्था और देश के नामी चिकित्सक भी माताजी के बिना खाए पीए रहने का रहस्य नहीं जान सके। अगर इस रहस्य से पर्दा उठ जाता है तो अंतरिक्ष यात्रियों को खानपान का सामान नहीं ले जाना पड़ेगा। साथ ही भुखमरी की समस्या से निपटा जा सकेगा। माताजी की खासियत यह है कि वे मल-मूत्र नहीं त्यागते। जबकि मूत्र विसर्जन नहीं करने पर मौत संभव है। माताजी की इस सिद्धी से दो साल पहले पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को भारतीय प्रबंध संस्थान में अवगत कराया गया था। कलाम की ही पहल पर उनकी जांच की प्रक्रिया शुरू की गई। नई दिल्ली के रक्षा शोध एवं विकास संगठन (डिपास) ने गुजरात के 32 चिकित्सकों की मदद से गत दो सप्ताह तक अहमदाबाद के स्टर्लिग अस्पताल में माताजी का परीक्षण किया। इस दौरान उन पर लगातार सीसीटीवी कैमरों के जरिए नजर रखी गई। जिसमें उनका एमआरआई, सीटी स्केन, ईसीजी, सोनोग्राफी आदि परीक्षण कर उनके शरीर की एक-एक हलचल पर नजर रखी गई लेकिन सब रिपोर्ट सामान्य पाई गई। स्टर्लिग अस्पताल के न्यूरोफिजिशियन डॉ. सुधीर शाह ने बताया कि ब्लेडर में मूत्र बनता था, लेकिन कहां गायब हो जाता है इस पहेली को डॉक्टर भी नहीं सुलझा पाए हैं। इससे पहले उनका मुंबई के जेजे अस्पताल में भी परीक्षण किया जा चुका है। लेकिन इस रहस्य से पर्दा नहीं उठ सका। डा. शाह बताते हैं कि माताजी कभी बीमार नहीं हुए। उनकी शारीरिक क्रियाएं सभी सामान्य रूप से क्रियाशील हैं। माताजी के सेवक भिखाभाई प्रजापति की मानें तो गांधीनगर के चराड़ा गांव निवासी प्रहलाद कक्षा तीन तक पढे़ लिखे हैं। ग्यारह वर्ष की उम्र में उन्हें साक्षात देवी मां के दर्शन हुए जिसके बाद उन्होंने घर त्याग कर आबू तथा गिरनार के जंगलों में चले गए। चालीस वर्ष तक उन्होंने मौन व्रत भी रखा।
   अब देखना यह है इस खोज का जन जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है.  --रैक्टर कथूरिया