Thursday, April 29, 2010

कैसे फिर आये खुशहाली

अजीब और दुखद सत्य है कि जहां देवी के 9 रूपों की पूजा होती है वहां आज भी भ्रूण हत्या का कलंक मौजूद है, वहां दहेज हत्या की  खबरें आज भी आये दिन देखनी पड़ती हैं, वहां कन्या का जन्म आज भी चिंता का विषय बना हुआ है. यह सब होता देख कर भी मूक दर्शक बने लोग जब यह कहते हैं कि उन पर लक्ष्मी मेहरबान नहीं होती तो सुन कर बहुत ही अजीब लगता है. इस सब कुछ की गहराई में जा कर आत्मयोगी स्वामी ने कुछ अनूठे प्रयोग किये है जो सफल भी हुए हैं. इसके साथ ही स्वामी आत्मयोगी ने गृह लक्ष्मी जैसे कुछ कोर्स भी शुरू किये हैं जिनको करने के बाद आप लक्ष्मी की कृपा पा सकते है. हालांकि मैं खुद अभी तक ऐसा कोई कोर्स नहीं कर पाया लेकिन स्वामी जी का आत्म विशवास, उन्हें चाहने वालों की लगातार बढ़ रही मांग और उनकी बातों में बाण की तरह सीधा और तीखा तर्क बार बार कहते हैं कि स्वामी जी की बातों में दम तो है. आखिर कुछ तो है कि आज के इस आधुनिक युग में भी लोग खिंचे चले आते हैं. इसके साथ ही राम राज्य और अखंड कश्मीर जैसे बहुत से प्रोजेक्ट ऐसे हैं जिन पर स्वामी आत्मयोगी ने दिन रात एक करके चलने की ठान रखी है. देश की अर्थ दशा से लेकर अन्य सभी मामलों की चिंता करने और फिर उनका समाधान बताने का एक अभियान है जिसे स्वामी जी पूरी निडरता से चला रहे हैं. कभी हैदराबाद, कभी कोलकाता, कभी चण्डीगढ़ और कभी अयोध्या. जिस तेज़ी से से यह सब चल रहा है वह आश्चर्यजनक है. कभी सोने की चिड़िया रहा देश आखिर गुलाम क्यूं बना ? उसी देश के घर घर में अभाव और दरिद्रता कैसे पैदा हो गए ? इन सब की चर्च है इन दो काव्य रचनायों में :


विश्व मंदी निवारण 
सदियों पहले भारत की स्त्रियों ने ,
घर घर में महालक्ष्मी को जगाकर,
भारत को सोने की चिड़िया बनाया था.
इसीलिए उनको,
गृहलक्ष्मी कहा जाने लगा था .

उस समय के विद्वान सैनिको को,
यह नहीं समझा सके,
कि उन्हें देश की रक्षा के लिए.
लक्ष्मी नहीं दुर्गा को जगाना है,
इस छोटी सी भूल ने देश को,
गुलाम बना दिया.

तब विद्वानों ने कहा,
हमारे पास धन तो बहुत है,
हमें शक्ति चाहिए
देश को विदेशियों के,
चंगुल से छुड़ाने के लिए,
घर घर में दुर्गा को जाग्रत कर,
देश को विदेशी शक्तियों से मुक्त कराया.

आज देश स्वतंत्र है,
पर देश के युवक युवतियां,
भिखारी कि तरह विदेशों से,
धन कमाकर देश को,
आक्सिजेन प्रदान कर रहे हैं .

आज देश के घर घर में,
लक्ष्मी की जगह,
दुर्गा पूजा हो रही है.
घर घर युद्ध स्थली बन गया है.
स्त्रियाँ अपने लक्ष्मी को जगाकर,
घर को धनी बनाने के,
गृहलक्ष्मी के दायित्व को भूलकर,
गृह्दुर्गा की तरह,
अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रही है.

आज का भारत विश्व में फैल गया है
और गृह लक्ष्मी को फिर से,
विश्व मंदी को दूर करने के लिए,
घर घर महालक्ष्मी को जगाकर,
विश्व में धन का प्रवाह बढ़ाना है
और इस तरह,
भारत की गृह लक्ष्मी को,
विश्व में प्रतिष्ठा दिलाना है
(Tuesday, November 24, 2009 at 3:22pm)
सदियों से भारत में,
कन्या का जन्म,
लक्ष्मी का आना माना जाता है,
घर घर में स्त्रियाँ,
गृह लक्ष्मी कहलाती हैं ,
फिर क्यों पग पग पर
घर घर में,
धन का अभाव हो जाता है .

सदियों से भारत में ,
स्त्रियों को शील-क्षमा-दयारूपा,
माना जाता है.
क्योंकि यह लक्ष्मी के गुण हैं ,
अतः भारतीय स्त्रियों को,
गृहलक्ष्मी होने के कारण,
लक्ष्मी के समान,
गुण संपन्न माना जाता है ,

सदियों से भारत में,
पति देवता कहलाता है .
एक देवता के होते,
अन्य देवताओं का आवाहन,
निंदनीय है,
अशोभनीय हो जाता है .

सदियों से भारत में,
पत्नी गृहलक्ष्मी कहलाती है .
अतः घर में,
लक्ष्मी के अतिरिक्त,
किसी अन्य देवी का आवाहन,
निंदनीय है,
अशोभनीय हो जाता है .

सदियों से भारत में,
लक्ष्मी को सतोगुणी,
व रजोगुणी स्वभाव के कारण,
धन वा सुख दोनों,
देने वाली माना जाता है.
फिर केवल धन की आशा से,
तमोगुणी स्वभावका वरण,
निंदनीय है ,
अशोभनीय हो जाता है



(Tuesday, November 24, 2009 at 7:42pm)
आपको आत्म योगी स्वामी जी की यह रचनायें कैसी लगीं अवश्य लिखिए. आपके वचारों की इंतजार तो रहेगी ही.--रैक्टर कथूरिया  

ऐसे लागी लगन

उन दिनों मैं अमृतसर में था. अपनी बुआ के घर में रह रहा था. वहीँ पास ही एक बहुत ही अच्छे परिवार में एक लड़की भी थी जो गाती भी बहुत अच्छा थी और पढाई लिखाई में भी काफी तेज़ थी. उसके चेहरे पर एक दिव्यता सी थी. उस किशोर उम्र में भी वह वह गंभीर बातें करती थी. मैं चूंकि घर परिवार से लगातार दूर था सो कई बार उदास भी हो जाता. वह आती कुछ ऐसी बातें करती कि मेरा उदास मन ठीक हो जाता. एक दिन मैंने उससे पूछा कि क्या राज़ है तुम्हारी इस ताकत का कि तुम कभी किसी परेशानी में भी परेशान नज़र नहीं आती, कभी उदास नहीं होती वह मुस्कराती और बात को टाल जाती. वह किसकी पूजा करती थी मैं नहीं जानता पर उसके चेहरे पर जो बात थी, जो दिव्यता थी वह बताती थी कि वह कुछ ख़ास करती है. एक दिन स्कूल से लौटी तो बहुत खुश थी.पता चला कि उनके स्कूल में सत्य साईं बाबा आने वाले थे. मुझे पहली बार पता चला कि इस धरती पर कोई साईं बाबा भी हैं जिनकी पूजा बहुत बड़े पैमाने पर होती है. उसने मुझे साईं बाबा की कई बातें सुनायीं. कई तस्वीरें दिखायीं.लम्बा सा गेरुया चोला, सिर पर लम्बे और खड़े खड़े से बाल. आंखों में एक आकर्षक चमक. वह तस्वीर मेरे मन में उतर गयी.  
       फिर एक दिन ऐसा भी आया कि मुझे अमृतसर छोड़कर दिल्ली जाना पड़ा. एक दिन मेरे पिता जी मुंबई से लौटे तो कहने लगे अगली बार तुम भी चलना. बात बात में मैंने पूछा कि साईं बाबा कहाँ होते हैं? उस दिन पिता जी से मुझे पता चला कि वास्तव में तो अधिकतर लोग शिर्डी वाले साईं बाबा के भक्त हैं. फिर एक दिन मैंने कहीं पर शिर्डी वाले साईं बाबा की तस्वीर भी देखी.बड़ी दुविधा सी होने लगी की वास्तव में असली साईं बाबा कौन..? सत्य साईं बाबा या शिर्डी साईं बाबा ? वक्त के साथ बात एक बार फिर आई गयी हो गयी. मैं दिल्ली से पंजाब लौट आया.
     उन्हीं दिनों एक फिल्म आई थी अमर, अकबर और एंथोनी. सन 1977 में आई इस फिल्म के निर्माता निर्देशक थे मनमोहन देसाई. अमिताभ बच्चन, विनोद खन्ना, ऋषि कपूर, नीतू सिंह, परवीन बाबी और शबाना आज़मी के साथ साथ प्राण और निरूपा राये भी थे. फिल्म का संगीत तैयार किया था लक्ष्मी कान्त प्यारे लाल ने. उस फिल्म में एक गीत था शिर्डी वाले साईं बाबा आया है तेरे दर पे सवाली. इस कवाली नुमा गीत में सभी कुछ इतना अच्छा था कि यह गीत आज भी यादगारी गीत बना हुआ है. आज भी लोग इसे अपनी रिंग टयून बनाते हैं.
            इस गीत के बाद ही मुझे शिर्डी का कुछ पता चला, साईं बाबा के बारे में कुछ जानकारी मिली पर अभी तक मैं नहीं जा पाया. पर आज एक संदेश मिला जिसने मेरी इन सभी यादों को ताज़ा कर दिया. यह सन्देश था संगीत की दुनिया के साथ बहुत ही गहरायी और दिव्यता से जुड़े हुए नरेश कुमार की ओर से. साईं तुम को नमन  से नयी बुलंदियों को छू रहे नरेश कुमार ने इसी नाम से एक पेज भी बनाया है और एल्बम का नाम भी यही है. इसकी चर्चा मैंने अपनी किसी पिछली पोस्ट में भी की है. अब उनका नया संदेश था नयी एल्बम साईं की नजर-ए-कर्म के संबंध में. इसमें दिल और दिमाग को छू लेने वाले संगीत के साथ साथ साईं बाबा की कुछ दुर्लभ तस्वीरें भी है. देखिये और बताईये कैसी लगी आपको यह नयी एल्बम.--रैक्टर कथूरिया

Tuesday, April 27, 2010

विशेष वार्ता भोज

यह छोटा सा आयोजन न तो अलकायदा का है और न ही माओवादियों का. जंगल में यह भोज चल रहा है अफगानिस्तान के एक इलाके लोगर में. दो पश्तो शब्दों "लोय" और "घर" को मिलाकर बना यह नाम लोगर बहुत ही अर्थपूर्ण है. लोय का अर्थ बताया गया है "महान" और घर का अर्थ कहा गया है "पहाड़" इन दोनों को मिलाएं तो बनता है महान पर्वत. वैसे लोगर एक दरिया है जो पहाड़ियों के बीचो बीच चलता है और इस इलाके की शान कहा जा सकता है. लोगर के गांव कोपाक में यह आयोजन बहुत ही प्रेम से हुआ. इसमें अमरीकी सैनिकों और अफगान नैशनल आर्मी के जवानों ने बहुत ही उत्साह से भाग लिया.हाल ही में 22 अप्रैल 2010  को हुई इस इस विशेष बैठक के आयोजन का मकसद था इस इलाके के बड़े बुजुर्गों से मिल कर विकास कार्यों की चर्चा करना और उन पर उनकी राये लेना. भोज के इन यादगारी पलों को अमेरिकी रक्षा विभाग के लिए कैमरे में उतारा Sgt. Russell Gilchrest  ने.    --रैक्टर कथूरिया    

Sunday, April 25, 2010

साईं तुम को नमन

हम किसी को क्षमा करें या माफ़ करें बात एक ही है. अलग से दिखने वाले इन दो शब्दों में  जो एक और बात  है वह यह है कि इन दोनों में ही मा शब्द का सदउपयोग हुआ है जिसे सुनने के बाद मां की याद आती है. वैसे इन का अर्थ भी मां से ही संबंधित है.क्यूंकि गलती का अहसास करवाने का एक तरीका तो है दंड देना. इस तरीके ने बहुत सा रक्त बहाया होगा. गलती करने वाले को अपनी गलती का अहसास हुआ या नहीं इसे आज भी दावे से नहीं कहा जा सकता. लेकिन इसका दूसरा तरीका है जो मां की ममता से होकर जाता है. गलती का अहसास भी करवाना और उस पर ममता उड़ेलते हुए उसे क्षमा भी कर देना. इस आशय का बहुत ही सुंदर संदेश मुझे भेजा नरेश कुमार जी ने.  संगीत की दुनिया के साथ बहुत ही गहराई से जुड़े हुए नरेश कुमार साईं भक्ति की महमा को भी लोगों तक लगातार पहुंचा रहे हैं. साईं तुम को नमन नाम की एक एल्बम 19 सितम्बर 2009 को रलीज हुई थी और अब बिक्री के नए रिकार्ड कायम कर रही है. इस सुरीली और यादगारी एल्बम में अनूप जलोटा, सुरेश वाडकर, साधना सरगम, मोहम्मद अज़ीज़, सुमीत टपू , पारस जैन  (शिर्डी वाले) और हितेश की आवाजों का जादू भी मौजूद है. दावा किया गया है कि ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी धार्मिक एल्बम को मूवी क्वालिटी की तरह सजा संवार कर तैयार किया गया. --रैक्टर कथूरिया    

Thursday, April 22, 2010

विदेशों में भी बढ़ रहा है पशु धन से प्रेम...!

कुछ समय पूर्व मैंने कहीं पढ़ा था एक बहुत ही तीखा व्यंग्य. शायद किसी ने मुझे एस एम एस भेजा था या मेल. बात आई गयी हो गयी. लिखा था एक आदमी ने एक गाये को देखा और गाये ने आदमी को देखा. आदमी ने उसे देख कर कहा गाये. लेकिन गाये ने आदमी को आदमी नहीं कहा.  मानव की लगातार बढ़ रही अमानवीयता ने उसे वहां पहुंचा दिया है जहाँ पहुंच कर आज आदमी को आदमी कहते हुए शर्म आती है. धन और स्वाद की इस दौड़ में बहुत कुछ पीछे छूट चुका है. पर इस सब के बावजूद एक हकीकत यह भी है की अब पशु धन की अहमियत पूरी दुनिया जान चुकी है. पशु धन की रक्षा का दायित्व अब सभी जगहों पर समझा जा रहा है.इस लिए जिस तस्वीर को आप देख रहे हैं यह है इथोपिया की.  जहां पशूयों की स्वास्थ्य रक्षा के लिए  कार्यकर्तायों को शिक्षा देने के लिए एक विशेष ट्रेनिग केंद्र आयोजित किया गया. इस कैंप का आयोजन दस अप्रैल को हुया. इस इलाज का हुनर सिखाने के लिए अमेरिकी सेना से विशेषज्ञ Tami Bair भी ख़ास तौर पर आये. अमेरिकी रक्षा विभाग के लिए सिखलाई के इन पलों को कैमरे में कैद किया  अमेरिकी वायु सेना के Staff Sgt. Jocelyn A. Guthrie ने. --रैक्टर कथूरिया 

बंदूक, बच्चे और सैनिक

बंदूक और बच्चे...बात में कोई तालमेल नहीं लगता. पर होता है बहुत गहरा संबंध. जब सैनिक जंग के मैदान में अपनी जान की बाज़ी लगा रहा होता है तो उसे अपने माता पिता भी याद आते हैं, भाई बहन भी, पत्नी भी और बच्चे भी. ऐसा हर जंग के मैदान में होता है. उन पलों में जब सैनिक को बच्चों की याद आती है तो ज़रा सोचिये कि कितना मुश्किल होता होगा बंदूक उठाना. पर सैनिकों की जिंदगी में यह सब होता है. कई कई बार होता है. दिल में प्यार का उमड़ता हुआ सागर. फिर भी हाथ में भरी हुई बंदूक. किसी की जान लेने के लिए हर पल तैयार बार तैयार. इस तस्वीर में भी संयुक्त सेनायों के एक सैनिक ने अपने एक हाथ से थाम रखी है बंदूक और अपने दूसरे हाथ से वह दुलार रहा है एक नन्हे मुन्ने बच्चे को. इस तस्वीर को कैमरे में कैद किया अमरीकी सेना के जन संचार विशेषज्ञ Matthew D. Leistikow  ने 14 अप्रैल 2010 को ईराक में. गाँवों में चल रही कई तरह की जन कल्याण परियोजनायों की प्रगति का जायजा लेने के लिए आये सैनिक जब जाने लगे तो उन्होंने बहुत ही भावुक हो कर इन बच्चों से भी विदाई ली. --रैक्टर कथूरिया 

Monday, April 19, 2010

एक शहादत और...!

       अज़मत अली बंगश भी सच का पुजारी था. उसने सच को सामने लाने का जनून नहीं छोड़ा पर अपनी जान कुर्बान कर दी. यह 48 घंटों के अंदर अंदर ही Samaa टीवी के लिए दूसरा बड़ा झटका था. अभी तो इसी चैनल के एक कैमरामैन मलिक आरिफ के शहीद होने की खबर भी ताज़ा थी कि दूसरी शहादत की खबर भी आ गयी. 
       इस बार जान ली गयी अज़मत अली बंगश की जो कि काफी समय से तालिबानी आतंकवादियों की हिट लिस्ट पर था. जब उसने हकीमुल्लाह के मारे जाने की खबर ब्रेक की तो उसे मिलने वाली धमकियों का सिलसिला और तेज़ हो गया. धमकियों के बाद उसने अपना जिला हंगू छोड़ दिया.अब पेशावर और इस्लामाबाद उसकी नयी कर्मभूमि बने. 
       उसने अपनी ख़ास ख़ास खोजपूर्ण ख़बरों में बताया कि किस तरह आतंकी संगठन बेक़सूर लोगों को यातनायों का शिकार बनाते हैं और फिर मौत के घाट उतार देते हैं. 
      अब भी वह एक कवरेज डयूटी पर था एक साथ हुए दो धमाकों ने उसकी भी जान ले ली. यह सब कुछ हुआ उत्तर पशिचम सीमान्त  क्षेत्र के कोहात में चल रहे एक कच्चा पक्का कैंप में जहां शरणार्थियों के लिए भोजन बंट रहा था. अज़मत अली बंगश Samaa टीवी के साथ साथ एसोसिएटड प्रेस आफ पाकिस्तान और पीटीवी के लिए भी काम करता था. 
         मुझे इस असह सदमे की दुखद सूचना दी जर्नलिस्ट फार इंटरनैशनल पीस के अध्यक्ष और मित्र इफ्तिखार चौधरी ने. हिंसा की इन घटनायों में कई पत्रकार बुरी तरह घायल भी हुए. पत्रकार संगठनो ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दिखाई है और मांग की है कि पत्रकारों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त कदम पहल के आधार पर उठाये जायें.  --रैक्टर कथूरिया         

Saturday, April 10, 2010

आइये आप भी सुनिये सफ़दर की बुलंद आवाज़

सफ़दर हाश्मी को मिटाने वालों ने तो शायद यही सोच होगा कि बस एक खून...और सफ़दर भी खत्म और उसकी आवाज़ भी. पर हुआ एन इसके उल्ट. सफ़दर का लहू जब बहा तो उसने रक्त बीज कि कहानी को भी कहीं पीछे छोड़ दिया.उसने साबित किया कि लोगों के नायक सिर्फ कहानी नहीं होते वे सचमुच रक्तबीज बन के भी दिखा सकते है. आज भी उसकी आवाज़ गूँज रही है. उन लोगों के कानों में भी जिनके लिए वह शहीद हुआ और उनके कानों में भी जिन्होंने उसे शहीद करके सब कुछ खत्म कर देने का वहम पालने की नाकाम कोशिश की.  उसी अमर सफ़दर का जन्म दिन 12 अप्रैल 2010 को है जिसे पूरे जोशो खरोश से मनाया जा रहा है राष्ट्रीय नुक्कड़ नाटक दिवस के तौर पर.  उस महान लोक नायक को याद करने और उसके संकल्प को पूरा करने के लिए एक विशेष आयोजन हो रहा है 11 अप्रैल 2010 को. सांस्कृतिक संध्या के रूप में आयोजित होने वाले इस यादगारी कार्यक्रम की शुरूयात   42,अशोका रोड नयी दिल्ली में शाम को ठीक चार बजे हो जाएगी.  इसका निमन्त्रण देते हुए जन नाटय मंच के अध्यक्ष अशोक तिवारी और सफ़दर की जीवन संगिनी रही मलयश्री हाशमी ने कहा है कि  आप आयें. कुछ पुरानी बातें करें और कुछ आगे के बारे में सोचें. गीत संगीत और नुक्कड़ नाटकों के साथ साथ होने वाली इस चर्चा में जलपान का आयोजन भी किया गया है. क्यूं आप आ रहे हैं न. कुछ कच्चा पक्का है तो बिलकुल पक्का कर लीजिये और एक बार फिर मुलाकात कीजिये उन विचारों से जिन्हें मिटाने के लिए उन लोगों ने सफ़दर को शहीद कर दिया था.एक बार फिर महसूस कीजिये उन जोशीले जज्बातों को जिन्हें खत्म कर देने का वहम पाला था कुछ लोक दुश्मनों ने.वही बुलंदी, वही अंदाज़ और वही पक्के इरादों की झलक मिलेगी इस यादगारी प्रोग्राम में.--रैक्टर कथूरिया  
  

Wednesday, April 07, 2010

आग पर कड़ाही....क्या पक रहा होगा....?

जब मैंने आग पर रखी इस कड़ाही को देखा तो भूख तेज़ होने लगी. मुझे लगा कोई बहुत ही स्वादिष्ट व्यंजन पकाया जा रहा. पर जब पता लगा तो मामला बिलकुल ही कुछ और निकला. वास्तव में जब कहीं पर भी जंग चलती है तो उसमें गोले बारूद और हथियारों के इलावा बहुत सी लिखा पढ़ी भी होती है, बहुत से संदेशों का आदान प्रदान भी होता है, बहुत से नक़्शे भी बनाये जाते हैं और बहुत से आदेश भी जारी होते हैं और बहुत से हिसाब किताब भी रखे जाते हैं. .....यह सभी कुछ अत्यंत गोपनीय होता है. हालांकि यह सब कुछ गुप्त संकेतों के अंतर्गत ही किया जाता है पर ज़रा सोचो अगर कहीं इस तरह का कोई गुप्त आदेश या संदेश का कागज़ किसी दुश्मन के हाथ लग जाये तो सारी की सारी बाज़ी ही उल्ट सकती है. इस लिए सुरक्षा को सामने रखते हुए.काम हो जाने के बाद एक निश्चित समय पर इस तरह के संवेदनशील कागजों को जल्द से जल्द जला कर नष्ट कर दिया जाता है. जो तस्वीर आप देख रहे हैं, उसमें भी इस तरह के कागजों को जलाने का ही एक दृश्य है. बायें खड़े नज़र आ रहे William Northcutt और उनके साथ खड़े हैं अमेरिकी सेना के Army Sgt. 1st Class James Hines. दोनों ही अधिकारी इस अत्यंत गोपनीय और संवेदनशील जिम्मेदारी को निभा रहे हैं. गज़नी अफगानिस्तान के अग्रिम मोर्चे के इन पलों को अमेरिकी वायु सेना के लिए कैमरे में कैद किया Army Sgt. 1st Class James Hines ने 4 अप्रैल 2010 को.   --रैक्टर कथूरिया 

Tuesday, April 06, 2010

सरताज की ओर से गीत चोरी करने और गाने का विवाद हुआ और तीखा....शायर ने दी 15 दिनों की मोहलत



बात फ़िल्मी कहानी की हो, संगीत की हो या फिर साहित्य की....चोरी और सीना जोरी के कई मामले सामने आते रहे हैं. अब नया मामला सामने आया है पंजाबी के तेज़ी से उभर रहे गायक सतिंदर सरताज का। बुलंद आवाज़, श्रोतायों को बांध  लेने वाला जादू, प्रार्थना की घंटियों को सुनवाती आवाज़, कानों में मिश्री घोल देने वाली सुरें, हर किसी से विनम्रता से बात करने वाला यादगारी अंदाज़...बहुत सी खूबियां हैं सरताज में. मुझे उनके चाहने वाले एक युवा पत्रकार ने उनकी इबादत अपने मोबाईल फ़ोन पर सुनाई तो मैं खुद सब कुछ भूल गया. अपने गाये हुए गीतों को खुद ही लिखने का दावा कई बार दोहरा चुके गायक सरताज  के इन दावों पर सवाल उठाया है जिला फिरोजपुर के एक जानेमाने शायर तरलोक सिंह जज ने। दूसरी ओर सरताज की तरफ से इकबाल माहल ने स्पष्ट किया है कि वास्तव में यह सब कुछ रेकार्डिंग कम्पनी के कारण हुआ क्यूंकि विवादित गीतों वाली सीडी संबंधित रेकार्डिंग कम्पनी की मर्ज़ी के बिना जारी हुयी है।  उन्होंने यह भी कहा कि शायर तरलोक सिंह जज धमकियों में बात न करें. इस आरोप से विवाद और तीखा हो गया क्यूंकि शायर ने कभी भी धमकी की भाषा का प्रयोग ही नहीं किया. 
पंजाबी के तेज़ी से उभर रहे गायक सतिंदर सरताज की आवाज़ में किस किस गीतकार  की रचना शामिल है इसका पता शायद कभी न चलता अगर पंजाब और पंजाबियों में भी इंटरनेट  और सोशल  साईटों का प्रचलन लोकप्रिय  न हुआ होता। क्यूंकि सरताज ने कई बार कहा है कि वह जो भी गाते हैं अपना ही लिखा गाते हैं।  पर कहते हैं कि सचाई सो पर्दे फाड़ कर भी बाहर आ जाती है। इस मामले में भी बिलकुल ऐसा ही हुया । फ़िरोज़पुर में रहने वाले एक जानेमाने शायर तरलोक सिंह जज ने अपनी किसी पुरानी ग़ज़ल के कुछ अशिआर एक प्रमुख सोशल साईट पर पोस्ट किये तो कुछ ही पलों बाद पता चला कि इन्हें तो बुलंदियां छू रहे गायक सतिंदर सरताज भी गा चुके हैं. बस थोड़ी सी तलाश के बाद ही गाया गया गीत ढून्ढ लिया गया। गाया गया गीत तो मिल गया पर उसमें शायर का नाम कहीं भी नहीं था. पेशे से कानूनदान ठहरे तरलोक सिंह जज ने सारा मामला शायर दोस्तों के सामने रखा। बात चिंगारी की तरह  निकली तो  जंगल की आग की तरह फ़ैल गयी। इस सारे मुद्दे पर शायर तरलोक सिंह जज से बात की गयी तो उन्हों ने कहा कि 29 मार्च 2010 की रात को  अचानक सरताज ने उनसे फोन पर सम्पर्क किया था पर उसके कुछ घंटों के बाद पंजाबी पोर्टल पर कुछ ऐसी सामग्री प्रकाशित हुयी जिससे वह सहमत नहीं थे। अब इकबाल माहल की ओर से जानेमाने छायाकार और कलमकार जनमेजा सिंह जोहल को एक पत्र भेजा। इसी बीच इकबाल माहल के बारे में भी एक पत्र छपा जिसमें श्री माहल के बारे में काफी कुछ कहा गया। कुल मिला कर इस मामले को हल करने के कई प्रयास जारी हैं। कुछ सब के सामने और कुछ परदे के पीछे लेकिन देखना यह है खुद गायक सरताज इस मुद्दे पर खुद अपने मूंह से क्या कहते हैं ??? वह खुलकर सच स्वीकार तो करें, यहां सब उनके दोस्त हैं.....सब उन्हें गले से लगा लेंगें..मामला केवल देरी और कम्युनिकेशन गैप से ही बिगड़ रहा है....!!!    --रैक्टर कथूरिया 

Sunday, April 04, 2010

....और वे मौत के मूंह से भी लौट आये.....!


समुंदर में सोमालिया के किनारे से बहुत ही दूर. एक छोटी सी कश्ती या फिर डोंगा सा कह लो सागर की लहरों से संघर्ष कर रही थी. उसमें बच्चों और महिलाओं सहित कुल 30 लोग थे. जंग जिंदगी और मौत की थी. जब उन्होंने किनारा छोड़ा तब सब कुछ सही था. किनारा दूर छूट जाने के बाद जब वे सागर की लहरों में पहुंचे तो उन्हें लगा कि शैड कुछ तकनीकी खराबी पेश आ रही है. इस तरह कि बातें सागर के जीवन में एक आम सी बात है सो वे विचलित नहीं हुये. पर कुछ देर बाद यही खराबी और गंभीर हो गयी तो इस तरफ पूरा ध्यान दिया गया. जांच होने पर [पता चला कि उस छोटी सी कश्ती के दोनों इंजन फेल हो चुके है. अब ना तो आगे बढ़ा जा सकता था और न ही पीछे लौटा जा सकता था. इस खराबी के बाद एक और मुसीबत सामने आई.कश्ती में रखा भोजन समाप्त होने को था. पीनेवाला पानी बभी केवल चार दिन और चल सकता था.अब उन्हें अहसास हुआ के वे सागर में फंस चुके है. चारो तरफ शोर मचाता खारा खारा समुंदरी पानी जिसमें शार्क भी हो सकती थी और मगरमच्छ भी. अब दुआ के अलावा और कोई चारा भी उनके सामने नहीं था...और उनकी दुआ सुन ली गयी थी. वे अपनी आंखों से अपने बचने का करिश्मा देखने वाले थे. उस समय अदन की खाड़ी में अमेरिकी नौसेना का का एक बहुत बड़ा जहाज़ अपनी रूटीन गश्त पर था.  समुंदरी लूटेरों और डाकुयों के मुकाबले के लिए दिन रात समुन्द्र रक्षा के लिए नियुक्त इस जहाज़ के अधिकारयों ने देखा कि सागर में दूर कहीं काले से धब्बे जैसा कुछ हिल जुल रहा है. और ध्यान से देखा तो पता चला कि यह कोई छोटी सी कश्ती थी. रक्षकों को सतर्क किया गया क्यूंकि इस कश्ती में समुंदरी डाकूयों के होने की आशंका को नकारा नहीं जा सकता था. सतर्कतापूर्ण जांच के बाद जब असल बात सामने आयी तो जहाज़ से आये नौसेना अधिकारीयों ने देखा ये सब तो मुसीबत के मारे लोग थे. न उनके पास भोजन बचा था, न ही दवा दारू और न ही पीने वाला पानी.  बुरी तरह खराब हो चुके दोनों इंजनों वाली यह कश्ती किसी भी समय जलमग्न हो सकती थी. इन्हें तुरंत आवश्यक दवा-दारू और भोजन दिया गया. कंबल दे कर इन्हें कुछ देर आराम करने के लिए जहाज़ में ही जगह दी गयी. यह सब कुछ 25 मार्च 2010 को हुया. ढाई दिन के सफ़र के बाद 27 मार्च 2010 को इन लोगों को किनारे पर ला कर उनके गांव सीलाया में पहुंचाया गया. मौत को एन नज़दीक से देख कर लौटे इन सौभाग्यशालियों के एक नेता अब्दुल रहमान अली ने कहा कि हम तो जीवत बचने की उम्मीद ही छोड़ चुके थे. इस तरह यह सारा मामला बचायो के इतिहास में एक नया अध्याय बन के जुड़ गया. मुझे सारा विवरण भेजा Combined Maritime Forces के लिए अपनी डियूटी निभा रहे अमेरिका के Navy Ensign Colleen M. Flynn ने और अमेरिकी जल सेना के लिए इन पलों को कैमरे में कैद किया है Petty Officer 3rd Class Cory Phelps ने.आपको इसका हिंदी कथा रूप कैसा लगा अवश्य बताएं.           --रेक्टर कथूरिया